मशीन युक्त नामों से क्या क्या नुकसान और फायदे हुए हैं? - masheen yukt naamon se kya kya nukasaan aur phaayade hue hain?

समुद्री तट (1)
यहाँ सागर और ज़मीन मिलते हैं। एक तरफ रेत का मैदान - दूसरी तरफ अनन्त सागर। इस जगह साल भर, दिन भर लहरें चलती रहती हैं, कभी ऊँची-ऊँची, कभी छोटी-छोटी लहरें। लहरें तट पर टकराती रहती हैं।

मशीन युक्त नामों से क्या क्या नुकसान और फायदे हुए हैं? - masheen yukt naamon se kya kya nukasaan aur phaayade hue hain?
समुद्री तट (2)
यह भी समुद्र तट है : मगर इस तरफ रेत नहीं बल्कि पहाड़ और चट्टानें हैं। सागर की लहरें यहाँ भी दिन भर चलती हैं - लेकिन इन चट्टानों से टकरा कर लौट जाती हैं। दिन भर धड़ाम-धड़ाम, लहरों के टकराने की आवाज़ गूँजती रहती है।

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नदी का मुहाना (1)
यह सागर और नदी का संगम है। नदी का पाट आस-पास की ज़मीन से नीचे है। जब भी समुद्र में ज्वार आता है और समुद्र का स्तर ऊँचा हो जाता है, तब समुद्र का पानी नदी में घुस जाता है। जब भाटा आता है, तब समुद्र का स्तर गिरता है और नदी का पानी फिर से समुद्र में जाने लगता है।

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नदी का मुहाना (2) (डेल्टा)
यह भी एक तरह का नदी का संगम है। मगर यहाँ पर नदी अनेक शाखाओं में बंटकर समुद्र में गिरती है। नदी की सतह आस-पास की ज़मीन के बराबर है। इस कारण नदी में पानी बढ़ने पर बाढ़ का पानी चारों ओर फैल जाता है।

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समुद्र से जुड़े लोग
मछुआरों का गाँव

समुद्र के किनारे हज़ारों वर्षों से मछुआरों के गाँव बसे हैं। ये लोग समुद्र से मछली पकड़ने का धंधा करते हैं। मछली को शहरों और खेती करने वालों के गाँव में बेचते हैं और अपनी दूसरी जरूरत की चीज़े खरीदते हैं।

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खेती करने वालों के गाँव
समुद्र तट से थोड़े अन्दर ये गाँव बसे हैं। इनको खेती के लिये पानी नदियों से मिलता है, जो खेतों तक नहरों से पहुँचाया जाता है। जहाँ नदियाँ न हो, वहाँ पानी कम रहता है और लोग तालाब व कुओं से सिंचाई करते हैं।

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बंदरगाह
यहाँ पर देश-विदेश के जहाज आकर रूकते हैं। इनमें माल चढ़ाया जाता है। बन्दरगाह तक माल लाने ले जाने के लिये रेल लाइनें बिछी हैं और रेल गाड़ियाँ चलती हैं। यहाँ पर हज़ारों मज़दूर मज़दूरी करते हैं।

नदियों में बाढ़ और खेत
भारत के पश्चिमी तट पर बरसात के महीनों में खूब वर्षा होती है। वहाँ वर्षा मई और जून में प्रारंभ हो जाती है। पूर्वी तट में इतनी वर्षा तो नहीं होती है मगर पूर्वी तट के लोग वहाँ बहने वाली नदियों का फायदा उठाते हैं। ये नदियाँ पश्चिमी घाट से निकलती हैं, जहाँ मई, जून, जुलाई, अगस्त के महीनों में खूब वर्षा होती है। यह पानी इन नदियों में बहकर पूर्वी मैदान में आ पहुँचता है।

मशीन युक्त नामों से क्या क्या नुकसान और फायदे हुए हैं? - masheen yukt naamon se kya kya nukasaan aur phaayade hue hain?
मशीन युक्त नामों से क्या क्या नुकसान और फायदे हुए हैं? - masheen yukt naamon se kya kya nukasaan aur phaayade hue hain?
वर्षा के इस पानी के साथ पश्चिमी घाट से महीन गाद मिट्टी और सड़े-गले पौधे व पत्ते भी बहकर आते हैं। तब डेल्टा में बाढ़ आती है और नदी अपने किनारे तोड़कर खेतों में घुसती है या फिर नहरों द्वारा बाढ़ के पानी को खेतों तक ले जाया जाता है। नदी उन खेतों में गाद और सड़ी-गली वनस्पति बिछाती है।

