पत्र-लेखन आधुनिक युग की अपरिहार्य आवश्यकता है। पत्र एक ओर सामाजिक व्यवहार के अपरिहार्य अंग हैं तो दूसरी ओर उनकी व्यापारिक आवश्यकता भी रहती है। पत्र लेखन एक कला है जो लेखक के अपने व्यक्तित्व, दृष्टिकोण एवं मानसिकता से परिचालित होती है। वैयक्तिक पत्राचार में जहां लेखकीय व्यक्तित्व प्रमुख रहता है, वहीं व्यापारिक और सरकारी पत्रों में वह विषय तक ही सीमित रहता है। Show
सामान्यतः पत्र दो वर्गों में विभक्त किए जा सकते हैं : (i) वैयक्तिक पत्र (ii) निर्वैयक्तिक पत्र। वे पत्र जो वैयक्तिक सम्बन्धों के आधार पर लिखे जाते हैं, वैयक्तिक पत्र कहलाते हैं, जबकि निर्वैयक्तिक पत्रों के अन्तर्गत वे पत्र आते हैं जो व्यावसायिक एवं सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु लिखे जाते हैं। ये कई प्रकार के हो सकते हैं, यथा : (i) सम्पादक के नाम पत्र (ii) आवेदन पत्र एवं प्रार्थना पत्र (iii) व्यापारिक पत्र (iv) शिकायती पत्र (v) कार्यालयी पत्र। पत्र-लेखन ‘पत्राचार’ की सामान्य विशेषताएंएक अच्छे पत्र में निम्नलिखित विशेषताएं होनी चाहिए :
पत्र लेखन का इतिहासपत्र-लेखन का प्रारम्भ कब हुआ? पहला पत्र कब, किसने, किसको लिखा ? उन प्रश्नों का कोई प्रामाणिक उत्तर इतिहास के पास नहीं है, फिर भी इतना तो निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि जबसे मानव जाति ने लिखना सीखा, तब से ही पत्र लिखे जाते रहे हैं। भाषा-वैज्ञानिकों के मतानुसार अपने मन की बात दूसरे तक पहुँचाने के लिए मनुष्य ने सर्वप्रथम जिस लिपि का आविष्कार किया, वह चित्रलिपि है। यह कंदरावासी, आदिमानव की ‘आदि लिपि‘ है। विद्वान् लोग खोजते खोजते इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि लेखन का इतिहास चित्रलिपि से ही होता है। यह लिपि केवल चित्रकला की ही जन्मदात्री नहीं है, वरन् लेखन के इतिहास का भी प्राचीनतम प्रमाण है। लेखन के इतिहास में सूत्रलिपि, प्रतीकात्मक लिपि, भावमूलक लिपि, भाव ध्वनिमूलक लिपि और ध्वनिमूलक लिपि का विकास भी चित्रलिपि से ही हुआ है। ये सब चित्रलिपि के ही विकसित रूप हैं। चित्र और भावमूलक लिपि में लिखे गये पत्रों के प्रमाण इतिहास में उपलब्ध हैं, किन्तु वे बहुत प्राचीन नहीं है। इससे एक बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि लेखन के इतिहास के साथ ही मानव द्वारा पत्र-लेखन प्रारम्भ हो गया होगा, क्योंकि लिपि का सम्बन्ध भावाभिव्यक्ति से है। ईसा से चार हजार वर्ष पूर्व ध्वनि लिपि का प्रयोग प्रारम्भ हो चुका था। सुविधा के लिए हम यह मान सकते हैं कि मानव ने तब से ही किसी न किसी रूप में पत्र लिखना प्रारम्भ कर दिया होगा। इतने लम्बे समय से प्रयोग में आते-आते पत्र-लेखन एक उपयोगी कला का रूप धारण कर चुका है। पत्र आज के जीवन का अनिवार्य अंग बन चुका है। एक प्रकार से देखा जाए तो व्यक्ति के दैनिक जीवन में पत्र के उपयोग के बिना काम नहीं चल सकता। दूर-दूर रहने वाले परिजनों-मित्रों के सम्पर्क पत्र द्वारा ही होता है। व्यवसाय के क्षेत्र में पत्र द्वारा ही माल की