धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि उस राज्य में विभिन्न धर्मों तथा मत मतान्तरों को मानने वाले रहते हैं। लेकिन राज्य का अपना कोई विशिष्ट धर्म नहीं होगा तथा वह धार्मिक कार्यों में भाग भी नहीं लेगा और किसी के धर्म में रुकावट भी उत्पन्न नहीं करेगा। इसकी बराबरी धार्मिक सहनशीलता से नहीं की जा सकती है। राष्ट्र की एकता, अखण्डता तथा सुदृढ़ता के लिए धर्मनिरपेक्षता को ही अपनाना उचित है। सभी नागरिकों से एकसमान न्याय करने के उद्देश्य से भी धर्मनिरपेक्षता की नीति तर्क संगत है। धर्मनिरपेक्षता शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग जॉर्ज जैकब हॉलीडेक द्वारा 19वीं शताब्दी में किया गया। उसने लैटिन भाषा के शब्द Seculum शब्द से इस शब्द को ग्रहण किया जिसका अर्थ है यह वर्तमान स्थिति वास्तव में इस शब्द का प्रयोग सामाजिक तथा नैतिक मूल्यों की प्रणाली के संदर्भ में किया था। उसकी इस मूल्य प्रणाली के आधार निम्नलिखित सिद्धांत थे। Show
हम जानते हैं कि भारत एक बहु धर्मावलंबी बहु भाषा एवं संस्कृत वाला देश है। लोकतंत्र यहां की शासन प्रणाली का आधार है। इस आसन में आवश्यक है कि सभी नागरिकों के प्रति समान व्यवहार हो, चाहे किसी भी धर्म की आस्था को ना रखते हो? अर्थात् सर्वधर्म संभाव लोकतंत्र का आदर्श होना चाहिए। Contents
धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि धर्मनिरपेक्षता में मानव व्यवहार की व्याख्या धर्म के आधार पर नहीं वरन तार्किक आधार पर की जाती है तथा घटनाओं को कार्य कारण संबंध के आधार पर समझा जाता है। इसके साथ ही भावात्मक तथा आत्मकथा का स्थान वैज्ञानिक एवं वस्तुनिष्ठता ले लेती है। धर्मनिरपेक्षता के लक्षणवास्तव में धर्मनिरपेक्ष राज्य में सभी नागरिकों को अन्य धर्मों का आधार पर किए बिना अपने धर्म का पालन करने और उसके प्रचार-प्रसार करने को सदस्यता दी जाती है ऐसे राज्य में प्रत्येक नागरिक को आगे बढ़ने एवं नागरिक विकास करने के सवार अवसर और अधिकार प्राप्त होते हैं तथा धर्म किसी के विकास में बाधा नहीं मन करता है। धर्मनिरपेक्ष राज्य के लक्षण निम्न है-
धर्मनिरपेक्षता की विशेषताएंधर्मनिरपेक्षता की विशेषताएं निम्न है। धर्म का प्रभाव न्यूनतमधर्मनिरपेक्षता के कारण धर्म का प्रभाव कम होता है तथा मानवीय व्यवहार एवं सामाजिक घटनाओं की व्याख्या करने में धर्म के हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं किया जाता है। व्यक्ति की सामाजिक निष्ठा का निर्धारण धर्म के अनुसार पर नहीं होता। बुद्धिवाद का महत्वधर्मनिरपेक्षता के अंतर्गत प्रत्येक मानवीय व्यवहार एवं समानता पर तर्क के आधार पर विचार किया जाता है धार्मिक आधार पर नहीं। 15 साल सारी घटना की व्याख्या तर्क तथा कार्य कारण संबंधों के आधार पर की जाती है अर्थात वर्तमान वैज्ञानिक ज्ञान के आधार पर समस्याओं का समाधान किया जाता है जिससे पीछे धार्मिक एवं कारणों को स्वीकृत किया जाता है। विभेदीकरण की प्रक्रियाधर्मनिरपेक्षता में विरोधी करण की प्रक्रिया पर बल दिया जाता है अर्थात धार्मिक आर्थिक सामाजिक राजनीतिक व नैतिक पक्ष एक दूसरे से पृथक पृथक होते हैं जीवन से संबंधित विभिन्न पदों की जानकारी इसी से मिलती है। धर्मनिरपेक्ष शिक्षा की विशेषताएंधर्मनिरपेक्ष वादी शिक्षा की विशेषताएं निम्न है-
