बिहार में ग्रामीण गरीबी के मुख्य कारण कौन कौन से हैं? - bihaar mein graameen gareebee ke mukhy kaaran kaun kaun se hain?

मार्च 10, 2010 - भारत का बिहार राज्य देश के सबसे गरीब लोगों में से कुछ का घर है। किंतु विश्व बैंक की वित्तीय तथा तकनीकी सहायता और बिहार सरकार के नए सुधार प्रयासों से यहाँ सार्वजनिक वित्त प्रबंधन में, साथ ही अधिक बच्चों को स्कूल भेजने में, लोगों को टीके लगाने में, गरीबी कम करने में और भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष में सुधार हुआ है। राज्य में गरीबी कम होने का तथा विकास में तेजी आने का राष्ट्रव्यापी प्रभाव पड सकता है, खास तौर पर भारत के सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य प्राप्त कर सकने पर।

व्यापक स्तर पर गरीबी और निम्नस्तरीय अधोसंरचना

बिहार भारत के सबसे बडे और गरीब राज्यों में से एक है। 2007 तक, बिहार का आर्थिक विकास देश के बाकी हिस्से की तुलना में काफी धीमा था। राज्य की सार्वजनिक सेवाएं और अधोसंरचना देश में सबसे बदतर थे। यहाँ के मजदूरों में से लगभग आधे कृषि मजदूर थे, जोकि राष्ट्रीय औसत का दुगुना है। केवल एक तिहाई महिलाएं साक्षर थीं, बाल-मृत्यु दर काफी अधिक थी, और आधे से भी अधिक बच्चे कुपोषित थे।

6-13 वर्ष के 20 लाख बच्चे स्कूल नहीं जाते थे और शिक्षकों की अनुपस्थिती आम बात थी. आधे से ज्यादा घर सडकों से नहीं जुडे थे, कुल घरों के मात्र पाँचवे हिस्से को नल उपलब्ध थे और आबादी के एक बडे हिस्से को बिजली उपलब्ध नहीं थी। लेकिन 2005 से, स्वास्थ्य, शिक्षा, सडकें और ग्रामीण विकास जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को लक्ष्य बनाकर सरकार ने एक व्यापक सुधार कार्यक्रम शुरु किया है। उसने कानून और व्यवस्था तथा निवेश का माहौल सुधारने पर और अधिक जवाबदेही पर भी ध्यान केन्द्रित किया है।

विश्व बैंक की भूमिका

बिहार के सुधार प्रयासों को विश्व बैंक विकास नीति ऋण (डीपीएल) ने मदद दी है और विकास के लिए आवश्यक मुद्रा की जगह बनाई है (आईबीआरडी 1.5 अरब डॉलर; आईडीए 75 करोड डॉलर)। हालाँकि पहला बिहार डीपीएल दिसंबर 2009 में बंद हो गया था, लेकिन यह कुल 9 अरब डॉलर के चार संभावित ऋणों में से एक था जो 2007 से 2011 के बीच वितरित किये जाने हैं। अगले कार्यक्रम के लिए निवेदन प्रक्रिया शुरु है।

इसके अलावा, विश्व बैंक की बिहार ग्रामीण आजीविका परियोजना (63 करोड अमरीकी डॉलर), जिसका वर्तमान में कार्यान्वयन चालू है, का उद्देश्य बिहार के करीब 2.9 करोड ग्रामीण गरीबों का सामाजिक तथा आर्थिक सशक्तिकरण करना है। यह परियोजना छः जिलों - गया, मुजफ्फरपुर, नालंदा, मधुबनी, खगडिया और पूर्णिया - के 4000 गाँवों को चरणबद्ध तरीके से अपने छत्र में लेती है। डीएफआईडी न्यास निधी का इस्तेमाल कर बैंक ने इस बाढ-प्रभावित राज्य में बाढ प्रबंधन सूचना प्रणाली स्थापित करने के लिए भी बिहार सरकार को तकनीकी सहायता दी है।