आवक-जावक होती है। सरकारी काम-काज तो लगभग पत्राचार से ही चलता है। उत्सवों या विशिष्ट अवसरों पर पत्राचार आधुनिक शिष्टाचार का एक प्रमुख रूप बन चुका है। पत्र-लेखन और विशेषत: व्यक्तिगत पत्र-लेखन आधुनिक युग में कला का रूप धारण कर चुका है। अगर पत्र लेखन को उपयोगी कला के साथ ललित कला भी कहा जाए तो अत्युक्ति नहीं होगी। इसका प्रमाण यह है कि आज साहित्य के विभिन्न रूपों में पत्र-साहित्य नामक रूप भी स्वीकृत हो चुका है। महापुरुषों द्वारा लिखित पत्र इसी कोटि में आते हैं। इन पत्रों में ललित कला का पुष्ट रूप दिखाई देता है। पत्र में लेखक के भाव और विचार ही व्यक्त नहीं होते, वरन् उसकी जीवन दृष्टि, उसके जीवन मूल्य और विषय से सम्बन्धित उसकी चिन्तन धारा भी व्यक्त होती है। इस तरह पत्र द्वारा लेखक के व्यक्तित्व का भी परिचय मिल जाता है। पत्र, लेखक की बहुज्ञता, अल्पज्ञता, उसके शैक्षणिक स्तर, उसके चरित्र-संस्कार का प्रतिबिम्ब होता है। इसीलिए आज पत्र-लेखन केवल सम्प्रेषण न रहकर एक प्रभावशाली और उपयोगी कला का सुन्दर और अनुकरणीय रूप बन गया है। पत्र-लेखन के लिए आवश्यक बातेंभाषापत्र की भाषा दुरुह और दुर्बोध नहीं होनी चाहिए। पत्र भाव और विचारों का सम्प्रेषण माध्यम है, पाण्डित्य प्रदर्शन की क्रीड़ा-स्थली नहीं है। इसलिए पत्र में सरल और सुबोध भाषा का प्रयोग करना चाहिए। शब्द-संयोजन से लेकर वाक्य-विन्यास तक में किसी प्रकार की जटिलता न होना भाषा में सरलता और सुबोधता के लिए आवश्यक होता है। भाषा में जहाँ तक सम्भव हो, सामासिकता और आलंकारिकता का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। पत्र में वाक्य अधिक लम्बे न हों और बात को छोटे-छोटे वाक्यों में ही कहा जाना चाहिए। इससे पत्र की भाषा में शीघ्र और सरल ढंग से अर्थ-सम्प्रेषण हो जाता है। लिखते समय विरामादि चिन्ह का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए। आकारजहाँ तक हो, पत्र का आकार संक्षिप्त होना चाहिए। संक्षिप्ति अच्छे पत्र का गुण है। अतः पत्र में व्यर्थ के विवरणों से बचा जाना चाहिए। अतिशयोक्ति, पुनरुक्ति या वाग्जाल पत्र-लेखन-कला को दोषपूर्ण बना देता है। क्रमपत्र में जो बातें कही जानी है उनको एक क्रम में व्यक्त किया जाना चाहिए। लिखने के पूर्व अच्छी तरह सोच लेना चाहिए कि कौन सी बात प्रमुख है, उसी बात को पहले लिखना चाहिए। उसके बाद दूसरी गौण बातें लिखी जानी चाहिए। इससे पत्र की भाषा में सरलता, सटीकता और मधुरता के साथ-साथ प्रभावान्विति का समावेश हो जायेगा। पत्र के पाठक तक लेखक के भाव-विचार यथातथ्य रूप में पहुंच जाएँ, उस पर अनुकूल प्रभाव पड़े यही पत्र की सफलता है और सार्थकता भी। शिष्टताचूँकि पत्र लेखक के व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति है और उसका प्रमाण भी है, इसलिए पत्र में शिष्टता और विनम्रता का निर्वाह करना चाहिए। पत्र में कभी कटु शब्दों का नहीं करना चाहिए, चाहे आपको अपना आक्रोश ही क्यों न व्यक्त करना हो। कठोर पना भी व्यक्त करनी हो तो भी मधर और शिष्ट भाषा का ही प्रयोग करना चाहिए। इससे पाठक पर पत्र-लेखक के चरित्र, व्यक्तित्व और संस्कार का अच्छा प्रभाव पड़ता है। कागज और लिखावटपत्र लिखने के लिए प्रमुख सामग्री कागज है। जिस कागज पर पत्र लिखा जा रहा है, वह साफ सुथरा और अच्छी गुणवत्ता और विषय-सामग्री के अनुकूल आकार का होना चाहिए। लिखावट साफ, पढ़ने में आने लायक और जहाँ तक हो सके, सुन्दर होनी चाहिए। परीक्षार्थी के लिए ध्यान देने योग्य बातें