इससे मिट्टी में नमी और उर्वरक शक्ति बढ़ जाती है। इसी कारण डेल्टा प्रदेश में बहुत अच्छी खेती हो पाती है। मगर इसके साथ-साथ बाढ़ के कारण बस्तियाँ नष्ट हो जाती हैं, फसलें डूब जाती हैं। अच्छे उपजाऊ खेत में रेत बिछ जाती है। इसलिये बाढ़ के पानी को रोकने के लिये लोग नदियों के दोनों किनारे ऊँचे बंधान बनाते हैं।

नदियों से पानी आसानी से मिलने के कारण डेल्टा प्रदेशों में सदियों से बहुत अधिक सिंचाई होती आ रही है।
भारत में सिंचाई के मानचित्र में देखो, कृष्णा, गोदावरी, महानदी और कावेरी के डेल्टाओं में कितनी सिंचाई होती हैं?

डेल्टा में फसलें
इन नदियों में मई के महीने से बाढ़ आने लगती है और तभी से खेती का काम शुरू हो जाता है। मई के महीने में खेत तैयार करके बोनी हो जाती है। यह फसल मुख्य रूप से धान की ही रहती है। यह फसल सितंबर में कट जाती है और अक्टूबर में उसी खेत में दोबारा धान बोया जाता है। इस फसल के लिये पानी अक्टूबर की बारिश से मिलता है। फिर यह फसल जनवरी में काटी जाती है और उसी खेत में मूंग बोया जाता है जो अप्रैल में कटता है। इस तरह यहाँ लगभग साल भर खेती का काम चलता रहता है।

धान के अलावा डेल्टाओं में जगह-जगह केला, पान, सुपारी आदि के बगीचे लगाए गए हैं। तुम शायद जानते होंगे कि इन फसलों के लिये काफी पानी की ज़रूरत पड़ती है।

नदियों पर बांध
पिछले 40 वर्षों में नदियों से बहने वाले पानी का और अधिक उपयोग करने के लिये और बाढ़ को रोकने के लिये उन पर कई बांध बनाए गए हैं। ये बांध अधिकतर ऐसी जगह पर बनाए गए हैं, जहाँ नदियाँ दक्कन के पठार से मैदान में उतरती हैं। इस तरह के बांध महानदी, कृष्णा और कावेरी पर बने हैं। इन बांधों में वर्षा के पानी को रोका जाता है। इस पानी को धीरे-धीरे,खेती की ज़रूरतों के अनुसार छोड़ा जाता है। नहरों के द्वारा इस पानी को तटीय मैदान के उन क्षेत्रों में भी ले जाया जाता है जहाँ पानी की कमी है।

मगर इस तरह के बांधों के कारण डेल्टा में रहने वालों को कई दिक्कतें भी हुई हैं। बांध में रुके पानी को बांध के आस-पास के प्रदेशों में उपयोग किया जाता है। इसके कारण डेल्टा में पहले से कम पानी, गाद और सड़े-गले पौधे पहुँच पाते हैं और वहाँ मिट्टी की उर्वरता कम होती जा रही है।

घनी आबादी
डेल्टाओं में तीन या चार फसल ले पाने के कारण यहाँ बहुत सारे लोग बस पाए हैं। तुम भारत की जनसंख्या के मानचित्र में देखो तो पाओगे कि डेल्टा प्रदेशों में बहुत घनी आबादी बसी है।

पूर्वी तट के अन्य प्रदेश
अगर तुम मानचित्र में पूर्वी तटीय मैदान को देखो तो पाओगे कि वहाँ डेल्टाओं के बीच के प्रदेश भी हैं - महानदी और गोदावरी नदी के बीच, कृष्णा और कावेरी डेल्टा के बीच, कावेरी के दक्षिण का प्रदेश। इन प्रदेशों में तो बड़ी नदियाँ नही हैं। इसलिये यहाँ न पश्चिमी घाट पर हुई वर्षा का पानी आता है और न गाद जमा होती है। ये प्रदेश डेल्टाओं की तुलना में सूखे प्रदेश हैं। इन प्रदेशों के लोगों को वहाँ होने वाली वर्षा से ही काम चलाना पड़ता है। फिर भी यहाँ एक या कभी-कभी दो फसल लायक वर्षा हो जाती है।

