प्रायचित्त कहानी का उद्देश्य क्या है? - praayachitt kahaanee ka uddeshy kya hai?

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UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 3 प्रायश्चित (भगवतीचरण वर्मा)

प्रायचित्त कहानी का उद्देश्य क्या है? - praayachitt kahaanee ka uddeshy kya hai?
प्रायचित्त कहानी का उद्देश्य क्या है? - praayachitt kahaanee ka uddeshy kya hai?

प्रायचित्त कहानी का उद्देश्य क्या है? - praayachitt kahaanee ka uddeshy kya hai?
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प्रश्न 2.

प्रायचित्त कहानी का उद्देश्य क्या है? - praayachitt kahaanee ka uddeshy kya hai?
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प्रायचित्त कहानी का उद्देश्य क्या है? - praayachitt kahaanee ka uddeshy kya hai?
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(3) उद्देश्य–वेर्मा जी की इस कहानी का उद्देश्य इस सत्य को अभिव्यंजित करना है कि वर्तमान में मनुष्य का लगाव मात्र धेन में केन्द्रित है, शेष सभी रिश्ते-नाते नगण्य होते जा रहे हैं। कहानी में धर्मान्धता पर भी प्रहार किये गये हैं तथा समाज में व्याप्त रिश्वतखोरी, बेईमानी और मतलबपरस्ती पर भी यथार्थवादी व्यंग्यों का प्रहार करते हुए धर्मान्धता के वशीभूत हुए लोगों को इस पाश से निकालने का प्रयास किया गया है। लेखक को कहानी लिखने के उद्देश्य में पूर्ण सफलता मिली है।

इस प्रकार ‘प्रायश्चित कहानी लेखक की सफल यथार्थवादी रचना है। कहानी का आरम्भ, मध्य और समापन रोचक व औचित्यपूर्ण है। कहानी में अन्त तक यह कौतूहल बना रहता है कि प्रायश्चित में पण्डित परमसुख को क्या मिलेगा ? अन्त अप्रत्याशित और कलात्मक है। कहानी-कला की कसौटी पर ‘प्रायश्चित एक सफल, व्यंग्यात्मक तथा यथार्थवादी सामाजिक कहानी के रूप में खरी उतरती है।

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आवाज़ जो हुई तो महरी झाड़ू छोड़कर, मिसरानी रसोई छोड़कर और सास पूजा छोड़कर घटनास्‍थल पर उपस्थित हो गईं. रामू की बहू सर झुकाए हुए अपराधिनी की भांति बातें सुन रही है.

महरी बोली,‘अरे राम! बिल्‍ली तो मर गई, मांजी, बिल्‍ली की हत्‍या बहू से हो गई, यह तो बुरा हुआ.’

मिसरानी बोली,‘मांजी, बिल्‍ली की हत्‍या और आदमी की हत्‍या बराबर है, हम तो रसोई न बनावेंगी, जब तक बहू के सिर हत्‍या रहेगी.’

सासजी बोलीं,‘हां, ठीक तो कहती हो, अब जब तक बहू के सर से हत्‍या न उतर जाए, तब तक न कोई पानी पी सकता है, न खाना खा सकता है. बहू, यह क्‍या कर डाला?’

महरी ने कहा,‘फिर क्‍या हो, कहो तो पंडितजी को बुलाय लाई.’

सास की जान-में-जान आई,‘अरे हां, जल्‍दी दौड़ के पंडितजी को बुला लो.’

