मानव के द्वारा आग के प्रयोग पर प्रकाश डालें - maanav ke dvaara aag ke prayog par prakaash daalen

इंसान की किस नस्ल ने आग जलाना पहले सीखा?

21 सितंबर 2018

मानव के द्वारा आग के प्रयोग पर प्रकाश डालें - maanav ke dvaara aag ke prayog par prakaash daalen

आग इंसान के वजूद के लिए उतनी ही अहम है जितना कि हवा और पानी. आग ख़तरनाक ज़रूर है लेकिन आग ही इंसान की ज़िंदगी में क्रांति लाई.

आग की वजह से ही उसने खाना पका कर खाना सीखा और खुद को कड़ाके की ठंड से बचाया. ख़तरों से महफ़ूज़ रहने के लिए भी उसने आग का इस्तेमाल किया. आज भी आग के बिना ज़िंदगी की कल्पना मुश्किल है.

लेकिन सवाल ये है कि आख़िर इंसान ने अपनी ज़रूरत के हिसाब से आग जलाना, बुझाना और उसे क़ाबू करना कब सीखा?

पाषाण युग की कुछ जगहों पर रिसर्च अभी भी जारी है. कनाडा की सिमोन फ्रेज़र यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर फ्रैंसिस्को बर्ना ने अफ़्रीका और इजरायल में पूर्व पाषाण काल के कुछ ठिकानों पर खुदाई की.

अपनी रिसर्च के आधार पर 2012 में उन्होंने पी.एन.ए.एस नाम की पत्रिका में रिपोर्ट लिखी जिसमें उन्होंने बताया कि खुदाई के दौरान उन्हें दक्षिण अफ़्रीक़ा के वंडरवर्क नाम की गुफ़ा से कुछ जली हुई हड्डियां और पौधों के हिस्से मिले हैं.

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दस लाख साल पुराने अवशेष

खुदाई में मिले ये अवशेष क़रीब दस लाख साल पुराने हैं. इससे इशारा मिलता है कि इस दौर के इंसान ने आग को क़ाबू करना सीख लिया था.

ये दौर आज के इंसान के पूर्वजों होमो इरगास्टर या होमो इरेक्टस का रहा होगा. प्रोफ़ेसर बर्ना का कहना है कि उन्हें अफ़्रीक़ा की इसी गुफा से आग के इस्तेमाल के और भी पुराने सबूत मिले हैं जो बीस लाख साल पहले के दौर की तरफ़ इशारा करते हैं.

प्रोफ़ेसर बर्ना की ये रिसर्च रिपोर्ट अगले साल छपेगी. लेकिन एक बात में दो राय नहीं कि आग जलाना सीखने से लेकर उसके इस्तेमाल करने के तरीक़े अलग-अलग दौर में अमल में आए.

सूखे और गर्मी के मौसम में कैसे जंगलों में आग लग जाती है, इसकी मिसाल तो हम आज भी देखते हैं. पिछले साल कैलिफ़ोर्निया के जंगलों में लगी आग या इसी साल लंदन के सूखे इलाक़े में लगी आग समझने के लिए काफ़ी है कि लाखों साल पहले भी इसी तरह अपने आप ही आग लग जाती होगी.

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पुरातत्वविदों के तर्क

पुरातत्वविद् तर्क देते हैं कि बहुत पहले हमारे पूर्वजों ने रगड़ से आग पैदा करने का हुनर सीख लिया था. ये भी मुमकिन है कि उन्होंने जंगलों में लगी आग से जलती हुई शाखें लाकर दूसरे स्थान पर मन मुताबिक़ उसका इस्तेमाल कर लिया हो.

कुछ परिंदों को भी इस तरकीब का इस्तेमाल करते देखा गया है. ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च में पाया है कि कई शिकारी पक्षी अपने शिकार को मैदान से बाहर निकालने के लिए जलती हुई टहनियां अपनी चोंच में दबाकर लाते हैं और उन्हें दूसरे खेतों और मैदानों में डाल देते हैं.

पूर्व आदिमानव ने भी ज़रूर इस तरकीब का इस्तेमाल किया होगा और वो इस तरीके को और आगे तक लेकर गए. उन्होंने इस आग के लिए भट्टियां तैयार की होंगी जिसमें वो ईंधन डालकर उसे जलाए रखते होंगे.

पूर्व आदिमानव होमो हैबिलिस और ऑस्ट्रेलोपिथेकस ने बीस लाख साल पहले इसी तरह आग को जलाए रखना और उसका ज़रूरत के मुताबिक़ इस्तेमाल सीखा होगा. प्रोफ़ेसर बर्ना कहते हैं कि इस दौर के कुछ ठिकानों पर इस बात के सबूत मिलते हैं.

