शनिवार के दिन क्या खाते हैं? - shanivaar ke din kya khaate hain?

Shanivar, Shani Dev: शनि देव को न्याय का देवता माना गया है लेकिन ये नवग्रहों में सबसे क्रूर ग्रह भी माने जाते है. शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित है. जिन लोगों पर शनि की कृपा होती है उन्हें राजसुख प्राप्त होता है. वहीं अगर शनि की वक्र दृष्टि जिस व्यक्ति पर पड़ जाए उसका जीवन तबाह हो जाता है. जीवन में कई तरह की समस्याएं आने लगती हैं. ज्योतिश शास्त्र में शनिवार को किन चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए ये बताया गया है. खासतौर पर जिन लोगों के जीवन में शनि की ढैय्या और साढ़ेसाती चल रही हो उन्हें शनिवार को कुछ चीजें खाने से परहेज करना चाहिए.

शनिवार को क्या न खाएं:

मसूर दाल

शास्त्र के अनुसार मसूर दाल लाल रंग का पदार्थ है. इसका मंगल ग्रह से संबंध है. मंगल और शनि दोनों ग्रहों का स्वभाव क्रोधी है. कहते हैं कि शनिवार को मसूर दाल खाने से व्यक्ति के क्रोध में बढ़ोतरी हो सकती है.

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लाल मिर्च

कहते हैं कि शनिदेव शीतल पदार्थों को पसंद करते हैं. शनि के अशुभ प्रभाव से मुक्ति पाना चाहते हैं शनिवार को लाल मिर्च का सेवन नहीं करना चाहिए.

दूध

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार दूध का संबंध शुक्र ग्रह से है. शुक्र यौन इच्छाओं का कारक ग्रह है दूसरी तरफ शनि अध्यात्म बढ़ानेवाले हैं. ऐसे में शनिवार को दूध का सेवन करने से शनि के प्रकोप झेलने पड़ सकते हैं.

मदिरा

शनि को आध्यात्मिक व्यवहार पसंद है ऐसे में शनिवार को मदिरापान या किसी भी तरह की नशीली चीजों का सेवन करने से जीवन कष्टमय हो सकता है.

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Shanivar Vrat Vidhi: शनिवार का दिन मुख्य रूप से शनि देव को समर्पित होता है. शनि ही इस दिन के अधिष्ठाता देव हैं. हिंदू धर्म में इन्हें न्याय का देवता कहा गया है, क्योंकि शनि देव ही व्यक्ति को उनके कर्मों के अनुसार कर्मफल देते हैं. इनकी महादशा से बचने के लिए व्यक्तियों को शनिवार का व्रत रखना चाहिए तथा विधि पूर्वक शनि देव की पूजा करनी चाहिए. कर्मफलदाता यदि आपकी पूजा से खुश हैं तो आपके जीवन के सभी दुःख ख़त्म हो जाएगा.

शनिवार व्रत एवं पूजा विधि

शनिवार के दिन प्रातः काल जल्दी उठकर नित्यकर्म एवं स्नानादि करके शनिदेव का स्मरण करते हुए व्रत का संकल्प लें. उसके बाद घर के मंदिर या पूजा स्थल पर बैठकर शनि देव की प्रतिमा स्थापित करें. प्रतिमा यदि लोहे की बनी है तो अति उत्तम होगा. अब शनि देवता की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराएं. तथा इस मूर्ति को चावलों से बनाए चौबीस दल के कमल पर स्थापित करें. अब शनि देव को काला तिल, फूल, धूप, काला वस्त्र आदि अर्पित करें तथा तेल के दीपक जलाकर  उनका पूजन करें. शनि देव व्रत की कथा का श्रवण करें और दिनभर उनका स्मरण करते रहें.

इसके बाद गरीब और जरूरतमंद ब्राह्मण को भोजन कराएं एवं दक्षिणा दें. शनिवार का व्रत रखने वाले को व्रत में सिर्फ एकबार भोजन करना चाहिए. इस दिन चीटियों को आटा खिलाएं. यह शुभ फल दायक होता है.

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शनिवार पूजा व्रत सामग्री लिस्ट

शनि देव को काली वस्तुएं बेहद पंसद हैं इस लिए इन्हें काली चीजें अर्पित करना चाहिए.  इनकी पूजा करने के लिए निम्नलिखित चीजों की जरूरत होती है.

