देवबंद वाले किसी अनु का उदाहरण दें - devaband vaale kisee anu ka udaaharan den

JAC Board Class 10th Social Science Important Questions Geography Chapter 6 विनिर्माण उद्योग

वस्तुनिष्ठ

प्रश्न 1.
कच्चे पदार्थ को मूल्यवान उत्पाद में परिवर्तित कर अधिक मात्रा में वस्तुओं के उत्पादन को कहा जाता है
(क) विनिर्माण
(ख) उद्योग
(ग) निर्माण
(घ) व्यापार
उत्तर:
(क) विनिर्माण

2. निम्न में से कौन-सा कृषि आधारित उद्योग नहीं है?
(क) पटसन उद्योग
(ख) रबर उद्योग
(ग) सीमेंट उद्योग
(घ) चीनी उद्योग
उत्तर:
(ग) सीमेंट उद्योग

3. निम्नलिखित में से कृषि के पश्चात् किस उद्योग ने सबसे अधिक रोजगार प्रदान किए हैं?
(क) चीनी उद्योग
(ख) लोहा-इस्पात उद्योग
(ग) वस्त्र उद्योग
(घ) पटसन उद्योग
उत्तर:
(ग) वस्त्र उद्योग

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4. चीनी मिलों का 60 प्रतिशत किन राज्यों में है?
(क) उत्तर प्रदेश व बिहार
(ख)बिहार व महाराष्ट्र
(ग) कर्नाटक व उत्तर प्रदेश
(घ) गुजरात व पंजाब
उत्तर:
(क) उत्तर प्रदेश व बिहार

5. निम्नलिखित में से कौन-सा आधारभूत उद्योग है?
(क). लोहा इस्पात
(ख) ताँबा प्रगलन
(ग) एल्यूमिनियम प्रगलन
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी

6. लोहा-इस्पात उद्योग के लिए कच्चे माल के रूप में लौह अयस्क, कोकिंग कोल एवं चूना पत्थर का क्रमशः अनुपात आवश्यक है
(क) 4 : 1 : 2
(ख) 4 : 2 : 1
(ग) 6 : 3 : 2
(घ) 3 : 2 : 5
उत्तर:
(ख) 4 : 2 : 1

7. उत्तेजना एवं मानसिक चिंता का स्रोत है
(क) ध्वनि प्रदूषण
(ख) वायु प्रदूषण
(ग) तापीय प्रदूषण
(घ) जल प्रदूषण
उत्तर:
(क) ध्वनि प्रदूषण

रिक्त स्थान सम्बन्धी प्रश्न

निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:
1. विनिर्माण क्षेत्र का विकास करने के लिए भारत सरकार ने राष्ट्रीय……की स्थापना की
उत्तर:
विनिर्माण प्रतिस्पर्धा परिषद्

2. भारत………को सूत निर्यात करता है।
उत्तर:
जापान,

3. भारत……..एवं……….सामान का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। ..
उत्तर:
पटसन, पटसन निर्मित,

4. भारत का पहला सीमेंट उद्योग सन्………में. चेन्नई में स्थापित किया गया है।
उत्तर:
1904,

5. बंगलूरू को भारत की……….के रूप में जाना जाता है।
उत्तर:
इलेक्ट्रॉनिक राजधानी

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
किसी देश की आध्थिक उन्नति किन उद्योगों के विकास से मापी जाती है ?
उत्तर:
किसी देश की अर्थिक उन्नति विनिर्माण उद्योंगों के विकास से मापी जाती है।

प्रश्न 2.
राष्टीय विनिमाण प्रतिस्पधाँ परिषद् की स्थापना क्यों की गई है?
उत्तर:
देश की आर्थिक उन्नति में बृद्धि करने के लिए ताकि विनिर्माण उद्योग अपना लक्ष्य पूरा कर सकें

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प्रश्न 3.
प्रयुक्त कच्चे माल के स्रोत के आधार पर विनिर्माण उद्योगों को वर्गीकृत्त कीजिए।
उत्तर:
प्रयुक्त कच्चे माल के स्रोत के आधार पर विन्माण उद्नोग दो प्रकार के होते है

  1. कृषि आध्रारित,
  2. खनिज आधारित।

प्रश्न 4.
कोई दो खनिज आथारित उद्धोग बताइए।
उत्तर:
खनिज आधारित उस्रोग

  1. लोहा एवं इस्पात उद्योग,
  2. सीमेंट उद्योग।

प्रश्न 5.
आधारभूत उद्धोग क्या है?
उत्तर:
वह उद्योग जिनके उत्पादन पर दूसरे उहोग निर्भर रहंते हैं, आधारभूत उद्योग कहलाते हैं।

प्रश्न 6.
उपभोक्ता उद्योग किन्हें कहते हैं?
उत्तर:
बे उद्योग जो उपभोक्ताओं के सीधे उपभोग हैतु उत्पाद्न करते है, उपभोकता उद्योग कहलाते है

प्रश्न 7.
पूँजी निवेश के आधार पर उद्मोगों को कितने में बाँटा जा सकता है?
उत्तर:
पूँजी निवेश के आधार पर उद्योगों को दो भागों में बॉटा जा सकता है:

  1. लघु उद्योग,
  2. वृहत उद्योग।

प्रश्न 8.
स्वामित्व के आधार पर उद्योर्गों को कितने भागों में बाँटा जा सकता है?
उत्तर:
स्वामित्व के आधार पर उद्योगों को तीन भार्गों में बाँटा जा सकता है

  1. सार्वरनिक क्षेत्र के उद्योग,
  2. संयुक्त उद्योग,
  3. सहकारी उद्योग।

प्रश्न 9.
सार्वजनिक उद्योग क्या है?
उत्तर:
धे उद्योग जो सरकार द्वारा निर्यंत्रित एवं संदालित होते है, सार्ब्जनिक उद्योग कहलाते हैं।

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प्रश्न 10.
सार्यंजनिक क्षेत्र के उद्योग के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग के उदाहरण-

  1. भारत हैवी इलैक्ट्रकल लिमिटेड (BHEL),
  2. स्टील अथारिटी ऑफ इण्डिया लिमिटेह (SAIL)

प्रश्न 11.
संयुक्त उद्धोग किसे कहते हैं?
उत्तर:
राज्य सरकार व निजी क्षेत्र के संखुक्त प्रयास से चलाये जाने वाले उद्योगों को संखुक्त उद्रोग कहते हैं।

प्रश्न 12.
सहकारी उद्योग किन्हें कहते है?
उत्तर:
वे उद्योग जिनका स्वामित्व कचे माल की पूर्ति करने वाले उत्पादकों, भ्रमिकों अथवा दोरों के हलथों में होता है, सहकारी उद्होग कहलाते हैं।

प्रश्न 13.
कृषि आधारित उद्योग किहें कहते हैं?
उत्तर:
चे उद्घोग जिन्हे अपना कच्चा माल कृषि से प्राप्त होता है; कृषि आधारित उद्योग कहलाते हैं।

प्रश्न 14.
भारत का पहला सफल सूती वस्त्र उद्योग कद्य व कहोँ लगा था?
उत्तर:
भारत का पहला सफल सूती वस्त्र उद्योग सन् 1854 में मुम्बईई में लगा था।

प्रश्न 15.
भारत में किन राज्यों में सूती वस्त्न उद्धोग का सर्वाजिक विकास हुआ है?
उत्तर:
भारत के महाराष्ट्र एवं गुजरात राज्यों में सूती बस्त्र उयोग का सर्वाधिक विकास हुआ है।

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प्रश्न 16.
किन्हीं दो देशों के नाम बताइए जो भारत से सूती वस्त्रों का आयात करते है?
उत्तर:
भारत से सूती वस्तों का आयात करने वाले देश:

  1. जापान,
  2. संयुक्त राज्य अमेरिका ।

प्रश्न 17.
पटसन वा पटसन निर्मित सामान का सबसे बड़ा उत्पादक है तथा बांग्लादेश के पश्चात् दूसरा बड़ा निर्चाँतक भी है।
उत्तर:
भारत।

प्रश्न 18.
प्रथम पटसन उद्योग कहाँ व कद्य स्थापित्त किया गाया?
उत्तर:
प्रथम पटसन उद्योग कोलकाता के निकट रिशरा में 1855 है. नें स्थापित किया गया।

प्रश्न 19.
विश्व स्तर पर भारत का चीनी उत्तादन में कौन-सा स्थान है?
उत्तर:
विश्व स्तर पर भारत का चीनी उत्पदन में द्वितीय स्थान है।

प्रश्न 20.
पिछले कुछ वर्षों से दब्षिणी-पशिचमी राज्यों में चीनी मिलों की बकृती हुई संख्या का क्या कारण है?
उत्तर:

  1. दक्षिण-पशिचम भारत के गन्ने में सूक्रोस की मात्रा का अधिक होना।
  2. दक्षिण-पश्चिम भारत की जलवायु का अपेक्षाकृत उण्डा होना ।

प्रश्न 21.
लोहा-इस्पात उद्योग को आधारभूत उद्योग क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
क्योंकि अन्य सभी भारी, हल्के पवं मध्यम उद्योग लोहा-इस्पात उद्योग से बनी मशीनरी पर निर्भर होते हैं।

प्रश्न 22.
लोहा-इस्पात उद्योग के लिए आवश्यक कच्चा माल कौन-कौन सा है?
उत्तर:
लोहा-इस्पात उद्योग के लिए-आवश्यक कच्चा माल लौह अयस्क, कोकिंग कोल, चूना पत्थर एवं मेंगनीज़ हैं।

प्रश्न 23.
इस्पात को कठोर बनाने के लिए किस खनिज की आवश्यकता होती है?
उत्तर:
इस्पात को कठोर बनाने के लिए मैंगनीज़ की आवश्यकता होती है।

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प्रश्न 24.
इस्पात का सबसे बड़ा उपभोक्ता एवं उत्पादक देश कौन-सा है?
उत्तर:
इस्पात का सबसे बड़ा उपभोक्ता एवं उत्पादक देश चीन है।

प्रश्न 25.
भारत का द्वितीय सर्वाधिक महत्वपूर्ण धातु शोधन उद्योग कौन-सा है?
उत्तर:
भारत का द्वितीय सर्वाधिक महत्वपूर्ण धातु शोधन उद्योग ऐल्यूमिनियम प्रगलन है।

प्रश्न 26.
………….. उद्योग का उपयोग हवाई जहाज बनाने में, बर्तन तथा तार बनाने में किया जाता है।
उत्तर:
ऐल्यूमिनियम।

प्रश्न 27.
ऐल्युमिनियम किससे निम्मित होता है?
उत्तर:
ऐल्यूमिनयिम बॉक्साइट से निर्मित होता है।

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प्रश्न 28.
अकार्बनिक रसायनों के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
अकार्बनिक रसायनों के उदाहरण-

  1. सल्फ्यूरिक अम्ल,
  2. नाइट्रिक अम्ल।

प्रश्न 29.
पेट्रो रसायन का क्या उपयोग है?
उत्तर:
पेट्रो रसायन कृत्रिम रबर, प्लास्टिक, रंजक पदार्थ, दवाइयाँ, औषध रसायनों के निर्माण में प्रयुक्त किया जाता है।

प्रश्न 30.
चूना पत्थर, सिलिका, एल्युमिना और जिप्सम ………… उद्योग के कच्चे माल हैं।
उत्तर:
सीमेंट।

प्रश्न 31.
सीमेंट बनाने के लिए काम में आने वाले किन्हीं दो कच्चे मालों का नाम लिखिए।
उत्तर:
सीमेंट बनाने में काम में आने वाले कच्चे माल

  1. चूना पत्थर,
  2. सिलिका,
  3. जिप्सम आदि हैं।

प्रश्न 32.
कौन-सा शहर भारत की इलैक्ट्रॉनिक राजधानी कहलाता है?
उत्तर:
बंगलौर (बैंगलूरु) भारत की इलैक्ट्रॉनिक राजधानी कहलाता है।

प्रश्न 33.
कर्नाटक राज्य में स्थित प्रसिद्ध सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी पार्क का नाम लिखिए।
उत्तर:
बंगलौर (बैंगलूरु)।

प्रश्न 34.
उद्योग कौन-कौन से प्रदूषण के लिए उत्तरदायी हैं?
उत्तर:
उद्योग चार प्रकार के प्रदूषण के लिए उत्तरदायी हैं:

  1. वायु,
  2. जल,
  3. भूमि एवं
  4. ध्वनि प्रदूषण।

प्रश्न 35.
जल प्रदूषण के प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
जल प्रदूषण के प्रमुख कारकों में कागज, लुग्दी, रसायन, वस्त्र व रैंगई उद्योग, तेलशोधन शालाएँ, चमड़ा उद्योग एवं इलेक्ट्रॉप्लेटिंग उद्योग आदि हैं

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प्रश्न 36.
कारखानों द्वारा निष्कासित एक लीटर अपशिष्ट से कितना जल दूषित होता है?
उत्तर:
कारखानों द्वारा निष्कासित एक लीटर अपशिष्ट से लगभग आठ गुना स्वच्च जल दूषित होता है।

प्रश्न 37.
भारत में विद्युत प्रदान करने वाले प्रमुख निगम का नाम लिखिए।
उत्तर:
भारत में राष्ट्रीय ताप विद्युत गृह कॉरपोरेशन विद्युत् प्रदान करने वाला मुख्य निगम है।

लयूत्तरात्मक प्रश्न (SA1)

प्रश्न 1.
विनिर्माण उद्योग को आर्थिक विकास की रीढ़ क्यों कहा जाता है?
अथवा
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए विनिर्माण उद्योगों का क्या महत्व है?
अथवा विनिर्माण उद्योग के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विनिर्माण उद्योग को निम्न कारणों से विकास की रीढ़ माना जाता है

  1. यह द्वितीयक एवं तृतीयक सेवाओं में रोजगार के अवसर उपलब्ध कराकर कृषि पर जनसंख्या की निर्भरता को कम करता है।
  2. देश के विभिन्न भागों में स्थापित बिनिर्माण उद्योग लोगों को रोजगार उपलब्ध कराकर गरीबी को कम करने का प्रयास करते हैं।
  3. जनजातीय एवं पिछड़े क्षेत्रों में स्थापित विनिर्माण उद्योग क्षेत्रीय असमानताओं को कम करने में सहायक होते हैं।
  4. विनिर्माण उद्योगों से प्राप्त उत्पादों के निर्माण से व्यापार और वाणिज्य का विस्तार होता है तथा देश को विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।

प्रश्न 2.
निजी एवं सहकारी क्षेत्र के उद्योगों में अन्तर स्पष्ट कीजिए। उत्तर-निजी एवं सहकारी क्षेत्र के उद्योगों में निम्नलिखित अन्तर हैं

निजी क्षेत्र के उद्योग सहकारी क्षेत्र के उद्योग
1. इन उद्योगों का स्वामित्व किसी व्यक्ति, फर्म अथवा समूह के पास होता है। 1. ये उद्योग कुछ लोगों के समूह द्वारा सहकारिता के आधार पर चलाए जाते हैं।
2. इन उद्योगों में व्यक्ति. फर्म अथवा समूह पूँजी का निवेश करते हैं। 2. इन उद्योगों में हिस्सेदार पूँजी का निवेश करते हैं।
3. इन उद्योगों में लाभ या हानि व्यक्ति, फर्म अथवा समूह को होती है। 3. इन उद्योगों में लाभ-हानि का विभाजन हिस्सेदारों में भी आनुपातिक होता है।

प्रश्न 3.
सूती वस्त्र उद्योग किस प्रकार से स्थानीय लोगों के लिए लाभदायक है?
उत्तर:
सूती वस्त्र उद्योग कृषि से जुड़ा हुआ उद्योग है। यह उद्योग किसानों, कपास चुनने वालों, गाँठ बनाने वालों, कताई करने वालों, रँगाई करने वालों, डिज़ायन बनाने वालों, पैकेट बनाने एवं सिलाई करने वालों को आजीविका प्रदान करता है। इस तरह सूती वस्त्र उद्योग स्थानीय लोगों को अधिक से अधिक संख्या में रोजगार उपलब्ध कराकर उन्हें लाभ पहुँचाता है।

प्रश्न 4.
सूती वस्त्र उद्योग की प्रमुख समस्याएँ क्या हैं?
अथवा
सूती वस्त्र उद्योग को किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है?
अथवा.
“भारत में सूती वस्त्र उद्योग संकट में है।” पक्ष में कोई दो कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में सूती वस्त्र उद्योग को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है-

  1. सूती वस्त्र मिलों का पुरानी व रुग्ण होना।
  2. सूती वस्त्र मिलों की मशीनों का अक्षम व तकनीक का पुराना होना।
  3. श्रम उत्पादकता का कम होना।
  4. कृत्रिम वस्त्र उद्योग से कड़ी प्रतिस्पर्धा।
  5. विद्युत की अनियमित आपूर्ति का उत्पादन पर प्रभाव पड़ना।

प्रश्न 5.
पटसन उद्योग के समक्ष उपस्थित समस्याओं की चर्चा कीजिए।
अथवा
जूट उद्योग के सामने उपस्थित चुनौतियों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत के पटसन उद्योग के सम्मुख किन्हीं दो प्रमुख चुनौतियों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पटसन (जूट) उद्योग को निम्नलिखित समस्याओं/चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है

  1. कम कीमत वाले कृत्रिम रूप से निर्मित पदार्थों से पटसन उद्योग को कड़ी चुनौती मिल रही है। जूट के प्राकृतिक रेशों की अपेक्षा कृत्रिम रेशे सस्ती कीमतों पर उपलब्ध हैं।
  2. पुरानी तकनीक के कारण इसके उत्पादन की कीमत अधिक है, जिसके कारण पटसन से बनी वस्तुओं की माँग कम हो जाती है।
  3. अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में भारत के पटसन उद्योग को बांग्लादेश, ब्राजील, मिस्र, फिलीपीन्स व थाईलैंड आदि देशों से कड़ी प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है।

प्रश्न 6.
पिछले कुछ वर्षों से अधिकतर चीनी मिलें दक्षिणी एवं पश्चिमी राज्यों में स्थानान्तरित हो रही हैं? कारण बताइए।
अथवा
भारत के दक्षिणी राज्यों में चीनी उद्योग के विस्तार के तीन कारण बताइए।
उत्तर:
पिछले कुछ वर्षों में चीनी मिलों के दक्षिणी एवं पश्चिमी राज्यों में स्थानान्तरित होने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

  1. दक्षिणी व पश्चिमी राज्यों में गन्ने में सुक्रोस की अधिक मात्रा का होना।
  2. अपेक्षाकृत ठण्डी जलवायु का होना भी गुणकारी है
  3. यहाँ स्थित चीनी मिलें सहकारिता क्षेत्र के अंतर्गत आती हैं। यहाँ गन्ने की खेती एवं चीनी मिलों को सहकारिता के अन्तर्गत एकीकृत किया गया है।
  4. उत्तर भारत की तुलना में यहाँ गन्ने की प्रति हेक्टेयर उपज का अधिक होना। भारत की तुलना में यहाँ सिंचाई सुविधाओं का पर्याप्त होना।

प्रश्न 7.
इस्पात निर्माण प्रक्रिया को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
इस्पात निर्माण की प्रक्रिया है

  1. कच्चा माल (लौह-अयस्क) को लोहा एवं इस्पात संयंत्रों तक लाया जाता है।
  2. लौह-अयस्क को भट्टी में डालकर गलाया जाता है, फिर इसमें चूना पत्थर मिलाया जाता है तथा धातु के मैल को हटाया जाता है।
  3. पिघले हुए लोहे को साँचों में डालकर ढलवाँ लोहा तैयार किया जाता है।
  4. ढलवाँ लोहे को पुन: गलाकर ऑक्सीकरण द्वारा उसकी अशुद्धि को हटाकर तथा मैंगनीज़, निकल, क्रोमियम मिलाकर शुद्ध किया जाता है।
  5. इसकी रोलिंग, प्रेसिंग, ढलाई एवं गढ़ाई के द्वारा धातुको आकार दिया जाता है।

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प्रश्न 8.
छोटा नागपुर पठारी क्षेत्र में लोहा और इस्पात के अधिकांश उद्योग संकेन्द्रित क्यों हैं? कारणों का विश्लेषण कीजिए।
अथवा
छोटा-नागपुर के क्षेत्र में और इसके चारों ओर लोहा और इस्पात उद्योगों के संकेन्द्रित होने के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
लोह तथा इस्पात उद्योग के मुख्यतः ‘छोटा नागपुर’ पठारी क्षेत्र में संकेन्द्रण के लिए उत्तरदायी किन्हीं चार कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
क्योंकि छोटा नागपुर के पठारी क्षेत्र में लोहा तथा इस्पात उद्योग के लिए अधिक अनुकूल सापेक्षिक परिस्थितियाँ उपलब्ध हैं, जिनमें

  1. लौह अयस्क की कम लागत,
  2. उच्च कोटि के कच्चे माल की निकटता,
  3. सस्ते श्रमिक एवं
  4. स्थानीय बाजार में इनके माल की विशाल संभाव्यता सम्मिलित है।

प्रश्न 9.
“भारत में लौह इस्पात उद्योग का पूर्ण विकास नहीं हो सका।”कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर:
भारत में लौह इस्पात उद्योग का पूर्ण विकास नहीं होने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

  1. देश में कोकिंग कोयले की सीमित उपलब्धता।
  2. लौह इस्पात उद्योग में कार्यरत श्रमिकों की न्यून श्रमिक उत्पादकता।
  3. ऊर्जा की अनियमित आपूर्ति।
  4. देश में लौह इस्पात उद्योग की अविकसित संरचना।

प्रश्न 10.
भारत में औद्योगिक प्रदूषण से होने वाले कोई दो प्रभाव बताइए।
उत्तर:

  1. औद्योगिक प्रदूषण वायु को प्रदूषित करता है। अधिक अनुपात में अनचाही गैसों; जैसे-सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड की उपस्थिति के कारण वायु प्रदूषण होता है।
  2. औद्योगिक प्रदूषण, जल प्रदूषण का मुख्य कारक है। उद्योगों द्वारा कार्बनिक और अकार्बनिक अपशिष्ट पदार्थों के नदी में विसर्जित होने से जल प्रदूषित होता है।

प्रश्न 11.
उद्योग वायु को किस प्रकार प्रदूषित करते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उद्योग वायु को निम्न प्रकार प्रदूषित करते हैं

  1. अधिक अनुपात में अनचाही गैसों की उपस्थिति जैसे सल्फर डाइऑक्साइड व कार्बन मोनोऑक्साइड वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं।
  2. जीवाश्म ईंधन का उपयोग सदैव वायु में इन गैसों के अनुपात में वृद्धि करता रहता है।
  3. रसायन एवं कागज, ईंट के भट्टे, तेल शोधनशालाएँ, प्रगलन उद्योग एवं जीवाश्म ईंधन को जलाने से धुआँ निष्कासित होता है।
  4. उद्योगों से निकलने वाली जहरीली गैसों का रिसाव बहुत भयानक एवं दूरगामी प्रभाव वाला हो सकता है।

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प्रश्न 12.
ध्वनि प्रदूषण के कोई चार कारण लिखिए।
उत्तर:
ध्वनि प्रदूषण के चार कारण निम्नलिखित हैं

  1. औद्योगिक एवं निर्माण कार्य
  2. कारखानों के उपकरण
  3. लकड़ी चीरने के कारखाने
  4. विद्युत ड्रिल

प्रश्न 13.
औद्योगिक प्रदूषण से स्वच्छ जल को किस प्रकार बचाया जा सकता है? कोई तीन सुझाव दीजिए।
उत्तर:
औद्योगिक प्रदूषण से स्वच्छ जल को निम्न प्रकार बचाया जा सकता है

  1. विभिन्न प्रक्रियाओं में जल का न्यूनतम उपयोग एवं जल का दो या दो से अधिक उत्तरोत्तर अवस्थाओं में पुनर्चक्रण द्वारा पुनः उपयोग किया जाना।
  2. जल की आवश्यकता पूर्ति हेतु वर्षा जल का संग्रहण करना।
  3. नदियों व तालाबों में गर्म जल तथा अपशिष्ट पदार्थों को प्रवाहित करने से पहले उनका शोधन करना।

लयूत्तरात्मक प्रश्न (SA2)

प्रश्न 1.
‘कृषि और उद्योग एक-दूसरे के पूरक हैं।’ स्पष्ट कीजिए।
अथवा
‘कृषि एवं उद्योग एक-दूसरे को चलाते हैं।’ व्याख्या कीजिए।
अथवा
“कृषि और उद्योग साथ-साथ चलते हैं।” तीन उदाहरणों सहित इस कथन का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
निम्नलिखित उदाहरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि कृषि और उद्योग एक दूसरे के पूरक साथ-साथ चलते हैं।

  1. कृषि उद्योगों को कच्चा माल उपलब्ध कराती हैं। जैसे-कपास, गन्ना, जूट, रबर आदि।
  2. उद्योग कृषि को विभिन्न सहायक वस्तुएँ; जैसे-कृषि औजार, मशीनें, उर्वरक, कीटनाशक आदि उपलब्ध कराते हैं। इससे फसलों की उत्पादकता में वृद्धि होती है।
  3. उद्योग कृषि के अतिरिक्त श्रमिकों को रोजगार उपलब्ध कराते हैं, जिससे कृषि पर दबाव कम होता है।
  4. उद्योग कृषि से प्राप्त कच्चे मालों को विभिन्न उच्च कीमतों वाली तैयार वस्तुओं में परिवर्तित करते हैं, जिससे देश में आर्थिक समृद्धि आती है।
  5. उद्योग विभिन्न कृषि उपकरणों द्वारा कृषि के आधुनिकीकरण में सहायता करते हैं, जिससे कृषि उत्पादन बढ़ता है।
  6. कृषि औद्योगिक श्रमिकों को खाद्यान्न उपलब्ध कराती है।

प्रश्न 2.
भारत में कृषि आधारित किन्हीं पाँच उद्योगों के नाम लिखिए। भारतीय अर्थव्यवस्था में इनका क्या महत्व है? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
1. कृषि आधारित उद्योग:
वे उद्योग जिन्हें अपना कच्चा माल कृषि से प्राप्त होता है, कृषि आधारित उद्योग कहलाते हैं। प्रमुख कृषि आधारित उद्योग निम्न हैं

  1. सूती वस्त्र उद्योग,
  2. पटसन उद्योग,
  3. ऊनी वस्त्र उद्योग,
  4. रेशम वस्त्र उद्योग,
  5. चीनी उद्योग।

2. भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्व:
कृषि विभिन्न उद्योगों के लिए कच्चे माल का एक प्रमुख स्रोत है। कृषि पर आधारित विभिन्न उद्योगों से देश की बहुसंख्यक जनसंख्या को रोजगार मिला हुआ है। कृषि पर आधारित उद्योगों का कुल औद्योगिक उत्पादन में सबसे अधिक भाग है। वस्त्र उद्योग में सबसे अधिक लोगों को रोजगार मिला हुआ है। सूती वस्त्र, पटसन, रेशम, ऊनी वस्त्र, चीनी, वनस्पति तेल, चाय, कॉफी आदि उद्योग कृषि से प्राप्त कच्चे माल पर आधारित हैं। कृषि पर आधारित उद्योग विदेशी मुद्रा अर्जित कर देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने में भी योगदान प्रदान करते हैं।

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प्रश्न 3.
उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले किन्हीं चार कारकों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
उद्योगों की स्थिति को प्रभावित करने वाले उत्तरदायी कारकों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
औद्योगिक अवस्थिति के लिए उत्तरदायी किन्हीं पाँच कारकों की उदाहरणों सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले चार कारक निम्नलिखित हैं

  1. कच्चे माल की उपलब्धता: कच्चे माल की उपलब्धता किसी उद्योग को स्थापित करने में एक महत्वपूर्ण कारक है। लोहा एवं इस्पात तथा सीमेंट जैसे भारी उद्योग प्रायः कच्चे माल की उपलब्धता वाले क्षेत्रों के नजदीक ही स्थापित होते हैं। इससे परिवहन लागत में कमी आती है।
  2. ऊर्जा: ऊर्जा की नियमित आपूर्ति उद्योग के केन्द्रीकरण के लिए एक आवश्यक कारक है। अधिकांश उद्योग ऊर्जा के साधनों के निकट ही केन्द्रित होते हैं।
  3. श्रम: उद्योगों की स्थापना में श्रम भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उद्योगों की अधिक संख्या में सस्ते श्रमिकों की आवश्यकता होती है।
  4. जलवायु: किसी स्थान विशेष पर किसी उद्योग की स्थापना में जलवायु की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सूती वस्त्र उद्योग को नमी वाली जलवायु की आवश्यकता होती है परिणामस्वरूप अधिकांश सूती वस्त्र उद्योग महाराष्ट्र एवं गुजरात में ही केन्द्रित हैं।

प्रश्न 4.
समूहन बचत क्या है? विभिन्न आयामों के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर:
समूहन बचत-नगरीय केन्द्रों द्वारा दी गयी सुविधाओं; यथा-बैंकिंग, बीमा, परिवहन, श्रमिक व वित्तीय सलाह आदि के कारण अनेक उद्योग नगरीय केन्द्रों के समीप ही केन्द्रित हो जाते हैं, जिसे समूहन बचत कहते हैं। ऐसे स्थानों पर धीरे-धीरे बड़ा औद्योगिक समूहन स्थापित हो जाता है। विभिन्न आयामों के आधार पर उद्योगों को पाँच वर्गों में बाँटा जा सकता है

  • प्रयुक्त कच्चे माल के स्रोत के आधार पर:
    1. कृषि आधारित उद्योग,
    2. खनिज आधारित उद्योग।
  • प्रमुख भूमिका के आधार पर:
    1. आधारभूत उद्योग,
    2. उपभोक्ता उद्योग।
  • पूँजी निवेश के आधार पर:
    1. लघु उद्योग,
    2. वृहत उद्योग।
  • स्वामित्व के आधार पर:
    1. सार्वजनिक उद्योग,
    2. निजी उद्योग,
    3. संयुक्त उद्योग,
    4. सहकारी उद्योग।
  • कच्चे माल तथा तैयार माल की मात्रा व भार के आधार पर:
    1. हल्के उद्योग,
    2. भारी उद्योग।

प्रश्न 5.
सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग एवं सहकारी क्षेत्र के उद्योग में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग एवं सहकारी क्षेत्र के उद्योग में निम्नलिखित अन्तर है।

सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग सहकारी क्षेत्र के उब्योग
1. वे उधोग जो सरकारी एजेन्सियों द्वारा प्रबंधित एवं सरकार द्वारा संचालित होते हैं, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग कहलाते है। 1. वे उद्योग जिनका स्वामित्व एवं प्रबन्ध कृच्चे माल की आपूर्ति करने वाले उत्पादकों, श्रमिकों अथवा दोनों के हाथों में होता है, सहकारी क्षेत्र के उद्योग कहलाते हैं।
2. इन उद्योगों में भारी पूँजी निवेश की आवश्यकता होती है। जिसका प्रबन्ध सरकार करती है। 2. इन उद्योगों को संचालित करने के लिए पूँजी आपसी सहयोग एवं स्वेच्छा से मिलकर लगायी जाती है।
3. इन उद्योगों में प्रबंधक व सभी कर्मचारी वेतनभोगी होते हैं। 3. इन उद्योगों में कुछ कर्मचारी ही वेतनभोगी होते हैं।
4. इस प्रकार के उद्योर्गों में होने वाली लाभ-हानि का संबंध सरकारी एजेन्सियों अथवा सरकार से होता है। उदाहरण: भारत हैवी इलेक्ट्रकल लिमिटेड (BHEL), स्टील अर्थॉरिटी ऑफ इण्डिया लिमिटेड (SAIL). 4. इस प्रकार के उचयोगों में लाभ-हानि का विभाजन आनुपातिक रूप से सदस्यों में होता है। उदाहरण: महाराष्ट्र का चीनी उद्योग, केरल का नारियल उद्योग।

प्रश्न 6.
सूती वस्त्र उद्योग का केन्द्रीयकरण महाराष्ट्र एवं गुजरात राज्यों में है? कारण दीजिए।
अथवा
सूती वस्त्र उद्योग महाराष्ट्र और गुजरात में अधिक विकसित क्यों है? कारण दीजिए।
अथवा
आरम्भिक वर्षों में सूती वस्त्र उद्योग कपास उत्पादन क्षेत्रों तक ही क्यों संकेन्द्रित था? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आरिम्भक वर्षों में सूती वस्त्र उद्योग कपास उत्पादन क्षेत्रों (महाराष्ट्र एवं गुजरात) में ही संकेन्द्रित था। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

  1. कच्चे माल की उपलब्धता: इस क्षेत्र में काली मृदा पायी जाती है जिस कारण कपास उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है। इसलिए कच्चे माल की नियमित आपूर्ति होती है।
  2. अनुकूल जलवायु: इन क्षेत्रों की जलवायविक परिस्थितियाँ भी कपास की फसल के अनुकूल हैं।
  3. पूँजी की उपलब्धता: इस उद्योग के लिए पर्याप्त पूँजी की भी आवश्यकता होती है, जो यहाँ उपलब्ध है।
  4.  बाजार: ये राज्य भारत के सर्वाधिक आधुनिक राज्यों में सम्मिलित हैं। यहाँ वस्त्र उत्पादों के लिए विस्तृत बाजार उपलब्ध है।
  5. परिवहन: इन राज्यों में विकसित परिवहन सुविधा होने से कच्चे एवं तैयार माल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाना-ले जाना आसान है।
  6.  बंदरगाह: मुम्बई व कांडला के बंदरगाहों की सुविधा ने यहाँ सूती वस्त्र उद्योग की स्थापना में सहायता प्रदान की है। इन बन्दरगाहों के माध्यम से विभिन्न मशीनें, कपास आदि आयात एवं तैयार माल विदेशों को निर्यात किया जा सकता है।

प्रश्न 7.
भारत की अधिकांश जूट मिलें पश्चिम बंगाल में ही क्यों स्थित हैं? संक्षिप्त विवरण दीजिए।
अथवा
अधिकतर पटसन उद्योग हुगली नदी तट पर ही क्यों अवस्थित हैं? कारण दीजिए।
अथवा
पटसन उद्योग के मुख्यतः हुगली नदी के तटों के साथ-साथ स्थित होने के लिए उत्तरदायी किन्हीं पाँच कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पटसन (जूट) उद्योग के अधिकतर पश्चिम बंगाल में हुगली नदी तट पर स्थित होने के निम्नलिखित कारण हैं

  1. पटसन उत्पादक क्षेत्रों की निकटता के कारण जूट मिलों के लिए कच्चे जूट की पर्याप्त व नियमित आपूर्ति बनी रहती है।
  2. इस क्षेत्र में जल परिवहन की पर्याप्त व्यवस्था है। सड़कों व रेलवे के जाल से जुड़ा हुआ सस्ता जल-परिवहन मिलों को पटसन उत्पादक क्षेत्रों से आसानी से जोड़ देता है।
  3. इस उद्योग में रँगाई एवं प्रसंस्करण प्रक्रिया के लिए बड़ी मात्रा में जल का उपयोग होता है जो कि हुगली नदी से आसानी से उपलब्ध हो जाता है।
  4. सस्ते व कुशल श्रम की स्थानीय स्तर पर उपलब्धता एवं समीपवर्ती राज्य ओडिशा, बिहार व उत्तर प्रदेश से भी श्रम की आपूर्ति ने इस उद्योग के यहाँ पर स्थानीयकरण में सहायता प्रदान की है।
  5. कोलकाता का एक बड़े नगरीय केन्द्र के रूप में बैंकिंग, बीमा एवं जूट के निर्यात के लिए पत्तन की सुविधाएँ प्रदान करने से प. बंगाल में पटसन उद्योग का पर्याप्त केन्द्रीकरण हुआ है।

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प्रश्न 8.
चीनी उद्योग की प्रमुख समस्याएँ कौन-कौन सी हैं?
अथवा
“भारत में चीनी उद्योग चुनौतियों का सामना कर रहा है।” उपयुक्त तर्कों सहित इस कथन का विश्लेषण कीजिए।
अथवा
चीनी मिलें गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में क्यों केन्द्रित हैं? भारत में चीनी उद्योग के समक्ष उपस्थित किन्हीं तीन प्रमुख समस्याओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत का चीनी उत्पादन में विश्व में दूसरा स्थान है। हमारे देश में चीनी उद्योग का तीव्र गति से विकास हो रहा है। पिछले कुछ वर्षों से दक्षिणी-पश्चिमी राज्यों विशेषकर महाराष्ट्र में चीनी मिलों की संख्या बढ़ी है। इसका मुख्य कारण यहाँ के गन्ने में अधिक सुक्रोस की मात्रा का मिलना तथा इस क्षेत्र में अपेक्षाकृत ठण्डी जलवायु का होना आदि है, लेकिन इस उद्योग को कई चुनौतियों (समस्याओं) का भी सामना करना पड़ रहा है। चीनी उद्योग की प्रमुख समस्याएँ/चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं

  1. चीनी उद्योग का अल्पकालिक होना:
    चीनी उद्योग एक मौसमी उद्योग है। यह वर्ष में 4 से 7 महीने के लिए ही होता है। वर्ष के शेष महीनों में मिल व श्रमिक बेकार रहते हैं। इससे उद्योग को आर्थिक समस्या का सामना करना पड़ता है।
  2. पुरानी तथा अक्षम तकनीक का प्रयोग:
    भारतीय चीनी मिलों में पुरानी तथा अक्षम मशीनरी व तकनीक के प्रयोग से उत्पादन कम होता है।
  3. परिवहन की पर्याप्त सुविधा का अभाव:
    गन्ना उत्पादक क्षेत्रों से चीनी मिलों तक पर्याप्त परिवहन की सुविधाओं के अभाव के कारण गन्ना समय पर कारखानों में नहीं पहुंच पाता है।
  4. खोई का अधिकतम उपयोग न हो पाना।

प्रश्न 9.
लोहा और इस्पात उद्योग आधारभूत उद्योग क्यों कहलाता है?
अथवा
लोहा एवं इस्पात उद्योग को आधारभूत एवं भारी उद्योग क्यों कहा जाता है? कारण दीजिए।
उत्तर:
लोहा और इस्पात उद्योग एक खनिज आधारित उद्योग है। इस उद्योग को आधारभूत एवं भारी उद्योग इसलिए कहा जाता है क्योंकि

  1. यह उद्योग अन्य सभी भारी, हल्के एवं मध्यम उद्योगों को आधार प्रदान करता है। अन्य उद्योग इनसे बनी मशीनरी पर निर्भर हैं।
  2. इस्पात का उपयोग विभिन्न प्रकार के इंजीनियरिंग सामान, निर्माण सामग्री, रक्षा, चिकित्सा, टेलीफोन, वैज्ञानिक उपकरण, कृषि उपकरण, मशीनें एवं विभिन्न प्रकार की उपभोक्ता वस्तुओं के निर्माण के लिए किया जाता है।
  3. इस्पात के उत्पादन एवं खपत को प्रायः एक देश के विकास का पैमाना माना जाता है।
  4. यह एक भारी उद्योग है क्योंकि सभी कच्चे माल एवं तैयार माल भारी एवं अधिक परिमाण वाले होते हैं।

प्रश्न 10.
रसायन उद्योग अपने आप में एक बड़ा उपभोक्ता किस प्रकार है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में रसायन उद्योग तीव्र गति से विकसित हो रहा है। इसकी सकल घरेलू उत्पाद में भागीदारी लगभग 3 प्रतिशत है। एशिया में इस उद्योग का तीसरा तथा विश्व में आकार के हिसाब से 12 वाँ स्थान है। इसमें लघु और वृहत् दोनों तरह की विनिर्माण इकाइयाँ सम्मिलित हैं। इस उद्योग में कार्बनिक व अकार्बनिक दोनों प्रकार के रसायन निर्मित होते हैं। इसके साथ ही रसायन उद्योग अपने आप में एक बड़ा उपभोक्ता भी है, जो निम्न तथ्यों द्वारा स्पष्ट है

  1. आधारभूत रसायन एक प्रक्रिया द्वारा अन्य रसायन उत्पन्न करते हैं जिनका उपयोग औद्योगिक अनुप्रयोग, कृषि अथवा उपभोक्ता बाजारों के लिए किया जाता है।
  2. सल्फ्यूरिक अम्ल का प्रयोग उर्वरक उद्योग, रंग-रोगन, कृत्रिम वस्त्र, प्लास्टिक, गोंद एवं डाई आदि उद्योग में किया जाता है।
  3. नाइट्रिक अम्ल, क्षार, सोडा ऐश आदि का प्रयोग साबुन, शोधक या अपमार्जक एवं कागज में प्रयुक्त होने वाले रसायनों में किया जाता है।
  4. पेट्रो-रसायन का प्रयोग रंजक पदार्थ, दवाइयाँ, औषधि रसायनों के निर्माण में किया जाता है। इस तरह के उद्योगों का विकास तेल शोधनशालाओं अथवा पेट्रो-रसायन संयंत्रों के समीप के क्षेत्र में देखा जा सकता है।

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प्रश्न 11.
उद्योग जल को किस प्रकार प्रदूषित करते हैं? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
यद्यपि उद्योगों ने भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि एवं विकास में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है लेकिन इनके द्वारा बढ़ते भूमि, वायु, जल एवं पर्यावरण प्रदूषण को भी नकारा नहीं जा सकता।
(i) उद्योग चार प्रकार के प्रदूषण के लिए उत्तरदायी हैं:
(अ) वायु,
(ब) जल,
(स) भूमि,
(द) ध्वनि।

(ii) लेकिन वायु के साथ-साथ उद्योगों से जल भी सर्वाधिक प्रदूषित हो रहा है। उद्योग जल को निम्न प्रकार प्रदूषित करते हैं:

  1. उद्योगों द्वारा कार्बनिक एवं अकार्बनिक अपशिष्ट पदार्थों के नदी में छोड़ने से जल प्रदूषण फैलता है।
  2. जल के कुछ सामान्य प्रदूषकों में रंग, अपमार्जक, अम्ल, लवण तथा भारी धातुएँ; जैसे-सीसा, पारा, कीटनाशक, उर्वरक, कार्बनिक प्लास्टिक व रबर सहित कृत्रिम रसायन आदि सम्मिलित हैं।
  3. भारत में जल प्रदूषण के लिए उत्तरदायी प्रमुख अपशिष्टों में फ्लाई ऐश, फोस्फो-जिप्सम एवं लोहा-इस्पात की अशुद्धियाँ सम्मिलित हैं।
  4. सर्वाधिक प्रदूषक उद्योगों में कागज उद्योग, लुग्दी उद्योग, रसायन उद्योग, वस्त्र उद्योग, रँगाई उद्योग, तेल शोधनशालाएँ एवं इलेक्ट्रोप्लेटिंग उद्योग आदि हैं।

प्रश्न 12.
उद्योग तापीय प्रदूषण के लिए किस प्रकार उत्तरदायी हैं?
उत्तर:
उद्योगों ने देश की अर्थव्यवस्था के विकास के साथ-साथ पर्यावरण को भी प्रदूषित किया है। उद्योग कई प्रकार के प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं, जिनमें में से एक तापीय प्रदूषण है। उद्योग तापीय प्रदूषण के लिए निम्न प्रकार उत्तरदायी हैं

  1. जब कारखानों एवं तापघरों से गर्म जल को बिना ठंडा किये नदियों एवं तालाबों में छोड़ दिया जाता है तो जल में तापीय प्रदूषण होता है। इसका जलीय जीवों पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
  2. परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के अपशिष्ट एवं परमाणु शस्त्र उत्पादकं कारखानों से कैंसर, जन्मजात विकार एवं अकाल प्रसव जैसी बीमारियाँ उत्पन्न करते हैं।
  3. मलबे का ढेर विशेषकर काँच, हानिकारक रसायन, औद्योगिक बहाव, पैकिंग, लवण एवं कूड़ा-करकट आदि मृदा को अनुपजाऊ बनाते हैं। ये प्रदूषक वर्षाजल के साथ मिलकर जमीन से रिसते हुए भूमिगत जल तक पहुँच कर उसे भी प्रदूषित कर देते हैं।

प्रश्न 13.
यद्यपि उद्योगों ने भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि एवं विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है किन्तु पर्यावरणीय निम्नीकरण को भी बढ़ावा दिया है? संक्षेप में चर्चा कीजिए।
उत्तर:
उद्योगों ने भारत के आर्थिक विकास में बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया है परन्तु उद्योगों ने प्रदूषण एवं पर्यावरणीय निम्नीकरण को भी बढ़ावा दिया है, जो निम्न प्रकार से है

  1. उद्योगों से निकला धुआँ, कार्बन मोनोऑक्साइड व सल्फर डाइऑक्साइड आदि गैसें वायु को प्रदूषित करती हैं।
  2. उद्योगों द्वारा कार्बनिक व अकार्बनिक अपशिष्ट पदार्थों को नदियों एवं अन्य जल स्रोतों में लगातार छोड़ा जा रहा है। इससे बड़े पैमाने पर जल का प्रदूषण होता है।
  3. औद्योगिक तथा विनिर्माण गतिविधियाँ, कारखानों के उपकरण, जेनरेटर, लकड़ी चीरने के कारखाने, गैस यांत्रिकी व विद्युत ड्रिल आदि ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न करते हैं।
  4. औद्योगिक अपशिष्टों में बहुत अधिक विषैले धातुकण उपस्थित होते हैं जिनसे मृदा प्रदूषित होती है और उसकी उर्वरा शक्ति निरन्तर कम होती जाती है।
  5. जहरीले औद्योगिक अपशिष्ट जमीन से रिसते हुए भूमिगत जल तक पहुँचकर उसे भी प्रदूषित कर देते हैं।
  6. परमाणु ऊर्जा संयन्त्रों एवं परमाणु उत्पादक कारखानों एवं तापघरों ने जल को भी प्रदूषित किया है।

प्रश्न 14.
औद्योगिक अपशिष्टों का शोधन कितने चरणों में किया जा सकता है?
अथवा
उद्योगों से निष्कासित अपशिष्ट पदार्थों को किन-किन स्तरों पर उपचारित किया जाता है?
उत्तर:
औद्योगिक प्रदूषण से स्वच्छ जल को बचाने हेतु नदियों एवं तालाबों में गर्म जल एवं अपशिष्ट पदार्थों को प्रवाहित करने से पहले उनका शोधन करना अति आवश्यक है। औद्योगिक अपशिष्टों का शोधन निम्नलिखित तीन चरणों में किया जा सकता है

  1. यांत्रिक साधनों द्वारा प्राथमिक शोधन-इसके अन्तर्गत अपशिष्ट पदार्थों की छंटाई करना, उनके छोटे-छोटे टुकड़े करना, ढकना एवं तलछट जमाव आदि को सम्मिलित किया जाता है।
  2. उद्योगों से निष्कासित अपशिष्ट पदार्थों का जैविक प्रक्रियाओं द्वारा द्वितीयक शोधन किया जा सकता है।
  3. जैविक, रासायनिक व भौतिक प्रक्रियाओं द्वारा तृतीयक शोधन-इसके अन्तर्गत अपशिष्ट जल को पुनर्चक्रण के द्वारा पुनः प्रयोग के योग्य बनाया जाता है।

प्रश्न 15.
पर्यावरणीय निम्नीकरण की रोकथाम हेतु कोई छः उपाय बताइए।
उत्तर:
पर्यावरणीय निम्नीकरण की रोकथाम हेतु छः उपाय निम्नलिखित हैं

  1. नदियों व तालाबों में गर्म जल व अपशिष्ट पदार्थों को प्रवाहित करने से पहले उनका समुचित शोधन कर जल प्रदूषण को नियन्त्रित किया जा सकता है।
  2. कम भूमिगत जल स्तर वाले क्षेत्रों में उद्योगों द्वारा इसके अधिक जल निष्कासन पर कानूनी प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए।
  3. वायु में निलम्बित प्रदपण को कम करने के लिए कारखानों में ऊँची चिमनियाँ, इलेक्ट्रॉस्टैटिक अवक्षेपण, स्क्रबर उपकरण एवं गैसीय प्रदूपण पदार्थों को जड़त्वीय रूप से पृथक करने वाले उपकरण लगाये जाने चाहिए।
  4. कारखानों में कोयले की अपेक्षा तेल व गैस के प्रयोग से धएँ के निष्कासन में कमी लायी जा सकती है।
  5. जल की आवश्यकता पूर्ति हेतु वर्षाजल का संग्रहण किया जाना चाहिए।
  6. मशीनों एवं उपकरणों का उपयोग किया जा सकता है एवं जेनरेटरों में साइलेंसर लगाया जा सकता है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उद्योगों का विभिन्न आधारों पर वर्गीकरण कीजिए।
अथवा
उद्योगों के वर्गीकरण के विभिन्न आधारों की विस्तार से चर्चा कीजिए।
उत्तर:
उद्योगों का वर्गीकरण निम्नलिखित आधारों पर किया जा सकता है

  • प्रयुक्त कच्चे माल के स्रोत के आधार पर:
    1. कृषि आधारित उद्योग: वे उद्योग जिन्हें अपना कच्चा माल कृषि से प्राप्त होता है, कृषि आधारित उद्योग कहलाते हैं। उदाहरण: सूती वस्त्र, ऊनी वस्त्र, पटसन, रेशम वस्त्र, चीनी, चाय, कॉफी एवं वनस्पति तेल. उद्योग आदि।
    2. खनिज आधारित उद्योग: वे उद्योग जिन्हें अपना कच्चा माल खनिजों से प्राप्त होता है, खनिज आधारित उद्योग कहलाते हैं। उदाहरण: लोहा व इस्पात, सीमेंट, एल्यूमिनियम, मशीन, औजार एवं पेट्रो-रसायन उद्योग।
  • प्रमुख भूमिका के आधार पर:
    1. आधारभूत उद्योग: वे उद्योग जिनके उत्पादन या कच्चे माल पर दूसरे उद्योग निर्भर रहते हैं, आधारभूत उद्योग कहलाते हैं। उदाहरण: लोहा-इस्पात, ताँबा-प्रगलन एवं एल्यूमिनियम-प्रगलन उद्योग।
    2. उपभोक्ता उद्योग: वे उद्योग जो उपभोक्ताओं के सीधे उपयोग हेतु उत्पादन करते हैं, उपभोक्ता उद्योग कहलाते हैं। उदाहरण: चीनी, दंत-मंजन, कागज, पंखे, सिलाई मशीन आदि।
  • पूँजी निवेश के आधार पर:
    1. लघु उद्योग: यदि उद्योग में निवेशित पूँजी एक करोड़ रुपये से कम हो तो यह लघु उद्योग कहलाता है।
    2. वृहत उद्योग: यदि उद्योग में निवेशित पूँजी की सीमा एक करोड़ से अधिक हो तो उसे वृहत उद्योग कहते हैं।
  • स्वमित्व के आधार पर:
    1. उद्योगों से निकला धुआँ, कार्बन मोनोऑक्साइड व सल्फर डाइऑक्साइड आदि गैसें वायु को प्रदूषित करती हैं।
    2. उद्योगों द्वारा कार्बनिक व अकार्बनिक अपशिष्ट पदार्थों को नदियों एवं अन्य जल स्रोतों में लगातार छोड़ा जा रहा है। इससे बड़े पैमाने पर जल का प्रदूषण होता है।
    3. औद्योगिक तथा विनिर्माण गतिविधियाँ, कारखानों के उपकरण, जेनरेटर, लकड़ी चीरने के कारखाने, गैस यांत्रिकी व विद्युत ड्रिल आदि ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न करते हैं।
    4. औद्योगिक अपशिष्टों में बहुत अधिक विषैले धातुकण उपस्थित होते हैं जिनसे मृदा प्रदूषित होती है और उसकी उर्वरा शक्ति निरन्तर कम होती जाती है।
    5. जहरीले औद्योगिक अपशिष्ट जमीन से रिसते हुए भूमिगत जल तक पहुँचकर उसे भी प्रदूषित कर देते हैं।
    6. परमाणु ऊर्जा संयन्त्रों एवं परमाणु उत्पादक कारखानों एवं तापघरों ने जल को भी प्रदूषित किया है।

देवबंद वाले किसी अनु का उदाहरण दें - devaband vaale kisee anu ka udaaharan den

प्रश्न 14.
औद्योगिक अपशिष्टों का शोधन कितने चरणों में किया जा सकता है?
अथवा
उद्योगों से निष्कासित अपशिष्ट पदार्थों को किन-किन स्तरों पर उपचारित किया जाता है?
उत्तर:
औद्योगिक प्रदूषण से स्वच्छ जल को बचाने हेतु नदियों एवं तालाबों में गर्म जल एवं अपशिष्ट पदार्थों को प्रवाहित करने से पहले उनका शोधन करना अति आवश्यक है। औद्योगिक अपशिष्टों का शोधन निम्नलिखित तीन चरणों में किया जा सकता है

  1. यांत्रिक साधनों द्वारा प्राथमिक शोधन-इसके अन्तर्गत अपशिष्ट पदार्थों की छंटाई करना, उनके छोटे-छोटे टुकड़े करना, ढकना एवं तलछट जमाव आदि को सम्मिलित किया जाता है।
  2. उद्योगों से निष्कासित अपशिष्ट पदार्थों का जैविक प्रक्रियाओं द्वारा द्वितीयक शोधन किया जा सकता है।
  3. जैविक, रासायनिक व भौतिक प्रक्रियाओं द्वारा तृतीयक शोधन-इसके अन्तर्गत अपशिष्ट जल को पुनर्चक्रण के द्वारा पुनः प्रयोग के योग्य बनाया जाता है।

प्रश्न 15.
पर्यावरणीय निम्नीकरण की रोकथाम हेतु कोई छउपाय बताइए।
उत्तर:
पर्यावरणीय निम्नीकरण की रोकथाम हेतु छः उपाय निम्नलिखित हैं

  1. नदियों व तालाबों में गर्म जल व अपशिष्ट पदार्थों को प्रवाहित करने से पहले उनका समुचित शोधन कर जल प्रदूषण को नियन्त्रित किया जा सकता है।
  2. कम भूमिगत जल स्तर वाले क्षेत्रों में उद्योगों द्वारा इसके अधिक जल निष्कासन पर कानूनी प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए।
  3. वायु में निलम्बित प्रदपण को कम करने के लिए कारखानों में ऊँची चिमनियाँ, इलेक्ट्रॉस्टैटिक अवक्षेपण, स्क्रबर उपकरण एवं गैसीय प्रदूपण पदार्थों को जड़त्वीय रूप से पृथक करने वाले उपकरण लगाये जाने चाहिए।
  4. कारखानों में कोयले की अपेक्षा तेल व गैस के प्रयोग से धएँ के निष्कासन में कमी लायी जा सकती है।
  5. जल की आवश्यकता पूर्ति हेतु वर्षाजल का संग्रहण किया जाना चाहिए।
  6. मशीनों एवं उपकरणों का उपयोग किया जा सकता है एवं जेनरेटरों में साइलेंसर लगाया जा सकता है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उद्योगों का विभिन्न आधारों पर वर्गीकरण कीजिए।
अथवा
उद्योगों के वर्गीकरण के विभिन्न आधारों की विस्तार से चर्चा कीजिए। .
उत्तर:
उद्योगों का वर्गीकरण निम्नलिखित आधारों पर किया जा सकता है

  • प्रयुक्त कच्चे माल के स्रोत के आधार पर:
    1. कृषि आधारित उद्योग: वे उद्योग जिन्हें अपना कच्चा माल कृषि से प्राप्त होता है, कृषि आधारित उद्योग कहलाते हैं। उदाहरण- सूती वस्त्र, ऊनी वस्त्र, पटसन, रेशम वस्त्र, चीनी, चाय, कॉफी एवं वनस्पति तेल. उद्योग आदि।
    2. खनिज आधारित उद्योग: वे उद्योग जिन्हें अपना कच्चा माल खनिजों से प्राप्त होता है, खनिज आधारित उद्योग कहलाते हैं। उदाहरण- लोहा व इस्पात, सीमेंट, एल्यूमिनियम, मशीन, औजार एवं पेट्रो-रसायन उद्योग।
  • प्रमुख भूमिका के आधार पर:
    1. आधारभूत उद्योग: वे उद्योग जिनके उत्पादन या कच्चे माल पर दूसरे उद्योग निर्भर रहते हैं, आधारभूत उद्योग कहलाते हैं। उदाहरण- लोहा-इस्पात, ताँबा-प्रगलन एवं एल्यूमिनियम-प्रगलन उद्योग।
    2. उपभोक्ता उद्योग: वे उद्योग जो उपभोक्ताओं के सीधे उपयोग हेतु उत्पादन करते हैं, उपभोक्ता उद्योग कहलाते हैं। उदाहरण- चीनी, दंत-मंजन, कागज, पंखे, सिलाई मशीन आदि।
  • पूँजी निवेश के आधार पर:
    1. लघु उद्योग: यदि उद्योग में निवेशित पूँजी एक करोड़ रुपये से कम हो तो यह लघु उद्योग कहलाता है।
    2. वृहत उद्योग: यदि उद्योग में निवेशित पूँजी की सीमा एक करोड़ से अधिक हो तो उसे वृहत उद्योग कहते हैं।
  • स्वामित्व के आधार पर:
    1. उद्योगों से निकला धुआँ, कार्बन मोनोऑक्साइड व सल्फर डाइऑक्साइड आदि गैसें वायु को प्रदूषित करती हैं।
    2. उद्योगों द्वारा कार्बनिक व अकार्बनिक अपशिष्ट पदार्थों को नदियों एवं अन्य जल स्रोतों में लगातार छोड़ा जा रहा है। इससे बड़े पैमाने पर जल का प्रदूषण होता है।
    3. औद्योगिक तथा विनिर्माण गतिविधियाँ, कारखानों के उपकरण, जेनरेटर, लकड़ी चीरने के कारखाने, गैस यांत्रिकी व विद्युत ड्रिल आदि ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न करते हैं।
    4. औद्योगिक अपशिष्टों में बहुत अधिक विषैले धातुकण उपस्थित होते हैं जिनसे मृदा प्रदूषित होती है और उसकी उर्वरा शक्ति निरन्तर कम होती जाती है।
    5. जहरीले औद्योगिक अपशिष्ट जमीन से रिसते हुए भूमिगत जल तक पहुँचकर उसे भी प्रदूषित कर देते हैं।
    6. परमाणु ऊर्जा संयन्त्रों एवं परमाणु उत्पादक कारखानों एवं तापघरों ने जल को भी प्रदूषित किया है।
  • कच्चे तथा तैयार माल की मात्रा व भार के आधार पर:
    1. भारी उद्योग: ये उद्योग भारी व अधिक मात्रा में कंच्चे माल का उपयोग कर भारी उत्पाद तैयार करते हैं। उदाहरण- लीहा इस्पात उद्योग, सीमेंट उद्योग।
    2. हल्के उद्योग: ये उद्योग कम भार वाले कच्चे माल का प्रयोग कर हल्के तैयार माल का उत्पादन करते हैं। उदाहरण- विद्युत सामान उद्योग, घड़ी उद्योग आदि।

प्रश्न 2.
भारत में सूती वस्त्र उद्योग के विकास का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सूती वस्त्र उद्योग भारत का सबसे बड़ा कृषि आधारित परम्परागत उद्योग है। प्राचीनकाल में सूती वस्त्र हाथ से कताई एवं हथकरघा बुनाई तकनीकों से बनाये जाते थे। 18 वी शताब्दी में विद्युतीय करघों का उपयोग प्रारम्भ हो गया। औपनिवेशिक काल में हमारे परम्परागत उद्योगों को बहुत हानि हुई, क्योंकि हमारे उद्योग इंग्लैण्ड के मशीन निर्मित वस्त्रों से प्रतियोगिता करने में असमर्थ थे। भारत में सूती वस्त्र उद्योग का विकास-भारत में सर्वप्रथम आधुनिक सूती वस्त्र मिल की स्थापना सन् 1854 ई. में मुम्बई में की गयी।
1. सूती वस्त्र उद्योग के स्थानीयकरण के कारक:
आरम्भिक वर्षों में सूती वस्त्र उद्योग का विकास महाराष्ट्र एवं गुजरात के कपास उत्पादक क्षेत्रों तक ही सीमित था। कपास की उपलब्धता, बाजार, परिवहन, बन्दरगाहों की समीपता, नमीयुक्त जलवायु एवं श्रम आदि कारकों ने सूती वस्त्र उद्योग के स्थानीयकरण को बढ़ावा दिया। चूँकि कपास एक शुद्ध कच्चा माल है जिसका वजन निर्माण प्रक्रिया में घटता नहीं है।

2. अतः अन्य कारक:
जैसे-करघों को चलाने के लिए शक्ति, श्रमिक, पूँजी अथवा बाजार आदि उद्योग की स्थिति को निर्धारित करते हैं। वर्तमान में इस उद्योग को बाजार में या बाजार के निकट स्थापित करने की प्रवृत्ति पायी जाती है।

3. उत्पादक राज्य:
भारत में सूती धागों की कताई का कार्य महाराष्ट्र, गुजरात व तमिलनाडु राज्यों में मुख्य रूप से होता है, लेकिन सूती, रेशम, जरी एवं कशीदाकारी आदि की बुनाई में परम्परागत कौशल एवं डिज़ाइन देने के लिए बुनाई अत्यधिक विकेन्द्रित है। भारत में सूती वस्त्र उत्पादन में महाराष्ट्र राज्य का प्रथम स्थान है।

इस राज्य में इस उद्योग के विकास का मुख्य कारण मुम्बई के पृष्ठ प्रदेश में कपास उत्पादक क्षेत्रों का होना है। गुजरात द्वितीय एवं तमिलनांडु सूती वस्त्र उत्पादन में तृतीय स्थान पर है। अन्य सूती वस्त्र उत्पादक राज़्य उत्तर प्रदेश, कर्नाटक तेलंगाना आन्ध्र प्रदेश एवं पशिचम बंगाल आदि हैं।

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अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार:
भारत में सूती वस्त्रों का निर्यात भी किया जाता है। भारत से सूती वस्त्रों का निर्यात जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैण्ड, फ्रांस, पूर्वी यूरोपीय देश, श्रीलंका, नेपाल, सिंगापुर एवं अफ्रीकी देशों को किया जाता है।

देवबंद वाले किसी अनु का उदाहरण दें - devaband vaale kisee anu ka udaaharan den

प्रश्न 3.
भारत में लोहा और इस्पात उद्योग का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लोहा और इस्पात उद्योग एक आधारभूत उद्योग है, क्योंकि अन्य सभी भारी, हल्के एवं मध्यम उद्योग इससे बनी मशीनरी पर निर्भर हैं। वर्तमान युग को इस्पात युग कहा जाता है। लौह इस्पात उद्योग से ही सभी उद्योगों में कार्यरत मशीनों, परिवहन के साधनों एवं इंजीनियरिंग का सामान तैयार किया जाता है।
1. लोहा और इस्पात उद्योग के विकास की दशाएँ:
इस्पात के उत्पादन एवं खपत को प्रायः एक देश के विकास का पैमाना माना जाता है। लोहा और इस्पात उद्योग एक भारी उद्योग है क्योंकि प्रयुक्त कच्चा एवं तैयार माल दोनों ही भारी व स्थूल होते हैं तथा इसके लिए अधिक परिवहन लागत की आवश्यकता होती है।

इस उद्योग के लिए लौह अयस्क एवं कोकिंग कोयले के अतिरिक्त चूना-पत्थर, डोलोमाइट, मैंगनीज एवं अग्निसह मृत्तिका आदि कच्चे माल की आवश्यकता होती है। इस उद्योग के लिए लौह अयस्क, कोकिंग कोयले एवं चूना पत्थर का अनुपात लगभग 4 : 2 : 1 का है। इस उद्योग की स्थापना में सक्षम परिवहन की आवश्यकता होती है।

2. लोहा और इस्पात निर्माण की प्रक्रिया:

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3. लोहा इस्पात उद्योग का स्थानीयकरण:
भारत में लोहा और इस्पात उद्योग का सर्वाधिक केन्द्रीकरण छोटा नागपुर के पठारी क्षेत्र में हुआ है। छोटा नागपुर के पठारी क्षेत्र में इस उद्योग के विकास के लिए अधिक अनुकूल सापेक्षिक परिस्थितियाँ हैं। इनमें लौह अयस्क की कम लागत, उच्च किस्म के कच्चे माल की निकटता, सस्ते श्रमिक एवं स्थानीय बाजार में इसकी माँग की विशाल सम्भाव्यता आदि हैं।

