राजस्थान का सामान्य परिचय राजस्थान की सीमा राजस्थान के जिले व संभाग राजस्थान के प्रतीक चिन्ह राजस्थान की जलवायु राजस्थान के भौतिक विभाग राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों के भौगोलिक नाम राजस्थान की झीले राजस्थान की नदियां(बंगाल की खाड़ी तंत्र की नदियां) राजस्थान की नदियां(अरब सागर तंत्र की नदियां) राजस्थान की नदियां(आंतरिक प्रवाह तंत्र की नदियां) राजस्थान की सिंचाई परियोजनाएँ प्राचीन सभ्यताऐं राजस्थान का इतिहास जानने के स्त्रोत गुर्जर प्रतिहार वंश राजपूत युग आमेर का कछवाह वंश सांभर का चौहान वंश मारवाड का राठौड वंश बीकानेर का राठौड़ वंश 1857 की क्रान्ति राजस्थान में किसान तथा आदिवासी आन्दोलन राजस्थान में प्रजामण्डल राजस्थान का एकीकरण राजस्थान जनगणना व साक्षरता - 2011 राजस्थान में वन वन्य जीव अभ्यारण्य राजस्थान में कृषि पशु सम्पदा खनिज संसाधन राजस्थान में ऊर्जा विकास राजस्थान में औद्योगिक विकास राजस्थान में वित्तीय संगठन राजस्थान में पर्यटन विकास राजस्थान में लोक देवता राजस्थान में लोक देवियां राजस्थान में सम्प्रदाय राजस्थान में त्यौहार राजस्थान के मेले राजस्थान में प्रचलित रीति -रिवाज & प्रथाएं आभूषण और वेशभूषा राजस्थान की जनजातियां राजस्थान के दुर्ग भारत की प्रमुख संगीत गायन शैलियां राजस्थान में नृत्य राजस्थान में लोकनाट्य वाद्य यंत्र प्रमुख वादक राजस्थान की चित्र शैलियां लोक कलाएं राजस्थान के लोकगीत राजस्थान में हस्तकला छतरियां , महल &हवेलियां राजस्थान के प्रमुख सांस्कृतिक कार्यक्रम स्थल राजस्थानी भाषा एवं बोलियां राजस्थान में परिवहन राजस्थान की प्रमुख योजनाएं राजस्थान की मिट्टियाँ शिक्षा राजस्थान मंत्रिमंडल और मंत्रियों के विभाग राजस्थान में पंचायती राज व्यवस्था लोकसभा चुनाव-2019 राजस्थान राज्य से राज्यसभा सदस्य राजस्थान लोक सेवा आयोग राजस्थान के महत्वपूर्ण पदाधिकारी आर्थिक समीक्षा 2019-20 राजस्थान के प्रमुख व्यक्तित्व राजस्थान इतिहास की प्रसिद्ध महिला व्यक्तित्व ब्रिटिश शासन के दौरान प्रेस और पत्रकारिता मुख्यमंत्री राज्य मंत्रिपरिषद् राज्यपाल राज्य विधान मंडल उच्च न्यायालय राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग राजस्थान राज्य महिला आयोग राजस्व मण्डल राजस्थान राजस्थान में लोकायुक्त राजस्थानी शब्दावली राजस्थान बजट 2022-23 स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गठित संगठन महाजनपद काल में राजस्थान एक जिला एक उत्पाद में चिन्हित प्रोडक्ट्स की सूची Show
राजस्थान जी.के.राजस्थान का सामान्य परिचय राजस्थान की सीमा राजस्थान के जिले व संभाग राजस्थान के प्रतीक चिन्ह राजस्थान की जलवायु राजस्थान के भौतिक विभाग राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों के भौगोलिक नाम राजस्थान की झीले राजस्थान की नदियां(बंगाल की खाड़ी तंत्र की नदियां) राजस्थान की नदियां(अरब सागर तंत्र की नदियां) राजस्थान की नदियां(आंतरिक प्रवाह तंत्र की नदियां) राजस्थान की सिंचाई परियोजनाएँ प्राचीन सभ्यताऐं राजस्थान का इतिहास