एक स्पष्ट परिवर्तन

बिहार सरकार द्वारा जहाँ-जहाँ सुधारों की विस्तृत श्रृंखला लागू की गई है, वहाँ परिवर्तन के चिन्ह स्पष्ट नज़र आ रहे हैं। राज्य के राजस्व और विकास खर्चों में बढोत्तरी हुई है। सरकार अब तक अल्प-सहायता प्राप्त सार्वजनिक सेवाओं पर अधिक धन खर्च पाने में समर्थ है। हालाँकि आर्थिक विकास की जडें खोज पाना मुश्किल है, लेकिन 2004 के पश्चात बिहार में आई तेज वृद्धी को कानून के शासन में सुधार, अधिक कार्यक्षम एवं अधिक बडे सार्वजनिक खर्च तथा बेहतर अधोसंरचना से सहज जोडा जा सकता हैः

सडकेः राष्ट्रीय राजमार्ग का लगभग 1900 किलोमीटर और जिलों की सडकों का 3500 किलोमीटर हिस्सा सुधारा गया है।

स्वास्थ्यः अक्तूबर 2008 तक के लगभग तीन वर्षों में सरकारी अस्पतालों में आने वाले बाह्य रोगियों की संख्या प्रति माह 39 से बढ कर करीब 4500 हो गई। 2005 तक आबादी के पाँचवे हिस्से की तुलना में 2008 तक आबादी के आधे से भी अधिक हिस्से का टीकाकरण पूर्ण हो चुका था। स्वास्थ्य सेवा केन्द्रों में जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या 2006 में 100000 थी जो 2008 में बढकर 780000 हो गई। अब रोगियों को निःशुल्क दवा दी जाती है।

शिक्षाः प्राथमिक तथा उच्चतर प्राथमिक स्कूलों में भर्ती बढी है, जबकि स्कूल न जाने वाले बच्चों की संख्या में कमी आई है। छात्र-शिक्षक अनुपात में सुधार आया है और नव-नियुक्त शिक्षकों के स्कूलों में पदस्थ होने पर यह 40:1 के राष्ट्रीय अनुपात तक आ जाने की उम्मीद है। सरकार ने अपनी मध्यान्ह भोजन योजना को बढाकर 6ठी से 8वीं तक के बच्चों तक कर दिया है जिससे 1.1 करोड बच्चे इसके दायरे में आ गए हैं। बिहार भर में सर्वे किये गए स्कूलों में से करीब 80% स्कूल भोजन सुविधा दे रहे थे।

भ्रष्टाचार का विरोधः सरकार ने पारदर्शिता को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया है, भ्रष्ट अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई में तेजी लाई है और आउटसोर्सिंग तथा सूचना प्रोद्योगिकी के ज़रिये सेवा प्रदाय में मजबूती लाई है। उच्च स्तरीय प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ मामलों के लिए एक विशेष सतर्कता इकाई स्थापित की गई है। सूचना अधिकार कानून और सेवा प्रदाय की दो प्रमुख राज्य स्तरीय पहलों को राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं।

उपभोक्ता खर्चों में वृद्धिः परिस्थितियों में आए सुधार को दर्शाते हुए बिहार में पर्यटकों की संख्या में आश्चर्यजनक वृद्धि होकर उनकी संख्या 2005 में 69 लाख के मुकाबले 2009 में 1.05 करोड तक जा पहुँची। बिहार में मोटर वाहनों की संख्या में अकेले 2007 में ही 239% की बढोत्तरी हुई जो उपभोक्ता खर्चों में वृद्धि, बेहतर अधोसंरचना और अधिक आर्थिक गतिविधियों की परिचायक है। मोबाइल फोन की संख्या भी 2004 में 10 लाख थी जो बढ कर 2008 में 1.2 करोड तक जा पहुँची।