  • लोहे की शनिदेव की प्रतिमा
  • काला तिल
  • काला वस्त
  • काले तिल का तेल/ काली सरसों का तेल
  • कला उड़द

शनिवार व्रत पूजा का लाभ

  • शनिदेव की उपासना से कठिन परिश्रम, अनुशासन, निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि होती है.
  • शनिदेव की उपासना से रोग मुक्त जीवन तथा आयु में वृद्धि होती है.
  • शनिवार के दिन व्रत एवं पूजा करने से शनि ग्रह का दोष समाप्त हो जाता है तथा आने वाले प्रकोप से भी बचा जा सकता है.
  • शनिवार के दिन व्रत रखकर एवं पूजा करने से साढ़ेसाती और ढैय्या के प्रभाव से मुक्ति मिलती है.
  • बिगड़ा काम पूरा होता है.
  • शनिवार पूजा से नौकरी और व्यापार में सफलता मिलती है
  • शनिवार व्रत और पूजा से सुख-समृद्धि, मान-सम्मान और धन-यश की भी प्राप्ति होती है.
  • शनिवार के दिन व्रत रखने से घर में सुख और शांति बनी रहती है.

सभी ग्रहों में शनि का मनुष्य पर सबसे हानिकारक प्रकोप होता है। शनि की कुदृष्टि से राजाओं तक का वैभव पलक झपकते ही नष्ट हो जाता है। शनि की साढ़े साती दशा जीवन में अनेक दुःखों, विपत्तियों का समावेश करती है।


अतः मनुष्य को शनि की कुदृष्टि से बचने के लिए शनिवार का व्रत करते हुए शनि देवता की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। वैसे तो शनिवार का व्रत कभी भी शुरू किया जा सकता है, लेकिन श्रावण मास में शनिवार का व्रत प्रारंभ करने का विशेष महत्व माना गया है।

कैसे करें शनिवार का व्रत ?

* ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नदी या कुएं के जल से स्नान करें।

* तत्पश्चात पीपल के वृक्ष पर जल अर्पण करें।

* लोहे से बनी शनि देवता की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराएं।

* फिर इस मूर्ति को चावलों से बनाए चौबीस दल के कमल पर स्थापित करें।

* इसके बाद काले तिल, फूल, धूप, काला वस्त्र व तेल आदि से पूजा करें।

* पूजन के दौरान शनि के इन 10 नामों का उच्चारण करें- कोणस्थ, कृष्ण, पिप्पला, सौरि, यम, पिंगलो, रोद्रोतको, बभ्रु, मंद, शनैश्चर।

* पूजन के बाद पीपल के वृक्ष के तने पर सूत के धागे से सात परिक्रमा करें।

* इसके पश्चात निम्न मंत्र से शनि देव की प्रार्थना करें-

शनैश्चर नमस्तुभ्यं नमस्ते त्वथ राहवे।

केतवेअथ नमस्तुभ्यं सर्वशांतिप्रदो भव॥

* इसी तरह 7 शनिवार तक व्रत करते हुए शनि के प्रकोप से सुरक्षा के लिए शनि मंत्र की समिधाओं में, राहु की कुदृष्टि से सुरक्षा के लिए दूर्वा की समिधा में, केतु से सुरक्षा के लिए केतु मंत्र में कुशा की समिधा में, कृष्ण जौ, काले तिल से 108 आहुति प्रत्येक के लिए देनी चाहिए।

* फिर अपनी क्षमतानुसार ब्राह्मणों को भोजन कराएं तथा लौह वस्तु, धन आदि का दान करें। इस तरह शनि देव का व्रत रखने से दुर्भाग्य को भी सौभाग्य में बदला जा सकता है तथा हर विपत्ति दूर होती है।

शनिवार व्रत की पौराणिक कथा

एक समय स्वर्गलोक में 'सबसे बड़ा कौन?' के प्रश्न पर नौ ग्रहों में वाद-विवाद हो गया। विवाद इतना बढ़ा कि परस्पर भयंकर युद्ध की स्थिति बन गई। निर्णय के लिए सभी देवता देवराज इंद्र के पास पहुंचे और बोले- 'हे देवराज! आपको निर्णय करना होगा कि हममें से सबसे बड़ा कौन है?' देवताओं का प्रश्न सुनकर देवराज इंद्र उलझन में पड़ गए।

इंद्र बोले- 'मैं इस प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थ हूं। हम सभी पृथ्वीलोक में उज्जयिनी नगरी में राजा विक्रमादित्य के पास चलते हैं।