जानने के स्त्रोत गुर्जर प्रतिहार वंश राजपूत युग आमेर का कछवाह वंश सांभर का चौहान वंश मारवाड का राठौड वंश बीकानेर का राठौड़ वंश 1857 की क्रान्ति राजस्थान में किसान तथा आदिवासी आन्दोलन राजस्थान में प्रजामण्डल राजस्थान का एकीकरण राजस्थान जनगणना व साक्षरता - 2011 राजस्थान में वन वन्य जीव अभ्यारण्य राजस्थान में कृषि पशु सम्पदा खनिज संसाधन राजस्थान में ऊर्जा विकास राजस्थान में औद्योगिक विकास राजस्थान में वित्तीय संगठन राजस्थान में पर्यटन विकास राजस्थान में लोक देवता राजस्थान में लोक देवियां राजस्थान में सम्प्रदाय राजस्थान में त्यौहार राजस्थान के मेले राजस्थान में प्रचलित रीति -रिवाज & प्रथाएं आभूषण और वेशभूषा राजस्थान की जनजातियां राजस्थान के दुर्ग भारत की प्रमुख संगीत गायन शैलियां राजस्थान में नृत्य राजस्थान में लोकनाट्य वाद्य यंत्र प्रमुख वादक राजस्थान की चित्र शैलियां लोक कलाएं राजस्थान के लोकगीत राजस्थान में हस्तकला छतरियां , महल &हवेलियां राजस्थान के प्रमुख सांस्कृतिक कार्यक्रम स्थल राजस्थानी भाषा एवं बोलियां राजस्थान में परिवहन राजस्थान की प्रमुख योजनाएं राजस्थान की मिट्टियाँ शिक्षा राजस्थान मंत्रिमंडल और मंत्रियों के विभाग राजस्थान में पंचायती राज व्यवस्था लोकसभा चुनाव-2019 राजस्थान राज्य से राज्यसभा सदस्य राजस्थान लोक सेवा आयोग राजस्थान के महत्वपूर्ण पदाधिकारी आर्थिक समीक्षा 2019-20 राजस्थान के प्रमुख व्यक्तित्व राजस्थान इतिहास की प्रसिद्ध महिला व्यक्तित्व ब्रिटिश शासन के दौरान प्रेस और पत्रकारिता मुख्यमंत्री राज्य मंत्रिपरिषद् राज्यपाल राज्य विधान मंडल उच्च न्यायालय राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग राजस्थान राज्य महिला आयोग राजस्व मण्डल राजस्थान राजस्थान में लोकायुक्त राजस्थानी शब्दावली राजस्थान बजट 2022-23 स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गठित संगठन महाजनपद काल में राजस्थान एक जिला एक उत्पाद में चिन्हित प्रोडक्ट्स की सूचीराजस्थान की चित्र शैलियां राजस्थान में प्राचीनतम चित्रण के अवशेष कोटा के आसपास चंबल नदी के किनारे की चट्टानों पर मुकन्दरा एवं दर्रा की पहाड़ीयों, आलनियां नदी के किनार की चट्टानों आदि स्थानों पर मिले हैं। राजस्थान में उपलब्ध सर्वाधिक प्राचिनतम चित्रित ग्रंथ जैसलमेर भंडार में 1060 ई. के ‘ओध निर्युक्ति वृत्ति’ एवं ‘दस वैकालिका सूत्र चूर्णी’ मिले हैं। राजस्थान की चित्रकला शैली पर गुजरात तथा कश्मीर की शैलियों का प्रभाव रहा है। राजस्थानी चित्र शैली विशुद्ध रूप से भारतीय है ऐसा मत विलियम लारेन्स ने प्रकट किया। राजस्थानी चित्रकला के विषय
