टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक के जनक कौन थे? - test tyoob bebee takaneek ke janak kaun the?

  • लुइस के जन्म के बाद से आज तक दुनिया में 80 लाख टेस्ट ट्यूब बेबी जन्म ले चुके हैं
  • भारत में पहली टेस्ट ट्यूब बेबी हर्षा चावड़ा का जन्म 6 अगस्त 1986 को हुआ था

लंदन. इंग्लैंड का ओल्डहैम जनरल हॉस्पिटल। अस्पताल के बाहर फोटोग्राफर्स और पत्रकारों की भीड़। अस्पताल के कॉरिडोर में भारी पुलिस बल। दरअसल यहां उस बच्ची का जन्म होने वाला था, जिसे बाद में 'बेबी ऑफ द सेंचुरी' कहा गया। दिन था- 25 जुलाई 1978। इस दिन दुनिया की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी लुइस जॉय ब्राउन का जन्म हुआ था। जन्म हाेते ही उनकी 60 से ज्यादा जांचें की गईं, ताकि यह पता चल सके कि वह सामान्य बच्चों जैसी ही हैं। अब अगले सप्ताह वे अपना 40वां जन्मदिन मनाने जा रही हैं। अपनी ऑटोबायोग्राफी में उन्होंने बताया है कि लोग उस समय उनके माता-पिता को हजारों पत्र भेजते थे, जिसमें अधिकांश नफरत भरे होते थे। उन्होंने बताया कि एक बार उन्हें एक ऐसा पत्र मिला जो खून में सना था। उस समय के धार्मिक नेता और अधिकांश लोग इसे गलत और अप्राकृतिक मानते थे।

नफरत भरे संदेशों के कारण मां लुइस को बाहर नहीं ले जाती थीं: लुइस बताती हैं कि एक बार उन्हें किसी ने टूटी हुई टेस्ट ट्यूब भेजी थी। उन्हें कई धमकी भरे पत्र भी भेजे गए। लोगों ने प्लास्टिक के भ्रूण तक भेजे। वे बताती हैं कि एक बार एक पार्सल आया, जिस पर केवल लुइस ब्राउन, टेस्ट ट्यूब बेबी, ब्रिस्टल, इंग्लैंड लिखा हुआ था। इसे सैन फ्रैंसिस्को से भेजा गया था। इसे मां ने खोला। इसके अंदर एक छोटा बॉक्स था, जिसके अंदर लाल रंग से सना हुआ एक कागज का टुकड़ा था, जिसके साथ टेस्ट ट्यूब बेबी वॉरेंटी कार्ड लिखा हुआ एक और कार्ड था। एक अन्य बुकलेट भी भेजी गई थी, जिसमें सुझाव दिया गया था कि टेस्ट ट्यूब बेबी को टॉयलेट बाउल या फिश टैंक में भी रख सकती हैं। वे कहती हैं कि ऐसे नफरत भरे संदेशों के कारण मेरी मां लेस्ली मुझे कहीं बाहर ले जाने में भी डरती थीं। 

जब उनसे पूछा गया- तुम आखिर एक टेस्ट ट्यूब में आई कैसे?: वहीं, करीब 9 साल तक मां न बन पाने के कारण लेस्ली के लिए यह तकनीक एक वरदान थी। लुइस कहती हैं कि हर महिला को मां बनने का अधिकार है, उसके लिए ऐसी तकनीक किसी वरदान से कम नहीं है। लुइस की छोटी बहन नताली ब्राउन भी टेस्ट ट्यूब बेबी हैं। उनका जन्म लुइस से चार साल बाद हुआ था। मई 1999 में नताली जब खुद मां बनीं तो वो दुनिया की पहली ऐसी महिला रहीं जो खुद तो आईवीएफ से जन्मी, लेकिन उनका बच्चा सामान्य तरह से हुआ। शुरुआत में स्कूल में लुइस को काफी ताने सहने पड़ने थे, एक बार स्कूल में उनसे किसी ने पूछा कि तुम आखिर एक टेस्ट ट्यूब में आई कैसे? हालांकि, लुइस आज अपने दोनों बच्चों के साथ खुश हैं और जगह-जगह पर साक्षात्कार और लेखों के जरिए लोगों को इसके लिए जागरूक कर रही हैं। आज लुइस एक शिपिंग अॉफिस में काम करती हैं। उनके दो बेटे हैं, दोनों का ही जन्म सामान्य है। लुइस ने साल 2004 में नाइट क्लब के बाउंसर वेस्ले मुलिंडर से शादी की।