यहाँ के लोग वर्षा के पानी को छोटे तालाबों में इकट्ठा करके रखते हैं। इससे मिट्टी में नमी रहती है और ज़रूरत पड़ने पर सिंचाई की जा सकती है। मगर इनसे पूरे क्षेत्र की सिंचाई नहीं हो पाती है। कुछ ही हिस्सों में सिंचित खेती होती है। डेल्टा प्रदेश में अत्यधिक पानी के कारण वहाँ केवल धान ही उगाया जा सकता है। लेकिन तटीय प्रदेश के दूसरे हिस्सों में धान के अलावा कई अन्य फसलें, जिन्हें कम पानी की आवश्यकता है, उगायी जा सकती है, जैसे - कपास, तंबाकू, मूंगफली, तिल, मिर्ची, दालें आदि। जहाँ सिंचाई की व्यवस्था नहीं हो पाती है, वहाँ मुख्य रूप से ज्वार और रागी जैसे खाद्यान्न उगाए जाते हैं।

- डेल्टा के किसानों को नदियों में आने वाली बाढ़ों से क्या फायदे होते हैं और क्या नुकसान होते हैं?
- डेल्टा में कौन-कौन सी फसलें उगाई जाती हैं?

मछुआरे चले बीच समुद्र में
थॉमस की माँ ने सुबह तीन बजे उसे उठाया और उसे खाने के लिये चावल की कंजी दी। थॉमस तैयार होकर चार बजे से पहले समुद्र के किनारे पहुँचा। वहाँ उसका दोस्त, डेविड उसका इंतज़ार कर रहा था। दोनों गरीब मछुआरे हैं, जिनके पास कोई नाव या जाल नहीं है। दोनों राजन की नाव में राजन के साथ काम करते हैं। राजन अमीर तो नहीं है मगर उसके पास 5,000 रुपए की नाव और 2,000 रुपए के जाल हैं। इसी नाव पर राजन, उसका बेटा, थॉमस और डेविड मछली पकड़ने जाएँगे।

कट्टुमरम : यह वास्तव में पाँच या सात लंबे लकड़ी के लट्ठों को रस्सी से बांधकर बनाई जाती है। बस इसी के सहारे मछुआरे समुद्र में उतरते हैं। इसे समुद्र के ही किनारे पाल की छांव में बढ़ई कुल्हाड़ी से बनाता है।

समुद्र में जाती हैं। दोपहर से उल्टी दिशा में हवा चलने लगती है - समुद्र से ज़मीन की ओर। उन हवाओं के सहारे मछुआरे वापस किनारे लौटते हैं। कट्टुमरम में पाल, जाल आदि मज़बूती से बांध दिए जाते हैं ताकि वे लहरों में बह न जाएँ। फिर कई लोग मिलकर उसे पानी में ढकेलते हैं। समुद्र के अंदर थोड़ा-सा जाने पर पाल को खोल दिया जाता है।

बीच समुद्र में वह कट्टुमरम नाव लहरों के साथ नाच रही है। कभी इतनी ऊँची और शक्तिशाली लहरें उठती हैं कि पूरी नाव उलट जाती है। नाव में सवार चारों मछुआरे नाव को फिर सीधा करते हैं और अपना काम जारी रखते हैं। थॉमस इन चार मछुआरों में से एक है।

थॉमस सात साल का था जब वह समुद्र में उतरा था - तब से अब तक 20 साल बीत चुके हैं। उससे पूछो कि यह काम उसे कैसा लगता है ? तो थॉमस कहेगा - बड़ा मज़ा आता है। जब भी मैं घर पर रहता हूँ तो बीच समुद्र में जाने के लिये मन मचलता रहता है।

लेकिन समुद्र में नाव चलाना मज़ाक नहीं है ; बड़ी मेहनत का काम है - लगातार पतवार चलाना, पाल को हवा की दिशा के अनुसार घुमाना, भारी-भारी जालों को खींचना कोई आसान काम नहीं है। समुद्र में मछली पकड़ना न केवल मेहनत का काम है, बल्कि जोखिम भरा भी। हमेशा डूबकर मर जाने का डर बना रहता है। मछुआरा जब समुद्र में जाता है, तो उसका वापस ज़मीन पर लौटना निश्चित नहीं रहता है। कभी अचानक तूफान में फँस सकता है, या फिर उसकी नाव किसी चट्टान से टकराकर चूर-चूर हो सकती है। या फिर वह कुछ आदमखोर मछलियों का शिकार हो सकता है।