देवराज इंद्र सहित सभी ग्रह (देवता) उज्जयिनी नगरी पहुंचे। महल में पहुंचकर जब देवताओं ने उनसे अपना प्रश्न पूछा तो राजा विक्रमादित्य भी कुछ देर के लिए परेशान हो उठे क्योंकि सभी देवता अपनी-अपनी शक्तियों के कारण महान थे। किसी को भी छोटा या बड़ा कह देने से उनके क्रोध के प्रकोप से भयंकर हानि पहुंच सकती थी।

अचानक राजा विक्रमादित्य को एक उपाय सूझा और उन्होंने विभिन्न धातुओं- स्वर्ण, रजत (चांदी), कांसा, ताम्र (तांबा), सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक व लोहे के नौ आसन बनवाए। धातुओं के गुणों के अनुसार सभी आसनों को एक-दूसरे के पीछे रखवाकर उन्होंने देवताओं को अपने-अपने सिंहासन पर बैठने को कहा।

देवताओं के बैठने के बाद राजा विक्रमादित्य ने कहा- 'आपका निर्णय तो स्वयं हो गया। जो सबसे पहले सिंहासन पर विराजमान है, वहीं सबसे बड़ा है।'

राजा विक्रमादित्य के निर्णय को सुनकर शनि देवता ने सबसे पीछे आसन पर बैठने के कारण अपने को छोटा जानकर क्रोधित होकर कहा- 'राजा विक्रमादित्य! तुमने मुझे सबसे पीछे बैठाकर मेरा अपमान किया है। तुम मेरी शक्तियों से परिचित नहीं हो। मैं तुम्हारा सर्वनाश कर दूंगा।'

शनि ने कहा- 'सूर्य एक राशि पर एक महीने, चंद्रमा सवा दो दिन, मंगल डेढ़ महीने, बुध और शुक्र एक महीने, वृहस्पति तेरह महीने रहते हैं, लेकिन मैं किसी राशि पर साढ़े सात वर्ष (साढ़े साती) तक रहता हूँ। बड़े-बड़े देवताओं को मैंने अपने प्रकोप से पीड़ित किया है।

राम को साढ़े साती के कारण ही वन में जाकर रहना पड़ा और रावण को साढ़े साती के कारण ही युद्ध में मृत्यु का शिकार बनना पड़ा। राजा! अब तू भी मेरे प्रकोप से नहीं बच सकेगा।' इसके बाद अन्य ग्रहों के देवता तो प्रसन्नता के साथ चले गए, परंतु शनि देव बड़े क्रोध के साथ वहां से विदा हुए।

राजा विक्रमादित्य पहले की तरह ही न्याय करते रहे। उनके राज्य में सभी स्त्री-पुरुष बहुत आनंद से जीवन-यापन कर रहे थे। कुछ दिन ऐसे ही बीत गए। उधर शनि देवता अपने अपमान को भूले नहीं थे।

विक्रमादित्य से बदला लेने के लिए एक दिन शनि देव ने घोड़े के व्यापारी का रूप धारण किया और बहुत से घोड़ों के साथ उज्जयिनी नगरी पहुंचे। राजा विक्रमादित्य ने राज्य में किसी घोड़े के व्यापारी के आने का समाचार सुना तो अपने अश्वपाल को कुछ घोड़े खरीदने के लिए भेजा।

घोड़े बहुत कीमती थे। अश्वपाल ने जब वापस लौटकर इस संबंध में बताया तो राजा विक्रमादित्य ने स्वयं आकर एक सुंदर व शक्तिशाली घोड़े को पसंद किया।

घोड़े की चाल देखने के लिए राजा उस घोड़े पर सवार हुए तो वह घोड़ा बिजली की गति से दौड़ पड़ा।

तेजी से दौड़ता घोड़ा राजा को दूर एक जंगल में ले गया और फिर राजा को वहां गिराकर जंगल में कहीं गायब हो गया। राजा अपने नगर को लौटने के लिए जंगल में भटकने लगा। लेकिन उन्हें लौटने का कोई रास्ता नहीं मिला। राजा को भूख-प्यास लग आई। बहुत घूमने पर उसे एक चरवाहा मिला।

राजा ने उससे पानी मांगा। पानी पीकर राजा ने उस चरवाहे को अपनी अंगूठी दे दी। फिर उससे रास्ता पूछकर वह जंगल से निकलकर पास के नगर में पहुंचा।

राजा ने एक सेठ की दुकान पर बैठकर कुछ देर आराम किया। उस सेठ ने राजा से बातचीत की तो राजा ने उसे बताया कि मैं उज्जयिनी नगरी से आया हूँ। राजा के कुछ देर दुकान पर बैठने से सेठ जी की बहुत बिक्री हुई।