4. भारत में लोहा और इस्पात के कारखाने:
वर्तमान में भारत में 10 मुख्य संकलित उद्योग एवं अनेक छोटे इस्पात संयन्त्र हैं। भारत में लोहा इस्पात उद्योग की प्रमुख इकाइयाँ निम्नलिखित हैं

  1. टाटा लौह इस्पात कम्पनी (टिस्को)-जमशेदपुर (झारखण्ड),
  2. भारतीय लोहा और इस्पात कम्पनी (इसरो)-हीरापुर, कुल्टी व बर्नपुर,
  3. विश्वेश्वरैया, आयरन एण्ड स्टील वर्क्स-भद्रावती (कर्नाटक),
  4. राउरकेला इस्पात संयन्त्र-राउरकेला (ओडिशा),
  5. भिलाई इस्पात संयन्त्र, भिलाई (छत्तीसगढ़),
  6. दुर्गापुर इस्पात संयन्त्र-दुर्गापुर (प. बंगाल),
  7. बोकारो इस्पात संयन्त्र-बोकारो (झारखण्ड),
  8. सलेम इस्पात संयन्त्र-सेलम (तमिलनाडु),
  9. विजाग इस्पात संयन्त्र- विशाखापट्टनम् (आन्ध्र प्रदेश),
  10. विजयनगर इस्पात संयन्त्र-विजयनगर (कर्नाटक)। सार्वजनिक क्षेत्र के लगभग समस्त. कारखाने अपने इस्पात को स्टील अथॉरिटी ऑफ इण्डिया (सेल-SAIL) के माध्यम से बेचते हैं जबकि टिस्को (TISCO) टाटा स्टील के नाम से अपने उत्पाद को स्वयं बेचती है।

5. उत्पादन एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार:
वर्ष 2019 में भारत 111.5 मिलियन टन इस्पात का विनिर्माण करके विश्व में कच्चे इस्पात उत्पादक देशों में दूसरे स्थान पर था। यह स्पंज लौह का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। सन् 1950 के दशक में भारत एवं चीन ने लगभग एक समान मात्रा में इस्पात उत्पादित किया था। वर्तमान समय में चीन इस्पात का सबसे बड़ा उत्पादक एवं खपत वाला देश है।

6. लोहा और इस्पात उद्योग की समस्याएँ:
यद्यपि भारत विश्व का एक महत्वपूर्ण लोहा और इस्पात उत्पादक देश है लेकिन हम इसके पूर्ण सम्भाव्य का विकास नहीं कर पाये हैं। इसके प्रमुख कारण निम्न हैं

  1. उच्च लागत एवं कोकिंग कोयले की सीमित उपलब्धता।
  2. न्यून श्रमिक उत्पादकता।
  3. ऊर्जा की अनियमित आपूर्ति।
  4. अविकसित अवसंरचना आदि।

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प्रश्न 4.
जल प्रदूषण के क्या कारण हैं? इसे दूर करने के उपाय सुझाइए।
उत्तर:

  • जल प्रदूषण के निम्नलिखित कारण हैं
    1. औद्योगिक कारखानों की गन्दगी से नदियों का जल अशुद्ध हो जाता है।
    2. नदियों में मृत जानवरों की लाशों तथा मृत व्यक्तियों की अस्थियों से जल अशुद्ध हो जाता है।
    3. मल-मूत्र का त्याग करने से व पशुओं को नदियों में नहलाने से जल दूषित हो जाता है।
    4. नदी के किनारे के खेतों में दी गई खाद से भी जल दूषित होता है।
    5. नदी व तालाबों में चारों ओर धूल व पेड़ों की पत्तियाँ आदि पड़ी रहती हैं जिससे जल प्रदूषित होता है।
    6. तालाब का जल स्थिर होता है अत: उसमें कीड़े व मकोड़ों की संभावना काफी रहती है इसलिए जल प्रदूषित होता है।
  • (जल प्रदूषण को दूर करने के उपाय:
    1. जो शहर नदियों के किनारे बसे हुए हैं, उन शहरों की जल आपूर्ति का मुख्य साधन नदियाँ हैं। अत: उनमें गन्दे नालों को गिरने से रोकना चाहिए।
    2. जहाँ हम जल का संग्रह करें वहाँ पर नहाने, धोने, जानवर नहलाने व गन्दे नाले मिलाने की मनाही होनी चाहिए।
    3. नदियों में कारखानों के रसायनयुक्त पानी को बहाने से रोकना चाहिए।
    4. तालाब ऐसे स्थान पर बनाने चाहिये जिसके आस-पास श्मशान, गन्दे पानी के गड्ढे, शौचालय व नालियाँ आदि न हों।
    5. तालाबों का बाहरी किनारा ऊँचा करवा देना चाहिए; जिससे बाहर का गन्दा जल उनमें न पहुँच पाये।
    6. तालाबों व नदियों में नहाने व कपड़े धोने पर रोक लगानी चाहिए; जिससे जल प्रदूषित न हो सके।
    7. नदियों व तालाबों के किनारे पर काँटों के तारों की रोक लगा देनी चाहिये; जिससे उनमें जानवर प्रवेश न कर सकें।
    8. प्रत्येक घर में प्राकृतिक जल संग्रहण हेतु व्यवस्था होनी चाहिए।
    9. पम्प द्वारा पानी लेने की व्यवस्था करनी चाहिए।
    10. तालाब में लाल दवाई का प्रयोग करते रहना चाहिए।

मानचित्र सम्बन्धी प्रश्न

प्रश्न 1.
दिए गए भारत के रेखा मानचित्र का अध्ययन कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

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(i) किन्हीं चार सूती वस्त्र केन्द्रों के नाम लिखिए।
उत्तर:
मुम्बई, अहमदाबाद, कानपुर, मदुरई।

(ii) भारत के दो ऊनी वस्त्र केन्द्रों के नाम बताइए।
उत्तर:
मुम्बई, लुधियाना।

(iii) भारत के किन्हीं दो रेशम वस्त्र केन्द्रों के नाम बताइए।
उत्तर:
श्रीनगर, मैसूर।

(iv) किन दो राज्यों में सूती वस्त्र मिलों की अधिकतम संख्या है।
उत्तर:
महाराष्ट्र, गुजरात।

(v) दिए गये भारत के रेखा मानचित्र में निम्न को अंकित कीजिए
उत्तर:

  1. सूती वस्त्र उद्योग- पोरबन्दर।
  2. ऊनी वस्त्र उद्योग-बीकानेर।

(vi) भारत के रेखा मानचित्र में निम्नलिखित को दर्शाइए तथा उसका नाम लिखिए
उत्तर:
(क) इंदौर – सूती वस्त्र उद्योग
(ख) अहमदाबाद – सूती वस्त्र उद्योग केन्द्र
(ग) मुरादाबाद – सूती वस्त्र उद्योग
(घ) कोयम्बटूर – सूती वस्त्र उद्योग

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प्रश्न 2.
दिए गए भारत के रेखा मानचित्र का अध्ययन कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए(i) छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, कर्नाटक एवं झारखण्ड प्रत्येक राज्य के एक-एक लोहा-इस्पात संयंत्र का नाम लिखिए।
(ii) निम्नलिखित राज्यों के लौह एवं इस्पात केन्द्रों को मानचित्र में पहचानें
(अ) कर्नाटक का एक इस्पात केन्द्र
(ब) छत्तीसगढ़ का एक इस्पात केन्द्र।
(iii) भारत के रेखा मानचित्र में निम्नलिखित को अंकित कीजिए:
(क) राउरकेला।

(iv) भारत के रेखा-मानचित्र में निम्नलिखित को दर्शाइए तथा उसका नाम लिखिए
1. भिलाई – लोहा और इस्पात संयंत्र
2. विजयनगर — लोह व इमामोद्योगिक केन्द्र
3. जमशेदपुर — लोहा और समान संयंत्र
4. भद्रावती – लोहा एवं इस्पात संयंत्र
5. दुर्गापुर – लोहा और इस्पात संयंत्र
6. बोकारो – लोहा और इस्पात संयंत्र ।

(v) दिए गए भारत के रेखा-मानचित्र में निम्नलिखित को अंकित कीजिए
सेलम, दुर्गापुर

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उत्तर:
विभिन्न राज्यों में स्थित लोहा और इस्पात संयंत्र:

  1. छत्तीसगढ़-भिलाई, पश्चिम बंगाल दुर्गापुर, बर्नपुर, तमिलनाडु सेलम, कर्नाटक भद्रावती, विजय नगर, झारखण्ड बोकारो, जमशेदपुर।
  2. (अ) कर्नाटक का एक इस्पात केन्द्र भद्रावती।
    (ब) छत्तीसगढ़ का एक इस्पात केन्द्र भिलाई।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित को भारत के मानचित्र में अंकित कीजिए।
(अ) सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क:
मोहाली, नोएडा, जयपुर, गांधीनगर, दौर, मुम्बई, पुणे, कोलकाता, भुवनेश्वर, विशाखापत्तनम्, हैदराबाद, बेंगलूरु, मैसूरु, चेन्नई और थिरूवनंथपुरम।
अथवा
(ब) निम्नलिखित को भारत के राजनीतिक रेखा मानचित्र पर दर्शाइए और उसका नाम लिखिए। विशाखापट्टनम- सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी पार्क।
(स) निम्नलिखित को भारत के राजनीतिक रेखा मानचित्र पर दर्शाइए और उसका नाम लिखिए। पश्चिमी बंगाल का सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क
उत्तर:
कोलकाता

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तालिका सम्बन्धी प्रश्न

प्रश्न 1.
उद्योग-बाजार सम्बन्ध को दर्शाने वाली तालिका के रिक्त 1 और 2 स्थानों की पूर्ति कीजिए।
उत्तर:

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1. कारखाना, 2. पूँजी।

प्रश्न 2.
उद्योग की आदर्श अवस्थिति दर्शाने वाली तालिका के रिक्त स्थान 1 की पूर्ति कीजिए।

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उत्तर:
उस स्थान पर कच्च माल प्राप्त करने की लगत ।

प्रश्न 3.
वस्त्र उद्योग में अतिरिक्त मूल्य उत्पाद दर्शाने वाली तालिका के रिक्त 1 व 2 स्थानों की पूर्ति कीजिए। उत्तर वस्त्र उद्योग में अतिरिक्त मूल्य उत्पाद:

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उत्तर:
1. रेशा उत्पादन, 2. कपड़ा।

प्रश्न 4.
इस्पात निर्माण प्रक्रिया दर्शाने वाली तालिका के रिक्त स्थान 1 व 2 की पूर्ति कीजिए।
उत्तर:
इस्पात निर्माण प्रक्रिया:

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उत्तर:
1. कच्चे माल का कारखानों तक परिवहन,
2. रोलिंग, प्रेसिंग, ढलाई और गढ़ाई।

प्रश्न 5.
एल्यूमिनियम उद्योग में विनिर्माण की प्रक्रिया को आरेख द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
एल्यूमिनियम उद्योग में विनिर्माण की प्रक्रिया

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JAC Class 10 Social Science Important Questions

JAC Board Class 10th Social Science Important Questions Geography Chapter 5 खनिज और ऊर्जा संसाधन

वस्तुनिष्ठ

प्रश्न 1.
विभिन्न खनिजों के योग से बनी चट्टानों से निर्मित है
(क) भू-पर्पटी
(ख) वायुमण्डल
(ग) जलमण्डल
(घ) अंतरिक्ष
उत्तर:
(क) भू-पर्पटी

2. निम्न में से धात्विक खनिज का उदाहरण है
(क) लौह अयस्क
(ख) अभ्रक
(ग) कोयला
(घ) नमक।
उत्तर:
(क) लौह अयस्क

3. सर्वोत्तम प्रकार का लौह अयस्क है
(क) मैग्नेटाइट
(ख) हेमेटाइट
(ग) सिडेराइट
(घ) लिमोनाइट।
उत्तर:
(क) मैग्नेटाइट

4. निम्न में से भारत का सबसे पुराना तेल उत्पादक राज्य है
(क) गुजरात
(ख) राजस्थान
(ग) असम
(घ) बिहार।
उत्तर:
(ग) असम

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5. पृथ्वी के आन्तरिक भागों से ताप का प्रयोग कर उत्पन्न की जाने वाली विद्युत को कहा जाता है
(क) बायो गैस
(ख) ज्वारीय ऊर्जा
(ग) भूतापीय ऊर्जा
(घ) पवन ऊर्जा।
उत्तर:
(ग) भूतापीय ऊर्जा

6. अणुओं की संरचना को बदलने से किस प्रकार की ऊर्जा प्राप्त होती है?
(क) सौर ऊर्जा
(ख) पवन ऊर्जा
(ग) ज्वारीय
(घ) परमाणु ऊर्जा
उत्तर:
(घ) परमाणु ऊर्जा

7. हजीरा – विजयपुर – जगदीशपुर गैस पाइप लाइन की सही लम्बाई कितनी है?
(क) 1400 किमी.
(ख) 1700 किमी.
(ग) 1900 किमी.
(घ) 2100 किमी.
उत्तर:
(ख) 1700 किमी.

8. भारत का सबसे बड़ा बॉक्साइट उत्पादक राज्य कौन-सा है?
(क) राजस्थान
(ख) ओडिशा
(ग) उत्तर-प्रदेश
(घ) गुजरात
उत्तर:
(ख) ओडिशा

9. रावतभाटा आणविक ऊर्जा संयंत्र निम्न में से किस राज्य में स्थित है?
(क) गुजरात
(ख) केरल
(ग) पंजाब
(घ) राजस्थान
उत्तर:
(क) गुजरात

रिक्त स्थान सम्बन्धी प्रश्न

निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:
1. खनिज सामान्यतः………में पाए जाते हैं।
उत्तर:
अयस्कों,

2. नमक, मैगनीशियम………में मिलने वाले खनिज हैं।
उत्तर:
समुद्र,

3. ……….भारत का सबसे बड़ा मैंगनीज उत्पादक राज्य है।
उत्तर:
ओडिशा,

4. ……….सीमेंट उद्योग का एक आधारभूत कच्चा माल है।
उत्तर:
चूना पत्थर,

5. मुम्बई हाई, गुजरात तथा असम भारत के प्रमुख………. उत्पादक क्षेत्र हैं।
उत्तर:
पेट्रोलियम।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वर्तमान तक कितने खनिजों की पहचान की जा चुकी है?
उत्तर:
वर्तमान तक लगभग 2000 से अधिक खनिजों की पहचान की जा चुकी है।

प्रश्न 2.
भू-वैज्ञानिक किन विशेषताओं के आधार पर खनिजों का वर्गीकरण करते हैं?
उत्तर:
खनिजों का रंग, कठोरता, चमक, घनत्व एवं विविध क्रिस्टलों के आधार पर।

प्रश्न 3.
लौह खनिज (धातु) किसे कहते हैं?
उत्तर:
वे खनिज जिनमें लौह की मात्रा अधिक होती है, लौह खनिज या लौह धातु कहलाते हैं।

प्रश्न 4.
अलौह धातु किसे कहते हैं?
उत्तर:
वे खनिज जिनमें लोहे का अंश नहीं होता, अलौह धातु कहलाते हैं।

प्रश्न 5.
‘अयस्क’ शब्द की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
खनिज में अन्य अवयवों अथवा तत्वों के मिश्रण या संचयन के लिए अयस्क शब्द का प्रयोग किया जाता है।

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प्रश्न 6.
उस शैल का नाम बताइए जिसमें कोयला पाया जाता है।
उत्तर:
अवसादी चट्टानों में कोयला पाया जाता है।

प्रश्न 7.
शुष्क प्रदेशों में वाष्पीकरण से किन-किन खनिजों का निर्माण होता है?
उत्तर:
शुष्क प्रदेशों में वाष्पीकरण से निम्न खनिजों का निर्माण होता है

  1. जिप्सम,
  2. पोटाश,
  3. नमक,
  4. सोडियम।

प्रश्न 8.
प्लेसर निक्षेप किसे कहते हैं?
उत्तर:
जो खनिज पहाड़ियों के आधार एवं घाटी तल की रेत में जलोढ़ जमाव के रूप में पाये जाते हैं, प्लेसर निक्षेप कहलाते हैं।

प्रश्न 9.
भारत में लौह अयस्क की किन्हीं दो पेटियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
भारत में लॉह अयस्क की दो प्रमुख पेटियाँ हैं:

  1. ओडिशा-श्शारखण्ड फेटी,
  2. दुर्ण-बस्तर-चन्द्रपुर पेटी।

प्रश्न 10.
किस पत्तन से लौह अयस्क जापान और कोरिया को निर्यांत किया जाता है?
उत्तर:
विशाखापट्टनम पत्तन से’ लौह अयस्क जापान और कोरिया को निर्यात किया जाता है।

प्रश्न 11.
बेलाडिला लौह अयस्क खानें किस राज़्य में स्थित है?
उत्तर:
छत्तीसगढ़ राज्य में।

प्रश्न 12.
भारत में मैंगनीज का सक्रसे ब्रड़ा उत्पादक राज्य कौन सा है? राज्य कौन सा है?
उत्तर:
भारत में मैंगनीज का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य ओडिशा है।

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प्रश्न 13.
किन्हीं दो अलौह खनिजों के नाम बताइए।
उत्तर:
ताँबा, बौक्साइट।

प्रश्न 14.
राजस्थान की कौनसी खदानें ताबे के लिए प्रसिद्ध हैं?
उत्तर:
खोतड़ी खादानें।

प्रश्न 15.
एल्युमिनियम किस अयस्क से प्राप्त किया जाता है?
उत्तर:
एल्युमिनियम बॉक्साइट अयस्क से प्राप्त किया ज्ञाता है। आता है।

प्रश्न 16.
भारत में बॉक्साइट के निक्षेप कहाँ पाये जाते हैं?
उत्तर:

  1. अमरकंटक पठार,
  2. मैकाल पहाड़ियाँ,
  3. बिलासपुर-कटनी के पठारी क्षेत्र।

प्रश्न 17.
कौन-सा खनिज प्लेटों अथवा पत्रण क्रम में पाया जाता है?
उत्तर:
अभ्रक प्लेरों अथया पत्रण क्रम में पाया जाता है।

प्रश्न 18.
भारत के दो अभ्रक उत्पादक राज्यों के नाम लिखिए।
उत्तर:
भारत में अभ्रक उत्पादक राज्य:  बिहार,  झारखण्ड

प्रश्न 19.
चूना पत्थर किस उद्योग का आधारभूत कच्चा माल है? कच्चा माल है?
उत्तर:
चूना पत्थर सीमेंट उद्योग का आधारभूत कच्चा माल है।

प्रश्न 20.
परम्परागत ऊर्जा संसाधनों के कोई चार उदाहरण बताइए।
उत्तर:

  1. लकड़ी,
  2. कोयला,
  3. पेट्रोलियम,
  4. प्राकृतिक गैस।

प्रश्न 21.
ऊर्जा के गैर-परम्परागत ऊर्जा संसाथनों के चार उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. सौर ऊर्जा,
  2. पवन ऊर्जा,
  3. ज्वारीय कर्जा तथा
  4. बायो गैस।

प्रश्न 22.
लिग्नाइट के पर्याप्त भण्डार कहाँ मिलते हैं?
उत्तर:
लिग्नाइट के पर्याप्त ।ण्डार तमिलनाडु के नैवेली में मिलते हैं।

प्रश्न 23.
निम्न कोटि का कोयला कौन-सा है?
उत्तर:
लिग्नाइट कोयल निम्न कोटि का कोयला है।

प्रश्न 24.
किन दो प्रमुख भूर्गर्भिक युगों की शैलों में कोयला पाया जाता है? नाम बताइए।
उत्तर:
भारत में कोयला गोंडवाना एवं टरीशियरी भूगर्भिक युगों की शौलों में पाया जाता है।

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प्रश्न 25.
भारत की किन नदी घाटियों में कोयले के जमाय पाये जाते है?
उत्तर:

  1. दामोदर
  2. गोदावरी
  3. महानदी
  4. सोन
  5. वर्धा नदी घाटियों में कोयले के जमाव पाये जाते हैं।

प्रश्न 26.
टरशियरी कोयला के प्रमुख प्राप्त क्षेत्र कौन-कौन से है?
उत्तर:
मेघालय, असम, अरुणाचल प्रदेश और नागालैण्ड।

प्रश्न 27.
भारत में पेट्रोलियम किस युग की चट्टानों से प्राप्त होता है?
उत्तर:
भारत में पेट्रोलियम टरशियरी युग की चट्टानों से प्राप्त होता है।

प्रश्न 28.
मुंबई हाई क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर:
मुंबई हाई भारत का सबसे बड़ा एवं महत्वपूर्ण खनिज तेल उत्पादक क्षेत्र है।

प्रश्न 29.
भारत्त का सबसे पुराना तेल उत्पादक राज्य कौन सा है?
उत्तर:
असम भारत का सबसे, पुराना तेल उत्पादक राज्य है।

प्रश्न 30.
स्तम्भ A और B में से सही विकल्प का चयन कीजिए:

A B
(क) चन्द्रपुर तापीय ऊर्जा संयंख्र ओडिशा (1) ओडिशा
(ख) मयूरभंज लौह अयस्क की अमरकंटक खान (2) अमरकंटक
(ग) कलोल तेल क्षेत्र (3) गुजरात
(घ) बॉंक्साइट खदान (4) गारख्नण्ड

उत्तर:
(ग) कलोल तेल क्षेत्र – गुजरात

प्रश्न 31.
प्राकृतिक गैस को पयावाएण के अनुकूल इंधन क्यों माना जाता है?
उत्तर:
कार्बन ड्वाइऑक्साइड के कम उत्सर्जन के कारण प्राकृतिक गैस को पर्यावरण के अनुकूल इैधन माना जाता है।

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प्रश्न 32.
किस नदी बेसिन में प्राकृतिक गैस के विशाल भण्डार खोजे गये हैं?
उत्तर:
कुण्ण-गोदावरी नदी बेसिन में प्राकृतिक गैस के विशाल भण्डार खोजे गये हैं।

प्रश्न 33.
संपीडित प्राकृतिक गैस (C.N.G) का एक उपयोग बताइए।
उत्तर:
मोटर गाड़ियों में तरल इंधन के रूप में संपीडित प्राकृतिक गैस का उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 34.
विद्युत कितने प्रकार से उत्पन्न की जाती है?
उत्तर:
विद्युत प्रवाही जल से या अन्य ईंधन, जैसे-कोयला, पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस को जलाने से उत्पन्न की आती है।

प्रश्न 35.
भारत में विद्युत ऊर्जा उत्यन्न करने वाली किन्हीं दो बहुउछ्देशीय परियोजनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. भाखड़ा नाँगल परियोजना,
  2. दामोदर घाटी परियोजना।

प्रश्न 36.
परमाणु ऊर्जा कैसे प्राप्त की जाती है?
उत्तर:
परमाणु ऊज्जी अणुओं की संरचना को बदलने से प्राप्त की जाती है।

प्रश्न 37.
परमाणु ऊर्जा के दो प्रमुख खनिज कौन से है?
उत्तर:
बूरेनियम तथा. थोरियम। प्रश्न 38. भारत में यूरेनियम व थोरियम किन-किन राज्यों से प्राप्त होता है ?
उत्तर:
झारखण्ड तथा राजस्थान।

प्रश्न 39.
किस राज्य में मिलने वाली मोनोजाइट रेत में थोरियम पाया ज्ञाता है? बायो गैस कहते हैं।
उत्तर:
केरल।

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प्रश्न 40.
बायो गैस क्या है?
उत्तर:
जैविक पदार्थों के अपघटन से प्राप्त ऊर्जा को बायो गैस कहते हैं।

प्रश्न 41.
किसानों के लिए गोबर गैस संयंत्र के लाभ ब्बताइए।
उत्तर:

  1. ऊर्जा की प्राप्ति,
  2. उन्नत प्रकार के उर्वरक की प्राप्ति।

प्रश्न 42.
भारत में संचालित दो भूतापीय ऊर्जा परियोजनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. पार्वती घाटी-मणिकरण ( हिमाचल प्रदेश)
  2. पूगा घाटी-लहाख।

प्रश्न 43.
पोषणीय ऊर्जा के दो आधार क्या हैं?
उत्तर:

  1. ऊर्जा संरक्षण की प्रोन्नति,
  2. नवीकरणीय ऊर्जा संसाधर्नों का बद्शता प्रयोग। पोषणीय ऊर्जा के दो प्रमुख आधार हैं।

लयूत्तरात्मक प्रश्न (SA1)

प्रश्न 1.
खनिज को परिभाषित कीजिए। ये इतनी विविधता लिए हुए क्यों होते हैं? भू-वैज्ञानिक किस आधार पर इनका वर्गीकरण करते हैं?
उत्तर;
खनिज एक प्राकृतिक रूप से विद्यमान समरूप तत्व है, जिसकी एक निश्चित आंतरिक संरचना होती है। खनिज विशेष निश्चित तत्वों का योग होता है। चूंकि इन तत्वों का निर्माण विभिन्न भौतिक व रासायनिक गतिविधियों का परिणाम है, अतः खनिज इतनी विविधता लिए हुए होते हैं। भूवैज्ञानिकों द्वारा निम्नलिखित आधारों पर खनिजों का वर्गीकरण किया जाता है

  1. खनिजों के विविध रंग,
  2. कठोरता,
  3. चमक,
  4. घनत्व,
  5. क्रिस्टल का रूप।

प्रश्न 2.
अवसादी चट्टानों में खनिज किस प्रकार पाये जाते हैं?
अथवा
परतदार शैलों में खनिज किस प्रकार मिलते हैं?
उत्तर:
अनेक खनिज अवसादी (परतदार) चट्टानों के संस्तरों अथवा परतों में पाये जाते हैं। इनका निर्माण क्षैतिज परतों में निक्षेपण, संचलन व जमाव का परिणाम है। कोयला व अन्य प्रकार के लौह अयस्कों का निर्माण लम्बी अवधि तक अत्यधिक ऊष्मा व दबाव का परिणाम है। अवसादी चट्टानों में दूसरी श्रेणी के खनिजों में जिप्सम, पोटाश, नमक व सोडियम सम्मिलित हैं। इनका निर्माण विशेषकर शुष्क क्षेत्रों में वाष्पीकरण के परिणामस्वरूप होता है।

प्रश्न 3.
जलोढ़ जमाव के रूप में खनिज किस प्रकार पाये जाते हैं?
उत्तर:
पहाड़ियों के आधार एवं घाटी तल की बालू में जलोढ़ जमाव के रूप में भी कुछ मात्रा में खनिज पाये जाते हैं। खनिजों के इस प्रकार के निक्षेप प्लेसर निक्षेप के नाम से जाने जाते हैं। जलोढ़ जमाव के रूप से प्राप्त खनिजों में प्रायः ऐसे खनिज होते हैं जो जल द्वारा घर्षित नहीं होते हैं। प्लेसर निक्षेप के रूप में प्राप्त खनिजों में सोना, चाँदी, टिन एवं प्लेटिनम आदि प्रमुख हैं।

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प्रश्न 4.
रैट होल खनन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भारत में अधिकांश खनिज राष्ट्रीयकृत हैं, जिनका निष्कर्षण राजकीय अनुमति से ही सम्भव है, लेकिन उत्तरी-पूर्वी भारत के अधिकांश जनजातीय क्षेत्रों में खनिजों का स्वामित्व व्यक्तिगत एवं समुदायों को प्राप्त है। मेघालय में जोवाई व चेरापूंजी में कोयले का खनन जनजातीय परिवारों के सदस्यों द्वारा एक लम्बी संकीर्ण सुरंग के रूप में किया जाता है, जिसे रैट होल खनन कहते हैं।

प्रश्न 5.
लौह अयस्क के दो सबसे महत्वपूर्ण प्रकार कौन-से हैं?
उत्तर:
1. मैग्नेटाइट:
यह सर्वोत्तम प्रकार का अयस्क है, जिसमें लगभग 70 प्रतिशत लौह धातु का अंश पाया जाता है। इस लोहे में सर्वश्रेष्ठ चुम्बकीय गुण होता है, जो विद्युत उद्योगों में विशेष रूप से उपयोगी है।

2. हेमेटाइट:
हेमेटाइट सर्वाधिक महत्वपूर्ण औद्योगिक लौह अयस्क है। इसका अधिकांशतया उपयोग उद्योगों में होता । है। इसमें लौह अंश की मात्रा 50 से 60 प्रतिशत तक होती है।

प्रश्न 6.
मैंगनीज़ की क्या उपयोगिता है? भारत में इसके वितरण को बताइए।
उत्तर:
मैंगनीज़ एक महत्वपूर्ण धात्विक खनिज है। इसका मुख्य उपयोग इस्पात के निर्माण में होता है। इसके अतिरिक्त इसका उपयोग ब्लीचिंग पाउडर, कीटनाशक दवाएँ, पेंट, बिजली की बैटरियों, काँच का रंग उड़ाने, वार्निश सुखाने एवं पोटेशियम परमैंगनेट आदि बनाने में होता है। भारत में मैंगनीज़ का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य ओडिशा है। इसके अतिरिक्त मैंगनीज़ मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक व आन्ध्र प्रदेश से भी प्राप्त होता है।

प्रश्न 7.
किन दो समान गुणों के कारण ताँवा और एल्युमिनियम अत्यन्त उपयोगी खनिज माना जाता है?
उत्तर:
ताँबा एवं एल्युमिनियम दोनों ही अलौह खनिज हैं। ताँबा खनिज, ताँबा अयस्क से तथा एल्युमिनियम, बॉक्साइट अयस्क से प्राप्त होता है। ताप सुचालक एवं घातवर्ध्यता ऐसे दो गुण हैं जो ताँबा एवं ऐल्युमिनियम में समान रूप से पाये जाते हैं, जिस कारण इन्हें अत्यन्त उपयोगी खनिज माना जाता है। .

प्रश्न 8.
बॉक्साइट का उपयोग एवं वितरण बताइए।
उत्तर:
बॉक्साइट एल्युमिनियम धातु का खनिज अयस्क है। यह एक हल्की एवं विद्युत की कुचालक धातु है। वायुयान निर्माण, बिजली से सम्बन्धित उद्योगों एवं दैनिक जीवन में इस धातु का बहुत अधिक उपयोग होता है। भारत में बॉक्साइट के निक्षेप मुख्य रूप से अमरकंटक पठार, मैकाल पहाड़ियाँ एवं बिलासपुर-कटनी के पठारी प्रदेशों में पाये जाते हैं। ओडिशा बॉक्साइट का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। इस राज्य के कोरापुट जिले में पंचपतमाली में इसके निक्षेप पाये जाते हैं।

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प्रश्न 9.
अभ्रक की प्रमुख विशेषताएँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:
अभ्रक की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. अभ्रक प्लेटों अथवा पत्रण क्रम में पाया जाता है।
  2. इसका चादरों में विपाटन (Split) आसानी से हो सकता है।
  3. अभ्रक पारदर्शी हो सकता है।
  4. अभ्रक काले, हरे, लाल, पीले एवं भूरे रंग का भी हो सकता है।
  5. इसका उपयोग विद्युत प्रसारण, इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग, रेडियो व टेलीफोन आदि में भी किया जाता है।

प्रश्न 10.
अभ्रक का क्या उपयोग है?
उत्तर:
अभ्रक के निम्नलिखित उपयोग हैं

  1. विद्युत का कुचालक होने के कारण अभ्रक का उपयोग मुख्य रूप से विद्युत एवं इलेक्ट्रॉनिक उद्योग में होता है।
  2. अभ्रक का उपयोग औषधि निर्माण में होता है।
  3. तार व टेलीफोन, रेडियो, चश्मे एवं बेतार का तार निर्माण में अभ्रक का उपयोग किया जाता है।
  4. मोटर, वायुयान, सजावट एवं धमन भट्टियों की ईंट निर्माण में भी अभ्रक का उपयोग होता है।

प्रश्न 11.
भारत में अभ्रक उत्पादक क्षेत्र कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
भारत में अभ्रक उत्पादक क्षेत्र निम्नलिखित हैं:

  1. छोटा नागपुर पठार के उत्तरी पठारी किनारे।
  2. बिहार- झारखण्ड की कोडरमा-गया-हजारीबाग पेटी
  3. राजस्थान में अजमेर के आस-पास का क्षेत्र
  4. आन्ध्र प्रदेश की नेल्लोर अभ्रक पेटी।

प्रश्न 12.

खनिज सुमेलित कीजिए
(क) लौह अयस्क खान 1. अमरकंटक
(ख) अभ्रक 2. मयूरभंज
(ग) बॉक्साइट 3. नागपुर
(घ) मैंगनीज 4. नेल्लोर

उत्तर:

खनिज सुमेलित कीजिए
(क) लौह अयस्क खान 1. मयूरभंज
(ख) अभ्रक 2. नेल्लोर
(ग) बॉक्साइट 3. अमरकंटक
(घ) मैंगनीज 4. नागपुर

प्रश्न 13.
चूना पत्थर के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
चूना पत्थर कैल्शियम या कैल्शियम कार्बोनेट तथा मैग्नीशियम कार्बोनेट से बनी चट्टानों में पाया जाता है। चूना पत्थर सीमेंट उद्योग का एक आधारभूत कच्चा माल है। इसका उपयोग लौह प्रगलन की भट्टियों में भी होता है। चूना पत्थर की प्राप्ति राजस्थान, आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात व तमिलनाडु आदि राज्यों से होती है। 2016-17 में चूना पत्थर का उत्पादन सबसे अधिक राजस्थान (21%) में हुआ।

प्रश्न 14.
खनिजों को कौन-कौन से उपायों से सुरक्षित रखा जा सकता है?
उत्तर:
खनिजों को निम्नलिखित उपायों से सुरक्षित रखा जा सकता है

  1. खनिजों का प्रयोग नियोजित ढंग से किया जाना चाहिए।
  2. खनिजों के दुरुपयोग को कम करने के लिए आधुनिक तकनीक का प्रयोग करना चाहिए।
  3. धातुओं के पुनः चक्रण को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  4. खनिजों को बचाने के लिए हमें इनके अन्य विकल्पों के प्रयोग के बारे में सोचना चाहिए।

प्रश्न 15.
उत्खनन का खदान श्रमिकों के स्वास्थ्य तथा पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा कीजिए।
अथवा
खान मजदूरों तथा वातावरण पर खनन का क्या प्रभाव पड़ता है? किन्हीं तीन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उत्खनन का खदान श्रमिकों के स्वास्थ्य तथा पर्यावरण पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ता है

  1. खदान श्रमिक लगातार धूल एवं हानिकारक धुएँ में साँस लेते हुए फेफड़ों सम्बन्धी बीमारियों के शिकार हो जाते हैं।
  2. श्रमिकों के लिए जल प्लावित होने का खतरा सदैव बना रहता है।
  3. खदान क्षेत्रों में खनन के कारण जल स्रोत प्रदूषित हो जाते हैं।
  4. अवशिष्ट पदार्थों एवं खनिज तरल के मलबे का ढेर लगने से भूमि व मिट्टी का अवय होता है तथा नदियों का जल प्रदूषित होता है।

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प्रश्न 16.
सूची-I को सूची-II से सुमेलित कीजिए:

सूची-I (कोयले के प्रकार) सूची-II (कार्बन की मात्रा)
(क) बिटुमिनस 1. 35 से 50%
(ख) लिग्नाइट 2. 15 से 35%
(ग) पीट 3. 80 से 90%
(घ) ऐन्थ्रेसाइट 4. 75 से 80%

उत्तर:

सूची-I (कोयले के प्रकार) सूची-II (कार्बन की मात्रा)
(क) बिटुमिनस 4. 75 से 80%
(ख लिग्नाइट 1. 35 से 50%
(ग) पीट 2. 15 से 35%
(घ) ऐन्थ्रेसाइट 3. 80 से 90%

प्रश्न 17.
पेट्रोलियम हमारे लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर:
पेट्रोलियम निम्नलिखित कारणों से हमारे लिए महत्वपूर्ण है

  1. पेट्रोलियम हमारे देश में ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है।
  2. यह ताप व प्रकाश के लिए ईंधन, मशीनों को स्नेहक एवं अनेक विनिर्माण उद्योगों को कच्चा माल प्रदान करता है।
  3. तेलशोधन शालाएँ, संश्लेषित वस्त्र, उर्वरक एवं असंख्य रसायन उद्योगों में यह एक नोडीय बिन्दु का काम करता है।

प्रश्न 18.
भारत में पेट्रोलियम की उपस्थिति किस प्रकार की शैल संरचनाओं में पायी जाती है ?
उत्तर:
भारत में अधिकांश पेट्रोलियम की उपस्थिति टरशियरी युग की शैल संरचनाओं के अपनति एवं भ्रंश ट्रेप में पायी जाती है। पेट्रोलियम वलन, अपनति तथा गुम्बदों वाले उन क्षेत्रों में पाया जाता है जहाँ उद्धवलन के शीर्ष में तेल ट्रेप हुआ होता है। तेल धारक परत सरंध्र चूना पत्थर या बालू पत्थर होता है जिसमें से तेल प्रवाहित हो सकता है। मध्यवर्ती असरंध्र परतें तेल को ऊपर उतने एवं नीचे रिसने से रोकती हैं। पेट्रोलियम सरंध्र और असरंध्र चट्टानों के मध्य भ्रंश ट्रेप में भी पाया जाता है।

प्रश्न 19.
भारत में खनिज तेल के वितरण को संक्षेप में बताइए। हजार
अथवा
भारत में पेट्रोलियम के प्राप्ति क्षेत्रों को बताइए।
उत्तर:
असम भारत का सबसे पुराना तेल उत्पादक क्षेत्र है। यहाँ के प्रमुख तेल क्षेत्रों में डिगबोई, नहरकटिया, मोरन-हुगरीजन आदि हैं। इसके अतिरिक्त गुजरात एवं मुंबई हाई तेल क्षेत्र भी प्रमुख हैं। भारत में कुल खनिज तेल उत्पादन का 63 प्रतिशत मुम्बई हाई से, 18 प्रतिशत गुजरात से एवं 16 प्रतिशत असम से प्राप्त होता है।

प्रश्न 20.
प्राकृतिक गैस के क्या उपयोग हैं? इसे पर्यावरण के अनुकूल क्यों माना जाता है?
उत्तर:
प्राकृतिक गैस के निम्न उपयोग हैं

  1. ऊर्जा के एक साधन के रूप में।
  2. पेट्रो रसायन उद्योग में एक औद्योगिक कच्चे माल के रूप में।
  3. गाड़ियों में संपीडित प्राकृतिक गैस (C.N.G.) के रूप में। जलने पर बहुत कम मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड गैस मुक्त होने के कारण प्राकृतिक गैस को पर्यावरण के अनुकूल माना जाता है।

प्रश्न 21.
भारत में परमाणु ऊर्जा का उपयोग किसलिए किया जाता है? दो परमाणु ऊर्जा संयन्त्रों के नाम बताइए।
उत्तर:
भारत में परमाणु ऊर्जा का उपयोग विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए किया जाता है। भारत के दो परमाणु ऊर्जा संयन्त्र निम्न हैं

  1. रावतभाटा (राजस्थान),
  2. तारापुर (महाराष्ट्र)।

प्रश्न 22.
निम्नलिखित को सुमेलित कीजिए गैर-पारम्परिक ऊर्जा स्रोत अवस्थित क्षेत्र

गैर-पारम्परिक ऊर्जा स्रोत अवस्थित क्षेत्र
1. सौर ऊर्जा (अ) कच्छ की खाड़ी
2. पवन ऊर्जा (ब) भुज-माधापुर
3. ज्वारीय ऊर्जा (स) लद्दाख
4. भूतापीय ऊर्जा (द) जैसलमेर

उत्तर:

गैर-पारम्परिक ऊर्जा स्रोत अवस्थित क्षेत्र
1. सौर ऊर्जा (ब) भुज-माधापुर
2. पवन ऊर्जा (द) जैसलमेर
3. ज्वारीय ऊर्जा (अ) कच्छ की खाड़ी
4. भूतापीय ऊर्जा (स) लद्दाख

प्रश्न 23.
निम्नलिखित को सुमेलित कीजिए राज्य परमाणु ऊर्जा संयन्त्र

राज्य परमाणु ऊर्जा संयन्त्र
(अ) उत्तर प्रदेश (i) कलपक्कम
(ब) कर्नाटक (ii) काकरापारा
(स) गुजरात (iii) नरोरा
(द) तमिलनाडु (iv) कैगा

उत्तर:

राज्य परमाणु ऊर्जा संयन्त्र
(अ) उत्तर प्रदेश (iii) नरोरा
(ब) कर्नाटक (iv) कैगा
(स) गुजरात (ii) काकरापारा
(द) तमिलनाडु (i) कलपक्कम

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प्रश्न 24.
बायो गैस के उपयोग से होने वाले लाभ बताइए।
उत्तर:
बायो गैस के उपयोग से होने वाले प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं

  1. बायो गैस का उपयोग घरेलू आवश्यकताओं के लिए विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।
  2. पशुओं के गोबर का उपयोग करने का यह एक सर्वाधिक उपयुक्त तरीका है।
  3. यह खाद की गुणवत्ता को बढ़ाता है।
  4. यह उपलों तथा लकड़ी के जलने से होने वाले वृक्षों के नुकसान को रोकता है।

प्रश्न 25.
‘भारत गाँवों का देश है’ ऊर्जा संकट को कम करने के लिए आप किस प्रकार के ऊर्जा स्रोत का सुझाव देंगे?
उत्तर:
ऊर्जा संकट को कम करने के लिए बायोगैस को उपयोग में लाने का सुझाव देना हितकर रहेगा। ग्रामीण क्षेत्रों में पशुओं के गोबर का प्रयोग ‘गोबर गैस प्लांट’ संयंत्र में किया जाता है। जिससे विद्युत ऊर्जा भी प्राप्त होती है।

प्रश्न 26.
गैर-परम्परागत ऊर्जा संसाधनों का महत्व बताइए।
उत्तर:
गैर-परम्परागत ऊर्जा संसाधनों का महत्व निम्नलिखित है

  1. इन संसाधनों का नवीनीकरण किया जा सकता है।
  2. इनकी मात्रा असीमित है।
  3. ये संसाधन हमें प्रकृति से निःशुल्क प्राप्त हैं।
  4. ये प्रदूषण मुक्त ऊर्जा संसाधन हैं।
  5. इनका प्रयोग भविष्य में अधिकाधिक होगा।

प्रश्न 27.
व्यक्तिगत रूप से हमें ऊर्जा संरक्षण हेतु क्या उपाय करने चाहिए?
उत्तर:
व्यक्तिगत रूप से हम ऊर्जा के संरक्षण हेतु निम्नलिखित उपाय कर सकते हैं

  1. हमें यातायात के लिए व्यक्तिगत अथवा निजी वाहन के स्थान पर सार्वजनिक वाहन का उपयोग करना चाहिए।
  2. जब प्रयोग में नहीं आ रही हो तो बिजली बंद कर देनी चाहिए।
  3. हमें विद्युत की बचत करने वाले उपकरणों का प्रयोग करना चाहिए।
  4. हमें गैर-पारम्परिक ऊर्जा साधनों का अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA2)

प्रश्न 1.
खनिज हमारे जीवन के अति अनिवार्य भाग हैं।’ इस कथन को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
अथवा
खनिजों का मानव के लिए क्या उपयोग है? संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
खनिज हमारे जीवन के अति अनिवार्य भाग हैं क्योंकि हमारे विकास के लिए आवश्यक विभिन्न वस्तुओं के निर्माण में उनका प्रयोग होता है। उदाहरण के लिए:

  1. दैनिक जीवन में काम आने वाली प्रत्येक वस्तु का प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से खनिजों से सम्बन्ध जुड़ा है।
  2. यातायात के सभी साधन, मशीनें, उपकरण, कृषि मशीनें व यंत्र, पटरियाँ, पेट्रोलियम से बने सभी पदार्थ, सोने, चाँदी व हीरे से.बने आभूषण आदि अनगिनत पदार्थ हमें खनिजों से प्राप्त होते हैं।
  3. औद्योगिक विकास का आधार खनिज ही है। लोहा व कोयला, दो ऐसे खनिज हैं जिनके बिना औद्योगिक प्रगति संभव नहीं।
  4. खनिजों का शक्ति के साधनों में महत्वपूर्ण स्थान है। बस, रेलगाड़ियाँ, कारें, हवाई जहाज व अन्य दूसरे वाहन खनिजों से बने होते हैं तथा धरती से प्राप्त ऊर्जा के साधनों द्वारा चालित होते हैं।
  5. हम भोजन में भी खनिजों का प्रयोग करते हैं।
  6. मनुष्य ने विकास की सभी अवस्थाओं में, अपनी जीविका, सजावट, त्यौहारों एवं धार्मिक अनुष्ठान के लिए खनिजों का प्रयोग किया है।

प्रश्न 2.
खनिज क्या हैं? खनिजों को वर्गीकृत कीजिए।
अथवा
सामान्य एवं वाणिज्यिक उद्देश्य हेतु खनिजों को कितने भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है?
उत्तर:
खनिज- भूवैज्ञानिकों के अनुसार खनिज एक प्राकृतिक रूप से विद्यमान समरूप तत्व है जिसकी एक निश्चित आन्तरिक संरचना होती है। खनिज प्रकृति में अनेक रूपों में पाये जाते हैं, जिसमें कठोर हीरा से लेकर नरम चूना तक सम्मिलित हैं। सामान्य एवं वाणिज्यिक उद्देश्य हेतु खनिजों को निम्नलिखित भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है

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  1. धात्विक खनिज-वे खनिज जिसमें धातु अंश प्रधानता पायी जाती है, धात्विक खनिज कहलाते हैं। धात्विक खनिज तीन प्रकार के होते हैं
    • लौह खनिज-इन खनिजों में लोहे का अंश होता है, जैसे-लौह अयस्क, मैंगनीज़, निकिल व कोबाल्ट आदि।
    • अलौह खनिज-इन खनिजों में लोहे का अंश नहीं होता है, जैसे-ताँबा, सीसा, जस्ता व बॉक्साइट आदि।
    • बहुमूल्य खनिज-सोना, चाँदी, प्लेटिनम आदि।
  2. अधात्विक खनिज-वे खनिज जिनमें धातु अंश नहीं पाया जाता है, अधात्विक खनिज कहलाते हैं, जैसेअभ्रक, नमक, पोटाश, सल्फर, चूना पत्थर, संगमरमर एवं बलुआ पत्थर आदि।
  3. ऊर्जा खनिज-वे खनिज जिनसे ऊर्जा की प्राप्ति होती है, ऊर्जा खनिज कहलाते हैं, जैसे-कोयला, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस आदि।

प्रश्न 3.
धात्विक और अधात्विक खनिजों में अन्तर स्पष्ट कीजिए?
उत्तर:
धात्विक और अधात्विक खनिजों में अन्तर निम्नलिखित हैंधात्विक खनिज अधात्विक खनिज

धात्विक खनिज अधात्विक खनिज
1. वे खनिज जिनमें धातु अंश की प्रधानता पायी जाती हैं, धात्विक खनिज कहलाते हैं। 1. वे खनिज जिनमें धातु अंश नहीं पाया जाता है, अधात्विक खनिज कहलाते हैं।
2. लौह अयस्क, मैंगनीज़, निकल, ताँबा, जस्ता, सीसा, टंगस्टन व कोबाल्ट आदि धात्विक खनिजों के उदाहरण हैं। 2. अभ्रक, पोटाश, नमक, सल्फर, चूना पत्थर, संगमरमर, बलुआ पत्थर आदि अधात्विक खनिजों के उदाहरण हैं।
3. खानों से निकाले जाने पर इनमें अनेक अशुद्धियों का मिश्रण रहता है। अतः इन्हें प्रयोग करने से पूर्व इनका परिष्करण करना आवंश्यक होता है। 3. इन खनिजों में अशुद्धियाँ बहुत कम होती हैं। अतः इनके परिष्करण की अधिक आवश्यकता नहीं पड़ती है।
4. धात्विक खनिज ताप व विद्युत के सुचालक होते हैं। 4. अधात्विक खनिज ताप एवं विद्युत के कुचालक होते हैं।
5. यह खनिज प्रायः आग्नेय शैलों में पाये जाते हैं। 5. यह खनिज प्राय: अवसादी शैलों में पाये जाते हैं।
6. इन खनिजों को गलाकर पुनः प्रयोग में लाया जा सकता है। 6. इन खनिजों को सिर्फ एक बार ही प्रयोग में लिया जा सकता है।

प्रश्न 4.
लौह अयस्क में बेलारी-चित्रदुर्ग-चिक्कमंगलूरु-तुमकूस पेटी के विशिष्ट लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लौह अयस्क में बेलारी-चित्रदुर्ग-चिक्कमंगलूरु-तुमकूरु पेटी के विशिष्ट लक्षण इस प्रकार से हैं

  1. लौह अयस्क की वृहत् राशि कर्नाटक की बेलारी-चित्रदुर्ग-चिक्कमंगलूरू-तुमकूरु पेटी में संचित है।
  2. कर्नाटक के पश्चिमी घाट में अवस्थित कुद्रेमुख की खानों से लौह अयस्क निर्यात किया जाता है। यहाँ से लौह अयस्क कर्दम (Slurry) के रूप में पाइपलाइल द्वारा मंगलूरू के निकट एक पत्तन पर भेजा जाता है।

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प्रश्न 5.
ताँबा का प्रमुख उपयोग क्या है? भारत में यह कहाँ-कहाँ पाया जाता है?
अथवा
ताँबा खनिज के कोई दो उपयोग लिखिए।
उत्तर:
ताँबा एक अलौह धातु है। भारत में इसका उपयोग प्राचीनकाल से होता आ रहा है। इसकी सुचालकता के कारण इसका मुख्य रूप से उपयोग बिजली के तार बनाने, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं रसायन उद्योगों में किया जाता है। इसका अन्य वस्तुओं के साथ मिलाकर रासायनिक कार्यों व बर्तन बनाने आदि में उपयोग किया जाता है।

ताँबा व जस्ता मिलाकर पीतल, ताँबा व सोना मिलाकर रोल्ड गोल्ड एवं ताँबा व राँगा को मिलाकर काँसा बनाया जाता है। भारत में ताँबे के निक्षेप व उत्पादन कम है। देश का अधिकांश ताँबा मध्य प्रदेश के बालाघाट एवं झारखण्ड के सिंहभूमि जिलों व राजस्थान के खेतड़ी से प्राप्त किया जाता है। मध्य प्रदेश की बालाघाट खदानें देश का लगभग 52 प्रतिशत ताँबा उत्पादित करती हैं।

प्रश्न 6.
“खनिज संसाधनों को सुनियोजित एवं सतत् पोषणीय ढंग से प्रयोग करने के लिए तालमेल युक्त प्रयास करना होगा।” कोई तीन उपाय सुझाइए और उनका स्पष्टीकरण कीजिए।
उत्तर:

  1. निम्न कोटि के अयस्कों का कम लागतों पर प्रयोग करने हेतु उन्नत प्रौद्योगिकियों का सतत् विकास करते रहना होगा।
  2. धातुओं का पुनः चक्रण अपनाना होगा।
  3. रद्दी धातुओं का प्रयोग और अन्य प्रतिस्थापनों का उपयोग करने पर ध्यान केन्द्रित करना होगा।

प्रश्न 7.
पवन, ज्वारीय, सौर तथा अन्य नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों का प्रयोग क्यों बढ़ता जा रहा है? कारण लिखिए।
उत्तर:

  1. आज दिन-प्रतिदिन गैस व तेल की कीमतें बढ़ रही हैं, जो भविष्य में ऊर्जा आपूर्ति की सुरक्षा के प्रति अनिश्चितताएँ उत्पन्न कर रही हैं।
  2. इसके अलावा हम जीवाश्मी ईंधनों का जो प्रयोग करते हैं वह गम्भीर पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न करते हैं ।
  3. ऊर्जा के गैर-परम्परागत साधनों में सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, जैविक ऊर्जा तथा अवशिष्ट पदार्थ जनित ऊर्जा है, जिनका आसानी से उपयोग किया जा सकता है।
  4. धूप, जल तथा जीवभार साधनों में भारत समृद्ध है। यही कारण है कि नवीकरण योग्य ऊर्जा संसाधनों के विकास हेतु भारत में अनेक कार्यक्रम बनाये गये हैं ।

प्रश्न 8.
बायो गैस क्या है? इसका उत्पादन कैसे किया जाता है?
उत्तर:
बायो गैस-बायो गैस ऊर्जा का एक गैर-परम्परागत साधन है। इसे जैव ऊर्जा भी कहते हैं। कृषि अपशिष्टों, पशु एवं मानवजनित अपशिष्टों व झाड़ियों आदि के उपयोग द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में बायो गैस का उत्पादन किया जाता है। बायो गैस का उत्पादन एक विशेष प्रकार के संयंत्र में किया जाता है, जिसे बायो गैस संयंत्र कहते हैं। इस संयंत्र में कार्बनिक पदार्थों के विघटन से गैस उत्पन्न होती है।

यह बायोगैस एक ज्वलनशील गैसीय मिश्रण है जिसमें मुख्यतः मीथेन, कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन व ऑक्सीजन गैस होती है, जिसकी तापीय क्षमता मिट्टी के तेल, उपलों व चारकोल की अपेक्षा अधिक होती है। इस ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा, ताप ऊर्जा एवं खाना बनाने के लिए गैस में परिवर्तित किया जा सकता है। भारत जैसे देश में, जहाँ कृषि एवं पशुपालन मुख्य व्यवसाय है, वहाँ बायो गैस के विकास की अपार सम्भावनाएँ हैं। बायो गैस संयंत्र नगरपालिका, सहकारिता एवं निजी स्तर पर लगाये जाते हैं।

प्रश्न 9.
प्राकृतिक गैस एवं बायो गैस में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

प्राकृतिक गैस बायो गैस
1. प्राकृतिक गैस के भण्डार भूगर्भ में पाये जाते हैं। 1. बायो गैस मानव द्वारा धरातल पर निर्मित की जाती है।
2. यह अधिकतर भूगर्भ की चट्टानों में पेट्रोलियम के साथ पायी जाती है। 2. यह झाड़-झंखाड़ों, कृषि के अपशिष्टों, जीव-जन्तुओं
3. इसका उपयोग वाहनों के ईंधन के रूप में तथा बिजली उत्पादन में भी किया जाता है। व मानव के मलमूत्र के उपयोग से पैदा की जाती है।
4. भूगर्भ में मिलने के कारण इसके भण्डार सीमित हैं, जो कभी भी समाप्त हो सकते हैं। 3. इसका केवल घरेलू उपयोग होता है।
5. इससे कोई अवशिष्ट प्राप्त नहीं होता है जिसका पुन: उपयोग किया जा सके। 4. इसके निर्माण में प्रयुक्त कच्चे पदार्थ भारी मात्रा में उपलब्ध हैं जिनका विकास तकनीक द्वारा किया जा सकता है।

प्रश्न 10.
ज्वारीय ऊर्जा क्या है? संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
ज्वारीय ऊर्जा-महासागरीय तरंगें ऊर्जा का अपरिमित भण्डार गृह हैं। महासागरीय तरंगों का उपयोग विद्युत उत्पादन के लिए किया जा सकता है। सँकरी खाड़ी के आर-पार बाढ़ द्वार बनाकर बाँध बनाये जाते हैं। उच्च ज्वार में इस संकरे खाड़ीनुमा प्रवेश द्वार से पानी भीतर भर जाता है तथा द्वार बन्द होने पर बाँध में ही रह जाता है।

बाढ़ द्वार के बाहर ज्वार उतरने पर बाँध के पानी को इसी रास्ते पाइप द्वारा समुद्र की तरफ बहाया जाता है जो इसे ऊर्जा उत्पादक टरबाइन की ओर ले जाता है। टरबाइन के माध्यम से गतिज ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदला जाता है। भारत में खम्भात की खाड़ी एवं कच्छ की खाड़ी में ज्वारीय तरंगों द्वारा ऊर्जा उत्पन्न करने की आदर्श दशाएँ उपस्थित हैं।

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प्रश्न 11.
भूतापीय ऊर्जा क्या है? किन्हीं दो परियोजनाओं के नाम बताइए, जो भूतापीय ऊर्जा के दोहन के लिए प्रारम्भ की गयी हैं?
अथवा
पर्वतीय क्षेत्रों पर बिजली की समस्या को भू-तापीय ऊर्जा द्वारा किस सीमा तक हल किया जा सकता है?
अथवा
संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए- भूतापीय ऊर्जा।
उत्तर:
भूतापीय ऊर्जा-पृथ्वी का आन्तरिक भाग अत्यन्त तरल’ है। अतः पृथ्वी के भीतर से कभी-कभी कई स्थानों पर एक सूखी भाप या गर्म पानी के स्रोत के रूप में ऊर्जा बाहर निकलती रहती है। पृथ्वी के आन्तरिक भागों के ताप का प्रयोग कर उत्पन्न की जाने वाली विद्युत को भूतापीय ऊर्जा कहते हैं। भूतापीय ऊर्जा इसलिए अस्तित्व में होती है क्योंकि बढ़ती गहराई के साथ पृथ्वी प्रगामी ढंग से तप्त होती जाती है। जहाँ भी भूतापीय प्रवणता अधिक होती है, वहाँ उथली गहराइयों पर भी अधिक तापमान मिलता है। ऐसे क्षेत्रों में भूमिगत जल चट्टानों से ऊष्मा का अवशोषण कर गर्म हो जाता है।

यह जल इतना अधिक गर्म हो जाता है कि पृथ्वी की सतह की ओर उठता है तो यह भाप में परिवर्तित हो जाता है। इसी भाप का उपयोग टरबाइन को चलाने एवं विद्युत उत्पन्न करने के लिए किया जाता है। भारत में भूतापीय ऊर्जा के दोहन के लिए दो प्रायोगिक परियोजनाएं शुरू की गई हैं। एक हिमाचल प्रदेश में मणिकरण – के निकट पार्वती घाटी में स्थित है तथा दूसरी परियोजना लद्दाख में पूगा घाटी में स्थापित है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में लौह अयस्क का वितरण समझाइए।
अथवा भारत में लौह अयस्क की पेटियाँ कौन-कौन सी हैं? विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
आधुनिक यांत्रिक युग में लोहा प्रत्येक देश के आर्थिक विकास की धुरी है। इससे सुई से लेकर विशालकाय जलपोत एवं विभिन्न संयन्त्र आदि का निर्माण किया जाता है। इसलिए आधुनिक युग को लौह-इस्पात का युग भी कहा जा, सकता है। लोहे की कच्ची धातुं लौह अयस्क कहलाती है। भारत में लौह अयस्क का वितरण- भारत में लौह अयस्क के प्रचुर भंडार हैं। देश में लौह अयस्क के दो प्रमुख प्रकार-हेमेटाइट एवं मैग्नेटाइट पाये जाते हैं। हमारे देश के लौह अयस्क में लोहे की मात्रा 70-72 प्रतिशत तक होती है।

लौह अयस्क की खदानें देश के उत्तर-पूर्वी पठारी प्रदेश में कोयला क्षेत्रों के निकट स्थित हैं। लौह अयस्क के कुल आरक्षित भण्डारों का लगभग 95 प्रतिशत भाग ओडिशा, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ एवं कर्नाटक राज्यों में स्थित है। 2016-17 में लौह-अयस्क का उत्पादन सबसे अधिक ओडिशा (52%), इसके पश्चात्, छत्तीसगढ़ (16%), कर्नाटक (14%), झारखण्ड (11.%) व अन्य (7%) में हुआ। भारत में लौह अयस्क की प्रमुख पेटियाँ निम्नलिखित हैं
1. ओडिशा झारखण्ड पेटी:
ओडिशा में उच्चकोटि का हेमेटाइट किस्म का लौह अयस्क मयूरभंज व केंदूझर जिलों में बादाम पहाड़ की खदानों से निकाला जाता है। झारखण्ड राज्य के सिंहभूमि जिले में गुआ एवं नोआमुंडी से हेमेटाइट अयस्क प्राप्त किया जाता है।

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2. दुर्ग-बस्तर चंद्रपुर पेटी:
लौह अयस्क की यह पेटी महाराष्ट्र एवं छत्तीसगढ़ राज्यों में फैली हुई है। छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर जिले में बेलाडिला पहाड़ी श्रृंखलाओं से उत्तम किस्म का हेमेटाइट लौह अयस्क प्राप्त होता है। यहाँ लौह अयस्क के 14 जमाव मिलते हैं। इन खदानों से लौह अयस्क विशाखापट्टनम बन्दरगाह से जापान एवं दक्षिण कोरिया को निर्यात किया जाता है।

3. बेलारी चित्रदुर्ग, चिक्कमंगलूरू:
तुमकूरू पेटी-लौह अयस्क की यह पेटी कर्नाटक राज्य में स्थित है। इस पेटी में लौह अयस्क की विशाल राशि संचित है। कर्नाटक के पश्चिमी घाट में स्थित कुद्रेमुख की खानों से सम्पूर्ण लौह अयस्क का निर्यात कर दिया जाता है। कुद्रेमुख विश्व के सबसे बड़े लौह अयस्क निक्षेपों में से एक है।

4. महाराष्ट्र गोवा पेटी:
यह पेटी गोवा एवं महाराष्ट्र राज्य के रत्नागिरि जिले में स्थित है। इस पेटी से प्राप्त लौह अयस्क उत्तम किस्म का नहीं होता है। मार्मागाओ बन्दरगाह से इसका निर्यात कर दिया जाता है।

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प्रश्न 2.
अनवीकरणीय ऊर्जा को संरक्षित रखने की आवश्यकता के पक्ष में दो तर्क दीजिए। इसके संसाधनों के संरक्षण के लिए किन्हीं तीन उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • अनवीकरणीय ऊर्जा को संरक्षित रखने की आवश्यकता
    1. कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि से अनवीकरणीय ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है। ये सभी खनिज समाप्त होने की स्थिति में हैं। इनको हम पुनः उत्पादित नहीं कर सकते हैं। इसलिए इनको संरक्षित रखना अत्यन्त आवश्यक है ।
    2. राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के प्रत्येक क्षेत्र (कृषि, उद्योग, परिवहन, वाणिज्य आदि) में तथा घरेलू आवश्यकता की पूर्ति के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यदि हम ऊर्जा के अनवीकरणीय साधनों का सही उपयोग नहीं करेंगे तो हमें भविष्य में अति आवश्यक कार्यों के लिए भी ऊर्जा प्राप्त नहीं होगी।
  • ऊर्जा संसाधनों के संरक्षण के उपाय
    1. राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के प्रत्येक क्षेत्र जैसे- कृषि, उद्योग, परिवहन, वाणिज्य व घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हमें ऊर्जा के निवेश की आवश्यकता होती है। इसलिए हमें उसका नियोजित प्रयोग करना चाहिए।
    2. स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद क्रियान्वित आर्थिक विकास की योजनाओं को चलाए रखने के लिए ऊर्जा की बड़ी मात्रा की आवश्यकता थी। परिणामस्वरूप पूरे देश में ऊर्जा के सभी प्रकारों का उपयोग धीरे-धीरे बढ़ रहा है। इसकी पूर्ति हेतु ऊर्जा के नवीकरणीय साधनों के प्रयोग पर बल देना चाहिए।
    3. वर्तमान में भारत विश्व के अल्पतम ऊर्जा दक्ष देशों में गिना जाता है। हमें सावधानीपूर्वक उपागम को ऊर्जा के सीमित संसाधनों के न्यायसंगत उपयोग के लिए अपनाना होगा। हमें एक जागरूक नागरिक के रूप में यातायात के लिए निजी वाहन की अपेक्षा सार्वजनिक वाहनों का उपयोग करना चाहिए। जब हम बिजली के उपकरणों का प्रयोग नहीं कर रहे। हों तब हमें बिजली को बन्द करके विद्युत की बचत करनी चाहिए।