बिल्‍ली की हत्‍या की ख़बर बिजली की तरह पड़ोस में फैल गई-पड़ोस की औरतों का रामू के घर तांता बंध गया. चारों तरफ़ से प्रश्‍नों की बौछार और रामू की बहू सिर झुकाए बैठी.पंडित परमसुख को जब यह ख़बर मिली, उस समय वे पूजा कर रहे थे. ख़बर पाते ही वे उठ पड़े. पंडिताइन से मुस्‍कुराते हुए बोले,‘भोजन न बनाना, लाला घासीराम की पतोहू ने बिल्‍ली मार डाली, प्रायश्चित होगा, पकवानों पर हाथ लगेगा.’
पंडित परमसुख चौबे छोटे और मोटे से आदमी थे. लंबाई चार फ़ीट दस इंच और तोंद का घेरा अट्ठावन इंच. चेहरा गोल-मटोल, मूंछ बड़ी-बड़ी, रंग गोरा, चोटी कमर तक पहुंचती हुई.
कहा जाता है कि मथुरा में जब पंसेरी खुराकवाले पंडितों को ढूंढ़ा जाता था, तो पंडित परमसुखजी को उस लिस्‍ट में प्रथम स्‍थान दिया जाता था.
पंडित परमसुख पहुंचे और कोरम पूरा हुआ. पंचायत बैठी-सासजी, मिसरानी, किसनू की मां, छन्‍नू की दादी और पंडित परमसुख. बाकी स्त्रियां बहू से सहानुभूति प्रकट कर रही थीं.
किसनू की मां ने कहा,‘पंडितजी, बिल्‍ली की हत्‍या करने से कौन नरक मिलता है?’
पंडित परमसुख ने पत्रा देखते हुए कहा,‘बिल्‍ली की हत्‍या अकेले से तो नरक का नाम नहीं बतलाया जा सकता, वह महूरत भी मालूम हो, जब बिल्‍ली की हत्‍या हुई, तब नरक का पता लग सकता है.’

‘यही कोई सात बजे सुबह’ मिसरानीजी ने कहा.

पंडित परमसुख ने पत्रे के पन्‍ने उलटे, अक्षरों पर उंगलियां चलाईं, माथे पर हाथ लगाया और कुछ सोचा. चेहरे पर धुंधलापन आया, माथे पर बल पड़े, नाक कुछ सिकुड़ी और स्‍वर गंभीर हो गया,‘हरे कृष्‍ण! हे कृष्‍ण! बड़ा बुरा हुआ, प्रातःकाल ब्रह्म-मुहूर्त में बिल्‍ली की हत्‍या! घोर कुंभीपाक नरक का विधान है! रामू की मां, यह तो बड़ा बुरा हुआ.’

रामू की मां की आंखों में आंसू आ गए,‘तो फिर पंडितजी, अब क्‍या होगा, आप ही बतलाएं!’

पंडित परमसुख मुस्‍कुराए,‘रामू की मां, चिंता की कौन सी बात है, हम पुरोहित फिर कौन दिन के लिए हैं? शास्‍त्रों में प्रायश्चित का विधान है, सो प्रायश्चित से सब कुछ ठीक हो जाएगा.’

रामू की मां ने कहा,‘पंडितजी, इसीलिए तो आपको बुलवाया था, अब आगे बतलाओ कि क्‍या किया जाए!’

‘किया क्‍या जाए, यही एक सोने की बिल्‍ली बनवाकर बहू से दान करवा दी जाए. जब तक बिल्‍ली न दे दी जाएगी, तब तक तो घर अपवित्र रहेगा. बिल्‍ली दान देने के बाद इक्‍कीस दिन का पाठ हो जाए.’

छन्‍नू की दादी बोली,‘हां और क्‍या, पंडितजी ठीक तो कहते हैं, बिल्‍ली अभी दान दे दी जाए और पाठ फिर हो जाए.’

रामू की मां ने कहा,‘तो पंडितजी, कितने तोले की बिल्‍ली बनवाई जाए?’

पंडित परमसुख मुस्‍कुराए, अपनी तोंद पर हाथ फेरते हुए उन्‍होंने कहा,‘बिल्‍ली कितने तोले की बनवाई जाए? अरे रामू की मां, शास्‍त्रों में तो लिखा है कि बिल्‍ली के वज़नभर सोने की बिल्‍ली बनवाई जाए; लेकिन अब कलियुग आ गया है, धर्म-कर्म का नाश हो गया है, श्रद्धा नहीं रही. सो रामू की मां, बिल्‍ली के तौलभर की बिल्‍ली तो क्‍या बनेगी, क्‍योंकि बिल्‍ली बीस-इक्‍कीस सेर से कम की क्‍या होगी. हां, कम-से-कम इक्‍कीस तोले की बिल्‍ली बनवा के दान करवा दो, और आगे तो अपनी-अपनी श्रद्धा!’