राजस्थानी चित्रकला शैलियों की मूल शैली मेवाड़ शैली है। सर्वप्रथम आनन्द कुमार स्वामी ने सन् 1916 ई. में अपनी पुस्तक "राजपुताना पेन्टिग्स" में राजस्थानी चित्रकला का वैज्ञानिक वर्गीकरण प्रस्तुत किया।भौगौलिक आधार पर राजस्थानी चित्रकला शैली को चार भागों में बांटा गया है। जिन्हें स्कूलस कहा जाता है। 1.मेवाड़ स्कूल:- उदयपुर शैली, नाथद्वारा शैली, चावण्ड शैली, देवगढ़ शैली, शाहपुरा, शैली। 2.मारवाड़ स्कूल:- जोधपुर शैली, बीकानेर शैली जैसलमेर शैली, नागौर शैली, किशनगढ़ शैली। 3.ढुढाड़ स्कूल:- जयपुर शैली, आमेर शैली, उनियारा शैली, शेखावटी शैली, अलवर शैली। 4.हाडौती स्कूल:- कोटा शैली, बुंदी शैली, झालावाड़ शैली। शैलियों की पृष्ठभूमि का रंगहरा - जयपुर की अलवर शैली गुलाबी/श्वेत - किशनगढ शैली नीला - कोटा शैली सुनहरी - बूंदी शैली पीला - जोधपुर व बीकानेर शैली लाल - मेवाड़ शैली पशु तथा पक्षीहाथी व चकोर - मेवाड़ शैली चील/कौआ व ऊंठ - जोधपुर तथा बीकानेर शैली हिरण/शेर व बत्तख - कोटा तथा बूंदी शैली अश्व व मोर:- जयपुर व अलवर शैली गाय व मोर - नाथद्वारा शैली वृक्षपीपल/बरगद - जयपुर तथा अलवर शैली खजूर - कोटा तथा बूंदी शैली आम - जोधपुर तथा बीकानेर शैली कदम्ब - मेवाड़ शैली केला - नाथद्वारा शैली नयन/आंखेखंजर समान - बीकानेर शैली मृग समान - मेवाड शैली आम्र पर्ण - कोटा व बूंदी शैली मीन कृत:- जयपुर व अलवर शैली कमान जैसी - किशनगढ़ शैली बादाम जैसी - जोधपुर शैली 1. मेवाड़ स्कूलउदयपुर शैलीराजस्थानी चित्रकला की मूल शैली है। शैली का प्रारम्भिक विकास कुम्भा के काल में हुआ। शैली का स्वर्णकाल जगत सिंह प्रथम का काल रहा। महाराणा जगत सिंह के समय उदयपुर के राजमहलों में "चितेरों री ओवरी" नामक कला विद्यालय खोला गया जिसे "तस्वीरां रो कारखानों"भी कहा जाता है। विष्णु शर्मा द्वारा रचित पंचतन्त्र नामक ग्रन्थ में पशु-पक्षियों की कहानियों के माध्यम से मानव जीवन के सिद्वान्तों को समझाया गया है। पंचतन्त्र का फारसी अनुवाद "कलिला दमना" है, जो एक रूपात्मक कहानी है। इसमें राजा(शेर) तथा उसके दो मंत्रियों(गीदड़) कलिला व दमना का वर्णन किया गया है। उदयपुर शैली में कलिला और दमना नाम से चित्र चित्रित किए गए थे। सन 1260-61 ई. में मेवाड़ के महाराणा तेजसिंह के काल में इस शैली का प्रारम्भिक चित्र श्रावक प्रतिकर्मण सूत्र चूर्णि आहड़ में चित्रित किया गया। जिसका चित्रकार कमलचंद था। सन् 1423 ई. में महाराणा मोकल के समय सुपासनह चरियम नामक चित्र चित्रकार हिरानंद के द्वारा चित्रित किया गया। प्रमुख चित्रकार - मनोहर लाल, साहिबदीन (महाराणा जगत सिंह -प्रथम के दरबारी चित्रकार) कृपा राम, उमरा आदि। चित्रित ग्रन्थ - 1. आर्श रामायण - मनोहर व साहिबदीन द्वारा। 2. गीत गोविन्द - साहबदीन द्वारा। चित्रित विषय - मेवाड़ चित्रकला शैली में धार्मिक विषयों का चित्रण किया गया। इस शैली में रामायण, महाभारत, रसिक प्रिया, गीत गोविन्द इत्यादि ग्रन्थों पर चित्र बनाए गए। मेवाड़ चित्रकला शैली पर गुर्जर तथा जैन शैली का प्रभाव रहा है। नाथ द्वारा शैलीनाथ द्वारा मेवाड़ रियासत के अन्तर्गत आता था, जो वर्तमान में राजसमंद जिले में स्थित है। यहां स्थित श्री नाथ जी मंदिर का निर्माण मेवाड़ के महाराजा राजसिंह न 1671-72 में करवाया था। यह मंदिर पिछवाई(मंदिर में मुर्ति के पिछे का पर्दा) कला के लिए प्रसिद्ध है, जो वास्तव में नाथद्वारा शैली का रूप है। इस चित्रकला शैली का विकास मथुरा के कलाकारों द्वारा किया गया। महाराजा राजसिंह