समुद्र में दो-तीन कि.मी. जाने पर लंगर डालकर नाव को रोक लेते हैं। फिर जाल को खोलकर पानी में बिछा देते हैं। एक-दो घंटों के बाद जाल को वापस खीच लेते हैं, और तट की ओर चल देते हैं। लौटते-लौटते दिन के 12-1 बज जाते हैं। तट पर ढेर सारी मछुआरिने नावों के इंतज़ार में खड़ी हैं।

मछली बिकी
थॉमस की माँ भी अपनी टोकरी लिये खड़ी है। जैसे ही नाव से मछली उतारी गई तो औरतें उस पर पिल पड़ती हैं। इतने में बोली लगाने वाला आ पहुँचता है। आमतौर पर जो भी मछली लाई जाती है उसे वहीं तट पर बोली लगाकर बेचता है। इसके बदले में उसे मछली की पकड़ का एक हिस्सा मिलता है। महिलाएं या व्यापारी मछली खरीदते हैं और बाज़ारों में ले जाकर बेचते हैं।

व्यापारी
लेकिन राजन की नाव पर एक व्यापारी झपट पड़ता है। राजन ने अपनी बहन की शादी के लिये उस व्यापारी से उधार ले रखा था। व्यापारी ने उधार इस शर्त पर दिया था कि राजन अपनी मछली उस व्यापारी को ही सस्ते दाम में बेचेगा। इससे राजन और उसके साथियों को नुकसान तो होता था, मगर वे और किसी को बेचते तो व्यापारी उन्हें उधार नहीं देता या दिया हुआ कर्ज तुरन्त वापस मांगता।

व्यापारी इस मछली को बर्फ में डालकर दूर-दूर के शहरों में बेचता है, या फिर उसे विदेशों में बेचकर खूब पैसे कमाता है।

व्यापारी से जो पैसा मिला उसे राजन ने पाँच बराबर हिस्सों में बांटा। एक-एक हिस्सा अपने बेटे, थॉमस और डेविड को दिया और खुद दो हिस्से रख लिया। राजन को एक हिस्सा मेहनत के लिये और एक हिस्सा नाव और जाल के लिये मिला।

कड़की के महीने
जनवरी-फरवरी के महीनों में समुद्र में मछली बहुत कम मिलती हैं। कभी निश्चित ही नहीं रहता कि दिन भर की मेहनत के बाद कुछ मछली मिलेगी या नहीं। यह स्थिति अप्रैल तक बनी रहती है। इन महीनों में थॉमस जैसे मज़दूर और राजन जैसे छोटे मछुआरों को बहुत परेशानी झेलनी पड़ती है। घर का काम काज चलाने के लिये व्यापारियों से उधार लेना पड़ता है।

मई-जून से सितंबर तक समुद्र में खूब सारी मछलियां मिलती हैं। तब वे अपना कर्ज़ा उतारने की कोशिश करते हैं।

बड़े मछुआरे छोटे मछुआरे
जिस प्रकार किसानों में छोटे, मध्यम व बड़े किसान और मज़दूर होते हैं, उसी तरह मछुआरों में भी होते है। थॉमस जैसे मज़दूरो के पास कट्टुमरम, नाव या जाल नहीं होते। वे दूसरों की नावों में मज़दूरी करते हैं। भारत के आधे से अधिक मछुआरे मज़दूरी करते है। कट्टुमरम, नाव और जाल खरीदने के लिये 15,000 -20,000 रुपयों की ज़रूरत पड़ती है, जो कुछ ही लोग जुटा पाते हैं। जो बड़े मछुआरे हैं, उनके पास कई नाव, कट्टुमरम और बड़े-बड़े जाल हैं। इन्हें चलाने और खींचने के लिये वे 50-60 मज़दूरों को काम पर लगाते हैं। जो मछली पकड़ी जाती है, उसमें से आधा वे खुद रख लेते हैं और बाकी मजदूरों में बांट देते हैं।