धर्मनिरपेक्षता को प्रभावित करने वाले कारकधर्मनिरपेक्षता की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने वाले महत्वपूर्ण कारक निम्न है
1. पश्चिमीकरणभारत में धर्मनिरपेक्षता के विचारों को प्रोत्साहित करने में पश्चिमीकरण का महत्वपूर्ण योगदान है। अंग्रेजों के भारत में लंबे शासनकाल में भारत में नवीन प्रौद्योगिकी संचार, यातायात, डाक, तार, रेल, शिक्षा, व्यवस्था नवीन ज्ञान व मूल्यों का सूत्रपात हुआ है जिसके परिणाम स्वरूप व्यक्ति भादवा भौतिकवाद को बढ़ावा मिला तथा धर्म का भाव धीरे-धीरे कम होता गया। 2. नगरीकरण एवं औद्योगीकरणधर्मनिरपेक्षता की सोच विशेष रूप से नागरिकों में अधिक प्रभावी रही है क्योंकि शिक्षा संचार यातायात आदि की सुविधा नगरों में ही अधिक पाई जाती है विभिन्न प्रकार के उद्योग धंधे एवं व्यवसाय भी नगरों में पाए जाते हैं इन मैचों की विभिन्न जातियों धर्मों संप्रदायों का भाषा से संबंधित व्यक्ति साथ साथ काम करते हैं अच्छा धार्मिक कट्टरता समाप्त हो जाती है तथा उनमें धार्मिक सहिष्णुता एवं सह अस्तित्व के भाव उत्पन्न होते हैं इससे उनमें तार्किक वैज्ञानिकता हुआ मानवतावाद के भावों का भी संचार होता है। 3. यातायात एवं संचार के साधनप्राचीन समय में चौकी यातायात एवं संचार के साधनों का अभाव था इसलिए व्यक्तियों में गतिशीलता का अभाव था तथा व अन्य धर्मों के संपर्क में नहीं आ पाए और अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ समझने के कारण उन्हें धार्मिक कट्टरता पनपती गई किंतु वर्तमान समय में यातायात एवं संचार के गतिशील परिणामों के विकास होने के कारण लोगों में गतिशीलता बड़ी है। परस्पर एक दूसरे के संपर्क में आने के कारण उनमें समानता के विचार आए हैं धार्मिक संकीर्णता समाप्त हुई है तथा छुआछूत भेदभाव कम हुए हैं। 4. आधुनिक शिक्षा पद्धतिप्राचीन काल में शिक्षा धार्मिक थी और वह भी केवल दूध जातियों तक सीमित थी किंतु वर्तमान समय में शिक्षा में वैज्ञानिक ज्ञान प्रदान करने से लोगों में तार्किक एवं बौद्धिक गुणों का विकास हुआ है वर्तमान काल में शिक्षा मात्र कुछ जातियों व वर्गों तक सीमित ना होकर लोगों को प्रदान की जाती है। इससे उनके दृष्टिकोण में परिवर्तन हुआ है उनमें स्वतंत्रता समानता तथा तार्किकता का विकास हुआ है। धर्मनिरपेक्षता को प्रभावित करने वाले कारक5. धार्मिक एवं सामाजिक सुधार आंदोलनभारतीय समाज एवं धर्म की कुरीतियों को दूर करने के लिए देश के अनेक नेताओं और महापुरुषों ने अनेक सुधार कार्यक्रमों व आंदोलनों का सूत्रपात किया। ब्रह्म समाज प्रार्थना समाज रामकृष्ण मिशन आर्य समाज थियोसोफिकल सोसायटी आज संगठनों की भी स्थापना हुई। इन सभी के प्रयत्नों के कारण धार्मिक अंधविश्वास नष्ट हुए तथा भारतीयों ने प्रजातांत्रिक मूल्यों की ओर झुकाव बड़ा इससे भी धर्मनिरपेक्षता की प्रक्रिया को प्रोत्साहन मिला। 6. सरकारी प्रयत्नदेश में नवीन संस्थान द्वारा देश के सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं। भारतीय संविधान के 15 अनुच्छेद में उल्लेख है कि राज्य लिंग जन्मजात प्रजाति धर्म वंश एवं जन्म आदि के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं करेगा। इसके साथ ही भारत को धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है इसके अतिरिक्त सरकार ने अनेक विद्वानों व समाज कल्याण के परिजनों द्वारा भी निम्न व पिछड़ी जातियों को ऊंचा उठाने के लिए अनेक प्रयत्न व योजनाएं बनाई हैं इन सबसे भारत में धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा मिला है। 