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यूरोप में जिन जगहों पर आग का लगातार इस्तेमाल करने के सबूत मिले हैं वो तीन से चार लाख साल पुरानी हैं. कुछ जगहें तो उससे भी पुरानी बताई जाती हैं. इज़रायल में जिन जगहों पर आग के इस्तेमाल के सबूत मिले हैं, वो तो क़रीब सात लाख 80 हज़ार साल पुरानी हैं.

स्पेन की क्यूवा नेगरा गुफा में जहां आग के सबूत मिले हैं, वो तो करीब आठ लाख साल पुरानी है. ध्यान देने वाली बात ये है कि इन सभी जगहों पर आग के इस्तेमाल के सबूत मिले हैं, उसे पैदा करने के नहीं.

आग के इस्तेमाल को लेकर कब, क्यों, कहां और कैसे के सवालों के जवाब तो मिल गए हैं. लेकिन, आग की खोज इंसान की किस पीढ़ी ने की ये अभी भी पहेली है.

हालांकि माना यही जाता है कि आग की खोज हम ने यानी होमो सेपियंस ने की थी. इंसान को बाकी प्रजातियों से अलग करने वाले पहलुओं में एक पहलू आग का इस्तेमाल भी है.

लेकिन जीव वैज्ञानिकों का दावा है कि आग का इस्तेमाल करने की समझ चिम्पैंजी, डॉल्फिन और कई तरह के पक्षियों में भी है.

तो क्या इंसान सिर्फ़ आग का इस्तेमाल करने की बिना पर बाक़ी प्रजातियों से अलग है?

आग से बचाने वाला जीन

2016 की एक रिसर्च के आधार पर दावा किया जाता है कि इंसान के जीन में ही आग से ख़ुद को बचाने की ख़ासियत है. इंसान में एएचआर नाम का जीन है जो उसे लकड़ी के धुएं से पैदा होने वाले प्रदूषकों यानी कार्सिनोजेन से बचाता है.

कार्सिनोजेन कैंसर जैसी बीमारी पैदा करते हैं. जबकि हमारे प्राचीन रिश्तेदार मानवों यानी निएंडरथल के जीन में ये ख़ासियत नहीं थी.

प्रोफ़ेसर बर्ना का कहना है कि इसमें शक नहीं कि निएंडरथल आग का इस्तेमाल करते थे. यूरोप में निएंडरथल के प्राचीन ठिकानों से बड़ी-बड़ी भट्टियां मिली हैं, जिसमें बड़ी मात्रा में राख जमा है.

इससे अंदाज़ा लगाया जाता है कि वो आग बुझाकर दोबारा जलाना नहीं जानते थे. सिमोन फ्रेज़र यूनिवर्सिटी के ही प्रोफ़ेसर डेनिस का कहना है कि निएंडरथल का शरीर काफ़ी विशाल था.

लिहाज़ा उसे गर्मी की बहुत ज़्यादा ज़रूरत नहीं पड़ती थी. बल्कि वो ठंडे माहौल में होमो सैपियंस के मुक़ाबले ज़्यादा आसानी से रह लेते थे.

2006 में जर्नल ऑफ़ आर्कियोलॉजिकल साइंस में इटली के एक वैज्ञानिक ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि निएंडरथल जंगलों में लगी आग से जलती हुई लकड़ियां दूसरी जगहों पर ले जाते थे और आग का इस्तेमाल लकड़ी के हथियार बनाने में करते थे.

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आग जलाने के लिए मैंगनीज़ का इस्तेमाल

अभी तक की रिसर्च यही इशारा करती हैं कि निएंडरथल आग नहीं जला सकते थे. लेकिन इसका मतलब ये हरगिज़ नहीं कि उनमें समझ की कमी थी.

उनका दिमाग़ काफ़ी हद तक विकसित हो चुका था. हाल की रिसर्च से इस बात के संकेत मिलते हैं कि वो अपने मुर्दों को दफ़नाते थे, मुर्दों पर मैंगनीज़ डाई ऑक्साइड बॉडी पेंट लगाते थे. उनका दिमाग़ भी होमो सैपियंस के मुक़ाबले बड़ा था.

