Show
सूक्ष्म-शिक्षण सूक्ष्म शिक्षण की प्रकृति (Nature of microteaching)सूक्ष्म शिक्षण की प्रकृति के बारे में अग्रलिखित तथ्य उद्घाटित किया गया है –
सूक्ष्म शिक्षण के प्रमुख सिद्धान्त (Main principles of Micro-teaching)सूक्ष्म शिक्षण के सिद्धान्त शिक्षाविदों ने निम्नवत् बताये हैं- (1) अभ्यास का सिद्धान्त- सूक्ष्म शिक्षण वास्तव में शिक्षक बनने से पूर्व अभ्यासार्थ किया गया शिक्षण होता है। शिक्षक द्वारा यह अभ्यास लगातार किया जाता है क्योंकि यदि इसमें निरन्तरता नही होती तो शिक्षण कौशल का यथोचित विकास करने में कठिनाइयाँ उत्पन्न होने लगती हैं। इसी कारण सूक्ष्म शिक्षण में कक्षा का आकार, पाठ्यक्रम का आकार, छात्रों की कम संख्या (जिसमें मात्र 5 या 10 छात्र होते हैं) के आधार पर निरन्तर अभ्यास कराया जाता है, जिससे छात्राध्यापक शिक्षण-कौशलों में निपुणता अर्जित कर सके। (2) प्रबलन का सिद्धान्त- सूक्ष्म शिक्षण के छात्राध्यापकों को अपने शिक्षण कौशल की प्रभावकारिता की जानकारी होती है, इससे उन्हें पुनर्बलन (Reinforcement) मिलता है, अतएव पृष्ठ पोषण प्राप्त करके वे अपने शिक्षण को व्यावहारिक,उपयोगी एवं प्रभावशाली बनाने में समर्थ हो जाते हैं। (3) सूक्ष्म शिक्षण सिद्धान्त- छात्राध्यापक जब सूक्ष्म शिक्षण दे रहा होता है तभी विशेषज्ञों द्वारा उनके हाव-भाव, भंगिमा, सम्प्रेषण, शैली, शिक्षण कौशल इत्यादि का सूक्ष्म निरीक्षण भी किया जाता है, जिसको विशेषज्ञ निर्धारण मापनी (Rating Scale) पर समायोजित करके मूल्यांकन करता है। विषय-विशेषज्ञों द्वारा सभी मूलभूत तथ्यों पर ध्यान रखा जाता है। तदुपरान्त छात्राध्यापकों को उनकी परिसीमाएं बतायी जाती हैं और सुधार हेतु आवश्यक परामर्श भी दिया जाता है। (4) निरन्तरता का सिद्धान्त- सूक्ष्म शिक्षण की प्रक्रिया प्रशिक्षण अवधि तक लगातार चलती रहती है जिससे छात्राध्यापक को शिक्षण देने सम्बन्धी बहुत सी जानकारियों का बोध होता है और वे एक कुशल शिक्षक बनकर अपनी भूमिका का कुशलतम निर्वाह करने में सक्षम हो जाते हैं। सूक्ष्म शिक्षण की निरन्तरता को निम्न चित्र द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है। सूक्ष्म शिक्षण के महत्त्व (Importance)सूक्ष्म शिक्षण के महत्त्व को निम्नवत् व्यक्त किया जा सकता है-
सूक्ष्म शिक्षण की परिसीमाएँ (Limitations)सूक्ष्म शिक्षण की प्रमुख परिसीमाएँ निम्नवत् हैं-
महत्वपूर्ण लिंक
Disclaimer: wandofknowledge.com केवल शिक्षा और ज्ञान के उद्देश्य से बनाया गया है। किसी भी प्रश्न के लिए, अस्वीकरण से अनुरोध है कि कृपया हमसे संपर्क करें। हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे। हम नकल को प्रोत्साहन नहीं देते हैं। अगर किसी भी तरह से यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है, तो कृपया हमें पर मेल करें। About the authorमाइक्रो टीचिंग के जन्मदाता कौन है?सूक्ष्म शिक्षण विधि के जनक / माइक्रो टीचिंग के जनक डी• एलन (D. Allen) है, इन्होंने ही सूक्ष्म शिक्षण का नामकरण 1963 में अमेरिका के स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय (Stanford University) में किया था।
सूक्ष्म शिक्षण से क्या तात्पर्य है सूक्ष्म शिक्षण के स्तर व प्रक्रिया का वर्णन कीजिए?सूक्ष्म शिक्षण एक ऐसी तकनीक है, जिसका उद्देश्य शिक्षक उम्मीदवारों को वास्तविक कक्षा व्यवस्था के लिए तैयार करना है। इस तकनीक की मदद से, शिक्षक उम्मीदवार प्रत्येक शिक्षण कौशल को छोटे भागों में तोड़कर और भीड़-भाड़ वाली कक्षाओं के अराजक वातावरण का सामना किए बिना, सीखने का प्रयास करता है।
सूक्ष्म शिक्षण से क्या तात्पर्य है?सूक्ष्म शिक्षण अध्यापकों को शिक्षण अभ्यास की ऐसी स्थिति प्रदान करता है जिसमें कक्षा की सामान्य जटिलताएँ बहुत कम होती हैं और अध्यापकों को अपने शिक्षण कार्य का तुरन्त पृष्ठपोषण (Feedback) प्राप्त हो जाता है। सामान्य शिक्षण की जटिलताओं को कम करने के लिए कुछ सीमित आयाम निर्धारित किये जाते हैं।
सूक्ष्म शिक्षण का महत्व क्या है?1- सूक्ष्म शिक्षण के द्वारा छात्राध्यापकों में आसानी से कौशलों का विकास किया जाता हैं। 2- सूक्ष्म शिक्षण के द्वारा प्रशिक्षण की गुणवत्ता में वृद्धि होती हैं। 3- इस प्रकार से छात्रध्यापक कम समय में अधिक सिख पाते हैं। 4- सूक्ष्म शिक्षण के द्वारा उत्तम शिक्षक का निर्माण किया जाता हैं।
|