वाच्य का शाब्दिक अर्थ है :- " बोलने का विषय "| अतः क्रिया के जिस रुप से या पता चले कि क्रिया का मुख्य विषय 'कर्ता' है 'कर्म' है अथवा 'भाव' है उसे वाच्य कहते हैं; Show उदाहरण :- 'नेताजी' सुंदर लग रहे थे ( इस वाक्य में नेताजी कर्ता को दर्शाते हैं| ) इनमें किसी के अनुसार क्रिया के पुरुष, वचन आदि आए हैं। वाच्य के तीन प्रकार हैं -
कर्तृवाच्य[संपादित करें]क्रिया के उस रूपान्तर को कर्तृवाच्य कहते हैं, जिससे वाक्य में कर्ता की प्रधानता का बोध हो। सरल शब्दों में, क्रिया के जिस रूप में कर्ता प्रधान हो और सकर्मक और अकर्मक दोनों क्रियाए हो, उसे कर्तृवाच्य कहते हैं। उक्त वाक्यों में कर्ता प्रधान है तथा उन्हीं के लिए 'खाता है' तथा 'पढ़ता है' क्रियाओं का विधान हुआ है, इसलिए यहाँ कर्तृवाच्य है। कर्तृवाच्य में कर्ता विभक्ति रहित होता ही है और यदि विभक्ति हो तो वहां केवल ' ने ' विभक्ति का ही प्रयोग होता है। जैसे - रमेश ने केला खाया। कर्मवाच्य[संपादित करें]क्रिया के उस रूपान्तर को कर्मवाच्य कहते हैं, जिससे वाक्य में कर्म की प्रधानता का बोध हो। सरल शब्दों में- क्रिया के जिस रूप में कर्म प्रधान हो, जिसमें केवल सकर्मक क्रिया के वाक्य होते है।उसे कर्मवाच्य कहते हैं। उदाहरणकवियों द्वारा कविताएँ लिखी गई। पतंग उड रही है।गाडी चल रही हैउक्त वाक्यों में कर्म प्रधान हैं तथा उन्हीं के लिए 'लिखी गई', 'दी गई' तथा 'पढ़ी गई' क्रियाओं का विधान हुआ है, अतः यहाँ कर्मवाच्य है। यहाँ क्रियाएँ कर्ता के अनुसार रूपान्तररित न होकर कर्म के अनुसार परिवर्तित हुई हैं। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि अँगरेजी की तरह हिन्दी में कर्ता के रहते हुए कर्मवाच्य का प्रयोग नहीं होता; जैसे- 'मैं दूध पीता हूँ' के स्थान पर 'मुझसे दूध पीया जाता है' लिखना गलत होगा। हाँ, निषेध के अर्थ में यह लिखा जा सकता है- मुझसे पत्र लिखा नहीं जाता; उससे पढ़ा नहीं जाता। कर्म वाच्य की पहचान- कर्म वाच्य वाले वाक्यों में "के द्वारा/द्वारा/सर्वनाम शब्द में 'से'जुड़ा हुआ हो और इनके बाद कर्म आता हो तो उसे कर्म वाच्य का वाक्य कहते हैं| भाववाच्य[संपादित करें]क्रिया के उस रूपान्तर को भाववाच्य कहते हैं, जिससे वाक्य में क्रिया अथवा भाव की प्रधानता का बोध हो। दूसरे शब्दों में- क्रिया के जिस रूप में न तो कर्ता की प्रधानता हो न कर्म की, बल्कि क्रिया का भाव ही प्रधान हो, वहाँ भाववाच्य होता है। उदाहरणमोहन से टहला भी नहीं जाता। मुझसे उठा नहीं जाता।मुझसे सोया नही जाता।उक्त वाक्यों में कर्ता या कर्म प्रधान न होकर भाव मुख्य हैं, अतः इनकी क्रियाएँ भाववाच्य का उदाहरण हैं। टिप्पणी- यहाँ यह स्पष्ट है कि कर्तृवाच्य में क्रिया सकर्मक और अकर्मक दोनों हो सकती है, किन्तु कर्मवाच्य में केवल सकर्मक और भाववाच्य में अकर्मक होती हैं। सन्दर्भ[संपादित करें]वाक्य में कर्ता को क्या कहते हैं?किसी वाक्य में क्रिया के सम्पादन में सहायता करने वाले को कारक कहते हैं (क्रियां करोति निर्वर्तयतीति कारकम् )। सम्बन्ध है, किन्तु क्रिया ददाति से सीधा सम्बन्ध नहीं है। इसी तरह हे बालका: ! का भी क्रिया से सीधा सम्बन्ध नहीं है। इस तरह कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान तथा अधिकरण— ये छ: कारक हैं।
जिस वाक्य में कर्म की प्रधानता होती है वहां कौन सा वाक्य होता है?सरल शब्दों में – क्रिया के जिस रूप में कर्म प्रधान हो, उसे कर्मवाच्य कहते हैं या जहाँ क्रिया का संबंध सीधा कर्म से हो तथा क्रिया का लिंग तथा वचन कर्म के अनुसार हो, उसे कर्मवाच्य कहते हैं। मीरा ने दूध पीया। मीरा ने पत्र लिखा।
कर्ता की प्रधानता वाले वाक्य में कौन सा वाक्य होता है?क्रिया के उस परिवर्तन को वाच्य कहते हैं, जिसके द्वारा इस बात का बोध होता है कि वाक्य के अन्तर्गत कर्ता, कर्म या भाव में से किसकी प्रधानता है। इनमें किसी के अनुसार क्रिया के पुरुष, वचन आदि आए हैं।
कर्तृवाच्य के वाक्यों में कर्ता के कार्य की होती है?कर्मवाच्य में कर्म की प्रधानता होती है, अत: कर्म में प्रथमा तथा कर्ता में तृतीया विभक्ति का प्रयोग होता है। यहाँ क्रिया का प्रयोग कर्म के अनुसार होता है। जिस लिङ्ग, पुरुष तथा वचन में कर्म होता है, उसी लिङ्ग, पुरुष तथा वचन में क्रिया का प्रयोग होता है। यथा— रामेण गृहं गम्यते ।
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