का काल इस शैली का स्वर्ण काल कहलाता है। चित्रित विषय - श्री कृष्ण की बाल लीलाऐं, गवालों का चित्रण, यमुना स्नान, अन्नकूट महोत्सव आदि। चित्रकार - खेतदान, नारायण, घासीराम, चतुर्भुज, उदयराम, खूबीराम आदि। कमला व इलायची नाथद्वारा शैली की महिला चित्रकार हैं। नाथद्वारा में भित्ती चित्रण में आला गीला फ्रेस्को शैली का उपयोग किया गया है। देवगढ़ शैलीइस शैली का प्रारम्भिक विकास महाराजा द्वाारिकादास चुडावत के समय हुआ। इस शैली को प्रसिद्धी दिलाने का श्रेय डाॅ. श्रीधर अंधारे को है। चित्रित विषय - शिकार के दृश्य, अन्तःपुर, राजसी ठाठ-बाठ। चित्रकार - बगला, कंवला, चीखा/चोखा, बैजनाथ आदि। शाहपुरा शैलीयह शैली भीलवाडा जिले के शाहपुरा कस्बे में विकसित हुई। शाहपुरा की प्रसिद्ध कला फड़ चित्रांकन में इस चित्रकला शैली का प्रयोग किया जाता है। फड़ चित्रांकन में यहां का जोशी परिवार लगा हुआ है। श्री लाल जोशी, दुर्गादास जोशी, पार्वती जोशी (पहली महिला फड़ चित्रकार) आदि चित्र - हाथी व घोड़ों का संघर्ष (चित्रकास्ताजू) चावण्ड शैलीइस शैली का प्रारम्भिक विकास महाराणा प्रताप के काल में हुआ। स्वर्णकाल -अमरसिंह प्रथम का काल माना जाता है। चित्रकार - नसीरदीन(नसीरूद्दीन) इस शैली का चित्रकार हैं नसीरदीन न "रागमाला" नामक चित्र बनाया। 2.मारवाड़ स्कूलजोधपुर शैलीइस शैली पर मुगल शैली का प्रभाव हैं। इस शैली का प्रारम्भिक विकास राव मालदेव (52 युद्धों का विजेता) के काल में हुआ। स्वर्णकाल, जसवंत सिंह प्रथम का काल रहा। मुगल शैली का प्रभाव मोटा राजा उदयसिंह के समय पड़ा। अन्य संरक्षक - मानसिंह, शूरसिंह, अभय सिंह थे। चित्रित विषय - राजसी ठाठ-बाट, दरबारी दृक्श्य आदि। चित्रकार - किशनदास भाटी, देवी सिंह भाटी, अमर सिंह भाटी, वीर सिंह भाटी, देवदास भाटी, शिवदास भाटी, रतन भाटी, नारायण भाटी, गोपालदास भाटी, प्रमुख थे। प्रमुख चित्र - इस चित्रकला शैली में मुख्यतः लोकगाथाओं का चित्रण किया गया। जैसे:-भूम लदे, निहालदे, ढोला-मारू, उजली-जेठवा, कल्याण रागनी, नाथ चरित्र(मानसिंह नाथ संप्रदाय(भगवान शंकर) से प्रभावित था), सूरसागर, रागमाला, पंचतंत्र, कामसूत्र। किशनगढ़ शैलीकिशनगढ़ शैली, किशनगढ के शासक सांवत सिंह राठौड़ के समय फली-फूली। इस शैली का स्वर्णकाल 1747 से 1764 ई. का समय माना जाता है। महाराजा सांवत सिंह के समय इस शैली का सर्वश्रेष्ठ चित्र बणी-ठणी को सांवत सिंह के चित्रकार "मोरध्वज निहाल चन्द" द्वारा चित्रित किया गया। इस शैली के चित्र "बणी-ठणी" पर सरकार द्वारा 1973 ई. में 20 पैसें का डाक टिकट जारी किया जा चुका। एरिक डिक्सन ने "बणी-ठणी" चित्र की "मोनालिसा" कहा है। इस शैली को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर दिलाने का श्रेय एरिक डिक्सन तथा फैयाज अली को दिया जाता है। किशनगढ़ शैली, का प्रमुख विषय नारी सौंदर्य रहा है। कमल से भरे सरोवर, नौका विहार, भ्रमण चित्रण आदि इस शैली की विशेषता है। यह शैली कांगड़ा शैली, से प्रभावित रही है। वेसरि किशनगढ़ शैली में प्रयुक्त नाक का प्रमुख आभूषण। अन्य चित्र -चांदनी रात की