गरीबी के कारण और निवारण ( garibi ke karan aur nivaran ) : गरीबी से आशय किसी व्यक्ति या जनसंख्या के निम्न जीवन स्तर से लगाया जा सकता है, जिसके अंतर्गत व्यक्ति अपनी और अपने परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में असमर्थ हो जाता है। गरीबी किसी भी देश की एक बहुत बड़ी समस्या है  –

Table of Contents

  • गरीबी के कारण –
    • बढ़ती जनसंख्या –
    • शिक्षा का अभाव –
    • अनुचित सरकारी नीतियां –
    • विषम सामाजिक परिस्थितियां –
    • बढ़ती महंगाई –
    • प्राकृतिक आपदाएं –
    • उचित स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव –
    • लोगों की बुरी आदतें –
  • गरीबी के निवारण –

गरीबी के कारण –

गरीबी के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –

बढ़ती जनसंख्या –

वर्तमान में बढ़ती जनसंख्या एक बहुत बड़ी समस्या है। बढ़ती जनसंख्या बेरोजगारी की पहली वजह है जो गरीबी का प्रमुख कारण हैं। जनसंख्या वृद्धि से स्वास्थ्य सुविधाओं एवं वित्तीय संसाधनों में निरंतर कमी होने के कारण लोगों का जीवन स्तर निम्न होता जा रहा है जो प्रति व्यक्ति आय को प्रभावित करने में भी उत्तरदायी है। जनसंख्या वृद्धि में भारत का दूसरा स्थान है और यही वजह भारत के पिछड़ेपन का कारण है। अतः किसी भी देश की जनसंख्या वहां के लोगों के जीवन स्तर को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है तथा उससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि देश में गरीबी है अथवा नहीं।

शिक्षा का अभाव –

भारत में ऐसे बहुत से लोग है जो शिक्षा के महत्व से परिचित नहीं है जिसकी वजह से वे अपने बच्चों को शिक्षा के अलावा किसी अन्य कामों में लगा देते है। बचपन से ही बच्चों के हाथ में वे परिवार की सारी जिम्मेदारियों को सौंप देते हैं, इन सबका परिणाम यह होता है कि एक बच्चा अच्छी शिक्षा से वंचित हो जाता है और स्वयं के जीवन स्तर को उच्च बनाने में असमर्थ हो जाता है अतः व्यक्ति का गरीब होना स्वाभाविक है।

अनुचित सरकारी नीतियां –

भारत में पर्याप्त संसाधन होने पर भी यहाँ गरीबी जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं, इसका प्रमुख कारण है अनुचित सरकारी नीतियां। भारत में सरकारी नीतियों के अंतर्गत कुछ ऐसे श्रम कानून एवं नीतियां बनाई गई है जिनसे इन नीतियों से लोगों के लिए मेहनत करके कोई भी कार्य करना मुश्किल हो गया है और कुशल छात्र भारत छोड़कर विदेशों की ओर जाते हैं व अपना धन विदेशी बैंकों में ही रखते हैं। अतः कुशल व्यक्तियों की कमी के कारण नए व्यवसाय उत्पन्न नहीं होते और कई लोगों को रोजगार नहीं मिल पाता जो बेरोजगारी का प्रमुख कारण बन जाता है।

विषम सामाजिक परिस्थितियां –

भारतीय समाज में व्याप्त विषम परिस्थितियां भी गरीबी की समस्या को उत्पन्न करती हैं। समाज में प्रचलित प्रथाएं जैसे – जातिप्रथा, संयुक्त परिवार प्रथा उत्तराधिकारी के नियम आदि जिन्हें अर्थव्यवस्था में बाधा उत्पन्न करने के लिए उत्तरदायी माना जाता है। भारतीय समाज में विवाह, दहेज़ प्रथा, मृत्यु भोज व अन्य तीज त्योहारों में इतना अधिक खर्चा किया जाता है कि उनको लोन तक लेना पड़ता है। उस लोन को जीवन भर तारने के लिए उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अतः गरीबी की समस्या को जन्म देने में सामाजिक परिस्थितियां उत्तरदायी है।