अब दुनिया में 80 लाख से ज्यादा टेस्ट ट्यूब बेबी: लुइस के जन्म के बाद से आज तक दुनिया में 80 लाख टेस्ट ट्यूब बेबी जन्म ले चुके हैं। वर्तमान में करीब 5 लाख बच्चे प्रतिवर्ष दुनिया में इस तकनीक से जन्म लेते हैं। भारत में 6 अगस्त 1986 को पहली टेस्ट ट्यूब बेबी हर्षा चावड़ा का जन्म हुआ था। उन्होंने दो साल पहले एक बेटे को जन्म दिया है।



हजारीबाग के डॉ सुभाष मुखोपाध्याय की निगरानी में तीन अक्तूबर 1978 को दुर्गा (भारत की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी, दुनिया की दूसरी) का जन्म हुआ, उसके ठीक 67 साल दिन पहले ब्रिटेन में राॅबर्ट एडवर्ड और पैट्रिक स्टेपटो की निगरानी में दुनिया की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी लुईस जोय ब्राउन का जन्म हुआ था. इसके जनक रॉबर्ट एडवर्ड को 2010 का मेडिसीन में नोबेल पुरस्कार दिया गया.


अनुज कुमार सिन्हा


इतिहास के पन्नों को एक बार पलटिए. पता चल जायेगा कि कैसे एक डॉक्टर की जिंदगी तबाह हो गयी. उन्हें सरकार (बंगाल) और अपने सहयोगियों ने इतना प्रताड़ित किया कि उन्होंने आत्महत्या कर ली. डॉक्टर का नाम है - डॉ सुभाष मुखोपाध्याय. जन्म स्थान : हजारीबाग, घटनास्थल : कोलकाता और घटना (आत्महत्या) का वर्ष 1981. आरंभिक पढ़ाई हजारीबाग में करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए वे कोलकाता चले गये थे. वहां से एमबीबीएस की डिग्री ली और बाद में वहीं (कोलकाता में ही) बस गये.

डॉ सुभाष मुखोपाध्याय ने अपने सहयोगियों के साथ तीन अक्तूबर 1978 को भारत में आइवीएफ प्रणाली से पहली टेस्ट ट्यूब बेबी दुर्गा (कनुप्रिया अग्रवाल) का जन्म कराया. पर दुर्भाग्य देखिए, उनके दावे को किसी ने नहीं माना, दावे को उस समय ठुकरा दिया गया. मान्यता नहीं दी गयी. बोगस दावा कहा गया. डाॅ मुखोपाध्याय का तबादला कर उन्हें दंडित भी किया गया. इसका सीधा असर डाॅ सुभाष पर पड़ा. वे डिप्रेशन में रहने लगे. कहीं से न्याय की आस नहीं डॉ सुभाष ने 19 जून 1981 को आत्महत्या कर ली. उनकी मौत के पांच साल बाद यानी 1986 में मुंबई में डॉ टीसी आनंद कुमार की निगरानी में हर्षा नामक बच्ची का जन्म हुआ, जिसे भारत का पहला आधिकारिक टेस्ट बेबी माना गया.