संगीत गोष्ठी चित्रकार अमरचंद द्वारा सावंत सिंह के समय बनाया गया। अन्य चित्रकार - छोटू सिंह व बदन सिंह अन्य प्रमुख चित्रकार है। किशनगढ के शासक सांवत सिंह अन्तिम समय में राजपाट ढोड़कर-वृदांवन चले गए और कृष्ण भक्ति में लीन हो गए। उन्होने अपना नाम "नागरीदास" रखा तथा "नागर समुच्चय" नाम से काव्यरचना करने लगे। बीकानेर शैलीयह शैली मुगल शैली, से प्रभावित रही। इस शैली का प्रारम्भिक विकास रायसिंह राठौड़ के समय हुआ। इस शैली का स्वर्णकाल महाराजा अनूपसिंह का काल माना जाता है। मुगल शैली का प्रभाव राजा कल्याणमल के समय पड़ा। इस शैली का प्रयोग आला गिल्ला कारीगरी(नम दीवार पर किया गया चूने के माध्यम से भीत्ती चित्रण आला गिला कारीगरी कहलाता है, इस कला को मुग़ल सम्राट अकबर के काल में इटली से लाया गया),काष्ट चित्रांकन, मथैरण तथा उस्ता कला में किया गया। इस शैली के अन्तर्गत महाराजा राय सिंह के समय प्रसिद्ध चित्रकार हामित रूकनुद्दीन थे। महाराजा गज के समय शाह मोहम्मद (लाहौर से लाए गए) महाराजा अनूपसिंह के प्रमुख दरबारी चित्रकार हसन, अल्लीरज्जा और रामलाल थे। अन्य चित्रकार - मुन्नालाल व मस्तलाल अन्य प्रमुख चित्रकार थे। इस शैली में चित्रण का विषय दरबारी दृश्य, बादल दृश्य थे। इस शैली में पुरूष आकृति दाड़ी मूंह युक्त तथा उग्रस्वभाव वाली दर्शाई गई। इस शैली, का सबसे प्राचीन चित्र "भागवत पुराण" महाराजा रायसिंह के समय चित्रित किया गया। चित्रकार चित्र के नीचे अपने हस्ताक्षर व तिथी अंकित करते थे। जैसलमेर शैलीराज्य की एक मात्र शैली है जिस पर किसी अन्य शैली का प्रभाव नहीं है। इस शैली में रंगों की अधिकता देखने को मिलती है। इस शैली का प्रसिद्ध चित्र "मूमल" है। "मूमल" को 'मांड की मोनालिसा' कहा जाता है। इस शैली का प्रारम्भिक विकास हरराय भाटी के काल में हुआ। इस शैली का स्वर्णकाल अखैराज भाटी का काल माना जाता है। नागौर शैलीनागौर किले की दीवारों पर इस शैली के चित्र बने हुए हैं। इस शैली में धार्मिक चित्रण किया गया है। नागौर शैली में हल्के /बुझे हुए रंगों का प्रयोग किया गया है। अजमेर शैलीसभी रंगों का संयोजन गरीबों के घरों में भी इस शैली के चीत्र बने। 3.ढूढाड़ स्कूलअलवर शैलीअलवर शैली पर ईरानी, मुगल तथा जयपुर शैली का प्रभाव है। महाराजा विनय सिंह का काल इस शैली का स्वर्णकाल माना जाता है। महाराजा शिवदान के समय इस शैली में वैश्या या गणिकाओं पर आधारित चित्र बनाए गए, अर्थात कामशास्त्र पर आधारित चित्र इस शैली की निजी विशेषता है। इस शैली में हाथी दांत की प्लेटों पर चित्रकारी का कार्य चित्रकार मूलचंद के द्वारा किया गया। बसलो चित्रण अर्थात् बार्डर पर सुक्ष्म चित्रण तथा योगासन इस शैली के प्रमुख विषय है। अलवर शैली के चित्रों की पृष्ठ भूमि में शुभ्र आकाश का तथा सफेद बादलों का दृश्य दिखाया गया है। प्रमुख चित्रकार - मुस्लिम संत शेख सादी द्वारा रचित ग्रन्थ गुलिस्ताँ पर आधारित चित्र गुलाम अली तथा बलदेव नामक चित्रकारों द्वारा तैयार किए गए। डालचंद, सहदेव व बुद्धाराम अन्य प्रमुख चित्रकार है। आमेर शैलीइस शैली मै प्राकृतिक रंगों की प्रधानता है। इस शैली का प्रारम्भिक विकास मानसिंह- प्रथम के काल में हुआ। मिर्जा राजा जयसिंह का काल आमेर चित्रकला शैली का स्वर्णकाल माना जाता है। आमेर चित्रकला शैली का प्रयोग आमेर के महलों में भिति चित्रण के रूप में किया गया है। इस शैली पर मुगल शैली का सर्वाधिक प्रभाव रहा। प्रमुख चित्र - 1. बिहारी सतसई (जगन्नाथ -चित्रकार) 2.