एक ऐसा ही बड़ा मछुआरा एन्टोनी है। एन्टोनी के पास शुरू में कई कट्टुमरम, नाव और विभिन्न तरह के जाल थे। 50-60 मज़दूर उसकी नावों में काम करते थे। इनमें से अधिकतर मज़दूरों ने एन्टोनी से उधार ले रखा था और इस कारण कम मज़दूरी पर उसके यहाँ काम करते थे। धीरे-धीरे एन्टोनी के पास काफी पैसे जमा हो गए थे।

मशीन युक्त नाव (ट्रॉलर)
आज से 10 वर्ष पूर्व सरकार ने ऐलान किया कि जो लोग मछली पकड़ने की मशीन-युक्त नाव (ट्रॉलर) खरीदना चाहते हैं, उन्हें सरकार से लोन और सब्सिडी मिलेगी। कुल मिलाकर नाव और नए जालों की कीमत 2 लाख रुपए हुई। एन्टोनी ने एक लाख रूपए खर्च किए और बाकी लोन लेकर मशीन-युक्त नाव खरीदी। पूरे गाँव में एन्टोनी के अलावा केवल दो और लोग थे जो इस नई नाव को खरीदने के लिये धन जुटा पाए।

मशीन-युक्त नाव से एन्टोनी को बहुत फायदा हुआ। एक तो उसे बहुत कम मज़दूर लगाने पड़ते। पहले वह 50-60 लोगों से काम करवाता था। अब केवल 6-7 लोगों की ज़रूरत है। नाव का एक कप्तान -जो एन्टोनी का भांजा था - और 6 मज़दूर जिनमें से अधिकांश उसके रिश्तेदार ही थे। मशीन-युक्त नाव से समुद्र में काफी दूर तक जाकर मछली पकड़ी जा सकती है। इस कारण अधिक मछली मिल सकती है। जब समुद्र में तेज़ हवा चल रही हो, या ऊँची लहरें उठ रही हों, तब भी ये नाव समुद्र में जा सकती हैं। जब भी गाँव के पास के समुद्र में मछली कम हो जाती तो भी मशीन-युक्त नाव दूर-दूर के प्रदेशों में जाकर मछली पकड़ सकती है।

इन सब कारणों से एन्टोनी को खूब मुनाफा होने लगा। उसने अपनी पाल से चलने वाली नाव व कट्टुमरम को बेच डाला और दो और मशीन-युक्त नाव खरीद ली। पुरानी नाव न चलने के कारण बहुत से मजदूरों को काम मिलना बंद हो गया।

झींगा
तट से 3-4 किमी. की दूरी पर ही झींगा मछली मिलती है। पिछले 20-25 वर्षों में विदेशों में झींगा की मांग खूब बढ़ने लगी - तो उसकी कीमत भी बढ़ी। बड़े-बड़े व्यापारी, मछुआरों से झींगे खरीद कर कारखाने में ले जाते हैं। वहाँ पर उन्हें साफ करके नमक के साथ पानी में उबालते हैं। फिर बर्फीले कमरों में रखकर उन्हें बर्फ सा जमा देते हैं। फिर इसे विदेशों में भेज देते हैं जहाँ इनकी अच्छी कीमत मिल जाती है। जिन जहाज़ों में झींगा मछली भेजते हैं, उनमें बड़े-बड़े ठंडे कमरे होते हैं। इन्हीं कमरों में इन मछलियों को रखा जाता है ताकि वे सड़े नहीं।

शुरू में एन्टोनी की मशीन-युक्त नाव समुद्र में 10-12 कि.मी. दूर जाकर मछली पकड़ती थी। मगर जब झींगे की मांग बढ़ी तो स्थिति बदलने लगी। एन्टोनी भी झींगे पकड़कर मुनाफा कमाना चाहता था। झींगे तो 3-4 कि.मी. की दूरी पर मिलते थे। तो एन्टोनी ने अपने जहाज़ों को तट से 2-4 कि.मी. पर ही मछली पकड़ने का आदेश दिया। इसी क्षेत्र में राजन जैसे छोटे मछुआरे अपना जाल बिछाकर मछली पकड़ते थे। इसी दौरान कुछ बड़े व्यापारी और उद्योगपतियों ने भी मशीन-युक्त नाव खरीदी और उन्हें झींगा मछली पकड़ने में लगाया। इस तरह अब कई मशीन-युक्तनाव तट के निकट मछली पकड़ने लगीं।