बढ़ती महंगाई –

वर्तमान में देश में बढ़ती महंगाई के कारण भी लोगों में गरीबी की समस्या देखी जाती है गरीबी रेखा से नीचे के व्यक्ति का बढ़ती महंगाई की वजह से एक वक्त की रोटी जुटा पाना भी मुश्किल हो जाता है। भारत में दिन भर मेहनत करने वाले व्यक्तियों की आय इतनी कम होती है कि वे आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पाते है जिससे उनका पूरा परिवार कुपोषण का शिकार हो जाता है और बच्चे शिक्षा से वंचित रह जाते हैं।

प्राकृतिक आपदाएं –

भारत में गरीबी की समस्या का एक कारण वहां आने वाली प्राकृतिक आपदाए भी है। कुछ क्षेत्रों में अत्यधिक ठंड होना, सूखा पड़ना, अधिक वर्षा होना, बाढ़, भू-स्खलन, भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं की वजह से जन व धन दोनों की हानि होती है। प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव से कई लोग बेरोजगार हो जाते है या लोगों की आय इतनी कम हो जाती है कि उन लोगों को जीवन भर गरीबी का सामना करना पड़ता है।

उचित स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव –

भारत में कई ऐसे स्थान है जहाँ न अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएँ है और न ही सफाई जिसकी वजह से वहां रहने वाले व्यक्ति आए दिन किसी न किसी बीमारी के शिकार बन जाते है और इन बीमारियों में इतना अधिक खर्च होता है कि लोग गरीब हो जाते है। अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही और उचित स्वास्थ्य सुविधाओं के न मिलने के कारण गरीबी का स्तर बढ़ता जा रहा है।

लोगों की बुरी आदतें –

लोगों की बुरी आदतों में बुरी चीजों का सेवन करने से है जिसमें शराब, गुटका-बीड़ी आदि शामिल है। व्यक्ति अपनी इन बुरी आदतों के लिए इतना अधिक खर्च कर देता है न उसके पास अच्छा स्वास्थ्य बचता है और न पैसा। इसके अलावा वे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा एवं उच्च स्तर से वंचित रखते है और इनमें इतना अधिक खर्चा करते है कि वे खुद को उच्च स्तर में लाने में असमर्थ हो जाते है।

बिहार के गरीबी का मुख्य कारण क्या है?

बिहार में गरीबी का सबसे बड़ा कारण है की बिहार में उद्योगों की कमी और शिक्षा की कमी के कारण लोगों में रोजगार न मिलने के कारण बिहार में अधिक गरीबी है। बिहार में इतनी गरीबी क्यों है ?

ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी का मुख्य कारण क्या है?

ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी गरीबी पानी की कमी, खराब मौसम तथा सूखा भी ग्रामीण इलाकों में गरीबी का प्रमुख कारण है। चरम गरीबी कई किसानों को आत्महत्या करने के लिये मजबूर करती है। कई ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति इतनी दयनीय है कि इनमें स्वच्छता, बुनियादी ढाँचा, संचार और शिक्षा जैसी सुविधाओं का भी अभाव है।

बिहार में ग्रामीण गरीबी के मुख्य कारण कौन से हैं इस समस्या के समाधान के लिए उपाय बताएं?

बिहार में ग्रामीण गरीबी निदान के उपाय-(i) जनसंख्या पर नियंत्रण (ii) कृषि उत्पादन में वृद्धि (iii) औद्योगीकरण (iv) पूँजी की व्यवस्था (v) रोजगार के अधिक अवसर प्रदान करना । भारत में गरीबी के कारणों की व्याख्या कीजिए। मनोरंजन के साधनों का अभाव।

बिहार में ग्रामीण गरीबी की स्थिति क्या है?

बिहार में गरीबी अन्य राज्यों की तुलना में अनुपात 47.2 प्रतिशत है। बिहार भारत के गरीबी के आधार पर दूसरा राज्य है जबकि उड़ीसा प्रथम जहां की गरीबी का अनुपात 47.2% है।