आदि पुराण (पुश्दत्त -चित्रकार ) जयपुर शैलीजयपुर शैली का प्रारम्भिक विकास सवाई जयसिंह के समय हुआ। जयपुर शैली का स्वर्णकाल सवाई प्रताप सिंह का काल माना जाता है। जयपुर के शासक ईश्वरी सिंह के समय इस शैली में राजा महाराजाओं के बडे़-बडे़ आदमकद चित्र अर्थात पोट्रेट चित्र दरबारी चित्रकार साहिब राम के द्वारा तैयार किए गए। प्रमुख चित्र - 1. गोवर्धन पूजा (गोपाल दास -चित्रकार) 2. रासमण्डल प्रमुख चित्रकार - गोविन्दराम, लक्ष्मण दास, सागिगराम, गोपाल दास प्रमुख चित्रकार थे। चित्रण के विषय - युद्ध प्रसंग,जानवरों की लड़ाई, कामसूत्र व पौराणिक कथाऐं। उनियारा शैलीइस शैली में जयपुर व बूंदी शैली का मिश्रण है। चित्रकार - मीर बक्ष, बख्ता, काशीराम, धीमा, उनियारा शैली के प्रमुख चित्रकार है। इस शैली का प्रमुख विषय रसिक प्रिया है। रसिकप्रिया रीति काल के प्रसिद्ध कवि केशव द्वारा लिखा गया ग्रंथ है शेखावाटी शैलीइस शैली का विकास सार्दुल सिंह शेखावत के काल में हुआ। इस शैली का प्रयोग हवेलियों में भित्ति चित्रण के रूप में हुआ है। यह शैली हवेलियों में भिति चित्रण की दृष्टि से समृद्ध शैली है। इस शैली में भित्ति चित्रण करने वाले चित्रकार चेजारे कहलाते है। शेखावटी शैली के भित्ति चित्रकार अपने चित्रों पर अपना नाम तथा तिथि अंकित करते थे। बलखाती बालों की लट का एक ओर अंकन शैखावटी शैली का प्रमुख चित्र है। लोक जीवन की झांकी इस शैली का प्रमुख चित्रण विषय रहा। प्रमुख चेजोर - बालूराम, तनसुख, जयदेव। 4.हाडौती स्कूलबूंदी शैलीबूंदी शैली का स्वर्णकाल एवं सुर्जन सिंह हाड़ा का काल माना जाता है। बूंदी शैली को राजस्थानी विचारधारा की शैली या प्राचीन विचारधारा की शैली कहा जाता है। बूंदी शैली, किशनगढ़ शैली के बाद राज्य की सर्वश्रेष्ठ शैली है। बूंदी शैली में दक्षिण शैली, ईरानी शैली, मुगल शैल/व मराठा शैली का समन्वय देखने को मिलता है। बूंदी शैली के अन्तर्गत यहां स्थित चित्रशाला का निर्माण राव उम्मेद सिंह हाडा ने करवाया। जिसे भित्ति चित्रों का स्वर्ग कहते हैं। रंगमहल के चित्र राव शत्रुशाल हाडा के समय तैयार किए गए । पशु-पक्षियों का चित्रण बूंदी शैली की प्रमुख विशेषताएं है। इस शैली में सुनहरे तथा भडकिले रंगों का प्रयोग बहुतायत किया गया है। इस शैली का प्रमुख चित्रकार अहमदअली है। वर्षा में नाचता मोर, वन में धूमता शेर, वृक्षों पर कुदकते बंदर तथा पुरूष आकृति में चित्रण के विषय थे। कोटा शैलीइस शैली का स्वतंत्र विकास महाराजा रामसिंह के समय हुआ। कोटा शैली में महाराजा उम्मेद सिंह हाडा के समय सर्वाधिक चित्र चित्रित किए गए। शिकारी दृश्यों का चित्रण इस शैली की मुख्य विशेषता है। राज्य की एक