सेठ ने राजा को बहुत भाग्यवान समझा और खुश होकर उसे अपने घर भोजन के लिए ले गया। सेठ के घर में सोने का एक हार खूंटी पर लटका हुआ था। राजा को उस कमरे में छोड़कर सेठ कुछ देर के लिए बाहर गया।

तभी एक आश्चर्यजनक घटना घटी। राजा के देखते-देखते सोने के उस हार को खूंटी निगल गई।

सेठ ने कमरे में लौटकर हार को गायब देखा तो चोरी का संदेह राजा पर ही किया क्योंकि उस कमरे में राजा ही अकेला बैठा था। सेठ ने अपने नौकरों से कहा कि इस परदेसी को रस्सियों से बांधकर नगर के राजा के पास ले चलो।

राजा ने विक्रमादित्य से हार के बारे में पूछा तो उसने बताया कि उसके देखते ही देखते खूंटी ने हार को निगल लिया था। इस पर राजा ने क्रोधित होकर चोरी करने के अपराध में विक्रमादित्य के हाथ-पांव काटने का आदेश दे दिया। राजा विक्रमादित्य के हाथ-पांव काटकर उसे नगर की सड़क पर छोड़ दिया गया।

कुछ दिन बाद एक तेली उसे उठाकर अपने घर ले गया और उसे अपने कोल्हू पर बैठा दिया। राजा आवाज देकर बैलों को हांकता रहता। इस तरह तेली का बैल चलता रहा और राजा को भोजन मिलता रहा। शनि के प्रकोप की साढ़े साती पूरी होने पर वर्षा ऋतु प्रारंभ हुई।

राजा विक्रमादित्य एक रात मेघ मल्हार गा रहा था कि तभी नगर के राजा की लड़की राजकुमारी मोहिनी रथ पर सवार उस तेली के घर के पास से गुजरी। उसने मेघ मल्हार सुना तो उसे बहुत अच्छा लगा और दासी को भेजकर गाने वाले को बुला लाने को कहा।

दासी ने लौटकर राजकुमारी को अपंग राजा के बारे में सब कुछ बता दिया। राजकुमारी उसके मेघ मल्हार से बहुत मोहित हुई। अतः उसने सब कुछ जानकर भी अपंग राजा से विवाह करने का निश्चय कर लिया।

राजकुमारी ने अपने माता-पिता से जब यह बात कही तो वे हैरान रह गए। रानी ने मोहिनी को समझाया- 'बेटी! तेरे भाग्य में तो किसी राजा की रानी होना लिखा है। फिर तू उस अपंग से विवाह करके अपने पांव पर कुल्हाड़ी क्यों मार रही है?'

राजकुमारी ने अपनी जिद नहीं छोड़ी। अपनी जिद पूरी कराने के लिए उसने भोजन करना छोड़ दिया और प्राण त्याग देने का निश्चय कर लिया।

आखिर राजा-रानी को विवश होकर अपंग विक्रमादित्य से राजकुमारी का विवाह करना पड़ा। विवाह के बाद राजा विक्रमादित्य और राजकुमारी तेली के घर में रहने लगे। उसी रात स्वप्न में शनि देव ने राजा से कहा- 'राजा तुमने मेरा प्रकोप देख लिया।

मैंने तुम्हें अपने अपमान का दंड दिया है।' राजा ने शनि देव से क्षमा करने को कहा और प्रार्थना की- 'हे शनि देव! आपने जितना दुःख मुझे दिया है, अन्य किसी को न देना।'

शनि देव ने कुछ सोचकर कहा- 'राजा! मैं तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार करता हूँ। जो कोई स्त्री-पुरुष मेरी पूजा करेगा, शनिवार को व्रत करके मेरी व्रतकथा सुनेगा, उस पर मेरी अनुकंपा बनी रहेगी।

प्रातःकाल राजा विक्रमादित्य की नींद खुली तो अपने हाथ-पांव देखकर राजा को बहुत खुशी हुई। उसने मन ही मन शनि देव को प्रणाम किया। राजकुमारी भी राजा के हाथ-पांव सही-सलामत देखकर आश्चर्य में डूब गई। तब राजा विक्रमादित्य ने अपना परिचय देते हुए शनि देव के प्रकोप की सारी कहानी सुनाई।

