क ट्रेन के डिब्बे में नवाब साहब ने लेखक की संगति के लिए उत्साह क्यों नहीं दिखाया? - ka tren ke dibbe mein navaab saahab ne lekhak kee sangati ke lie utsaah kyon nahin dikhaaya?

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विषयसूची

  • नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह क्यों नहीं दिखाया?
  • लेखक का डिब्बे में आना नवाब साहब को अच्छा नहीं लगा इस बात को लेखक ने कैसे महसूस किया?
  • रेल के डिब्बे के बारे में लेखक का क्या अनुमान था?
  • नवाब साहब की कौन सी बात लेखक को अच्छी नहीं लगी?

छितिज भाग -2 यशपाल


प्रश्न 1: लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं?
उत्तर:   लेखक के अचानक डिब्बे में कूद पड़ने से नवाब-साहब की आँखों में एकांत चिंतन में विघ्न पड़ जाने का असंतोष दिखाई दिया तथा लेखक के प्रति नवाब साहब ने संगति के लिए कोई विशेष उत्साह नहीं दिखाया। इससे लेखक को स्वयं के प्रति नवाब साहब की उदासीनता का आभास हुआ।


प्रश्न 2: नवाब  साहब   ने  बहुत   ही  यत्न  से  खीरा  काटा,  नमक-मिर्च  बुरका,  अंतत: सूँघकर  ही  खिड़की  से  बाहर फेंक दिया।  उन्होंने
ऐसा क्यों  किया  होगा?  उनका ऐसा  करना  उनके  कैसे  स्वभाव  को  इंगित करता  है?
उत्तर:  नवाब साहब द्वारा दिए गए खीरा खाने के प्रस्ताव को लेखक ने अस्वीकृत कर दिया। खीरे को खाने की इच्छा तथा सामने वाले यात्री के सामने अपनी झूठी साख बनाए रखने के कश्मकश में नवाब ने खीरे को काटकर खाने की सोची तथा फिर अन्तत: जीत नवाब के दिखावे की हुई। अत: इसी इरादे से उसने खीरे को फेंक दिया।
नवाब के इस स्वभाव से ऐसा लगता है कि वो दिखावे की जिंदगी जीते हैं। खुद को श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए वो कुछ भी कर सकते हैं।


प्रश्न 3:  बिना  विचार,  घटना  और  पात्रों  के  भी  क्या  कहानी लिखी  जा  सकती  है। यशपाल  के  इस  विचार  से  आप कहाँ तक सहमत
हैं?
उत्तर:  अपने इस कथन के द्वारा लेखक ने नई कहानी के दौर के लेखकों पर व्यंग किया है। किसी भी कहानी की रचना उसके आवश्यक तत्वों – कथावस्तु, घटना, पात्र आदि के बिना संभव नहीं होती। घटना तथा कथावस्तु कहानी को आगे बढ़ाते हैं, पात्रों द्वारा संवाद कहे जाते हैं। ये कहानी के लिए आवश्यक तत्व हैं।


प्रश्न 4:  आप  इस  निबंध को और क्या  नाम  देना  चाहेंगे?
उत्तर:  इस  कहानी का नाम  ‘झूठी  शान’  भी  रखा जा सकता है  क्योंकि नवाब  ने अपनी झूठी  शान-शौकत  को बरकरार रखने के उद्देश्य सेअपनी इच्छा  को नष्ट कर दिया।


प्रश्न 5:
(क)  नवाब  साहब द्वारा  खीरा  खाने की  तैयारी  करने  का  एक  चित्र  प्रस्तुत किया  गया  है। इस  पूरी  प्रक्रिया  को  अपने  शब्दों  में  व्यक्त  कीजिए।
(ख) किन-किन चीज़ों  का  रसास्वादन  करने  के  लिए  आप किस प्रकार की  तैयारी  करते  हैं?
उत्तर:
(क) सेकंड क्लास के एकांत डिब्बे में बैठे नवाब साहब खीरा खाने की इच्छा से दो ताज़े खीरे एक तौलिए पर रखे हुए थे। पहले तो उन्होंने खीरे को खिड़की से बाहर निकालकर लोटे के पानी से धोया फिर उसको करीने से काटकर, उसे गोदकर कड़वा झाग निकाला। फिर खीरों को बहुत सावधानी से छीलकर फाँको पर बहुत कायदे से जीरा, नमक-मिर्च की सुर्खी बुरक दी। इसके बाद एक- एक करके उन फाँको को उठाते गए और उन्हें सूँघकर खिड़की से बाहर फेंकते गए।