प्रश्न 3.
भारत में सबसे प्रचुर मात्रा में पाया जाने वाला जीवाश्म ईंधन कोयला है। इसके विभिन्न रूपों के महत्व का आकलन कीजिए।
अथवा
परम्परागत ऊर्जा स्रोतों के नाम लिखिए एवं किसी एक पर लेख लिखिए।
उत्तर:
परम्परागत ऊर्जा स्रोत-लकड़ी, कोयला, खनिज तेल, प्राकृतिक गैस, जल व तापीय विद्युत आदि। कोयला-भारत में सबसे प्रचुर मात्रा में पाया जाने वाला जीवाश्म ईंधन कोयला है।
कोयला के विभिन्न रूप एवं उनका महत्व-कोयले का उपयोग विद्युत उत्पादन, उद्योगों एवं घरेलू आवश्यकता के लिए ऊर्जा की आपूर्ति के लिए किया जाता है। भारत अपनी वाणिज्यिक ऊर्जा की आवश्यकता की पूर्ति हेतु मुख्य रूप से कोयले पर निर्भर है। कोयला मुख्य रूप से निम्नलिखित चार प्रकार का होता है
1. एन्थेसाइट:
यह सर्वोत्तम गुण वाला कठोर कोयला है। इसमें कार्बन की मात्रा सर्वाधिक होती है।

2. बिटुमिनस:
गहराई में दबे तथा अधिक तापमान से प्रभावित कोयला को बिटुमिनस के नाम से जाना जाता है। वाणिज्यिक उपयोग में यह कोयला सर्वाधिक लोकप्रिय है। परन्तु शोधन में उच्च श्रेणी के बिटुमिनस कोयले का उपयोग किया जाता है। लोहे के प्रगलन में इस कोयले का विशेष महत्व है।

3. लिग्नाइट:
यह निम्न किस्म का भूरा कोयला होता है। यह मुलायम होने के साथ अधिक नमीयुक्त होता है। भारत में लिग्नाइट के मुख्य भण्डार तमिलनाडु के नैवेली क्षेत्र में पाये जाते हैं। लिग्नाइट कोयले का उपयोग विद्युत उत्पादन में किया जाता है।

4. पीट:
इस प्रकार का कोयला दलदली भागों में क्षय होने वाले पेड़-पौधों से उत्पन्न होता है। इसमें कार्बन की मात्रा कम एवं नमी की मात्रा अधिक होती है। अधिक नमी के कारण पीट कोयले की ताप क्षमता कम होती है।

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प्रश्न 4.
भारत में गैर-परम्परागत ऊर्जा संसाधनों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत में प्रमुख गैर-परम्परागत शक्ति के साधन कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गैर-परम्परागत ऊर्जा संसाधनों से अभिप्राय ऐसे ऊर्जा संसाधनों से है जो आधुनिक वैज्ञानिक युग की देन हैं। इनके अन्तर्गत सौर-ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा, बायो गैस एवं परमाणु ऊर्जा को सम्मिलित किया जाता है। इनमें से अधिकांश सतत् एवं सनातन हैं। आणविक ऊर्जा ऐसा गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोत है, जो असमाप्य है। भारत में प्रमुख गैर परम्परागत ऊर्जा संसाधन (शक्ति के साधन) निम्नलिखित हैं
1. सौर ऊर्जा-गैर:
परम्परागत ऊर्जा स्रोतों में सौर-ऊर्जा सर्वोपरि है। सौर-ऊर्जा सूर्य से प्राप्त होती है। भारत में सौर ऊर्जा के विकास की असीम सम्भावनाएँ हैं। फोटोवोल्टाइक विधि से धूप को सीधे विद्युत में परिवर्तित किया जाता है। भारत के ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में सौर ऊर्जा तेजी से लोकप्रिय हो रही है।

2. पवन ऊर्जा:
पवन की गति से उत्पन्न ऊर्जा पवन ऊर्जा कहलाती है। यह पूर्ण रूप से प्रदूषणमुक्त एवं ऊर्जा का असमाप्य स्रोत है। पवन ऊर्जा को पवनचक्कियों से प्राप्त किया जाता है। पवन की गतिज ऊर्जा को टरबाइन के माध्यम से विद्युत ऊर्जा में बदला जाता है। इस ऊर्जा का मुख्य उपयोग कुओं से पानी निकालने, सिंचाई एवं विद्युत उत्पादन में किया जाता है। भारत में पवन ऊर्जा फार्म की विशालतम पेटी तमिलनाडु में नागरकोइल से मदुरई तक फैली हुई है। इसके अतिरिक्त आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, केरल, महाराष्ट्र एवं लक्षद्वीप में भी महत्वपूर्ण पवन ऊर्जा फार्म स्थापित हैं। तमिलनाडु में नागरकोइल एवं राजस्थान का जैसलमेर देश में पवन ऊर्जा के प्रभावी उपयोग के लिए जाने जाते पा

3. बायो गैस:
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में झाड़ियों, कृषि अपशिष्टों, पशुओं और मानवजनित अपशिष्टों के उपयोग से घरेलू उपयोग हेतु बायो गैस उत्पन्न की जाती है। यह गैस जैविक पदार्थों के अपघटन से उत्पन्न होती है। भारत में पशुओं का गोबर प्रयोग करने वाले संयंत्र गोबर गैस संयंत्र के नाम से जाने जाते हैं। ऊर्जा प्राप्ति का यह साधन पर्यावरण को संरक्षित करने वाला है।

4. भू-तापीय ऊर्जा:
पृथ्वी के आंतरिक भागों में ताप का प्रयोग कर उत्पन्न की जाने वाली विद्युत को भू-तापीय ऊर्जा कहते हैं। भारत में सैकड़ों गर्म पानी के झरने हैं जिनका विद्युत उत्पादन में प्रयोग किया जा सकता है। भू-तापीय ऊर्जा के दोहन के लिए भारत में दो प्रौद्योगिक परियोजनाएँ प्रारम्भ की गयी हैं

  1. पार्वती घाटी-मणिकरण (हिमाचल प्रदेश),
  2. पूगा घाटी-लद्दाख।

5. ज्वारीय ऊर्जा:
महासागरों में उठने वाली तरंगों का प्रयोग विद्युत उत्पादन में किया जा सकता है। भारत में ज्वारीय तरंगों द्वारा ऊर्जा उत्पन्न करने की आदर्श दशाएँ खम्भात की खाड़ी, कच्छ की खाड़ी और पश्चिमी तट पर गुजरात में तथा पश्चिम बंगाल में सुन्दरवन क्षेत्र में गंगा के डेल्टा में पाई जाती है।

6. परमाणु ऊर्जा:
परमाणु ऊर्जा अथवा आणविक ऊर्जा अणुओं की संरचना को बदलने से प्राप्त की जाती है। भारत के झारखण्ड एवं राजस्थान में मिलने वाले यूरेनियम व थोरियम का प्रयोग परमाणु ऊर्जा के उत्पादन में किया जाता है। भारत में आणविक ऊर्जा के उत्पादन हेतु तारापुर (महाराष्ट्र), रावतभाटा (राजस्थान), कलपक्कम (तमिलनाडु), नरोरा (उत्तर प्रदेश), काकरापारा (गुजरात) एवं कैगा (कर्नाटक) में अणु विद्युत गृहों की स्थापना की गई है।

मानचित्र सम्बन्धी प्रश्न

प्रश्न 1.
दिए गए रेखा मानचित्र का अध्ययन कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
1. 1, 2, 3, 4 पर चिह्नित लौह अयस्क पेटियों को पहचानें।
2. क, ख, ग, घ पर चिह्नित लौह अयस्क निर्यातक पत्तनों को पहचानें।
3. विशाखापट्टनम को मानचित्र में अंकित कीजिए।
4. पारादीप को मानचित्र में अंकित कीजिए।
5. मैंगनीज उत्पादक क्षेत्रों को मानचित्र में अंकित कीजिए।
6. बॉक्साइट उत्पादक क्षेत्र
7. अभ्रक उत्पादक क्षेत्र

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उत्तर:
(i) 1. बेलारी-चित्रदुर्ग, चिक्कमंगलूरू-तुमकूरू-लौह अयस्क पेटी,
2. महाराष्ट्र-गोवा लौह अयस्क पेटी,
3. दुर्ग-बस्तर- चन्द्रपुर लौह अयस्क पेटी,
4. उड़ीसा-झारखण्ड लौह अयस्क पेटी

(ii) (क) मार्मागाओ,
(ख) मंगलूरू,
(ग) विशाखापट्टनम,
(घ) पारादीप।

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प्रश्न 2.
केवल चिह्नित करें
उत्तर:

  1. लौह अयस्क खानें – बेलाडिला, बेलारी, कुद्रेमुख, दुर्ग, मयूरभंज।
  2. अभ्रक खानें – अजमेर, बेवर, नैल्लोर, गया और हजारीबाग।

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प्रश्न 3.
केवल चिह्नित करें
उत्तर:

  1. कोयला खानें – रानीगंज, झरिया बोकारो, तलचर, कोरबा, सिंगरौली, सिंगरेनी, नेवेली।
  2. खनिज तेल क्षेत्र – डिगबोई, नाहरकटिया, मुम्बई हाई, बसीन, कलोल और अंकलेश्वर।

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प्रश्न 4.
केवल चिन्हित करें
उत्तर:

  1. तापीय ऊर्जा संयंत्र बरौनी, पनकी, रामागुंडम विजयवाड़ा नेवेली, ट्रॉम्बे, दुर्गापुर कोरबा, तलचर, तूतीकोरिन
  2. आणविक ऊर्जा संयंत्र, नरोरा, रावतभाटा, काकरापारा, कैगा, कलपक्कम

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JAC Class 10 Social Science Important Questions

JAC Board Class 10th Social Science Important Questions Geography Chapter 4 कृषि

वस्तुनिष्ठ

प्रश्न 1.
निम्न में से प्राथमिक क्रिया है
(क) कृषि
(ख) उद्योग
(ग) अध्ययन
(घ) संचार
उत्तर:
(क) कृषि

2. भारत निम्न में से किस उत्पाद का निर्यात करता है?
(क) चाय
(ख) कॉफी
(ग) मसाले
(घ) ये सभी
उत्तर:
(घ) ये सभी

3. किस प्रकार की कृषि में किसान भूमि के टुकड़े को साफ करके उन पर अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए
अनाज
व अन्य खाद्य फसलें उगाते हैं
(क) प्रारम्भिक जीविका निर्वाह कृषि
(ख) कर्तन दहन प्रणाली कृषि
(ग) वाणिज्यिक कृषि ।
(घ) ये सभी
उत्तर:
(ख) कर्तन दहन प्रणाली कृषि

4. कर्नाटक में मुख्य रोपण फसल है?
(क) चाय
(ख) कॉफी
(ग) रबड़
(घ) गन्ना
उत्तर:
(ख) कॉफी

5. निम्न में से कौन-सी रबी की फसल है?
(क) गेहूँ
(ख) धान
(ग) बाजरा
(घ) मक्का
उत्तर:
(क) गेहूँ

6. निम्न में से कौन-सी खरीफ की फसल है?
(क) चना
(ख) चावल
(ग) कपास
(घ) (ख) व (ग) दोनों
उत्तर:
(घ) (ख) व (ग) दोनों

7. निम्न में से किस फसल के उत्पादन में भारत का विश्व में दूसरा स्थान है
(क) गन्ना
(ख) तिलहन
(ग) चावल
(घ) ये सभी
उत्तर:
(घ) ये सभी

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8. निम्न में से किस फसल को सुनहरा रेशा कहा जाता है
(क) गेहूँ
(ख) कपास
(ग) जूट
(घ) चाय
उत्तर:
(ग) जूट

स्थान सम्बन्धी प्रश्न

निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:
1. भारत की लगभग………जनसंख्या कृषि कार्यों से जुड़ी हुई है।
उत्तर:
दो-तिहाई,

2. कर्तन दहन कृषि को नागालैण्ड में………कहा जाता है।
उत्तर:
झूम कृषि,

3. ……….वाणिज्यिक कृषि का एक प्रकार है।
उत्तर:
रोपण कृषि,

4. भारत चीन के पश्चात् दूसरा सबसे बड़ा………. उत्पादक राज्य है।
उत्तर:
चावल,

5. भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा……….उत्पादक देश है?
उत्तर:
तिलहन।

अति लयूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भूमि के छोटे टुकड़े पर आदिम कृषि औजारों की सहायता से की जाने वाली कृषि का नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रारम्भिक जीवन निर्वाह कृषि।

प्रश्न 2.
झूम (झूमिंग) कृषि भारत के किन-किन राज्यों में की जाती है?
उत्तर:
झूम (झुमिंग) कृषि भरत के असम, मेघालय, मिजोरम, नागालैण्ड आदि राज्यों में की जाती है।

प्रश्न 3.
दीपा क्या है?
उत्तर:
छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर जिले एवं अण्डमान: निकोबार द्वीप समूह में की जाने वाली कर्तन दहन प्रणाली कृषि को दीपा कहा जाता है।

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प्रश्न 4.
दक्षिणी:
पूर्वी राजस्थान में की जाने वाली कर्तन दहन प्रणाली कृषि को किस नाम से पुकारा जाता है ?
उत्तर:
दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान में की जाने वाली कर्तन दहन प्रणाली कृषि को वालरे या वाल्टरे के नाम से पुकारा जाता है।

प्रश्न 5.
रोपण कृषि क्र क्या है ?
उत्तर:
रोपण-कृषि एक प्रकार की वाणिज्यिक खेती है जिसमें लम्बे-चौड़े क्षेत्र में एकल फसल बोयी जाती है।

प्रश्न 6.
भारत में उत्पादित की जाने वाली किन्हीं पाँच रोपण फसलों का नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. चाय,
  2. कॉफी,
  3. रबड़,
  4. गन्ना,
  5. केला न द्धरी

प्रश्न 7.
रोपण कुषि के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले फारकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
परिवहन, संचार के साधन, बाजार।

प्रश्न 8.
रबी की प्रमुख फसलें कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:

  1. गेहूँ,
  2. जौ,
  3. मटर,
  4. चना,
  5. सरसों।

प्रश्न 9.
खरीफ की प्रमुख फसलों के नाम लिखिए।
उत्तर:
खरीफ की प्रमुख फसलें हैं:
चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, जूट,  मूँगफली, सोयाबीन,  मूँग, अरहर,  उड़द, कपास।

प्रश्ने 10.
असम, पश्चिमी बंगाल तथा ओडिशा में चावल की कौन-कौनसी फसलें बोयी जाती हैं?
उत्तर:
ऑस, अमन, बोरो।

प्रश्न 11.
प्रमुख जायद फसलों के नाम लिखिए।
उत्तर:
तरबूज, खरबूज, खीरा, ककड़ी, सब्जियाँ आदि प्रमुख जायद फसलें हैं।

प्रश्न 12.
सिंचाई की सह्नायता से किन-किन राज्यों में चावल उगाया जाता है?
उत्तर:

  1. पंजाब
  2. हरियाणा
  3. पश्चिमी उत्तर प्रदेश
  4. राजस्थान।

प्रश्न 13.
गेहूँ की कृषि के लिए आवश्यक वार्षिक वर्षा की मात्रा लिखिए।
उत्तर;
50 सेमी से 75 सेमी।

प्रश्न 14.
भारत में गेहूँ उत्पादक क्षेत्र कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
गंगा-सतलुज का मैदान, दक्कन का काली मिट्टी का क्षेत्र।

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प्रश्न 15.
भारत में उगाये जाने वाले प्रमुख मोटे अनाज कौन-कौन से हैं? से हैं? लिखिए।
उत्तर:
राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात व हरियाणा।

प्रश्न 18.
ज्वार तथा बाजरा के उत्पादन में भारत के अग्रणी राज्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
ज्यार-महाराष्ट्र तथा बाजरा-राजस्थान।

प्रश्न 19.
मक्का फसल के लिए आवश्यक तापमान लिखिए।
उत्तर:
21°C

प्रश्न 20.
भारत की प्रमुख दलहनी फसलें कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:
तुर (अरहर), उड़द, मूँग, मसूर, मटर, चना।

प्रश्न 21.
प्रमुख दलहन उत्पादक राज्यों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रमुख दलहन उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश एवं कर्नाटक हैं।

प्रश्न 22.
गन्ना किस कटिबन्भ की फसल है?
उत्तर:
गन्ना उष्ण एवं उपोष्ण कटिबन्ध की फसल है।

प्रश्न 23.
भारत में गन्ना कहाँ-कहाँ उगाया जाता है?
उत्तर:
भारत में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, पंजाब एवं हरियाणा राज्यों में गन्ना उगाया जाता है।

प्रश्न 24.
किन्हीं चार तिलहन फसलों के नाम लिखिए।
उत्तर:
सरसे, तिल, मूँगफली, सोयाबीन।

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प्रश्न 25.
चाय का पौधा किन क्षेत्रों में उगाया जा सकता है?
उत्तर:
चाय का पौधा उष्ण व उप्पेष्ण कंटिबन्धीय जलवायु, ह्रूमस व जीवांशयुक्त गहरी मिट्टी तथा सुगम जल निकास वाले ढलवाँ क्षेत्रों में उगाया जा सकता है।

प्रश्न 26.
चाय के किन्हीं चार उत्पादक रंज्यों के नाम लिखिए। की जाती है?
उत्तर:
भारत में अरेबिका किस्म की कॉफी पैदा की जाती है।

प्रश्न 28.
किन्हीं दो रेशेदार फसतों के नाम लिखिए?
उत्तर:
जूट, केपस।

प्रश्न 29.
कपास उगाने वाले दो प्रमुख संच्चें के नाम लिखिए ।
उत्तर:
महाराष्ट्र, गुजरात।

प्रश्न 30.
किसानों को बिचौलियों तथा दलालों के शोषण से बचाने के लिए सरकार द्वारा उठाये गये किन्हीं दो कदमों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. सहायिकी उपलब्ध कराना,
  2. समर्थन मूल्यों की घोषणा।

लयूत्तरात्मक प्रश्न (SA1)

प्रश्न 1.
कर्तन दहन प्रणाली कृषि को विश्व के विभिन्न भागों में किन-किन नामों से जाना जाता है?
उत्तर:
कर्तन दहन प्रणाली कृषि को विश्व के विभिन्न भागों में निम्नलिखित नामों से जाना जाता है

क्षेत्र कर्तन दहन प्रणाली कृषि का नाम
1. मैक्सिको व मध्य अमेरिका मिल्पा
2. वेनेजुएला कोनुको
3. ब्राजील रोका
4. मध्य अफ्रीका मसोले
5. इंडोनेशिया लदांग
6. वियतनाम रे

प्रश्न 2.
रबी एवं खरीफ फसलों में कोई तीन अन्तर बताइए।
अथवा
खरीफ शस्य ऋतु और रबी शस्य ऋतु के बीच किन्हीं तीन अन्तरों को उजागर कीजिए।
अथवा
‘रबी शस्य ऋतु’ की किन्हीं तीन प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
‘खरीफ शस्य ऋतु’ की किन्हीं तीन प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रबी एवं खरीफ फसलों में निम्नलिखित अन्तर हैं

रबी फसल खरीफ फसल
1. रबी फसलों की बुवाई शीत ऋतु में अक्टूबर से दसम्बर के मध्य की जाती है। 1. खरीफ फसलों की बुवाई मानसून के आगमन के साथ ही जून-जुलाई के महीनों में की जाती है।
2. इन फसलों को ग्रीष्म ऋतु में अप्रैल से जून माह के मध्य काट लिया जाता है। 2. इन फसलों को शीत ऋतु के प्रारम्भ होने से पूर्व ही सितम्बर-अक्टूबर माह में काट लिया जाता है।
3. गेहूँ जौ, चना, मटर व सरसों आदि प्रमुख रबी फसलें हैं। 3. चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, कपास, दालें आदि प्रमुख खरीफ फसलें हैं।

प्रश्न 3.
चावल की कृषि का वर्णन निम्न बिन्दुओं के आधार पर कीजिए
उत्तर:

  1. जलवायु: यह खरीफ की फसल है जिसे उगाने के लिए उच्च तापमान (250 सेल्सियस से ऊपर) और अधिक आर्द्रता (100 सेमी. से अधिक वर्षा) की आवश्यकता होती है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में इसे सिंचाई करके उगाया जाता है।
  2. उत्पादक क्षेत्र: चावल उत्तर और उत्तर-पूर्वी मैदानों, तटीय क्षेत्रों और डेल्टाई प्रदेशों में उगाया जाता है। नहरों के जाल और नलकूपों की सघनता के कारण पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ कम वर्षा वाले क्षेत्रों में चावल की फसल उगाना संभव हो पाया है।

प्रश्न 4.
गेहूँ की खेती के लिए आवश्यक भौगोलिक परिस्थितियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  1. गेहूँ की खेती के लिए 10° से 25° सेल्सियस तापमान उपयुक्त रहता है। तापमान क्रमशः बढ़ना बहुत लाभदायक होता है।
  2. इसकी खेती के लिए समान रूप से वितरित 50 से 75 सेमी. वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है।
  3. इसकी खेती के लिए हल्की दोमट मिट्टी व चिकनी मिट्टी उपयुक्त रहती है।

प्रश्न 5.
दलहन फसलों को अधिकांशतः अन्य फसलों के आवर्तन में क्यों बोया जाता है? दलहन उत्पादक राज्यों के नाम लिखिए।
अथवा
भारत की प्रमुख दलहन फसलों व उनके उत्पादक राज्यों के नाम लिखिए।
उत्तर:
दालें फलीदार फसलें हैं जो वायुमण्डल से नाइट्रोजन लेकर भूमि की उर्वरता को बनाये रखती हैं। यही कारण है कि इन्हें अन्य फसलों के आवर्तन में बोया जाता है। दालों के उत्पादन हेतु कम नमी की आवश्यकता होती है। दलहन उत्पादक राज्य भारत में दालें मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश एवं कर्नाटक में उत्पादित की जाती हैं। प्रमुख दलहन फसलें-अरहर, उड़द, मूंग, मसूर, मटर एवं चना प्रमुख रूप से उत्पादित होने वाली दलहन फसलें हैं।

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प्रश्न 6.
भारत में कॉफी के उत्पादन के बारे में बताइए।
उत्तर:

  1. भारत विश्व के कुल कॉफी उत्पादन का लगभग 4 प्रतिशत भाग उत्पादित करता है।
  2. भारत में अरेबिका किस्म की कॉफी की खेती की जाती है।
  3. कॉफी की इस किस्म को यमन से लाया गया था।
  4. भारत में इसकी कृषि की शुरुआत बाबा बूदन की पहाड़ियों में हुई।
  5. भारत के प्रमुख कॉफी उत्पादक राज्य कर्नाटक, केरल व तमिलनाडु हैं।

प्रश्न 7.
रबड़ की कृषि के लिए आवश्यक भौगोलिक परिस्थितियों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
रबड़ की कृषि के लिए आवश्यक भौगोलिक परिस्थितियाँ निम्नलिखित हैं

  1. रबड़ की खेती भूमध्यरेखीय, उष्ण एवं उपोष्ण जलवायु वाले प्रदेशों में की जाती है।
  2. इस कृषि के लिए नम व आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है।
  3. इसके लिए 25° सेल्सियस से अधिक तापमान की आवश्यकता होती है।
  4. इसकी कृषि के लिए 200 सेमी. से अधिक वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 8.
भारत के कौन-कौन से राज्य रबड़ के उत्पादन में अग्रणी हैं? इनके अग्रणी होने के कारण लिखिए।
उत्तर:
भारत के प्रायद्वीपीय राज्य विशेषकर केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु रबड़ के उत्पादन में अग्रणी हैं। इसके अतिरिक्त रबड़ का उत्पादन अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह और मेघालय में भी होता है। इन राज्यों के रबड़ उत्पादन में अग्रणी होने का मुख्य कारण है, इसके उत्पादन के लिए आवश्यक भौगोलिक परिस्थितियों का इन राज्यों में उपलब्ध होना। इन राज्यों में रबड़ उत्पादन हेतु आवश्यक 200 सेमी. से अधिक वर्षा तथा 25° सेल्सियस से अधिक तापमान वाली नम और आर्द्र जलवायु उपलब्ध है।

प्रश्न 9.
कपास के उत्पादन के लिए आवश्यक भौगोलिक परिस्थितियाँ कौन-कौनसी होनी चाहिए?
उत्तर:
कपास के उत्पादन के लिए निम्नलिखित आवश्यक भौगोलिक परिस्थितियाँ होनी चाहिए

  1. कपास की खेती के लिए उच्च तापमान होना चाहिए।
  2. इसकी कृषि के लिए हल्की वर्षा की आवश्यकता होती है।
  3. कपास के रेशे की चमक को बनाये रखने के लिए 210 पालारहित दिन व खिली धूप की आवश्यकता होती है।
  4. लावा की काली मिट्टी अथवा दोमट मिट्टी कपास की खेती के लिए आवश्यक है।
  5. कपास की कृषि के लिए अच्छे जलप्रवाह युक्त धरातल व पर्याप्त मानव श्रम की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 10.
जूट के उत्पादन के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ एवं जूट का उपयोग बताइए।
उत्तर:

  • जूट के उत्पादन के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ निम्नलिखित हैं
    1. जूट की खेती के वृद्धि काल के दौरान उच्च तापमान की आवश्यकता होती है।
    2. जूट की खेती के लिए बाढ़ के मैदानों की जल निकास वाली उपजाऊ मिट्टी आदर्श है जहाँ प्रतिवर्ष नई मिट्टी जमा होती रहती है।
  • जूट का उपयोग:
    1. जूट का उपयोग बोरियाँ, चटाई, रस्सी, तन्तु, धागे व गलीचे आदि के निर्माण में होता है।
    2. दस्तकारी की वस्तुओं के निर्माण में भी जूट का उपयोग होता है।

प्रश्न 11.
भारत सरकार द्वारा कृषि के आधुनिकीकरण के लिए क्या-क्या कदम उठाये गये हैं?
अथवा
अर्थव्यवस्था में कृषि के महत्व को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने कृषि के आधुनिकीकरण के लिए कौन-कौन-से गम्भीर प्रयास किये हैं?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में कृषि के महत्व को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने कृषि के आधुनिकीकरण के लिए निम्नलिखित कदम उठाये हैं।

  1. भारतीय कृषि में सुधार के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की स्थापना की गयी।
  2. कृषि विश्वविद्यालयों की स्थापना की गयी।
  3. पशु चिकित्सा सेवाएँ एवं पशु प्रजनन केन्द्रों की स्थापना की गयी।
  4. बागवानी का विकास किया गया।
  5. मौसम विज्ञान एवं मौसम के पूर्वानुमान के क्षेत्र में अनुसन्धान एवं विकास को प्राथमिकता दी गयी।

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प्रश्न 12.
व्यापक भूमि विकास कार्यक्रम क्या था? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
व्यापक भूमि विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए संस्थागत और तकनीकी सुधारों को अपनाया गया। इस दिशा में उठाये गये महत्वपूर्ण कदमों में सूखा, बाढ़, चक्रवात, आग तथा बीमारी के लिए फसल बीमा के प्रावधान और किसानों को कम दर पर ऋण सुविधाएँ प्रदान करने के लिए ग्रामीण बैंकों, सहकारी समितियों तथा भूमि विकास बैंकों की स्थापना सम्मिलित है।

प्रश्न 13.
जीन क्रांति किसे कहते हैं? कार्बनिक कृषि का आज अधिक प्रचलन क्यों है? दो कारण दीजिए।
उत्तर:
जननिक इंजीनियरिंग द्वारा बीजों की नई संकर किस्मों को तैयार कर फसलों का उत्पादन बढ़ाए जाने को जीन क्रांति कहा जाता है। आज कार्बनिक कृषि के अधिक प्रचलन के दो कारण निम्नलिखित हैं

  1. इसमें उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया जाता है।
  2. इसका पर्यावरण पर किसी तरह का नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA2)

प्रश्न 1.
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
कृषि को भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार क्यों माना जाता है?
उत्तर:
कृषि एक प्राथमिक क्रिया है जो व्यक्ति के लिए अधिकांशतः खाद्यान्न एवं विभिन्न उद्योगों के लिए कच्चा माल उत्पन्न करती है। भारत में कृषि प्राचीनकाल से ही होती आ रही है। भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्व निम्नलिखित कारणों से है

  1. भारत की कुल राष्ट्रीय आय में कृषि का महत्वपूर्ण योगदान हैं।
  2. देश की लगभग दो-तिहाई जनसंख्या कृषि कार्यों में संलग्न है।
  3. कृषि से उद्योगों को कच्चा माल मिलता है।
  4. भारत की लगभंग 52 प्रतिशत जनसंख्या प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है।
  5. चाय, कॉफी, मसाले जैसे कई कृषि उत्पादों का निर्यात करके भारत विदेशी मुद्रा अर्जित करता है।
  6. कृषि का देश की समृद्धि एवं सुरक्षा से घनिष्ठ सम्बन्ध है।
  7. व्यापार, उद्योग एवं यातायात का विकास कृषि पर निर्भर करता है।
  8. कृषि भारत में रोजगार का प्रमुख स्रोत है।

प्रश्न 2.
कर्तन दहन प्रणाली कृषि किसे कहते हैं? कर्तन दहन प्रणाली कृषि के भारत के विभिन्न भागों में स्थानीय नाम क्या हैं ? बताइए।
उत्तर:
कर्तन दहन प्रणाली कृषि एक आदिमकालीन कृषि है। इस प्रकार की कृषि जंगलों में निवास करने वाले आदिवासियों एवं पिछड़ी जातियों द्वारा की जाती है। इसमें कृषक जमीन के टुकड़े को साफ करके उन पर अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए अनाज व अन्य खाद्य फसलें उगाते हैं। आज भी भारत के उत्तरी-पूर्वी भाग, राजस्थान, छत्तीसगढ़, आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखण्ड आदि राज्यों में आदिवासियों द्वारा इस प्रकार की कृषि की जाती है। देश के विभिन्न क्षेत्रों में इसे अलग-अलग स्थानीय नामों से जाना जाता है।

उत्तरी-पूर्वी राज्यों यथा असम, मेघालय, मिजोरम एवं नागालैण्ड में इसे झूम अथवा झूमिंग कहा जाता है। मणिपुर में पामलू, छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले एवं अण्डमान निकोबार द्वीप समूह में इसे दीपा, मध्य प्रदेश में बेबर या दहिया, आन्ध्र प्रदेश में पोडु या पेंडा, ओडिशा में पामाडाबी या कोमान या बरीगाँ, पश्चिमी घाट में कुमारी, दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में वालरे या वाल्टरे, हिमालय क्षेत्रों में खिल तथा झारखण्ड में कुरूवा आदि नामों से जाना जाता है।

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प्रश्न 3.
गहन जीविका कृषि से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
गहन जीविका कृषि से आप क्या समझते हैं? इसके कोई पाँच लक्षण लिखिए।
अथवा
गहन जीविका कृषि की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
अथवा:
उत्तर:
गहन जीविका कृषि-गहन जीविका कृषि एक प्रकार की श्रम गहन खेती है जिसमें अधिक उत्पादन के लिए अधिक मात्रा में जैव रासायनिक निवेशों एवं सिंचाई का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार की कृषि उन क्षेत्रों में की जाती है जहाँ खेती की जाने वाली भूमि सीमित होती है तथा जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है। गहन जीविका कृषि की विशेषताएँ/लक्षण-इस कृषि की प्रमुख विशेषताएँ/लक्षण निम्नलिखित हैं

  1. यह एक श्रम गहन खेती है।
  2. इस कृषि में अत्यधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए जैव-रासायनिक निवेशों व सिंचाई का अधिक प्रयोग किया जाता है।
  3. इस कृषि में प्रति हेक्टेयर उत्पादन अधिक होता है।
  4. भूस्वामित्व में विरासत के अधिकार के कारण पीढ़ी पर पीढ़ी जोतों का आकार लगातार छोटा व अलाभप्रद होता जा रहा है।
  5. इस कृषि में किसान वैकल्पिक रोजगार न होने के कारण सीमित भूमि से अधिकाधिक पैदावार लेने की कोशिश करते हैं। अतः कृषि भूमि पर दबाव बहुत अधिक है।

प्रश्न 4.
वाणिज्यिक कृषि से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताएँ लिखिए। किन्हीं दो वाणिज्यिक फसलों के नाम बताइए।
अथवा
वाणिज्यिक कृषि की प्रमुख विशेषताओं को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
वाणिज्यिक कृषि-वाणिज्यिक कृषि, कृषि का वह रूप है जिसमें फसलें मुख्य रूप से बेचने अथवा व्यापार के उद्देश्य से ही उगायी जाती हैं। इस कृषि में निर्यात की दृष्टि से अतिरिक्त उत्पादन किया जाता है। वाणिज्यिक कृषि की विशेषताएँ-इस कृषि की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. इस कृषि में व्यापार करने के लिए ही फसलों को उगाया जाता है।
  2. यह कृषि बड़े-बड़े खेतों पर की जाती है।
  3. इस कृषि में अधिक उत्पादकता प्राप्त करने के लिए आधुनिक तकनीकों जैसे अधिक पैदावार देने वाले बीजों, रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों का प्रयोग होता है।
  4. इस कृषि में अत्यधिक पूँजी के साथ-साथ श्रमिकों का भी प्रयोग होता है।
  5. इस कृषि के अन्तर्गत वाणिज्यीकरण का स्तर विभिन्न प्रदेशों में भिन्न-भिन्न है; यथा-हरियाणा और पंजाब में चावल एक वाणिज्य फसल है जबकि ओडिशा में यह एक जीविका फसल है।
  6. इस कृषि में मुख्यतः नकदी फसलें उगायी जाती हैं क्योंकि बाजार में उनकी अच्छी कीमत मिल जाती है। दो प्रमुख वाणिज्यिक फसलें-चाय व गन्ना हैं।

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प्रश्न 5.
रोपण कृषि की कोई चार विशेषताएँ लिखिएं।
अथवा
‘रोपण कृषि भी एक प्रकार की वाणिज्यिक खेती है।’ इस कथन को स्पष्ट करते हुए इसकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
रोपण कृषि भी एक प्रकार की वाणिज्यिक खेती है जिसमें फसलें मुख्य रूप से बाजार एवं व्यापार को ध्यान में रखते हुए उगायी जाती हैं। इस कृषि के अन्तर्गत एक नगदी फसल उगायी जाती है जिसका उत्पादन केवल बेचने के उद्देश्य से किया जाता है। चाय, कॉफी, रबड़, गन्ना, कहवा, केला आदि महत्वपूर्ण रोपण फसलें हैं।
रोपण कषि की विशेषताएँ/लक्षण

  1. इस कृषि के अन्तर्गत एक ही फसल वृहत स्तर पर उगायी जाती है।
  2. इस कृषि में अत्यधिक मात्रा में पूँजी निवेश किया जाता है।
  3. इस कृषि में आधुनिक विज्ञान एवं तकनीकी का प्रयोग किया जाता है।
  4. इस कृषि के लिए विस्तृत क्षेत्र, कुशल प्रबन्ध, तकनीकी ज्ञान, वैज्ञानिक मशीनरी, उर्वरक, पीड़कनाशी तथा विकसित परिवहन व्यवस्था, बाजार आदि की भी आवश्यकता होती है।
  5. इस कृषि से प्राप्त समस्त उत्पादन विभिन्न उद्योगों में कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त होता है।
  6. इस कृषि में अत्यधिक मात्रा में श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती है।
  7. रोपण कृषि उद्योग व कृषि के मध्य एक अन्तरापृष्ठ (interface) होती है। और

प्रश्न 6.
भारत की तीन शस्य ऋतुओं के बारे में संक्षेप में बताइए।
1. रबी:
शीत ऋतु में वर्षा के बाद अक्टूबर से दिसम्बर के मध्य इन फसलों को बोया जाता है। रबी की प्रमुख फसलों में गेहूँ, जौ, मटर, चना व सरसों आदि हैं। इन फसलों की अप्रैल से जून के मध्य कटाई की जाती है।

2. खरीफ:
देश में वर्षा ऋतु के प्रारम्भ होते ही जून-जुलाई में खरीफ की फसलें बोई जाती हैं। इस ऋतु में बोयी जाने वाली प्रमुख फसलों में चावल, मक्का, कपास, जूट, उड़द, बाजरा, ज्वार, अरहर, सोयाबीन, मूंगफली, जूट व मूंग आदि हैं। इन फसलों को सितम्बर-अक्टूबर में काट लिया जाता है।

3. जायद:
यह गर्मी में बोयी जाने वाली कृषि फसल है। रबी व खरीफ की फसल ऋतुओं के मध्य ग्रीष्मकाल में बोई जाने वाली फसल को जायद के नाम से जाना जाता है। इस ऋतु की प्रमुख फसलों में तरबूज, खरबूज, ककड़ी, खीरा, सब्जियाँ आदि हैं।

प्रश्न 7.
गेहूँ की खेती के लिए कौन-कौन सी भौगोलिक दशाएँ आवश्यक होती हैं? प्रमुख गेहूँ उत्पादक राज्यों के नाम भी लिखिए।
उत्तर:
गेहूँ की खेती के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाएँ निम्नलिखित हैं
1. तापमान:
गेहूँ की खेती के लिए 10° से 25° सेल्सियस तापमान उपयुक्त रहता है। बहुत कम तापमान गेहूँ की खेती के लिए हानिकारक होता है। गेहूँ बोने के समय जलवायु का नम एवं तर होना आवश्यक है। तापमान का क्रमशः बढ़ना बहुत लाभदायक होता है।

2. वर्षा:
गेहूँ बोते समय साधारण वर्षा लाभकारी होती है। इससे गेहूँ का पौधा अंकुरित होकर बढ़ने लग जाता है। इसकी कृषि के लिए 50 से 75 सेमी. वार्षिक वर्षा पर्याप्त रहती है। अधिक वर्षा इसके लिए हानिकारक होती है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई आवश्यक होती है। गेहूँ की फसल काटते समय शुष्क मौसम अवश्य होना चाहिए।

3. मिट्टी:
गेहूँ की कृषि के लिए हल्की दोमट मिट्टी एवं चिकनी मिट्टी उपयुक्त रहती है। घास के मैदानों की गहरी भूरी मिट्टी भी इसके लिए लाभदायक होती है। मिट्टी में शोरा व अमोनियम सल्फेट की खाद लाभदायक होती है। प्रमुख गेहूँ.उत्पादक राज्य:
पंजाब,  हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान,  बिहार।

प्रश्न 8.
गन्ने की खेती के लिए आवश्यक जलवायविक परिस्थितियों की चर्चा कीजिए। दो प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्यों के नाम बताइए।
अथवा
गन्ने की उपज के लिए अनुकूल भौगोलिक परिस्थितियों का उल्लेख करते हुए, उसके उत्पादन तथा उपयोग पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
गन्ने की खेती के लिए आवश्यक जलवायविक परिस्थितियाँ निम्नलिखित हैं:

  1. उष्ण एवं उपोष्ण कटिबन्धीय जलवायु में गन्ने की फसल अच्छी होती है।
  2. इसकी खेती के लिए 21°C से 27°C के बीच तापमान की आवश्यकता होती है। निरन्तर समान ताप बने रहने से गन्ने में मिठास की मात्रा बढ़ जाती है।
  3. गन्ने की खेती के लिए पर्याप्त वर्षा चाहिए। इसके लिए 75 सेमी. से 100 सेमी. तक वार्षिक वर्षा उपयुक्त होती है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई की भी आवश्यकता पड़ती है।
  4. मेघाच्छादन एवं पाला गन्ने की फसल के लिए हानिकारक होते हैं। फसल के पकते समय शुष्क मौसम उपयुक्त रहता है। गन्ना उत्पादक राज्य-उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, पंजाब व हरियाणा आदि हैं। गन्ने का उपयोग-गन्ने से चीनी, गुड, खांडसारी और शीरा बनाया जाता है।

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प्रश्न 9.
भारत में स्वतंत्रता के पश्चात् कृषि क्षेत्र में हुए सुधारों को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
भारत में स्वतंत्रता के पश्चात् कृषि क्षेत्र में निम्नलिखित सुधार किए गए हैं

  1. भूमि को टुकड़ों में विभाजित होने से रोकने के लिए चकबन्दी कार्यक्रम चलाया गया।
  2. सन् 1980 तथा 1990 के दशकों में व्यापक भूमि विकास कार्यक्रम शुरू किये गये जो संस्थागत और तकनीकी सुधारों पर आधारित थे।
  3. किसानों के लाभ के लिए किसान क्रेडिट कार्ड एवं व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना शुरू की गयी।
  4. किसानों को बिचौलियों और दलालों से बचाने के लिए न्यूनतम सहायता मूल्य एवं कुछ महत्वपूर्ण फसलों के लिए लाभदायक खरीद मूल्यों की सरकार द्वारा घोषणा की जाती है।
  5. किसानों को सूखा, बाढ़, चक्रवात, आग एवं बीमारी के लिए फसल बीमा उपलब्ध कराया गया तथा उन्हें न्यूनतम दर पर ऋण उपलब्ध कराने के लिए ग्रामीण बैंकों, सहकारी समितियों एवं भूमि विकास बैंकों की स्थापना की गयी।
  6. पैकेज टेक्नोलॉजी पर आधारित हरित क्रांति एवं श्वेत क्रांति जैसे कृषि-सुधार कार्यक्रमों का संचालन किया गया।
  7. आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर कृषकों के लिए मौसम की जानकारी के बुलेटिन एवं कृषि कार्यक्रमों का प्रचार प्रारम्भ किया गया।

प्रश्न 10.
भूदान तथा ग्रामदान से आप क्या समझते हैं?
अथवा
विनोबा भावे द्वारा संचालित ग्रामदान व भूदान आन्दोलन को रक्तहीन क्रान्ति क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
विनोबा भावे ने महात्मा गाँधी के सत्याग्रह में सबसे निष्ठावान सत्याग्रही के रूप में भाग लिया था। गाँधी जी ने उनको अपना आध्यात्मिक उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। विनोबा भावे की गाँधी जी के ग्राम स्वराज अवधारणा में गहरी आस्था थी। गाँधी जी की शहादत के पश्चात् उनके संदेश को लोगों तक पहुँचाने के लिए विनोबा भावे लगभग सम्पूर्ण देश की यात्रा की। यात्रा के दौरान इन्होंने भूदान व ग्रामदान आन्दोलन का संचालन किया। भूदान आन्दोलन के अन्तर्गत जमीदारों ने स्वेच्छा से जमीनों के टुकड़े दान में दिए थे, जिन्हें निर्धन भूमिहीन लोगों के बीच बाँट दिया गया था।

ग्रामदान आन्दोलन में कुछ जमीदारों एवं कई-कई गाँवों के मालिक भूपतियों द्वारा गाँवों का दान दिया गया था। इन गाँवों की भूमि को विनोबा भावे द्वारा भूमिहीन किसानों एवं मजदूरों के बीच बाँट दिया गया था। भूदान-ग्रामदान आन्दोलन के लिए न तो किसी वैधानिक दबाव अथवा न ही किसी राजनीतिक शक्ति का प्रयोग किया गया था और न ही किसी प्रकार की हिंसात्मक गतिविधियों का सहारा लिया गया था। धनवान लोगों द्वारा अपनी जमीन स्वेच्छा से दान में दी गई थी। यही कारण है कि इस आन्दोलन को ‘रक्तहीन क्रान्ति’ कहा जाता है।

प्रश्न 11.
पिछले वर्षों में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि हुई है परन्तु इससे देश में पर्याप्त मात्रा में रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं हो रहे हैं। कारण सहित उक्त कथन को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
पिछले कुछ वर्षों में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि हुई है परन्तु कृषि रोजगार घट रहे हैं। कारण दीजिए।
उत्तर:
पिछले कुछ वर्षों में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि हुई है परन्तु इससे देश में पर्याप्त मात्रा में रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं, जिसके निम्नलिखित कारण हैं

  1. कृषि में विकास दर कम होती जा रही है जोकि एक चिन्ताजनक स्थिति है।
  2. वर्तमान में भारतीय किसान को कड़ी अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है।
  3. रासायनिक उर्वरकों पर सहायिकी कम करने से उत्पादन लागत बढ़ रही है।
  4. सरकार कृषि सेक्टर में विशेष रूप से सिंचाई, ऊर्जा, ग्रामीण सड़कों, मंडियों और यंत्रीकरण में सार्वजनिक पूँजी के निवेश को कम करती जा रही है।
  5. कृषि उत्पादों पर आयात कर घटाने से देश में कृषि को नुकसान पहुँच रहा है। किसान कृषि में पूँजी निवेश कम कर रहे हैं। इन्हीं सब कारणों की वजह से पिछले कुछ वर्षों में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि के बावजूद कृषि का उसमें योगदान लगातार कम होता जा रहा है। फलस्वरूप कृषि रोजगार घट रहे हैं।

प्रश्न 12.
सन् 1990 के पश्चात् वैश्वीकरण के अन्तर्गत भारतीय किसानों को कौन-कौन सी नवीन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सन् 1990 के पश्चात् भारत में वैश्वीकरण की शुरुआत हुई। वैश्वीकरण के अन्तर्गत हमारे देश की अर्थव्यवस्था का विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ समन्वय कर दिया गया है। सन् 1990 के पश्चात् वैश्वीकरण के तहत भारतीय किसानों को अनेक नवीन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। चावल, कपास, रबड़, चाय, कॉफी, जूट एवं मसालों का मुख्य उत्पादक देश होने के बावजूद भारतीय कृषि विश्व के विकसित देशों से प्रतियोगिता करने में असमर्थ है क्योंकि विकसित देशों में कृषि को अत्यधिक सहायिकी दी जाती है। इसी कारण विश्व बाजार में ये देश अपने कृषि उत्पादों को कम मूल्य पर बेचते हैं जबकि भारतीय कृषि उत्पादों की कम सहायिकी के कारण लागत अधिक बैठती है। अतः इस समस्या के निराकरण के लिए छोटे एवं सीमांत भारतीय किसानों की स्थिति में सुधार लाने पर जोर देना होगा।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वर्तमान समय में भारत के विभिन्न भागों में कौन-कौनसे कृषि तंत्र अपनाये गये हैं? किसी एक कृषि तंत्र का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत के कृषि तंत्र-वर्तमान समय में भारत के विभिन्न भागों में निम्नलिखित प्रकार के कृषि तंत्र अपनाये गये हैं

  1. प्रारम्भिक जीविका निर्वाह कृषि,
  2. गहन जीविका कृषि,
  3. वाणिज्यिक कृषि,
  4. रोपण कृषि।

प्रारम्भिक जीविका निर्वाह कृषि:
प्रारम्भिक जीविका निर्वाह कृषि, कृषि का एक आदिम रूप है। इस प्रकार की कृषि हमारे देश के कुछ भागों में आज भी की जाती है। यह कृषि जंगलों में निवास करने वाले आदिवासी एवं पिछड़ी जातियों द्वारा की जाती है। इसमें वनों को जलाकर भूमि साफ करके दो तीन वर्षों तक अपने परिवार के भरण पोषण के लिए अनाज व अन्य खाद्य फसलें उगायी जाती हैं और जब मिट्टी की उर्वराशक्ति समाप्त हो जाती है तो उस भूमि को छोड़कर यही प्रक्रिया दूसरे क्षेत्रों में अपनायी जाती है। इस कृषि को कर्तन दहन प्रणाली कृषि अथवा स्थानान्तरित कृषि के नाम से भी जाना जाता है।

विशेषताएँ:
प्रारम्भिक जीविका निर्वाह कृषि की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. इस प्रकार की कृषि भूमि के छोटे-छोटे टुकड़ों पर की जाती है।
  2. इस प्रकार की कृषि में पुरानी तकनीक एवं आदिम औजारों का प्रयोग किया जाता है। आदिम कृषि औजारों में लकड़ी के हल, डाओ एवं खुदाई करने वाली छड़ी आदि सम्मिलित हैं।
  3. इस प्रकार की कृषि परिवार अथवा समुदाय श्रम की सहायता से की जाती है।
  4. इस प्रकार की कृषि प्रायः मानसून, मिट्टी की प्राकृतिक उर्वरता तथा फसल उगाने के लिए अन्य पर्यावरणीय परिस्थितियों की उपयुक्तता पर निर्भर करती है।
  5. इस प्रकार की कृषि में उर्वरा शक्ति समाप्त होने पर भूमि के टुकड़े बदलते रहते हैं। इस प्रकार के स्थानान्तरण से प्राकृतिक क्रियाओं द्वारा मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है। इसे कर्तन दहन प्रणाली कृषि भी कहा जाता है।
  6. इस कृषि में उत्पादकता कम होती है क्योंकि किसान उर्वरकों या अन्य आधुनिक तकनीकों का प्रयोग नहीं करते हैं।
  7. इस प्रकार की कृषि के अन्तर्गत मुख्य रूप से खाद्यान्न फसलों का उत्पादन किया जाता है।
  8. इस प्रकार की कृषि में कृषि क्षेत्र एवं आवास दोनों बदलते रहते हैं।
  9. इस प्रकार की कृषि में किसान केवल उतना ही उत्पादन करता है जो कि उसके जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक होता है।
  10. भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में इस कृषि को भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है।

उत्तरी: पूर्वी राज्यों यथा असम, मेघालय, मिजोरम एवं नागालैण्ड में इसे झूम (झूमिंग) कृषि कहा जाता है। इसको मणिपुर में पामल, छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले एवं अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह में दीपा, मध्य प्रदेश में बेबर या दहिया, आन्ध्र प्रदेश में पोडु या पेंडा, ओडिशा में पामाडाबी या कोमान या बरीगाँ, पश्चिमी घाट में कुमारी, दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान में वालरे या वाल्टरे, हिमालयन क्षेत्र में खिल एवं झारखण्ड में कुरुवा आदि नामों से जाना जाता है।

प्रश्न 2.
भारत में पैदा होने वाली प्रमुख खाद्यान्न फसलों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में पैदा होने वाली प्रमुख खाद्यान्न फसलें निम्नलिखित हैं
1. चावल:
चावल खरीफ की फसल है। भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश है। भारत की अधिकांश जनसंख्या का खाद्यान्न चावल है। चावल को उगाने के लिए 25° सेल्सियस से अधिक तापमान एवं 100 सेमी. से अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है। भारत में चावल उत्तर व उत्तरी-पूर्वी मैदानों, तटीय क्षेत्रों एवं डेल्टाई प्रदेशों में उगाया जाता है। नहरों व नलकूपों की सुविधा के कारण पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान के कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी चावल उगाना सम्भव हो पाया है।

2. गेहूँ:
गेहूँ रबी की फसल है। यह भारत का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण खाद्यान्न है। इसे उगाने के लिए शीत ऋतु एवं पकने के समय खिली धूप की आवश्यकता होती है। इसे 50 से 75 सेमी. वार्षिक वर्षा की भी आवश्यकता होती है। देश में गेहूँ उगाने वाले दो मुख्य क्षेत्र हैं-गंगा-सतलुज का मैदान एवं दक्कन का काली मिट्टी का क्षेत्र। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान एवं मध्य प्रदेश के कुछ भाग गेहूँ पैदा करने वाले मुख्का राज्य हैं।

3. ज्वार:
क्षेत्रफल एवं उत्पादन की दृष्टि से ज्वारं देश की तीसरी महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है। अधिकांशतया आर्द्र प्रदेशों में उगाये जाने के कारण इस फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। ज्वार की सर्वाधिक पैदावार महाराष्ट्र में होती है। अन्य उत्पादक राज्य कर्नाटक, तेलंगाना, आन्ध्र प्रदेश व मध्य प्रदेश आदि हैं।

4. बाजरा:
बाजरे की फसल बलुआ व उथली काली मिट्टी में उत्पादित की जाती है। बाजरे का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य राजस्थान है। अन्य उत्पादक राज्यों में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात व हरियाणा आदि हैं।

5. रागी:
यह शुष्क प्रदेशों की फसल है जो लाल, काली, बलुआ, दोमट व उथली काली मिट्टी में उगायी जाती है। रागी में प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व मिलते हैं। रागी का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कर्नाटक है। अन्य उत्पादक राज्य हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, सिक्किम, झारखण्ड व अरुणाचल प्रदेश आदि हैं।

6. दालें:
भारत विश्व का सबसे बड़ा दाल उत्पादक देश एवं उपभोक्ता देश है। तुर (अरहर), उड़द, मूंग, मसूर, चना व मटर आदि भारत की प्रमुख दलहनी फसल हैं। दालें कम नमी में पैदा की जा सकती हैं। फलीदार फसल होने के कारण अरहर के अतिरिक्त अन्य सभी दालें वायु से नाइट्रोजन लेकर भूमि की उर्वरता को बनाये रखती हैं।
भारत में दाल के प्रमुख उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश व कर्नाटक आदि हैं।

7. मक्का:
मक्का एक खरीफ की फसल है, जिसका प्रयोग खाद्यान्न व चारा दोनों रूपों में किया जाता है। इसे उगाने के लिए 21° से 27° सेल्सियस तापमान व पुरानी जलोढ़ मिट्टी आवश्यक होती है। मक्का के प्रमुख उत्पादक राज्य कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, आन्ध्र प्रदेश एवं तेलंगाना आदि हैं।

मानचित्र संबंधी प्रश्न

प्रश्न 1.
दिए गए मानचित्र का अध्ययन कर किन्हीं 6 चावल उत्पादक राज्यों को पहचानें।
उत्तर:

  1. पश्चिमी बंगाल,
  2. पंजाब,
  3. हरियाणा,
  4. उत्तर प्रदेश,
  5. आन्ध्र प्रदेश,
  6. तमिलनाडु।

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प्रश्न 2.
भारत के रेखा मानचित्र में कपास फसल क्षेत्रों को अंकित कीजिए।
उत्तर:

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JAC Class 10 Social Science Important Questions

JAC Board Class 10th Social Science Important Questions Geography Chapter 3 जल संसाधन

वस्तुनिष्ठ

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौन-सा अलवणीय जल प्राप्ति का स्रोत है
(क) सतही अपवाह
(ख) भौम जल
(ग) (क) व (ख)
(घ) महासागर
उत्तर:
(ग) (क) व (ख)

2. निम्न में से किसकी सहायता से जल का लगातार नवीनीकरण और पुनर्भरण होता रहता है
(क) ऑक्सीजन चक्र
(ख) नाइट्रोजन चक्र
(ग) जलीय चक्र
(घ) ये सभी
उत्तर:
(क) ऑक्सीजन चक्र

3. धरातल पर जल की कमी का कारण है
(क) अतिशोषण
(ख) अत्यधिक प्रयोग।
(ग) समाज के विभिन्न वर्गों में असमान वितरण
(घ) ये सभी।
उत्तर:
(घ) ये सभी।

4. निम्न में से किस नदी बेसिन में हीराकुड परियोजना जल संरक्षण तथा बाढ़ नियन्त्रण का समन्वय है?
(क) महानदी बेसिन
(ख) सतलुज-व्यास बेसिन
(ग) नर्मदा बेसिन
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) महानदी बेसिन

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5. निम्न में से किसने बाँधों को ‘आधुनिक भारत के मन्दिर’ कहा?
(क) महात्मा गाँधी
(ख) लाल बहादुर शास्त्री
(ग) पं. जवाहरलाल नेहरू
(घ) सरदार पटेल
उत्तर:
(ग) पं. जवाहरलाल नेहरू

6. सरदार सरोवर बाँध किस नदी पर बनाया गया है?
(क) महानदी
(ख) नर्मदा
(ग) दामोदर
(घ) ब्रह्मपुत्र
उत्तर:
(ख) नर्मदा

7. राजस्थान के अर्द्धशुष्क एवं शुष्क क्षेत्रों में प्रयोग की जाने वाली जल-संग्रहण प्रणाली को कहा जाता है
(क) कुल
(ख) गुल
(ग) बाँस ड्रिप
(घ) टाँका
उत्तर:
(घ) टाँका

रिक्त स्थान सम्बन्धी प्रश्न

निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:
1. सम्पूर्ण पृथ्वी के लगभग………भाग पर जल का विस्तार पाया जाता है।
उत्तर:
तीन-चौथाई,

2. सतलुज-व्यास बेसिन में………परियोजना जल विद्युत उत्पादन और सिंचाई दोनों के काम आती है।
उत्तर:
भाखड़ा-नांगल,

3. 11वीं सदी में बनवाई गई……….अपने समय की सबसे बड़ी कृत्रिम झील है।
उत्तर:
भोपाल झील,

4. पंडित जवाहर लाल नेहरू ने बाँधों को……….कहा।
उत्तर:
आधुनिक भारत के मन्दिर,

5. ……….में बाँस ड्रिप सिंचाई की जाती है।
उत्तर:
मेघालय।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
हमें अलवणीय जल कहाँ से प्राप्त होता है ?
अथवा
भारत में अलवणीय जल के दो स्रोत कौन-से हैं?
उत्तर:
हमें अलवणीय जल सतही अपवाह एवं भौम जल स्रोत से प्राप्त होता है।

प्रश्न 2.
विश्व का कौन-सा देश है जहाँ मात्र 25 सेमी. औसत वार्षिक वर्षा होने पर भी पानी का अभाव नहीं है ?
उत्तर:
इजराइल।

प्रश्न 3.
भारत में उत्कृष्ट सिंचाई तत्र्र होने के प्रमाण कहाँ मिले हैं?
उत्तर:

  1. कलिंग (ओडिशा),
  2. नागार्जुनकोंडा (आन्ध्र प्रदेश),
  3. बेन्नूर (कर्नाटक),
  4. कोल्हापुर (मांराष्ट्र)।

प्रश्न 4.
प्राचीनकाल में गंगानदी की बाढ़ के जल को संरक्षित करने के लिए किस स्थान पर एक जल संग्रहण तंत्र बनाया गया था?
उत्तर:
इलाहाबाद के निकट श्रिंगवेरा में।

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प्रश्न 5.
बहुउद्छेशीं परियोजनाओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बहुउद्देशीय परियोजनाएँ वह हैं जो एक साथ अनेक उद्देश्यों की पूर्ति करती हैं, कैसे-सिंचाई, विद्युत उत्पादन, बाढ़ नियन्त्रण, मृदा संरक्षण; मत्स्य पालन आदि ।

प्रश्न 6.
जवाहर लाल नेहरू गर्व से बाँधों को ‘आधुनिक भारत के मन्दि” क्यों कहा करते थे?
उत्तर:
क्योंकि इन परियोजनाओं के कारण कृषि एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था, औद्योगीकरण और नगरीय अर्थव्यवस्था समन्वित रूप से विकास करती है।

प्रश्न 7.
नर्मंबा बचाओ एवं टिडरी बाँ आन्दोरोज जैसे पए आदोलनो का कूल कारण क्या है?
उत्तर:
नर्मदा बचाओ एवं टिहरी बाँध आन्दोलन जैसे नए आन्दोलन का मूल कारण स्थानीय समुदायों का वृहद् स्तर पर विस्थापन होना है।

प्रश्न 8.
बहुउद्देशीय परियोजनाओं से सम्बन्धित अंतराज्यीय झगड़े क्यों बढ़ते जा रहे हैं?
उत्तर:
बहुउद्देशीय परियोजनाओं की लागत व लाभ के बँटवारे को लेकर अंतर्राज्यीय झगड़े बढ़ते जा रहे हैं।

प्रश्न 9.
बहुउद्देशीय परियोजनाओं के विरोध में एक
उत्तर:
बहुउद्देशीय परियोजना के निर्माण के कारण स्थायी समुदायों को वृहद स्तर पर विस्थापित होना पड़ता है।

प्रश्न 10.
किन्हीं दो सामाजिक आन्दोलनों के नाम बताएँ, जिन्हें बहुउद्छेशीय परियोजनाओं के विरोध में आरम्भ किया गया है ?
उत्तर:

  1. नर्मदा बचाओ आन्दोलन एवं
  2. टिहरी बाँध आन्दोलन हैं ।

प्रश्न 11.
कृष्णा-गोदावरी विवाद किन-किन राज्यों से सम्बन्धित है?
उत्तर:
कृष्णा-गोदावरी विवाद निम्न राज्यों से सम्बन्धित है

  1. महाराष्ट्र,
  2. कर्नाटक,
  3. आन्ध्र प्रदेश।

प्रश्न 12.
वर्ष 2006 में भारी वर्षा के दौरान बाँधों से छोड़े गये जल की वजह से किन राज्यों में बाढ़ की स्थिति और अधिक विकट हो गई?
उत्तर:
महाराष्ट्र, गुजरात।

प्रश्न 13.
तुंगभद्रा बहुउद्देश्यीय परियोजना में कौन-कौन से राज्य हिस्सेदार हैं?
उत्तर:
कर्नाटक व आन्ध्र प्रदेश।

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प्रश्न 14.
किन्हीं तीन राज्यों के नाम बताइए जहाँ छत वर्षा जल संग्रहण का तरीका अपनाया जाता है?
उत्तर:
छत वर्षा जल संग्रहण का तरीका अपनाने वाले तीन राज्य हैं- मेघालय, राजस्थान और तमिलनाडु।

प्रश्न 15.
राजस्थान के अर्द्धशुष्क एवं शुष्क क्षेत्रों में वर्षा जल संग्रहण किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर:
राजस्थान के शुष्क व अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में लोग भूमिगत टैंक अथवा टाँका बनाकर वर्षा जल संग्रहण करते हैं।

प्रश्न 16.
राजस्थान के शुष्क वर्द्धशुष्क क्षेत्रों में अधिकतर लोग जल में टाँकों के साथ भूमिगत कमरे बनवाया करते हैं ? कारण दें।
उत्तर:
टाँकों के साथ भूमिगत कमरे बनवाने से जल का यह स्रोत इन कमरों को ठंडा रखता है जिससे ग्रीष्म ऋतु में गर्मी से राहत मिलती है।

प्रश्न 17.
वर्षा जल संग्रहण की क्या आवश्यकता है?
उत्तर:
जल की कमी की समस्था को सुलझाने के लिए वर्षाजल संग्रहण की आवश्यकता है।

प्रश्न 18.
वर्षा जल संग्रहण के किन्हीं दो उद्देश्यों को लिखिए।
उत्तर:

  1. जल की बढ़ती माँग को पूरा करना,
  2. धरातल पर अनावश्यक बहते जल की मात्रा को कम करना।

प्रश्न 19.
पश्चिमी राजस्थान में छत वर्षा जल संग्रहण की रीति किस नहर से वर्ष भर पेयजल की उपलब्धता के कारण कम होती जा रही है ?
उत्तर:
इंदिरा गाँधी नहर के कारण पश्चिमी राजस्थान में छत वर्षा जल संग्रहण की रीति कम होती जा रही है।

प्रश्न 20.
विश्व का सबसे अधिक वर्षा वाला स्थान कौन-सा है?
उत्तर:
विश्य का सबसे अधिक वर्षा वाला स्थान मॉसिनराम (मेघालय) है।

प्रश्न 21.
मेघालय का वह शहर कौन-सा है जहाँ छत वर्षा जल संग्रहण प्रणाली प्रचलित है?
उत्तर:
मेघालय की राजधानी शिलांग में छत वर्षा जल संग्रहण प्रणाली प्रचलित है।

प्रश्न 22.
बाँस ड्रिप सिंचाई प्रणाली को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इसं विधि द्वारा मेघालय में नदियों व झरनों के जल को बाँस से बने पाइप द्वारा एकत्रित करके सिंचाई के काम में लिया जाता है।

लयूत्तरात्मक प्रश्न (SA1)

प्रश्न 1.
बढ़ती जनसंख्या जल दुर्लभता के लिए उत्तरदायी है। व्याख्या करें।
अथवा
अधिक जनसंख्या के कारण जल दुर्लभता होती है। बताइए।
उत्तर:
बढ़ती जनसंख्या अर्थात् जल की अधिक माँग। जल अधिक जनसंख्या के लिए घरेलू उपभोग में ही नहीं बल्कि अधिक अनाज उगाने के लिए भी आवश्यक होता है। अनाज का उत्पादन बढ़ाने के लिए जल संसाधनों का अतिशोषण करके ही सिंचित क्षेत्र बढ़ाया जाता है और शुष्क ऋतु में भी खेती की जाती हैं। इस तरह जल के अत्यधिक प्रयोग के परिणामस्वरूप भूमिगत जल का स्तर नीचे गिर जाता है और जल की कमी हो जाती है। इस तरह बढ़ती जनसंख्या जल दुर्लभता के लिए उत्तरदायी है।