(गौर कीजिए हर्षा क जन्म के आठ साल पहले ही भारत की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी दुर्गा का जन्म हो चुका था, भले ही उसे मान्यता नहीं दी गयी थी0. डॉ सुभाष की मौत के 16 साल बाद पहली बार देश ने इस बात को स्वीकार किया कि डॉ मुखोपाध्याय का दावा सही था और वे ही भारत में टेस्ट ट्यूट बेबी के जनक थे, डॉ टीसी आनंद कुमार नहीं. दुर्गा ही पहली टेस्ट ट्यूब बेबी थी, हर्षा नहीं.

टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक के जनक कौन थे? - test tyoob bebee takaneek ke janak kaun the?
टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक के जनक कौन थे? - test tyoob bebee takaneek ke janak kaun the?

कनुप्रिया अग्रवाल उर्फ: डॉ मुखोपाध्याय की निगरानी में भारत में पहली टेस्ट ट्यूब बेबी.

डॉ सुभाष का दावा और शोध कार्य तो इतिहास में दफन हो चुका था. यह मामला दफन ही रहता अगर उनकी डायरी और शोध कार्य से संबंधित पेपर डॉ आनंद कुमार के हाथ नहीं लगते. डॉ सुभाष के शोध कार्य से जुड़े दस्तावेज पढ़ने के बाद डॉ आनंद कुमार ने माना कि जो श्रेय उन्हें मिल रहा है, उसके असली हकदार वे नहीं बल्कि सुभाष मुखोपाध्याय हैं. क्योंकिउन्होंने 1978 में आइवीएफ सिस्टम से जिस लड़की दुर्गा के जन्म कराने का दावा किया था, वह दावा बिल्कुल सही था. 2001 आते-आते डॉ मुखाेपाध्याय के दावे काे अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिल गयी, लेकिन बिंडबना देखिए-इस दावे काे सच मानने के बाद इस खुशी काे महसूस करने के लि ए डॉ सुभाष दुनिया में नहीं थे. 16 साल पहले ही डॉ सुभाष मुखाेपाध्याय दुखित मन से, उदास-निराश-हताश हाे कर इस दुनिया से उठ चुके थे. यहां गाैर करने की बात यह है कि डॉ मुखाेपाध्याय की निगरानी में 3 अक्तूबर 1978 काे दुर्गा (भारत में पहली टेस्ट ट्यूब बेबी, दुनिया की दूसरी) का जन्म हुआ, उससे ठीक 67 दिन पहले ब्रिटेन में रॉबर्ट एडवर्ड आैर पैट्रिक स्टेपटाे की निगरानी में दुनिया की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी लुईस जाेय ब्राउन का जन्म हुआ था. इसके जनक रॉबर्ट एडवर्ड काे 2010 का मेडिसीन में नाेबेल पुरस्कार दिया गया. डॉ मुखाेपाध्याय आैर रॉबर्ट एडवर्ड ने आइवीएफ पर लगभग साथ-साथ काम किया था. काश, डॉ मुखाेपाध्या य काे थाेड़ा प्राेत्साहन मिला हाेता, ताे शायद दुनिया की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी के जनक हाेने का श्रेय डॉ मुखाेपाध्याय काे (यानी भारत के वैज्ञानिक काे) जाता आैर नाेबेल पुरस्कार रॉबर्ट एडवर्ड की जगह डॉ मुखाेपाध्याय काे मिलने की संभावना बनती. डॉ मुखाेपाध्याय की माैत की घटना इतनी चाैंकानेवाली थी कि उनकी जीवनी पर प्रसिद्ध निर्देशक तपन सिन्हा ने एक डॉक्टर की माैत नामक फिल्म (पंकज कपूर, शबाना आजमी) बनायी, जिसे कई राष्ट्रीय पुरस्कार मिले.