औपचारिक पत्र की भाषा शैली और लेखन पद्धती विशिष्ट और निश्चित होती है। हालांकि इसमें समय-समय पर परिवर्तन होता रहता है। फिर भी इसका रूपाकार लगभग सुनिश्चित होता है। इस दृष्टि से हर प्रकार के औपचारिक पत्र लिखने का एक खास तरीका होता है। फिर भी कुछ बातें ऐसी हैं जो हमें सभी औपचारिक पत्र पर समान रूप से लागू होती हैं। औपचारिक पत्र लंबे नहीं लिखे जाने चाहिए, क्योंकि पत्र, चाहे वह व्यापार से संबंधित हो या शासकीय कामकाज से, पढ़ने वाले व्यक्ति के पास बहुत अधिक समय नहीं होता। इसलिए अपनी बात को संक्षेप में तथा स्पष्ट भाषा में कहना जरूरी होता है। ऐसे पत्र में प्रमुख मुद्दों का उल्लेख होता है जिनका विस्तार से विश्लेषण नहीं किया जाता है। इसलिए ऐसे पत्र का आकार एक या अधिक से अधिक दो टंकित प्रश्नों से ज्यादा नहीं होना चाहिए। पत्र में कही गई बात में यथातथ्यता और उचित क्रम निर्वाह भी जरूरी है ताकि पढ़ने वाला उसे सहजता से समझ सके। पत्र में यदि किसी पिछली बात या पिछले पत्र का हवाला दिया गया है तो उसकी तारीख, संख्या, विषय आदि सही होने चाहिए। छोटी सी गलती होने पर समय श्रम तथा धन की हानि हो सकती है। यदि ऐसी गलती व्यावसायिक होती है तो इसका असर उस कंपनी या फर्म की साख पर पड़ सकता है और यदि आवेदन पत्र या किसी अनुरोध पत्र में होती है तो पत्र लिखने वाले को नुकसान उठाना पड़ सकता है। प्रशासनिक मामलों में तो इस तरह की गलती से गंभीर कानूनी समस्या भी पैदा हो सकती हैं। औपचारिक पत्र में निजीपन की गुंजाइश नहीं होती। इसकी भाषा में अटपटापन या रूखापन भी होना चाहिए की पढ़ने वाले को स्पष्ट या बुरी लगे। ऐसे पत्रों में सहज विनम्र भाषा का इस्तेमाल होना चाहिए। औपचारिक पत्र के लिए जरूरी तथ्य –
विशेष अनुमति के लिए आवेदन पत्र का एक नमूना देखिए –2. अनौपचारिक पत्रअनौपचारिक पत्र वस्तुत: व्यक्तिगत पत्र होते हैं। इनमें परिवार के सदस्यों एवं मित्रों की बातचीत का सा निजीपन होता है। और जिसे व्यक्तिगत पत्र लिख रहे हैं उससे आपके संबंध औपचारिक नहीं होते। अतः पत्र की भाषा शैली का कोई कठोर नियम नहीं होता। माता-पिता और बच्चों के बीच या पति-पत्नी के बीच या मित्रों के बीच लिखे जाने वाले पत्रों के विषय में बहुत विविधता होती है। यह विविधता वस्तुतः उतनी ही व्यापक होती है जितनी की मानव स्वभाव और मानव जीवन की स्थितियां। इसलिए ऐसे पत्रों में केवल समाचार भी दिया जा सकता है, किसी समस्या का समाधान भी हो सकता है,गहन भावनाओं (सुख-दुख) आदि की अभिव्यक्ति भी हो सकती है ,उपदेश और तर्क भी हो सकता है, और शिकायत भी हो सकती हैं। यहां इन