(ख) (1) हम हलवे का रसास्वादन करने के लिए उसे अच्छी तरह से एक प्लेट में रखते हैं तथा उसके ऊपर काजू, किशमिश डालकर अच्छी तरह से उसकी सजावट करते हैं फिर उसे खाने के लिए परोसते हैं।

(2) आम के अचार का रसास्वादन करने के लिए हम पहले उसे करीने से निकाल कर उसे उलट-पुलट कर देखते हैं। फिर उसे खाने के लिए धीरे-धीरे अपने मुँह के पास लाते हैं और उसके खट्टे स्वाद का आनंद लेते हुए उसे खाते हैं।


प्रश्न 6:  खीरे   के  संबंध  में  नवाब  साहब  के  व्यवहार  को  उनकी  सनक  कहा  जा  सकता  है।  आपने  नवाबों  की  और  भी  सनकों और
शौक  के  बारे  में  पढ़ा-सुना  होगा।  किसी  एक के  बारे  में  लिखिए।
उत्तर:  पाठ में प्रस्तुत खीरे के प्रसंग द्वारा नवाब के दिखावटी ज़िंदगी का पता चलता है, इससे उनके सनकी व्यक्तित्व का ज्ञान होता है। ऐसे कुछ और भी प्रसंग हैं –
(1) नवाब अपनी शान और शौकत के लिए पैसे लुटाने से बाज़ नहीं आते हैं। फिर चाहे उनके घर में पैसों की तंगी ही क्यों न हो पर बाहर वे खूब पैसे लुटाते हैं।
(2) नवाब नाच-गानों का शौक भी रखते हैं। वे मुजरों पर खूब पैसा लुटाते हैं।
(3) अपनी झूठी समृद्धि को कायम रखने के लिए ये किसी से लड़ने से भी बाज़ नही आते हैं।
(4) प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी ‘पर्दा’ में नवाबी शानो-शौकत का उल्लेख है। जिसमें एक नवाब अपने घर की इज्ज़त कायम रखने के लिए पर्दे पर खर्च करता है भले ही उसे खाने तथा कपड़े की कमी होती है।


प्रश्न 7:  क्या सनक  का  कोई  सकारात्मक  रूप हो  सकता  है?  यदि  हाँ  तो ऐसी  सनकों  का  उल्लेख कीजिए।
उत्तर:  सनक के दो रुप होते हैं –
एक सकारात्मक तथा दूसरा नकारात्मक। जहाँ एक ओर नकारात्मक सनक किसी व्यक्ति को समाज में हँसी का पात्र बना देता है वहीं सनक का सकारात्मक पक्ष उसे रातों-रात प्रसिद्ध कर देता है। ऐसे कुछ सनकों का उल्लेख नीचे दिया जा रहा है –
(1) राजा राम मोहन राय की सनक ही थी कि उन्होंने समाज में विधवा विवाह का कानून लागू करवाया।
(2) देशभक्ति की सनक सुभाष चंद्र बोस तथा महात्मा गाँधी को भी थी जिससे उन्होंने देश को आज़ादी दिलवाई।


प्रश्न 8:निम्नलिखित वाक्यों में से क्रियापद छाँटकर क्रिया-भेद भी लिखिए –
(क) एक सफ़ेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे।
(ख) नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया।
(ग) ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है।
(घ) अकेले सफ़र का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे।
(ङ) दोनों खीरों के सिर काटे और उन्हें गोदकर झाग निकाला।
(च) नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा।
(छ) नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए।
(ज) जेब से चाकू निकाला।
उत्तर:
(क) बैठे थे − अकर्मक क्रिया
(ख) दिखाया − सकर्मक क्रिया
(ग) आदत है − सकर्मक क्रिया
(घ) खरीदे होंगे − सकर्मक क्रिया
(ङ) निकाला − सकर्मक क्रिया
(च) देखा − सकर्मक क्रिया
(छ) लेट गए − अकर्मक क्रिया
(ज) निकाला − सकर्मक क्रिया


नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह क्यों नहीं दिखाया?