प्रश्न 2.
औद्योगीकरण किस प्रकार जल दुर्लभता के लिए उत्तरदायी है? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् भारत में तीव्र गति से औद्योगीकरण हुआ है। उद्योगों की बढ़ती हुई संख्या के कारण अलवणीय जल संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है। उद्योगों को अत्यधिक जल के अतिरिक्त उनको चलाने के लिए ऊर्जा की भी आवश्यकता होती है जिसका उत्पादन जल से होता है। वर्तमान समय में भारत में कुल विद्युत का लगभग 22 % भाग जल विद्युत से प्राप्त होता है। औद्योगिक अपशिष्टों से भी जल प्रदूषित हो जाता है जिससे शुद्ध जल की कमी होती है। उद्योग ही जल को मानव उपयोग के लिए खतरनाक बनाने के लिए उत्तरदायी हैं। इस प्रकार औद्योगीकरण जल-दुर्लभता के लिए उत्तरदायी है।

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प्रश्न 3.
पर्याप्त जल संसाधन होने के बावजूद कुछ क्षेत्रों में जल की दुर्लभता क्यों पायी जाती है?
उत्तर:
पर्याप्त जल संसाधन होने के बावजूद कुछ क्षेत्रों में जल की दुर्लभता पायी जाती है। यह दुर्लभता जल की खराब गुणवत्ता के कारण हो सकती है। खराब गुणवत्ता के कारण हैं

  1. घरेलू एवं औद्योगिक अपशिष्टों का जल में मिल जाना।
  2. रसायनों, कीटनाशकों एवं उर्वरकों का जल में मिल जाना।
  3. इस प्रकार उत्सर्जित जल को मानव उपयोग के लायक बनाने हेतु जल के पुनर्शोधन का कोई उपाय नहीं किया जाना।

प्रश्न 4.
बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं के प्रमुख उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं

  1. कृषि हेतु सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराना।
  2. बाढ़ पर नियन्त्रण करना।
  3. जल विद्युत का उत्पादन करना।
  4. भूमि अपरदन पर प्रभावी नियन्त्रण करना।
  5. उद्योग-धन्धों का विकास करना।
  6. जल परिवहन का विकास करना।
  7. मत्स्य पालन का विकास करना।
  8. शुद्ध पेयजल की व्यवस्था करना।

प्रश्न 5.
बाँध क्या हैं? हम इन्हें बहुउद्देशीय परियोजनाएँ क्यों कहते हैं ?
उत्तर:
बाँध, प्रवाहित होने वाले जल को रोकने, उसको एक दिशा देने अथवा उसके बहाव को कम करने के लिए बनाई गई बाधा है जो सामान्यतः जलाशय, झील अथवा जलभरण बनाती है। बाँधों का निर्माण विभिन्न उद्देश्यों, जैसे-सिंचाई, जलापूर्ति, विद्युत उत्पादन, घरेलू उत्पादन, औद्योगिक उपयोग, बाढ़ नियन्त्रण, मत्स्य पालन, नौकायन, मनोरंजन आदि के लिए किया जाता है। इस प्रकार बाँधों द्वारा विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति किये जाने के कारण इन्हें बहुउद्देशीय परियोजनाएँ कहा जाता है।

प्रश्न 6.
आपके मतानुसार बाँध कैसे उपयोगी हैं?
उत्तर:
मेरे मतानुसार वर्तमान समय में बाँध बहुत उपयोगी हैं। बाँध केवल सिंचाई के लिए ही नहीं बनाये जाते बल्कि इनका उपयोग विद्युत उत्पादन, घरेलू व औद्योगिक उपयोग, जलापूर्ति, बाढ़ नियन्त्रण, मनोरंजन, मत्स्यपालन, नौकायन आदि के लिए भी किया जाता है।

प्रश्न 7.
नर्मदा बचाओ आन्दोलन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
नर्मदा बचाओ आन्दोलन एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) है जो जनजातीय लोगों, किसानों, पर्यावरणविदों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गुजरात में नर्मदा नदी पर निर्मित सरदार सरोवर बाँध के विरोध में लामबंद करता है। प्रारम्भ में यह आन्दोलन, जंगलों के बाँध के पानी में डूबने जैसे पर्यावरणीय मुद्दों पर केन्द्रित था परन्तु हाल में ही इस आन्दोलन का लक्ष्य बाँध के कारण विस्थापित निर्धन लोगों को सरकार से समस्त पुनर्वास सुविधाएँ दिलाना हो गया है।

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प्रश्न 8.
जल संरक्षण हेतु प्रमुख उपाय सुझाइए।
अथवा
जल संसाधनों का संरक्षण करने के तीन उपाय सुझाइए।
उत्तर:
जल संरक्षण के प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं

  1. बाढ़ के जल का नियन्त्रण
  2. जल का विवेकपूर्ण उपयोग
  3. भू-जल विदोहन निषिद्ध क्षेत्र का निर्धारण
  4. वर्षाजल का अधिकतम संग्रहण, संधारण, पुनर्भरण एवं अनुकूलतम उपयोग
  5. परम्परागत जल स्रोतों का पुनरुद्धार
  6. जल प्रदूषण को रोकना
  7. कम जल की आवश्यकता वाली कृषि फसलों को बढ़ावा देना।

प्रश्न 9.
वर्षाजल संग्रहण किसे कहते हैं? वर्षाजल संग्रहण के उद्देश्यों को बताइए।
उत्तर:
वर्षा के जल को शुष्क मौसम में उपयोग करने के लिए एकत्रित करके रखना वर्षा जल संग्रहण कहलाता है। वर्षा जल संग्रहण के उद्देश्य इस प्रकार हैं:

  1. संग्रहित पानी से भूमि का जलस्तर ऊँचा उठाना।
  2. नदियों व नालों में आयी बाढ़ पर नियन्त्रण स्थापित करना।
  3. वर्षा जल संग्रहण के अन्तर्गत एकत्रित जल से शुष्क मौसम में आवश्यक जलापूर्ति सम्भव बनाना।
  4. भूमिगत जलस्तर बढ़ने से खेतों की सिंचाई करने में सहायता मिलना।

प्रश्न 10.
छत वर्षा जल संग्रहण की विधि को संक्षेप में बताइए।
अथवा
छत वर्षाजल संग्रहण तकनीक क्या है? बताइए। उत्तर-छत वर्षा जल संग्रहण की विधि (तकनीक) निम्नलिखित है

  1. पी. वी. सी. पाइप का इस्तेमाल करके छत का वर्षा जल एकत्रित किया जाता है।
  2. रेत एवं ईंट का प्रयोग करके जल का छनन किया जाता है।
  3. भूमिगत पाइप द्वारा जल हौज तक ले जाया जाता है जहाँ से उसे तत्काल उपयोग में लाया जा सकता है।
  4. हौज से अतिरिक्त जल कुएँ तक ले जाया जाता है।
  5. कुएँ से पानी रिसकर भूमिगत जल स्तर में वृद्धि करता है।
  6. गर्मी के दिनों में इन कुओं के पानी का उपयोग किया जा सकता है।

प्रश्न 11.
बाँस ड्रिप सिंचाई प्रणाली को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
भारत के मेघालय राज्य में नदियों व झरनों के जल को बाँस के पाइप द्वारा एकत्रित करके सिंचाई करने की लगभग 200 वर्ष पुरानी विधि प्रचलित है। इसे बाँस ड्रिप सिंचाई प्रणाली कहते हैं। इस विधि से लगभग 18 से 20 लीटर जल सिंचाई के लिए बाँस के पाइपों के द्वारा सैकड़ों मीटर की दूरी तक ले जाया जाता है। अन्त में पानी का बहाव 20 से 80 बूंद प्रति मिनट तक घटाकर पौधे पर छोड़ा जाता है। इससे भूमि नम हो जाती है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA2)

प्रश्न 1.
जल संसाधन के प्रमुख स्रोतों को संक्षेप में बताइए।
अथवा
जल के स्रोतों के आधार पर जल संसाधनों की उपलब्धता कितने रूपों में होती है ?
उत्तर:
जल एक महत्वपूर्ण संसाधन है। इसके बिना धरातल पर किसी भी प्रकार का जीवन सम्भव नहीं है। पृथ्वी का तीन-चौथाई भाग जल से घिरा हुआ है। इसका वितरण भी सर्वत्र समान नहीं है। वर्षा जल संसाधन का प्रमुख स्रोत है। जल के स्रोतों के आधार पर जल संसाधन की उपलब्धता निम्नलिखित तीन रूपों में होती है’

  1. भूमिगत जल-धरातल के नीचे चट्टानों की दरारों व छिद्रों में अवस्थित जल भूमिगत जल कहलाता है।
  2. धरातलीय या सतही जल-इसके अन्तर्गत धरातल पर स्थित विभिन्न जल स्रोत-नदियाँ, झीलें, नहरें व विभिन्न जलाशय सम्मिलित हैं।
  3. महासागरीय जल-धरातल पर प्राप्त समस्त जल का 96.5 प्रतिशत भाग महासागरों में पाया जाता है। सभी महासागर एक विशाल जलीय इकाई के रूप में मिले हुए हैं।

प्रश्न 2.
ऐसी भविष्यवाणी की जा रही है कि सन् 2025 में 20 करोड़ लोग जल की नितांत कमी झेलेंगे। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? चर्चा कीजिए।
उत्तर:
हाँ, मैं इस कथन से सहमत हूँ। निम्नलिखित कारणों से सन् 2025 तक लगभग 20 करोड़ लोग जल दुर्लभता के गम्भीर संकट का सामना कर रहे होंगे:

  1. सिंचित क्षेत्र का तीव्र गति से विस्तार हुआ है जिससे जल संसाधनों का अत्यधिक दोहन हो रहा है। किसान अपनी पैदावार बढ़ाने के लिए खेतों पर नलकूप लगवा रहे हैं। इससे भौमजल स्तर में कमी आती जा रही है जिससे जल की उपलब्धता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
  2. उद्योगों से विशाल मात्रा में प्रदूषित जल एवं रसायनों को नदियों में प्रवाहित किया जाता है जिससे जल प्रदूषित हो रहा है।
  3. कृषि में प्रयुक्त होने वाले उर्वरकों एवं रसायनों द्वारा भी जल संसाधन प्रदूषित होते हैं। इससे जल मानव उपयोग के लिए खतरनाक बन जाता है।
  4. तीव्र औद्योगीकरण से जल संसाधनों पर दबाव बढ़ा है। उद्योग न केवल अधिक जल की माँग करते हैं बल्कि उन्हें संचालित करने के लिए ऊर्जा की भी आवश्यकता होती है। इस ऊर्जा का उत्पादन जल-विद्युत शक्ति से भी होता है।
  5. तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या एवं तीव्र शहरीकरण ने न केवल जल की माँग बल्कि ऊर्जा की माँग को भी बढ़ाया है जिससे जल संकट में वृद्धि

प्रश्न 3.
तीव्र शहरीकरण ने जल दुर्लभता को बढ़ाया है। व्याख्या कीजिए।
अथवा
शहरी क्षेत्रों में गुणात्मक एवं मात्रात्मक दोनों रूपों में जल दुर्लभता महसूस की जा रही है। चर्चा कीजिए।
उत्तर:
जल एक महत्वपूर्ण संसाधन है जिसका लगातार नवीकरण एवं पुनर्भरण जलीय चक्रण द्वारा होता रहता है। जल का विश्व वितरण समान नहीं है। पृथ्वी का तीन-चौथाई भाग जल से घिरा होने के बावजूद विश्व के कई देशों एवं क्षेत्रों में जल की कमी महसूस की जा रही है। जल की कमी की समस्या ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा शहरी क्षेत्रों में अधिक है। शहरी क्षेत्रों में गुणात्मक एवं मात्रात्मक दोनों रूपों में जल दुर्लभता महसूस की जा रही है, जिसके निम्नलिखित कारण हैं

  1. अधिक जनसंख्या वाले कई शहरी केन्द्रों के निर्माण के कारण जल एवं ऊर्जा की माँग में लगातार वृद्धि हो रही है।
  2. शहरी जीवन शैली के कारण जल और ऊर्जा की आवश्यकता में वृद्धि हुई है।
  3. शहरी आवास समितियों एवं कॉलोनियों के पास अपनी जल सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भूमिगत जल को बाहर निकालने वाली अपनी-अपनी युक्तियाँ हैं। इस कारण जल संसाधनों का अत्यधिक दोहन हो रहा है।
  4. कई बार जल की खराब गुणवत्ता भी इसकी कमी का कारण बन जाती है। घरेलू एवं औद्योगिक अपशिष्टों, रसायनों, कीटनाशकों एवं कृषि में प्रयुक्त होने वाले उर्वरकों के कारण जल प्रदूषित होता है एवं उसकी गुणवत्ता खत्म हो जाती है।

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प्रश्न 4.
प्राचीनकाल में हमारे पास उत्कृष्ट जलीय कृतियाँ निर्मित करने की तकनीक उपलब्ध थी? व्याख्या कीजिए।
अथवा
प्राचीनकाल की कुछ जलीय कृतियों का विवरण दीजिए।
अथवा
“पुरातात्वीय और ऐतिहासिक अभिलेख बताते हैं कि हमने प्राचीन काल से ही भारत में उत्कृष्ट जलीय कृतियाँ बनाई हैं।” इस कथन को प्रमाणित करने के लिए तीन साक्ष्य दीजिए।
उत्तर:
प्राचीनकाल में हमारे पास उत्कृष्ट जलीय कृतियाँ निर्मित करने की तकनीक उपलब्ध थी। प्राचीनकाल से ही हम सिंचाई के लिए पत्थरों और मलबे से बाँध, जलाशय, झील एवं नहर आदि बनाते आ रहे हैं। प्राचीनकाल की प्रमुख जलीय कृतियों के उदाहरण निम्नलिखित हैं

  1. ईसा से एक शताब्दी पूर्व इलाहाबाद के नजदीक भिंगवेरा में गंगा नदी की बाढ़ के जल को संरक्षित करने के लिए एक उत्कृष्ट जल संग्रहण तन्त्र बनाया गया था।
  2. चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में बड़े पैमाने पर बाँध, झील और सिंचाई तन्त्रों का निर्माण करवाया गया।
  3. कलिंग (ओडिशा), नागार्जुनकोंडा (आन्ध्र प्रदेश), बेन्नूर (कर्नाटक) एवं कोल्हापुर (महाराष्ट्र) में उत्कृष्ट सिंचाई तंत्र के प्रमाण मिलते हैं।
  4. 11वीं शताब्दी में अपने समय की बड़ी झीलों में से एक भोपाल झील का निर्माण किया गया।
  5. 14वीं शताब्दी में दिल्ली में सिरी फोर्ट क्षेत्र में जल की आपूर्ति हेतु एक विशिष्ट तालाब ‘हौज खास’ का निर्माण करवाया गया।

प्रश्न 5.
जल संरक्षण एवं प्रबंधन की आवश्यकता क्यों है? कारण दीजिए।
अथवा
भारत में जल प्रबंधन की आवश्यकता क्यों है? संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
आज भारत में लगातार बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए पेयजल एवं कृषि फसलों की सिंचाई हेतु जल की आवश्यकता निरन्तर बढ़ती जा रही है लेकिन स्वच्छ जल की निरन्तर आपूर्ति कम होती जा रही है। फलस्वरूप जल संरक्षण एवं प्रबन्धन वर्षा जल संग्रहण की आवश्यकता महसूस की जा रही है। भारत में जल संरक्षण एवं प्रबन्धन की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से भी है

  1. जल की पर्याप्त मात्रा में उपलब्धि के बावजूद इसके अतिशोषण, अत्यधिक प्रयोग एवं समाज के विभिन्न वर्गों में जल के असमान वितरण के कारण इसके संरक्षण एवं प्रबंधन की आवश्यकता बढ़ गयी है।
  2. प्राकृतिक पारितन्त्र को निम्नीकृत होने से बचाने के लिए जल का संरक्षण महत्वपूर्ण है।
  3. बढ़ती जनसंख्या, कृषि का आधुनिकीकरण, शहरीकरण व औद्योगीकरण के कारण नदियों का जल प्रदूषित हुआ है। यह समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है इससे सम्पूर्ण जीवन खतरे में है।
  4. फसलों का उगाना भी जल की उपलब्धता पर निर्भर है।
  5. जल पीने एवं घरेलू उपयोग के लिए भी प्रयोग होता है। शहरों की बढ़ती जनसंख्या एवं शहरी जीवन शैली के कारणं जल की माँग बढ़ती ही जा रही है। इन सबके लिए जल की भविष्य में आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए संरक्षण एवं प्रबंधन की आवश्यकता है।

प्रश्न 6.
वर्षा जल संग्रहण क्या है? भारत में छत वर्षा जल संग्रहण तकनीक के सफल प्रयोग के कोई दो उदाहरण दीजिए।
अथवा
ऐसे कोई दो उदाहरण दें जहाँ छत वर्षा जल संग्रहण तकनीक का सफलतापूर्वक प्रयोग किया गया है?
उत्तर:
वर्षा जल संग्रहण-वर्षा द्वारा भूमिगत जल की क्षमता में वृद्धि करने की तकनीक वर्षा जल संग्रहण कहलाती है। इसमें वर्षाजल को रोकने एवं एकत्रित करने के लिए विशेष ढाँचों; जैसे-कुएँ, गड्ढे, बाँध आदि का निर्माण किया जाता है। इससे न केवल जल का संग्रहण होता है बल्कि जल को भूमिगत होने की अनुकूल परिस्थितियाँ प्राप्त होती हैं।
भारत में छत वर्षा जल संग्रहण तकनीक के सफल प्रयोग के दो उदाहरण निम्नलिखित हैं
1. शिलांग (मेघालय):
मेघालय की राजधानी शिलांग को पीने के पानी की भारी कमी का सामना करना पड़ता है। इस समस्या के समाधान के लिए शिलांग के लगभग प्रत्येक परिवार ने छत वर्षा जल संग्रहण की व्यवस्था कर रखी है। इस तकनीक से प्रत्येक परिवार की जल की कुल आवश्यकता का 15-25 प्रतिशत भाग की आपूर्ति होती है।

2. गंडाथूर (कर्नाटक):
कर्नाटक राज्य के मैसूर जिले के गंडाथूर गाँव में भी लोग पानी की आपूर्ति हेतु छत वर्षा जल संग्रहण तकनीक का प्रयोग करते हैं। गाँव के लगभग 200 परिवारों ने इस विधि का उपयोग कर जल की कमी की समस्या का समाधान किया है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जल दुर्लभता से क्या आशय है? जल दुर्लभता के कारणों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
जल दुर्लभता से क्या आशय है ? सविस्तार वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जल दुर्लभता से आशय-किसी स्थान अथवा क्षेत्र में माँग की तुलना में जल की कमी का होना जल दुर्लभता कहलाता है। स्वीडन के एक विशेषज्ञ फाल्कन मार्क ने जल दुर्लभता को निम्न प्रकार से परिभाषित किया है. फाल्कन मार्क के अनुसार, “जल की कमी तब होती है जब प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिवर्ष 1,000 से 1,600 घन मीटर के मध्य जल उपलब्ध होता है।” जल दुर्लभता के कारण भारत में जल दुलर्भता के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं
1. जल के वितरण में असमानता:
हमारे देश में वर्षा में वार्षिक एवं मौसमी परिवर्तनों के कारण जल संसाधनों की उपलब्धता में समय और स्थान के अनुसार विभिन्नता पायी जाती है। जहाँ एक तरफ हमारे देश के मॉसिनराम में विश्व की सर्वाधिक वर्षा होती है वहीं राजस्थान का मरुस्थल सूखाग्रस्त है। प्रकृति के साथ-साथ जल के असमान वितरण के लिए हम भी ज़िम्मेदार हैं। अधिकांशतः जल की कमी इसके अतिशोषण, अत्यधिक प्रयोग एवं समाज के विभिन्न वर्गों में जल के असमान वितरण के कारण होती है।

2. बढ़ती हुई जनसंख्या:
हमारे देश में जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है जिस कारण जल की माँग में निरन्तर वृद्धि हो रही है। जल की बढ़ती माँग एवं उसका असमान वितरण जल दुर्लभता का कारण बनता जा रहा है। .

3. सिंचाई:
जल की उपलब्धता जनसंख्या के लिए सिर्फ घरेलू उपभोग के लिए ही नहीं बल्कि अधिक अनाज उगाने के लिए भी आवश्यक है। अनाज का उत्पादन बढ़ाने के लिए जल संसाधनों का अति शोषण करके ही सिंचित क्षेत्र में वृद्धि की जा सकती है और शुष्क ऋतु में भी कृषि की जा सकती है। हमारे देश के अधिकांश किसान अपने खेत की सिंचाई निजी कुओं एवं नलकूपों से करके अपने कृषि उत्पादन को बढ़ा रहे हैं। सिंचाई में जल के अत्यधिक प्रयोग से भौमजल स्तर नीचे गिर रहा है तथा लोगों के लिए उपलब्ध जल में निरन्तर कमी होती जा रही है।

4. औद्योगीकरण:
स्वतन्त्रता के पश्चात् हमारे देश में तीव्र गति से औद्योगीकरण हुआ है। आजकल प्रत्येक स्थान पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ बड़े औद्योगिक घरानों के रूप में फैली हुई हैं। उद्योगों की बढ़ती हुई संख्या के कारण अलवणीय जल संसाधनों पर दबाव बढ़ता जा रहा है, उद्योगों को अत्यधिक जल के अतिरिक्त उनके संचालन के लिए भी ऊर्जा की आवश्यकता होती है जिसकी पूर्ति जल विद्युत से होती है।

5. शहरीकरण:
शहरीकरण भी जल दुर्लभता के लिए एक जिम्मेदार कारक है, इसने भी ज़ल दुर्लभता की समस्या में वृद्धि की है। शहरों की बढ़ती जनसंख्या एवं शहरी जीवन शैली के कारण न केवल जल और ऊर्जा की आवश्यकता में वृद्धि हुई है बल्कि उनसे सम्बन्धित समस्याएँ और भी बढ़ गयी हैं। अधिक जनसंख्या जल संसाधनों का अति उपयोग कर रही है तथा उपलब्ध संसाधनों को प्रदूषित कर रही है।

6. जल प्रदूषण:
जल की दुर्लभता का एक प्रमुख कारण जल की खराब गुणवत्ता अर्थात् जल प्रदूषण भी है। पिछले कुछ वर्षों से यह एक चिन्ताजनक विषय बनता जा रहा है कि लोगों की आवश्यकता के लिए पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध होने के बावजूद. यह घरेलू एवं औद्योगिक अपशिष्टों, रसायनों, कीटनाशकों एवं कृषि में प्रयुक्त उर्वरकों द्वारा प्रदूषित है। ऐसा जल, मानव के उपयोग के लिए खतरनाक है।

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प्रश्न 2.
बहुउद्देशीय नदी परियोजना से क्या तात्पर्य है? पिछले कुछ वर्षों से ये परियोजनाएँ विरोध का विषय क्यों बन गयी हैं? विस्तारपूर्वक बताइए।
अथवा
बाँध किस प्रकार बाढ़ एवं अन्य पर्यावरणीय समस्याओं के जनक बनते जा रहे हैं? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
बहुउद्देशीय नदी परियोजना-एक नदी घाटी परियोजना जो एक साथ कई उद्देश्यों, जैसे-सिंचाई, बाढ़, नियन्त्रण, जल व मृदा का संरक्षण, जल विद्युत, जल परिवहन, पर्यटन का विकास, मत्स्यपालन, कृषि एवं औद्योगिक विकास आदि की पूर्ति करती है, बहुउद्देशीय नदी परियोजना कहलाती है। बहुउद्देशीय नदी परियोजनाओं के विरोध के कारण-पिछले कुछ वर्षों से बाँध बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएँ निम्न कारणों से विरोध का विषय बन गयी हैं

1. नदियों में रहने वाले जलीय जीवों के भोजन व आवास को हानि:
नदियों पर बांध बनाने एवं उनका बहाव नियन्त्रित करने से उनका प्राकृतिक बहाव अवरुद्ध हो जाता है। जिसके कारण तलछट का बहाव कम हो जाता है और अत्यधिक तलछट जलाशय की तली पर जमा होता रहता है जिससे नदी का तल अधिक चट्टानी हो जाता है और नदी के जलीय जीव आवासों में भोजन की कमी हो जाती है।

2. जलीय जीवों का आवागमन अवरुद्ध होना:
बहुउद्देशीय परियोजनाओं हेतु बनाये गये बाँध नदियों को कई टुकड़ों में विभाजित कर देते हैं, जिससे अण्डे देने की ऋतु में जलीय जीवों का नदियों में आवागमन अवरुद्ध हो जाता है।

3. वनस्पति एवं मृदाओं का जल में डूब जाना:
बाढ़ के मैदानों में बनाये जाने वाले जलाशयों द्वारा वहाँ उपलब्ध वनस्पति एवं मिट्टियाँ जल में डूब जाती हैं जो कि कालान्तर में अपघटित हो जाती हैं।

4. स्थानीय लोगों का वृहत स्तर पर विस्थापित होना;
बहुउद्देशीय परियोजनाएँ एवं बड़े बाँध नये सामाजिक आन्दोलनों, जैसे-नर्मदा बचाओ आन्दोलन एवं टिहरी बाँध आन्दोलन के कारण भी बन गये हैं। इन परियोजनाओं का विरोध मुख्य रूप से स्थानीय समुदायों के वृहत् स्तर पर विस्थापित होने के कारण हो रहा है। प्रायः स्थानीय लोगों को राष्ट्रहित में अपनी भूमि एवं आजीविका का त्याग करना पड़ता है।

5. बाढ़ों में वृद्धि होना:
बहुउद्देशीय नदी परियोजनाओं पर उठी अधिकांश आपत्तियाँ उनके उद्देश्यों में असफल हो जाने पर हैं। यह एक विडम्बना है कि जिन बाँधों का निर्माण बाढ़ नियन्त्रण के लिए किया जाता है, उन जलाशयों में तलछट के जमा हो जाने से वे बाढ़ आने का कारण बन जाते हैं। अत्यधिक वर्षा होने की स्थिति में तो बड़े बाँध भी अनेक बार बाढ़ नियन्त्रण में असफल रहते हैं। उदाहरण के लिए सन् 2006 में महाराष्ट्र एवं गुजरात में भारी वर्षा के दौरान बाँधों में छोड़े गये जल के कारण बाढ़ की स्थिति और भी विकट हो गयी थी। इन बाढ़ों से न केवल जान-माल का नुकसान हुआ बल्कि. मृदा अपरदन भी पर्याप्त मात्रा में हुआ था।

6. मृदाओं का लवणीकरण होना:
बहुउद्देशीय परियोजनाओं के फलस्वरूप अत्यधिक सिंचाई के कारण देश के अनेक क्षेत्रों में फसल प्रारूप में अत्यधिक परिवर्तन हो रहा है। इन क्षेत्रों में किसान वाणिज्यिक फसलों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इससे मृदाओं में लवणीकरण जैसी गम्भीर परिस्थिति एवं समस्याएँ उत्पन्न हो गयी हैं।

7. भूमि निम्नीकरण की समस्याओं का बढ़ना:
बाँधों के जलाशय में तलछट जमा होने का अर्थ यह भी है कि यह तलछट जो कि एक प्राकृतिक उर्वरक है, बाढ़ के मैदानों तक नहीं पहुँच पाती है। जिसके कारण भूमि निम्नीकरण की समस्याएँ बढ़ती हैं।

8. भूकम्प एवं जलजनित बीमारियाँ:
यह भी माना जाता है कि बहुउद्देशीय परियोजनाओं के कारण क्षेत्र विशेष में भूकम्प आने की सम्भावनाओं में पर्याप्त वृद्धि हो जाती है। इसके अतिरिक्त अत्यधिक जल के उपयोग से जलजनित बीमारियाँ, फसलों में कीटाणुजनित बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं एवं जल प्रदूषण में वृद्धि होती है।

9. अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों में वृद्धि होना:
बहुउद्देशीय परियोजनाओं के फलस्वरूप धनिक भूमि मालिकों एवं निर्धन भूमिहीनों में सामाजिक दूरी बढ़ गयी है जिससे सामाजिक परिदृश्य बदल गया है। बाँध उसी जल के अलग-अलग उपयोग एवं लाभ प्राप्त करने वालों के मध्य संघर्ष उत्पन्न करते हैं। गुजरात में साबरमती बेसिन में सूखे के दौरान शहरी क्षेत्रों में अधिक जलापूर्ति देने पर परेशान किसान उपद्रव पर उतारू हो गये। बहुउद्देशीय परियोजनाओं के लागत एवं लाभ के बँटवारे को लेकर भी अन्तर्राष्ट्रीय झगड़े निरन्तर बढ़ते जा रहे हैं।

मानचित्र कार्य

प्रश्न 1.
भारत के रेखा मानचित्र में निम्नलिखित को अंकित कीजिए
हीराकुड परियोजना, पेरियार बाँध, सलाल प्रोजेक्ट, सरदार सरोवर बाँध, भाखड़ा नांगल बाँध, टिहरी बाँध
उत्तर:

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JAC Class 10 Social Science Important Questions

JAC Board Class 10th Social Science Important Questions Geography Chapter 2 वन और वन्य जीव संसाधन

वस्तुनिष्ठ

प्रश्न 1.
भारत में कितने प्रतिशत वन्य वनस्पतिजात के लुप्त होने का खतरा है?
(क) 10 %
(ख) 15%
(ग) 20%
(घ) 30%
उत्तर:
(क) 10 %

2. निम्न में से कौन-सी संस्था संकटग्रस्त प्रजातियों की सूची तैयार करती है?
(क) WTO
(ख) FAO
(ग) IUCN
(घ) UN
उत्तर:
(ग) IUCN

3. निम्न में से कौन-सी प्रजाति संकटग्रस्त है
(क) मणिपुरी हिरन
(ख) गैंडा
(ग) शेर की पूंछ वाला बंदर
(घ) ये सभी
उत्तर:
(घ) ये सभी

4. वन्य जीव अधिनियम किस वर्ष लागू किया गया
(क) सन् 1972
(ख) सन् 1973
(ग) सन् 1984
(घ) सन् 1998
उत्तर:
(क) सन् 1972

5. ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ कब शुरू हुआ था?
(क) 1971 में
(ख) 1972 में
(ग) 1973 में
(घ) 1974 में
उत्तर:
(ग) 1973 में

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6. वन्य जीव की वह प्रजाति कौनसी है, जिसकी हड्डियों का एशियाई देशों में परम्परागत औषधियों में प्रयोग होने के कारण विलुप्ति के कगार पर है
(क) बाघ
(ख) बिल्ली
(ग) चीता
(घ) हिरण
उत्तर:
(क) बाघ

7. स्थायी वनों के अंतर्गत किस राज्य में सर्वाधिक क्षेत्र पाया जाता है?
(क) मध्य प्रदेश
(ख) बिहार
(ग) हरियाणा
(घ) हिमाचल प्रदेश
उत्तर:
(क) मध्य प्रदेश

8. सरिस्का बाघ रिजर्व किस राज्य में स्थित है
(क) उत्तर प्रदेश
(ख) असम
(ग) राजस्थान
(घ) उत्तराखण्ड
उत्तर:
(ग) राजस्थान

9. चिपको आन्दोलन का सम्बन्ध किस क्षेत्र से है
(क) हिमालय क्षेत्र
(ख) प्रायद्वीपीय क्षेत्र
(ग) मरुस्थलीय क्षेत्र
(घ) ये सभी
उत्तर:
(क) हिमालय क्षेत्र

रिक्त स्थान सम्बन्धी प्रश्न

निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:
1. मानव और अन्य जीव-जन्तुओं द्वारा जिस जटिल तंत्र का निर्माण किया जाता है, उसे……….कहते हैं।
उत्तर:
पारिस्थितिकी,

2. भारत में समस्त विश्व की जैव उपजातियों की………… संख्या पायी जाती है।
उत्तर:
8 प्रतिशत

3. हमारे देश में वनों के अन्तर्गत लगभग……….क्षेत्रफल है।
उत्तर:
807276 वर्ग किमी.

4. अरुणाचल प्रदेश एवं हिमाचल प्रदेश में मिलने वाला ……….एक औषधीय पौधा है।
उत्तर:
हिमालयन यव,

5. भारत में प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत………हुई।
उत्तर:
सन् 1973 में।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पारिस्थितिक तंत्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
मानव और दूसरे जीवधारी मिलकर एक जटिल तंत्र का निर्माण करते हैं, जिसे पारिस्थितिक तंत्र कहते हैं।

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प्रश्न 2.
भारत में विश्व की कुल जैव उपजातियों की कितने प्रतिशत संख्या पाई जाती है?
उत्तर:
8 प्रतिशत (लगभग 16 लाख)।

प्रश्न 3.
वन्य प्राणियों की संकटग्रस्त प्रजातियों को बचाने हेतु दो सुझाव दीजिए।
उत्तर:

  1. शिकार पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।
  2. अधिक राप्ट्रीय उद्यान और वन्य जीव अभयारण्य स्थापित किए जाने चाहिए

प्रश्न 4.
अन्तर्राष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संध ने जीवों और प्राणियों को कितनी जातियों में बाँटा है? उनके नाम लिखो।
उत्तर:

  1. सामान्य जातियाँ,
  2. संकटग्रस्त जातियाँ,
  3. सुभेद्य जातियाँ,
  4. दुर्लभ जातियाँ,
  5. स्थानिक जातियाँ,
  6. लुप्त जातियाँ

प्रश्न 5.
संकटग्रस्ट वन्य जीव प्रजातियों के दो नाम बताइए।
उत्तर:
काला हिरण, गैडा।

प्रश्न 6.
दुर्लभ जातियाँ किसे कहते हैं?
उत्तर:
जीव-जन्तु व वन्यति की वे प्रजातियाँ जिनकी संख्या बहुत कम बची है, दुलभ आतियाँ कहलाती हैं।

प्रश्न 7.
पूवोत्तर व मध्य भारत में किस कृषि के कारण वनों का निम्नीकरण हुआ है?
उत्तर:
पूर्वोत्तर व मध्य भारत में स्थानांतरी (झूम) कृषि के कारण वनों का निम्नीकरण हुआ है।

प्रश्न 8.
वनों से प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त होने वाले चार संसाधन लिखिए।
उत्तर:
वनों से प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त होने वाले चार संसाधन निम्नलिखित हैं:

  1. लकड़ी,
  2. रबड़,
  3. ईंधन,
  4. चारा।

प्रश्न 9.
हिमालयन यव किस प्रकार का पौधा है?
उत्तर:
हिमालयन यव (चीड़ की प्रकार का एक सदाबहार वृक्ष) औषधीय पौधा है जो औषधि निर्माण में काम आता है।

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प्रश्न 10.
हिमालयन यव से कौन-सा रसायन निकाला जाता है?
उत्तर;
हिमालयन यव से टकसोल (Taxol) नामक रसायन निकाला जाता है।

प्रश्न 11.
भारत में जैव-विविधता को कम करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
अथवा
भारत में जैव-विविधता कम होने के कोई चार कारण लिखिए।
उत्तर:

  1. वन्य जीवों के आवासों का विनाश,
  2. जंगली जानवरों को मारना व आखेट,
  3. पर्यावरण प्रदूषण,
  4. विषाक्तिकरण,
  5. दावानल।

प्रश्न 12.
भारत का कितना सेंफ्रोवे क्षेत्र लुप्त हो चुका है?
उत्तर:
भारत का लगभग 40 प्रतिशत मेंग्रोव क्षेत्र लुप्त हो चुका है।

प्रश्न 13.
वनों की कटाई से होने वाले किन्हीं दो दुष्प्रभावों को लिखिए।
उत्तर:
वनों की कटाई से होने वाले दो दुष्प्रभाव हैं:
बाढ़, सूखा।

प्रश्न 14.
भारतीय वन्य जीवन अधिनियम 1972 में मुख्य प्रावधान क्या है ?
उत्तर:
भारतीय वन्य जीवन अधिनियम 1972 में मुख्य प्रावधान वन्य जीवों का आवास रक्षण है।

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प्रश्न 15.
भारत की किन्हीं दो प्रमुख बाघ संरक्षण परियोजनाओं का नाम लिखिए।
उत्तर:
भारत की दो प्रमुख बाघ संरक्षण परियोजनाएँ हैं:

  1. पेरियार बाघ रिजर्व, केरल
  2. सरिस्का वन्य जीव पशु विहार, राजस्थान।

प्रश्न 16.
वन्य जीव अधिनियम, 1980 और 1986 के अन्तर्गत किन-किन जीवों को संरक्षित जातियों में सम्मिलित किया गया है?
उत्तर:
वन्य जीव अधिनियम, 1980 व 1986 के अन्तर्गत सैकड़ों तितलियों, पतंगों-भृंगों व ड्रैगन फ्लाई को संरक्षित जातियों में सम्मिलित किया गया है।

प्रश्न 17.
भारत में वनों को कितने वर्गों में बाँटा गया है?
उत्तर:
भारत में वनों को तीन वर्गों में बाँटा गया है-

  1. आरक्षित वन,
  2. रक्षित वन,
  3. अवर्गीकृत वन।

प्रश्न 18.
आरक्षित एवं रक्षित वनों का रख-रखाव क्यों किया जाता है?
उत्तर:
आरक्षित एवं रक्षित वनों का रख-रखाव इमारती लकड़ी, अन्य वन पदार्थों तथा उनके बचाव के लिए किया जाता है।

प्रश्न 19.
किन्हीं चार आंदोलनों के नाम बताओ जिन्हें वनों एवं वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए स्थानीय समुदायों ने आरम्भ किया था।
उत्तर:

  1. चिपको आन्दोलन,
  2. बीज बचाओ आन्दोलन,
  3. नवदानय आन्दोलन,
  4. भैरोंदेव डाकव सोंचुरी।

सोंचुरी। लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA1)

प्रश्न 1.
‘मानव अपने अस्तित्व के लिए पारिस्थितिक तन्त्र के विभिन्न तत्वों पर निर्भर है।’ व्याख्या कीजिए।
अथवा
‘मनुष्य किस प्रकार पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर है।’ संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
सभी पेड़-पौधे एवं जीव-जन्तुओं की भाँति मानव भी पारिस्थितिकी तंत्र का एक अभिन्न अंग है। पारिस्थितिकी तंत्र के एक अंग के रूप में मानव अपने अस्तित्व के लिए इसकी विभिन्नताओं पर निर्भर है। मानव की विभिन्न आवश्यकताएँ पारिस्थितिकी तंत्र से ही पूर्ण होती हैं।

उदाहरण के लिए हम हवा में साँस लेते हैं, पानी पीते हैं एवं मृदा में अनाज उत्पन्न करते हैं आदि। ये सभी पारिस्थितिकी तंत्र के अजैव घटक हैं। इनके बिना हम जीवित नहीं रह सकते हैं। विभिन्न पौधे, पशु एवं सूक्ष्मजीवी इनका पुनः सृजन करते हैं। अत: हम कह सकते हैं कि मनुष्य अपने अस्तित्व के लिए पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर है।

प्रश्न 2.
संकटग्रस्त एवं लुप्त जातियों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संकटग्रस्त एवं लुप्त जातियों में निम्नलिखित अन्तर हैं

संकटग्रस्त जातियाँ । लुप्त जातियाँ
1. ये वे जातियाँ हैं जिनके लुप्त होने का खतरा है। 1. ये वे जातियाँ हैं जो पूर्णतः समाप्त हो गई हैं।
2. जिन परिस्थितियों के कारण इनकी संख्या कम हुई है| यदि वे अनवरत रूप से जारी रहती हैं. तो इन जातियों का जीवित रहना कठिन है। 2. ये जातियाँ पहले से ही सम्पूर्ण पृथ्वी से गायब हो चुकी हैं और इनका जीवित होना संदेहास्पद है।
3. इन जातियों को संरक्षण द्वारा बचाया मासिकता है तथा विशेष प्रयासों से इनमें वृद्धि भी सम्भव है। 3. इन प्रजातियों को अब पुनः उत्पन्न करना सम्भव नहीं है।
4. उदाहरण-मगरमच्छ, काला हिरण; भारतीय जंगली गधा, गैंडा, शेर की पूंछ वाला बन्दर, संगाई (मणिपुरी आदि। हिरण) आदि| 4. उदाहरण-एशियाई चीता, गुलाबी सिर वाली बत्तख आदि।

प्रश्न 3.
सुभेद्य एवं संकटग्रस्त जातियों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सुभेद्य एवं संकटग्रस्त जातियों में निम्नलिखित अन्तर हैं:

सुभेद्य जातियाँ संकटग्रस्त जातियाँ
1. ये वे जातियाँ हैं जिनकी संख्या घट रही है। 1. ये वे जातियाँ हैं जिनके लुप्त होने का खतरा है।
2. वर्तमान में ये जातियाँ अस्तित्व में हैं परन्तु इनका बने रहना खतरे में है। इनकी संख्या लगातार कंम होती जा रही है। 2. जिन विषम परिस्थितियों के कारण इनकी संख्या कम हुई है, यदि वे अनवरत रूप से जारी रहती हैं तो इन जातियों का जीवित रहना कठिन है।
3. परिस्थितियों के न बदलने पर ये शीघ्र ही संकटग्रस्त जातियों की श्रेणी में आ जायेंगी। 3. ये जातियाँ पहले से ही संकटग्रस्त हैं।
4. उदाहरण-एशियाई हाथी, नीली भेड़, गंगा डॉल्फिन आदि । 4. उदाहरण-भारतीय जंगली गधा, संगाई (मणिपुरी हिरण), गैंडा, शेर की पूँछं वाला बन्दर आदि।

प्रश्न 4.
एशियाई चीता पर टिप्पणी लिखिए। इनके लुप्त होने के क्या कारण हैं?
उत्तर:
एशियाई चीता विश्व का सबसे तेज दौड़ने वाला स्तनधारी प्राणी है। यह बिल्ली परिवार का एक अजूबा एवं विशिष्ट सदस्य है। यह 112 किमी. प्रति घंटा की गति से दौड़ सकता है। चीते की विशिष्ट पहचान उसकी आँख के कोने से मुँह तक नाक के दोनों ओर फैले आँसुओं के लकीरनुमा निशान हैं।

चीते की यही पहचान उसे तेंदुए से अलग करती है। 20 वीं शताब्दी से पूर्व चीते एशिया व अफ्रीका में बहुतायत में मिलते थे। वर्तमान में इनके आवासीय क्षेत्र और शिकार की उपलब्धता होने से ये लगभग समाप्त हो चुके हैं। भारत सरकार ने वर्ष 1952 में ही चीते को लुप्त प्रजाति घोषित कर दिया था।

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प्रश्न 5.
वन संसाधनों के सिकुड़ने में कृषि का फैलाव महत्वपूर्ण कारक रहा है? संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
अथवा
वनों को सबसे अधिक नुकसान कृषि के फैलाव के कारण हुआ है? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
भारत में कृषि के विस्तार का आरम्भ उपनिवेश काल के दौरान हुआ। भारत में वन सर्वेक्षण के अनुसार, सन् 1951 से 1980 के मध्य लगभग 26,200 वर्ग किमी. वन क्षेत्र कृषि भूमि में परिवर्तित किया गया। अधिकांश जनजातीय क्षेत्रों में विशेषकर मध्य एवं पूर्वोत्तर भारत में स्थानान्तरी कृषि (झूमिंग कृषि) के कारण वनों की कटाई बहुत अधिक मात्रा में हुई है। अतः कहा जा सकता है कि भारतीय वन संसाधनों के सिकुड़ने में कृषि का फैलाव महत्वपूर्ण कारक रहा है।

प्रश्न 6.
भारत में वृहत स्तरीय विकास परियोजनाएँ वनों के ह्रास के लिए किस तरह जिम्मेदार हैं, बताइए।।
उत्तर:
भारत की वृहत स्तरीय विकास परियोजनाओं ने वनों को बहुत अधिक नुकसान पहुँचाया है। वर्ष 1952 से अब तक लगभग 5,000 वर्ग किमी. से अधिक वन क्षेत्र को नदी घाटी परियोजनाओं के लिए नष्ट कर दिया गया है। वनों का सफाया आज भी अनवरत रूप से जारी है। ऐसा अनुमान है कि मध्य प्रदेश में नर्मदा सागर परियोजना के पूर्ण हो जाने पर 400,000 हेक्टेयर से भी अधिक क्षेत्र में फैला वन क्षेत्र जलमग्न हो जाएगा।

प्रश्न 7.
हिमालयन यव क्या है? इसकी उपयोगिता बताइए।
उत्तर:
हिमालयन यव एक प्रकार का औषधीय पौधा है। यह चीड़ के प्रकार का एक सदाबहार वृक्ष होता है। यह हिमाचल प्रदेश व अरुणाचल प्रदेश के कई भागों में पाया जाता है। इसके पेड़ की छाल, पत्तियों एवं जड़ों से टकसोल (Taxol) नामक रसायन निकाला जाता है, जिसका उपयोग कैंसर रोग की दवा बनाने में किया जाता है। यव वृक्ष के अत्यधिक दोहन से इस वनस्पति प्रजाति को खतरा उत्पन्न हो गया है। पिछले एक दशक में हिमाचल प्रदेश एवं अरुणाचल प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में यव के हजारों वृक्ष सूख गये हैं। प्रश्न 8. वन एवं वन्य जीवों का संरक्षण क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
वन एवं वन्य जीवों के संरक्षण से पारिस्थितिक विविधता बनी रहती है तथा हमारे जीवन के मूलभूत संसाधन-जल, वायु और मृदा आदि बने रहते हैं। ये विभिन्न जातियों में बेहतर जनन के लिए वनस्पति और पशुओं में जींस (Jenetic) विविधता को भी संरक्षित करते हैं।

प्रश्न 9.
भारत में प्रोजेक्ट टाइगर को शुरू करने के दो उद्देश्य क्या थे?
उत्तर:
‘प्रोजेक्ट टाइगर’ विश्व की प्रसिद्ध वन्य जीव परियोजनाओं में से एक है। भारत में प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत सन् 1973 में हुई। भारत में प्रोजेक्ट टाइगर को शुरू करने के दो उद्देश्य निम्नलिखित थे

  1. भारत में बाघों की तीव्र गति से गिरती संख्या पर अंकुश लगाकर उनकी संख्या में वृद्धि करना।
  2. बाघों की खाल एवं हड्डियों के व्यापार की रोकथाम करना।

प्रश्न 10.
बाघों की प्रजाति लुप्त होने के क्या कारण हैं? संक्षेप में बताइए।
अथवा
बाघों की आबादी के लिए प्रमुख खतरे कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
वन्य जीव संरचना में बाघ (टाइगर) एक महत्वपूर्ण जंगली जाति है। 20वीं शताब्दी के प्रारम्भ में भारत में बाघों की संख्या 55.000 से घटकर मात्र 1.827 रह गई है। बाघों की प्रजाति के लुप्त होने के कारण अथवा प्रमुख खतरे निम्नलिखित हैं:

  1. व्यापार के लिए बाघों का शिकार करना।
  2. बाघों के आवास स्थलों का सीमित होना।
  3. बाघों के भोजन के लिए आवश्यक जंगली उपजालियों की संख्या कम होना।
  4. मानव जनसंख्या में वृद्धि।
  5. बाघों की खाल का व्यापार।
  6. परम्परागत औषधियों में बाघों की हड्डियों का प्रयोग किया जाना।

प्रश्न 11.
प्रमुख बाघ संरक्षण परियोजनाओं एवं उनसे सम्बन्धित राज्यों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रमुख बाघ संरक्षण परियोजनाएँ एवं उनसे सम्बन्धित राज्य निम्नलिखित हैं

  1. सुंदर वन राष्ट्रीय उद्यान-पश्चिम बंगाल
  2. बाँधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान-मध्य प्रदेश
  3. सरिस्का वन्य जीव पशु विहार-राजस्थान
  4. रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान-राजस्थान
  5. मानस बाघ रिजर्व-असम
  6. पेरियार बाघ रिजर्व-केरल
  7. कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान-उत्तराखण्ड।

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प्रश्न 12.
“आजकल संरक्षण परियोजनाएँ जैव-विविधताओं पर केन्द्रित होती हैं न कि इनके विभिन्न घटकों पर” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
“आजकल संरक्षण परियोजनाएँ जैव-विविधताओं पर केन्द्रित होती हैं न कि इनके विभिन्न घटकों पर” यह कथन निम्न प्रकार से स्पष्ट है:

  1. संरक्षण नियोजन में छोटे कीटों एवं अन्य जानवरों को सम्मिलित करना-नवीन परियोजनाओं के अन्तर्गत कीटों एवं अन्य छोटी जातियों एवं जानवरों को भी संरक्षण नियोजन में स्थान दिया जा रहा है।
  2. नई अधिसूचना वन्य जीव अधिनियम, 1980 एवं 1986 के अन्तर्गत सैकड़ों तितलियों, पतंगों, भंगों एवं एक ड्रैगन फ्लाई को भी संरक्षित जातियों में सम्मिलित किया गया है। वर्ष 1991 में पौधों की भी 6 जातियों को प्रथम बार इस सूची में रखा गया।
  3. विभिन्न संरक्षणात्मक उपायों की पहले से अधिक गहनता से खोज की जा रही है।

प्रश्न 13.
स्थायी वन क्षेत्र से आप क्या समझते हैं? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
आरक्षित एवं रक्षित वन क्षेत्रों को स्थायी वन क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। इन वन क्षेत्रों का रखरखाव इमारती लकड़ी व अन्य वनोत्पाद प्राप्त करने तथा सुरक्षा कारणों से किया जाता है। मध्य प्रदेश राज्य में स्थायी वनों के अन्तर्गत सर्वाधिक क्षेत्र है। यह वन क्षेत्र राज्य के कुल वन क्षेत्र के लगभग 75 प्रतिशत भाग में फैला हुआ है।

लयूत्तरात्मक प्रश्न (SA2)

प्रश्न 1.
खनन, वन विनाश के लिए एक प्रमुख उत्तरदायी कारक है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
खनन, वन विनाश के लिए प्रमुख उत्तरदायी कारक है। यह निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट है

  1. खनन प्रक्रिया में बड़ी संख्या में मशीनें, श्रमिक, सड़कें, रेलवे आदि की आवश्यकता होती है। इनके कारण वनों का विनाश होता है।
  2. पश्चिम बंगाल में बक्सा टाइगर रिजर्व खनन के कारण गम्भीर खतरे में है। खनन प्रक्रिया ने आसपास के क्षेत्र को बहुत नुकसान पहुँचाया है।
  3. खनन-प्रक्रिया ने कई प्रजातियों के प्राकृतिक आवासों को नुकसान पहुँचाया है एवं कई प्रजातियों जैसे, भारतीय हाथी आदि के आवागमन के मार्ग को बाधित किया है।
  4. राजस्थान के सरिस्का बाघ रिजर्व क्षेत्र में खनन ने बहुत नुकसान पहुँचाया है। यहाँ के लोग वन्य-जीव संरक्षण अधिनियम के तहत खनन कार्य बन्द करवाने के लिए संघर्षरत हैं।

प्रश्न 2.
जैविक संसाधनों का विनाश सांस्कृतिक विविधता के विनाश से कैसे जुड़ा हुआ है? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
जैव संसाधनों का विनाश सांस्कृतिक विविधता के विनाश से जुड़ा है। यह निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है

  1. जैव विनाश के कारण कई मूल जातियाँ एवं वनों पर आश्रित रहने वाले कई समुदाय बहुत अधिक निर्धन हो चुके हैं। वे आर्थिक रूप से हाशिये पर पहुंच चुके हैं।
  2. यह समुदाय अपने भोजन, जल, औषधि, संस्कृति एवं अध्यात्म आदि के लिए वनों एवं वन्य जीवों पर निर्भर हैं।
  3. जैव संसाधनों के विनाश के कारण निर्धन वर्ग में पुरुषों की अपेक्षा महिलाएँ अधिक प्रभावित हुई हैं।
  4. जैव स्रोतों के ह्रास के कारण महिलाओं पर काम का बोझ बढ़ गया है।

कभी-कभी जो उन्हें संसाधन एकत्रित करने के लिए 10 किमी. से भी अधिक पैदल चलना पड़ता है। इसके कारण उनमें स्वास्थ्य सम्बन्धी कई प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं। महिलाओं के पास अपने बच्चों की देखभाल के लिए पर्याप्त समय नहीं है जिसके गम्भीर सामाजिक परिणाम हो सकते हैं। वनों की निरन्तर कटाई से उत्पन्न परोक्ष परिणाम जैसे-सूखा व बाढ़ ने निर्धन वर्ग को सबसे अधिक प्रभावित किया है। अतः कहा जा सकता है जैविक संसाधनों का विनाश सांस्कृतिक विविधता के विनाश से सम्बन्धित है।

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प्रश्न 3.
‘वन एवं वन्य जीवों के ह्रास ने ग्रामीण समुदायों की महिलाओं की स्थिति को दयनीय बना दिया है।’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कई समुदायों में भोजन, पानी, चारा एवं अन्य आवश्यकताओं की वस्तुओं को इकट्ठा करने की जिम्मेदारी महिलाओं की होती है। ऐसे समुदायों की महिलाएँ वन एवं वन्य जीवों के ह्रास से बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। यह निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट है

  1. जैसे-जैसे वन संसाधन कम होते जा रहे हैं, महिलाओं को उन्हें जुटाने के लिए और अधिक परिश्रम करना पड़ रहा है। कभी-कभी उन्हें इन संसाधनों को जुटाने के लिए एक लम्बी दूरी तक पैदल चलना पड़ता है।
  2. अत्यधिक परिश्रम के कारण महिलाओं को स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  3. काम का समय बढ़ने के कारण महिलाएं अपने घर एवं बच्चों की ढंग से देखभाल नहीं कर पाती हैं जिसके गम्भीर सामाजिक परिणाम होते हैं।

प्रश्न 4.
प्रशासनिक आधार पर भारत में वनों को कितने भागों में बाँटा गया है? बताइए।
उत्तर:
प्रशासनिक आधार पर भारत में वनों को निम्न तीन भागों में बाँटा गया है
1. आरक्षित वन:
ये वे वन हैं जो इमारती लकड़ी अथवा वन उत्पादों को प्राप्त करने के लिए पूर्णतः सुरक्षित कर लिये गये हैं। इन वनों में पशुओं को चराने व खेती करने की अनुमति नहीं दी जाती है। इन वनों को सर्वाधिक मूल्यवान माना जाता है। भारत के कुल वन क्षेत्र के आधे से अधिक क्षेत्र को आरक्षित वन क्षेत्र घोषित किया गया है।

2. रक्षित वन:
ये वे वन हैं जिनमें पशुओं को चराने व खेती करने की अनुमति कुछ विशिष्ट प्रतिबन्धों के साथ प्रदान की जाती है। भारत में कुल वन क्षेत्र का एक-तिहाई हिस्सा रक्षित वन हैं। इन वनों को और अधिक नष्ट होने से बचाने के लिए इनकी सुरक्षा की जाती है। .