मात्र शैली जिसमें नारियों को शिकार करते हुए दर्शाया गया है। कोटा शैली का सबसे बड़ा चित्र रागमाला सैट 1768 ई. में महाराजा गुमानसिंह के समय डालू नामक चित्रकार द्वारा तैयार किया गया। प्रमुख चित्रकार - डालू, नूर मुहम्मद, गोविन्दराम, रघुनाथदास, लच्छीराम (कुचामनी ख्याल का जनक) आदि थे। चित्रकला की प्रमुख संस्थाऐंजोधपुर - चितेरा , धोरा उदयपुर-ढखमल,तुलिका कला परिश्द जयपुर- कलावृत, आयाम. पैंग, क्रिएटिव संस्थाऐं, जवाहर कला केन्द्र 1993 में भीलवाडा - अंकन राजस्थान स्कूल आॅफ आर्ट्स एवं क्राफ्ट्स - महाराजा रामसिंह के 1857 (1866) में जयपुर में स्थापित। पुराना नाम मदरसा-ए-हुनरी,। राजस्थान ललित कला अकादमी - 24 नवम्बर 1957 (1956) में जयपुर में स्थापित है। प्रमुख चित्रकला संग्रहालय1.पोथी खाना- जयपुर 2. जैन भण्डार - जैसलमेर 3. पुस्तक/मान प्रकाश -जोधपुर 4. सरस्वती भण्डार - उदयपुर 5. अलवर भण्डार - अलवर 6. कोटा भण्डार - कोटा प्रमुख चित्रकाररामगोपाल विजयवर्गीयजन्म- बालेर (सवाईमाधोपुर) में हुआ। राजस्थान में एकल चित्रण प्रणाली की परम्परा प्रारम्भ करने वाले प्रथम चित्रकार थे। नारी चित्रण इनका प्रमुख विषय था। इन्ह "राजस्थान की आधुनिक चित्रकला का जनक" कहते है गोवर्धन लालबाबाजन्म - कांकरोली (राजसमंद) में हुआ। भीली जीवन का चित्रण इनका प्रमुख विषय था। इन्हें "भीलों का चितेरा" भी कहा जात है। इनका प्रमुख /प्रसिद्ध चित्र बारात है। परमानन्द चोयलजन्म - कोटा में हुआ भैसों का चित्रण इनका प्रमुख विषय था, इन्हें " भेसों का चितेरा"भी कहा जाता है। जगमोहन माथोडियाजन्म - जयपुर में हुआ। इनके चित्रण के विषय 'श्वान' थे, इन्हें "श्वानों का चितेरा" भी कहा जाता है। भूर सिंह शेखावतजन्म - बीकानेर में हुआ। ग्रामिण परिवेश व देश भक्तों का चित्रण इनका प्रमुख विषय था। इन्हें "गांवों का चितेरा" कहा जाता है। कृपाल सिंह शेखावतजन्म - मऊगांव (सीकर) में हुआ। इन्हें "ब्लयू पाॅटरी का जादूगर " कहा जाता है। परम्परागत पाॅटरी में ब्लयू (नीला) व हरा रंग उपयोग में लिया जाता था। कृपाल सिंह शेखावत ने पाॅटरी में 25 रंगो का प्रयोग किया था। इन्हें सन् 1974 में 'पद्म श्री' पुरस्कार दिया गया। सोभाग मल गहलोतजन्म - जयपुर में हुआ। पक्षियों के घोसलों का चित्रण इसका प्रमुख विषय था, इन्हें "नीड का चितेरा" कहते है। सुरजीत कौर चायलइनका कार्यक्षेत्र जयपुर रहा। राज्य की प्रथम चित्रकार है जिनकी चित्रकला का प्रदर्शन जापान की "फुकाको कला दीर्घा" में किया गया। देवकी नन्दन शर्मापशु पक्षियों का चित्रण इनका प्रमुख विषय रहा। इन्हें "Man of nature and living objects" कहते है। राजा रवि वर्माकेरल निवासी राजा रवि वर्मा को " भारतीय चित्रकला का जनक" कहा जाता है। ए.एच.मूलरजर्मनी के परम्परावादी चित्रकार जिनके चित्र बीकानेर संग्रहालय में संग्रहीत है। भित्ति-चित्रणभिति चित्रण की प्रमुख रूप से तीन विधियां है। 