विदेश से लाैटने पर शाेध कार्य में जुड़ने के बाद डॉ सुभाष मुखाेपाध्याय का पूरा जीवन ही संघर्ष में बीता. 16 जनवरी 1931 काे हजारीबाग में एक चिकित्सक परिवार में सुभाष मुखाेपाध्याय का जन्म हुआ था. आरंभिक पढ़ाई भी वहीं हुई. बाद में उन्हाेंने नेशनल मेडिकल कॉलेज, काेलकाता से पढ़ाई की. रिप्राडेक्टिव इंडोक्रिनाेलॉजी विषय पर पीएचडी करने के लिए वे इंग्लैंड के एडिनबरा यूनिवर्सिटी गये. 1967 में वहां से लाैटने पर आइवीएफ प्रणाली से बच्चे के जन्म के रिसर्च में जुट गये. साधन आैर जगह की कमी की के कारण अपने फ्लैट में ही शाेध कार्य जारी रखा. डॉ सुनीत मुखर्जी आैर डॉ सराेज कांति भट्टाचार्य उनके सहयाेगी थी. डॉ सुभाष की मेहनत रंग लायी. इसी प्रणाली से एक बच्ची का जन्म हुआ. डॉ सुभाष ने दावा किया कि उनकी टीम (जिस में दाे डॉक्टर आैर थे) 3 अक्तूबर 1978 काे आइवीएफ प्रणाली से भारत के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी (दुर्गा ) काे जन्म देने में सफल रही है. लेकिन तत्कालीन बंगाल सरकार आैर मेडिकल क्षेत्र के अधिकारियाें ने उनके दावे काे नहीं माना. जांच के लिए एक्सपर्ट कमेटी बना दी गयी. इस कमेटी के बनने के बाद डॉ सुभाष काे प्रताड़ित करने का दाैर शुरू हुआ. यह डॉ सुभाष के जीवन का सबसे कठिन दाैर था. 18 नवंबर 1978 काे कमेटी की बैठक हुई. डॉ सुभाष काे बुलाया गया आैर अजीब-अजीब सवाल किये गये. बैठक में यह कहा गया कि सामान्य यंत्र आैर रेफ्रिजेरेटर से यह काम संभव ही नहीं है. डॉ सुभाष काे हताेत्साहित किया गया, मजाक उड़ाया गया. अंत में कमेटी ने रिपाेर्ट दी कि डॉ सुभाष मुखाेपाध्याय ने भारत के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी के जन्म का जाे दावा किया है, वह गलत है. इसके बाद डॉ सुभाष का तबादला भी कर दिया गया, ताकि वे शाेध कार्य आगे जारी नहीं रख सके. इस निर्णय से डॉ सुभाष आहत हुए. वे डिप्रेशन में चले गये. उन्हें हार्ट अटैक भी आया. 19 जून 1981 काे अपने फ्लैट में डॉ सुभाष ने फंदे से झूल कर आत्महत्या कर ली. साथ में यह नाेट लिख छाेड़ा -मैं उस हार्ट अटैक का हर दिन इंतजार नहीं कर सकता, जिससे मेरी माैत हाे.

टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक के जनक कौन थे? - test tyoob bebee takaneek ke janak kaun the?
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रॉबर्ट एडवर्ड : विश्व में आइवीएफ की शुुरुआत करने वाले, 2010 में नोबेल मिला.