3. अवर्गीकृत वन:
अन्य सभी प्रकार के वन एवं बंजर भूमि इनके अन्तर्गत सम्मिलित की जाती है। इन वनों पर सरकार, व्यक्तियों एवं समुदायों का स्वामित्व होता है। देश के कुल वन क्षेत्र में से आरक्षित तथा रक्षित वन क्षेत्र को घटाकर शेष बचे भाग पर इन वनों का विस्तार है।

प्रश्न 5.
वनों को किस प्रकार से संरक्षित किया जा सकता है?
उत्तर:
वन संरक्षण के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं

  1. वनों की अंधाधुंध कटाई पर प्रतिबन्ध लगाना।
  2. अनियन्त्रित पशुचारण पर रोक।
  3. वनों से वृक्ष काटने पर उनके स्थान पर वृक्षारोपण करना आवश्यक हो।
  4. लकड़ी के ईंधन का कम से कम उपयोग किया जाए।
  5. वनों को हानिकारक कीड़े-मकोड़ों, बीमारियों एवं आग से बचाया जाए।
  6. वनों की उपयोगिता व महत्ता की जानकारी हेतु जनचेतना पैदा की जाए।
  7. ऊर्जा के वैकल्पिक साधनों का विकास किया जाए।
  8. वन क्षेत्र बढ़ाने के लिए वन्य क्षेत्रों का निर्धारण करना चाहिए।

प्रश्न 6.
भारत में संयुक्त वन-प्रबन्धन कार्यक्रम को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:

  1. संयुक्त वन प्रबन्धन कार्यक्रम की शुरुआत सन् 1988 में ओडिशा राज्य से हुई। इस वर्ष ओडिशा राज्य ने संयुक्त वन प्रबन्धन का पहला प्रस्ताव पारित किया था।
  2. वन विभाग के अन्तर्गत संयुक्त वन प्रबन्धन क्षरित वनों के बचाव के लिए कार्य करता है और इसमें गाँव के स्तर  पर संस्थाएँ बनायी जाती हैं, जिसमें ग्रामीण व वन विभाग के अधिकारी संयुक्त रूप से कार्य करते हैं।
  3. संयुक्त वन प्रबन्धन के अन्तर्गत संकटग्रस्त वनों के प्रबंधन एवं पुनर्जीवन के काम में ‘स्थानीय समुदायों की हिस्सेदारी सुनिश्चित की जाती है।
  4. संयुक्त वन प्रबन्धन स्थानीय संस्थाओं के निर्माण पर निर्भर करता है जिसके द्वारा अधिकांशतः स्थानीय समुदायों के प्रबन्धन के अन्तर्गत आने वाले संकटग्रस्त वन क्षेत्र में सुरक्षा गतिविधियाँ चलायी जाती हैं।
  5. इसके एवज में इन ग्रामीण समुदायों के सदस्य मध्यस्तरीय लाभ जैसे, गैर इमारती वन उत्पाद के हक़दार होते हैं एवं सफल संरक्षण से प्राप्त होने वाली इमारती लकड़ी में भी उन्हें हिस्सा मिलता है।

प्रश्न 7.
प्रकृति एवं इसकी कृतियों को संरक्षित रखने में सांस्कृतिक मूल्य किस प्रकार सहायक हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रकृति एवं इसकी कृतियों को संरक्षित रखने में सांस्कृतिक मूल्य निम्न प्रकार सहायक हैं
1. हमारे सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर ही प्रकृति एवं इसकी कृतियों को पवित्र माना जाता है। उदाहरण के लिएहमारी संस्कृति में झरनों, पहाड़ों, पेड़ों एवं नदियों को पवित्र मानते हुए उनकी पूजा व सुरक्षा की जाती है।

2. कई पवित्र एवं धार्मिक स्थलों के आस-पास हम बन्दरों और लंगूरों का जमघट देख सकते हैं। इन पवित्र स्थलों परं आने वाले दर्शनार्थी इन्हें खाना खिलाते हैं। इन प्राणियों को धार्मिक स्थल पर भक्तों के रूप में देखा जाता है।

3. राजस्थान राज्य के पश्चिमी भाग में बिश्नोई गाँव के आस-पास काले हिरण, चिंकारा एवं मोरों के झुण्ड देखे जा सकते हैं। ये जीव इस समुदाय के अभिन्न अंग माने जाते हैं। इन जीवों को यहाँ कोई हानि नहीं पहुँचाता है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अन्तर्राष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ (IUCN) के अनुसार विभिन्न प्रकार के पौधे एवं प्राणियों की जातियों के बारे में पता लगाइए। .
अथवा
अन्तर्राष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ ने पौधों और प्राणियों को कितनी श्रेणियों में विभाजित किया है? विस्तार से बताइए।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ (IUCN) के अनुसार विभिन्न प्रकार के पौधे एवं प्राणियों की जातियों का विभाजन निम्नलिखित प्रकार से है
1. सामान्य जातियाँ:
ऐसी जातियाँ जिनकी संख्या जीवित रहने के लिए सामान्य मानी जाती है, सामान्य जातियाँ कहलाती हैं, जैसे-पशु, साल, चीड़, कृन्तक (रोडेंट्स) आदि।

2. संकटग्रस्त जातियाँ:
पादपों व वन्य-जीवों की वे जातियाँ जिनके लुप्त होने का खतरा है, संकटग्रस्त जातियाँ कहलाती हैं। जिन विषम परिस्थितियों के कारण इनकी संख्या कम हुई है, यदि उन पर नियन्त्रण स्थापित नहीं होता है तो इन जातियों का जीवित रहना कठिन हो जायेगा, जैसे-काला हिरण, मगरमच्छ, भारतीय जंगली गधा, गैंडा, गोंडावन, शेर की पूंछ वाला बन्दर, संगाई (मणिपुरी हिरण) आदि।

3. सुभेद्य जातियाँ:
जीव-जन्तुओं और पादपों की वे प्रजातियाँ जिनकी संख्या लगातार घट रही है, सुभेद्य जातियाँ कहलाती हैं। इन प्रजातियों पर विपरीत प्रभाव डालने वाली परिस्थितियों में परिवर्तन नहीं किया जाता एवं इनकी संख्या घटती रहती है तो यह संकटग्रस्त प्रजातियों की श्रेणी में आ जायेंगी, जैसे-नीली भेड़, एशियाई हाथी, गंगा डॉल्फिन आदि।

4. दुर्लभ जातियाँ:
जीव-जन्तु च वनस्पति की वह जातियाँ जिनकी संख्या बहुत कम रह गनी है, दुर्लभ प्रजातियाँ कहलाती हैं। यदि इनको प्रभावित करने कती पिषम परिस्थितियों नहीं बदली तो ये संकटग्रस्त प्रजातियों की श्रेणी में अ. सकती हैं। ये प्रजातियाँ सीमित क्षेत्रों में पायी जनी पैसे-शेर, चीना आदि।

5. स्थानिक जातियाँ:
प्रावृत्ति : मोने अगः क्षेत्रों में पाई जाने वादी नयाँ मानि प्रजातियाँ कहलाती हैं जैधे-अंडमधी किना अंडननी वात्री मुआ अवि

6. लुप्त जातियाँ: वे जातियाँ जो संसार से विलुप्त हो गयी हैं तथा जो जीवित नहीं हैं, विलुप्त जातियों की श्रेणी में रखी गई हैं। इनके रहने व आवासों की खोज करने पर उनकी अनुपस्थिति पाई गयी, जैसे-एशियाई चीता व गुलाबी सिर वाली बत्तख।

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प्रश्न 2.
भारत सरकार द्वारा संचालित वन व वन्य-जीव संरक्षण कार्यक्रम के बारे में बताइए।
अथवा
भारत में वनों एवं वन्य-जीवों को संरक्षित रखने के लिए सरकार ने कौन-कौन से कदम उठाए हैं? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत में वनों एवं वन्य-जीवों को संरक्षित रखने के लिए भारत सरकार ने निम्नलिखित कदम उठाये हैं
1. भारतीय वन्य जीवन (रक्षण) अधिनियम, 1972:
भारत में वन्य जीवन संरक्षण सन् 1952 से सन् 1972 तक राष्ट्रीय वन नीति के अन्तर्गत होता था। वन्य-जीवों की सुरक्षा के लिए सन् 1972 में भारतीय वन्य जीवन सुरक्षा अधिनियम बनाया गया, जो वर्तमान में कई संशोधनों के साथ लागू है। इस अधिनियम में वन्य-जीवों के आवास रक्षण के अनेक प्रावधान थे।

इस अधिनियम में उन प्राणियों का उल्लेख किया गया जो प्राकृतिक असन्तुलन के कारण विलुप्ति के कगार पर पहुँच चुके थे परन्तु जिन्हें बचा लिया गया। इस अधिनियम के अन्तर्गत सम्पूर्ण भारत में रक्षित जातियों की सूची भी प्रकाशित की गयी। इस अधिनियम के अन्तर्गत बची हुई संकटग्रस्त प्रजातियों के बचाव पर, शिकार प्रतिबन्धन पर, वन्य-जीव आवासों का कानूनी रक्षण एवं जंगली जीवों के व्यापार पर रोक लगाने आदि पर मुख्य रूप से जोर दिया गया।

2. राष्ट्रीय वन नीति:
भारत उन गिने-चुने देशों में से एक है जहाँ सन् 1894 से ही वन-नीति लागू है। इस वन-नीति को सन् 1952 एवं सन् 1988 में संशोधित किया गया। संशोधित वन-नीति, 1988 का मुख्य आधार, वनों की सुरक्षा, संरक्षण एवं विकास है। इसके मुख्य लक्ष्य हैं:

  1. प्राकृतिक संपदा का संरक्षण।
  2. पारिस्थितिकीय संतुलन के संरक्षण और पुनः स्थापना द्वारा पर्यावरण स्थायित्व को बचाये रखना।
  3. राष्ट्रीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु वन उत्पादों में वृद्धि करना।
  4. वन उत्पादों के सही उपयोग को बढ़ावा देना तथा लकड़ी का अनुकूल विकल्प खोजना।
  5. इन उद्देश्यों की प्राप्ति और मौजूदा वनों पर पड़ रहे दबाव को न्यूनतम करने हेतु जनसाधारण, विशेषकर महिलाओं का अधिकतम सहयोग प्राप्त करना।

3. राष्ट्रीय उद्यान एवं वन्य जीव पशु विहार:
वन्य-जीवों के संरक्षण की दृष्टि से विलुप्तप्राय जातियों तथा दुर्लभ जातियों के संरक्षण के लिए सम्पूर्ण भारत में राष्ट्रीय उद्यान एवं वन्य-जीव पशु विहारों (अभयारण्यों) की स्थापना की गई है।

4. विशेष प्राणियों की सुरक्षा के लिए विशेष परियोजनाएँ:
भारत सरकार ने कई परियोजनाओं की घोषणा की है जिनका उद्देश्य गम्भीर खतरे में पड़े कुछ विशेष वन्य प्राणियों को संरक्षण प्रदान करना है। इन वन्य जीवों में बाघ, एक सींग वाला गैंडा, कश्मीरी हिरण (हंगुल), तीन प्रकार के मगरमच्छ-स्वच्छ जल मगरमच्छ, लवणीय जल मगरमच्छ व घड़ियाल, एशियाई शेर व अन्य प्राणी सम्मिलित हैं।

इनके अतिरिक्त कुछ समय पहले भारत सरकार ने भारतीय हाथी, काला हिरण, चिंकारा, भारतीय गोडावन और हिम तेंदुओं के शिकार और व्यापार पर सम्पूर्ण अथवा आंशिक प्रतिबन्ध लगाकर उन्हें कानूनी संरक्षण प्रदान किया है। भारत सरकार ने देश में बाघों की संख्या में तेजी से गिरावट को देखकर बाघों के संरक्षण के लिए सन् 1973 में विशेष बाघ परियोजना (प्रोजेक्ट टाइगर) प्रारम्भ की।

JAC Class 10 Social Science Important Questions

JAC Board Class 10th Social Science Important Questions Geography Chapter 1 संसाधन एवं विकास

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. उत्पत्ति के आधार पर संसाधनों को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है
(क) जैव और अजैव
(ख) नवीकरण योग्य व अनवीकरण योग्य
(ग) प्राकृतिक और मानवीय
(घ) संभावी व विकसित।

2. निम्न में से कौन अजैव संसाधन है?
(क) चट्टानें
(ख) पशु
(ग) पौधे
(घ) मछलियाँ

3. नवीकरण योग्य संसाधन है
(क) पवन ऊर्जा
(ख) वन
(ग) जल
(घ) ये सभी।

4. अचक्रीय संसाधन है
(क) जीवाश्म ईंधन
(ख) पवन ऊर्जा
(ग) पशु
(घ) मनुष्य।

5. रियो डी जेनेरो पृथ्वी सम्मेलन का आयोजन कब हुआ था
(क) 1990
(ख) 1991 में
(ग) 1992 में
(घ) 1995 में

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6. भूमि एक ……….. संसाधन है?
(क) प्राकृतिक
(ख) मानव-निर्मित
(ग) सौर ऊर्जा से निर्मित
(घ) इनमें से कोई नहीं

7. जलोढ़ मृदा निम्न में से किस फसल की खेती के लिए उपयुक्त है?
(क) गन्ना
(ख) चावल
(ग) गेहूँ
(घ) ये सभी

8. लाल-पीली मृदा कहाँ पाई जाती है?
(क) दक्कन के पठारी क्षेत्र में
(ख) मालवा प्रदेश में
(ग) ब्रह्मपुत्र घाटी में
(घ) थार रेगिस्तान में

रिक्त स्थान सम्बन्यी प्रश्न

निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:
1. पर्थावरण में पाए जाने वाले ऐसे पदार्थ या तत्व जिनसे मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति हो …….. कहलाते हैं।
उत्तर:
संसाधन

2. जून, 1992 में ब्राजील के ………नामक शहर में प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय पृथ्वी-सम्मेलन का आयोजन हुआ।
उत्तर:
रियो ही जेनेरो,

3. भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल……….है।
उत्तर:
3.32 .8 लाख वर्ग किमी,

4. ………..शुमेसर द्वारा लिखित पुस्तक है।
उत्तर:
स्माल इन,ब्यूटीफुल,

5. फसलों के बीच वृक्षों की कतारें लगाना कहलाता है।
उत्तर:
रक्षक मेखला।

लयूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संसाधनों को तत्यों या पदार्थों के निर्माण में सह्तयक कारकों के आधारे पर कितने भार्गों में बाँटा जा सकता है?
उत्तर:

  1. प्राकृतिंक संसाधन,
  2. मानवीय संसाधन।

प्रश्न 2.
नवीकरण योग्य संसाधन किसे कहते हैं?
अथवा
असमाप्य संसाधन से क्या अभिप्राय हैं?
उत्तर:
ऐसे संसाधन जिनको पुन: उपयोग में लाया जा सके, नवीकरण योग्य या अतमाप्य संसाधन कहें जाते हैं।

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प्रश्न 3.
अनवीकरणीय संसाधन के कोई चार उदाइरण लिखिए।
उत्तर:

  1. कोयला,
  2. व्वानिज-तेल,
  3. यूरेनियम,
  4. प्राकृतिक गैस।

प्रश्न 4.
विकास के स्तर के आधार पर संसाधन कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
विकास के स्तर के आधार पर संसाधन चार प्रकार के होते हैं

  1. संभावी
  2. विकसित
  3. संचित कोष
  4. भंडार।

प्रश्न 5.
सतत् पोषणीय विकास का क्या अर्थ है?
अथवा
सत्तत् पोषणीय विकास से आपका क्या आशय है?
उत्तर:
सतत् पोषणीय विकास का अर्थ है कि विकास पर्यावरण को हानि न पहूँचाए और वर्तमान विकास की प्रक्रिया भविष्य की पीड़ियों की आवश्यकताओं की अवतेलना न करे।

प्रश्न 6.
रियो-ड़ी-जेनेरो पृध्वी सम्नेलन का मुख्य उदेश्य क्या था?
उत्तर:
रियो-डी-जेनेरो पृध्वी सम्मेलन का मुख्य उद्हेश्य विश्व स्तर पर उभरते पर्यावरण संरक्षण एवं आर्थिक-सामाजिक विकास की समस्याओं का हल हैदा था।

प्रश्न 7.
संसाधन नियोजन से आप क्या समझते है?
उत्तर:
संसाधनों के बिबेकपूर्ण उपयोग के लिए सर्वमान्य रणर्नीति को संसाधन नियोज़न कहते है।

प्रश्न 8.
प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण का क्या अर्थ है?
उत्तर:
प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण का अर्थ है उनका नियोजित एवं बिवेकपूर्ण डंग से उपयोग करना ताकि इन संखाधर्नों से एक लम्बे समय तक पर्याप्त लाभ प्राप्त हो सके।

प्रश्न 9.
शुमेसर द्वारा लिखित पुस्तक का क्या नाम है?
उत्तर:
शुमेंसर द्वारा लिखित पुस्तक का नाम ‘स्माल इज ब्युटीफुल है।

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प्रश्न 10.
भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल कितना है?
उत्तर:
भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल $32.8$ लाख वर्ग किमी. है।

प्रश्न 11.
दो ऐसे राज्यों के नाम बताइए जहाँ अति पशुचारण भूमि निम्नीकरण का मुख्य कारण है?
उत्तर:

  1. गुजरात,
  2. राजस्थान।

प्रश्न 12.
मृदा निर्माण में किन कारकों का योगदान होता है?
उत्तर:
मृदा निर्माण में जनक शैल, जलवायु, वनस्पति, उच्चावच, अन्य जैव पदार्थ एवं समय की लम्बी अवधि आदि कारकों का महत्वपूर्ण योगदान होता है।

प्रश्न 13.
भारतीय मृदा को कितने भागों में बाँटा जा सकता है ?
उत्तर:

  1. जलोढ़ मृदा,
  2. काली मृदा,
  3. लाल व पीली मृदा,
  4. लेटराइट मृदा,
  5. मरुस्थलीय मृदा,
  6. वन मृदा।

प्रश्न 14.
आयु के आधार पर जलोढ़ मृदा को किन दो वर्गों में बाँटा जाता है?
उत्तर:

  1. पुराना जलोढ़ (बांगर)
  2. नया जलोढ़ (खादर)

प्रश्न 15.
किस मृदा में नमीधारण करने की क्षमता अधिक होती हैं? कारण दें।
उत्तर:
काली मृदा में नमीधारण करने की क्षमता अधिक होती है क्योंकि काली मृदा बहुत बारीक कणों अर्थात् मृत्तिका से बनी होती है।

प्रश्न 16.
काली मृदा की जुताई मानसून की पहली बौछार से ही क्यों शुरू कर दी जाती है?
उत्तर:
क्योंकि गीली होने पर यह मृदा चिपचिपी हो जाती है और इसको जोतना मुश्किल हो जाता है।

प्रश्न 17.
काली मृदा की दो विशेषताएँ लिखिए ।
उत्तर:

  1. काली मृदा बहुत महीन कणों अर्थात् मृत्तिका से बनी होती है
  2. गर्म और शुष्क मौसम में इन मृदाओं में गहरी दररें पड़ जाती हैं जिससे इनमें अच्छी तरह वायु मिश्रित हो जाती है।

प्रश्न 18.
लेटराइट मृदा भारत के किन-किन क्षेत्रों
उत्तर:
यह मृदा कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आन्द्र प्रदेश, ओडिशा तथा पश्चिम बंगाल क्षेत्रों में पाई जाती है।

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प्रश्न 19.
नीचे दिए गए किसी मृदा के लक्षणों को पढ़िए और सम्बन्धित मृदा का नाम लिखिए-
(क) अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में विकसित होती है।
(ख) अत्यधिक निक्षालन प्रक्रिया घटित होती है।
(ग) ह्रूमस की मात्रा कम पाई जाती है।
उत्तर:
लेटराइट मृदा

प्रश्न 20.
काजू की फसल उगाने के लिए सबसे अधिक उपयुक्त मृदा कौन-सी है?
उत्तर:
लाल लेटराइट मृदा।

प्रश्न 21.
मरुस्थलीय मृदा की नीचे की परतों में चूने के कंकर की सतह पायी जाती है ? क्यों ?
उत्तर:
क्योंकि मृदा की सतह के नीचे कैल्शियम की मात्रा बढ़ती चली जाती है।

प्रश्न 22.
मृदा अपरदन कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
मृदा अपरदन तीन प्रकार का होता है:

  1. अवनलिका अपरदन,
  2. परत अपरदन,
  3. वायु अपरदन।

प्रश्न 23.
मृदा अपरदन को किस प्रकार रोका जा सकता है?
उत्तर:
मृदा अपरदन को जलप्रवाह की तीव्रता को कम करके तथा वृक्षारोपण द्वारा रोका जा सकता है।

प्रश्न 24.
भूस्खलन के लिए उत्तरदायी प्राकृतिक एवं मानवजनित कारक कौन-से हैं?
उत्तर:

  1. प्राकृतिक कारक-पवन,
  2. मानवजनित कारक वनोन्मूलन ।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA1)

प्रश्न 1.
संसाधन क्या हैं? उदाहरण दीजिए।
अथवा
संसाधन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
हमारे पर्यावरण में उपलब्ध वे समस्त वस्तुएँ जो हमारी आवश्यकताओं को पूरा करने में प्रयोग की जाती हैं और जिनको बनाने के लिए तकनीकी ज्ञान उपलब्ध है, जो आर्थिक रूप से संभाव्य एवं सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य हैं, संसाधन कहलाती हैं।

संसाधन का अर्थ केवल प्राकृतिक तत्व ही नहीं है अपितु मानवीय या सांस्कृतिक तत्व भी महत्वपूर्ण संसाधन होते हैं। इस प्रकार कोई भी वस्तु जो मानव के लिए उपयोगी हो अथवा उपयोगिता में सहायक हो, संसाधन कहलाती है जैसे-खनिज तेल, कोयला, जल, खनिज, प्राकृतिक वनस्पति, जीव-जन्तु आदि।

प्रश्न 2.
संसाधनों के वर्गीकरण के विभिन्न आधार कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
संसाधनों के वर्गीकरण के विभिन्न आधार

  1. उत्पत्ति के आधार पर जैविक व अजैविक।
  2. समाप्यता के आधार पर नवीकरण योग्य और अनवीकरण योग्य:
  3. स्वामित्व के आधार पर व्यक्तिगत, सामुदायिक, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय।
  4. विकास की अवस्था के आधार पर संभावी, विकसित, भण्डार एवं संचित कोष।

प्रश्न 3.
नवीकरण योग्य एवं अनवीकरण योग्य संसाधनों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
नव्यकरणीय एवं अनत्व्यकरणीय संसाधनों में अन्तर बताइए।
उत्तर:
नवीकरण योग्य एवं अनवीकरण योग्य संसाधनों में निम्नलिखित अन्तर हैं:

नवीकरण योग्य (नव्यकरणीय) अनवीकरण योग्य (अनव्यकरणीय)
1. ये वे संसाधन हैं जिनका पुनः उपयोग सम्भव है। 1. ये वे संसाधन हैं जो एक बार उपयोग करने के बाद नष्ट हो जाते हैं। पुनः उपयोग सम्भव नहीं है।
2. ये पर्यावरण में प्रदूषण नहीं फैलाते हैं। 2. ये पर्यावरण में प्रदूषण फैलाते हैं।
3. पवन, जल, मृदा, वन, सौर-ऊर्जा आदि नवीकरण योग्य योग्य संसाधन हैं। 3. कोयला, खनिज-तेल, प्राकृतिक गैस आदि अनवीकरण संसाधन हैं।

प्रश्न 4.
अन्तर्राष्ट्रीय संसाधनों का अभिप्राय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किसी देश की तटरेखा से 200 समुद्री मील की दूरी से परे खुले महासागरीय संसाधन अन्तर्राष्ट्रीय संसाधन होते हैं। इन पर किसी देश का अधिकार नहीं होता है। इन्हें कुछ अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएँ नियन्त्रित करती हैं। इन संसाधनों का अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं की सहमति के बिना उपयोग नहीं किया जा सकता।

देवबंद वाले किसी अनु का उदाहरण दें - devaband vaale kisee anu ka udaaharan den

प्रश्न 5.
संसाधन नियोजन की क्या आवश्यकता है?
अथवा
संसाधन नियोजन क्यों आवश्यक है? बताइए।
उत्तर:
संसाधनों के नियोजन की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से है

  1. अधिकांश संसाधनों की आपूर्ति सीमित होती है।
  2. अधिकांश संसाधनों का वितरण सम्पूर्ण देश में समान नहीं होता है, अतः समुचित वितरण हेतु नियोजन आवश्यक है।
  3. संसाधनों की बर्बादी पर रोक लगती है।
  4. पर्यावरण प्रदूषण मुक्त हो जाता है।
  5. वर्तमान में सभी को संसाधन प्राप्त होते हैं।
  6. संसाधनों को भावी पीढ़ियों के लिए बनाये रखा जा सकता है।

प्रश्न 6.
मृदा के निर्माण में शैलें किस प्रकार एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती हैं? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
मृदा के निर्माण में शैलें बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। शैलें अपने ही स्थान पर अपक्षय प्रक्रिया के अन्तर्गत टूटकर चूर्ण हो जाती हैं। इसमें वनस्पति तत्व मिलकर उपजाऊ मृदा का निर्माण कर देते हैं। इस प्रकार शैलें मृदा निर्माण का आधार प्रदान करती हैं।

प्रश्न 7.
लाल व पीली मृदा का निर्माण कैसे होता है? यह मृदा कहाँ पायी जाती है?
उत्तर:
लाल व पीली मृदा का निर्माण प्राचीन रवेदार आग्नेय चट्टानों के अपक्षय के कारण होता है। इन मृदाओं का लाल रंग रवेदार आग्नेय और रूपान्तरित चट्टानों में लौह धातु के प्रसार के कारण होता है। इनका पीला रंग इनमें जलयोजन के कारण होता है। लाल व पीली मृदा के क्षेत्र ये मृदाएँ ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्य गंगा के मैदान के दक्षिणी हिस्सों एवं पश्चिमी घाट के पहाड़ी भागों में पायी जाती हैं।

प्रश्न 8.
लेटराइट मृदा का निर्माण एवं उसकी महत्वपूर्ण विशेषताएँ बताइए।
अथवा
लेटराइट मृदा का विकास कहाँ होता है ? उसकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
लेटराइट मृदा का निर्माण/विकास:
लेटराइट मृदा उच्च तापमान एवं अत्यधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में विकसित होती है। यह भारी वर्षा से अत्यधिक निक्षालन का परिणाम है। लेटराइट मृदा की विशेषताएँ

  1. इस मृदा का निर्माण भारी वर्षा के कारण अत्यधिक निक्षालन से होता है।
  2. इस मृदा में ह्यूमस की मात्रा कम पायी जाती है।
  3. इस मृदा में कृषि करने के लिए खाद एवं उर्वरकों की पर्याप्त मात्रा डालनी पड़ती है।
  4. यह मृदा चाय, कॉफी व काजू की फसल के लिए उपयुक्त है।

प्रश्न 9.
मरुस्थलीय मृदा की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
मरुस्थलीय मृदा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. इन मृदाओं का रंग लाल व भूरा होता है।
  2. ये मृदाएँ आमतौर पर रेतीली व लवणीय होती हैं।
  3. शुष्क जलवायु एवं वनस्पति की कमी के कारण इस मृदा में जलवाष्पन दर अधिक है।
  4. इस मृदा में ह्यूमस व नमी की मात्रा कम पायी जाती है।
  5. यह मृदा अनुपजाऊ होती है लेकिन इसे उपयुक्त तरीके से सिंचित करके कृषि योग्य बनाया जा सकता है।

प्रश्न 10.
चादर अपरदन और अवनलिका अपरदन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मृदा के कटाव और उसके बहाव की प्रक्रिया को मृदा अपरदन कहते हैं। जब जल विस्तृत क्षेत्र को ढके हुए ढाल के साथ नीचे की ओर बहता है तो ऐसी स्थिति में उस क्षेत्र की ऊपरी मृदा जल के साथ बह जाती है। इसे चादर अपरदन कहा जाता है। कई बार तेजी से बहता हुआ जल नीचे की नरम मृदा को काटते-काटते गहरी नालियाँ बना देता है तो ऐसे अपरदन को अवनलिका अपरदन कहा जाता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA2)

प्रश्न 1.
संसाधनों को उनकी उत्पत्ति एवं समाप्यता के आधार पर वर्गीकृत कीजिए। प्रत्येक वर्ग का एक-एक उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर:
उत्पत्ति के आधार पर संसाधनों को निम्नलिखित दो वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है
1. जैव (जैविक) संसाधन:
वे संसाधन जिनका जैवमण्डल में एक निश्चित जीवन चक्र होता है, जैव संसाधन कहलाते हैं। इन संसाधनों की प्राप्ति जैवमण्डल से होती है तथा इनमें जीवन व्याप्त होता है, जैसे-मनुष्य, वनस्पति जगत, प्राणि जगत आदि।

2. अजैव (अजैविक) संसाधन:
वे संसाधन जिनमें एक निश्चित जीवन-क्रिया का अभाव होता है और निर्जीव वस्तुओं से निर्मित होते हैं। अजैव संसाधन कहलाते हैं, जैसे-लोहा, सोना, चाँदी, कोयला व चट्टानें आदि।

समाप्यता के आधार पर संसाधनों को निम्नलिखित दो वर्गों में बाँटा जा सकता है
1. नवीकरण योग्य संसाधन:
वे समस्त संसाधन जिनको भौतिक, रासायनिक अथवा यांत्रिक प्रक्रियाओं द्वारा नवीकृत अथवा पुनः उत्पन्न किया जा सकता है, नवीकरण योग्य संसाधन अथवा पुनः पूर्ति योग्य संसाधन कहलाते हैं, जैसे-जल, वन, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा आदि।

2. अनवीकरण योग्य संसाधन:
वे समस्त संसाधन जिनको एक बार उपयोग में लेने के पश्चात् पुनः पूर्ति किया जाना सम्भव नहीं है, अनवीकरण योग्य संसाधन कहलाते हैं। इन संसाधनों का विकास एक लम्बे अन्तराल में होता है। इनको बनने में लाखों वर्ष लग जाते हैं, जैसे-खनिज तेल, कोयला, परमाणु-खनिज आदि।

प्रश्न 2.
स्वामित्व के आधार पर आप किस प्रकार संसाधनों का वर्गीकरण करेंगे?
अथवा
स्वामित्व के आधार पर चार प्रकार के संसाधनों की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
स्वामित्व के आधार पर संसाधनों को निम्नलिखित चार प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है
1. व्यक्तिगत संसाधन:
वे संसाधन जिन पर व्यक्तिगत स्वामित्व होता है, व्यक्तिगत संसाधन कहलाते हैं। जैसे-बाग, चारागाह, कुआँ, तालाब, भूखण्ड, घर, कार आदि।

2. सामुदायिक संसाधन:
ऐसे संसाधन जो समुदाय के सभी सदस्यों के लिए समान रूप से उपलब्ध होते हैं, सामुदायिक संसाधन कहलाते हैं, जैसे-खेल का मैदान, चारागाह, श्मशान-भूमि, तालाब.आदि।

3. राष्ट्रीय संसाधन:
वे सभी संसाधन जिन पर केन्द्र अथवा राज्य सरकार का नियंत्रण होता है, राष्ट्रीय संसाधन कहलाते हैं। देश की राजनीतिक सीमाओं के अन्तर्गत समस्त भूमि एवं 12 समुद्री मील दूर तक महासागरीय क्षेत्र एवं इसमें पाये जाने वाले संसाधनों पर सम्बन्धित राष्ट्र का स्वामित्व होता है।

4. अन्तर्राष्ट्रीय संसाधन:
इन संसाधनों को अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएँ नियन्त्रित करती हैं। तट रेखा से 200 समुद्री मील की दूरी (अपवर्जक आर्थिक क्षेत्र) से परे खुले महासागरीय संसाधनों पर किसी एक देश का अधिकार नहीं होता है। इन्हें बिना किसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्था की सहमति के कोई देश उपयोग नहीं कर सकता।

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प्रश्न 3.
विकास के स्तर के आधार पर संसाधनों का वर्गीकरण कीजिए।
अथवा
संसाधनों को किस तरह उनके विकास की स्थिति के आधार पर विभिन्न वर्गों में विभाजित करते हैं? प्रत्येक वर्ग के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
विकास के स्तर (स्थिंति) के आधार पर संसाधनों को निम्नलिखित चार वर्गों में विभाजित कर सकते हैं
1. सम्भावी संसाधन:
किसी प्रदेश विशेष में समस्त विद्यमान संसाधन जिनका अब तक उपयोग नहीं किया गया है, सम्भावी संसाधन कहलाते हैं।
उदाहरण के लिए भारत के पश्चिमी क्षेत्र विशेषकर राजस्थान और गुजरात में सौर व पवन-ऊर्जा संसाधनों की अपार सम्भावना है परन्तु उनका सही ढंग से विकास नहीं हुआ है।

2. विकसित संसाधन:
वे समस्त संसाधन जिनका सर्वेक्षण किया जा चुका है एवं उनके उपयोग की गुणवत्ता व मात्रा का निर्धारण किया जा चुका है, विकसित संसाधन कहलाते हैं। संसाधनों का विकास प्रौद्योगिकी एवं उनकी सम्भाव्यता के स्तर पर निर्भर करता है। . उदाहरण-लोहा, कोयला, मैंगनीज आदि। . .

3. भंडार:
पर्यावरण में उपलब्ध वे समस्त पदार्थ जो मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं परन्तु उपयुक्त प्रौद्योगिकी के अभाव में उसकी पहुँच से बाहर हैं, भंडार में सम्मिलित किये जाते हैं, जैसे- भूतापीय ऊर्जा। इसके अतिरिक्त जल भी भण्डार की श्रेणी में सम्मिलित है। जल दो ज्वलनशील गैसों हाइड्रोजन व ऑक्सीजन का यौगिक है तथा यह ऊर्जा का प्रमुख स्रोत बन सकता है परन्तु इस उद्देश्य से इसका प्रयोग करने के लिए हमारे पास आवश्यक प्रौद्योगिकी ज्ञान उपलब्ध नहीं है।

4. संचित कोष:
भण्डार का वह हिस्सा जिसे तकनीकी ज्ञान की सहायता से उपयोग में लाया जा सकता है लेकिन जिसका उपयोग अभी तक प्रारम्भ नहीं किया गया है, संचित कोष कहलाता है।
उदाहरण-वन, बाँधों में जल आदि।

प्रश्न 4.
संसाधन क्यों महत्वपूर्ण हैं? संसाधनों के अविवेकपूर्ण उपयोग से किस तरह की समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं?
उत्तर:
मनुष्य के जीवनयापन तथा जीवन की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए संसाधन महत्वपूर्ण हैं। संसाधन किसी भी प्रकार के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं परन्तु संसाधनों के अविवेकपूर्ण एवं अति उपयोग के कारण कई सामाजिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं, जो निम्नलिखित हैं

  1. कुछ लोगों ने स्वार्थ के लिए संसाधनों का निर्ममतापूर्वक दोहन किया है जिसके फलस्वरूप वे समाप्त होने के कगार पर हैं।
  2. समाज में कुछ लोगों के हाथों में संसाधनों के जमा होने से समाज का दो वर्गों में विभाजन हो गया है-संसाधन सम्पन्न (अमीर) एवं संसाधन विहीन (गरीब)।
  3. संसाधनों के अविवेकपूर्ण शोषण से विभिन्न वैश्विक पारिस्थितिकी समस्याएँ, जैसे- भूमण्डलीय तापन, ओजोन परत का क्षरण, पर्यावरण प्रदूषण, भूमि निम्नीकरण आदि उभरकर सामने आयी हैं।

प्रश्न 5.
रियो-डी-जेनेरो पृथ्वी सम्मेलन, 1992 की प्रमुख बातों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
सन् 1992 में आयोजित रियो-डी-जेनेरो पृथ्वी सम्मेलन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। उत्तर-रियो-डी-जेनेरो पृथ्वी सम्मेलन, 1992 की प्रमुख बातें निम्नलिखित हैं

  1. जून, 1992 में 100 से भी अधिक देशों के राष्ट्राध्यक्ष ब्राजील (दक्षिण अमेरिका) के शहर रियो डी-जेनेरो में प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय पृथ्वी सम्मेलन में एकत्रित हुए।
  2. इस सम्मेलन का आयोजन विश्व स्तर पर उभरते पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक एवं आर्थिक विकास की समस्याओं का हल ढूँढ़ने के लिए किया गया था।
  3. इस सम्मेलन में उपस्थि नेताओं ने भू-मण्डलीय जलवायु परिवर्तन एवं जैविक विविधता के एक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किये थे।
  4. इस सम्मेलन में भूमंडलीय वन सिद्धान्तों पर सहमति हुई।
  5. 21 वीं शताब्दी में सतत् पोषणीय विकास के लिए एजेंडा 21 को स्वीकृति प्रदान की गयी। जिसका प्रमुख उद्देश्य भूमंडलीय सतत् पोषणीय विकास प्राप्त करना था। इस एजेंडे को संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण एवं विकास सम्मेलन के तत्वावधान में राष्ट्राध्यक्षों द्वारा स्वीकृति प्रदान की गयी थी।

प्रश्न 6.
एजेण्डा-21 से आप क्या समझते हैं?
अथवा
एजेण्डा-21 क्या है? इसके उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
जून, 1992 में 100 से अधिक देशों के राष्ट्राध्यक्षों का एक सम्मेलन ब्राजील के रियो-डी-जेनेरो शहर में अन्तर्राष्ट्रीय पृथ्वी सम्मेलन के नाम से हुआ। इस सम्मेलन का उद्देश्य विश्व स्तर पर उभरते पर्यावरणीय खतरों को रोकना एवं सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का हल ढूँढ़ना था। इसी सम्मेलन में एकत्रित नेताओं ने भू-मण्डलीय जलवायु परिवर्तन एवं जैविक-विविधता के एक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किये थे।

यही घोषणा पत्र एजेण्डा-21 के नाम से जाना जाता है। इस घोषणा पत्र का मुख्य उद्देश्य भू-मण्डलीय जलवायु परिवर्तन के खतरों को रोकना, जैविक-विविधता, पर्यावरण संरक्षण के लिए उपाय करना एवं भू-मण्डलीय सतत् पोषणीय विकास प्राप्त करना है। अतः एजेण्डा-21 एक विस्तृत कार्य सूची है जिसका उद्देश्य सभान हितों, पारस्परिक आवश्यकताओं एवं सम्मिलित जिम्मेदारियों के अनुसार विश्व सहयोग के साथ पर्यावरणीय क्षति, निर्धनता एवं बीमारियों से निपटना है।

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प्रश्न 7.
संसाधन नियोजन से आप क्या समझते हैं? क्या भारत जैसे राष्ट्र को संसाधन नियोजन की आवश्यकता है? कारण बताइए।
उत्तर:
संसाधन नियोजन से तात्पर्य संसाधनों के न्यायसंगत वितरण एवं उनके विवेकपूर्ण उपयोग से है। हाँ, संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए नियोजन एक सर्वमान्य रणनीति है। भारत एक विशाल देश है, यहाँ विविध प्रकार के संसाधन मिलते हैं। अतः भारत को उसके संसाधनों की उपलब्धता में विविधता के कारण संसाधन नियोजन की आवश्यकता है। इसके कारण निम्नलिखित हैं
1. भारत में कई ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ कुछ संसाधनों की प्रचुरता है जबकि अन्य प्रकार के संसाधनों की वहाँ कमी है। उदाहरण के लिए; राजस्थान में सौर व पवन-ऊर्जा की अपार संभावनाएँ हैं जबकि जल संसाधनों की पर्याप्त कमी है।

2. कुछ क्षेत्र संसाधनों की उपलब्धता के सन्दर्भ में आत्मनिर्भर हैं, जैसे-झारखण्ड, मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ जैसे राज्य खनिजों एवं कोयला के मामले में धनी हैं तथा अरुणाचल प्रदेश में जल संसाधन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है, परन्तु यहाँ आधारभूत विकास का अभाव है, जिसके कारण संसाधन नियोजन की आवश्यकता है।

3. कुछ क्षेत्रों में आवश्यक संसाधनों की अत्यधिक कमी है। उदाहरण के लिए लद्दाख का शीत मरुस्थल देश के अन्य भागों से अलग-थलग है। यह प्रदेश सांस्कृतिक विरासत में धनी है लेकिन यहाँ पानी तथा आधारभूत संरचनाओं व कुछ महत्वपूर्ण खनिजों की कमी है। उपर्युक्त समस्त कारणों से राष्ट्रीय, प्रादेशिक एवं स्थानीय स्तर पर सन्तुलित संसाधन नियोजन की आवश्यकता है।

प्रश्न 8.
संसाधन नियोजन की प्रक्रिर का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
अथवा
संसाधन नियोजन के विविध सोपानों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संसाधन नियोजन-संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए नियोजन एक सर्वमान्य रणनीति है। भारत जैसे विविधतापूर्ण संसाधनों वाले देश में यह बहुत महत्त्वपूर्ण है। हमारे देश में राष्ट्रीय, प्रादेशिक एवं स्थानीय स्तर पर संसाधन नियोजन की आवश्यकता है। अतः संसाधनों के उपयुक्त उपयोग के लिए अपनाई जाने वाली तकनीक संसाधन नियोजन कहलाती है।

संसाधन नियोजन की प्रक्रिया/सोपान:
राष्ट्रीय, प्रादेशिक एवं स्थानीय स्तर पर संसाधन नियोजन करना आसान कार्य नहीं है, यह एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें निम्नलिखित सोपान हैं

  1. देश के विभिन्न प्रदेशों में संसाधनों को पहचानकर उनकी तालिका बनाना, इस कार्य में क्षेत्रीय सर्वेक्षण, मानचित्र बनाना तथा संसाधनों का गुणात्मक व मात्रात्मक अनुमान लगाना एवं उनका मापन करना है।
  2. संसाधन विकास योजनाएँ लागू करने के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकी, कौशल एवं संस्थागत नियोजन ढाँचा तैयार करना।
  3. संसाधन विकास योजनाओं तथा राष्ट्रीय विकास योजनाओं में समन्वय स्थापित करना। हमारे देश में स्वतन्त्रता के पश्चात् से ही संसाधन नियोजन के उद्देश्य की पूर्ति हेतु प्रथम पंचवर्षीय योजना से ही प्रयास किये गये हैं।

प्रश्न 9.
संसाधनों के संरक्षण की क्या आवश्यकता है? इस सन्दर्भ में गाँधीजी के क्या विचार थे?
उत्तर:
हमें निम्नलिखित कारणों से संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता है

  1. पृथ्वी की सतह पर संसाधन सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं।
  2. तीव्र जनसंख्या वृद्धि, औद्योगीकरण, कृषि में आधुनिकीकरण एवं शहरीकरण के कारण संसाधनों की माँग में लगातार वृद्धि हो रही है। अतः संसाधनों के बढ़ते अति उपयोग के कारण पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं।
  3. संसाधनों के अति उपयोग के कारण सामाजिक-आर्थिक समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं।
  4. हमारा जीवन, मिट्टी, जल, भूमि, वायु, वन, खनिज आदि पर निर्भर है। अतः हमें अपने अस्तित्व को बनाए रखने व अपनी प्रगति के लिए इन संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता है।

संसाधनों के संरक्षण के सम्बन्ध में गाँधीजी के विचार:
गाँधीजी ने संसाधनों के संरक्षण पर निम्नलिखित शब्दों में अपनी चिन्ता व्यक्त की, “हमारे पास हर व्यक्ति की आवश्यकता पूर्ति के लिए बहुत कुछ है लेकिन किसी के लालच की सन्तुष्टि के लिए नहीं अर्थात् हमारे पास पेट भरने के लिए बहुत कुछ है लेकिन पेटी भरने के लिए नहीं।” इस प्रकार गाँधीजी ने लालची एवं स्वार्थी व्यक्तियों तथा आधुनिक प्रौद्योगिकी की शोषक-प्रवृत्ति को वैश्विक स्तर पर संसाधनों के क्षय का मूल कारण माना है।

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प्रश्न 10.
भू-उपयोग प्रारूप से आप क्या समझते हैं? भारत में भू-उपयोग को निर्धारित करने वाले कौन-कौन से कारक हैं?
उत्तर:
भू-उपयोग प्रारूप-भू-उपयोग प्रारूप से तात्पर्य भूमि का विभिन्न उद्देश्यों के लिए उपयोग की रूपरेखा है, जैसे-कृषि, पशुचारण, खनन, सड़क, रेल, भवन आदि का निर्माण। भारत में भू-उपयोग को निर्धारित करने वाले कारक निम्न हैं
1. भू-आकृति:
ऊपरी मृदा की परत वाली चट्टानी भूमि, तीव्र ढाल वाली भूमि, दलदली भूमि आदि कृषि के लिए उपयुक्त नहीं होती। सिंचित, उपजाऊ समतल भूमि का ही उपयोग विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के लिए किया जाता है।

2. जलवायु:
भारत का दोनों कटिबन्धों में विस्तार है। यहाँ उष्ण व शीतोष्ण, दोनों प्रकार की जलवायु पाये जाने के कारण वर्षभर फसलें उगायी जाती हैं। इस तरह की जलवायु ने हमारे देश की भूमि को उच्च कृषि उत्पादक एवं प्राकृतिक वनस्पति के विकास की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण बना दिया है।

3. मृदा के प्रकार:
भारत में विभिन्न प्रकार की मृदाएँ पाये जाने के कारण फसलों में भी विविधता दिखाई देती है।

4. मानवीय कारक:
मानवीय कारक, जैसे-जनसंख्या घनत्व, तकनीकी क्षमता, सांस्कृतिक परम्परा आदि ऐसे अन्य कारक हैं जो भूमि के उपयोग को निर्धारित करते हैं।

प्रश्न 11.
भारत में भूमि निम्नीकरण के लिए कौन-कौन से कारक उत्तरदायी हैं?
अथवा
भारत में भू-अपरदन के लिए उत्तरदायी किन्हीं चार कारणों की व्याख्या करें।
अथवा
किन्हीं चार मानव कार्यकलापों का उल्लेख करें जो भारत में भूमि निम्नीकरण के लिए मुख्य रूप से उत्तरदायी हैं।
उत्तर:
भारत में भूमि निम्नीकरण (भू-अपरदन) के लिए उत्तरदायी चार मानवीय कार्यकलाप निम्नलिखित हैं
1. खनन:
खनन, भूमि निम्नीकरणं के लिए एक प्रमुख उत्तरदायी कारक है। जब खनिजों की खुदाई या निष्कर्षण कार्य समाप्त हो जाता है तो खदानों को खुला छोड़ दिया जाता है, जिससे भूमि का निम्नीकरण (अपरदन) प्रारम्भ हो जाता इस तरह की भूमि कृषि तथा अन्य आर्थिक गतिविधियों के लिए अनुपयुक्त हो जाती है। झारखण्ड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा आदि राज्य इसके उदाहरण हैं। .

2. अत्यधिक सिंचाई:
अत्यधिक सिंचाई के कारण भी भूमि निम्नीकृत हो जाती है। इसमें जल के जमाव के कारण मृदा की लवणता व क्षारीयता में वृद्धि हो जाती है। पंजाब, हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में अधिक सिंचाई भी भूमि निम्नीकरण का कारण बनी है।

3. अति पशुचारण:
एक लम्बे शुष्क-काल के दौरान पशुओं द्वारा घास की जड़ों तक को चर लिया जाता है जिससे मृदा नरम पड़ जाती है, जो भूमि निम्नीकरण का कारण बनती है। भारत के राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र आदि राज्यों में अति पशुचारण भूमि निम्नीकरण का एक प्रमुख कारण है।

4. खनिज प्रक्रियाएँ:
खनिज प्रक्रियाएँ जैसे सीमेंट उद्योग में चूना-पत्थर को पीसना, मृदा बर्तन उद्योग में खड़िया, मिट्टी और सेलखड़ी के प्रयोग से अत्यधिक मात्रा में वायुमण्डल में धूल विसर्जित होती है। जब इसकी परत भूमि पर जम जाती है तो मृदा की जल सोखने की प्रक्रिया अवरुद्ध हो जाती है। यह भी मृदा निम्नीकरण का एक प्रमुख कारण है।

प्रश्न 12.
भूमि-निम्नीकरण को नियन्त्रित करने के उपाय सुझाइए।
अथवा
भू-निम्नीकरण की समस्या को किस तरह हल किया जा सकता है? कोई चार उपाय बताइए।
उत्तर:
भूमि एक महत्वपूर्ण संसाधन है। इस संसाधन का उपयोग हमारे पूर्वज प्राचीनकाल से करते आये हैं तथा भावी पीढ़ी भी इसी भूमि का उपयोग करेगी, हम अपनी मूल आवश्यकताओं का 95 प्रतिशत से अधिक भाग भूमि से प्राप्त करते हैं।

मानवीय क्रियाकलापों से न केवल भूमि का निम्नीकरण हो रहा है वरन् भूमि को हानि पहुँचाने वाली प्राकृतिक शक्तियों को भी बल मिला है। आज भूमि निम्नीकरण की समस्या का हल किया जाना अति आवश्यक है। भूमि-निम्नीकरण की समस्या को हल करने के प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं
1.वृक्षारोपण:
वनस्पतियाँ भूमि को सुरक्षात्मक आवरण प्रदान करती हैं। वानस्पतिक आवरण के कारण पानी सीधा जमीन पर नहीं गिर पाता है। फलत: यह मिट्टी की उर्वरता को बनाये रखने में मदद करती हैं। वनारोपण भूमि निम्नीकरण की समस्या सुलझाने में बहुत कारगर सिद्ध हो सकता है।

2. पेड़ों की रक्षक:
मेखला-पेड़ों की रक्षक-मेखला का निर्माण भी भूमि निम्नीकरण को कम करने में सहायक होता है।

3. रेतीले टीलों का स्थिरीकरण:
मरुस्थलीय क्षेत्रों में बालू के टीलों का स्थिरीकरण भी बहुत जरूरी है। यह कार्य काँटेदार पौधों को लगाकर किया जा सकता है।

4. औद्योगिक स्राव व कूड़े:
करकट की ठीक निकासी-उद्योगों से निकलने वाला गंदा पानी एवं अन्य वर्जनीय पदार्थ भूमि निम्नीकरण के मुख्य कारण हैं। इसलिए औद्योगिक कचरे व जल को संशोधित करने के पश्चात् ही विसर्जित करके जल और भूमि प्रदूषण कम किया जा सकता है।

प्रश्न 13.
जलोढ़ मृदा की प्रमुख विशेषताएँ कौन कौन-सी हैं?
अथवा
भारत के अधिकांश भू-भाग पर किस प्रकार की मृदा पायी जाती है? ऐसी मृदा की कोई चार विशेषताएँ लिखिए।
अथवा
भारत में कौन-सी मृदा सर्वाधिक विस्तृत रूप से फैली और महत्वपूर्ण है?
अथवा
जलोढ़ मृदा का निर्माण कैसे होता है? जलोढ़ मृदा की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत में अधिकांश भू-भाग पर जलोढ़ मृदा विस्तृत रूप में फैली हुई है। यह हिमालय की तीन महत्वपूर्ण नदी तन्त्रों सिंधु, गंगा ब्रह्मपुत्र द्वारा लाए गए निक्षेपों से बनी है। पूर्वी तट के नदी डेल्टा भी जलोढ़ मृदा से बने हैं। जलोढ़ मृदा की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं

  1. जलोढ़ मृदा सबसे अधिक उपजाऊ और अधिक विस्तार वाली है। यह मृदा विस्तृत रूप से सम्पूर्ण उत्तरी भारत के मैदान में फैली हुई है।
  2. जलोढ़ मृदा में रेत, सिल्ट एवं मृत्तिका के विभिन्न अनुपात पाये जाते हैं।
  3. अधिकतर जलोढ़ मृदाएँ पोटाश, फास्फोरस व चूनायुक्त होती हैं।
  4. जलोढ़ बहाकर लाई गई मृदा है। यह मृदा नदियों द्वारा बहाकर लाये गये निक्षेपों से बनी है।
  5. कणों के आकार के अतिरिक्त जलोढ़ मृदा की पहचान उसकी आयु से भी होती है।
    • आयु के आधार पर जलोढ़ मृदाएँ दो प्रकार की होती हैं। पुरानी जलोढ़ व नवीन जलोढ़।
    • पुरानी जलोढ़ को ‘बांगर’ एवं नवीन जलोढ़ को ‘खादर’ कहते हैं। बांगर मृदा में कंकर ग्रन्थियों की मात्रा अधिक होती है।
    • खादर मृदा में बांगर मृदा की तुलना में अधिक बारीक कण पाये जाते हैं।
  6. जलोढ़ मृदा में पेड़-पौधों का सड़ा-गला अंश (ह्यूमस) बहुत अधिक मात्रा में मिलता है।
  7. अधिक उपजाऊ होने के कारण जलोढ़ मृदा वाले क्षेत्रों में गहन कृषि की जाती है तथा यहाँ जनसंख्या घनत्व भी अधिक मिलता है।
  8. सूखे क्षेत्रों की जलोढ़ मृदाएँ अधिक क्षारीय होती हैं। इन मृदाओं का सही उपचार एवं सिंचाई करके इनकी पैदावार में वृद्धि की जा सकती है।

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प्रश्न 14.
काली मृदा किन-किन क्षेत्रों में पायी जाती है? इसकी विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
काली मृदा का क्षेत्र-काली मृदा को ‘रेगर’ मृदा के नाम से भी जाना जाता है। काली मृदा कपास की खेती के लिए अधिक उपयुक्त समझी जाती है जिस कारण इसे काली कपास मृदा के नाम से भी जाना जाता है। इस प्रकार की मृदा दक्कन पठार (बेसाल्ट) क्षेत्र के उत्तरी-पश्चिमी भागों में पायी जाती है तथा लाल जनक शैलों से बनी है।

ये मृदाएँ महाराष्ट्र, सौराष्ट्र, मालवा, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ के पठार पर पायी जाती हैं तथा दक्षिण-पूर्वी दिशा में गोदावरी व कृष्णा नदियों की घाटियों तक फैली हुई हैं। काली मृदा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. काली मृदा का निर्माण अत्यन्त बारीक मृत्तिका से होता है।
  2. इस मृदा में नमी धारण करने की क्षमता बहुत अधिक होती है।
  3. इस मृदा में कैल्शियम कार्बोनेट, मैग्नीशियम, पोटाश एवं चूना प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं।
  4. इस मृदा में फॉस्फोरस की मात्रा कम होती है।
  5. गर्म व शुष्क मौसम में इस मृदा में दरारें पड़ जाती हैं, जिसके कारण इसमें वायु मिश्रित हो जाती है।
  6. गीली होने पर यह मृदा चिपचिपी हो जाती है।
  7. यह मृदा कपास की खेती के लिए बहुत उपयोगी है, इसलिए इसे काली कपासी मिट्टी भी कहा जाता है।
  8. इस मृदा का स्थानीय नाम रेगर (रेगड़) मृदा भी है।

प्रश्न 15.
मृदा क्षरण का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
अथवा
मृदा अपरदन क्या है? इसके प्रकार भी बताइए।
उत्तर:
मृदा-क्षरण (मृदा-अपरदन)-प्राकृतिक कारकों द्वारा मृदा का कटाव एवं अपरदन कारकों द्वारा उसका स्थानान्तरण मृदा-क्षरण या मृदा-अपरदन कहलाता है। सामान्यतः मृदा के बनने एवं अपरदन की क्रियाएँ साथ-साथ चलती रहती हैं तथा दोनों में संतुलन बना रहता है।

प्राकृतिक तथा मानवीय कारकों द्वारा यह सन्तुलन बिगड़ जाता है। मृदा क्षरण/मृदा-अपरदन के प्रकार-मृदा-अपरदन में भाग लेने वाले कारकों व स्थिति के आधार पर मृदा क्षरण/मृदा-अपरदन को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा जा सकता है
1. जलीय अपरदन:
जल के विभिन्न रूपों, जैसे-नदियों, झीलों, हिमनदी, झरनों आदि के द्वारा जब मिट्टी का क्षरण होता है तो उसे जलीय-अपरदन कहते हैं। इनमें नदियाँ मृदा अपरदन की प्रमुख कारक हैं। नदियाँ मृदा-अपरदन इन दो रूपों में करती हैं।
(i) चादर अपरदन:
इसे तलीय अथवा परत क्षरण भी कहते हैं। तीव्र गति से प्रवाहित जल द्वारा मिट्टी की ऊपरी परत को काटकर बहा ले जाया जाता है, इसे चादर अपरदन कहते हैं। कई बार जल विस्तृत क्षेत्र को ढके हुए ढाल के साथ नीचे की ओर बहता है। ऐसी स्थिति में इस क्षेत्र की ऊपरी परत घुलकर जल के साथ बह जाती है।

(ii) अवनलिका अपरदन:
जब जल बहुत अधिक तीव्र गति से बहता हुआ लम्बवत् अपरदन द्वारा मिट्टी को कुछ गहराई तक काटकर बहा ले जाता है और छोटी-छोटी अवनलिकाओं का निर्माण हो जाता है तो उसे अवनलिका अपरदन कहा जाता है। ऐसी भूमि कृषि योग्य नहीं रह जाती है और उसे उत्खात भूमि के नाम से जाना जाता है। चम्बल बेसिन क्षेत्र में ऐसी भूमि को खड्ड भूमि कहा जाता है।

2. पवन-अपरदन:
पवन मृदा अपरदन का दूसरा महत्वपूर्ण कारक है। पवन द्वारा अपरदन मुख्यतः मरुस्थलीय एवं शुष्क व अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में होता है। इन भागों में जब पवन तीव्र गति से चलती है तो वह एक स्थान की मिट्टी को उड़ाकर दूसरे स्थान तक पहुँचा देती है। इस प्रकार पवन द्वारा मैदान अथवा ढालू क्षेत्र से मृदा को उड़ा ले जाने की प्रक्रिया को पवन अपरदन कहा जाता है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में पायी जाने वाली मृदाओं के प्रमुख प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत जैसे विशाल देश में कई प्रकार की मृदाएँ पाई जाती हैं, जो निम्नलिखित हैं

देवबंद वाले किसी अनु का उदाहरण दें - devaband vaale kisee anu ka udaaharan den

1. जलोढ़ मदा:
भारत के विशाल उत्तरी मैदानों में नदियों द्वारा पर्वतीय प्रदेशों से बहाकर लायी गयी जीवाश्मों से युक्त उर्वर मिट्टी मिलती है जिसे काँप अथवा कछारी मिट्टी भी कहते हैं। यह मिट्टी हिमालय पर्वत से निकलने वाली तीन प्रमुख नदियों-सतलज, गंगा, ब्रह्मपुत्र तथा इनकी सहायक नदियों द्वारा बहाकर लाई एवं अवसाद के रूप में जमा की गई है। जलोढ़ मिट्टी पूर्व-तटीय मैदानों विशेषकर महानदी, गोदावरी, कृष्णा व कावेरी नदियों के डेल्टाई प्रदशों में भी मिलती है।

जिन क्षेत्रों में बाढ़ का जल नहीं पहुँच पाता है वहाँ पुरातन जलोढ़ मिट्टी पायी जाती है जिसे ‘बांगर’ कहा जाता है। वास्तव में यह मिट्टी भी नदियों द्वारा बहाकर लायी गयी प्राचीन काँप मिट्टी ही है। इसके साथ ही जिन क्षेत्रों में नदियों ने नवीन काँप मिट्टी का जमाव किया है, उसे नवीन जलोढ़ या ‘खादर’ के नाम से जाना जाता है। अधिक उपजाऊ होने के कारण जलोढ़ मृदा वाले क्षेत्रों में गहन कृषि की जाती है तथा यहाँ जनसंख्या का घनत्व भी अधिक मिलता है।

2. काली या रेगर मृदा:
इस मृदा को रेगर मृदा के नाम से भी जाना जाता है। इस मिट्टी का निर्माण ज्वालामुखी क्रिया द्वारा लावा के जमने एवं फिर उसके विखण्डन के फलस्वरूप हुआ है। इस मिट्टी में कपास की खोती अधिक होती है इसलिए इसे काली कपास मृदा भी कहा जाता है। इस मिट्टी में नमी को धारण करने की क्षमता अधिक होती है। इसमें लोहांश, कैल्शियम कार्बोनेट, मैग्नीशियम, पोटाश व चूना आदि तत्वों की मात्रा अधिक होती है। इस प्रकार की मृदा दक्कन पठारी क्षेत्र के उत्तरी-पश्चिमी भागों, महाराष्ट्र, सौराष्ट्र, मालवा, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के पठारी क्षेत्रों में पाई जाती है।

3. लाल व पीली मृदा:
इस प्रकार की मृदा का विस्तार ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्य गंगा मैदान के दक्षिणी छोर एवं पश्चिमी घाट की पहाड़ियों व दक्कन पठार के पूर्वी व दक्षिणी हिस्सों में पाया जाता है।
इन मृदाओं का लाल रंग रवेदार, आग्नेय एवं रूपान्तरित चट्टानों में लौह धातु के प्रसार के कारण तथा पीला रंग जलयोजन के कारण होता है।

4. लेटराइट मृदा:
इस प्रकार की मृदा उच्च तापमान एवं अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में विकसित होती है। इस मृदा में ह्यूमस की मात्रा कम पायी जाती है। भरत में इस मृदा का विस्तार महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट क्षेत्रों, ओडिशा, पश्चिम बंगाल के कुछ भागों, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, केरल एवं उत्तरी-पूर्वी राज्यों में मिलता है। इस मृदा में अधिक मात्रा में खाद व रासायनिक उर्वरक डालकर ही खेती की जा सकती है।

5. मरुस्थलीय मृदा:
इस मृदा का रंग लाल व भूरा होता है। यह मृदा रेतीली व लवणीय होती है। यह मृदा शुष्क जलवायविक दशाओं में पायी जाती है। शुष्क जलवायु और उच्च तापमान के कारण जल वाष्पन की दर अधिक होती है। इस मृदा में ह्यूमस व नमी की मात्रा कम होती है। राजस्थान व गुजरात राज्य में इस मृदा का विस्तार पाया जाता है। इस मृदा को सिंचित करके कृषि योग्य बनाया जा सकता है।

6. वन मदा:
इस प्रकार की मृदा का विस्तार पर्वतीय क्षेत्रों में मिलता है। नदी घाटियों में ये मदाएँ दोमट व सिल्टदार होती हैं परन्तु ऊपरी ढालों पर इनका गठन मोटे कणों द्वारा होता है। हिमाच्छादित क्षेत्रों में इस मृदा की प्रकृति अम्लीय होती है तथा इसमें ह्यूमस की मात्रा भी नहीं होती है। नदी-घाटियों के निचले भागों में विशेषकर नदी सोपानों एवं जलोढ़ परतों आदि में यह मृदा बहुत अधिक उपजाऊ होती है।

देवबंद वाले किसी अनु का उदाहरण दें - devaband vaale kisee anu ka udaaharan den

प्रश्न 2.
मृदा अपरदन के कारण एवं इसके संरक्षण के उपाय लिखिए।
उत्तर:
मृदा अपरदन के कारण-मृदा अपदरन के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

  1. कृषि के गलत तरीकों से मृदा अपरदन होता है। गलत ढंग से हल चलाने जैसे ढाल पर ऊपर से नीचे हल चलाने से वाहिकाएँ बन जाती हैं, जिसके अन्दर से बहता पानी आसानी से मृदा का कटाव करता है।
  2. शुष्क व बलुई क्षेत्रों में तीव्र हवा मृदा अपरदन का प्रमुख कारण है। खुली तथा ढीली बलुई मृदा की ऊपरी परत को पवन आसानी से उड़ा ले जाती है।
  3. पेड़ों की अविवेकपूर्ण तरीके से कटाई से मृदा भी शीघ्र अपरदित होना प्रारम्भ हो जाती है।
  4. वनोन्मूलन के कारण बार-बार बाढ़ें आती हैं जो मृदा को हानि पहुँचाती हैं।
  5. खनन एवं निर्माण कार्य भी मृदा को अपरदित करने में सहायता प्रदान करते हैं।

मृदा संरक्षण के उपाय:
मिट्टी एक आधारभूत प्राकृतिक संसाधन है। यह धरातल पर निवास करने वाले मानव व जीव-जन्तुओं के जीवन का आधार है। आज मिट्टी का अवशोषण विभिन्न तरीकों से हुआ है इसलिए बहुत-से क्षेत्रों में मिट्टियाँ नष्ट हो गयी हैं और कुछ नष्टप्राय हैं।

मिट्टी एक ऐसा संसाधन है जो नव्यकरणीय है, इसे बचाया जा सकता है। इसे सतत् उपयोग में लाया जा सकता है और इसमें गुण वृद्धि की जा सकती है। अतएव मृदा संरक्षण आवश्यक है। मृदा संरक्षण के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं
1. समोच्च रेखीय जुताई:
ढाल वाली कृषि भूमि पर समोच्च रेखाओं के समानांतर हल चलाने से ढाल के साथ जल बहाव की गति घटती है। इसे समोच्च रेखीय जुताई कहा जाता है। यह मृदा संरक्षण का प्रभावी उपाय है।

2. सोपानी कृषि:
इसे सीढ़ीदार कृषि भी कहते हैं। इस प्रकार की कृषि में पहाड़ी ढलानों को काटकर कई चौड़ी सीढ़ियाँ बना दी जाती हैं। ये सीढ़ियाँ मृदा अपरदन को रोकती हैं। पश्चिमी एवं मध्य हिमालय क्षेत्र में इस प्रकार की कृषि बहुत अधिक की जाती है।

3. पट्टी कृषि:
इस प्रकार की कृषि में बड़े-बड़े खेतों को पट्टियों में बाँट दिया जाता है। फसलों के बीच में घास की पट्टियाँ उगायी जाती हैं। ये पवनों द्वारा जनित बल को कमजोर करती हैं।

4. रक्षक मेखला:
पेड़ों को कतारों में लगाकर रक्षक मेखला बनाना भी पवनों की गति को कम करता है। इन रक्षक पट्टियों का पश्चिमी भारत में रेत के टीलों के स्थायीकरण में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इनके अतिरिक्त अनियन्त्रित पशुचारण व स्थानान्तरित कृषि पर प्रतिबन्ध, फसल-चक्र, पड़त-कृषि, बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों का प्रबन्धन, जल-प्रबन्धन, बहु फसली कृषि, नये वन क्षेत्रों का विकास एवं उजड़े वनों का पुनः रोपण, अवनलिका नियन्त्रण एवं प्रबन्धन द्वारा भी मृदा-संरक्षण किया जा सकता है।

तालिका सम्बन्धी प्रश्न

प्रश्न 1.
संसाधनों का वर्गीकरण एक तालिका के रूप में प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर:

देवबंद वाले किसी अनु का उदाहरण दें - devaband vaale kisee anu ka udaaharan den

JAC Class 10 Social Science Important Questions

JAC Board Class 10th Social Science Solutions Civics Chapter 8 Challenges to Democracy

Haryana State Board HBSE 10th Class Social Science Solutions Civics Chapter 8 Challenges to Democracy Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Social Science Solutions Civics Chapter 8 Challenges to Democracy

Cartoon based Question (Page 103)

Question 1.
Each of these cartoons represents a challenge to democracy. Please describe what that challenge is. Also place it in one of the three categories mentioned in the first section.
Answer:
1. Mubarak Re-elected: This represents the influence of the rich and powerful people in the election, the basic procedure of democracy.
Challenge – Foundational challenge.

2. Waiting for Democracy: This represents the existence of non-democratic regimes in the world. It tries to show that democracy does not come by the use of bullet.
Challenge- Foundational challenge.

3. Liberal Gender Equality: This represents that in principle we talk about gender equality, but in practice male dominance is observed in democracy.
Challenge – Challenge of expansion.

4. Campaign Money : This represents how money is used to influence decision¬making in a democracy by the rich and powerful people.
Challenge- Strengthening of democracy.

Table-based Questions (Pages 104, 105)

Question 2.
Complete the table given below:
Answer:

Case and context Your description of the challenged for democracy in that situation
Mexico : Second free election after the defeat of PRI in 2000; defeated candidate alleges rigging. Holding free and fair elections.
China: Communist party adopts economic reforms but maintains monopoly over political power.            Introduction of democratic values, Introduction of democratic values, decentralisation of power, democratisation of government bodies.
Pakistan : General Musharraf holds referendum, allegations of fraud in voter’s list. Holding free and fair elections.
Iraq :Widespread sectarian violence, as the new government fails to establish its authority. Negotiation between ethnic groups, holding multi-party free and fair elections.
South Africa: Mandela retires from active politics, pressure on his successor Mbeki to withdraw some concessions given to White minority. Negotiation between ethnic parties, negotiations between majority and minority groups.
US, Guantanamo Bay : UN Secretary General calls this a violation of international law, US refused to respond. Negotiations with the US, compensation for the victims.
Saudi Arabia: Women not allowed to take part in public activities, no freedom of religion for minorities. Creating awareness among the people about democratic values, creating awareness for equality of citizens.
Yugoslavia : Ethnic tension between Serbs and Albanians on the rise in the province of Kosovo. Yugoslavia disintergrated. Negotiations with ethnic groups, peace-keeping measures, holding gen I elections.
Belgium :             One round of constitutional change taken place, but the Dutch speakers not satisfied; they want more autonomy. Negotiations between linguistic groups, accommodation of genuine demands.
Sri Lanka : The civil war come to an end in 2009, the process of reconciliation between different communities begins. Developing trust building measures.
US, Civil Rights: Blacks have won equal rights but are still poor, less educated and marginalised. Making new policies and programmes for their welfare and their participation in the government.
Northern Ireland : The civil war has ended but Catholics and Protestants yet to develop trust. Developing trust building measures, holding free and fair elections.
Nepal : The monarchy was abolished : The constituent assembly adopted a new constitution. Holding free and fair elections.
Bolivia: Morales, a supporter of water struggle becomes Prime Minister, MNCs threaten to leave the country. Solving the problem of water supply, negotiations with the MNCs.

Question 3.
Now, that you have noted down all these challenges, let us group these together into some broad categories. Given below are some spheres or sites of democratic politics. You may place against each of these the specific challenges that you noted for one or more countries or cartoons in the previous section. In addition to that, write one item for India for each of these spheres. In case you find that some challenges do not fit into any of the categories given below, you can create new categories and put some items under them.
Answer:
Constitutional Design:

  • Creating awareness among the citizens for secularism.
  • Creating awareness among the citizens for gender equality.
  • Making new policies and programmes for their upliftment.
  • India-provision for uniform personal laws relating to family.

Democratic Rights:

  • Recalling all political leaders from exile.
  • Release of Ang san Suu Kyi.
  • Changing the form of government to a democracy.

Working of Institutions:

  • Establishing civilian control over all governmental institutions.
  • Formulating policies for running the government.
  • Handing over power from the army to the elected representativos.
  • India : control over police brutality.

Elections:

  • Holding the first multi-party elections.
  • Holding a general election involving all political parties.
  • Ensuring a free and fair multi-party election. .
  • Holding free and fair elections for setting up a Constituent Assembly to draft the Constitution.
  • India : increase scope of local institutions and state governments.

Federalism:
Setting up an effective administration in the country.

Decentralisation:

  • Decentralization of power to the provinces/regions.
  • India increases the scope of local institutions and state governments.

Accommodation of:
Holding negotiations between various ethnic groups.

Diversity:

  • Holding negotiations between majority and minority groups.
  • Negotiation8 between linguistic groups.
  • Allowing the genuine demands.
  • Negotiations between different groups and the government.
  • India : resolving disputes in reservation quotas for minorities.

Political Organisations:

  • Removing the ban on solidarity.
  • Putting pressure on the US in the UN by adopting a
  • resolution in the General Assembly.
  • Other nations individually pressuring the US outside the UN.
  • India:setting up the Lokpal.

Peace-keeping Measures:

  • Taking back martial law.
  • Implementing trust building measures.
  • Stopping the violence.
  • Maoists to surrender arms.
  • India: stopping violence in Maoist affected areas.

Negotiating Disputes:

  • Negoiations with the MNCs, who are threatening to leave.
  • India : negotiating various boundary disputes.

Question 4.
Let us group these again, this time by the nature of these challenges as per the classification suggested in the first section. For each of these categories, find at least one example from India as well. (Page 107)
Answer:
1. Foundational challenge – Case and context of the following:
Chile. Poland. Myanmar. China, Saudi Arabia, Nepal.
Example from India : The problem of North-Eastern states and Jammu & Kashmir,

2. Challenge of expansion – Case and context of the following:
Ghana, Mexico, Iraq, Yugoslavia, Ireland.
Example from India: Giving more power and resources to the local government.

3. Challenge of deepening – Case and context of the following:
US, Guantanamo Bay, Belgium, Pakistan
Example from India: Giving more power to the Election Commission.

Question 5.
Now let us think only about India. Think of all the challenges that democracy faces in contemporary India. List those five that should be addressed first of all. The listing should be in order of priority, i.e. the challenge you find most important or pressing should be mentioned at number 1. and so on. Give one example of that challenge and your reasons for assigning it the priority. (Page 107)
Answer:

challenges to democracy: Example: Reasons for preference:
1. Corruption Redtapism and bureaucracy Results in violation of established rules and regulations.
2. CasLeiiuì Caste-based reservati ons and social divisions. Social divisions only weaken democracy and strike a blow at unity.
3.  Communalism Occasional rifts and riots. A big threat to national integration and unity.
4. Inequalities and Poverty Religious divide between communities. Poverty is a threat to prosperity itself; inequalities perpetuate poverty.
5. Regionalism Income inequalities. Regional interests may come in conflict with national interest, creating social tension and differences.