सभी स्थितियों या लिखने वाले और पाने वाले के अनुकूल भाषा का प्रयोग होता है क्योंकि ये पत्र केवल लिखने वाले और पाने वाले के बीच संवाद स्थापित करते हैं, किसी तीसरे के लिए नहीं होते। यद्यपि अनौपचारिक पत्र में काफी विविधता होती है और कोई खास नियम इन पर लागू नहीं होता। तथापि पत्र के ऊपरी ढांचे के संबंध में एक सामान्य पद्धति का चलन है, इसका आमतौर पर पालन किया जाता है। अनौपचारिक पत्र के लिए जरूरी तथ्य –
पत्र के अंत में लिखने वाला व्यक्ति अपने हस्ताक्षर करता है। हस्ताक्षर से से पहले स्वनिर्देश लिखता है। यह सब यह स्वनिर्देश –
अनौपचारिक या व्यक्तिगत पत्र का एक नमूना देखिए –नोट: औपचारिक और अनौपचारिक दोनों ही प्रकार के पत्रों में लिफाफे के ऊपर पाने वाले के पते के साथ बायीं तरफ नीचे अपना पता ‘प्रेषक’ शीर्षक के अंतर्गत अवश्य लिखें। इस से प्राप्तकर्ता के ना मिलने की स्थिति में डाकघर द्वारा पत्र आपके पास आ जाएगा। Related Post:-
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जल्द और सही जानकारी पाने के लिए हमें FaceBook पर Like करे कैसी लगी आपको ये निबंध लेखन , हिन्दी निबन्ध क्या है और कैसे लिखे , की यह पोस्ट हमें कमेन्ट के माध्यम से अवश्य बताये और आपको किस विषय की नोट्स चाहिए या किसी अन्य प्रकार की दिक्कत जिससे आपकी तैयारी पूर्ण न हो पा रही हो हमे बताये हम जल्द से जल्द वो आपके लिए लेकर आयेगे|
हिंदी पत्र लेखन कैसे लिखे?पत्र लेखन कैसे लिखते हैं? सरलता से पत्र लिखें – पत्र लेखन हमेशा सरल, सीधा और स्पष्ट भाषा में होना चाहिए । पत्र लेखन में कठिन शब्दों का प्रयोग नहीं होना चाहिए। पत्र लेखन में अपना उद्देश्य अच्छे से लिखें – पत्र में अपना उद्देश्य को अच्छे से समझाएं, उसमें किसी भी प्रकार की शंका या जिज्ञासा नहीं होनी चाहिए।
पत्र की शुरुआत कैसे करें?पत्र लिखने के लिए सबसे पहले इस बात का ध्यान देना चाहिए कि, जिसके लिए भी पत्र लिखा जा रहा है, उसके लिए सम्मान और शिष्टाचार और आदर पूर्ण शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए। पत्र में भावनाओं को ऐसे व्यक्त करना चाहिए, जिसके भाव देखकर इसका प्रभाव पाठक पर पड़ सके।
हिंदी में लेखन कैसे लिखा जाता है?हिंदी पत्र लेखन के लिए आवश्यक जानकारी
पत्र लिखते समय ध्यान रखें कि अपनी बात संक्षेप में समाप्त कर दें। जिस व्यक्ति के लिए पत्र लिखा जा रहा है, उस व्यक्ति के लिए उचित सम्बोधन का उपयोग किया जाना चाहिए जैसे – पूज्य, आदरणीय, माननीय, महोदय आदि। पत्र के अंत में लिखने वाले के अनुसार शब्दावली का उपयोग किया जाना चाहिए।
पत्र में सबसे पहले क्या लिखते हैं?(ख) पाने वाले का नाम व पता– प्रेषक के बाद पृष्ठ की बाईं ओर पत्र पाने वाले का नाम व पता लिखा जाता है। नाम की जगह कभी-कभी केवल पदनाम भी लिखते हैं। कभी-कभी नाम व पदनाम दोनों भी लिखा जाता है अर्थात् पाने वाले का पूरा विवरण इस प्रकार होना चाहिए- नाम, पदनाम, कार्यालय का नाम, स्थान, जिला शहर और पिन-कोड।
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