गांधी जी ने आखिर भगत सिंह को क्यों नहीं बचाया? - gaandhee jee ne aakhir bhagat sinh ko kyon nahin bachaaya?

 गांधी जी ने आखिर भगत सिंह को क्यों नहीं बचाया - Why didn't Gandhiji save Bhagat Singh?

गांधी जी ने आखिर भगत सिंह को क्यों नहीं बचाया? - gaandhee jee ne aakhir bhagat sinh ko kyon nahin bachaaya?


तारीख 23 मार्च 19वें 1:30 को लाहौर की सेंट्रल जेल में काफी गहमागहमी थी। जेल के सभी कैदी अपनी अपनी कोठरियों के अंदर हर रोज की तरह ही व्यस्थ थे लेकिन तभी अचानक जेल वार्डन की तरफ से ये जानकारी मिलती है कि आज भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी जानी है ये बात सुनते ही सारे कैदियों का चेहरा उतर सा गया। इसके बाद तीनों क्रान्तिकारियों को फांसी की तैयारी के लिए उनकी कोठरियों से बाहर निकाला गया। इसके बाद इन तीनों को फांसी के लिए ले जाया गया। भगत सिंह इन तीनों के बीच में खड़े थे। भगतसिंह ने पहले अपनी मां को एक वचन दिया था उसे अभी पूरा करना चाहते थे। भगतसिंह ने फांसी के तख्ते से जोर जोर से इंकलाब जिंदाबाद इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाया। जब भगतसिंह के नारों की आवाज जेल की कोठरियों तक गूंजती है तो जेल के बाकी कैदी भी भगत सिंह के साथ नारा लगाना शुरू कर देते हैं। इसके बाद इन तीनों क्रांतिकारियों के गले के अंदर फांसी का फंदा डाल लिया गया और जल्लाद ने एक एक करके तीनों क्रान्तिकारियों की रस्सी खींची ऐसे करके तीनों युवा क्रांतिकारियों ने अपने देश के लिए हंसते हंसते फांसी के फंदे को गले लगा लिया था। उस वक्त भारत की राजनीति में गांधी जी का काफी अहम रोल था। तब ये सवाल ये उठता है कि आखिर भगत सिंह को गांधी जी ने क्यों नहीं बचाया। दोस्तो गांधीजी और भगत सिंह दोनों का मकसद भारत को अंग्रेजों की बेड़ियों से आजाद कराना था लेकिन दोनों के रास्ते अलग अलग थे। भगत सिंह का मानना था कि गूंगी बहरी अंग्रेजी सरकार को हिंसक तरीके से ही जगाया जा सकता है और भगत सिंह ने आजादी के लिए हिंसक रास्ते को अपनाना सही समझा। भगत सिंह अंग्रेजों से बहुत ज्यादा घृणा करते थे साथ ही 13 अप्रैल 19 19 को हुई जलियांवाला बाग हत्याकांड की घटना ने भगत सिंह को अंदर से हिला कर रख दिया था। 19वें किस्म जब चोरी चोरी हत्याकाण्ड के बाद गांधी जी ने किसानों का साथ नहीं दिया तो भगत सिंह ने गांधीजी से अलग विचारधारा पर चलने का मन बना लिया लेकिन भगत सिंह की मेन कहानी की शुरुआत तब होती है जब साल 19 स्वर्ण में साइमन कमीशन भारत के दौरे पर आता है और लाहौर रेलवे स्टेशन पर लाला लाजपतराय के साथ कहीं लोग साइमन कमीशन का पुरजोर विरोध कर रहे थे जिसमें भगत सिंह भी शामिल थे। विरोध को ज्यादा बढ़ता देख अंग्रेजी सरकार डर गई पर अंग्रेजो ने ताबड़ तोड़ लाठीचार्ज कर दिया। इस लाठीचार्ज में घायल होने के कारण लाला लाजपत राय की मौत हो जाती है अंग्रेजों की इसी टुच्ची हरकत ने भगत सिंह को अंदर से हिला कर रख दिया था। इस लाठीचार्ज में जिम्मेदार था पुलिस अधिकारी इस कोच अब भगत सिंह और उनके क्रांतिकारियों ने ठान लिया था किस पुलिस अधिकारी को मारकर ही चैन की सांस लेना है लेकिन अंतिम समय में चूक होने के कारण इस कोट की जगह 21 साल का पुलिस अफसर जीपी सांडर्स मारा गया। इसके बाद चारों तरफ क्रांतिकारियों को पकड़ने की धरपकड़ अंग्रेजों ने तेज कर दी लेकिन भगत सिंह यहां से भी अंग्रेजों को चकमा देकर भाग गए। इसके बाद भी अंग्रेजों के जुल्म कारी नीतियों से भगत सिंह परेशान थे इसके लिए अंग्रेजी सरकार को जगाने के लिए भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने साथ मिलकर सेंट्रल असेम्बली में बम फेंक दिया और वहां पर जोर से इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाकर अपने आपको सरेंडर कर दिया। उस वक्त भगत सिंह के पास अपनी रिवॉल्वर भी मौजूद थी। कुछ समय बाद ये सिद्ध हुआ कि भगत सिंह ने इसी रिवॉल्वर का इस्तेमाल पुलिस अधिकारी सांडर्स को मारने में किया था। इसके बाद पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या के मामले में भगत सिंह को अभियुक्त बनाकर फांसी की सजा सुना दी गई। तारीख 5 मार्च 19 से 31 वायसराय और गांधीजी जी के बीच एक समझौता होता है गांधीजी और इरविन के समझौते में अहिंसक तरीके से पकड़े गए सभी कैदियों को छोड़ने पर सहमति बनी लेकिन पुलिस अधिकारी की हत्या के मामले में पकड़े गए भगत सिंह को लेकर कोई भी सहमति नहीं बनी। इसके बाद यहां से विवाद शुरू होता है लोगों ने सवाल उठाने शुरू किए केंद्र भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी को फांसी दी जानी है और गांधीजी ब्रिटिश सरकार से समझौता कर रहे हैं। इसके बाद कही जगह सार्वजनिक सभाओं में गांधीजी का विरोध होने लगा और फिर 23 मार्च 19 से 31 को भगत सिंह और दोनों क्रांतिकारियों को फांसी दे दी गई। इसके बाद लोग आक्रोश से भरने लगे लेकिन लोगों का यह गुस्सा केवल अंग्रेजी सरकार के खिलाफ नहीं था बल्कि गांधीजी के प्रति भी लोगों में भयंकर गुस्सा था। क्योंकि गांधीजी ने इस बात का आग्रह उस समझौते में नहीं किया कि भगत सिंह की फांसी माफ नहीं की गई तो ये समझौता नहीं होगा। इसके बाद 26 मार्च 19 31 को कराची में कॉंग्रेस का एक अधिवेशन हो रहा था। 25 मार्च को जब गान्धी जी वहां पेरिस अधिवेशन में हिस्सा लेने के लिए पहुंचे तो लोगों ने उनके खिलाफ जमकर विरोध प्रदर्शन किया और उनका स्वागत काले कपड़े दिखाकर किया साथ ही गांधी मुर्दाबाद और गांधी गो बैक के नारे लगाए गए। कांग्रेस में सुभाष चंद्र बोस और कई लोगों ने गांधीजी और इरविन के समझौते का विरोध किया। वे मानते थे कि ब्रिटिश सरकार अगर भगत सिंह की फांसी को मान। नहीं कर सकती थी वह समझौता करने की जरूरत नहीं थी। हालांकि कांग्रेस वर्किंग कमेटी उस वक्त इस मामले में पूरी तरह गांधीजी के साथ थी। अब गांधीजी ने इस मुद्दे पर क्या का गांधीजी ने इस मुद्दे पर कहा कि भगत सिंह की बहादुरी के लिए हमारे मन में सम्मान उभरता है लेकिन मुझे ऐसा तरीका चाहिए जिसमें खुद को न्योछावर करते हुए आप दूसरों को नुकसान नहीं पहुंचाए। वह कहते हैं कि सरकार गंभीर रूप से उकसा रही है लेकिन समझौते की शर्तों में फांसी रोकना शामिल नहीं था इसलिए इससे पीछे हटना ठीक नहीं है। गनी ने कहा कि किसी खूनी चोरियां डाकू को भी सजा देना मेरे धर्म के खिलाफ है। मैं भगत सिंह को नहीं बचाना चाहता था। ऐसा शक करने की तो कोई वजह ही नहीं हो सकती। गांधीजी अपनी किताब स्वराज मैं लिखते हैं मौत की सजा नहीं दी जानी चाहिए। वह कहते हैं कि भगत सिंह और उनके साथियों के साथ बात करने का मौका मिला होता तो मैं उनसे कहता कि उनका चुना हुआ रास्ता गलत और असफल है। ईश्वर को साक्षी अगर मैं सत्य जाहिर करना चाहता हूं कि हिंसा के मार्ग पर चलकर स्वराज्य नहीं मिलता सिर्फ मुश्किलें ही मिल सकती हैं। मैं जितना तरीकों से वायसराय को समझा सकता था मैंने कोशिश की। मेरे पास समझने की जितनी शक्ति थी इस्तेमाल की जिसमें मैंने अपनी पूरी आत्मा उड़ेल दी। भगत सिंह अहिंसा के पुजारी नहीं थे लेकिन हिंसा को धर्म नहीं मानते थे। इन वीरों ने मौत के डर को भी जीत लिया था। उनकी वीरता को नमन है लेकिन उनके कृत्य का अनुसरण नहीं किया जा