Question 6.
Any other problem of your choice. (Page 109)
Answer:
Challenge: Generally, it has been observed that the teachers in colleges run their private tuitions. As and when their class is over, they leave the college and spend their time in earning money. Instead of teaching the students well in the class, they suggest them to join their coaching centres. This has led to a tendency among the students to bunk their classes. This has greatly affected the quality of education.

Reform Proposals :
Government should make it compulsory for the teachers to stay in the colleges, till these are closed for that day. The university officials should make surprise visits to check the teachers’ attendence, and if found absent during their classes, they should be heavily penalised. There should be provision of ‘Best Teacher Award’. The students will select one teacher from each subject, every year, from their colleges.

Question 7.
Here is your space for writing your own definition of good democracy.
(Write your name here) …………… ‘s definition of good democracy (not more than 50 words) (Page 112)
Answer:
A good democracy is one, in which, the rulers elected by the people take major decisions under the framework of the Constitution to fulfil the wishes of the people, but if they do not fulfil their expectations, people can call them back. Features (use only as many points as you want. Try to compress it in as few points as possible)

1. Democracy should reduce differences, giving full respect to each other.
2. People should have a right to call their representatives back before time, if they do not perform well.
3. Once found guilty, the candidate should be banned from contesting elections.
4. Democracy should take care of socio-economic matters equally.
5. Democracy should provide sufficient representation to the minority and disadvantaged classes.

JAC Class 10 Social Science Solutions

JAC Board Class 10th Social Science Important Questions History Chapter 5 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिय

वस्तुनिष्ठ

प्रश्न 1.
विश्व में सर्वप्रथम मुद्रण की तकनीक किस देश में विकसित हुई थी?
(क) भारत
(ख) चीन
(ग) जर्मनी
(घ) फ्रांस
उत्तर:
(ख) चीन

2. जापान की सबसे प्राचीन मद्रित पुस्तक थी
(क) डायमण्ड सूत्र
(ख) डायमण्ड पाकेट
(ग) यूनीवर्सल ट्रथ
(घ) ए होली प्लेस
उत्तर:
(क) डायमण्ड सूत्र

3. 18वीं सदी में यूरोप में जनसामान्य के बीच वैज्ञानिक विचारों के प्रसिद्ध होने का निम्नलिखित में से कौन-सा कारण नहीं है?
(क) आइजैक न्यूटन के मुद्रित विचार
(ख) छापेखाने का विकास
(ग) जनता की कार्य (विज्ञान) और कारण में रुचि
(घ) परंपरागत कुलीन वर्गों ने इसका पक्ष लिया
उत्तर:
(ग) जनता की कार्य (विज्ञान) और कारण में रुचि

4. इंग्लैण्ड में पेनी ‘चैपबुक्स’ या एकपैसिया किताबें बेचने वालों को क्या कहा जाता था?
(क) चैपमैन
(ख) सेल्समैन
(ग) बुक्समैन
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) चैपमैन

5. “हे निरकुंशवादी शासको, अब तुम्हारे काँपने का वक्त आ गया है। आभासी लेखक की कलम के जोर के आगे तुम हिल उठोगे!” यह किसका कथन था?
(क) लुई सेबेस्तिए मर्सिए का ।
(ख) जेम्स लॉकिंग्टन का
(ग) योहान गुटेनबर्ग का
(घ) मार्कोपोलो का
उत्तर:
(क) लुई सेबेस्तिए मर्सिए का ।

6. बंगाल गजट नामक साप्ताहिक पत्रिका का सम्पादन किसने किया?
(क) जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने
(ख) वारेन हेस्टिंग्स ने
(ग) विलियम बोल्ट्स ने
(घ) तुलसीदास ने
उत्तर:
(क) जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने

7. तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस का प्रथम मुद्रित संस्करण कहाँ से प्रकाशित हुआ?
(क) जयपुर
(ख) मुम्बई ।
(ग) मद्रास
(घ) कलकत्ता
उत्तर:
(घ) कलकत्ता

देवबंद वाले किसी अनु का उदाहरण दें - devaband vaale kisee anu ka udaaharan den

8. निम्नलिखित में से ‘पंजाब केसरी’ का प्रकाशन किसने किया?
(क) बाल गंगाधर तिलक
(ख) महात्मा गाँधी
(ग) भगतसिंह
(घ) महात्मा गाँधी
उत्तर:
(क) बाल गंगाधर तिलक

रिक्त स्थान पूर्ति सम्बन्धी प्रश्न
निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:
1. मुद्रण की सबसे पहली तकनीक …………, जापान और …………… में विकसित हुई।
उत्तर:
चीन, कोरिया,

2. जापान की सबसे पुरानी, 868 ई. में छपी पुस्तक ……….. है।
उत्तर:
डायमंड सूत्र,

3. ………. ने उकियो नामक नई चित्रशैली को जन्म दिया।
उत्तर:
कितागावा उतामारो,

4. गुटेनबर्ग ने ………. का आविष्कार किया।
उत्तर:
जैतून प्रेस,

5. जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने ………. में बंगाल गजट पत्रिका का संपादन प्रारंभ किया।
उत्तर:
सन् 1780 ई.।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
मुद्रण की सबसे पहली तकनीक किस देश में विकसित हुई?
उत्तर:
मुद्रण की सबसे पहली तकनीक चीन, जापान और कोरिया में विकसित हुई।

प्रश्न 2.
कैलिग्राफी क्या है ?
उत्तर:
हाथ से बड़े-बड़े सुन्दर व सुडौल अक्षरों में लिखने की कला को कैलिग्राफी (खुशनवीसी) कहते हैं।

प्रश्न 3.
एक लम्बे समय तक मुद्रित सामग्री का सबसे बड़ा उत्पादक देश कौन-सा था ?
उत्तर:
एक लम्बे समय तक मुद्रित सामग्री का सबसे बड़ा उत्पादक देश चीनी राजतन्त्र था।

प्रश्न 4.
चीन में प्रिन्ट संस्कृति का नया केन्द्र कौन-सा था ?
उत्तर:
चीन में प्रिन्ट संस्कृति का नया केन्द्र शंधाई था।

प्रश्न 5.
चीनी बौद्ध प्रचारक 768-770 ई. के आस-पास हाथ की छपाई की तकनीक लेकर ………… आए।
उत्तर:
चीनी बौद्ध प्रचारक आस-पास हाथ की छपाई की तकनीक लेकर जापान आए।

प्रश्न 6.
जापान की सबसे पुरानी पुस्तक ‘ डायमण्ड सूत्र ‘ किस वर्ष प्रकाशित हुई ?
उत्तर:
जापान की सबसे पुरानी पुस्तक ‘डायमण्ड सूत्र’ 868 ई. में प्रकाशित हुई।

देवबंद वाले किसी अनु का उदाहरण दें - devaband vaale kisee anu ka udaaharan den

प्रश्न 7.
एदो शहर को वर्तमान में किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर:
एदो शहर को वर्तमान में टोक्यो के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 8.
उकियो (तैरती दुनिया के चित्र) नामक चित्र शैली के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान किसने दिया ?
उत्तर:
कितागावा उतामारो ने उकियो (तैरती दुनिया के चित्र) नामक चित्र शैली के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

प्रश्न 9.
मार्कोपोलो कौन था ?
उत्तर:
मार्कोपोलो इटली का एक महान खोजी यात्री था। वह 1295 ई. में चीन से इटली में वुडब्लॉक वाली छपाई की तकनीक लेकर आया था।

प्रश्न 10.
वेलम या चर्मपत्र क्या है ?
उत्तर:
चर्म-पत्र या जानवरों के चमड़े से बनी लेखन की सतह वेलम कहलाती है।

प्रश्न 11.
गुटेनबर्ग ने 1448 ई. तक अपना छापने का यंत्र मुकम्मल कर लिया। उसने जो पहली किताब छापी वह थी……….।
अथवा
1448 ई. में योहान गुटेनबर्ग ने कौन-सी पहली पुस्तक छापी थी?
उत्तर:
बाईबिल।

प्रश्न 12.
मार्टिन लूथर कौन था?
अथवा
मार्टिन लूधर कौन था? उसने किन कुरीतियों की आलोचना की?
उत्तर:
मार्टिन लूथर जर्मनी का एक धर्म सुधारक था। उसने कैथोलिक चर्च की बुराइयों की आलोचना की तथा पिच्चानवे स्थापनाओं का लेखन किया। उसके छपे हुए लेखों के कारण धर्म सुधार आन्दोलन प्रारम्भ हुआ।

प्रश्न 13.
पिच्चानवे स्थापनाओं का लेखन किसने किया ?
उत्तर:
मार्टिन लूथर ने पिच्चानवे स्थापनाओं का लेखन किया।

देवबंद वाले किसी अनु का उदाहरण दें - devaband vaale kisee anu ka udaaharan den

प्रश्न 14.
यह किसने कहा था, “मुद्रण ईश्वर की दी हुई महानतम देन है, और सबसे बड़ा तोहफा है।”
उत्तर:
यह कथन मार्टिन लूथर का है।

प्रश्न 15.
इन्क्वीजीशन क्या है?
उत्तर:
विधर्मियों की पहचान करने और सजा देने वाली रोमन कैथोलिक संस्था को इन्क्वीजीशन कहा जाता था।

प्रश्न 16.
इंरस्मस कौन था?
उत्तर:
इंरस्मस लैटिन का एक विद्वान एवं कैथोलिक धर्म-सुधारक था।

प्रश्न 17.
सस्ते कागज पर छापी और नीली जिल्द में बँधी छोटी किताबों ‘बिब्लियोथीक ब्यू’ का चलन किस देश में था?
उत्तर:
फ्रांस में बिब्लियोधीक ब्ल्यू का चलन था।

प्रश्न 18.
“छापाखाना प्रगति का सबसे ताकतवर औजार है? इससे बन रही जनमत की आँधी में निरंकुशवाद उड़ जाएगा।” यह कथन किसने कहा था?
उत्तर:
फ्रांस के उपन्यासकार लुई सेबेस्तिए मर्सिए ने।

प्रश्न 19.
पेनी मैग्ज़ीन का प्रकाशन कहाँ व किसने किया?
उत्तर:
पेनी मैग्जीन का प्रकाशन इंग्लैण्ड में 1832 1850 ई. के मध्य सोसायटी फॉर द डिफ्यूजन ऑंफ यूजफुल नॉलेज ने किया।

प्रश्न 20.
पेनी मैग्ज़ीन का प्रकाशन मूलतः किस वर्ग के लिए किया गया?
उत्तर:
पेनी मैग्ज़ीन का प्रकाशन मूलतः मजदूर वर्ग के लिए किया गया।

प्रश्न 21.
राममोहन राय ने ‘संवाद कौमुदी’ का प्रकाशन कब किया? अखबारों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. जाम-ए-जहाँ नामा तथा
  2. शम्सुल अखबार।

प्रश्न 23.
बंगाली भाषा में प्रकाशित पहली सम्पूर्ण आत्मकहानी का नाम लिखिए।
उत्तर:
अमार जीबन’ बंगाली भाषा में 1876 ई. में प्रकाशित पहली सम्पूर्ण आत्मकहानी थी।

प्रश्न 24.
सन् 1926 ई़. में बंग महिला शिक्षा सम्मेलन को किस महिला शिक्षाविद् ने सम्बोधित किया?
उत्तर:
सन् 1926 ई. में बंग महिला शिक्षा सम्मेलन को बेगम रोकैया शेखावत ने सम्बोधित किया।

प्रश्न 25.
गुलामगिरी नामक पुस्तक की रचना कब व किसने की?
उत्तर:
गुलामगिरी नामक पुस्तक की रचना 1871 ई. में ज्योतिबा फुले ने की।

प्रश्न 26.
गुलामगिरी’ पुस्तक 1871 ज्योतिबा फुले ने क्यों लिखी थी?
उत्तर:
जाति प्रथा के अत्याचारों को सार्वजनिक करने के लिए ज्योतिबा फुले ने 1871 ई. में ‘गुलामगिर पुस्तक लिखी थी।

प्रश्न 27.
पेरियार के नाम से किसे जाना जाता है?
उत्तर:
मद्रास के प्रसिद्ध लेखक ई. वी. रामास्वामी नायकर को पेरियार के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 28.
बीसवीं सदी के उन दो लेखकों के नाम बताइए जिन्होंने जाति प्रथा के विरोध में अपना लेखन किया?
उत्तर:

  1. डॉ. भीमराव अम्बेडकर (महाराष्ट्र),
  2. रामास्वामी नायकर (मद्रास)।

प्रश्न 29.
वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट क्या था? इसे कब लागू किया गया?
अथवा
1878 में वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट क्यों लागू किया गया था?
उत्तर:
वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट को 1878 ई. में लागू किया गया। इसके तहत् ब्रिटिश सरकार को भारतीय भाषाओं में छपने वाले समाचार-पत्रों में छपे समाचारों और सम्पादकीय को सेंसर करने का अधिकार मिल गया।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA1)

प्रश्न 1.
चीन मुद्रित सामग्री का सबसे बड़ा उत्पादक देश क्यों था?
अथवा
चीनी राजतन्त्र किस प्रकार लम्बे समय तक मुद्रित सामग्री का सबसे बड़ा उत्पादक बना रहा? उदाहरणों सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सिविल सेवा परीक्षा से नियुक्त चीन के प्रशासनिक अधिकारियों की संख्या बहुत अधिक थी। इसलिए चीनी राजतन्त्र इन परीक्षाओं के लिए विशाल मात्रा में पुस्तकें छपवाता था। सोलहवीं शताब्दी में सिविल सेवा परीक्षा देने वालों की संख्या में वृद्धि हुई फलस्वरूप छपी हुई पुस्तकों की संख्या भी उसी अनुपात में बढ़ गई। इसलिए चीन एक लम्बे समय तक मुद्रित सामग्री का सबसे बड़ा उत्पादक देश था।

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प्रश्न 2.
कितागावा उतामारो कौन था? उसका क्या योगदान है? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
कितागावा उतामारो एक चित्रकार था। उसका जन्म 1753 ई. में एदो (वर्तमान में टोक्यो) में हुआ था। उतामारो ने ‘उकियो (तैरती दुनिया के चित्र) नाम की एक नयी चित्रकला शैली में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसमें आम शहरी का चित्रण किया गया। इनकी छपी प्रतियाँ यूरोप और अमेरिका पहुँचीं। इस चित्र शैली ने माने, मोने व वान गाँग जैसे चित्रकारों को प्रभावित किया।

प्रश्न 3.
हस्तलिखित पांडुलिपियों की क्या कमियाँ थीं?
अथवा
यूरोप में वुडब्लॉक प्रिन्टिंग क्यों लोकप्रिय हुई?
अथवा
यूरोप में 14वीं सदी के दौरान पांडुलिपियाँ, किताबों की बढ़ती माँग को पूरा क्यों नहीं कर सकीं?
उत्तर:

  1. हस्तलिखित पांडुलिपियों से बढ़ती हुई पुस्तकों की मांग पूरी नहीं हो सकती थी।
  2. हस्तलिखित पाण्डुलिपियों की नकल उतारना बहुत खर्चीला, श्रमसाध्य एवं समय साध्य व्यवसाय था।
  3. पांडुलिपियाँ प्रायः नाजुक होती थीं तथा उनके लाने ले जाने, रखरखाव में बहुत अधिक कठिनाइयाँ थीं इसलिए उनका चलन सीमित रहा। उपयुक्त समीकरणों के अलावा पुस्तकों की बढ़ती हुई माँग के कारण वुडब्लॉक प्रिन्टिग (तख्ती की छपाई) लोकप्रिय होती गयी।

प्रश्न 4.
छापेखाने के आविष्कार ने पढ़ने की संस्कृति को किस प्रकार प्रभावित किया?
अथवा
“छापेखाने के आविष्कार से एक नया पाठक वर्ग पैदा हुआ।” कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
छापेखाने के आविष्कार ने पढ़ने की संस्कृति को निम्न प्रकार से प्रभावित किया:

  1. इसने किताब निर्माण की लागत को कम कर दिया तथा पर्याप्त मात्रा में किताबें छपने लगी।
  2. इसने पढ़ने की एक नयी संस्कृति को जन्म दिया। पूर्व में लोग सुनने वाले थे अब पढ़ने वाले हो गये।
  3. जो लोग पढ़ नहीं सकते थे उनके लिए प्रकाशकों ने लोकप्रिय गीत, लोकगीत, लोककथाएँ एवं चित्रात्मक किताबें छापना प्रारम्भ कर दिया। इन सब चीजों ने एक नये पाठक वर्ग को जन्म दिया।

प्रश्न 5.
“मुद्रण के कारण वैज्ञानिक व दार्शनिक भी आम जनता की पहुँच से बाहर नहीं रहे।” कथन को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
मुद्रण ने वैज्ञानिकों एवं दार्शनिकों के विचारों से जनता को किस प्रकार अवगत कराया ?
उत्तर:

  1. वैज्ञानिक तथा दार्शनिक भी अब आम जनता की पहुँच से बाहर नहीं रहे,
  2. प्राचीन तथा मध्यकालीन ग्रन्थ एकत्रित किये गये तथा नक्शों के साथ-साथ वैज्ञानिक खाके भी बड़ी मात्रा में छापे गये,
  3. जब आइजैक न्यूटन जैसे वैज्ञानिक अपने आविष्कारों को प्रकाशित करने लगे तो उनके लिए विज्ञान बोध में पगा एक बड़ा पाठक वर्ग तैयार हो चुका था।

प्रश्न 6.
मुद्रण संस्कृति ने किस प्रकार फ्रांसीसी क्रान्ति के लिए परिस्थितियाँ उत्पन्न की?
उत्तर:
मुद्रण संस्कृति ने निम्न प्रकार से फ्रांसीसी क्रान्ति के लिए परिस्थितियाँ उत्पन्न की

  1. मुद्रण संस्कृति के कारण ज्ञानोदय के चिन्तकों के विचारों का बड़े पैमाने पर प्रचार-प्रसार हुआ।
  2. मुद्रण संस्कृति ने वाद-विवाद की नयी संस्कृति को जन्म दिया।
  3. इसने राजशाही तथा उसकी नैतिकता की भरपूर आलोचना की।

प्रश्न 7.
सत्रहवीं व अठारहवीं शताब्दी में यूरोप में लोगों में पढ़ने का जुनून कैसे पैदा हो गया?
उत्तर:
निम्नलिखित कारणों से सत्रहवीं व अठारहवीं शताब्दी में यूरोप के लोगों में पढ़ने का जुनून पैदा हो गया

  1. सत्रहवीं व अठारहवीं शताब्दी में चर्च ने बहुत बड़ी संख्या में गाँवों में विद्यालयों की स्थापना की ताकि किसानों व कारीगरों को शिक्षित किया जा सके।
  2. यूरोप के कई भागों में साक्षरता दर 60 से 80 प्रतिशत तक पहुँच गयी थी।
  3. मुद्रकों ने अधिक संख्या में सस्ती पुस्तकें छापना प्रारम्भ कर दिया।
  4. पुस्तक विक्रेताओं ने गाँव-गाँव जाकर छोटी-छोटी पुस्तकें बेचने वाले फेरी वालों को भी नियुक्त किया।

प्रश्न 8.
यूरोप ज्ञानोदय के चिन्तकों द्वारा मुद्रण के माध्यम से कौन-से विचारों को लोकप्रिय बनाया गया? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
ज्ञानोदय के चिन्तकों द्वारा मुद्रण के माध्यम से निम्नलिखित विचारों को लोकप्रिय बनाया गया

  1. ज्ञानोदय चिन्तकों ने अपने लेखन के माध्यम से परम्परा, अन्धविश्वास एवं निरंकुशवाद पर आलोचनात्मक टिप्पणियाँ प्रकाशित की।
  2. इन विचारकों ने स्थापित रीति-रिवाजों के स्थान पर विवेक के शासन पर जोर दिया।
  3. उन्होंने लोगों से माँग की कि प्रत्येक वस्तु को तर्क व विवेक की कसौटी पर ही परखा जाए।
  4. इन चिन्तकों ने चर्च की तथाकथित पवित्र धार्मिक सत्ता एवं राज्य की निरंकुश सत्ता पर प्रहार करके परम्परा पर आधारित सामाजिक व्यवस्था को कमजोर कर दिया।

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प्रश्न 9.
यूरोप में मुद्रण संस्कृति ने किस प्रकार वाद-विवाद एवं संवाद की नयी संस्कृति को जन्म दिया?
उत्तर:
मुद्रण संस्कृति ने निम्नलिखित प्रकार से वाद-विवाद एवं संवाद की नयी संस्कृति को जन्म दिया

  1. छपाई ने वाद-विवाद संवाद की नयी संस्कृति को जन्म दिया, इससे समस्त पुराने मूल्य, संस्थाओं एवं नियमों पर आम जनता के बीच चर्चा शुरू हो गयी तथा उनके पुनर्मूल्यांकन का सिलसिला प्रारम्भ हो गया।
  2. मुद्रण संस्कृति के माध्यम से सामाजिक क्रान्ति के नये विचारों ने जन्म लिया।

प्रश्न 10.
उलेमा कौन थे? वे चिन्तित क्यों थे?
उत्तर:
इस्लामी कानून एवं शरीयत के विद्वान उलेमा कहलाते थे। उत्तर भारत में उलेमा मुस्लिम राजवंशों के पतन को लेकर चिन्तित थे। उन्हें डर था कि कहीं ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन धर्मान्तरण को बढ़ावा न दे अथवा मुस्लिम कानून न बदल डाले। इससे निबटने के लिए उन्होंने सस्ते लिथोग्राफी प्रेस का उपयोग करते हुए धर्म ग्रन्थों के फारसी या उर्दू अनुवाद छापे तथा धार्मिक समाचार-पत्र व गुटके प्रकाशित किए।

प्रश्न 11.
रशसुन्दरी देवी के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
रशसुन्दरी देवी पूर्वी बंगाल की निवासी थीं जिनका विवाह उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भ में कट्टर रूढ़िवादी परिवार में हुआ था। इन्होंने रसोई में छिप-छिपकर पढ़ना सीखा। इन्होंने ‘आमार जीबन’ नामक आत्मकथा लिखी जो 1876 ई. में प्रकाशित हुई। यह बंगाली भाषा में प्रकाशित प्रथम सम्पूर्ण आत्मकहानी थी। रशसुन्दरी देवी द्वारा लिखित अपनी आत्मकथा ‘आमार जीबन’ के प्रति लोगों में बहुत कौतूहल था। 1876 ई. में प्रकाशित हुई इस आत्मकथा को पाठकों द्वारा बहुत अधिक पसन्द किया गया।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA)

प्रश्न 1.
“17वीं सदी तक आते-आते चीन में शहरी संस्कृति के फलने-फूलने से छपाई के प्रयोग में भी विविधता आई।” कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
17वीं सदी तक आते-आते चीन में शहरी संस्कृति के फलने-फूलने से मुद्रित सामग्री का प्रयोग करने वाले केवल विद्वान एवं अधिकारी ही नहीं रहे बल्कि व्यापारी भी अपने दैनिक कारोबार की जानकारी देने के लिए मुद्रित सामग्री का प्रयोग करने लगे। अब पढ़ना भी एक शौक बन गया। नये पाठक वर्ग को काल्पनिक किस्से, कविताएँ, आत्मकथाएँ, शास्त्रीय साहित्यिक रचनाओं के संकलन एवं रूमानी नाटक पसन्द थे। धनिक वर्ग की महिलाओं ने पढ़ना प्रारम्भ कर दिया।

कुछ महिलाओं ने अपने द्वारा रचित काव्य एवं नाटक भी प्रकाशित करवाये। पढ़ने की यह नई संस्कृति एक नवीन तकनीक के साथ आई। 19वीं सदी के अन्त में पश्चिमी शक्तियों द्वारा अपनी चौकियाँ स्थापित करने के साथ ही पश्चिमी मुद्रण तकनीक एवं मशीनी प्रेस का आयात भी हुआ। पश्चिमी शैली के विद्यालयों की आवश्यकताओं को पूरा करने वाला शंघाई प्रिन्ट संस्कृति का एक नया केन्द्र बन गया। हाथ की छपाई का स्थान अब धीरे-धीरे मशीनी या यान्त्रिक छपाई ने ले लिया।

प्रश्न 2.
जापान में मुद्रण के विकास को संक्षेप में बताइए।
अथवा
जापान में हाथ से छपाई की तकनीक कैसे प्रारंभ हुई?
उत्तर:
जापान में मुद्रण के विकास को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है

  1. चीनी बौद्ध प्रचारक 768-770 ई. के आस-पास छपाई की तकनीक लेकर जापान आए।
  2. 868 ई. में जापान की सबसे प्राचीन पुस्तक ‘डायमण्ड सूत्र’ का प्रकाशन हुआ जिसमें पाठ के साथ-साथ काठ पर खुदे चित्र थे।
  3. जापान में तस्वीरें सामान्यतया वस्त्रों, ताश के पत्तों एवं कागज के नोटों पर बनाई जाती थीं।
  4. मध्यकालीन जापान में कवि एवं गद्यकारों की तस्वीरें भी छपती थीं। इस समय पुस्तकें सस्ती व सर्वसुलभ थीं।
  5. अठारहवीं शताब्दी के अन्त में एदो (वर्तमान टोक्यो) के शहरी क्षेत्रों की चित्रकारी में शालीन शहरी संस्कृति का पता चलता है जिसमें चायघर के मजमों, कलाकारों एवं तवायफों को देख सकते हैं।
  6. हाथ से मुद्रित तरह-तरह की सामग्री-महिलाओं, संगीत के साजों, हिसाब-किताब, चाय अनुष्ठान, शिष्टाचार, फूलसाजी व रसोई पर लिखी किताबों से पुस्तकालय एवं दुकानें भरी हुई थीं।

प्रश्न 3.
उन्नीसवीं सदी में यूरोप में बच्चों और महिलाओं के रूप में किस तरह नये पाठक वर्ग में तेजी से वृद्धि हुई ? संक्षेप में बताइए।
अथवा
19वीं सदी में यूरोप में किस तरह नये पाठक वर्ग का निर्माण हुआ?
उत्तर:

  1. उन्नीसवीं सदी के अन्त में यूरोप में प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बना दिया गया। बहुत बड़ी संख्या में बच्चों की पुस्तकों का प्रकाशन आरम्भ हुआ। अत: बच्चे भी एक नये एवं बड़े पाठक वर्ग के रूप में उभरकर सामने आये।
  2. उन्नीसवीं सदी में ही पेनी मैगजीन्स या एक पैसिया पत्रिकाओं का प्रकाशन आरम्भ हुआ। ये पत्रिकाएँ महिलाओं में बहुत अधिक लोकप्रिय हुईं। उपन्यासों व घर-गृहस्थी सिखाने वाली निर्देशिकाओं ने भी महिलाओं में लोकप्रियता पायी। महिलाएँ इन साहित्यों के एक बड़े पाठक वर्ग के रूप में उभरकर सामने आयीं।
  3.  17वीं सदी में जो किराये पर पुस्तकें देने वाले पुस्तकालय स्थापित हुए थे उनका 19वीं सदी में उपयोग बढ़ा। इनका उपयोग सफेद कॉलर मजदूरों, दस्तकारों एवं निम्नवर्गीय लोगों को शिक्षित करने में किया गया। ये पुस्तकालय इन वर्गों में बहुत अधिक लोकप्रिय हो गये।

प्रश्न 4.
यूरोप में मुद्रण ने राजशाही और उसकी नैतिकता का मज़ाक किस प्रकार उड़ाया?
अथवा
यूरोप में मुद्रण ने राजशाही के विरुद्ध विद्रोह की भावना विकसित करने में किस प्रकार अपनी भूमिका का निर्वाह किया ? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
यूरोप में मुद्रण ने राजशाही के विरुद्ध विद्रोह की भावना विकसित करने में निम्न प्रकार से अपनी भूमिका का निर्वाह किया

  1. मुद्रण ने ऐसे साहित्यों की बाजार में भरमार कर दी थी जिसमें राजशाही और उसकी नैतिकता की कठोर आलोचना की गई थी। इसमें पारम्परिक सामाजिक व्यवस्था पर भी प्रश्न उठाए गए थे।
  2. यूरोप में मुद्रण ने राजशाही और उसकी नैतिकता का भरपूर मज़ाक उड़ाया तथा अनेक कार्टूनों व व्यंग्य चित्रों को छापा।
  3. तत्कालीन समय के कार्टून तथा व्यंग्य चित्रों में यह जनसन्देश छिपा हुआ था कि राजशाही विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत कर रही है। वहीं दूसरी ओर आम जनता घोर कठिनाइयों में फंसी हुई है।
  4. राजशाही के विरुद्ध सन्देशों से भरे हुए इन साहित्यों को गोपनीय तरीकों से लोगों तक पहुँचाया गया। इससे आम जनता अवगत हुई और उनमें राजशाही के विरुद्ध विद्रोह की भावना विकसित हुई।

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प्रश्न 5.
उन्नीसवीं सदी में यूरोप में मुद्रण संस्कृति में कौन-कौन से नये तकनीकी परिष्कार हुए?
अथवा
अठारहवीं शताब्दी के पश्चात् यूरोप में मुद्रण में नये विकासों को संक्षेप में बताइए।।
उत्तर:

  1. अठारहवीं शताब्दी के अन्त तक प्रेस में धातुओं का प्रयोग होने लगा था।
  2. सम्पूर्ण उन्नीसवीं शताब्दी में छापेखाने की तकनीक में निरन्तर सुधार होते रहे।
  3. न्यूयॉर्क के रिचर्ड एम. हो द्वारा शक्तिचालित बेलनाकार प्रेस का आविष्कार किया गया जिससे प्रति घण्टे 8000 प्रतियाँ छप सकती थी। इसका प्रयोग यूरोप में होने लगा। (iv) 19वीं सदी के अन्त में ऑफसेट प्रेस का विकास हुआ जिससे एक साथ 6 रंग की छपाई का काम बड़ी तेजी से होने लगा।
  4.  कुछ नयी चीजों का विकास हुआ जिनमें कागज डालने की विधि में सुधार, प्लेट की गुणवत्ता में सुधार, स्वचालित पेपर रील एवं रंगों के लिए फोटो विद्युतीय नियन्त्रण का प्रयोग आदि सम्मिलित थे।

प्रश्न 6.
भारत में मुद्रण युग से पहले पांडुलिपियों को तैयार करने की क्या परम्परा थी? उनको किस प्रकार रखा जाता था? संक्षेप में बताइए।
अथवा
भारत में मुद्रण युग से पहले की पांडुलिपियाँ।
अथवा
मुद्रण युग से पहले भारत में सूचना और विचार कैसे लिखे जाते थे? भारत में मुद्रण तकनीक का चलन किस प्रकार प्रारम्भ हुआ?
उत्तर:
भारत में मुद्रण युग से पहले पांडुलिपियों को तैयार करने की परम्परा एवं उनको रखने की प्रक्रिया को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है

  1. भारत में मुद्रण के आगमन से पहले संस्कृत, अरबी, फारसी एवं विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में हस्तलिखित पांडुलिपियाँ तैयार करने की पुरानी और समृद्ध परम्परा थी।
  2. पांडुलिपियाँ ताड़ के पत्तों अथवा हाथ से बने कागज पर नकल करके बनाई जाती थीं। कभी-कभी पांडुलिपियों के पन्नों में सुन्दर चित्र भी बनाये जाते थे।
  3. पांडुलिपियों के पन्नों को संरक्षित करने एवं उन्हें किताब जैसा आकार देने के लिए या तो लकड़ी की तख्तियों के मध्य रख दिया जाता था या फिर उन्हें सिलकर बाँध दिया जाता था।
  4. पांडुलिपियाँ बहुत ही नाजुक व महँगी होती थीं। अतः उन्हें सावधानी से पकड़ना होता था।
  5.  पांडुलिपियों के अलग-अलग तरीके से लिखे जाने के कारण पांडुलिपियों को पढ़ना भी आसान नहीं होता था। इसीलिए इनका व्यापक दैनिक उपयोग नहीं होता था।

प्रश्न 7.
19वीं शताब्दी के भारत में मुद्रण संस्कृति ने महिलाओं को किस प्रकार प्रभावित किया? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
19वीं शताब्दी के भारत में मुद्रण संस्कृति का महिलाओं के जीवन पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:
19वीं शताब्दी के भारत में मुद्रण संस्कृति ने महिलाओं को निम्नलिखित प्रकार से प्रभावित किया

  1. महिलाओं के जीवन में परिवर्तन आया। महिलाओं की जिन्दगी और उनकी भावनाओं पर गम्भीरता से पुस्तकें लिखी गयीं।
  2. मध्यम वर्ग की महिलाएं पहले की तुलना में पढ़ने में अधिक रुचि लेने लगी।
  3. 19वीं सदी के मध्य में जब बड़े-बड़े शहरों में विद्यालय खुलने लगे तो उदारवादी पिता और पति महिलाओं को पढ़ने के लिए विद्यालयों में भेजने लगे।
  4. कई पत्रिकाओं ने लेखिकाओं को स्थान देना प्रारम्भ कर दिया। महिला लेखिकाओं ने महिला शिक्षा की जरूरत पर अनेक लेख लिखे।
  5. कुछ महिला लेखिकाओं जैसे कैलाशवासिनी देवी, रशसुन्दरी देवी, ताराबाई शिंदे एवं पण्डिता रमाबाई ने महिलाओं के दयनीय जीवन के बारे में विस्तार से लिखा। उन्होंने आत्मकथा तथा उपन्यास लिखे, जिनमें महिलाओं की समस्याओं पर चर्चा की।
  6. आरम्भिक बीसवीं शताब्दी में महिलाओं द्वारा सम्पादित कुछ ऐसी पत्रिकाएँ भी र्थी जिनमें विभिन्न मुद्दों; जैसे-महिला शिक्षा, विधवा जीवन, विधवा पुनर्विवाह एवं राष्ट्रीय आन्दोलन आदि पर लिखा गया।

प्रश्न 8.
जानी-पानी लेखिका बेगम रोकैया शेखावत हुसैन ने धर्म के नाम पर महिलाओं को पढ़ने से रोकने पर क्या प्रतिक्रिया व्यक्त की?
उत्तर:
बेगम रोकैया शेखावत हुसैन एक विख्यात शिक्षाविद् एवं लेखिका थीं। उन्होंने मुस्लिम समाज में व्याप्त रूढ़ियों का खुलकर विरोध किया। उन्होंने ऐसे दकियानूसी मुसलमानों की आलोचना की जिनको लगता था कि उर्दू के रूमानी अफसाने पढ़कर मुस्लिम महिलाएँ बिगड़ जायेंगी। उन्होंने 1926 ई. में बंग महिला शिक्षा सम्मेलन को सम्बोधित किया। इस सम्मेलन में उन्होंने धर्म के नाम पर महिलाओं को पढ़ने से रोकने के लिए पुरुषों की आलोचना की।

उन्होंने कहा कि पुरुषों का यह कहना पूर्णरूपेण गलत है कि शिक्षित महिलाएँ उदंड हो जायेंगी। उन्होंने ऐसे लोगों की आलोचना की जो अपने को मुसलमान बताते हैं तथा इस्लाम द्वारा महिलाओं को बराबरी का हक देने के बुनियादी नियम के विरुद्ध भी जाते हैं। यदि मुसलमान पुरुष पढ़-लिखकर नहीं भटकते तो महिलाएँ कैसे भटक जाएँगी। इस तरह उन्होंने महिलाओं को शिक्षित किये जाने की वकालत की।

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प्रश्न 9.
“उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में विभिन्न छपी हुई पुस्तिकाओं एवं निबन्धों में जातिगत भेदभाव का मुद्दा उछलने लगा था।” उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
अथवा
“भारत में 19वीं सदी के अन्त में जाति भेद के बारे में तरह-तरह की मुद्रित पुस्तिकाओं और निबन्धों में लिखा जाने लगा था।” इस कथन की पुष्टि दो उपयुक्त उदाहरणों द्वारा दीजिए।
उत्तर:
उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में विभिन्न छपी हुई पुस्तिकाओं एवं निबन्धों में जातिगत भेदभाव का मुद्दा उछलने लगा था। यह निम्न उदाहरणों द्वारा स्पष्ट है
1. निम्न जातीय आन्दोलनों के मराठी प्रणेता समाज सुधारक ज्योतिबा फुले ने अपनी पुस्तक गुलामगिरी (1871 ई.) में अन्यायपूर्ण जाति-व्यवस्था के बारे में लिखा।

2. बीसवीं शताब्दी में महाराष्ट्र के डॉ. भीमराव अम्बेडकर एवं मद्रास के ई. वी. रामास्वामी नायकर जो पेरियार के नाम से प्रसिद्ध थे, जैसे लोगों ने जाति-व्यवस्था के विषय में विस्तार से लिखा। इन लेखकों द्वारा लिखे गये विचार समस्त भारत में पढ़े जाते थे। स्थानीय विरोध आन्दोलनों एवं सम्प्रदायों ने भी कई प्रकार की लोकप्रिय पत्रिकाएँ एवं पुस्तिकाएँ प्रकाशित की जिनमें प्राचीन धर्मग्रन्थों की आलोचना करते हुए नये और न्यायपूर्ण समाज का भविष्य रचने की वकालत की गई थी।

प्रश्न 10.
प्रेस पर ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबन्ध का राष्ट्रवादी गतिविधियों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
1878 ई. में लागू वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट के माध्यम से प्रेस पर ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबन्ध का राष्ट्रवादी गतिविधियों पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा

  1. ब्रिटिश शासन द्वारा लगातार नियन्त्रण रखने एवं दमनकारी कार्यवाही करने के बावजूद देश के सभी भागों में देसी सनापार-पत्रों की संख्या में तेजी से वृद्धि होती चली गयी।
  2. राष्ट्रवादी समाचार-पत्रों ने औपनिवेशिक कुशासन की रिपोर्टिंग एवं राष्ट्रवादी भावनाओं का प्रसार करना जारी रखा। इन समाचार-पत्रों ने स्वदेशी आन्दोलन का समर्थन किया।
  3. ब्रिटिश सरकार द्वारा राष्ट्रवादी गतिविधियों पर नियन्त्रण की सभी कोशिशों का उग्र विरोध हुआ।
  4. जब बाल गंगाधर तिलक ने अपने अखबार ‘केसरी’ में ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीति का विरोध करने के साथ-साथ इस सरकार द्वारा पंजाब के क्रान्तिकारियों को कालापानी की सजा दिये जाने का विरोध किया तो 1908 ई. में उन्हें जेल में बन्द कर दिया गया। इसका सम्पूर्ण देश में व्यापक विरोध हुआ।
  5. प्रेस पर ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाये गये प्रतिबन्ध एवं राष्ट्रीय नेताओं की गिरफ्तारी की आम भारतीय जनता में खुलकर प्रतिक्रिया हुई। देशभर में विरोध प्रदर्शनों का आयोजन हुआ।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
चीन में मुद्रण के इतिहास को विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
चीन में मुद्रण के इतिहास को निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है

  1. मुद्रण की सबसे पहली तकनीक चीन, जापान व कोरिया देश में विकसित हुई। यह छपाई हाथ से होती थी।
  2. लगभग 594 ई. से चीन में स्याही लगे काठ के ब्लॉक या तख्ती पर कागज को रगड़कर पुस्तकें छापा जाना प्रारम्भ किया गया।
  3. चूँकि पतले, छिद्रित कागज के दोनों ओर छपाई संभव नहीं थी इसलिए पारम्परिक चीनी पुस्तकें एकॉर्डियन शैली में किनारों को मोड़ने के पश्चात् सिलकर बनायी जाती थीं। (iv) चीन में पुस्तकों को सुलेखन करने वाले लोग दक्ष सुलेखक या खुशनवीसी होते थे जो हाथ से बड़े बड़े सुन्दर सुडौल अक्षरों में सही-सही कलात्मक लिखाई करते थे।
  4. एक लम्बे समय तक मुद्रित सामग्री का सबसे बड़ा उत्पादक चीनी राजतंत्र रहा था। सिविल सेवा परीक्षा में नियुक्त चीन की नौकरशाही भी विशाल थी। चीनी राजतंत्र इन परीक्षाओं के लिए बड़ी संख्या में पुस्तकें छपवाता था।
  5. 16वीं शताब्दी में सिविल सेवा परीक्षा देने वाले लोगों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई। अतः पुस्तकें भी उसी अनुपात में अधिक संख्या में छापी गयीं।
  6. 17वीं शताब्दी तक आते-आते चीन में नगरीय संस्कृति के विस्तार से छपाई के उपयोग में भी विविधता आयी! अब मुद्रित सामग्री के उपभोक्ता केवल विद्वान एवं अधिकारी ही नहीं थे बल्कि व्यापारी भी अपने कारोबार की दैनिक जानकारी लेने के लिए मुद्रित सामग्री का प्रयोग करने लगे।
  7.  चीन में पढ़ना एक शौक बन गया था। नए पाठक वर्ग को काल्पनिक किस्से, कविताएँ, शास्त्रीय, साहित्यिक कृतियों के संकल्प एवं रूमानी नाटक पसंद थे।
  8. धनिक वर्ग की महिलाओं ने पढ़ना प्रारम्भ कर दिया। कुछ महिलाओं ने स्वरचित काव्य और नाटक भी छापे।
  9. चीन में पढ़ने की एक नई संस्कृति, एक नई तकनीक के साथ आई। 19वीं सदी के अन्त में पश्चिम शक्तियों द्वारा अपनी चौकियाँ स्थापित करने के साथ ही पश्चिमी मुद्रण तकनीक और मशीन प्रेस का भी आयात हुआ।
  10. पश्चिमी शैली के विद्यालयों की जरूरतों को पूरा करने वाला शंघाई प्रिंट संस्कृति का नया केन्द्र बन गया। हाथ की छपाई के स्थान पर अब धीरे-धीरे मशीनी या यांत्रिक छपाई का विकास होना प्रारम्भ हो गया।
  11. चीनी बौद्ध प्रचारकों ने इस छपाई की तकनीक को जापान सहित अन्य देशों में फैलाया।

प्रश्न 2.
यूरोप में मुद्रण संस्कृति का कैसे विकास हुआ? विस्तारपूर्वक समझाइए। उत्तर-यूरोप में मुद्रण संस्कृति के विस्तार को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
1. चीन से कागज़ का आगमन:
वर्षों से चीन से रेशम और मसाले, रेशम मार्ग से यूरोप को भेजे जाते थे। 11वीं सदी में चीनी कागज रेशम मार्ग से यूरोप पहुँचा।

2. यात्रियों तथा खोजकर्ताओं की भूमिका:
1295 ई. में मार्कोपोलो नामक महान खोजी यात्री चीन में कई वर्षों तक खोज करने के पश्चात् चीन से वुडब्लॉक (काठ की तख्ती) वाली छपाई की तकनीक को साथ लेकर इटली लौटा। अब इटली के लोग भी तख्ती की छपाई से पुस्तकें छापने लगे। छपाई की यह तकनीक यूरोप के अन्य भागों में भी प्रचलित हो गयी।

3. वुडब्लॉक प्रिंटिंग (तख्ती की छपाही):
पुस्तकों की माँग बढ़ने के साथ-साथ समस्त यूरोप के पुस्तक विक्रेता विभिन्न देशों में इनका निर्यात करने लगे। जगह-जगह पुस्तक मेलों का आयोजन होने लगा, लेकिन पुस्तकों की बढ़ती हुईं माँग की पूर्ति होना हस्तलिखित पांडुलिपियों से सम्भव नहीं था। इनके लाने-ले-जाने व रखरखाव में अनेक मुश्किलें थीं। अत: वुडब्लॉक प्रिंटिंग लोकप्रिय होने लगी। पन्द्रहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में यूरोप में कपड़ा छापने, ताश के पत्ते छापने एवं संक्षिप्त टिप्पणियों के साथ धार्मिक चित्र छापने के लिए वुडब्लॉक मुद्रण का व्यापक रूप से प्रयोग होने लगा।

4. योहान गुटेनबर्ग एवं प्रिंटिंग प्रेस:
यूरोप में अधिक मात्रा में पुस्तकें छापने के लिए इससे भी तेज और सस्ती मुद्रण तकनीक की आवश्यकता थी। ऐसी छपाई करना एक नई तकनीक के आविष्कार से ही सम्भव था। स्ट्रॉसबर्ग के योहान गुटेनबर्ग ने 1448 ई. में अपने ज्ञान और अनुभव का प्रयोग करके जैतून प्रेस का निर्माण किया जो प्रिंटिंग प्रेस का मॉडल बना। गुटेनबर्ग ने अपनी प्रेस में सर्वप्रथम बाईबिल छापी। बाईबिल की 180 प्रतियों के निर्माण में उसे तीन वर्ष लगे। यह उस समय के हिसाब से एक तीव्र उपलब्धि थी।

5. छापेखानों की संख्या में वृद्धि:
1450 से 1550 ई. के मध्य यूरोप के अधिकांश देशों में छापेखानों की स्थापना की जा चुकी थी। जर्मनी के प्रिंटर या मुद्रक दूसरे देशों में जाकर नए छापेखाने खुलवाया करते थे। छापेखानों की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ पुस्तक उत्पादन में भी तीव्र गति से वृद्धि हुई और यह वृद्धि आगामी वर्षों में होती ही चली गयी। हाथ की छपाई के स्थान पर यांत्रिक मुद्रण के आने पर ही मुद्रण क्रान्ति सम्भव हुई।

प्रश्न 3.
योहान गुटेनबर्ग कौन था? गुटेनबर्ग ने मुद्रण क्रान्ति को कैसे सम्भव बनाया?
अथवा
प्रिंटिंग प्रेस का आविष्कार किसने किया? उसने प्रिंट तकनीक का विकास कैसे किया? पथवा मुद्रण क्रांति में योहान गुटेनबर्ग के योगदान को विस्तार से बताइए। इसका क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
योहान गुटेनबर्ग स्ट्रॉसबर्ग का निवासी था। इनके पिता एक व्यापारी थे। गुटेनबर्ग खेती की एक बड़ी रियासत में पलकर बड़ा हुआ। वह बचपन से ही जैतून से तेल निकालने की मशीन को देखा करता था। आगे चलकर गुटेनबर्ग ने पत्थर पर पॉलिश करने की कला सीखी तथा अंत में उसने शीशे को मनवांछित आकृतियों में गढ़ने की कला को सीखा। मुद्रण क्रान्ति में गुटेनबर्ग का योगदान:
1. योहान गुटेनबर्ग ने अपने ज्ञान और अनुभव का उपयोग करके नवीन आविष्कार किया, जैतून प्रेस ही प्रिंटिंग प्रेस का मॉडल या आदर्श बना और साँचे का उपयोग अक्षरों की धातुई आकृतियों को गढ़ने के लिए किया।

2. गुटेनबर्ग ने 1448 ई. में अपने इस यंत्र को पूर्ण कर लिया था। इस यंत्र से उसने सर्वप्रथम बाईबिल का प्रकाशन किया। बाईबिल की लगभग 180 प्रतियाँ बनाने में उसे तीन वर्ष लगे जो उस समय के हिसाब से बहुत अधिक तीव्र कार्य था। गुटेनबर्ग प्रेस एक घंटे में एक तरफा 250 पन्ने छाप सकती थी। प्रभाव:

  1. गुटेनबर्ग प्रेस द्वारा पुस्तकें छापने की यह नई तकनीक हाथ से पुस्तकें छापने की तकनीक की जगह नहीं ले पाई।
  2. 1450 से 1550 ई. के मध्य यूरोप के अधिकांश देशों में छापेखाने लग गये थे।
  3. जर्मनी के प्रिंटर या मुद्रक दूसरे देशों में जाकर नए छापेखाने खुलवाने लगे। छपाईखानों की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ पुस्तकों के उत्पादन में तीव्र गति से वृद्धि हुई। ।
  4. 15वीं शताब्दी के द्वितीय चरण में यूरोप के बाजारों में 2 करोड़ मुद्रित पुस्तकें आयीं। यह संख्या सोलहवीं शताब्दी में बढ़कर 20 करोड़ तक पहुँच गयी।
  5. हाथ की छपाई के स्थान पर यांत्रिक मुद्रण के आने पर ही मुद्रण क्रान्ति सम्भव हुई।

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प्रश्न 4.
मुद्रण क्रान्ति से आप क्या समझते हैं? इसके प्रभाव को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
मुद्रण क्रांति के धार्मिक प्रभावों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
मुद्रण क्रान्ति से अभिप्राय:
छापेखाने के आविष्कार से बड़े पैमाने पर पुस्तकों का छपना प्रारम्भ हो गया। छपाई से पुस्तकों की कीमतें गिरी । पुस्तकों के उत्पादन में लगने वाले समय व श्रम में कमी आयी। बाजार में पुस्तकों की उपलब्धता में तीव्र गति से वृद्धि हुई तथा पाठक वर्ग भी बढ़ गया। इसे ही मुद्रण क्रांति कहा जाता है। छापेखाने का आविष्कार केवल तकनीकी दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन का सूचक नहीं था।

पुस्तक उत्पादन के नये तरीकों ने लोगों की जिन्दगी बदल दी। इसके परिणामस्वरूप सूचना और ज्ञान से संस्था और सत्ता से उनका सम्बन्ध ही परिवर्तित हो गया। इससे लोक-चेतना बदली और वस्तुओं को देखने का दृष्टिकोण भी परिवर्तित हो गया। मुद्रण क्रान्ति का प्रभाव-मुद्रण क्रान्ति के प्रभाव को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट कर सकते हैं
1. नये पाठक वर्ग का उदय:
छापेखाने के आगमन से एक नये पाठक वर्ग का उदय हुआ। छापेखाने के आविष्कार के कारण बड़े पैमाने पर पुस्तकों का छापना सम्भव हो गया। बाजार में पुस्तकों की भरमार हो गयी तथा पाठक वर्ग की संख्या बढ़ती गई। पुस्तकों तक पहुँचना आम जनता के लिए आसान हो गया था। पढ़ने की एक नई संस्कृति विकसित हुई।

अब तक सामान्य लोग मौखिक संसार में जीते थे। वे धार्मिक पुस्तकों का वाचन सुनते थे। गाथा-गीत उनको पढ़कर सुनाये जाते थे। ज्ञान का मौखिक लेन-देन भी होता था। अब पुस्तकें समाज के अधिकाधिक लोगों तक पहुँच सकती थीं। यदि पहले की जनता श्रोता थी तो कह सकते हैं कि अब पाठक जनता अस्तित्व में आ गई थी।

2. विचारों का व्यापक प्रचार:
प्रसार-छापेखाने के आविष्कार से लोगों के विचारों का व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ तथा विभिन्न विषयों पर तर्क-वितर्क के द्वार खुले, अब लोग विभिन्न विषयों पर आसानी से वाद-विवाद कर सकते थे। स्थानीय सत्ता के विचारों से असहमति व्यक्त करने वाले लोग भी अपने विचारों को छापकर उन्हें फैला सकते थे। छपे हुए सन्देशों के माध्यम से वे लोगों को अलग ढंग से सोचने के लिए तैयार कर सकते थे अथवा कोई कार्यवाही करने के लिए भी प्रेरित कर सकते थे।

मार्टिन लूथर ने मुद्रण क्रान्ति की प्रशंसा की तथा कहा कि “मुद्रण ईश्वर की दी हुई महानतम देन और सबसे बड़ा तोहफ़ा है।” कई इतिहासकारों के अनुसार मुद्रण ने एक नया बौद्धिक माहौल बनाया है तथा इससे धर्म-सुधार आन्दोलन के नये विचारों के प्रसार में सहायता प्राप्त हुई।

3. धर्म की अलग:
अलग व्याख्याओं से परिचित होना-छपे हुए लोकप्रिय साहित्य के बल पर ही कम शिक्षित लोग धर्म की अलग-अलग व्याख्याओं से परिचित हुए। कई लोगों ने अपने-अपने क्षेत्रों में उपलब्ध किताबों को पढ़कर बाईबिल के नये अर्थ लगाने शुरू कर दिये तथा उन्होंने ईश्वर व सृष्टि के बारे में नये-नये विचार बनाये।

प्रश्न 5.
“मुद्रण क्रान्ति के पश्चात् यूरोपीय देशों में साक्षरता और स्कूलों के प्रसार के साथ लोगों में पढ़ने का जैसे जुनून पैदा हो गया।” कथन की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
मुद्रण क्रान्ति के पश्चात् यूरोपीय लोगों में पढ़ने का जुनून पैदा हो गया, जिसके निम्न कारण थे
1. स्कूलों का प्रसार तथा साक्षरता वृद्धि:
सत्रहवीं तथा अठारहवीं सदी में विभिन्न सम्प्रदायों के चर्चों ने गाँवों में स्कूल खोले तथा किसानों व कारीगरों को शिक्षित करने लगे जिससे यूरोप के अधिकांश देशों में साक्षरता में वृद्धि हो गयी। कुछ देशों में तो साक्षरता 60 से 80 प्रतिशत तक हो गयी थी। यूरोप के देशों में साक्षरता वृद्धि व स्कूलों के प्रसार के साथ लोगों में पढ़ने का जुनून उत्पन्न हो गया। अतः जनता को पुस्तकें उपलब्ध कराने के लिए मुद्रकों ने पर्याप्त संख्या में पुस्तकें छापना प्रारम्भ कर दिया।

2. विविध प्रकार के साहित्य की छपाई:
यूरोप में नये पाठक वर्ग की रुचि को दृष्टिगत रखते हुए विभिन्न प्रकार का साहित्य छपने लगा। नये पाठक वर्ग की बढ़ती हुई संख्या को देखते हुए पुस्तक विक्रेताओं ने गाँव-गाँव जाकर छोटी-छोटी पुस्तकें बेचने वाले फेरीवालों को नियुक्त किया। ये पुस्तकें मुख्यतः पंचांग के अतिरिक्त लोक गाथाओं एवं लोग गीतों की हुआ करती थीं।

3. मनोरंजन प्रधान पुस्तकों की छपाई:
पाठकों की रुचि को देखते हुए प्रकाशकों ने मनोरंजन प्रधान पुस्तकों की छपाई करना भी प्रारम्भ कर दिया। ऐसी पुस्तकें बहुत सस्ती थीं जिन्हें गरीब लोग भी पढ़ सकते थे। ऐसी पुस्तकों में इंग्लैण्ड की पेनी मैग्जीन्स या एक पैसिया पुस्तकें तथा फ्रांस की बिब्लियोथीक ब्ल्यू आदि प्रमुख थीं।

4. प्रेम कहानियाँ तथा ऐतिहासिक पुस्तकों की छपाई:
मनोरंजन प्रधान पुस्तकों के अतिरिक्त यूरोपीय प्रकाशकों द्वारा चार-पाँच पृष्ठों की प्रेम कहानियाँ भी छापी जाती थीं। कुछ अतीत की गाथाएँ भी छापी जाती थीं जिन्हें इतिहास कहते थे।

5. पत्रिकाओं की छपाई:
अठारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ से यूरोप में पत्रिकाओं का प्रकाशन भी शुरू हो गया। इन पत्रिकाओं की विषय सामग्री में समकालीन घटनाओं के वर्णन के साथ-साथ मनोरंजनात्मक सामग्री भी होती थी।

6. विज्ञान व दर्शन सम्बन्धी पुस्तकों की छपाई:
यूरोप में मुद्रण-क्रान्ति के विस्तार के साथ-साथ विज्ञान व दर्शन सम्बन्धी पुस्तकों का प्रकाशन भी होने लगा। प्राचीन तथा मध्यकालीन ग्रन्थों का संकलन किया गया तथा मानचित्रों के साथ-साथ वैज्ञानिक खोजें भी बड़ी मात्रा में छापी गईं। न्यूटन जैसे वैज्ञानिकों के आविष्कारों के छपने के पश्चात् विज्ञान की पुस्तकें पढ़ने वाला एक नया पाठक वर्ग तैयार हो गया। इसके अतिरिक्त वॉल्टेयर, टामस पेन व रूसो जैसे दार्शनिकों की पुस्तकों के छपने से भी पाठकों की संख्या में वृद्धि हुई।

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प्रश्न 6.
“कई इतिहासकारों का यह मानना है कि मुद्रण संस्कृति ने फ्रांसीसी क्रान्ति के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ निर्मित की।” इस कथन के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
कई इतिहासकारों का यह मानना है कि मुद्रण संस्कृति ने फ्रांसीसी क्रान्ति के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ निर्मित की। इस कथन के पक्ष में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किये जा सकते हैं
1. ज्ञानोदय के चिन्तकों के विचारों का प्रसार:
मुद्रण संस्कृति के कारण फ्रांसीसी जनता में ज्ञानोदय के चिन्तकों के विचारों का प्रसार हुआ। उन्होंने अपने लेखन में परम्पराओं, अन्धविश्वासों एवं निरंकुशवाद की भरपूर आलोचना की। उन्होंने रूढ़िवादी रीतिरिवाजों के स्थान पर विवेक के शासन पर बल दिया। उन्होंने माँग की कि प्रत्येक बात को तर्क एवं विवेक की कसौटी पर परखा जाये।

उन्होंने चर्च की धार्मिक सत्ता एवं राज्य की निरंकुश सत्ता पर प्रहार किया तथा परम्परा पर आधारित सामाजिक व्यवस्था को कमजोर कर दिया। रूसो व वाल्टेयर जैसे चिन्तकों के विचारों से प्रभावित होकर पाठक एक नवीन आलोचनात्मक व तार्किक दृष्टिकोण से सम्पूर्ण विश्व को देखने लगे थे।

2. वाद-विवाद संवाद की एक नयी संस्कृति का जन्म:
मुद्रण ने वाद-विवाद संवाद की एक नई संस्कृति को जन्म दिया। समस्त पुराने मूल्य, संस्थाओं एवं नियमों पर आम जनता के मध्य चर्चा शुरू हो गयी तथा उनके पुनर्मूल्यांकन का सिलसिला प्रारम्भ हो गया। मुद्रण संस्कृति के माध्यम से सामाजिक क्रान्ति के नये विचारों का जन्म भी हुआ।

3. राजशाही और उसकी नैतिकता का मजाक उड़ाने वाले साहित्य का प्रकाशन:
1780 के दशक तक राजशाही और उसकी नैतिकता का मजाक उड़ाने वाले साहित्य का पर्याप्त प्रकाशन हो चुका था। इस साहित्य में पारम्परिक, सामाजिक व्यवस्था पर भी प्रश्न उठाये गये। तत्कालीन समय के व्यंग्य चित्रों व कार्टूनों में यह संदेश छिपा हुआ था कि राजशाही विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत कर रही है वहीं दूसरी ओर आम जनता घोर कठिनाइयों में फंसी हुई है। राजशाही के विरुद्ध सन्देशों से भरे हुए इन साहित्यों को गोपनीय तरीकों से लोगों तक पहुँचाया गया। इससे जनता अवगत हुई तथा उनमें राजशाही के विरुद्ध विद्रोह की भावना विकसित हुई।

प्रश्न 7.
विश्व में प्रारम्भिक मुद्रण तकनीक का विकास कैसे हुआ? विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
विश्व में प्रारम्भिक मुद्रण तकनीक के विकास को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
1. प्रारम्भिक मुद्रण तकनीक:
विश्व में सर्वप्रथम मुद्रण तकनीक का विकास चीन, जापान एवं कोरिया में हुऔ था। यहाँ हाथ की छपाई होती थी। 594 ई. में चीन में स्याही लगे काठ के ब्लॉक या तख्ती पर कागज को रगड़कर पुस्तकों को छापा जाना प्रारम्भ हुआ। चूँकि पतले छिद्रित कागज के दोनों ओर छपाई सम्भव नहीं थी, इसलिए पारम्परिक चीनी पुस्तकें एकॉर्डियन शैली में किनारों को मोड़ने के पश्चात् सिलकर बनायी जाती थीं। किताबों का लेखन दक्ष सुलेखकों द्वारा किया जाता था।

2. जापान में मुद्रण:
चीन से आये बौद्ध धर्म सुधारकों ने लगभग 768-770 ई. में जापान में छपाई की तकनीक को विकसित किया। 868 ई. में जापान की प्रथम पुस्तक ‘डायमंड सूत्र’ की छपाई की गई। इस पुस्तक में पाठ के साथ काठ पर चित्र खुदे थे। चित्र प्रायः कपड़ों, ताश के पत्तों एवं कागज के नोटों पर बनाये जाते थे। मध्यकालीन जापान में कवियों के साथ गद्यकारों के चित्र भी छापे जाते थे। जापान में कुछ समय हाथ से मुद्रित तरह-तरह की सामग्री महिलाओं, संगीत यंत्रों, चाय, अनुष्ठान, फूलसाजी, शिष्टाचार एवं रसोई पर लिखी गई पुस्तकों से पुस्तकालय एवं दुकानें भरी पड़ी थीं।

3. यूरोप में मुद्रण:
यूरोप में 11वीं शताब्दी में चीनी कागज रेशम मार्ग से पहुँचा। कागज ने मुँशियों द्वारा सावधानीपूर्वक लिखी गई पांडुलिपियों के उत्पादन को सम्भव बनाया। 1295 ई. में मार्कोपोलो नामक महान खोजी यात्री कई वर्षों तक चीन में खोज करने के पश्चात् इटली लौटा तो वह अपने साथ चीन की वुडब्लॉक वाली छपाई की तकनीक भी यूरोप ले गया।

यह तकनीक यूरोप के कई भागों में भी लोकप्रिय हो गयी। उच्च वर्ग के लोग एवं भिक्षु संघ अभी भी महँगे चर्च पत्रों पर छपी पुस्तकों के हस्तलिखित संस्करण पसंद करते थे। व्यापारी तथा विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों द्वारा सस्ती मुद्रित पुस्तकें ही खरीदी जाती थीं। यूरोप में धीरे-धीरे वुडब्लॉक प्रिंटिंग लोकप्रिय होती गयी।

4. योहान गुटेनबर्ग प्रिंटिंग प्रेस:
स्ट्रॉसबर्ग के योहान गुटेनबर्ग ने प्रिंटिंग प्रेस का 1448 ई. में आविष्कार किया जिससे मुद्रण में क्रान्ति आ गयी। इन्होंने अपने ज्ञान और अनुभव का उपयोग अपने नये आविष्कार में किया, इनकी जैतून प्रेस ही प्रिंटिंग प्रेस का मॉडल या आदर्श बना। इसके द्वारा प्रथम पुस्तक बाईबिल छापी गयी, जिसकी 180 प्रतियों को तैयार करने में इन्हें तीन वर्ष लगे।

5. भारत में मुद्रण:
भारत में पहले संस्कृत, अरबी, फारसी और विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में हस्तलिखित पांडुलिपियों की पुरानी और समृद्ध परम्परा थी। पांडुलिपियाँ ताड़ के पत्तों पर, हाथ से बने कागज पर नकल करके बनायी जाती थीं। भारत में सर्वप्रथम प्रिंटिंग प्रेस 16वीं शताब्दी में गोवा में पुर्तगाली धर्म प्रचारक लेकर आये।

1579 ई. में कैथोलिक पुजारियों ने कोचीन में पहली तमिल पुस्तक छापी। सत्रहवीं शताब्दी के अन्त तक अंग्रेजी ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने छापेखाने का आयात करना प्रारम्भ कर दिया। 1780 ई. में जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने ‘बंगाल गजट’ नामक एक साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ कर दिया। इस तरह विश्व में प्रारम्भिक प्रिंटिंग तकनीक का विकास हआ।

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प्रश्न 8.
भारत में विभिन्न समुदायों ने अपने धार्मिक संदेशों को जनता तक पहुँचाने के लिए मुद्रण का किस प्रकार उपयोग किया? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में विभिन्न समुदायों ने अपने धार्मिक संदेशों को जनता तक पहुँचाने के लिए मुद्रण का निम्नलिखित प्रकार से उपयोग किया
1. मुद्रण और मुस्लिम:
उत्तर भारत में उलेमा मुस्लिम राजवंशों के पतन को लेकर चिंतित थे। उन्हें यह डर था कि कहीं औपनिवेशिक शासन धर्मान्तरण को बढ़ावा न दे अथवा मुस्लिम कानून को ही न बदल डाले। इससे निपटने के लिए उन्होंने सस्ती लिथोग्राफी प्रेस का उपयोग करते हुए धर्मग्रन्थों के फारसी व उर्दू अनुवाद छापे तथा धार्मिक अखबार व गुटकों का भी प्रकाशन किया।

