इसी सन्दर्भ में यहॉ भारतीय परमाणु नीति की चर्चा किया जा सकता है। स्वतन्त्रता के समय से ही भारत ‘पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण’ एवं ‘परमाणु ऊर्जा के शान्तिपूर्ण उपयोग’ में विश्वास करता है। इसके लिए भारत ने यू0एन0 महासभा में वर्ष 1961, 1978, 1988 में प्रस्ताव भी प्रस्तुत किये। साथ ही वह आंशिक परमाणु परीक्षण सन्धि (च्ज्ठज्) पर हस्ताक्षर करने वाला अग्रणी देश भी है। आन्तरिक एवं वाह्य सुरक्षा के दबावों के कारणों से भारत को 1974 एवं 1998 में परमाणु परीक्षण करना पड़ा। भारत अब भी अर्थात ‘नई परमाणु नीति’ में भी इन सिद्धान्तों में विश्वास करता है। परमाणु नि:शस्त्रीकरण के क्षेत्र में प्रथम बड़ा प्रयास 1963 में आंशिक परमाणु परीक्षण संधि के रूप में सामने आया। इसके प्रावधान निम्नलिखित हैं-
भारत ने NPT का विरोध करते हुए निम्न तर्क दिये-
इसी भेदभाव का विरोध करते हुए भारत ने 1974 में शान्तिपूर्ण परमाणु विस्फोट किया जो कि भारत के राष्ट्रीय हितों के अनुरूप है। दूसरी तरफ NPT 05.03.1970 को लागू हो गयी और भारत के विरोध के बावजूद 1995 में अनिश्चित काल के लिए लागू की गयी।
परीक्षण के साथ ही भारत ने स्वयं को परमाणु शक्ति सम्पन्न देश घोषित किया लेकिन महाशक्तियों ने इसे मान्यता नहीं दिया। इस पर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी का कहना था कि जो हमारे पास है उसके लिए किसी के प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। इसका यह अर्थ नहीं है कि भारत अब पूर्ण परमाणु नि:शस्त्रीकरण में विश्वास नहीं करता। अब भी भारतीय परमाणु नीति नि:शस्त्रीकरण पर जोर देती है। अनेक असमंजस को दूर करने हेतु नई परमाणु नीति 1999 घोषित की गयी-
न्यूयार्क सम्मेलन में प्रधानमंत्री मनमोहन का सुझाव-अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में परमाणु सन्तुलन या आतंक सन्तुलन या डिटरेंस (Detarence) एक महत्वपूर्ण संकल्पना है। मूलत: यह एक सैन्य रणनीति है जिसके द्वारा राज्य के आक्रामक व्यवहार पर प्रतिबंध लगाया जाता है। इसमें संभावित आक्रामक राष्ट्र आक्रमण के संभावित नुकसान को देखते हुए आक्रमण नहीं करता है। अर्थात जब दो राष्ट्र परमाणु संपंन हो जाते हैं तो वे एक दूसरे पर आक्रमण नहीं करते। प्रत्येक राष्ट्र सम्भावित खतरे को देखते हुए अपने को आक्रमण से रोक लेता है। यही स्थित परमाणु सन्तुलन या डिटरेंस की है।
क- प्रतिबल स्ट्रेटजी- इसका तात्पर्य ऐसी परमाणु क्षमता विकसित करना है, जिसके द्वारा शत्रु के अधिकांश सैनिक प्रतिष्ठानों व परमाणु हथियारों को प्रथम प्रहार द्वारा निश्चित रूप से नष्ट किया जा सके। दूसरी ओर शत्रु के जवाबी प्रहार से बचने के लिए द्वितीय प्रहारक क्षमता का होना अति आवश्यक है। ख- प्रतिनगर स्ट्रेटजी- सोवियत संघ का यह विश्वास था कि प्रतिकार की क्षमता को बेकार करने के लिए बड़े पैमाने पर प्रतिनगर स्ट्रेटजी का विकास करना आवश्यक है। इसके अन्तर्गत शत्रु के प्रमुख औद्योगिक नगरों व जनसंख्या वाले केन्द्रों को नष्ट करने हेतु परमाणु क्षमता प्राप्त करना है। रूस की दृष्टि में अमेरिका की जनता को इस नीति से बंधक बनाकर उसके द्वारा परमाणु हथियारों के प्रयोग पर रोक लगाने की यह उत्तम विधि है। अमेरिका सहित पश्चिमी देशों के अनुसार भारत एक उत्तरदायी राष्ट्र है जिसके पास उच्चतर रणनीति है जिसके निम्न कारण हैं- |