उत्तर: लेखक के अचानक डिब्बे में कूद पड़ने से नवाब-साहब की आँखों में एकांत चिंतन में विघ्न पड़ जाने का असंतोष दिखाई दिया तथा लेखक के प्रति नवाब साहब ने संगति के लिए कोई विशेष उत्साह नहीं दिखाया। इससे लेखक को स्वयं के प्रति नवाब साहब की उदासीनता का आभास हुआ।

लेखक का डिब्बे में आना नवाब साहब को अच्छा नहीं लगा इस बात को लेखक ने कैसे महसूस किया?

लेखक जब डिब्बे में आया तो उसका आना नवाब साहब को अच्छालगा। उन्होंने लेखक से मिलने और बात करने का उत्साह न दिखाया। पहले तो नवाब साहब खिड़की से बाहर कुछ देर तक देखते रहे और फिर डिब्बे की स्थिति पर निगाहें दौडाने लगे। उनका यह उपेक्षित व्यवहार लेखक को अच्छालगा

रेल के डिब्बे के बारे में लेखक का क्या अनुमान था?

question. ➲ लेखक का ये अनुमान था कि सेकंड क्लास का डिब्बा खाली होगा, वहाँ उसे एकांतवास मिल सकेगा। वहाँ पर वह एकांत में खिड़की के बाहर प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेगा और अपनी अगली कहानी के विषय मे सोचेगा। उस सेकंड क्लास के डिब्बे प्रबुद्ध वर्क के लोगों के ही लोग चढ़ते थे।

नवाब साहब की कौन सी बात लेखक को अच्छी नहीं लगी?

उत्तरः लखनऊ के नवाबों और रईसों के बारे में लेखक की धारणा व्यंग्यपूर्ण और नकारात्मक थी। वह उनकी जीवन-शैली की कृत्रिमता को, दिखावे को पसंद नहीं करता था। उसने आरंभ में ही डिब्बे में बैठे सज्जन को 'नवाबी नस्ल का सफेदपोश' कहा है। प्रश्न 4.

नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया क्यों?

नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया। ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है। अकेले सफ़र का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे। नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक – मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँको की ओर देखा।

नवाब साहब के सामने लेखक से संगति का उत्सास क्यों नही दिखाया होगा?

Answer: नवाब साहब द्वारा दिए गए खीरा खाने के प्रस्ताव को लेखक ने अस्वीकृत कर दिया। खीरे को खाने की इच्छा तथा सामने वाले यात्री के सामने अपनी झूठी साख बनाए रखने के उलझन में नवाब साहब ने खीरा खाने की सोची परन्तु जीत नवाब के दिखावे की हुई। और इसी इरादे से नवाब साहब ने खीरा सूँघ कर फेंक दिया ।

लेखक के डिब्बे में चढ़ने पर नवाब साहब ने क्या अनुभव किया?

नवाब साहब की असुविधा और संकोच के कारण का अनुमान करने लगे। संभव है, नवाब साहब ने बिल्कुल अकेले यात्रा कर सकने के अनुमान में किफ़ायत के विचार से सेकंड क्लास को टिकट खरीद लिया हो और अब गवारा न हो कि शहर का कोई सफेदपोश उन्हें मँझले दर्जे में सफर करता देखे। ….

नवाब साहब ट्रेन के डिब्बे में क्या खाने की तैयारी कर रहे थे?

Solution : नवाब साहब में नवाबी और अमीरी दिखाने की प्रवृति थी। वह अकेले रेल के डिब्बे में बैठकर खीरा खाने की तैयारी कर रहे थे