1867 ई. में स्थापित देवबंद सेमिनरी ने मुस्लिम पाठकों को दैनिक जीवन जीने के तरीके एवं इस्लामी सिद्धान्तों का अर्थ समझाते हुए हजारों की संख्या में फतवे जारी किये। 19वीं सदी के दौरान कई इस्लामी सम्प्रदायों व सेमिनरी का जन्म हुआ, जिन्होंने धर्म को लेकर अपनी-अपनी व्याख्याएँ प्रस्तुत की। हर कोई अपने सम्प्रदाय का विस्तार करना चाहता था तथा दूसरे सम्प्रदायों के प्रभाव को कम कराना चाहता था।

2. मुद्रण तथा हिन्दू:
हिन्दू समुदाय को भी छपाई से विशेष लाभ मिला, विशेषकर स्थानीय भाषाओं में धार्मिक शिक्षण को पर्याप्त बल मिला। तुलसीदास की 16वीं शताब्दी की पुस्तक ‘रामचरितमानस’ का प्रथम मुद्रित संस्करण 1810 ई. में कलकत्ता से प्रकाशित हुआ। 19वीं सदी के मध्य तक सस्ते लिथोग्राफी संस्करणों की उत्तर भारत के बाजारों में भरमार हो गयी। नवलकिशोर प्रेस (लखनऊ) एवं श्री वेंकटेश्वर प्रेस (बंबई) ने विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनेक धार्मिक पुस्तकों का प्रकाशन किया।

छपी पुस्तकों को लाने-ले जाने में सुगमता होने के कारण आस्थावान व्यक्ति पुस्तकों को कहीं भी व किसी भी समय पढ़ सकते थे। इन्हें पढ़कर निरक्षर जनसमुदाय को भी सुनाया जा सकता था। धार्मिक पुस्तकें बड़ी संख्या में व्यापक जनसमुदाय तक पहुँच रही थीं जिसके चलते विभिन्न धर्मों के मध्य व उनके अन्दर वाद-विवाद और तर्क-वितर्क की नई स्थिति उत्पन्न हो रही थी।

प्रश्न 9.
महिलाओं पर मुद्रण संस्कृति के प्रभाव को विस्तार से बताइए।
अथवा
19वीं सदी के अन्त में मुद्रण संस्कृति ने महिलाओं को किस प्रकार प्रभावित किया?
उत्तर:
महिलाओं पर मुद्रण संस्कृति के प्रभाव को निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है

1. महिला शिक्षा:
मुद्रण संस्कृति के प्रसार से लेखकों ने महिलाओं के जीवन एवं भावनाओं पर लिखना प्रारम्भ कर दिया। फलस्वरूप महिला पाठकों की संख्या में वृद्धि होने लगी। वे शिक्षा में रुचि लेने लगीं। महिलाओं के लिए नये स्कूल खोले गये। बालिका शिक्षा को प्रोत्साहन मिला। कई पत्र-पत्रिकाओं ने नारी शिक्षा के महत्व की चर्चा करना प्रारम्भ कर दिया।

2. महिलालेखिकाएँ:
19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में पूर्वी बंगाल में रशसुन्दरी देवी एक परम्परागत परिवार की घरेलू विवाहित महिला थीं जिन्होंने रसोईघर में छिपकर पढ़ना सीखा। इन्होंने ‘आमार जीबन’ नामक आत्मकथा लिखी जो 1876 ई. में प्रकाशित हुई। यह बंगाली भाषा में प्रकाशित प्रथम महत्वपूर्ण आत्मकथा थी। 1860 ई. के दशक में कैलाशबासिनी देवी जैसी कई महिला लेखिकाओं ने महिलाओं के अनुभवों पर लिखना प्रारम्भ कर दिया कि कैसे वे घरों में निरक्षर बनाकर रखी जाती हैं, घर के हर काम का बोझ उठाती हैं और जिनकी सेवा करती हैं, वहीं उन्हें दुत्कारते हैं।

1860 ई. के दशक में महाराष्ट्र में ताराबाई शिंदे और पंडिता रमाबाई ने उच्च जाति की नारियों विशेषतः विधवाओं की शोचनीय दशा के विषय में जोश और रोषपूर्वक लिखा। तमिल लेखिकाओं ने भी नारी के निम्नस्तरीय जीवन के विषय में विचार व्यक्त किया।

3. हिन्दी लेखन एवं महिलाएँ:
उर्दू, तमिल, बंगला एवं मराठी मुद्रण संस्कृति तो पहले ही आ चुकी थी परन्तु हिन्दी मुद्रण 1870 ई. के दशक में गम्भीरतापूर्वक प्रारम्भ हुआ। शीघ्र ही इसका एक बड़ा भाग नारी शिक्षा के प्रति समर्पित होने लगा।

4. नयी पत्रिकाएँ:
20वीं शताब्दी के आरम्भ में महिलाओं के द्वारा लिखित पत्रिकाएँ लोकप्रिय हुईं, जिनमें नारी शिक्षा, विधवा जीवन, विधवा पुनर्विवाह एवं राष्ट्रीय आन्दोलन जैसे विषयों पर चर्चा होती थी। कुछ पत्र-पत्रिकाओं ने महिलाओं को गृहस्थी ‘चलाने एवं फैशन के नुस्खे बताने के लिए सत्य कहानियों एवं धारावाहिक उपन्यासों के माध्यम से मनोरंजन प्रदान किया।

5. महिलाओं के लिए उपदेश:
समाज में 20वीं सदी के प्रारम्भ में लोकप्रिय लोकमत हित बड़े पैमाने पर छापा गया। रामचड्ढा ने महिलाओं को आज्ञाकारी पत्नी बनने का उपदेश देने के उद्देश्य से स्त्रीधर्म विचार’ पुस्तक लिखी। ऐसे ही संदेशों को लेकर खालसा-पुस्तिका संघ ने सस्ती पुस्तिकाएँ छापी। इनमें से अधिकांश अच्छी महिला बनने के उपदेशों पर वार्तालाप के रूप में थीं। स्रोत पर आधारित प्रश्न नीचे दिए गए स्रोत को पढ़िए और उसके नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर लिखिए

स्रोत-1:
धार्मिक सुधार और सार्वजनिक बहसें यह वह समय था जब समाज और धर्म-सुधारकों तथा हिंदू रूढ़िवादियों के बीच विधवा-दाह, एकेश्वरवाद, ब्राह्मण पुजारीवर्ग और मूर्ति-पूजा जैसे मुद्दों को लेकर तेज़ बहस ठनी हुई थी। बंगाल में जैसे-जैसे बहस चली, लगातार बढ़ती तादाद में पुस्तिकाओं और अखबारों के ज़रिए तरह-तरह के तर्क समाज के बीच आने लगे।

स्रोत-2:
प्रकाशन के नए रूप नई साहित्यिक विधाएँ, जैसे-गीत, कहानियाँ, सामाजिक-राजनीतिक मसलों पर लेख, ये सब पाठकों की दुनिया का हिस्सा बन गए। अपने अलग-अलग तेवरों में इन्होंने इन्सानी जिंदगी और अंतरंग भावनाओं, और उन सामाजिक-राजनीतिक नियमों पर बल दिया जिनसे इनका स्वरूप तय होता था।

स्रोत-3:
महिलाएँ और मुद्रण चूँकि सामाजिक सुधारों और उपन्यासों ने पहले ही नारी जीवन और भावनाओं में दिलचस्पी पैदा कर दी थी, इसलिए महिलाओं द्वारा लिखी जा रही आपबीती के प्रति कुतूहल तो था ही।

स्रोत-1: धार्मिक सुधार और सार्वजनिक बहसें।

प्रश्न 1.
मुद्रण ने भारत में उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भ में बहसों की प्रकृति को किस प्रकार बदल दिया? मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
मुद्रण ने भारत में उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ में बहसों की प्रकृति को नया आयाम प्रदान किया। जैसे ही बहसें चलना शुरू होती थी वैसे ही निरन्तर रूप से बड़ी संख्या में पुस्तिकाओं और अखबारों के जरिए भिन्न-भिन्न तर्क समाज के बीच से आने लगते। अधिकाधिक लोगों तक इनकी पहुँच बनाने के लिए इन्हें आम बोलचाल की भाषा में छापा जाता था।

स्रोत-2: प्रकाशन के नए रूप

प्रश्न 2.
आप कहाँ तक सहमत हैं कि मुद्रण ने नई दुनिया के अनुभव के द्वार खोले और मानव जीवन का विविध विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया?
उत्तर:
हम इस बात से पूर्णतः सहमत हैं कि मुद्रण ने नई दुनिया के अनुभव के द्वार खोले और मानव जीवन का विविध विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया। यह निम्न तथ्यों से सरलता से समझा जा सकता है।

  1. छापेखानों की संख्या बढ़ने से छवियों की कई नकलें या प्रतियाँ अब आसानी से बनने लगी थीं।
  2. गरीब दस्तकारों को लैटरप्रेस छापेखानों के नजदीक दुकानें लगाने से मुद्रकों से काम मिलने लगा।
  3. गरीब लोग की बाजारों से आसानी से मिलने वाली सस्ती तस्वीरों तथा कैलेंडरों को अपने घर व दफ्तरों में सजाने लगे थे।

स्रोत-3 : महिलाएँ और मुद्रण

प्रश्न 3.
मुद्रण संस्कृति ने महिलाओं के जीवन और मनोभाव के प्रति किस सीमा तक बहुत रुचि प्रदर्शित की? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
महिलाओं के लिए मुद्रित तथा महिलाओं द्वारा महिलाओं ने जीवन तथा भावनाओं के सम्बन्ध में लिखना शुरू करने पर महिला पाठकों की संख्या बहुत बढ़ी। बहुत-सी पत्रिकाओं ने महिलाओं की शिक्षा, विधवा-जीवन, विधवा-विवाह जैसे मुद्दों के साथ ही महिलाओं को गृहस्थी चलाने तथा फैशन के नुस्खों पर जोर देना शुरू किया।

मानचित्र सम्बन्धी प्रश्न

प्रश्न 1.
दिये गये विश्व के रेखा मानचित्र में निम्नलिखित को अंकित कीजिए
इटली, लाल सागर, मद्रास, स्पेन।
उत्तर:

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प्रश्न 2.
दिये गये विश्व के रेखा मानचित्र में निम्नलिखित देशों को दर्शाइए
कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, डेनमार्क, ग्रेट ब्रिटेन,  जर्मनी, फ्रांस,  स्विट्जरलैंड,  पुर्तगाल, रोमानिया, दक्षिण अफ्रीका, चीन, भारत, म्यांमार, वियतनाम,  ताइवान, जापान, आस्ट्रेलिया।
उत्तर:

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प्रश्न 3.
दिये गये विश्व के रेखा मानचित्र में निम्नलिखित शहरों को अंकित कीजिए
लंदन, पेरिस, मैनचेस्टर , शिकागो, ब्रुसेल्स, अहमदाबाद, मद्रास, बम्बई, जमशेदपुर, अमृतसर,  लाहौर, टोक्यो, कलकत्ता।
उत्तर:

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JAC Class 10 Social Science Important Questions

JAC Board Class 10th Social Science Important Questions History Chapter 4 औद्योगीकरण का युग

वस्तुनिष्ठ

प्रश्न 1.
वह शब्द कौन-सा है जो आमतौर पर एशिया के लिए इस्तेमाल किया जाता है?
(क) सौदागर
(ख) आदि
(ग) प्राच्य
(घ) जादुई चिराग
उत्तर:
(ग) प्राच्य

2. विक्टोरिया कालीन ब्रिटेन में उच्च वर्ग के लोग निम्न में से किससे निर्मित वस्तुओं को महत्त्व देते थे?
(क) मशीनों से
(ख) हाथों से
(ग) (क) और
(ख) दोनों से
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) हाथों से

3. कौन-से बन्दरगाह 1780 के दशक से व्यापारिक बन्दरगाह के रूप में विकसित होने लगे थे?
(क) बम्बई व कलकत्ता
(ख) सूर व मछलीपट्टनम
(ग) कांडला व तूतीकोरिन
(घ) चेन्नई व कांडला
उत्तर:
(क) बम्बई व कलकत्ता

4. “भारतीय कपड़े की माँग कभी कम नहीं हो सकती क्योंकि दुनिया के किसी और देश में इतना अच्छा माल नहीं बनता।” यह कथन किसका है?
(क) हेनरी पतूलो
(ख) जे.एल.हैमंड
(ग) टी.ई.निकल्सन
(घ) माइकलः वुल्फ
उत्तर:
(क) हेनरी पतूलो

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5. भारत में सन् 1854 में पहली कपड़ा मिल कहाँ लगी थी?
(क) सूरत
(ख) पुणे
(ग) बंबई
(घ) अहमदाबाद
उत्तर:
(ग) बंबई

6. जे. एन. टाटा ने किस वर्ष जमशेदपुर में भारत का प्रथम लौह एवं इस्पात संयन्त्र स्थापित किया?
(क) 1729 ई.
(ख) 1854 ई.
(ग) 1912 ई.
(घ) 1855 ई.
उत्तर:
(ग) 1912 ई.

7. किस वस्तु के विज्ञापन में भगवान विष्णु आकाश से रोशनी लाते दिखाए गए हैं?
(क) साबुन
(ख) ग्राइप वाटर
(ग) कपड़ा
(घ) इस्पात
उत्तर:
(क) साबुन

रिक्त स्थान पूर्ति सम्बन्धी प्रश्न

निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:
1. इंग्लैण्ड में ………. के दशक में कारखानों का खुलना प्रारंभ हुआ।
उत्तर:
1730,

2. ……….. ने न्यूकॉमेन द्वारा बनाए गए भाप के इंजन में सुधार किए और ………… में नए इंजन का पेटेंट करा लिया।
उत्तर:
जेम्स वॉट,

3. ………….. में पहली कपड़ा मिल 1854 में लगी।
उत्तर:
बंबई,

4. देश की पहली जूट मिल …………. में और दूसरी 7 साल बाद ……………. में चालू हुई।
उत्तर:
1855, 1862

5. उद्योगपति नए मजदूरों की भर्ती के लिए प्रायः एक …………… रखते थे।
उत्तर:
जॉबर।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
किस म्यूजिक कम्पनी ने अपनी पुस्तक की जिल्द पर दी गयी तस्वीर में नयी सदी के उदय का ऐलान किया था?
उत्तर:
ई. टी. पॉल म्यूजिक कम्पनी ने अपनी पुस्तक की जिल्द पर दी गयी तस्वीर में ‘नयी सदी के उदय’ का ऐलान किया था।

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प्रश्न 2.
गिल्ड्स से आप क्या रमझते हैं ?
उत्तर:
गिल्ड्स उत्पादकों के संगटन होते थे। गिल्ड्स से जुड़े उत्पादक कारीगरों को प्रशिक्षण प्रदान करते थे, उत्पादकों पर नियन्त्रण रख्बते थं, प्रातिम्पर्नीं और गुल्य तय करते थे।

प्रश्न 3.
इंग्लैण्ड के कपड़ा व्यापारी किससे ऊन खरीदते थे ?
उत्तर:
इंग्लेण्ड के कपड़ा व्यापारी स्टेप्लर्स (Staplers) से ऊन खरीदते थे।

प्रश्न 4.
इंग्लैणंड का कौन-सा शहर फिनिशिंग सेंटर के नाम से जाना जाता था ?
उत्तर:
इंग्लैण्ड का लंदन शहर फिनिशिंग सेंटर के नाम से जाना जाता था।

प्रश्न 5.
आदि-औद्योगिक व्यवस्था की प्रमुख विशेषता क्या थी ?
उत्तर:
आदि औद्योगिक व्यवस्था पर मौंदागतों का: नंत्रण था और वस्तुओं का उत्पादन कासमानें की जनग गंमें गोड़ा ग।

प्रश्न 6.
कार्डिंग क्या है ?
अथवा
‘कार्डिंग’ शब्द को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
कार्डिंग वह प्रक्रिया थी जिसमें कपास या ऊन आदि रेशों को कताई के लिए तैयार किया जाता था।

प्रश्न 7.
सूती कपड़ा मिल की रूपरेखा किसने तैयार की थी?
उत्तर:
रिचर्ड आर्कराइट ने सूती कपड़ा मिल की रूपरेखा तैयार की थी।

प्रश्न 8.
ब्रिटेन के सबसे अधिक विकसित उद्योग कौन-कौन से थे?
उत्तर:
ब्रिटेन के सबसे अधिक विकसित उद्योग सूती कपड़ा उद्योग एवं कपास उद्योग थे।

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प्रश्न 9.
ब्रिटेन का कौन-सा उद्योग 1840 ई. के दशक तक औद्योगीकरण के प्रथम चरण में सबसे बड़ा उद्योग बन चुका था ?
उत्तर:
ब्रिटेन का कपास उद्योग 1840 ई. के दशक तक औद्योगिकीकरण के प्रथम चरण में सबसे बड़ा उद्योग बन चुका था।

प्रश्न 10.
स्पिनिंग जेनी मशीन का निर्माण कब व किसने किया?
उत्तर:
जेम्स हरग्रीव्ज ने 1764 ई. में स्पिर्तिंग जेनी मशीन का निर्माण किया। नियुक्ति क्यों की?
उत्तर:
बुनकरों का निरीक्षण करने के लिए।

प्रश्न 12.
भारत के स्थानीय बाजार में कहाँ के आयातित मालों की भरमार थी ?
उत्तर:
भारत के स्थानीय बाजार में मैनचेस्टर के आयातित मालों की भरमार थी।

प्रश्न 13.
1860 के दशक में बुनकरों के समक्ष कौन-सी समस्या उत्पन्न हो गयी ?
उत्तर:
1860 के दशक में बुनकरों के समक्ष अच्छी कृपास के न मिलने की समस्या उत्पन्न हो गयी।

प्रश्न 14.
देश की पहली जूट मिल कब व किस राज्य में स्थापित हुई ?
उत्तर:
देश की पहली जूट मिल 1855 ई. में बंगाल में स्थापित हुई।

प्रश्न 15.
किस वर्ष मद्रास में पहली कताई और बुनाई मिल स्थापित हुई ?
उत्तर:
सन् 1874 ई. में मद्रास में पहली कताई और बुनाई मिल स्थापित हुई।

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प्रश्न 16.
बंबई के उन दो उद्योगपतियों के नाम लिखिए, जिन्होंने 19 वीं सदी में विशाल औद्योगिक साम्राज्य स्थापित किया?
उत्तर:

  1. डिनशॉ पेटिट व
  2. जमशेदजी नुसरवान जी टाटा।

प्रश्न 17.
प्रथम विश्वयुद्ध तक कौन-कौन सी यूरोपीय प्रबन्धकीय एजेंसियाँ भारतीय उद्योगों के विशाल क्षेत्र का नियन्त्रण करती थीं?
उत्तर:

  1. बर्ड हीगलार्स एण्ड कम्पनी,
  2. एंड्रयू यूल,
  3. जार्डीन स्किनर एण्ड कम्पनी।

प्रश्न 18.
जॉबर कौन थे?
उत्तर:
उद्यमी, मिलों में नये मजंदूरों की भर्ती के लिए विश्वस्त कर्मचारी रखते थे, जो जॉबर कहलाता था। इन्हें अलग-अलग प्रदेशों में सरदार या मिस्त्री आदि भी कहते थे।

प्रश्न 19.
फ्लाई शटल के प्रयोग से कौन-कौन से लाभ प्राप्त हुए?
उत्तर:
फ्लाई शटल के प्रयोग से कामगारों की उत्पादन क्षमता में वृद्धि हुई. उत्पादन तीव्र हुआ तथा श्रम की माँग में कमी आयी।

प्रश्न 20.
बच्चों की वस्तुओं का प्रचार करने के लिए किसकी छवि का अधिक उपयोग किया जाता था ?
उत्तर:
बच्चों की वस्तुओं का प्रचार करने के लिए बाल कृष्ण की छवि का सबसे अधिक उपयोग किया जाता था।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA1 )

प्रश्न 1.
17वीं व 18वीं शताब्दी में यूरोपीय शहरों में सौदागर माँग के होते हुए भी उत्पादन नहीं बढ़ा सकते थे क्यों?
अथवा
औद्योगिक क्रान्ति से पूर्व यूरोप के नए व्यापारियों को नगरों में औद्योगिक इकाइयाँ स्थापित करने में आई किन्हीं तीन प्रमुख समस्याओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
17वीं व 18वीं शताब्दी में यूरोपीय शहरों में सौदागर माँग के होते हुए निम्न कारणों से उत्पादन नहीं बढ़ा सकते थे था।

  1. शहरी दस्तकार व व्यापारिक गिल्ड्स बहुत अधिक ताकतवर थे।
  2. गिल्ड्स से जुड़े उत्पादक कारीगरों को प्रशिक्षण देते थे, उत्पादनों पर नियन्त्रण रखते थे, प्रतिस्पर्धा तथा मूल्य तय करते थे तथा व्यवसाय में आने वाले नये लोगों को रोकते थे।
  3. शासकों ने भी विभिन्न गिल्ड्स को विशेष उत्पादों के उत्पादन व व्यापार को एकाधिकार प्रदान कर रखा था।

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प्रश्न 2.
19वीं शताब्दी के अन्त में कपास के उत्पादन में बहुत अधिक वृद्धि हुई। यह वृद्धि उत्पादन प्रक्रिया में कौन-कौन से बदलावों का परिणाम थी ? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
कपास के उत्पादन में अधिक वृद्धि उत्पादन प्रक्रिया में निम्नलिखित बदलावों का परिणाम थी:

  1. 18वीं शताब्दी में कुछ नये आविष्कारों ने उत्पादन प्रक्रिया के प्रत्येक चरण (कार्डिंग, ऐंठना, कताई व लपेटना) की कुशलता बढ़ा दी।
  2. महँगी नयी मशीनें कारखानों में लगने लगीं।
  3. कारखानों में समस्त प्रक्रियाएँ एक ही छत के नीचे और एक मालिक के हाथों में आ गयी थीं।
  4. अब उत्पादन प्रक्रिया पर निगरानी, गुणवत्ता पर ध्यान व श्रमिकों पर ध्यान रखना सम्भव हो गया था। पहले यह सम्भव नहीं था क्योंकि उत्पादन का कार्य गाँवों में होता था।

प्रश्न 3.
इंग्लैण्ड में औद्योगीकरण के दौरान प्रौद्योगिकीय बदलावों की गति धीमी थी? कारण दीजिए।
उत्तर:
इंग्लैण्ड में औद्योगीकरण के दौरान प्रौद्योगिकीय बदलावों की गति धीमी होने के निम्नलिखित कारण थे

  1. नवीन तकनीक बहुत अधिक महँगी थी। सौदागर व उद्योगपति इनके उद्योग को लेकर बहुत सावधान रहा करते थे।
  2. मशीनें प्रायः खराब हो जाती थीं तथा उनकी मरम्मत पर बहुत अधिक खर्च आता था।
  3. 19वीं शताब्दी के मध्य का औसत श्रमिक मशीनों पर काम करने वाला नहीं बल्कि परम्परागत कारीगर एवं श्रमिक ही होता था।
  4. आविष्कारकों एवं निर्माताओं के दावे के अनुसार मशीनें उतनी अच्छी भी नहीं होती थीं।

प्रश्न 4.
विक्टोरिया कालीन ब्रिटेन में उद्योगपति आधुनिक मशीनों का प्रयोग क्यों नहीं करना चाहते थे ? कारण दीजिए।
उत्तर:
विक्टोरिया कालीन ब्रिटेन में उद्योगपति निम्न कारणों से आधुनिक मशीनों का प्रयोग नहीं करना चाहते थे

  1. विक्टोरया कालीन ब्रिटेन में मानव श्रम प्रचुर मात्रा में उपलब्ध था। बड़ी संख्या में गरीब किसान व बेकार लोग नौकरियों की खोज में शहरों की ओर आते थे।
  2. मशीनें बहुत अधिक महँगी आती थीं तथा उनके रख-रखाव पर अधिक व्यय होता था।
  3. जिन उद्योगों में मौसम के साथ उत्पादन घटता-बढ़ता रहता था वहाँ उद्योगपति मशीनों की बजाय मजदूरों को ही काम पर रखना पसन्द करते थे।

प्रश्न 5.
विक्टोरिया कालीन ब्रिटेन में उच्च वर्ग के लोग हाथ से बनी चीजों को महत्त्व प्रदान करते थे, क्यों?
अथवा
ब्रिटेन के कुलीन व पूँजीपति वर्ग द्वारा हस्तनिर्मित वस्तुओं को प्राथमिकता क्यों दी जाती थी, कारण दीजिए।
अथवा
19वीं सदी के मध्य में, ब्रिटेन के अभिजात वर्ग के लोगों नेथों से बनी चीजों को प्राथमिकता क्यों दी? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विक्टोरिया कालीन ब्रिटेन में उच्च वर्ग के लोग हाथ से बनी वस्तुओं को अधिक प्राथमिकता देते थे क्योंकि

  1. हाथ से बनी चीजों को परिष्कार तथा सुरुचि का प्रतीक माना जाता था।
  2. हाथ से बनी हुई वस्तुओं को एक-एक करके बनाया जाता था जिससे उनकी डिजायन व फिनिशिंग अच्छी आती थी।
  3. मशीनों से बनने वाले उत्पादों को उपनिवेशों में निर्यात कर दिया जाता था।

प्रश्न 6.
1760 ई. के दशक के पश्चात् ईस्ट इण्डिया कम्पनी भारत से होने वाले कपड़े के निर्यात को और अधिक क्यों फैलाना चाहती थी ?
उत्तर:
1760 ई. के दशक के पश्चात् ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सत्ता सुदृढ़ीकरण की शुरुआत में भारत के कपड़ा निर्यात में गिरावट नहीं आयी। ब्रिटिश कपड़ा उद्योग का अभी विस्तार होना प्रारम्भ नहीं हुआ था। यूरोप में बारीक भारतीय कपड़ों की बहुत अधिक माँग थी इसलिए ईस्ट इण्डिया कम्पनी भी भारत से होने वाले कपड़े के निर्यात को ही और अधिक फैलाना चाहती थी।

प्रश्न 7.
1760 ई. और 1770 ई. के दशकों में बंगाल और कर्नाटक में राजनीतिक सत्ता स्थापित करने से पहले ईस्ट इण्डिया कम्पनी को निर्यात के लिए लगातार वस्तुओं की आपूर्ति आसानी से नहीं हो पाती थी, क्यों ?
उत्तर:
बुने हुए कपड़ों को हासिल करने के लिए फ्रांसीसी, डच तथा पुर्तगालियों के साथ-साथ स्थानीय व्यापारी भी होड़ में रहते थे। इस प्रकार बुनकर और आपूर्ति सौदागर बहुत अधिक मोलभाव करते थे और अपना माल सर्वाधिक ऊँची बोली लगाने वाले खरीददार को ही बेचते थे। यही कारण था कि ईस्ट इण्डिया कम्पनी को निर्यात के लिए लगातार वस्तुओं की आपूर्ति आसानी से नहीं हो पाती थी।

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प्रश्न 8.
गुमाश्ता कौन थे? बुनकरों और गुमाश्तों के बीच झड़पें क्यों हुईं?
अथवा
गुमाश्ता के कार्य बताइए।
अथवा
गाँव में गुमाश्ता और बुनकरों के मध्य संघर्ष अधिक क्यों थे?
उत्तर:
गुमाश्ता ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा नियुक्त किये जाने वाले वेतनभोगी कर्मचारी होते थे, जो बुकनरों पर निगरानी रखने, माल इकट्ठा करने एवं कपड़ों की गुणवत्ता जाँचने का कार्य करते थे। ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा नियुक्त. गुमाश्ते बाहर के लोग थे जिनका गाँव से कोई सामाजिक सम्बन्ध नहीं था। वे दोषपूर्ण व्यवहार करते थे।

माल समय पर तैयार न होने की स्थिति में बुनकरों को सजा देते थे। सजा के तौर पर बुनकरों को पीटा जाता था और कोड़े बरसाये जाते थे। कर्नाटक और बंगाल में कई स्थानों से बुनकर गाँव छोड़कर चले गये। अतः रोजाना ही बुनकरों व गुमाश्तों के मध्य झड़पों के समाचार आते रहते थे।।

प्रश्न 9.
भारत के औद्योगिक विकास पर प्रथम विश्वयुद्ध का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
भारत के औद्योगिक विकास पर प्रथम विश्वयुद्ध का निम्नलिखित प्रभाव पड़ा:

  1. भारत में मैनचेस्टर के माल का आयात कम हो गया।
  2. युद्ध के पश्चात् भारतीय बाजार में मैनचेस्टर अपनी पहले वाली स्थिति प्राप्त न कर सका।
  3. स्थानीय उद्योगपतियों ने घरेलू बाजारों पर नियन्त्रण स्थापित कर लिया।
  4. ब्रिटिश सूती वस्त्र उद्योग अपना आधुनिकीकरण नहीं कर सका।

प्रश्न 10.
जॉबर कौन होते थे? उनका क्या कार्य था?
अथवा
जॉबर किसे कहते हैं ? उसके कार्यों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में भारत में ‘जॉबर्स’ की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उद्योगपति अपने कारखानों में नये मजदूरों की भर्ती का कार्य अपने किसी पुराने व विश्वस्त कर्मचारी के माध्यम से कराते थे जिसे जॉबर कहा जाता था। इन्हें अलग-अलग इलाकों में सरदार या मिस्त्री आदि भी कहते थे। इनका प्रमुख कार्य अपने गाँव से लोगों को लाना होता था। वह अपने गाँव से लोगों को लाता था, उन्हें काम का भरोसा दिलाता था, उन्हें शहरों में जमने के लिए मदद देता था तथा मुसीबत में पैसे से मदद करता था। इस प्रकार जॉबर ताकतवर और मजबूत व्यक्ति बन गया। बाद में जॉबर मदद के बदले पैसे माँगने लगे और श्रमिकों की जिन्दगी को नियन्त्रित करने लगे।

प्रश्न 11.
बीसवीं शताब्दी में अपनी उत्पादकता बढ़ाने एवं मिलों से मुकाबला करने के लिए भारतीय बुनकरों ने किस प्रकार नई तकनीक को अपनाया ?
उत्तर:
बीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक में कई बुनकर फ्लाई शटल का प्रयोग करने लगे। फ्लाई शटल बुनाई के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक यान्त्रिक औजार था। फ्लाई शटल के प्रयोग से कामगारों की उत्पादन क्षमता बढ़ी, उत्पादन तीव्र गति से होने लगा एवं श्रम की माँग में कमी आई। सन् 1941 ई. तक भारत में 35 प्रतिशत से अधिक हथकरघों में फ्लाई शटल लगे हुए थे।

त्रावणकोर, मद्रास, मैसूर, कोचीन, बंगाल आदि क्षेत्रों में तो ऐसे हथकरघे 70-80 प्रतिशत तक थे। इसके अतिरिक्त कई छोटे-छोटे सुधार किये गये जिनसे बुनकरों को अपनी उत्पादकता बढ़ाने एवं मिलों से मुकाबला करने में मदद मिली।

प्रश्न 12.
नये उपभोक्ता पैदा करने में विज्ञापनों का क्या महत्त्व है?
अथवा
नये उपभोक्ता बनाने में विज्ञापनों की भूमिका को संक्षेप में बताइए।
अथवा
वस्तुओं के लिए बाजार में विज्ञापन के महत्त्व को समझाइए।
उत्तर:
विज्ञापन विभिन्न उत्पादों को आवश्यक एवं वांछनीय बना देते हैं। वे लोगों की सोच बदल देते हैं तथा नयी आवश्यकताएँ पैदा कर देते हैं। समाचार-पत्र-पत्रिकाओं, होर्डिंग्स, दीवारों, टेलीविजन के परदे पर सभी जगह विज्ञापन छाये हुए हैं। यदि हम इतिहास में पीछे .मुड़कर देखें तो पता चलता है कि औद्योगीकरण की शुरुआत से ही विज्ञापनों ने विभिन्न उत्पादों के बाजार के विस्तार में एवं एक नयी उपभोक्ता संस्कृति के निर्माण में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है।

प्रश्न 13.
मैनचेस्टर के उद्योगपतियों ने भारत में कपड़े बेचने के लिए लेबल का प्रयोग क्यों किया?
उत्तर:
मैनचेस्टर के उद्योगपतियों ने भारत में कपड़ा बेचना प्रारम्भ किया तो वे कपड़ों के बण्डलों पर लेबल लगाते थे। लेबल का लाभ यह होता था कि क्रेता को कम्पनी का नाम व उत्पादन के स्थान का पता चल जाता था। लेबल ही वस्तुओं की गुणवत्ता का प्रतीक था। जब किसी लेबल पर मोटे अक्षरों में ‘मेड इन मैनचेस्टर’ लिखा दिखाई देता था तो खरीददारों को कपड़ा खरीदने में किसी प्रकार का डर नहीं रहता था।

लघूत्तरात्मक (SA2)

प्रश्न 1.
यूरोप में आदि-औद्योगीकरण के दौरान किसानों ने सौदागरों के लिए कार्य करना क्यों प्रारम्भ किया?
अथवा
गाँवों के गरीब किसान एवं दस्तकार यूरोप के शहरी सौदागरों के लिए काम करने के लिए क्यों तैयार हो गये?
अथवा
“17वीं शताब्दी में यूरोपीय शहरों के सौदागर गाँवों में किसानों और कारीगरों से काम करवाने लगे।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यूरोप में आदि-औद्योगीकरण के दौरान किसानों ने सौदागरों के लिए निम्नलिखित कारणों से काम करना प्रारम्भ किया:

  1. सत्रहवीं व अठारहवीं शताब्दी में यूरोप में गाँवों के खुले खेत समाप्त होते जा रहे थे तथा कॉमन्स की बाडावन्दी की जा रही थी। गरीब किसान जो इन्हीं जमीनों पर आश्रित थे उनकी आजीविका छिन गई।
  2. कई किसानों के पास छोटे-छोटे खेत थे जिनसे उनके समस्त परिवार का पालन-पोषण नहीं किया जा सकता था।
  3. ऐसी स्थिति में शहरी सौदागरों ने किसानों को काम का प्रस्ताव दिया एवं पेशगी के रूप में रकम भी दी तो वे तैयार हो गये।
  4. सौदागरों के लिए काम करते हुए वे गाँव में ही रहते हुए अपने छोटे-छोटे खेतों को भी सम्भाल सकते थे।
  5. इस आदि औद्योगिक उत्पादन से होने वाली आय ने खेती के कारण सिमटती आय में किसानों को बहुत सहारा दिया। इससे उन्हें अपने सम्पूर्ण परिवार के श्रम संसाधनों के उपयोग करने का अवसर भी मिल गया।
  6. इस व्यवस्था से शहरों एवं गाँवों के मध्य एक घनिष्ठ सम्बन्ध विकसित हुआ।

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प्रश्न 2.
“विक्टोरिया कालीन ब्रिटेन में कुलीन और पूँजीपति वर्ग द्वारा हस्तनिर्मित वस्तुओं को पसन्द किया जाता था।” स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
विक्टोरिया कालीन ब्रिटेन में मानव श्रम प्रचुर मात्रा में उपलब्ध था। बड़ी संख्. में गरीब किसान व बेकार लोग कामकाज की तलाश में शहरों में आते थे। उद्योगपतियों को ऐसी मशीनों में कोई रुचि नहीं थी जिनके कारण श्रमिकों से तो छुटकारा मिल जाये परन्तु जिन पर बहुत अधिक व्यय होता हो। अनेक उत्पाद केवल हाथ से ही तैयार किये जाते थे। मशीनों से एक जैसे तथा एक किस्म के उत्पाद ही बड़ी संख्या में बनाये जा सकते थे।

लेकिन बाजार में अक्सर बारीक डिजाइन वाली एवं विशेष आकारों वाली वस्तुओं की बहुत अधिक माँग रहती थी। विक्टोरिया कालीन ब्रिटेन में उच्च वर्ग के लोग, कुलीन एवं पूँजीपति वर्ग हस्तनिर्मित वस्तुओं को अधिक महत्त्व देते थे, क्योंकि हाथ से बनी वस्तुओं को परिष्कार एवं सुरुचि का प्रतीक माना जाता था। उनकी फिनिशिंग अच्छी होती थी। उनको एक-एक करके बनाया जाता ६ तथा उनका डिजाइन अच्छा होता था।

मशीनों से बनने वाले उत्पादों को उपनिवेशों में निर्यात कर दिया जाता था। बाजार में हाथ से बनी वस्तुओं की बहुत अधिक माँग रहती थी। कई वस्तुओं के लिए यांत्रिक प्रौद्योगिकी की अपेक्षा मानवीय निपुणता की अधिक आवश्यकता पड़ती थी, जैसे-हथौड़ी, कुल्हाड़ियों का निर्माण। इसके अतिरिक्त हाथ से बनी वस्तुएँ उच्चवर्गीय लोगों की अभिरुचि को भी सन्तुष्ट करती थीं। .

प्रश्न 3.
बाजार में श्रम की बहुतायत से मजदूर वर्ग के जीवन पर पड़ने वाले कोई तीन प्रभाव बताइए।
उत्तर:
बाजार में श्रम की बहुतायत से मजदूर वर्ग के जीवन पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े
1. काम पाने के लिए गाँवों से बड़ी संख्या में मजदूर शहरों में आने ल। नौकरी मिलने की सम्भावना मित्रता तथा परिवारों के द्वारा जान-पहचान पर निर्भर करती थी। यदि किसी कारखाने में किसी व्यक्ति का सम्बन्धी या मित्र नौकरी करता था तो उसे नौकरी मिलने की सम्भावना अधिक रहती थी। सभी के पास ऐसे सामाजिक सम्पर्क नहीं होते थे। इसलिए रोजगार चाहने वाले बहुत से मजदूरों को कई सप्ताह तक प्रतीक्षा करनी पड़ती थी। वे पुलों के नीचे अथवा रैनबसेरों में रातें काटते थे।

2. अनेक उद्योगों में मौसमी कार्य की वजह से मजदूरों को बीच-बीच में बहुत समय तक खाली बैठना पड़ता था। कार्य का मौसम समाप्त हो जाने के पश्चात् मजदूर पुनः बेरोजगार हो जाते थे।

3. लम्बे नेपोलियनी युद्ध के दौरान कीमतों में तीव्र गति से वृद्धि होने पर मजदूरों की आय के वास्तविक मूल्य में भारी कमी आ गयी। अब उन्हें वेतन तो पहले जितना मिलता था लेकिन उससे वे पहले जितनी वस्तुएँ नहीं खरीद सकते थे।

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प्रश्न 4.
19वीं शताब्दी में “औद्योगिक क्रांति, मिश्रित वरदान सिद्ध हुई।” इस कथन पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
19वीं सदी में औद्योगिक क्रांति, मिश्रित वरदान सिद्ध हुई” इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित थे
1. उद्योगों का विकास:
औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप उत्पादन अब कारखानों में होने लगा। कपड़ा बुनने, सूत कातने के लिए कारखाने स्थापित हुए। मशीनों का उपयोग कर कपड़ा, लोहा एवं इस्पात, कोयला, सीमेण्ट, चीनी, कागज, शीशा और अन्य उद्योग स्थापित किए गए, जिनका बड़े स्तर पर उत्पादन हुआ। इस प्रकार औद्योगिक क्रांति से उद्योगों का विकास हुआ।

2. नगरीकरण को बढ़ावा:
औद्योगीकरण ने नगरीकरण को बढ़ावा दिया। औद्योगिक केन्द्र नगर के रूप में परिवर्तित हुए। वहाँ बाहर के लोग आकर बसने लगे, जिससे नगरीय जनसंख्या में वृद्धि हुई।

3. कुटीर उद्योगों की अवनति:
कारखानों की स्थापना होने से परम्परागत कुटीर एवं लघु उद्योगों का पतन हो गया।

4. सामाजिक विभाजन:
भारत में औद्योगीकरण के विकास के साथ ही नए-नए सामाजिक वर्गों का उदय और विकास हुआ। अधिक कल-कारखानों के विकसित होने से समाज में पूँजीपति वर्ग तथा श्रमिक वर्ग का उदय हुआ। निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि उत्पादन अच्छा तथा सस्ता होने लगा लेकिन सामाजिक असमानता में वृद्धि, नगरों की समस्या में वृद्धि, कुटीर एवं लघु उद्योगों की समाप्ति के कारण “औद्योगिक क्रांति मिश्रित वरदान सिद्ध हुई।”

प्रश्न 5.
मशीन आधारित उद्योगों के युग से पहले अन्तर्राष्ट्रीय वस्त्र बाजार में भारतीय वस्त्र उत्पादों की क्या स्थिति थी? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
मशीन आधारित उद्योगों के युग से पहले अन्तर्राष्ट्रीय वस्त्र बाजार में भारत के रेशम व सूती वस्त्र उत्पादों का बोलबाला था। अधिकांश देशों में मोटा कपास पैदा होता था जबकि भारत में उत्पन्न होने वाला कपास बारीक था जिससे अच्छे वस्त्र बनते थे। यहाँ से स्थल व जलमार्गों द्वारा वस्त्र उत्पादों को विदेशों में भेजा जाता था। आर्मीनियन एवं फारसी सौदागर पंजाब से अफगानिस्तान, पूर्वी फारस एवं मध्य एशिया के रास्ते यहाँ से विभिन्न वस्तुएँ लेकर जाते थे।

भारत से बने बारीक कपड़ों के शाल ऊँटों की पीठ पर लादकर पश्चिमोत्तर सीमा से पहाड़ी दरों एवं मरुस्थल के पार ले जाये जाते थे। मुख्य पूर्व औपनिवेशिक बन्दरगाहों से पर्याप्त समुद्री व्यापार संचालित होता था। गुजरात के तट पर स्थित सूरत बन्दरगाह के माध्यम से भारत खाड़ी एवं लाल सागर के बन्दरगाहों से जुड़ा हुआ था। कोरोमण्डल तट पर स्थित मछलीपट्टम व बंगाल में हुगली के माध्यम से दक्षिण-पूर्वी एशियाई बन्दरगाहों के साथ पर्याप्त व्यापार होता था।

प्रश्न 6.
1750 ई. के दशक तक भारतीय सौदागरों के नियन्त्रण वाला व्यापारिक नेटवर्क टूटने लगा था, क्यों?
उत्तर:
1750 ई. के दशक तक भारतीय सौदागरों के नियन्त्रण वाला व्यापारिक नेटवर्क टटने लगा था क्योकि

  1. 1750 के दशक तक यूरोपीय कम्पनियाँ स्थानीय दरबारों से व्यापारिक छूट तथा एकाधिकार प्राप्त कर शक्तिशाली होने लगी थीं।
  2. सूरत व हुगली जैसे बन्दरगाहों, जहाँ से भारतीय सौदागर अपनी व्यापारिक गतिविधियों को संचालित करते थे उनका पतन हो चुका था। इन बन्दरगाहों से होने वाले निर्यात में नाटकीय कमी आई। अब बम्बई व कलकत्ता जैसे नये बन्दरगाह उभरकर सामने आये जो यूरोपीय व्यापारियों के कब्जे में थे।
  3. पुराने बन्दरगाहों के स्थान पर नये बन्दरगाहों का बढ़ता महत्त्व औपनिवेशिक सत्ता की बढ़ती ताकत का संकेत था। नये बन्दरगाहों से होने वाला व्यापार यूरोपीय कम्पनियों के नियन्त्रण में था और यूरोपीय जहाजों के माध्यम से ही होता था।
  4.  निर्यात में कमी आने के कारण भारतीय व्यापारिक घराने दिवालिया होते गये। शेष बचे व्यापारिक घरानों को यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों के नियन्त्रण में कार्य करने के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं बचा था।

प्रश्न 7.
‘आदि-औद्योगीकरण’ क्या है? भारतीय बुनकरों पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने किस प्रकार नियन्त्रण स्थापित किया?
उत्तर:
आदि-औद्योगीकरण का अर्थ-हॉलैण्ड और यूरोप में कारखानों की स्थापना से पहले अन्तर्राष्ट्रीय बाजार के लिए बड़े पैमाने पर औद्योगिक उत्पादन होने लगा था। यह उत्पादन कारखानों में नहीं होता था। ‘आदि’ किसी वस्तु की पहली प्रारम्भिक अवस्था का संकेत है।

अतः अनेक इतिहासकारों ने औद्योगीकरण में इस चरण को आदि-औद्योगीकरण का नाम दिया। आदि-औद्योगीकरण काल में औद्योगिक बाजार के लिए उत्पादन कारखानों की बजाय घरों पर हाथों से निर्मित किये जाते थे। भारतीय बुनकरों पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी का नियन्त्रण-ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारतीय बुनकरों पर निम्न प्रकार से अपना नियन्त्रण स्थापित किया

  1. कम्पनी ने कपड़ा व्यापारियों एवं दलालों को समाप्त करके बुनकरों पर प्रत्यक्ष नियन्त्रण स्थापित किया।
  2. कम्पनी को माल बेचने वाले बुनकरों को अन्य खरीददारों के साथ कारोबार करने पर पाबन्दी लगा दी।
  3. कम्पनी ने बुनकरों पर निगरानी रखने, माल एकत्रित करने एवं कपड़ों की गुणवत्ता जाँचने के लिए वेतनभोगी कर्मचारी नियुक्त किये, जिन्हें गुमाश्ता कहा जाता था।
  4. जिन बुनकरों द्वारा कम्पनी से ऋण लिया जाता था उन्हें अपना बनाया कपड़ा गुमाश्ता को ही देना पड़ता था। उसे वे किसी अन्य व्यापारी को नहीं बेच सकत थे।

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प्रश्न 8.
19वीं सदी की शुरुआत में भारत के कपड़ा निर्यात में क्यों गिरावट आने लगी?
अथवा
19वीं सदी के प्रारम्भ में भारतीय कपड़ा निर्यात बाजार क्यों ठप्प हुआ और स्थानीय बाजार क्यों सिकुड़ने लगे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
19वीं सदी के शुरुआत में भारत के कपड़ा निर्यात में निम्नांकित कारणों से गिरावट आने लगी

  1. इंग्लैण्ड में कपास उद्योग के विकास के साथ वहाँ के स्थानीय व्यापारियों ने आयातित कपड़े पर आयात शुल्क लगाने की माँग करनी प्रारम्भ कर दी जिससे कि मैनचेस्टर में बने कपड़े प्रतिस्पर्धा के बिना इंग्लैण्ड में आराम से बिक सकें।
  2. इंग्लैण्ड के व्यापारियों ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी पर दबाव डाला कि वह ब्रिटिश कपड़ों का भारतीय बाजार में भी विक्रय करें।
  3. 1860 ई. के दशक में भारतीय बुनकरों को अच्छी किस्म की कपास की पर्याप्त आपूर्ति में बाधा का सामना करना पड़ा।
  4. इंग्लैण्ड से भारत में आने वाला कपड़ा सस्ता एवं सुन्दर था। भारतीय वस्त्र उसका मुकाबला नहीं कर सके।

प्रश्न 9.
19वीं सदी में भारतीय बुनकरों को किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ा? संक्षिप्त विवरण दीजिए।
अथवा
ब्रिटिश औद्योगीकरण के कारण भारतीय बुनकरों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ा?
अथवा
19वीं शताब्दी में भारतीय बुनकरों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
18वीं सदी के प्रारम्भ में भारतीय बुनकरों की क्या-क्या समस्याएँ थीं?
अथवा
19वीं शताब्दी में भारतीय बुनकरों की किन्हीं तीन प्रमुख समस्याओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
19वीं सदी में भारतीय बुनकरों को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ा:

  1. बुनकरों का निर्यात बाजार समाप्ति की ओर था तथा स्थानीय बाजार भी सिकुड़ रहा था।
  2. स्थानीय बाजार में मैनचेस्टर से आयातित मालों की अधिकता थी। कम लागत पर मशीनों से निर्मित आयातित कपास उत्पाद इतने सस्ते थे कि बुनकर उनका मुकाबला नहीं कर सकते थे। 1850 के दशक तक देश के अधिकांश बुनकर प्रदेशों में गरीबी व बेरोजगारी फैल गयी थी।
  3. 1860 के दशक में अमेरिका में गृह युद्ध प्रारम्भ होने से वहाँ से कपास का आना बन्द हो गया। इस पर ब्रिटेन भारत से कपास मँगाने लगा जिससे कपास की कीमतें अत्यधिक बढ़ गयीं। भारतीय बुनकरों को कपास मिलना मुश्किल हो गया। उन्हें मनमानी कीमत पर कपास खरीदनी पड़ती थी। इस कारण उनका इस व्यवसाय में बने रहना मुश्किल हो गया।
  4. 19वीं सदी के अन्त में भारतीय कारखानों में उत्पादन होने लगा तथा बाजार मशीनों से निर्मित वस्तुओं से भर गये थे फलस्वरूप भारतीय बुनकर उद्योग पतन के कगार पर पहुँच गया।

प्रश्न 10.
20वीं सदी के प्रथम दशक तक भारत में औद्योगीकरण की व्यवस्था में आये परिवर्तनों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
अथवा
“20वीं शताब्दी के पहले दशक तक भारत में औद्योगीकरण का स्वरूप कई बदलावों की चपेट में आ चुका था” इस कथन का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
20वीं सदी के प्रथम दशक तक भारत में औद्योगीकरण की व्यवस्था कई परिवर्तनों की चपेट में आ चुकी थी। देश में स्वदेशी आन्दोलन को गति मिलने से राष्ट्रवादियों ने लोगों को विदेशी कपड़ों का बहिष्कार करने के लिए प्रेरित किया। औद्योगिक समूह अपने सामूहिक हितों की रक्षा के लिए संगठित हो गये तथा उन्होंने आयात शुल्क बढ़ाने एवं अन्य रियायतें देने के लिए सरकार पर दबाव डाला।

1906 ई. के पश्चात् चीन भेजे जाने वाले भारतीय धागे के निर्यात में भी कमी आना प्रारम्भ हो गया। चीनी बाजार में चीन व जापान के कारखानों से निर्मित सामग्री की पर्याप्तता हो गयी थी परिणामस्वरूप भारत के उद्योगपति धागे की बजाय कपड़े का निर्माण करने लगे। अत: 1900 से 1912 ई. के मध्य सूती कपड़े का उत्पादन दोगुना हो गया। प्रथम विश्व युद्ध के प्रारम्भ में औद्योगिक विकास मन्द रहा लेकिन युद्ध के दौरान औद्योगिक उत्पादन तीव्र गति से बढ़ा।

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प्रश्न 11.
“प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् भारतीय बाजार में मैनचेस्टर की पहले वाली हैसियत नहीं रही।” कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश कारखाने सेना की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए युद्ध सम्बन्धी उत्पादन में व्यस्त थे इसलिए भारत में मैनचेस्टर के माल का आयात कम हो गया। युद्ध के दौरान भारत में औद्योगिक उत्पादन तेजी से बढ़ा। प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् भारतीय बाजार में मैनचेस्टर की पहले वाली स्थिति नहीं रही।

आधुनिकीकरण न कर पाने एवं अमेरिका, जर्मनी व जापान के मुकाबले कमजोर पड़ जाने के कारण ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी। कपास का उत्पादन बहुत कम रह गया था तथा ब्रिटेन से होने वाले सूती कपड़े के निर्यात में भारी गिरावट आ गयी। परिणामस्वरूप ब्रिटेन के उपनिवेशों में विदेशी उत्पादों को हटाकर स्थानीय उद्योगपतियों ने घरेलू बाजारों पर नियन्त्रण स्थापित कर लिया तथा धीरे-धीरे अपनी स्थिति सुदृढ़ कर ली।

प्रश्न 12.
लेबलों ने मैनचेस्टर के कपड़ों के लिए भारत में बाजार तैयार करने में किस प्रकार सहायता पहुँचाई ?
उत्तर:
लेबलों ने मैनचेस्टर के कपड़ों के लिए भारत में बाजार तैयार करने में बहुत अधिक सहायता पहुँचायी। जब मैनचेस्टर के उद्योगपतियों ने भारत में कपड़ा बेचना प्रारम्भ किया तो वे कपड़ों के बंडलों पर लेबल लगाते थे। लेबल से औद्योगीकरण का युग 890 क्रेताओं को कम्पनी का नाम व उत्पादन के स्थान की जानकारी प्राप्त हो जाती थी। लेबल वस्त्रों की गुणवत्ता का प्रतीक भी था। जब किसी लेबल पर मोटे अक्षरों में ‘मेड इन मैनचेस्टर’ लिखा दिखाई देता था तो क्रेता को कपड़े खरीदने में किसी भी प्रकार का कोई संकोच नहीं होता था।

लेबलों पर केवल शब्द एवं अक्षर नहीं होते थे, बल्कि उन पर सुन्दर तस्वीरें भी बनी होती थीं। इन लेबलों पर प्रायः भारतीय देवी-देवताओं की तस्वीरें होती थीं। इन तस्वीरों के माध्यम से वस्त्र निर्माता यह दर्शाना चाहते थे कि ईश्वर की भी यह इच्छा है कि लोग उन वस्तुओं को खरीदें। लेबलों पर कृष्ण या सरस्वती की तस्वीर बनी होने का लाभ यह होता था कि विदेशों में बनी वस्तुएँ भी भारतीयों को जानी-पहचानी सी लगती थीं।

प्रश्न 14.
उत्पादों की बिक्री बढ़ाने में कैलेण्डर किस प्रकार सहायक थे?
उत्तर:
अखबार एवं पत्र-पत्रिकाओं को तो शिक्षित लोग ही समझ सकते थे लेकिन कैलेण्डर निरक्षर लोगों की समझ में भी आ जाते थे। चाय की दुकानों, कार्यालयों एवं मध्यवर्गीय लोगों के घरों में ये कैलेण्डर लटके रहते थे। इन कैलेण्डरों को लगाने वाले लोग विज्ञापनों को भी प्रतिदिन पूरे वर्षभर देखते रहते थे। इन कैलेण्डरों में भी नये उत्पादों को बेचने के लिए देवताओं के चित्र अंकित होते थे जिस कारण लोग इन उत्पादों को खरीदने को प्रेरित हो जाते थे।

इसके अतिरिक्त महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों, सम्राटों एवं नवाबों के चित्रों का भी कैलेण्डरों में भरपूर प्रयोग होता था। इनका सन्देश प्रायः यह होता था कि यदि आप इस शाही व्यक्ति का सम्मान करते हैं तो इस उत्पाद का भी सम्मान कीजिए, यदि इस उत्पाद का राजा प्रयोग करते हैं अथवा उसे शाही निर्देश से बनाया गया है तो उसकी गुणवत्ता पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता था। इस प्रकार उत्पादों की बिक्री बढ़ाने में कैलेण्डर महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान करते थे।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
औद्योगीकरण से आप क्या समझते हैं? इसका प्रारम्भ इंग्लैण्ड से ही क्यों हुआ? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
औद्योगिक क्रांति के तीन कारक लिखिए।
उत्तर:
औद्योगीकरण यानी उद्योगों की वृहत रूप से स्थापना उस औद्योगिक क्रांति की देन है जिसमें वस्तुओं का उत्पादन मशीनों द्वारा किया जाता है, मानव श्रम द्वारा नहीं। उत्पादन बड़े स्तर पर होने के कारण उसकी खपत के लिए बड़े बाजार की आवश्यकता होती है। औद्योगीकरण का प्रारंभ इंग्लैण्ड से ही होने के निम्नलिखित कारण थे:
1. इंग्लैण्ड की भौगोलिक स्थिति:
इंग्लैण्ड की भौगोलिक स्थिति उद्योग-धंधों के विकास के लिए अनुकूल थी। इंग्लैण्ड बाहरी आक्रमणों से सुरक्षित था तथा इसके पास अच्छे बंदरगाह थे, जो औद्योगीकरण के आवश्यक तत्व हैं।

2. खनिज पदार्थों की उपलब्धता:
इंग्लैण्ड के पास प्राकृतिक साधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे। इंग्लैण्ड के उत्तरी और पश्चिमी भाग में लोहे और कोयले की खाने उपलब्ध थीं, जिनसे आवश्यक सामग्री आसानी से उपलब्ध हो जाती थी।

3. नयी-नयी मशीनों का आविष्कार:
औद्योगिक क्रांति के लिए इंग्लैण्ड के वैज्ञानिकों ने नयी-नयी मशीनों का आविष्कार किया, जिनसे वस्त्र उद्योग, परिवहन, संचार व्यवस्था एवं खनन उद्योगों की प्रगति हुई।

4. मजदूरों की उपलब्धता:
बाड़ाबंदी कानून से छोटे किसान अपनी भूमि से बेदखल हो गए। अब उनके सामने रोजी-रोटी का प्रश्न उठ खड़ा हुआ। ये लोग कारखानों में काम करने के लिए विवश हो गए। इसलिए इंग्लैण्ड में कल-कारखानों के लिए सस्ते मजदूर सुलभ हो गए।

5. परिवहन की सुविधा:
कारखानों में उत्पादित वस्तुओं तथा कारखानों तक कच्चा माल पहुँचाने के लिए आवागमन के साधनों का विकास किया गया। सड़कों एवं जहाजरानी का विकास हुआ। बाद में रेलवे का भी विकास हुआ, जिससे औद्योगीकरण में सुविधा आई। इस प्रकार इंग्लैण्ड में अन्य यूरोपीय देशों की तुलना में ऐसी परिस्थितियाँ विद्यमान थीं जिनसे औद्योगिक क्रांति हुई।

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प्रश्न 2.
उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोप में औद्योगीकरण की प्रक्रिया की प्रमुख विशेषताओं को विस्तार से बताइए। उत्तर-उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोप में औद्योगीकरण की प्रक्रिया की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. मुख्य उद्योग:
ब्रिटेन के प्रमुख उद्योगों में सूती उद्योग एवं कपास उद्योग दोनों सबसे अधिक विकसित उद्योग थे। कपास उद्योग सन् 1840 ई. तक औद्योगीकरण के प्रथम चरण में सबसे बड़ा उद्योग बन चुका था। इसके पश्चात् लोहा इस्पात उद्योग आगे निकल गया।

1840 ई. के दशक में इंग्लैण्ड में तथा 1860 ई. के दशक में उसके उपनिवेशों में रेलवे का विस्तार तीव्र गति से होने लगा। रेलवे के प्रसार के कारण लोहे व स्टील की माँग तेज गति से बढ़ी। सन् 1873 ई. तक ब्रिटेन के लोहा और स्टील निर्यात का मूल्य लगभग 7.7 करोड़ पौंड हो गया। यह राशि इंग्लैण्ड के कपास निर्यात के मूल्य से दोगुनी थी।

2. परम्परागत उद्योगों का आधिपत्य:
नये उद्योग परम्परागत उद्योगों को इतनी आसानी से हाशिये पर नहीं पहुँचा सकते थे। 19वीं शताब्दी के अन्त में प्रौद्योगिकीय रूप से विकसित औद्योगिक क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों की संख्या कुल श्रमिकों की 20 प्रतिशत से अधिक नहीं थी। कपड़ा उद्योग एक गतिशील उद्योग था लेकिन इसके उत्पादन का एक बड़ा भाग कारखानों में न होकर घरेलू इकाइयों में बनता था।

3. विकास के लिए आधार:
यद्यपि परम्परागत उद्योगों में परिवर्तन की गति माप से संचालित होने वाले सूती व धातु उद्योगों से निश्चित नहीं हो पा रही थी लेकिन ये परम्परागत उद्योगों पूरी तरह ठहराव की अवस्था में भी नहीं थे। खाद्य प्रसंस्करण, निर्माण, पॉटरी, काँच के काम, चर्म शोधन, फर्नीचर तथा औजारों के उत्पादन जैसे अनेक गैर-मशीनी क्षेत्र में तीव्र गति से विकास का कारण साधारण व छोटे-छोटे आविष्कारों का अधिक होना था।

4. प्रौद्योगिकीय बदलावों की धीमी गति:
ब्रिटेन में कई प्रौद्योगिकीय बदलाव हुए परन्तु उनकी गति बहुत धीमी थी। औद्योगिक भूदृश्य पर ये परिवर्तन तीव्र गति से नहीं फैले। नवीन प्रौद्योगिकी बहुत महँगी थी जिस कारण सौदागर व व्यापारी इसके प्रयोग के प्रश्न पर फूंक-फूंककर कदम रखते थे। मशीनें प्रायः खराब हो जाती थीं तो उनकी मरम्म्त पर बहुत अधिक व्यय आता था। नवीन मशीनें उनके आविष्कारों एवं निर्माताओं के दावे के अनुरूप उतनी अच्छी भी नहीं थीं।

प्रश्न 3.
“बाजार में श्रम की अधिकता से मजदूरों की जिंदगी भी प्रभावित हुई।” इस कथन की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
अथवा
19वीं शताब्दी में बाजार में कामगारों की अधिकता ने ब्रिटेन में कामगारों की जिन्दगी को किस प्रकार प्रभावित किया? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
19वीं शताब्दी में बाजार में श्रम की अधिकता ने ब्रिटेन के कामगारों की जिंदगी को निम्न प्रकार से प्रभावित किया
1. माँग की तुलना में श्रमिकों की अधिकता:
19वीं शताब्दी में बाजार में आवश्यकता से अधिक श्रमिक उपलब्ध थे इससे श्रमिकों के जीवन पर बहुत अधिक बुरा प्रभाव पड़ा। काम की कमी के कारण अधिकांश श्रमिकों को काम नहीं मिलता था। अतः वे कम वेतन पर काम करने को तैयार हो जाते थे। कुछ लोग वापस अपने गाँव लौट जाते थे।

2. मौसमी काम:
कई उद्योगों में वर्ष भर श्रमिकों को काम नहीं मिल पाता था। अनेक उद्योगों में मौसमी काम की वजह से श्रमिकों को बीच-बीच में बहुत समय तक खाली बैठना पड़ता था। जब काम का मौसम समाप्त हो जाता था तो श्रमिक पुनः सड़क पर आ जाते थे। कुछ श्रमिक सर्दियों के पश्चात् गाँव चले जाते थे जहाँ हर समय काम निकलने लगता था। लेकिन अधिकांश श्रमिक शहरों में ही रहकर छोटा-मोटा कोई काम ढूँढने की कोशिश करते थे जो उन्नीसवीं सदी के मध्य तक कोई आसान काम नहीं था।

3. कम वास्तविक वेतन:
यद्यपि 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में श्रमिकों के वेतन में कुछ वृद्धि की गयी लेकिन इससे श्रमिकों की स्थिति में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ। कीमतों में वृद्धि के कारण वेतन में हुई वृद्धि निरर्थक हो गयी। श्रमिकों की औसत दैनिक आय का निर्धारण इस बात से होता था कि उन्होंने कितने दिन काम किया है।

4. निर्धनता तथा बेरोजगारी:
19वीं शताब्दी के मध्य में सबसे अच्छे समय में भी लगभग 10 प्रतिशत शहरी जनसंख्या अति निर्धन थी। सन् 1830 ई. के दशक में आयी आर्थिक मंदी में बेरोजगारों की संख्या बढ़कर विभिन्न क्षेत्रों में लगभग 35 से 75 प्रतिशत तक पहुँच गयी थी।

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प्रश्न 4.
भारत के प्रारंभिक उद्यमियों की उद्योगों के विकास में भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत के प्रारंभिक उद्यमियों में द्वारकानाथ टैगोर, डिनशॉ पेटिट, जमशेदजी नुसरवानजी टाटा, तथा सेठ हुकुमचंद का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। 18वीं सदी के अंत में अंग्रेजों ने भारतीय अफीम का चीन को निर्यात शुरू कर दिया था। बदले में अंग्रेज इंग्लैंड ले जाने के लिए चीन से चाय खरीदते थे। इस व्यापार में बहुत-से भारतीय कारोबारियों ने सहायक के तौर पर प्रवेश किया। वे पैसा उपलब्ध कराना, आपूर्ति सुनिश्चित करना तथा माल को जहाजों में लदवाकर औद्योगीकरण का युग 1 रवाना करवाने जैसे कार्य करते थे।