रामू की मां ने आंखें फाड़कर पंडित परमसुख को देखा,‘अरे बाप रे, इक्‍कीस तोला सोना! पंडितजी यह तो बहुत है, तोलाभर की बिल्‍ली से काम न निकलेगा?’

पंडित परमसुख हंस पड़े,‘रामू की मां! एक तोला सोने की बिल्‍ली! अरे रुपया का लोभ बहू से बढ़ गया? बहू के सिर बड़ा पाप है, इसमें इतना लोभ ठीक नहीं!’

मोल-तोल शुरू हुआ और मामला ग्‍यारह तोले की बिल्‍ली पर ठीक हो गया.


प्रायचित्त कहानी का उद्देश्य क्या है? - praayachitt kahaanee ka uddeshy kya hai?


इसके बाद पूजा-पाठ की बात आई. पंडित परमसुख ने कहा,‘उसमें क्‍या मुश्क़िल है, हम लोग किस दिन के लिए हैं, रामू की मां, मैं पाठ कर दिया करुंगा, पूजा की सामग्री आप हमारे घर भिजवा देना.’

‘पूजा का सामान कितना लगेगा?’

‘अरे, कम-से-कम में हम पूजा कर देंगे, दान के लिए क़रीब दस मन गेहूं, एक मन चावल, एक मन दाल, मन-भर तिल, पांच मन जौ और पांच मन चना, चार पसेरी घी और मन-भर नमक भी लगेगा. बस, इतने से काम चल जाएगा.’

‘अरे बाप रे, इतना सामान! पंडितजी इसमें तो सौ-डेढ़ सौ रुपया ख़र्च हो जाएगा’ रामू की मां ने रुआंसी होकर कहा.

‘फिर इससे कम में तो काम न चलेगा. बिल्‍ली की हत्‍या कितना बड़ा पाप है, रामू की मां! ख़र्च को देखते वक़्त पहले बहू के पाप को तो देख लो! यह तो प्रायश्चित है, कोई हंसी-खेल थोड़े ही है-और जैसी जिसकी मरजादा! प्रायश्चित में उसे वैसा ख़र्च भी करना पड़ता है. आप लोग कोई ऐसे-वैसे थोड़े हैं, अरे सौ-डेढ़ सौ रुपया आप लोगों के हाथ का मैल है.’

पंडि़त परमसुख की बात से पंच प्रभावित हुए, किसनू की मां ने कहा,‘पंडितजी ठीक तो कहते हैं, बिल्‍ली की हत्‍या कोई ऐसा-वैसा पाप तो है नहीं-बड़े पाप के लिए बड़ा ख़र्च भी चाहिए.’

छन्‍नू की दादी ने कहा,‘और नहीं तो क्‍या, दान-पुन्‍न से ही पाप कटते हैं-दान-पुन्‍न में किफ़ायत ठीक नहीं.’

मिसरानी ने कहा,‘और फिर मांजी आप लोग बड़े आदमी ठहरे. इतना ख़र्च कौन आप लोगों को अखरेगा.’

रामू की मां ने अपने चारों ओर देखा-सभी पंच पंडितजी के साथ. पंडित परमसुख मुस्‍कुरा रहे थे. उन्‍होंने कहा,‘रामू की मां! एक तरफ़ तो बहू के लिए कुंभीपाक नरक है और दूसरी तरफ़ तुम्‍हारे ज़िम्‍मे थोड़ा-सा ख़र्चा है. सो उससे मुंह न मोड़ो.’