समय बीतता रहा. 1986 में आइवीएफ प्रणाली से हर्षा नामक बच्ची का जन्म हुआ आैर इसका श्रेय मिला डॉ टीएन आनंद कुमार (निदेशक, आइसीएमआर) काे. उन्हें ही भारत के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी के जनक हाेने का आधिकारिक श्रेय दिया गया. डॉ सुभाष का मामला पुराना पड़ चुका था. लाेग इसे भूल चुके थे. उनकी पत्नी नमिता मुखर्जी चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रही थीं. डॉ मुखाेपाध्याय का रिसर्च पेपर आैर कई बहुमूल्य कागजात उनके पास पड़े थे. इस बीच 1997 में साइंस कांग्रेस में भाग लेने के लिए डॉ टीएन आनंद कुमार काेलकाता आये. डॉ सुभाष के कार्य काे मान्यता मिलने में यही टर्निंग प्वाइंट रहा. डॉ सुभाष के पुराने सहयाेगी आैर कुछ अन्य साथियाें ने उनके (डॉ सुभाष) रिसर्च पेपर, डायरी काे डॉ आनंद काे साैंप दिया. डॉ कुमार ने उनका अध्ययन किया आैर पाया कि डॉ मुखाेपाध्या य का दावा सही था आैर भारत के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी के जनक हाेने का श्रेय डॉ सुभाष मुखाेपाध्याय काे ही मिलना चाहिए. डॉ कुमार यहीं नहीं रुके, उन्हाेंने डॉ सुभाष के दावे काे मान्यता दिलाने की पहल की. यह उन्हीं के प्रयास का फल रहा कि 2003 में आइसीएमआर ने डॉ सुभाष के कार्य काे मान्यता दे दी. इतिहास फिर सेलिखा गया आैर इसमें नाम जुड़ा डॉ सुभाष का. इसके कुछ समय बाद ही पहली टेस्ट ट्यूब बेबी दुर्गा यानी कनुप्रिया अग्रवाल खुद सामने आ गयी. डॉ सुभाष के सम्मान में आयाेजित कार्यक्रम में उन्हाेंने खुद इस बात का खुलासा किया कि सारा श्रेय डॉ सुभाष मुखाेपाध्याय काे जाता है. उन्हाेंने उन परिस्थिति का भी जिक्र किया जिस के कारण उनके माता-पिता दुनिया काे सच बता नहीं पाये थे. इस कार्यक्रम का आयाेजन भारत में आइवीएफ के 25 साल पूरा हाेने डॉ टीएन आनंद कुमार ने ही किया था. अब तक सच दुनिया के सामने आ चुका था. 2007 में डॉ सुभाष के काम काे तब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली जब उनकी उपलब्धियाें काे डिक्शनरी अॉफ मेडिकल बायाेग्राफी में शामिल किया गया. इसमें पूरी दुनिया के साै देशाें के 1100 प्रमुख चिकित्सकाें के याेगदान काे शामिल किया जाता है. अब इतिहास बदल चुका है. डॉ सुभाष अमर हाे चुके हैं. जाे गलतियां 1978 में की गयी थी, उसे ठीक कर लिया गया है. सचमुच डॉ सुभाष मुखाेपाध्या एक जीनियस डॉक्टर थे.

टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक का जनक कौन है?

विश्व में पहले टेस्ट ट्यूब बेबी को पैदा कराने वाले डॉ. राबर्ट एडवर्ड, जिन्हें आइवीएफ तकनीक का जनक माना जाता है, उन्हें 2010 में मेडिसिन में नोबल पुरस्कार मिला। वास्तविकता यह है कि डॉ. मुखोपाध्याय और एडवर्ड ने आइवीएफ पर लगभग साथ-साथ कार्य आरंभ किया था।

दुनिया की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी कौन थी?

दिन था- 25 जुलाई 1978। इस दिन दुनिया की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी लुइस जॉय ब्राउन का जन्म हुआ था।

भारत के प्रथम टेस्ट ट्यूब बेबी कौन है?

लुइस के 67 दिन बाद ही कोलकाता के डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय ने देश की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी को अवतरित कर दिया था। दुर्गा पूजा के दिन हुई, इसलिए दुर्गा कहने लगे, बाद में नाम रखा कनुप्रिया अग्रवाल।

कनुप्रिया अग्रवाल कौन है?

दुनिया की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी 25 जुलाई 1978 में लुइस ब्राउन के रूप आई थी। लुइस के 67 दिन बाद कोलकाता के डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय ने भारत की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी को अवतरित कर दिया था। यह बच्ची दुर्गा पूजा के दिन हुई थी इसलिए दुर्गा के नाम से जानी जाने लगी थी लेकिन बाद में इसे कनुप्रिया अग्रवाल नाम दिया गया।