सकता है। उनके कृत्य का देश को फायदा हुआ ऐसा मैं नहीं कह सकता। गांधीजी ने 23 तारीख दूसरे वायसराय को एक निजी पत्र लिखा था। भगत सिंह को बचाने के लिए वायसराय को लिखी उस अनौपचारिक चिट्ठी में गांधीजी ने उन्हें जनमत का वास्ता देते हुए लिखा था जनमत चाहे सही हो या गलत। सजा में रियायत चाहता है। जब कोई सिद्धांत दांव पर न हो तो लोकमत का मान रखना हमारा कर्तव्य हो जाता है। मौत की सजा पर अमल हो जाने के बाद तो वह कदम वापस नहीं लिया जा सकता है। यदि आप यह सोचते हैं कि फैसले में थोड़ी सी भी गुंजाइश है तो मैं आपसे यह प्रार्थना करूंगा कि सजा को जिसे फिर वापस नहीं लिया जा सकता है लेकिन इसे थोड़ी स्थगित करने पर विचार करें दया कभी निष्फल नहीं जाती। गांधीजी सजा खत्म करने की जगह सजा टालने पर जोर क्यों दे रहे थे। लोग आलोचना करते हुए कहते हैं कि गांधीजी ज्यादा से ज्यादा सजा को कुछ वक्त के लिए रोकने के लिए अपील कर रहे थे जबकि उन्हें सजा खत्म करवाए जाने या फिर उसे कम करवाने की कोशिश करनी चाहिए थी। मगर सवाल यह है कि क्या ये मुमकिन था। हम गुलाम देश में जी रहे थे। भगतसिंह पर पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या का इल्जाम था। अंग्रेज चाहते थे कि इन तीनों को मिली सजा बाकी युवाओं को डराए उन्हें संदेश दें कि अगर उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाया तो उन्हें बख्सा नहीं जाएगा और एक और चीज थी जो भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव के खिलाफ जारी थी। माफी मांगने के खिलाफ थे वे अपने लिए किसी तरह की रियायत नहीं चाहते थे। भगत सिंह खुद अपनी सजा माफी की अर्जी देने के लिए तैयार नहीं थे जब उनके पिता ने इसके लिए अर्जी लगाई तो उन्होंने बेहद कड़े शब्दों में पत्र लिखकर इसका जवाब दिया था। गांधी जी का मानना था कि खून करके शोहरत हासिल करने की प्रथा अगर शुरू हो गई तो लोग एक दूसरे के कत्ल में न्याय तलाशने लगेंगे। लेकिन भगत सिंह की फांसी की सजा माफ करने के लिए गांधी जी ने वायसराय पर पूरी तरह से दबाव बनाया हो। इस तरह के सबूत शोधकर्ताओं को नहीं मिले हैं। फांसी के दिन तड़के सुबह गांधीजी ने जो भावपूर्ण चिट्ठी वायसराय को लिखी गई थी वो दबाव बनाने वाली थी लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। इस विषय पर मौजूद रिसर्च के आधार पर यह कहा जा सकता है कि फांसी के दिन से पहले गांधी और वायसराय के बीच जो चर्चा हुई उसमें भगत सिंह की फांसी के मुद्दे को गांधीजी ने गैरजरूरी माना। इसलिए गांधीजी द्वारा वायसराय को अपनी पूरी शक्ति लगाकर समझाने का दावा सही नहीं जान पड़ता है। भगतसिंह की बहादुरी को मानते हुए उन्होंने उनके मार्ग का स्पष्ट शब्दों में विरोध किया और गैर कानूनी बताया। गांधीजी उनकी सजा माफ नहीं करा सके। इसे लेकर गांधी जी से भगत सिंह की नाराजगी से जुड़े साक्ष्य नहीं मिले हैं लेकिन भगत सिंह के स्वभाव को देखते हुए लगता नहीं है कि उन्हें ये बात कचोटती रही होगी कि उनकी सजा को माफ नहीं कराया गया। कुछ लोगों का इस बात में भी भ्रम बना रहता है कि भगत सिंह को असेम्बली सभा में बम फेंकने के जाम में फंसी हुई थी लेकिन हकीकत में भगत सिंह को असेम्बली सभा में बम फेंकने के लिए नहीं बल्कि पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या के मामले में फांसी की सजा सुनाई गई थी। हालांकि दोस्तो भगत सिंह की फांसी को रोका तो नहीं जा सका लेकिन भगत सिंह मात्र 23 साल की उम्र में ही इस देश के लिए फांसी के फंदे को हंसते हंसते गले लगा लिया था। देश के ऐसे वीर सपूतों को नमन है जयहिंद वंदेमातरम।