आज के इंसान के यूरोप पहुंचने से बहुत पहले निएंडरथल वहां अपनी गुफाएं बनाकर रहता था और उनकी गुफाओं में चित्रकारी होती थी. लिहाज़ा कहा जा सकता है कि वो अपने दिमाग का बखूबी इस्तेमाल करते थे. लेकिन आग जलाना और बुझाना उन्हें नहीं आता था.

डच पुरातत्वविद प्रोफ़ेसर विल रॉयब्रॉक्स इस बात से सहमत नहीं हैं कि निएंडरथल आग जलाना नहीं जानते थे. उनके मुताबिक़ वो मैंगनीज़ डाई ऑक्साइड का इस्तेमाल कला, या मुर्दों पर लेप के लिए नहीं करते थे, बल्कि इसका इस्तेमाल वो आग जलाने के लिए करते थे.

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इंसान की किस नस्ल ने आग जलाना पहले सीखा

मैंगनीज़ का इस्तेमाल आज पटाखों में किया जाता है. ये लकड़ी जलाने के तापमान को 350 डिग्री सेल्सियस से 250 डिग्री सेल्सियस कर देता है. इसका मतलब है कि इससे आसानी से लकड़ी में आग लगाई जा सकती है.

अगर विल रायब्रॉक्स की बात को सही माना जाए तो कहा जा सकता है कि आग जलाने का हुनर निएंडरथल के दौर में सीख लिया गया था. इस हिसाब से आग जलाने का हुनर इंसान को दो लाख साल पहले आ चुका था.

प्रोफ़ेसर सोरेंसन इस बात से इत्तिफ़ाक़ नहीं रखते. उनका कहना है कि लकड़ी को आपस में रगड़कर आग पैदा करना एक मेहनत का काम था.

जबकि दो पत्थरों को रगड़कर आग आसानी से पैदा की जा सकती है. इसलिए कहना मुश्किल है कि निएंडरथल लकड़ी से आग पैदा कर लेते थे.

अगर निएंडरथल आग पैदा कर सकते थे तो ग्लेशियर युग के समय में भी आग के निशान मिलने चाहिए थे. लेकिन इस दौर में आग के निशान वही हैं जहां क़ुदरती तौर पर आग लगी थी.

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर रिचर्ड रेंघम का कहना है कि ये बहस लंबी है कि इंसान की किस नस्ल ने आग जलाना पहले सीखा.

इस सवाल का जवाब तलाशने का काम अभी भी जारी है. फिर अभी तक की रिसर्च के आधार पर कहा जा सकता है कि हम ने लाखों साल पहले आग पर क़ाबू पाना सीख लिया था.

इसी के बाद आदि मानव की ज़िंदगी में क्रांति आई. उसने पका खाना शुरू किया तो उसके दिमाग़ का विकास भी तेज़ी हुआ और वो आदि मानव से आधुनिक इंसान बनने लगा.

(नोटः ये मूल स्टोरी का अक्षरश: अनुवाद नहीं है. हिंदी के पाठकों के लिए इसमें कुछ संदर्भ और प्रसंग जोड़े गए हैं. बीबीसी अर्थ पर इस स्टोरी को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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मानव ने आग का प्रयोग कब किया?

पुरा पाषाण काल में पत्थरों को रगड़ने से आग की उत्पत्ति हुयी। ये काल आधुनिक काल से 25-20 लाख साल पूर्व से लेकर 12,000 साल पूर्व तक माना जाता है।

आग के प्रयोग से मनुष्य को क्या लाभ हुए?

Answer: आग की वजह से ही उसने खाना पका कर खाना सीखा और खुद को कड़ाके की ठंड से बचाया. ख़तरों से महफ़ूज़ रहने के लिए भी उसने आग का इस्तेमाल किया. आज भी आग के बिना ज़िंदगी की कल्पना मुश्किल है.

मानव ने आग जलाना कैसे सीखा?

(ख) मानव ने आग जलाना कैसे सीखा? उत्तर : प्राचीन मानव औजार बनाने के लिए एक पत्थर पर दूसरे पत्थर से चोट मारते थे। इस प्रक्रिया में पत्थरों के आपस में टकराने पर चिनगारी निकली होगी और इस प्रकार मानव ने आग जलाना सीख लिया होगा।

आग की खोज कैसे हुई इससे आदिमानव को क्या लाभ है?

इस प्रकार आग की खोज संयोग से हुईआदिमानव ने जब चकमक पत्थर की सहायता से आग जलाना सीख लिया तो वह रात के समय गुफा में आग जलाकर जंगली जानवरों से अपनी रक्षा करने लगा। उसने उजाला करना सीख लिया। आग में वह मांस से भूनकर खाने लगा।