एक ठंडी सांस लेते हुए रामू की मां ने कहा,‘अब तो जो नाच नचाओगे नाचना ही पड़ेगा.’

पंडित परमसुख ज़रा कुछ बिगड़कर बोले,‘रामू की मां! यह तो ख़ुशी की बात है-अगर तुम्‍हें यह अखरता है तो न करो, मैं चला’ इतना कहकर पंडितजी ने पोथी-पत्रा बटोरा.

‘अरे पंडितजी-रामू की मां को कुछ नहीं अखरता-बेचारी को कितना दुख है-बिगड़ो न!’ मिसरानी, छन्‍नू की दादी और किसनू की मां ने एक स्‍वर में कहा.

रामू की मां ने पंडितजी के पैर पकड़े-और पंडितजी ने अब जमकर आसन जमाया.

‘और क्‍या हो?’

‘इक्‍कीस दिन के पाठ के इक्‍कीस रुपए और इक्‍कीस दिन तक दोनों बखत पांच-पांच ब्राह्मणों को भोजन करवाना पड़ेगा,’ कुछ रुककर पंडित परमसुख ने कहा,‘सो इसकी चिंता न करो, मैं अकेले दोनों समय भोजन कर लूंगा और मेरे अकेले भोजन करने से पांच ब्राह्मण के भोजन का फल मिल जाएगा.’

‘यह तो पंडितजी ठीक कहते हैं, पंडितजी की तोंद तो देखो!’ मिसरानी ने मुस्‍कुराते हुए पंडितजी पर व्‍यंग्‍य किया.

‘अच्‍छा तो फिर प्रायश्चित का प्रबंध करवाओ, रामू की मां ग्‍यारह तोला सोना निकालो, मैं उसकी बिल्‍ली बनवा लाऊं-दो घंटे में मैं बनवाकर लौटूंगा, तब तक सब पूजा का प्रबंध कर रखो-और देखो पूजा के लिए

पंडितजी की बात ख़तम भी न हुई थी कि महरी हांफती हुई कमरे में घुस आई और सब लोग चौंक उठे. रामू की मां ने घबराकर कहा,‘अरी क्‍या हुआ री?’

प्रायश्चित कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

'प्रायश्चित' एक व्यंग्यमूलक कहानी है, जिसमें सामाजिक पात्रों की स्वार्थबद्धता पर लेखक ने विनोदपूर्ण एवं चुटीला व्यंग्य किया है तथा वातावरण को प्राणवान एवं प्रभावशाली बनाने के लिए विशेष सजगता का परिचय दिया है। रामू के घर का दृश्य ही पूरे घटनाक्रम के लिए पर्याप्त है।

प्रायश्चित कहानी के माध्यम से लेखक क्या संदेश देना चाहते हैं?

'प्रायश्चित' इनकी अद्वितीय, यथार्थवादी, व्यंग्यात्मक एवं सामाजिक कहानी है। वर्मा जी ने इस कहानी की कथावस्तु में व्यक्ति की धर्मभीरूता, रूढ़िवादिता एवं पाखंडवाद को प्रस्तुत कर यह स्पष्ट किया है कि इनके पीछे मूल कारण बुद्धवादियों की धन प्राप्ति की लालसा है।

प्रायश्चित कहानी किसकी रचना है?

प्रायश्चित्त हिन्दी के प्रसिद्ध नाटककार एवं कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित एकांकी नाटक है।

रामू की बहू ने खीर कैसे बनाई?

किंतु वह कबरी बिल्ली से बहुत नफ़रत करती थी । चिपका कर कटोरे में निकाल कर ऊँचे ताख पर रख दिया। जिससे बिल्ली वहाँ पहुँच न सके गई बिल्ली ने छलाँग लगाकर कटोरे को गिरा दिया और कटोरा ज़मीन पर तेज आवाज़ के एक दिन रामू की बहू ने भिन्न भिन्न प्रकार के मेवे डालकर दूध को देर तक औटाया और रामू के लिए खीर बनाई