महात्मा गांधी ने भगत सिंह को क्यों नहीं बचाया?

महात्मा गांधी ने कहा- चाहे वो कोई भी हो, उसे सजा देना मेरे अहिंसा धर्म के खिलाफ है, तो मैं भगत सिंह को बचाना नहीं चाहता था, ऐसा शक करने की कोई वजह नहीं हो सकती है. महात्मा गांधी ने कहा- 'मैंने फांसी को रोकने की हर मुमकिन कोशिश की, कई मुलाकातें कीं, 23 मार्च को चिट्ठी भी लिखी, लेकिन मेरी हर कोशिश बेकार हुई.

क्या गांधी जी ne भगत Singh को बचा सकते थे?

सोशल मीडिया पर दावा किया जाता है कि महात्मा गांधी ने भगत सिंह की फांसी को रोकने की कोशिश नहीं की. ये सच नहीं है. गांधी ने भगत सिंह की फांसी की तारीख के दिन तक उन्हें बचाने की कोशिश की थी. सोशल मीडिया पर महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के बारे में ऐसी कई बातें फैलाई जा रही हैं, जिनका तथ्य से कोई लेना देना नहीं है.

महात्मा गांधी ने भगत सिंह के बारे में क्या कहा?

गांधी जी के मुताबिक, 'भगत सिंह और उनके साथियों के साथ बात करने का मौका मिला होता तो मैं उनसे कहता कि उनका चुना हुआ रास्ता गलत और असफल है। ईश्वर को साक्षी रखकर मैं ये सत्य जाहिर करना चाहता हूं कि हिंसा के मार्ग पर चलकर स्वराज नहीं मिल सकता। सिर्फ मुश्किलें मिल सकती हैं। '

क्या महात्मा गांधी ने भगत सिंह को मारा था?

भगत सिंह की फांसी को लेकर एक दावा हमेशा से किया जाता रहा है कि महात्मा गांधी ने उनकी फांसी रोकने के लिए कोई प्रयास नहीं किया. हालांकि, ये दावा सच नहीं है, ऐसे कई दस्तावेज सार्वजनिक हो चुके हैं जिनसे पुष्टि होती है कि महात्मा गांधी ने ब्रिटिश हुकूमत से एक नहीं कई बार भगत सिंह की फांसी रुकवाने का आग्रह किया था.