7. राजनीतिक दलदेश में विभिन्न राजनीतिक दलों में भी धर्मनिरपेक्षता के प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। कांग्रेस ने धर्मनिरपेक्षता को दल की नीति के रूप में स्वीकार किया। कांग्रेस के सभी प्रमुख नेता महात्मा गांधी पंडित जवाहरलाल नेहरू ने श्रीमती इंदिरा गांधी आदि धर्मनिरपेक्षता के विचारों के समर्थक रहे हैं। कांग्रेस के अतिरिक्त समाजवादी तथा साम्यवादी दलों को नेताओं ने भी धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा दिया है 8. स्वतंत्रता आंदोलनभारत में स्वतंत्रता आंदोलन में सभी धर्मों के लोगों ने भरपूर सहयोग दिया उन्होंने इस संघर्ष के लिए प्राय अपने सभी धार्मिक एवं जाति भेदभाव भुला दिए स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारतीय संविधान में भारत को धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया और जिसका उद्देश्य विभिन्न धर्मा अनुयायी यों को देश की प्रगति में समान रूप से भागीदार बनाना एवं सहयोग प्राप्त करना था। इस प्रकार स्वतंत्रता आंदोलन ने धर्म निरपेक्ष करण की प्रक्रिया को प्रोत्साहित किया। 9. धार्मिक भिन्नताधर्मनिरपेक्षता की विचारधारा के प्रोत्साहन में भारत में विभिन्न धर्मों का पाया जाना भी एक महत्वपूर्ण कारण रहा है। भारत में चूंकि विभिन्न धर्मों के अनुयाई साथ साथ रहते हैं, आता है राज्य के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह सभी धर्मों के प्रति समानता का व्यवहार करें और सब को विकास के समान अवसर प्रदान करें। धर्मनिरपेक्षता को आप क्या समझते हैं?धर्मनिरपेक्षता क्या है? इसका अर्थ है जीवन के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं से धर्म को अलग करना, धर्म को विशुद्ध रूप से व्यक्तिगत मामला माना जाता है। 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द का अर्थ है 'धर्म से अलग' होना या कोई धार्मिक आधार नहीं होना।
धर्मनिरपेक्षता से आप क्या समझते हैं कक्षा 8?भारतीय संविधान सभी को अपने धार्मिक विश्वासों और तौर-तरीकों को अपनाने की पूरी छूट देता है। सबके लिए समान धार्मिक स्वतंत्रता के इस विचार को ध्यान में रखते हुए भारतीय राज्य ने धर्म और राज्य की शक्ति को एक-दूसरे से अलग रखने की रणनीति अपनाई है। धर्म को राज्य से अलग रखने की इसी अवधारणा को धर्मनिरपेक्षता कहा जाता है।
धर्मनिरपेक्ष शिक्षा से आप क्या समझते हैं?- धर्मनिरपेक्ष शिक्षा के माध्यम से बालकों के नैतिक दृष्टिकोण का विकास होता है ऐसी शिक्षा बालको में चरित्र और नैतिक गुण कि विकास करने की आधारशिला होती है या हम इस शिक्षा के माध्यम से सत्य ,इमानदारी नम्रता सहानुभूति मानव सेवा व त्याग आदि के गुणों का विकास करा सकते है।
धर्मनिरपेक्षता से आप क्या समझते हैं भारत में धर्मनिरपेक्षता पर विमर्शों की विवेचना कीजिए?धर्मनिरपेक्ष शब्द, भारतीय संविधान की प्रस्तावना में बयालीसवें संशोधन (1976) द्वारा डाला गया था। भारत का इसलिए एक आधिकारिक राज्य धर्म नहीं है। हर व्यक्ति को उपदेश, अभ्यास और किसी भी धर्म के चुनाव प्रचार करने का अधिकार है। सरकार के पक्ष में या किसी भी धर्म के खिलाफ भेदभाव नहीं करना चाहिए।
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