उनमें से कुछ व्यवसायी पैसा कमाकर भारत में औद्योगिक उद्यम स्थापित करने की इच्छा रखते थे। बंगाल में द्वारकानाथ टैगोर ने चीन में व्यापार कर खूब पैसा कमाया तथा उद्योगों में निवेश करने लगे। उन्होंने 18301840 के दशक के दौरान 6 संयुक्त उद्यम कंपनियाँ लगाने में सफलता हासिल की। हालाँकि 1840 के दशक में आए व्यापक व्यावसायिक संकटों में बाकी व्यवसायियों की तरह उनके उद्यम भी डूब गए। 19वीं सदी में चीन के साथ व्यापार करने वाले बहुत-से व्यवसायी सफल उद्योगपति बनने में सफल रहे।

बंबई में डिनशॉ पेटिट तथा जमशेदजी नुसरवानजी टाटा (जिन्होंने बाद में देश में विशाल औद्योगिक साम्राज्य स्थापित किया) जैसे पारसियों ने चीन को आंशिक रूप से निर्यात कर तथा इंग्लैंड को कच्ची कपास आंशिक रूप से निर्यात कर पर्याप्त पैसा कमाया। मारवाड़ी व्यवसायी सेठ हुकुमचंद (1917 में कलकत्ता में देश की पहली जूट मिल के संस्थापक) ने भी चीन के साथ व्यापार किया। प्रसिद्ध उद्योगपति जी.डी.बिड़ला के पिता व दादा ने भी यही काम किया।

प्रश्न 5.
ब्रिटिश निर्माताओं ने विज्ञापनों के माध्यम से भारतीय बाजार पर किस प्रकार नियन्त्रण स्थापित करने का प्रयास किया? उदाहरण देकर समझाइए।
अथवा
उन्नीसवीं शताब्दी में उत्पादकों द्वारा बाजार के फैलाव के लिए प्रयुक्त विधियों को विस्तार से बताइए।
अथवा
भारतीय एवं ब्रिटिश निर्माताओं ने नये उपभोक्ता पैदा करने के लिए किन तरीकों को अपनाया ? लिखिए।
उत्तर:
उन्नीसवीं शताब्दी में ब्रिटिश उत्पादकों द्वारा बाजार के फैलाव के लिए प्रयुक्त विधियाँ निम्नलिखित हैं–
1. विज्ञापन:
बाजार के फैलाव व नये उपभोक्ताओं को अपने माल से जोड़ने के लिए उत्पादक, समाचार-पत्र एवं पत्रिकाओं, होर्डिंग्स आदि के माध्यम से विज्ञापन देते थे। विज्ञापनों ने विभिन्न उत्पादनों के बाजार को विस्तार -प्रदान करने एवं नयी उपभोक्ता संस्कृति का निर्माण करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। विज्ञापनों ने उत्पादों को अति आवश्यक एवं वांछनीय बना दिया था।

2. लेबल लगाना:
अपने उत्पादों के बाजार को फैलाने के लिए उत्पादक लेबल लगाने की विधि का प्रयोग करते थे। जब मैनचेस्टर के उद्योगपतियों ने भारत में कपड़ा बेचना प्रारम्भ किया तो वे कपड़ों के बण्डलों पर लेबल लगाते थे। लेबल लगाने का यह लाभ होता था कि क्रेताओं को निर्माता कम्पनी का नाम व उत्पादन के स्थान के बारे में जानकारी प्राप्त हो जाती थी। लेबल ही वस्तुओं की गुणवत्ता का प्रतीक भी होता था। जब किसी वस्तु के लेबल पर मोटे अक्षरों में ‘मेड इन मैनचेस्टर’ लिखा दिखाई देता तो खरीददारों को कपड़ा खरीदने में किसी भी प्रकार का कोई डर नहीं रहता था। लेबलों पर केवल शब्द व अक्षर ही नहीं होते थे बल्कि उन पर मुख्यतः भारतीय देवी-देवताओं की तस्वीरें बनी होती थीं।

3. कैलेण्डर:
उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में निर्माता उत्पादों को बेचने के लिए कैलेण्डर अपनाने लगे थे। समाचार-पत्रों एवं पत्रिकाओं को तो शिक्षित लोग ही समझ सकते थे लेकिन कैलेण्डर निरक्षरों की समझ में भी आ जाते थे। उन्हें पान की दुकान, दफ्तरों व मध्यमवर्गीय घरों में लटकाया जाता था। जो लोग इन कैलेण्डरों को लगाते थे वे विज्ञापनों को भी सम्पूर्ण वर्ष देखते थे। इन कैलेण्डरों में भी नये उत्पादों को बेचने के लिए देवताओं के चित्र प्रयुक्त किये जाते थे।

4. महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों के चित्र:
देवी-देवताओं के चित्रों के साथ-साथ महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों, सम्राटों व नबावों के चित्र भी विज्ञापनों व कैलेण्डरों में बहुत अधिक प्रयोग किये जाते थे। इनका प्रायः यह संदेश होता था कि यदि आप इस शाही व्यक्ति का सम्मान करते हैं तो इस उत्पाद का भी सम्मान कीजिए। यदि इस उत्पाद को महत्त्वपूर्ण व्यक्ति, सम्राट या नबाव प्रयोग करते हैं तो इसकी गुणवत्ता पर प्रश्न-चिह्न नहीं लगाया जा सकता था।

JAC Class 10 Social Science Important Questions

JAC Board Class 10th Social Science Important Questions History Chapter 3 भूमंडलीकृत विश्व का बनना

वस्तुनिष्ठ प्रश्न 

प्रश्न 1.
वे मार्ग जो न केवल एशिया के विशाल क्षेत्रों को एक दूसरे से जोड़ने का कार्य करते थे बल्कि एशिया को यूरोप और उत्तरी अफ्रीका से भी जोड़ते थे। कहलाते थे
(क) रेशम मार्ग
(ख) राजमार्ग
(ग) स्वर्णिम चतुर्भुज मार्ग
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) रेशम मार्ग

2. अठारहवीं शताब्दी में विश्व व्यापार का सबसे बड़ा केन्द्र था
(क) यूरोप
(ख) अमेरिका
(ग) अफ्रीका
(घ) ऑस्ट्रेलिया
उत्तर:
(क) यूरोप

3. जमीन को उपजाऊ बनाकर गेहूँ और कपास की खेती हेतु ‘केनाल कॉलोनी’ (नहर बस्ती) निम्न में से कहाँ बसायी
गयी?
(क) हरियाणा
(ख) उत्तर प्रदेश
(ग) गुजरात
(घ) पंजाब
उत्तर:
(घ) पंजाब

4. सन् 1885 में यूरोपीय देशों ने मानचित्र पर लकीरें खींचकर किस महाद्वीप को आपस में बाँट लिया?
(क) अमेरिका
(ख) ऑस्ट्रेलिया
(ग) अफ्रीका
(घ) एशिया
उत्तर:
(ग) अफ्रीका

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5. रिंडरपेस्ट नामक पशुओं की बीमारी निम्न में से किस महाद्वीप में फैली थी?
(क) यूरोप
(ख) एशिया
(ग) अफ्रीका
(घ) अमेरिका
उत्तर:
(ग) अफ्रीका

6. भारत से विदेशों को जाने वाले अनुबन्धित श्रमिक कहलाते थे
(क) गिरमिटिया
(ख) पूर्णकालिक श्रमिक
(ग) सफेदिया
(घ) एग्रीमेन्ट श्रमिक
उत्तर:
(क) गिरमिटिया

7. महामन्दी का प्रारम्भ किस वर्ष हुआ?
(क) 1919 में
(ख) 1925 में
(ग) 1929 में
(घ) 1931 में
उत्तर:
(ग) 1929 में

8. जी-77 किस प्रकार के देशों का समूह है
(क) विकासशील देशों का
(ख) विकसित देशों का
(ग) अविकसित देशों का
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(क) विकासशील देशों का

रिक्त स्थान पूर्ति सम्बन्धी प्रश्न

निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:
1. चेचक जैसे कीटाणु ………. सैनिकों के सबसे बड़े हथियार थे।
उत्तर:
स्पेनिश,

2. अठारहवीं सदी में मक्का के आयात पर लगी पाबंदी को ………. के नाम से जाना जाता है।
उत्तर:
कॉर्न लॉ,

3. ………. तक एक वैश्विक कृषि अर्थव्यवस्था सामने आ चुकी थी।
उत्तर:
1890,

4. 1890 ई. में अफ्रीका में ………. नामक बीमारी बहुत तेजी से फैल गई।
उत्तर:
रिंडरपेस्ट,

5. प्रथम विश्व युद्ध आधुनिक ………. युद्ध था।
उत्तर:
औद्योगिक।

अति लयूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. भूमण्डलीय विश्व के बनने की प्रक्रिया में कौन-कौन से तत्व सहायक हुए ?
उत्तर- भूमण्डलीय विश्व के बनने की प्रक्रिया में निम्नलिखित तत्व सहायक हुए-(i) व्यापार, (ii) काम की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना, (iii) पूँजी, (iv) अनेक वस्तुओं का वैश्विक आदान-प्रदान।

प्रश्न 2.
रेशम मार्ग क्या थे?
उत्तर:
ये ऐसे मार्ग थे जो एशिया के विशाल भूभागों को परस्पर जोड़ने के साथ ही यूरोप एवं उत्तरी अफ्रीका से जा मिलते थे। ऐसे मार्ग ईसा पूर्व के समय में ही सामने आ चुके थे और लगभग पन्द्रहवीं शताब्दी तक अस्तित्व में थे।

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प्रश्न 3.
पाँच सौ वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों के पास कौन-कौन से खाद्य पदार्थ नहीं थे?
उत्तर:
पाँच सौ वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों के पास आलू, सोया, मूँगफली, मक्का, टमाटर, मिच्च, शकरकन्द आदि खाद्य पदार्थ नहीं थे।

प्रश्न 4.
अमेरिका का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका एवं कैरीबियन द्वीप समूह को सम्मिलित रूप से अमेरिका कहा जाता है।

प्रश्न 5.
किस्टोफर कोलम्बस गलती से किस अज्ञात मह्हद्वीप में पहुँच गया ?
उत्तर:
क्रिस्टोफर कोलम्बस गलती से अमेरिका महाद्वीप में पहतुच गया था।

प्रश्न 6.
1840 के दशक में किस देश में आलू की फसल खराब होने पर लाखों लोग भुखमरी के कारण मौत के शिकार हो गए ?
उत्तर:
1840 के दशक में आयरलैण्ड में आलू की फसल खराब होने पर लाखों लोग भुखमरी के कारण मौत के शिकार हो गये।

प्रश्न 7.
एल डोराडो शहर को यूरोप के लोग किस नाम से सम्बोधित करते थे?
उत्तर:
एल डोराड्डो शहर को यूरोप के लोग सोने का इहर के नाम से सम्बोधित करते थे।

प्रश्न 8.
जीतने के लिए स्पेनिश सेनाओं द्वारा प्रयोग किया गया सबसे शक्तिशाली हथियार कौन-सा था?
उत्तर:
जीतने के लिए स्पेनिश सेनाओं द्वारा प्रयोग किया गया सबसे शक्तिशाली हथियार चेचक जैसे कीटाणु घो।

प्रश्न 9.
कौन सी बीमारी अमेरिका में स्पेनिश सैनिकों द्वारा फैलनी थी?
उत्तर:
चेचक अमेरिका में स्पेनिश सैनिकों द्वारा फैली थी।

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प्रश्न 10.
उस कानून का नाम बताइए जिसके अन्तर्गत ब्रिटिश सरकार ने मक्का के आयात पर पाबन्दी लगा दी थी ?
उत्तर:
कॉर्न लों कानून के अन्तांत ब्रिटिश सरकार ने मक्का पर पाबन्दी लगा दी थी।

प्रश्न 11.
कोर्न लॉं किस देश में लागू किया गया?
उत्तर:
कॉन लां ब्रिटेन में लागू किया गया।

प्रश्न 12.
19 वी शताब्दी में यूरोप से लगभग पाँच करोड़ लोग किन-किन महाद्वीपों में जाकर बसे ?
उत्तर:
19वी शताब्दी में यूरोप से लगभग पाँच करोड़ लोग अमेरिका एवं अस्ट्रेलिया महद्वीप में जाकर बसे।

प्रश्न 13.
उस तकनोक का नाम बताइए जिससे शीघ खराब होने वाली वस्तुओं को भी लम्बी बात्राओं पर से जाया जा सकता है?
उत्तर:
जहाजों में रेफ्रिजरेशन की तकनीक से शीभ्र खराब होने वाली वस्तुओं को भी लम्बी यात्राओं पर ले जाया जा सकता है।

प्रश्न 14.
अधिकांश अफ्रीकी देशों की सीमाएँ बिल्कुल सीधी लकीर जैसी क्यों है ?
उत्तर:
क्योंकि यूरोप के ताकतवर देशों ने 1885 ई., में बर्लिन में एक बैउक कर अफ्रीका के नक्शे पर लकीरें र्ष्रीचकर आपस में बाँट लिया था।

प्रश्न 15.
किस बीमारी से 1890 के दशक में अफ्रीका के लोगों की आजीचिका और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ा?
उत्तर:
रिंडरपेस्ट नामक बीमारी ने 1890 के दशक में अफ्रीका के लोगों की आजीविका और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर गहरा असर द्वाला।

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प्रश्न 16.
भारत से अनुबन्धित श्रमिक रोजगार के लिए कहाँ जाते थे?
अथवा
भारत से अनुबन्धित श्रमिकों को मुख्य रूप से कहाँ ले जाया जाता धा?
उत्तर:
भारत के अनुबन्धित भ्रमिक रोजगार के लिए कैरीबियाई द्वीप समूह (त्रिनिदाद, गुयाना और सूरीनाम) मॉरीशस ख फिजी, सीलोन व मलाया आदि देशों में जाते थे।

प्रश्न 17.
होसे से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
त्रिनिदाद में मुहर्रम के वार्षिक जुलूस को एक विशाल उत्सवी मेले का रूप दे दिया गया। इसमें सभी धर्मों व नस्लों के मजदूर हिस्सा लेते थे। इस उत्सव को इमाम हुसैन के नाम पर होसे नाम दिया गया।

प्रश्न 18.
चटनी म्यूजिक कहाँ लोकप्रिय था?
उत्तर:
चटनी म्यूजिक त्रिनिदाद एवं गुयाना में लोकप्रिय था।

प्रश्न 19.
भारत से गये अनुर्वन्धित श्रमिकों के एक वंशज का नाम बताइए।
उत्तर:
साहित्यकार वी. एस. नायपॉल नोबेल पुरस्कार विजेता।

प्रश्न 20.
भारत में अनुबन्धित श्रमिक सम्बन्धी प्राव थान को कब समाप्त किया गया था?
उत्तर:
भारत में अनुबन्धत श्रमिक सम्बन्धी प्रावधानों को सन् 1921 ई. में समाप्त किया गया था।

प्रश्न 21.
प्रथम विश्वयुद्ध में मित्र राष्ट्रों में कौन-कौन से देश सम्मिलित थे?
उत्तर:
प्रथम विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रों में ब्रिटेन, फ्रांस वर्स सम्मिलित थे।

प्रश्न 22.
प्रथम विश्वयुद्ध में केन्द्रीय शक्तियों में कौन-कौन देश सम्मिलित थे?
उत्तर:
प्रथम विश्व युद्ध में केन्द्रीय शक्तियों में जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी व ऑटोमन तुर्की सम्मिलित थे।

प्रश्न 23.
हेनरी फॉर्ड कौन था?
उत्तर:
हेनरी फॉर्ड विश्वप्रसिद्ध कार फोर्ड का निर्माता था।

प्रश्न 24.
आर्थिक महामन्दी के समय महात्मा गाँधी ने कौन-सा आन्दोलन प्रारम्भ किया था?
उत्तर:
सविनय अवज्ञा आन्दोलन।

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प्रश्न 25.
ऐसी दो संस्थाओं के नाम बताइए जो ब्रेटन वुड्स समझौते के तहत स्थापित की गयीं।
उत्तर:

  1. अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, तथा
  2. विश्व बैंक।

प्रश्न 26.
ब्रेटन वुड्स की जुड़वाँ सन्तान किसे कहा जाता है?
उत्तर:
विश्व बैंक एवं अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष को ब्रेटन वुड्स की जुड़वाँ सन्तान कहा जाता है।

प्रश्न 27.
विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने औपचारिक रूप से कार्य करना कब शुरू किया ?
उत्तर:
विश्व बैंक एवं अन्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने सन् 1947 से कार्य करना प्रारम्भ किया।

प्रश्न 28.
जी- 77 की स्थापना क्यों की गई?
उत्तर:
पचास और साठ के दशक में विकासशील देशों को पश्चिमी देशों की अर्थव्यवस्थाओं की प्रगति से कोई लाभ नहीं मिल रहा था इसलिए देशों ने अपना एक समूह बना लिया जो जी- 77 के नाम से जाना जाता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA1)

प्रश्न 1.
“हमारे खाद्य पदार्थ दूर देशों के मध्य सांस्कृतिक आदान-प्रदान के कई उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।” कथन की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
अथवा
“खाद्य पदार्थों ने दूर देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया।” इस कथन को तीन उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जब भी व्यापारी एवं यात्री किसी नये देश में जाते थे तो वहाँ जाने-अनजाने नई फसलों के बीज बो आते थे। उदाहरणस्वरूप; नूडल्स चीन से पश्चिमी देशों में पहुँचे और वहाँ उन्हीं से स्पैघेत्ती का जन्म हुआ। यह भी सम्भव है कि पास्ता अरब यात्रियों के साथ पाँचवीं शताब्दी में सिसली (इटली) पहुँचा। आलू, सोयाबीन, टमाटर, मूंगफली, मक्का, मिर्च व शकरकन्द आदि खाद्य पदार्थ कोलम्बस द्वारा अमेरिका की खोज के पश्चात् अमेरिका से यूरोप व एशिया के देशों में पहुँचे।

प्रश्न 2.
“आधुनिक काल से पूर्व का विश्व 16वीं शताब्दी में तीव्र गति से सिकुड़ता गया ?” कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
निम्न तथ्य इस कथन की पुष्टि करते हैं

  1. 16वीं शताब्दी में यूरोपीय नाविकों ने एशिया के लिए समुद्री मार्ग खोज लिया था तथा पश्चिमी सागर को पार करके अमेरिका तक पहुँच गये थे।
  2. 16वीं शताब्दी के मध्य तक आते-आते पुर्तगाली एवं स्पेनिश सेनाओं की विजयों का क्रम प्रारम्भ हो चुका था तथा उन्होंने अमेरिका में उपनिवेश बनाना शुरू कर दिया था।

प्रश्न 3.
अठारहवीं सदी के आखिरी दशक में ब्रिटेन की तेजी से बढ़ती हुई आबादी के किन्हीं तीन प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अठारहवीं सदी के आखिरी दशक में ब्रिटेन की तेजी से बढ़ती हुई आबादी के तीन प्रभाव निम्नलिखित हैं

  1. देश में भोजन की माँग में वृद्धि हो गई।
  2. शहरों के विस्तार होने तथा उद्योगों के बढ़ने से कृषि उत्पादों की माँग में भी वृद्धि हो गई।
  3. माँग में वृद्धि होने से कृषि उत्पाद महँगे हो गए।

प्रश्न 4. कॉर्न लॉ क्या था? इसे फौरन क्यों समाप्त करना पड़ा?
अथवा
कॉर्न लॉ क्या था? उसे क्यों समाप्त किया गया? उसकी समाप्ति के क्या परिणाम हुए?
उत्तर:
जिन कानूनों के तहत ब्रिटिश सरकार ने मक्का के आयात पर पाबन्दी लगाई थी उन्हें कॉर्न लॉ कहा जाता था। बड़े भू-स्वामियों के दबाव में सरकार ने मक्का के आयात पर पाबन्दी लगायी थी। कॉर्न लॉ के लागू हो जाने के पश्चात् खाद्य पदार्थों की ऊँची कीमतों से परेशान होकर उपभोक्ताओं और शहरी निवासियों ने ब्रिटिश सरकार को कॉर्न लॉ को समाप्त करने के लिए मजबूर कर दिया। कॉर्न लॉ के समाप्त होने पर खाद्य पदार्थों की कीमतों में कमी आ गई तथा ब्रिटेन की खाद्य समस्या दूर हो गई।

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प्रश्न 5.
केनाल कॉलोनी से क्या अभिप्राय है?
अथवा
नहर बस्ती किसे कहा जाता था?
उत्तर:
19वीं शताब्दी में ब्रिटिश भारतीय सरकार ने रेगिस्तानी परती जमीनों को उपजाऊ बनाने के लिए नहरों का जाल बिछा दिया जिससे कि निर्यात के लिए गेहूँ और कपास की खेती की जा सके। नई नहरों की सिंचाई वाले क्षेत्रों में पंजाब के अन्य स्थानों से लोगों को लाकर बसाया गया। उनकी बस्तियों को केनाल कॉलोनी अथवा नहर बस्ती कहा जाता था।

प्रश्न 6.
अफ्रीका में 1890 ई. के दशक में फैली रिंडरपेस्ट (मवेशी प्लेग) नामक बीमारी के प्रभावों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
अथवा
रिंडरपेस्ट क्या है? इसका पशुओं पर क्या प्रभाव पड़ा?
अथवा
रिंडरपेस्ट अथवा मवेशी प्लेग के अफ्रीका पर क्या-क्या प्रभाव पड़े?
अथवा
‘रिंडरपेस्ट’ का 1890 के दशक में अफ्रीका के लोगों की आजीविका और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर पड़े प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अफ्रीका में 1890 ई. के दशक में पशुओं में रिंडरपेस्ट नामक बीमारी बहुत तेजी से फैल गई। अफ्रीकी लोग अपनी आजीविका के लिए पशुओं पर ही निर्भर थे जिससे लोगों की आजीविका और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा। रिंडरपेस्ट के कारण लगभग 90 प्रतिशत मवेशियों की मौत से अफ्रीका के निवासियों की आजीविका का मुख्य साधन समाप्त हो गया जिसके परिणामस्वरूप सम्पूर्ण अफ्रीका धीरे-धीरे यूरोपीय उपनिवेशकारों का गुलाम बनकर रह गया।

प्रश्न 7.
भर्ती करने वाले एजेंटों द्वारा अनुबन्धित श्रमिकों का किस प्रकार शोषण होता था?
उत्तर:
श्रमिकों की भर्ती का काम मालिकों के एजेंटों द्वारा किया जाता था। इस कार्य हेतु एजेंटों को कमीशन प्राप्त होता था। एजेंट श्रमिकों को फुसलाने के लिए झूठी जानकारियाँ प्रदान करते थे। उन्हें कहाँ जाना है, यात्रा के साधन क्या होंगे? क्या काम करना और नयी जगह पर काम व जीवन के हालात कैसे होंगे, इस बारे में उन्हें सही जानकारी नहीं दी जाती थी। कभी-कभी तो एजेंट जाने के लिए सहमत न होने वाले श्रमिकों का अपहरण तक कर लेते थे।

प्रश्न 8.
अधिकांश अनुबन्धित श्रमिक अनुबन्ध समाप्त हो जाने के बाद भी वापस नहीं लौटे। इसकी कैरीबियाई संस्कृति पर क्या प्रभाव पड़ा ?
अथवा
“गिरमिटिया मजदूरों ने कैरीबियन क्षेत्र में एक नई संस्कृति को जन्म दिया।” इस कथन को तीन उदाहरणों सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अनुबन्धित श्रमिकों ने अपनी पुरानी और नयी संस्कृतियों का सम्मिश्रण करते हुए व्यक्तिगत और सामूहिक आत्मविश्वास के नये रूप खोज लिए। त्रिनिदाद में मुहर्रम के वार्षिक जुलूस को होसे नामक विशाल मेले का रूप दे दिया गया। इसी प्रकार ‘रास्ताफारियानवाद’ नामक विद्रोही धर्म की भी भारतीय अप्रवासियों एवं कैरीबियाई द्वीप समूह के बीच इन सम्बन्धों की एक झलक देखी जा सकती है। त्रिनिदाद और गुयाना में प्रसिद्ध ‘चटनी म्यूजिक’ भी भारतीय अप्रवासियों के वहाँ पहुँचने के बाद सामने आयी रचनात्मक अभिव्यक्तियों का ही उदाहरण है।

प्रश्न 9.
उन्नीसवीं सदी की अनुबन्ध व्यवस्था को ‘नयी दास प्रथा’ का नाम क्यों दिया गया?
उत्तर:
क्योंकि अप्रवासी अनुबन्धित श्रमिकों को बहुत कम कानूनी अधिकार दिये गये थे। उनको रहने व कार्य करने की कठोर परिस्थितियों का सामना करना पड़ता था। वे वहाँ से भयभीत होकर यदि जंगलों में भाग जाते तो उन्हें पकड़कर कठोर दण्ड दिया जाता था। यही कारण है कि उन्नीसवीं सदी की अनुबन्ध व्यवस्था को नई दास प्रथा का नाम दिया गया।

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प्रश्न 10.
उन्नीसवीं सदी में भारत के कपड़ा निर्यात में गिरावट आने के कारणों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
उन्नीसवीं सदी के मध्य में भारत में सूती कपड़ा उद्योग में गिरावट के लिए उत्तरदायी किन्हीं पाँच कारकों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में भारत के कपड़ा निर्यात में कमी क्यों आने लगी? किन्हीं तीन कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उन्नीसवीं शताब्दी की शुरुआत से ही ब्रिटिश कपड़ा उत्पादक दूसरे देशों में भी अपने कपड़े के लिए नए-नए बाजार ढूँढ़ने लगे थे। सीमा शुल्क की व्यवस्था के कारण ब्रिटिश बाजारों से बेदखल हो जाने के बाद भारतीय कपड़ों को दूसरे अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में भी भारी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा।

यदि भारतीय निर्यात के आँकड़ों का अध्ययन करें तो पता चलता है कि सूती कपड़े के निर्यात में लगातार गिरावट का ही रुझान दिखाई देता है। सन् 1800 के आसपास निर्यात में सूती कपड़े का प्रतिशत 30 था जो 1815 में घटकर 15 प्रतिशत रह गया। 1870 तक तो यह अनुपात केवल 3 प्रतिशत ही रह गया था। लेकिन इसके विपरीत कपास का निर्यात सन् 1812 से 1871 के बीच 5 से 35% तक बढ़ गया।

प्रश्न 11.
भारतीय कृषक वैश्विक आर्थिक महामंदी से किस तरह प्रभावित हुए?
उत्तर:
भारतीय कृषक वैश्विक आर्थिक महामंदी से निम्न प्रकार प्रभावित हुए

  1. कृषि उत्पादों की कीमतों में तेजी से कमी आई लेकिन सरकार ने लगान वसूली में छूट देने से साफ इंकार कर दिया। इससे किसान कर्ज में डूब गये।
  2. कच्चे पटसन की कीमतों में 60 प्रतिशत से भी अधिक गिरावट आने से किसान बुरी तरह प्रभावित हुए।
  3. किसानों के अत्यधिक मात्रा में कर्ज में डूब जाने से उनके सोने, चाँदी के आभूषण बिक गये, जमीन सूदखोरों के पास गिरवी रख दी गई।

प्रश्न 12.
युद्धोत्तर अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य क्या था? इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु किन-किन संस्थाओं की स्थापना की गई?
उत्तर:
युद्धोत्तर अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य औद्योगिक विश्व में आर्थिक स्थायित्व एवं पूर्ण रोजगार की स्थिति बनाये रखना था। इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में बनी सहमति के आधार पर अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई.एम.एफ.) एवं विश्व बैंक की स्थापना की गई जिन्होंने 1947 में औपचारिक रूप से कार्य करना प्रारम्भ कर दिया।

प्रश्न 13.
भारत ने उन्नीसवीं शताब्दी की विश्व अर्थव्यवस्था का रूप तय करने में एक अहम् भूमिका अदा की थी। इस कथन का ‘पष्ट कीजिए।
अथवा
‘उन्नीसवीं शताब्दी की विश्व अर्थव्यवस्था का रूप तय करने में भारतीय व्यापार ने एक अहम भूमिका अदा की थी।’ इस कथन का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
भारत एक ब्रिटिश उपनिवेश था। भारत के अतिरिक्त ब्रिटेन ने कई देशों को अपना उपनिवेश बना रखा था। ब्रिटेन ने भारत के साथ व्यापार में लाभ अर्जित किया जबकि अन्य उपनिवेशों में उसे घाटे का सामना करना पड़ा। भारत के साथ व्यापारिक लाभ ने ब्रिटेन को उससे अन्य उपनिवेशों के साथ हुए व्यापारिक घाटे को सन्तुलित करने में मदद की। इस तरह कहा जा सकता है कि ब्रिटेन के घाटे की भरपाई में मदद करते हुए भारत ने उन्नीसवीं सदी की विश्व अर्थव्यवस्था का रूप तय करने में एक अहम् भूमिका अदा की थी।

प्रश्न 14.
समूह-77 के देशों ने नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली की माँग क्यों की ?
उत्तर:
शक्तिशाली औद्योगिक राष्ट्रों के विरुद्ध विकासशील देश समूह-77 के रूप में संगठित हुए। इन विकासशील देशों ने एक नई आर्थिक प्रणाली की माँग की। इस नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित थे

  1. विकासशील देश एक ऐसी व्यवस्था चाहते थे जो उन्हें उनके संसाधनों पर ऋण दिला सके।
  2. विकासशील देश ऐसी व्यवस्था निश्चित करना चाहते थे जिसे उन्हें कच्चे माल के सही दाम मिलें और अपने तैयार माल को विकसित देशों के बाजारों में बेचने के लिए बेहतर पहुँच मिले।

लयूत्तरात्मक प्रश्न (SA2)

प्रश्न 1.
आधुनिक युग से पहले मानव समाज किस प्रकार एक-दूसरे के नजदीक आया?
अथवा.
“भूमण्डलीकरण की प्रक्रिया के चिह्न आधुनिक युग से पहले के समय में भी देखे जा सकते हैं ?” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भूमण्डलीकरण की प्रक्रिया के चिह्न आधुनिक युग से पहले के समय में भी देखे जा सकते हैं। इस प्रक्रिया के द्वारा मानव समाज एक-दूसरे के नजदीक आया यह निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट है

  1. इतिहास के प्रत्येक दौर में मानव समाज एक-दूसरे के अधिक नजदीक आते गये हैं।
  2. प्राचीनकाल से ही यात्री, व्यापारी, पुजारी, तीर्थयात्री आदि ज्ञान, अवसरों एवं आध्यात्मिक शान्ति के लिए या उत्पीड़न अथवा यातनापूर्ण जीवन से बचने के लिए दूर-दूर की यात्राएँ करते थे।
  3. ये लोग अपनी यात्राओं में विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ धन, वेशभूषा, मान्यताएँ, हुनर, विचार, अधिकार और यहाँ तक कि बीमारियाँ एवं कीटाणु भी साथ लेकर चलते थे।
  4. 3000 ई. पू. में समुद्री तटों पर होने वाले व्यापार के माध्यम से सिन्धु घाटी की सभ्यता युद्ध क्षेत्र से जुड़ी हुई थी जिसे आज हम पश्चिमी एशिया के नाम से जानते हैं।
  5. मालदीव के समुद्र में पाई जाने वाली कौड़ियाँ चीन और पूर्वी अफ्रीका तक पहुँचती रही हैं। इन्हें पैसे या मुद्रा के रूप में मालदीव में प्रयोग किया जाता था।
  6. बीमारी फैलाने वाले कीटाणुओं का दूर-दूर तक पहुँचने का इतिहास भी सातर्वी सदी तक ढूँढ़ा जा सकता है। तेरहवीं शताब्दी के पश्चात् तो इनके प्रसार को निश्चित रूप से साफ देखा जा सकता है।

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प्रश्न 2.
सिल्क मार्ग से संसार के कौन-कौन से भाग जुड़े हुए थे?
अथवा
सिल्क रूट क्या है?
अथवा
‘सिल्क रूट’ क्या है? इसका महत्व बताइए।
अथवा
विश्व को जोड़ने में रेशम मार्ग (सिल्क रूट) की भूमिका की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
आधुनिक काल से पहले के युग में विश्व के विभिन्न भागों के मध्य व्यापारिक एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान का सबसे जीवंत उदाहरण रेशम (सिल्क) मार्गों के रूप में दिखाई देता है। इस मार्ग का यह नामकरण चीनी रेशम के पश्चिम की ओर भेजे जाने से पड़ा। इतिहासकारों ने अनेक सिल्क मार्गों के बारे में बताया है। जमीन अथवा से होकर गुजरने वाले ये मार्ग न केवल एशिया के विशाल क्षेत्रों को एक-दूसरे से जोड़ने का काम करते थे बल्कि एशि को यूरोप एवं उत्तरी अफ्रीका से भी जोड़ते थे।

ये मार्ग ईसा पूर्व के समय से ही सामने आ चुके थे तथा लगभग पन्द्रहवीं ताब्दी तक अस्तित्व में थे। इसी मार्ग से चीनी पादरी, भारत तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के कपड़े व मसाले संसार के विभिन्न भागों में पहुँचाते थे। वापसी में व्यापारी यूरोप से एशिया में सोने-चाँदी तथा कीमती धातुएँ लाते थे। इन मार्गों से व्यापार व सांस्कृतिक आदान-प्रदान दोनों प्रक्रियाएँ साथ-साथ चलती थीं।

प्रश्न 3.
“आधुनिक युग से पहले के युग में व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान दोनों प्रक्रियाएँ साथ-साथ चलती थीं।” कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जब व्यापारी रेशम मार्ग के द्वारा विश्व के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में पहुँचते थे तो वे अपने साथ केवल वस्तुएँ ही नहीं ले जाते थे बल्कि उनके साथ विभिन्न सांस्कृतिक तत्व; जैसे-धर्म, वेशभूषा, भाषा, ज्ञान, विचार, अधिकार, मूल्य-मान्यताएँ आदि भी पहुँचते थे। रेशम मार्ग की विभिन्न शाखाओं से होकर कई दिशाओं में प्रारम्भ से ईसाई मिशनरियों ने एशिया में ईसाई धर्म का प्रचार किया। इसी रास्ते से ही मुस्लिम धर्म का विश्व में प्रचार-प्रसार हुआ।

बौद्ध धर्म का प्रचार भी इसी प्रकार हुआ। विभिन्न खाद्य पदार्थों; जैसे-स्पैघेत्ती, (नूडल्स) चीन से तथा पास्ता अरब से यूरोपीय देशों तक पहुँचा। आलू, सोया, मूंगफली, मक्का, टमाटर, मिर्च, शकरकंद आदि खाद्य पदार्थों के बारे में हम जानते भी नहीं थे। ये खाद्य पदार्थ कोलम्बस की अमेरिका यात्रा के पश्चात् वहाँ के मूल निवासियों से यूरोप व एशिया में पहुँचे, जो इस कथन की पुष्टि करता है कि व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान दोनों प्रक्रियाएँ साथ-साथ चलती थीं।

प्रश्न 4.
“1890 ई. तक एक वैश्विक कृषि अर्थव्यवस्था हमारे समक्ष आ चुकी थी।” कथन को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
19वीं शताब्दी में वैश्विक कृषि अर्थव्यवस्था में एक बहुत बड़ा बदलाव देखा गया एवं इसका एक नया रूप उभरकर हमारे सामने आया। व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
19वीं शताब्दी के अन्तिम दौर में श्रम विस्थापन रुझानों, पूँजी प्रवाह, पारिस्थितिकी एवं तकनीक में गहरे परिवर्तन आने प्रारम्भ हो गये थे जिससे कृषि के क्षेत्र में भी एक बड़ा बदलाव आया। कृषक विभिन्न देशों के होते थे, अब भोजन भी किसी आसपास के कस्बे या गाँव से नहीं बल्कि हजारों मील दूर से आने लगा था। अब अपने खेतों पर स्वयं कार्य करने वाले किसान ही खाद्य पदार्थ पैदा नहीं कर रहे थे बल्कि अब यह कार्य ऐसे औद्योगिक मजदूर भी करने लगे जो सम्भवतः कुछ समय पूर्व में ही वहाँ आये थे।

वे ऐसे खेतों में काम कर रहे थे जो एक पीढ़ी पूर्व सम्भवतः जंगल रहे होंगे। उत्पादन बढ़ाने के लिए नई-नई तकनीकों का प्रयोग किया जाने लगा। रेलवे तथा पानी के जहाज जैसे परिवहन के नये साधनों का प्रयोग कृषि उत्पादों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाने-ले जाने के लिए किया जाने लगा। इस तरह वैश्विक कृषि अर्थव्यवस्था हमारे समक्ष आ चुकी थी।

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प्रश्न 5.
उन्नीसवीं सदी के दौरान भारत से अनुबंधित प्रवासी श्रमिकों की स्थिति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उन्नीसवीं सदी के दौरान भारत से अनुबंधित (गिरमिटिया) प्रवासी श्रमिकों में अधिकांश मौजूदा पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य भारत तथा तमिलनाडु के सूखे क्षेत्रों से जाते थे। इन श्रमिकों को बागानों, खदानों तथा सड़क व रेलवे निर्माण परियोजनाओं में काम करने के लिए ले जाया जाता था। इन्हें बागानों में या कार्यस्थल पर पहुँचने पर ही पता चलता था कि वे जैसी आशा कर रहे थे वहाँ वैसी स्थिति नहीं है।

इनके लिए नए स्थान पर जीवन तथा कार्य स्थितियाँ कठोर थीं तथा इनके पास कानूनी अधिकार नाममात्र भी नहीं थे। यद्यपि इन श्रमिकों ने भी जिन्दगी बसर करने के अपने तरीकों को खोज लिया। अनेक तो जंगलों में ही भाग गए। हालाँकि पकड़े जाने पर इन्हें कठोर सजा मिलती थी। अनेक श्रमिकों ने पुरानी एवं नयी संस्कृतियों का सम्मिश्रण कर निजी एवं सामूहिक आत्माभिव्यक्ति के नए रूपों को खोज लिया।

प्रश्न 6.
अफ्रीका में यूरोपीय लोगों को आरम्भ में किन समस्याओं का सामना करना पड़ा? समस्या के समाधान हेतु उन्होंने क्या कार्य किए?
उत्तर:
अफ्रीका के स्थानीय निवासी अपनी आजीविका के लिए मुख्य रूप से कृषि एवं पशुपालन पर निर्भर थे। वहाँ पैसे व वेतन पर काम करने का प्रचलन नहीं था अर्थात् श्रमिक का कार्य कोई भी नहीं करता था। अतः प्रारम्भ में ही यूरोपीय लोगों को मजदूरी के लिए काम करने वाले श्रमिकों की भारी कमी का सामना करना पड़ा। उन्होंने श्रमिकों की भर्ती करने तथा उन्हें रोके रखने हेतु अनेक प्रयत्न किये लेकिन उनके समस्त प्रयास विफल हो गये। उन्होंने कई भारी कर लगा दिये जिसे बागानों एवं खदानों में मजदूरी करके ही चुकाया जा सकता था।

यूरोपीय उपनिवेशकारों ने स्थानीय काश्तकारों को उनकी जमीन से हटाने के लिए उत्तराधिकार कानून में भी परिवर्तन कर दिया। नये कानून में यह व्यवस्था की गयी कि परिवार के केवल एक सदस्य को ही पैतृक सम्पत्ति प्राप्त होगी। इस कानून के माध्यम से परिवार के शेष लोगों को श्रम बाजार में ढकेलने का प्रयास किया गया। खानों में कार्य करने वाले लोगों को बाड़ों में बन्द कर दिया जाता था, उनके स्वतन्त्र रूप से घूमने पर भी पाबन्दी लगा दी गयी। इस प्रकार यूरोपीय लोगों ने अफ्रीका में समस्या समाधान के प्रयास किये।

प्रश्न 7.
भारत के साथ व्यापार अधिशेष से ब्रिटेन को किस प्रकार लाभ पहुँचा? संक्षेप में बताइए।
अथवा
भारत के साथ व्यापार अधिशेष से प्राप्त आय का ब्रिटेन किस प्रकार उपयोग करता था?
अथवा
भारत के साथ ब्रिटेन सदैव ‘व्यापार अधिशेष’ की अवस्था में ही रहता था। कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
19वीं सदी में भारतीय बाजारों में ब्रिटिश औद्योगिक उत्पादों की बाढ़-सी आ गयी थी। भारतीय बाजार ब्रिटेन के औद्योगिक उत्पादों से भर गये थे। भारत से ब्रिटेन व अन्य देशों को भेजे जाने वाले खाद्यान्न व कच्चे मालों के निर्यात में वृद्धि हुई। ब्रिटेन से भारत भेजे जाने वाले माल की कीमत, भारत से ब्रिटेन भेजे जाने वाले माल की कीमत से सदैव अधिक होती थी, इस प्रकार भारत के साथ ब्रिटेन हमेशा व्यापार अधिशेष की अवस्था में रहता था। इसका अर्थ है कि आपसी व्यापार में सदैव ब्रिटेन को ही लाभ रहता था।

भारत में ब्रिटेन के व्यापार अधिशेष ने इसे दूसरे देशों के साथ हुए व्यापारिक घाटे को सन्तुलित करने में सहायता की। इस अधिशेष से तथाकथित होम चार्जेज (देसी खर्च) का निपटारा होता था जिसमें अंग्रेज अफसरों और व्यापारियों द्वारा अपने घर में भेजी गई व्यक्तिगत राशि, भारतीय बाहरी खर्चे पर ब्याज व भारत में कार्य कर चुके अंग्रेज अफसरों की पेंशन आदि सम्मिलित थे। इस प्रकार भारत के साथ व्यापार पर अधिशेष ने भारतीय बाजारों पर ब्रिटिश प्रभुत्व स्थापित करने में मदद करने के लिए ब्रिटिश निर्माताओं एवं निर्यातकों को प्रोत्साहन प्राप्त हुआ।

प्रश्न 8.
प्रथम विश्व युद्ध किन दो यूरोपीय ताकतवर खेमों के बीच लड़ा गया? ‘यह पहला आधुनिक औद्योगिक युद्ध था।’ इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर:
प्रथम विश्व युद्ध-प्रथम विश्व युद्ध अगस्त 1914 में प्रारम्भ हुआ। यह युद्ध दो यूरोपीय ताकतवर खेमों के बीच लड़ा गया था। एक खेमे में मित्र राष्ट्र अर्थात् ब्रिटेन-फ्रांस व रूस थे तो दूसरे खेमे में केन्द्रीय शक्तियाँ अर्थात् जर्मनी, ऑस्ट्रिया, हंगरी व तुर्की थे। यह युद्ध चार वर्ष से भी अधिक समय तक चला और अन्त में मित्र राष्ट्रों की विजय हुई। – पहला आधुनिक औद्योगिक युद्ध-मैं इस कथन से सहमत हूँ कि प्रथम विश्व युद्ध पहला आधुनिक औद्योगिक युद्ध था।

मानव सभ्यता के इतिहास में ऐसा भीषण युद्ध पहले कभी नहीं हुआ था। इस युद्ध में मशीनगनों, टैंकों, हवाईजहाजों व रासायनिक हथियारों का बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया। ये सभी हथियार आधुनिक विशाल उद्योगों की देन थे। युद्ध के लिए सम्पूर्ण विश्व से असंख्य सैनिकों की भर्ती की गई जिन्हें विशाल जलपोतों व रेलगाड़ियों में भरकर युद्ध के मोर्चों पर ले जाया गया। इस युद्ध में जो भीषण जनहानि व विनाशलीला देखने को मिली, उसकी औद्योगिक युग से पहले और औद्योगिक शक्ति के बिना कल्पना नहीं की जा सकती थी। इस युद्ध में 90 लाख से अधिक लोग मारे गये व 2 करोड़ लोग घायल हुए।

प्रश्न 9.
प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के पश्चात् ब्रिटेन को आर्थिक संकट का सामना क्यों करना पड़ा? संक्षिप्त विवरण दीजिए।
अथवा
‘प्रथम विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन की आर्थिक दशाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के पश्चात् ब्रिटेन को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा, जिसके निम्नलिखित कारण थे:
1. युद्ध से पहले ब्रिटेन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था। युद्ध के पश्चात् सबसे लम्बा संकट उसे ही झेलना पड़ा। जिस समय ब्रिटेन युद्ध में व्यस्त था, उसी समय भारत व जापान में उद्योग विकसित होने लगे थे। अतः युद्धोपरान्त ब्रिटेन के लिए भारतीय बाजार में पहले वाली स्थिति प्राप्त करना अत्यधिक कठिन हो गया था।

2. प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् जापान भी ब्रिटेन का विरोधी हो गया। उस समय जापान औद्योगिक क्षेत्र में बहुत अधिक विकास कर रहा था। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर औद्योगिक क्षेत्र में उसे जापान से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा।
3. युद्ध के खर्चे की पूर्ति करने के लिये ब्रिटेन ने अमेरिका से पर्याप्त मात्रा में ऋण लिया था। इसके परिणामस्वरूप युद्ध समाप्त होने तक ब्रिटेन भारी विदेशी ऋणों से दब चुका था।

4. युद्ध के पश्चात् ब्रिटेन की सरकार ने युद्ध सम्बन्धी खर्चे में भी कटौती प्रारम्भ कर दी थी ताकि शांतिकालीन करों के सहारे ही उनकी भरपाई की जा सके। इन प्रयासों से रोजगारों के अवसरों में भारी कमी आयी। सन् 1921 में प्रत्येक पाँच ब्रिटिश मजदूरों में से एक मजदूर के पास काम नहीं था। रोजगार के बारे में बेचैनी एवं अनिश्चितता युद्धोत्तर वातावरण का अंग बन गई थी।

प्रश्न 10.
“औद्योगिक देशों में महामंदी का सबसे बुरा प्रभाव अमेरिका को ही झेलना पड़ा।” कथन की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
औद्योगिक देशों में महामंदी का सबसे बुरा प्रभाव अमेरिका को ही झेलना पड़ा, इसे निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है

  1. कीमतों में कमी एवं मंदी के कारण अमेरिकी बैंकों ने घरेलू ऋण देना बन्द कर दिया था। पहले लोगों को जो ऋण दिये गये थे, उनकी वसूली तेज कर दी गई।
  2. किसानों को अपनी कृषि उपज बेचने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था। परिणामस्वरूप अनेक परिवार नष्ट हो गये तथा व्यवसाय चौपट हो गये।
  3. आमदनी में गिरावट आने पर अनेक अमेरिकी परिवार ऋण चुकाने में असमर्थ हो गये। परिणामस्वरूप उनके मकान, कार व अन्य आवश्यक वस्तुएँ कुर्क कर ली गईं।
  4. बेरोजगारी में निरन्तर वृद्धि होने लगी फलस्वरूप अनेक अमेरिकी लोगों को रोजगार की तलाश में दूर-दूर के स्थानों पर जाना पड़ा।
  5. अन्ततः अमेरिकी बैंकिंग व्यवस्था भी धराशायी हो गयी। निवेश से अपेक्षित लाभ न पा सकने, ऋण वसूली न कर पाने एवं जमाकर्ताओं की जमा पूँजी न लौटा पाने के कारण हजारों अमेरिकी बैंक दिवालिया हो गये तथा अन्ततः बन्द कर दिये गये।

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प्रश्न 11.
ब्रेटन वुड्स व्यवस्था का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर क्या-क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
जुलाई 1944 में विकसित ब्रेटन वुड्स व्यवस्था ने पश्चिमी औद्योगिक राष्ट्रों एवं जापान के लिए व्यापार व आय में वृद्धि का मार्ग खोल दिया। 1950 से 1970 के मध्य विश्व व्यापार की विकास दर 8 प्रतिशत वार्षिक से भी अधिक रही। इस अवधि के दौरान वैश्विक आय में लगभग 5 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो रही थी। विकास दर भी लगभग स्थिर ही थी। उसमें अधिक उतार-चढ़ाव नहीं आये।

इस दौरान अधिकांश औद्योगिक देशों में बेरोजगारी औसतन 5 प्रतिशत से भी कम ही रही, इन दशकों के दौरान तकनीक एवं उद्यम का वैश्विक प्रसार हुआ। विकासशील देश विकसित एवं औद्योगिक देशों की बराबरी करने का लगातार प्रयास करने लगे। उन्होंने आधुनिक तकनीकी ज्ञान के सहयोग से संचालित संयन्त्रों एवं उपकरणों के आयात पर पर्याप्त पूँजी का निवेश किया।

प्रश्न 12.
नई आर्थिक प्रणाली के बारे में आप क्या जानते हैं? संक्षिप्त विवरण दीजिए।
अथवा
1960 के दौरान अधिकतर विकासशील देशों ने अपने आपको समूह 77 में क्यों संगठित किया?
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् विकासशील देशों को पाँचवें एवं छठे दशक में अर्थव्यवस्था की तीव्र गति से हुई प्रगति का कोई लाभ प्राप्त नहीं हुआ। अतः विकासशील देशों ने परेशान होकर एकमत से नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली (NIEO) के लिए आवाज उठाना प्रारम्भ कर दिया। ये राष्ट्र समूह-77 (जी-77) के रूप में संगठित हो गये।

नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली से उनका अभिप्राय ऐसी व्यवस्था से था जिसमें उन्हें अपने संसाधनों पर वास्तविक अर्थों में नियन्त्रण मिल सके तथा उनसे उन्हें विकास के लिए अधिक मात्रा में सहायता प्राप्त हो सके, कच्चे माल की सही कीमत प्राप्त हो सके तथा अपने निर्मित माल को विकसित देशों के बाजारों में बेचने के लिए उचित पहुँच मिल सके।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आधुनिक युग से पहले भूमण्डलीकृत विश्व बनाने की प्रक्रिया में विजय अभियान, बीमारी एवं व्यापार ने किस प्रकार पृष्ठभूमि का निर्माण किया ? विस्तार से बताइए।
उत्तर:
आधुनिक युग से पहले भूमण्डलीकृत विश्व बनाने की प्रक्रिया में विजय अभियान, बीमारी एवं व्यापार ने निम्न प्रकार से पृष्ठभूमि का निर्माण किया
1. विजय अभियान:
सोलहवीं शताब्दी के मध्य तक आते-आते पुर्तगाली व स्पेनिश सेनाओं की विजय का अभियान प्रारम्भ हो चुका था। उन्होंने अमेरिका को उपनिवेश बनाना शुरू कर दिया था। इसके अतिरिक्त अन्य यूरोपीय देश; जैसे-इंग्लैण्ड आदि भी एशिया व अफ्रीका आदि क्षेत्रों में अपने उपनिवेश स्थापित करने में लगे हुए थे।

2. बीमारी:
यूरोपीय सेनाएँ केवल अपने सैनिक बल पर ही नहीं जीतती थीं। स्पेनिश सेनाओं के सबसे शक्तिशाली हथियारों में परम्परागत किस्म के सैनिक हथियार कोई नहीं थे बल्कि ये हथियार चेचक जैसे कीटाणु थे जो स्पेनिश सैनिकों व अफसरों के साथ अमेरिका पहुँचे। अमेरिका जो लाखों वर्षों से शेष विश्व से अलग-थलग था उसके निवासियों के शरीर में यूरोप से आने वाली इन बीमारियों से बचने की कोई रोग निरोधक क्षमता नहीं थी।

फलस्वरूप इस नये स्थान पर चेचक बहुत भयंकर सिद्ध हुआ। एक बार संक्रमण हो जाने के पश्चात् यह बीमारी सम्पूर्ण महाद्वीप में फैल गयी। जहाँ यूरोपीय लोग नहीं पहुँचे वहाँ भी इस बीमारी के चपेट में लोग आने लगे। इस बीमारी से पूरा का पूरा समुदाय ही समाप्त हो गया। इस तरह यूरोपियनों की जीत का रास्ता आसान हो गया।

3. व्यापार:
पेरू तथा मैक्सिको की खानों से निकलने वाली कीमती धातुओं विशेषकर चाँदी ने भी यूरोप की सम्पदा को बढ़ाया और पश्चिमी एशिया के साथ होने वाले व्यापार को गति प्रदान की। सत्रहवीं शताब्दी तक सम्पूर्ण यूरोप में दक्षिण अमेरिका की धन-सम्पदा के बारे में विभिन्न प्रकार की किस्से-कहानियाँ बनने लगे थे, इन्हीं किंवदंतियों की बदौलत वहाँ . के लोग एल डोराडो को सोने का शहर मानने लगे और उसकी खोज में अनेक खोजी अभियान शुरू किये गये।

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प्रश्न 2.
1920 के दशक से अमेरिका की अर्थव्यवस्था में किस प्रकार तेजी आयी? विस्तार से बताइए।
अथवा
1920 के दशक की अमेरिकी अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
अथवा
1920 के दशक में अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर फोर्ड कम्पनी का क्या प्रभाव था? सविस्तार बताइए।
उत्तर:
1. 1920 के दशक की अमेरिकी अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी विशेषता थी-वृहत् उत्पादन का चलन। इसकी शुरुआत कार निर्माता हेनरी फोर्ड द्वारा की गयी। वृहत उत्पादन की प्रक्रिया 19वीं शताब्दी के अन्त में प्रारम्भ हो चुकी थी लेकिन 1920 के दशक में यह अमेरिकी औद्योगिक उत्पादन की विशेषता ही बन गया था।

2. अमेरिका के विख्यात कार निर्माता वृहत उत्पादन के प्रणेता थे। उन्होंने शिकागो के एक बूचड़खाने की असेंबली लाइन की तर्ज पर डेट्रॉयट के अपने कार कारखाने में भी आधुनिक असेंबली लाइन स्थापित की थी।

3. इस प्रकार की व्यवस्था का यह परिणाम हुआ कि हेनरी फोर्ड के कारखाने की असेंबली लाइन में प्रत्येक तीन मिनट में एक कार तैयार होकर निकलने लगी। इससे पहले की पद्धतियों के मुकाबले यह गति कई गुना अधिक थी। टी मॉडल नामक कार वृहत उत्पादन पद्धति से बनी प्रथम कार थी।

4. प्रारम्भ में कम्पनी के श्रमिकों को असेम्बली लाइन से उत्पन्न होने वाली थकान का सामना करना पड़ा क्योंकि वे उसकी गति पर नियन्त्रण नहीं रख पा रहे थे। अनेक श्रमिकों ने कार्य छोड़ दिया। इस चुनौती से निपटने के लिए फोर्ड ने जनवरी 1914 में श्रमिकों का वेतन दोगुना अर्थात् 5 डॉलर प्रतिदिन कर दिया। साथ ही अपने कारखानों में ट्रेड यूनियन गतिविधियों पर भी पाबंदी लगा दी।

5. सन् 1919 में अमेरिका में 20 लाख कारों का उत्पादन होता था जो 1929 ई. में बढ़कर 50 लाख प्रतिवर्ष से भी अधिक हो गया। इसके साथ ही अनेक लोग फ्रिज, वाशिंग मशीन, रेडियो, ग्रामोफोन, प्लेयर्स आदि को क्रय करने लगे। ये समस्त वस्तुएँ ‘हायर परचेज’ व्यवस्था के तहत खरीदी जाती थी अर्थात् लोग इन सब वस्तुओं कर्ज पर खरीदते थे और उनकी कीमत साप्ताहिक, मासिक किस्तों में चुकाते थे।

6. मकानों के निर्माण और निजी मकानों की संख्या में वृद्धि से भी फ्रिज, वाशिंग मशीन आदि उपकरणों की मांग में वृद्धि हुई। घरों का निर्माण अथवा खरीददारी भी कर्ज पर ही की जाती थी।

7. 1920 के दशक में आवास एवं निर्माण क्षेत्र में वृद्धि अमेरिकी सम्पन्नता का आधार बन गयी। बढ़ते उपयोग के लिए और अधिक निवेश की जरूरत थी, जिससे नये रोजगार तथा आमदनी में वृद्धि होने लगी।

प्रश्न 3.
1929 की महामंदी से क्या अभिप्राय है?
अथवा
‘महामंदी’ क्या थी? संक्षेप में इसके परिणाम लिखिए।
अथवा
आर्थिक महामंदी में वैश्विक अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा?
अथवा
विश्व महामंदी के प्रभावों की व्याख्या कीजिए भूमंडलीकृत विश्व का बनना उत्तर-आर्थिक महामंदी का अभिप्राय किसी देश की ऐसी आर्थिक दशा से है जब उत्पादन में भारी वृद्धि तथा क्रय शक्ति में तीव्र गिरावट एवं मुद्रा के वास्तविक मूल्य में कमी आ जाती है। ऐसी आर्थिक महामंदी 1929 ई. में अमेरिका में आयी थी और इसने समस्त विश्व को अपने चंगुल में ले लिया जिसके कारण इसे महामंदी कहा जाता है।

आर्थिक महामंदी का प्रभाव/परिणाम:
1. औद्योगिक देशों में आर्थिक महामंदी का सबसे बुरा प्रभाव अमेरिका को ही झेलना पड़ा। कीमतों में कमी एवं मंदी की आशंका को देखते हुए अमेरिकी बैंकों ने घरेलू कर्ज देना बन्द कर दिया। इसके अतिरिक्त जो कर्जे दिये जा चुके थे, उनकी वसूली तेज कर दी गई।

2.किसान उपज नहीं बेच पा रहे थे। उनके कारोबार समाप्त हो गये, जिससे उनके परिवार तबाह हो गये।

3. आय में कमी आने पर अमेरिका के बहुत से परिवार कर्जा चुकाने में असफल हो गये जिसके कारण उनके मकान, कार और समस्त आवश्यक वस्तुएँ कुर्क कर ली गयीं।

4. 1920 के दशक में जो उपभोक्तावादी सम्पन्नता दिखाई दे रही थी, वह अचानक गायब हो गई।

5. बेरोजगारी में तीव्र गति से वृद्धि होने लगी। लोग काम की तलाश में इधर-उधर भटकने लगे।

6. अमेरिकी बैंकिंग व्यवस्था धराशायी हो गयी। निवेश से अपेक्षित लाभ नहीं मिलने के कारण, कर्जे की वसूली न होने एवं जमाकर्ताओं की जमा पूँजी नहीं लौटा पाने के कारण हजारों की संख्या में बैंक दिवालिया हो गये और बन्द कर दिये गये। एक अनुमान के अनुसार 1933 ई. तक 4000 से ज्यादा बैंक बन्द हो चुके थे तथा 1929 से 1932 के मध्य लगभग 1,10,000 कम्पनियाँ चौपट हो चुकी थीं।

7. अमेरिकी सरकार अपनी अर्थव्यवस्था को इस महामंदी से बचाने के लिए आयातित पदार्थों पर दोगुना सीमा शुल्क लगाकर वसूल करने लगी। इस फैसले ने तो विश्व व्यापार की कमर ही तोड़ दी।

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प्रश्न 4.
वैश्विक अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण में ब्रेटन-वुड्स संस्थान की भूमिका को विस्तार से बताइए।
उत्तर:
वैश्विक अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण में ब्रेटन वुड्स संस्थान की भूमिका को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है
1. युद्धोत्तर आर्थिक अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य यह था कि औद्योगिक विश्व में आर्थिक स्थिरता एवं पूर्ण रोजगार बनाये रखा जाये। इस फ्रेमवर्क पर जुलाई 1944 ई. में अमेरिका में स्थित न्यू हैम्पशर के ब्रेटन वुड्स नामक स्थान पर संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मेलन में सहमति हुई थी।

2. सदस्य देशों के विदेशी व्यापार में लाभ और घाटे से निपटने के लिए ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में ही अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई. एम. एफ.) की स्थापना की गयी।

3. युद्धोत्तर पुनर्निर्माण के लिए धन की व्यवस्था करने हेतु अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक का गठन किया गया। इसे विश्व बैंक के नाम से भी जाना जाता है। इसी कारण विश्व बैंक एवं अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष को ब्रेटन वुड्स संस्थान या ब्रेटन वुड्स ट्विन (ब्रेटन वुड्स की जुड़वाँ संस्था) भी कहा जाता है।

4. विश्व बैंक तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने 1947 ई. में औपचारिक रूप से कार्य करना प्रारम्भ कर दिया। इन संस्थानों की निर्णय प्रक्रिया पर पश्चिमी औद्योगिक देशों का नियन्त्रण रहता है। अमेरिका विश्व बैंक व अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के किसी भी फैसले को ‘वीटो’ कर सकता है।

5.अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक व्यवस्था राष्ट्रीय मुद्राओं और मौद्रिक व्यवस्थाओं को एक-दूसरे से जोड़ने वाली व्यवस्था है। ब्रेटन वुड्स व्यवस्था निश्चित विनिमय दरों पर आधारित होती थी। इस व्यवस्था में राष्ट्रीय मुद्राएँ, जैसे- भारतीय मुद्रा-रुपया-डॉलर के साथ एक निश्चित विनिमय दर में बँधा हुआ है। एक डॉलर के बदले में कितने रुपये प्राप्त होंगे, यह स्थिर रहता था। डॉलर का मूल्य भी सोने से बँधा हुआ था। एक डॉलर की कीमत 35 औंस सोने के बराबर निर्धारित की गई थी।

प्रश्न 5.
ब्रेटन वुड्स प्रणाली के समाप्त होने के लिए उत्तरदायी कारकों पर प्रकाश डालिए।
अथवा
ब्रेटन वुड्स का समापन एवं वैश्वीकरण का शुमआत पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
उत्तर:
ब्रेटन वुड्स प्रणाली के समाप्त होने के लिए उत्तरदायी कारक निम्नलिखित हैं
1. अमेरिकी मुद्रा में गिरावट:
1960 ई. के दशक के पश्चात् अमेरिका का आर्थिक शक्ति के रूप में पहले जैसा वर्चस्व नहीं रहा। अमेरिकी डॉलर अब विश्व की प्रधान मुद्रा के रूप में पहले जितना सम्मानित एवं निर्विवाद नहीं रह गया था। सोने की तुलना में डॉलर की कीमत गिरने लगी थी।

2. पश्चिमी व्यावसायिक बैंकों का उदय:
1970 ई. के मध्य से अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों की नीति में भी बहुत अधिक परिवर्तन आ चुके थे। पहले विकासशील देश ऋण एवं विकास सम्बन्धी सहायता के लिए अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं की सहायता ले सकते थे लेकिन अब उन्हें पश्चिम के व्यावसायिक बैंकों और निजी ऋणदाता संस्थानों से ऋण न लेने के लिए विवश किया जाने लगा। विकासशील विश्व में समय-समय पर ऋण संकट उत्पन्न होने लगा जिससे आय में गिरावट आती थी एवं निर्धनता में वृद्धि होने लगती थी। यह समस्या अफ्रीका व लैटिन अमेरिका में सर्वाधिक दिखाई दी।

3. बेरोजगारी की समस्या:
औद्योगिक विश्व भी बेरोजगारी की समस्या से ग्रसित होने लगा था। 1970 के दशक के मध्य से बेरोजगारी बढ़ने लगी। 1990 के दशक के प्रारम्भिक वर्षों तक बहुत अधिक बेरोजगारी रही। 1970 के दशक के अन्तिम वर्षों में बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ भी एशिया के ऐसे देशों में उत्पादन केन्द्रित करने लगीं जहाँ वेतन कम थे।

4. चीन में अल्प लागत अर्थव्यवस्था:
अल्प लागत अर्थव्यवस्था के कारण चीनी अर्थव्यवस्था एक नयी महाशक्ति के रूप में उभरी। चीन जैसे देश में वेतन अपेक्षाकृत कम थे। अत: विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने चीन में पर्याप्त निवेश करना प्रारम्भ कर दिया।

मानचित्र सम्बन्धी प्रश्न

प्रश्न 1.
अफ्रीका के राजनीतिक रेखा मानचित्र में 19वीं सदी के दो ब्रिटिश उपनिवेश दर्शाइए।
उत्तर:

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प्रश्न 2.
अफ्रीका के राजनीतिक रेखा मानचित्र में 19वीं सदी के दो-दो स्पेनिश, पुर्तगाली व फ्रेंच उपनिवेश दर्शाइए।
उत्तर:

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प्रश्न 3.
अफ्रीका के राजनीतिक रेखा मानचित्र में 19वीं सदी के दो इतालवी व दो जर्मन उपनिवेश दर्शाइए। उत्तर
उत्तर:

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JAC Class 10 Social Science Important Questions

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