Bharat Ke Mukhya Nyayadheesh Ki Niyukti Kaun Karta HaiGkExams on 11-02-2019 Show संविधान में 30 न्यायधीश तथा 1 मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति का प्रावधान है। उच्चतम न्यायालय के सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा उच्चतम न्यायालय के परामर्शानुसार की जाती है। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश इस प्रसंग में राष्ट्रपति को परामर्श देने से पूर्व अनिवार्य रूप से चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों के समूह से परामर्श प्राप्त करते हैं तथा इस समूह से प्राप्त परामर्श के आधार पर राष्ट्रपति को परामर्श देते हैं। अनु 124 के अनुसार मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते समय राष्ट्रपति अपनी इच्छानुसार सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सलाह लेगा। वहीं अन्य जजों की नियुक्ति के समय उसे अनिवार्य रूप से मुख्य न्यायाधीश की सलाह माननी पडेगी न्यायाधीशों की योग्यताएँ
किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश या फिर उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के एक तदर्थ न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जा सकता है !
और वह 62 वर्ष की आयु पूरी न किया हो ,वर्तमान समय में CJAC निर्णय लेगी कार्यकालउच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष होती है। न्यायाधीशों को केवल (महाभियोग) दुर्व्यवहार या असमर्थता के सिद्ध होने पर संसद के दोनों सदनों द्वारा दो-तिहाई बहुमत से पारित प्रस्ताव के आधार पर ही राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है। सम्बन्धित प्रश्नComments Nupur pal on 25-11-2022 Uchhtam nyayalay ke mukhya nyayadhish ki niyukti Kaun karta hai use pad se hatane ki prakriya bataiye Sk on 24-10-2021 President ko kon niyukt karta hai KAMLESH GURJAR on 21-07-2021 Memorandum of prosessor क्या है Ramgopal on 05-03-2020 High court k judge ke neukti kon Marta h Jyoti on 05-12-2019 Uchatam nyayalaya ke nyayadhish ko Niyukti Kaun Karta Tha Shankar Lal on 13-01-2019 Bharat ke mukhy nyayadhish ki Niyukti Kaun karta hai निकेत on 24-09-2018 राष्ट्रपति संदर्भ एवं पृष्ठभूमि संविधान का संरक्षक है सर्वोच्च न्यायालय क्या कहता है अनुच्छेद 124? चूंकि संविधान में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति को लेकर अलग से कोई प्रावधान नहीं किया गया है, इसीलिये दो अपवादों (1973 में जस्टिस ए.एन. रे और 1977 में जस्टिस एम.यू. बेग को वरिष्ठता क्रम को नज़रअंदाज़ कर
मुख्य न्यायाधीश बनाया गया था) को छोड़कर सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश को इस पद पर नियुक्त किये जाने की परंपरा अब तक चली आ रही है। (टीम दृष्टि इनपुट) वर्तमान में क्या है विवाद का मुद्दा? केंद्र सरकार ने जस्टिस के.एम. जोसेफ की पदोन्नति रोके रखने का फैसला किया है, जो उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश हैं। अब सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम को तय करना है कि सरकार को क्या जवाब दिया जाए। अभी जो व्यवस्था चल रही है उसके तहत केंद्र सरकार कॉलेजियम की सिफारिश को वापस भेज सकती है, क्योंकि ऐसा करना उसके अधिकार क्षेत्र में है। लेकिन यदि कॉलेजियम दोबारा इसी सिफारिश को सरकार के पास भेजता है तो सरकार उसे मानने के लिये बाध्य होगी। क्या आपत्ति जताई है सरकार ने?
इसके अलावा सरकार ने यह भी कहा कि सर्वोच्च न्यायालय में कोलकाता, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, उत्तराखंड, झारखण्ड, जम्मू-कश्मीर, सिक्किम, मणिपुर और मेघालय उच्च न्यायालय का प्रतिनिधित्व नहीं है। ऐसे में यह प्रश्न एक बार फिर उठ खड़ा हुआ है कि जजों की नियुक्ति कौन करे?...और कैसे? कॉलेजियम क्या है?
वर्तमान में कॉलेजियम व्यवस्था के अध्यक्ष मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा हैं और जस्टिस जे. चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन बी. लोकूर और जस्टिस कुरियन जोसेफ इसके सदस्य हैं।
लंबे समय से चला आ रहा है टकराव
सरकार के तर्क
संसदीय
समिति कर चुकी है सरकार का समर्थन (टीम दृष्टि इनपुट) न्यायपालिका के तर्क
कौन
सर्वोच्च?...सरकार या...? मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीज़र
(टीम दृष्टि इनपुट) 121वाँ संविधान संशोधन
(राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग)
निष्कर्ष: कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच मतभेदों का सार्वजनिक होना लोकतंत्र के लिये नुकसानदायक है। संसदीय लोकतंत्र में कार्यपालिका और न्यायपालिका के अपने-अपने अधिकार हैं। संविधान के तहत दोनों की सुपरिभाषित भूमिकाएँ हैं और अदालतों की भूमिका अंततः विधि का शासन सुनिश्चित कराने की है। न्यायपालिका और कार्यपालिका दोनों अपना-अपना काम करती हैं। विधायिका कानून बनाती है और इसे लागू करना कार्यपालिका का और विधायिका द्वारा बनाए गए कानूनों के संविधान सम्मत होने की जाँच करना न्यायपालिका का काम है। न्यायपालिका देश के सर्वाधिक प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक है और लोगों के मन में इसकी स्वतंत्रता तथा निष्पक्ष न्याय के प्रति इसकी प्रतिबद्धता पर अटूट विश्वास है। हाल ही में जजों की नियुक्ति को लेकर न्यायपालिका और सरकार के बीच व्यवधान सामने आया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि शक्ति पृथक्करण जैसा बुनियादी सिद्धांत विवाद का विषय बना हुआ है, जबकि इस गंभीर मुद्दे पर सार्वजनिक बहस से बचा जाना चाहिये। कार्यपालिका व न्यायपालिका के बीच यह टकराव लोकतंत्र के हित में नहीं है, क्योंकि इससे पहले से ही उलझी परिस्थितियों के और उलझने का अंदेशा रहता है। |