एक शिक्षाविद् कहते हैं कि हम मूलतः बहुभाषी हैं। भारत जैसे बहुभाषी देश में तो हमारा किसी एक भाषा के सहारे काम चल ही नहीं सकता। हमें अपनी बात बाकी लोगों तक पहुंचाने के लिए और उनके साथ संवाद करने के लिए एक भाषा से दूसरे भाषा के बीच आवाजाही करनी ही पड़ती है। जैसे हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं का मिश्रित रूप है हिंदुस्तानी जुबान। हिंदुस्तान जुबान में होने वाले संवाद की मिठास और संप्रेषण की सहजता देखने लायक है। बहुत से बच्चों से घर की भाषा (होम लैंग्वेज) स्कूल की भाषा से इतर होती है। Show बहुभाषिकता क्या है?जैसे अगर किसी बच्चे के घर पर मिजो बोली जाती है। स्कूल में होने वाली पढ़ाई इंग्लिश और हिंदी में होती है तो बच्चे के लिए स्कूल में समायोजन करना काफी मुश्किल होगा अगर उसको अपनी भाषा में बोलने का मौका नहीं दिया जाएगा। उदाहरण के लिए अगर किसी बच्चे के घर में गुजराती, मराठी या हिंदी बोली जाती है और स्कूल में पढ़ाई का माध्यम इंग्लिश है तो ऐसे में बच्चा एक से अधिक भाषाओं के संपर्क में आता है। धीरे-धीरे उसमें कुशलता का एक स्तर हासिल करता है। एक से अधिक भाषाओं के प्रति सम्मान का भाव और मूलतः एक से अधिक भाषाओं के इस्तेमाल के विचार को स्वीकार करना और उसे रोजमर्रा के जीवन में स्थान देना ही, सही मायने में बहुभाषिकता है। उदाहरण के तौर पर राजस्थान के आदिवासी अंचल में ‘साक्षरता’ पर आयोजित एक समारोह में बच्चों से स्कूल की लायब्रेरी और किताबों से दोस्ती करने के बारे में बात हो रही थी। इसी बातचीत के दौरान घर के लोगों को कहानी पढ़कर सुनाने का भी जिक्र हो आया। एक लड़की ने सवाल किया, “घर के लोगों को कहानी कैसे सुनाएं? अगर उनको अपनी किताब से कहानी पढ़कर सुनाते हैं तो कहानी उनको समझ में नहीं आती?” यह आज के दिन का सबसे अच्छा सवाल था। आखिर में हम कह सकते हैं, “हम सभी मूलतः बहुभाषी हैं। किसी एक भाषा से हमारा काम चल ही नहीं सकता है। हम स्कूल में एक भाषा बोलते हैं, घर पर दूसरी भाषा बोलते हैं, दोस्तों के साथ किसी अन्य भाषा में संवाद करते हैं। इसके अतिरिक्त बहुत सी अन्य भाषाओं में हम बोलते कम हैं। मगर उसमें लिखने-पढ़ने का काम करते हैं जैसे अंग्रेजी। बहुत से हिंदी-भाषी राज्यों में अंग्रेजी में संवाद करने की जरूरत आमतौर पर नहीं पड़ती। मगर वहां के लोग अंग्रेजी के अखबार, पत्रिकाएं, उपन्यास और कहानियां इत्यादि पढ़ते हैं। बहुभाषिकता है समाधानइस किताब के लेखक चकमक के संपादक सुशील शुक्ल जी हैं। यह किताब बच्चों को काफी पसंद है। इस सवाल से एक बात बिल्कुल साफ थी कि उस लड़की ने घर के लोगों को कहानी सुनाने की कोशिश की होगी। मगर उसे कहानी के अर्थ तक ले जाने में सफलता नहीं मिली होगी। घर के लोगों को कहानी सुनाने वाली बात को संदेह की दृष्टि से देखने वाली नज़र का मूल ऐसी ही किसी बात में हो सकता है। इस सवाल का समाधान ‘बहुभाषिकता’ वाली अप्रोच में है। इसलिए मैंने जवाब दिया, “सबसे पहले आप कहानी को अच्छी तरह पढ़ो। फिर से अपने घर की भाषा (गरासिया) में परिवार के लोगों को कहानी सुनाओ। इससे घर के लोग कहानी को समझ पाएंगे।” बच्चों से बातचीत के दौरान सवाल-जवाब के ऐसे सिलसिले बताते हैं कि संवाद दो-तरफा है। उसमें दोनों पक्षों की भागीदारी है। पहली-दूसरी कक्षा में अच्छी पढ़ाई होसरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे अपना लिखा हुआ दिखाते हुए। इसके बाद बच्चों से पढ़ना सीखने में भाषा कालांश में नियमित पढ़ाई वाले मुद्दे पर बात हुई। अधिकांश बच्चों का मानना था कि अगर पहली-दूसरी कक्षा तक आते-आते बच्चे समझकर पढ़ना सीख जाएंतो आगे की कक्षाओं में उनको विशेष दिक्कत नहीं होगी। इसके साथ-साथ स्कूल के बच्चों को पढ़ना सिखाने में मदद करने की बात भी हुई जो पढ़ाई के मामले में पीछे हैं। या जिनको किताब पढ़ने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। ताकि बच्चों में एक-दूसरे से सीखने की भावना (पियर लर्निंग) का विकास हो सके। पुस्तकालय की जिम्मेदारी संभालने वाले शिक्षक ने कहा कि अध्यापकों की कमी से जूझ रहे विद्यालय में पहली-दूसरी कक्षा पर ध्यान देना संभव नहीं हो पा रहा है। मगर हमारी कोशिश होगी कि हम बच्चों को रोज़ाना लायब्रेरी में जाने का मौका दें क्योंकि बच्चों की किताबों में काफी रुचि है। स्कूल के किताबें पढ़ना चाहते हैं। किताबों को घर ले जाना