सेठ को जब इस बात का पता चला तो दौड़ता हुआ तेली के घर पहुंचा और राजा के चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगा। राजा ने उसे क्षमा कर दिया क्योंकि यह सब तो शनि देव के प्रकोप के कारण हुआ था।

सेठ राजा को अपने घर ले गया और उसे भोजन कराया। भोजन करते समय वहां एक आश्चर्यजनक घटना घटी। सबके देखते-देखते उस खूंटी ने हार उगल दिया। सेठ जी ने अपनी बेटी का विवाह भी राजा के साथ कर दिया और बहुत से स्वर्ण-आभूषण, धन आदि देकर राजा को विदा किया।

राजा विक्रमादित्य राजकुमारी मोहिनी और सेठ की बेटी के साथ उज्जयिनी पहुंचे तो नगरवासियों ने हर्ष से उनका स्वागत किया। अगले दिन राजा विक्रमादित्य ने पूरे राज्य में घोषणा कराई कि शनि देव सब देवों में सर्वश्रेष्ठ हैं। प्रत्येक स्त्री-पुरुष शनिवार को उनका व्रत करें और व्रतकथा अवश्य सुनें।

राजा विक्रमादित्य की घोषणा से शनि देव बहुत प्रसन्न हुए। शनिवार का व्रत करने और व्रत कथा सुनने के कारण सभी लोगों की मनोकामनाएं शनि देव की अनुकंपा से पूरी होने लगीं। सभी लोग आनंदपूर्वक रहने लगे।

नीलांजनं समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌।

छायामार्तण्ड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम्‌॥


शनिवार व्रत की आरती

आरती कीजै नरसिंह कुंवर की।

वेद विमल यश गाऊं मेरे प्रभुजी॥

पहली आरती प्रहलाद उबारे।

हिरणाकुश नख उदर विदारे॥

दूसरी आरती वामन सेवा।

बलि के द्वार पधारे हरि देवा॥

तीसरी आरती ब्रह्म पधारे।

सहसबाहु के भुजा उखारे॥

चौथी आरती असुर संहारे।

भक्त विभीषण लंक पधारे॥

पांचवीं आरती कंस पछारे।

गोपी ग्वाल सखा प्रतिपाले॥

तुलसी को पत्र कंठ मणि हीरा।

हरषि-निरखि गावें दास कबीरा॥

शनि व्रत करने से लाभ

* शनिवार की पूजा सूर्योदय के समय करने से श्रेष्ठ फल मिलता है।

* शनिवार का व्रत और पूजा करने से शनि के प्रकोप से सुरक्षा के साथ राहु, केतु की कुदृष्टि से भी सुरक्षा होती है।

* मनुष्य की सभी मंगलकामनाएं सफल होती हैं।

* व्रत करने तथा शनि स्तोत्र के पाठ से मनुष्य के जीवन में धन, संपत्ति, सामाजिक सम्मान, बुद्धि का विकास और परिवार में पुत्र, पौत्र आदि की प्राप्ति होती है। अत: शनिदेव की पूजा अवश्य करना चाहिए।


शनिवार के दिन भोजन में क्या खाना चाहिए?

शनिवार के व्रत में एक समय के भोजन का विधान है. उड़द की दाल की खिचड़ी अथवा दाल खाई जाती है. शनि की पूजा में काले तिल, काले वस्त्र, तेल, उड़द आदि का उपयोग किया जाता है क्योंकि ये सभी शनि महाराज की वस्तुएँ मानी जाती है.

शनिवार को को क्या खिलाना चाहिए?

कहते हैं कि शनिवार को मसूर दाल खाने से व्यक्ति के क्रोध में बढ़ोतरी हो सकती है. कहते हैं कि शनिदेव शीतल पदार्थों को पसंद करते हैं. शनि के अशुभ प्रभाव से मुक्ति पाना चाहते हैं शनिवार को लाल मिर्च का सेवन नहीं करना चाहिए. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार दूध का संबंध शुक्र ग्रह से है.

शनिवार को कौन सी सब्जी खानी चाहिए?

ज्योतिषशास्त्र में कहा जाता है कि शनिवार के दिन खिचड़ी खाने से शनि प्रसन्न होते हैं। इसी प्रकार काले चने की सब्जी खाना भी शनि को अनुकूल बनाता है। ऐसी मान्यता है कि शनिवार के दिन चावल, चिवड़ा या चने का भुजा खाना भी शनि के प्रतिकूल प्रभाव को दूर करता है।

शनि देव को कौन सा फल पसंद है?

कहा जाता है कि शनिदेव को आक के फूल बेहद प्रिय हैं.