1. फ्रेसको ब्रुनों 2. फ्रेसको सेको 3. साधारण भिति चित्रण फ्रेसको ब्रुनोताजा पलस्तर की हुई नम भिति पर किया गया चित्रण। इस कला को मुगल सम्राट आकबर के समय इटली से भारत लाया गया। जयपुर रियासत के शासकों के मुगलों से प्रगढ सम्बन्ध के कारण भिति चित्रण की यह परम्परा जयपुर से प्रारम्भ हुई और फिर पूरे राजस्थान में फैली। राजस्थान में इस कला को आलागीला/आरायश कला कहते है। शैखावटी क्षेत्र में इस शैली को पणा कहा जाता है। फ्रेसको सेकोइटली की इस कला में पलस्तर की हुई भिति के सुखने के पश्चात् चित्रण किया जाता है। साधारण भित्ति चित्रण-साधारण दीवार पर किया गया चित्रण। अन्य महत्वपूर्ण तथ्यराजस्थानी चित्रकला शैलियों में मोर पक्षी को प्रधानता दो गई है। राजस्थानी चित्रकला शैलियों में लाल व पीले रंग का बहुतायत से प्रयोग किया गया है। भित्ति चित्रांकन की दृष्टि से कोटा तथा बूंदी रियासत राजस्थान की समृद्ध रियासत है। बीकानेर शैली तथा शैखावटी शैली के चित्रकार चित्रों पर अपना नाम व तिथि अंकित करते थे। विभिन्न प्रकार का आभूषण बसेरी (नाक में) किशनगढ़ शैली के चित्र में दर्शाया गया है। वीरजी जोधपुर शैली के प्रमुख चित्रकार रहे है। उत्तरध्यान व कल्याण रागिनी वीर जी के प्रमुख चित्र है। कोटा की झााला हवेली शिकारी दृश्यों के चित्रण के लिए प्रसिद्ध रही है, इनका निर्माण झाला जालिम सिंह द्वारा किया गया। शैखावटी में गोपालदास की छत्तरी पर किया गया भिति चित्रण सबसे प्राचीन है/पारम्परिक है। जो देवा नामक चित्रकार द्वारा तैयार किए गए है। राजस्थानी चित्रकला शैलियों में सबसे प्राचीन चित्र दसवैकालिका सुत्र चूर्णि जैसलमेर शैली के अन्तर्गत चित्रत किया गया जो वर्तमान में जैन भण्डार में संग्रहित है। शेखावटी क्षेत्र के अन्तर्गत स्थानीय चित्रकारों न हवेलियां, मन्दिरो, बावडियों, इत्यादि को चित्रित किया। हिन्दी की चार प्रमुख शैलियाँ कौन कौन सी है *?शैलियाँ. मानक हिन्दी - हिन्दी का मानकीकृत रूप, जिसकी लिपि देवनागरी है। ... . दक्षिणी - उर्दू-हिन्दी का वह रूप जो हैदराबाद और उसके आसपास की जगहों में बोला जाता है। ... . रेख्ता - उर्दू का वह रूप जो शायरी में प्रयुक्त होता था।. उर्दू - हिन्दी का वह रूप जो देवनागरी लिपि के बजाय फ़ारसी-अरबी लिपि में लिखा जाता है।. हिन्दी की कितनी शैलियाँ होती है?इस धरातल पर हिंदी की तीन शैलियाँ हैं। ऐसी स्थिति विश्व की बहुत कम भाषाओं में पाई जाती है। कोई भी भाषा इस योग्य होती है कि वह अपने सामर्थ्य का विकास अपने दायित्वों के अनुकूल कर सके ।
हिन्दी भाषा के तीन अर्थ कौन से है?Answer. अन्तत: यह भाषा के लिए रूढ़ हो गया, परन्तु हिन्दी भाषा के सन्दर्भ में भी आज इसके तीन अर्थ मिलते हैं-(i) व्यापक अर्थ, (ii) सामान्य अर्थ और (iii) विशिष्ट अर्थ।।
विश्व में हिंदी का स्थान कौन सा है?आज दुनिया भर में बोली जाने वाली सभी भाषाओं में हिंदी तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है. वर्ल्ड लैंग्वेज डेटाबेस के 22वें संस्करण इथोनोलॉज में बताया गया है कि दुनियाभर की 20 सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में 6 भारतीय भाषाएं हैं जिनमें हिंदी तीसरे स्थान पर है.
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