चाहते हैं। उनकी इस रुचि को ध्यान में रखते हुए पुस्तकालय का ज्यादा प्रभावशाली ढंग से इस्तेमाल करने की कोशिश होगी। उनकी इस बात से लगा कि भाषा सीखने में पुस्तकालय के महत्व को वे समझ पा रहे हैं। पठन कौशल का विकास पढ़ने से होगा और बच्चे अगर निरंतर किताबें पढ़ते रहें तो उनका पठन कौशल स्वतः उन्नत होता चला जाता है। यह बात भाषा पर काम करने के दौरान पुस्तकालय का ज्यादा इस्तेमाल करने वाले बच्चों के संदर्भ में काफी स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। निःसंदेह इसमें बच्चे के व्यक्तिगत रुचि की भी काफी महत्वपूर्ण भूमिका है। Post Viewership from Post Date to 27-Feb-2021
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions शिक्षा में बहुभाषावाद का महत्वजौनपुर22-02-2021 10:04 AMध्वनि 2- भाषायें भाषा, सभी
मनुष्यों और समाज का एक अनिवार्य हिस्सा है। प्रत्येक बच्चा अपनी मातृभाषा को स्वाभाविक रूप से सीख जाता है। इससे भाषाओं को सीखने के लिए मनुष्यों की प्राकृतिक प्रवृत्ति और विशेषताएँ प्रदर्शित होती हैं। जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, हम औपचारिक या अनौपचारिक स्थितियों से कई और भाषाएँ सीखते हैं। भारत एक बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक देश है और यही विशेषता उसे दुनिया में एक विशिष्ट और उदार राष्ट्र बनती है। भारत जैसे बहुभाषी देश में तो किसी एक भाषा के सहारे काम चल ही नहीं सकता है। हमें अपनी बात बाकी लोगों तक
पहुंचाने के लिए और उनके साथ संवाद करने के लिए एक भाषा से दूसरे भाषा के बीच आवाजाही करनी ही पड़ती है। इस देश मे हर प्रान्त की अपनी एक अलग भाषा है। यहां अनेकों लोग ऐसे है जो अपनी मातृभाषा के अतिरिक्त दूसरी भाषा का भी ज्ञान रखते हैं वे द्विभाषावाद (Bilingualism) के अंतर्गत आते है, (द्विभाषावाद एक व्यक्ति या एक समुदाय के सदस्यों को दो भाषाओं का प्रभावी ढंग से उपयोग करने की क्षमता है) और अनेकों लोग ऐसे भी है जो दो भाषाओं से अधिक भाषाओं का भी ज्ञान रखते है, वे बहुभाषावाद (Multilingualism) के अंतर्गत
आते है, (बहुभाषावाद एक व्यक्ति या एक समुदाय के सदस्यों को दो से अधिक भाषाओं का प्रभावी ढंग से उपयोग करने की क्षमता है)। इस देश में चार प्रमुख भाषा परिवारों से संबंधित एक हजार से अधिक स्वदेशी भाषाओं, धर्मों और विचारों के भेद के बावजूद समन्वय की एक सांस्कृतिक अंतर्धारा सदैव प्रवाहित होती रही है। अर्थात हमारा देश बहुभाषी देश है जिसका असर शिक्षा क्षेत्र मे भी पड़ता है। ***Definitions of the post viewership metrics on top of the page: A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total. B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search. C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page. D. The Reach (Viewership)on the post is updated either on the 6th dayfrom the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYSor a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.
बहुभाषी शिक्षा क्या है?स्कूल में दो या दो से ज्यादा भाषाओं को शिक्षा का माध्यम के रूप में इस्तेमाल करना बहुभाषी शिक्षा कहलाता हैं। इसको मातृभाषा आधारित बहुभाषी शिक्षा भी कहा जाता हैं जिसमें बच्चों को सबसे पहले उनकी मातृभाषा में पढ़ाई-लिखाई करवाई जाती हैं और इसके माध्यम से बच्चों को दूसरी भाषायें सिखायी जाती हैं।
बहुभाषी से आप क्या समझते हैं?बहुभाषी का अर्थ ऐसे व्यक्ति से है जो दो या अधिक भाषाओं का प्रयोग करता है। विश्व में बहुभाषी लोगों की संख्या एकभाषियों की तुलना में बहुत अधिक है।
बहुभाषिकता शिक्षण में क्या उपयोग है?इस प्रकार का ज्ञान अध्यापन और शिक्षण का अद्भुत साधन है। इसके माध्यम से एक शिक्षक छात्रों का संज्ञानात्मक, सामाजिक, चिन्तन, व बौद्धिक क्षमताओं का विकास आसानी से कर सकता है। विभिन्न भाषाओं का प्रयोग सांस्कृतिक आदान-प्रदान का प्रमुख माध्यम है, जो छात्रों को कई तरह की संस्कृति से परिचित कराती है।
बहुभाषिकता का क्या महत्व है?बहुभाषिकता एक समाधान है। इससे हम किसी मुद्दे पर अलग-अलग दृष्टिकोण से विचार कर पाते हैं। एक ऐसे समाधान तक पहुंचने का प्रयास कर पाते हैं जो अन्य लोगों के प्रति भी समान रूप से संवेदनशील होता है।
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