छोटे मछुआरे क्या करेंगे?
जैसे-जैसे मशीन-युक्त नावों का चलन बढ़ा, वैसे-वैसे छोटे मछुआरों की मछली की पकड़ कम होती गई। अब वे अक्सर समुद्र से खाली हाथ लौटने लगे। इससे छोटे मछुआरे और मज़दूर परेशान होने लगे। उन्हें आए दिन घर का काम चलाने के लिये उधार लेना पड़ता - इस तरह वे व्यापारियों व साहूकारों के चंगुल में फँसते गए।

एक दिन अपनी समस्याओं पर विचार करने के लिये सारे मछुआरे और मज़दूर मिले। राजन बोलने लगा, 'जब से ये मशीन-युक्त नावे चलने लगी हैं,तब से ही समुद्र में मछलियों की कमी होने लगी है। क्या किसी ने पहले कभी सुना था कि समुद्र में मछलियों की कमी है ? ये बड़ी नावें सारी मछलियों को पकड़ लेती हैं, हमारे लिये कुछ नही बचता है।'

थॉमस बोला, 'मैं एक बार एन्टोनी की नाव में था। मशीन वाले जाल (ट्रॉलर) किस भयानक तरीके काम करते हैं, मैंने खुद देखा। इस जाल के निचले हिस्से में, लकड़ी के पटिये लगे रहते हैं। जाल में लगे ये पटिए समुद्र की तलहटी को रगड़ते हुए चलते है।'

दूसरे मछुआरे बोले, 'अरे, मगर तलहटी पर ही तो मछली के अंडे रहते हैं, वहीं तो छोटी मछलियां पलती हैं - उनका क्या होता होगा?'

थॉमस बोला, 'क्या होता होगा - वे सब नष्ट हो जाती हैं, तभी तो समुद्र में मछलियां इतनी कम हो गई हैं।'

डेविड बोला, “ट्रॉलर के जाल भी इतने बारीक है कि उसमें छोटी-छोटी मछलियां भी फंस जाती हैं। उनका कोई उपयोग तो नहीं है - मगर बेचारी बिना मतलब के मारी जाती हैं।'

इतने में एक मछुआरा वहाँ रोता पीटता आ पहुँचा वह ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाकर बोला, 'अरे, इन ज़ालिमों को सबक कौन सिखाएगा। इन्होंने मुझे बर्बाद कर दिया। समुद्र में मैंने अपना जाल बिछा रखा था। एन्टोनी की नाव उसे चीरती हुई-निकल गई। मेरा हज़ारों रुपए का जाल नष्ट हो गया।'

डेविड बोला, 'हम सिखाएँगे सबक। उन्होंने मेरे पिताजी के जाल को भी इसी तरह नष्ट किया था। दिन ब दिन उनकी हरकत बढ़ती जा रही है- दो दिन पहले एक मशीन वाली नाव ने तेज़ी से आकर मेरे दोस्त की नाव को टकराकर उलट दिया। वह बेचारा मरते-मरते बचा। चलो, सब लोग इन बड़े लोगों को सबक सिखाते हैं, अब उन पर रोक न लगी तो हम तो बर्बाद होंगे ही, मगर उससे पहले यह हमारा सागर बर्बाद हो जाएगा।”

मछली कम क्यों?<>समुद्र में मछली कम होने के कुछ और महत्त्वपूर्ण कारण रहे हैं।

1. प्रदूषण
भारत के तटीय प्रदेश में बड़े-बड़े कारखाने लगे। हैं। इनमें कई तरह के विषैले रसायनों का उपयोग किया जाता है और उन्हें गंदे पानी के साथ समुद्र में बहा दिया जाता है। ये विषैले रसायन समुद्र के पानी में घुल जाते हैं और इनसे प्रभावित होकर मछलियाँ मर जाती हैं।

2. मीठे पानी की कमी?
सागर का पानी तो खारा होता है। मगर ज़मीन से नदियों द्वारा जो पानी समुद्र तक पहुँचता है वह मीठा होता है। नदी के पानी के साथ सड़ी वनस्पति भी बहकर समुद्र में जाती है। इस पानी और इन पोषक तत्वों में कई तरह के पौधे उगते हैं जिन्हें प्लेक्टन कहते हैं। इन्हीं प्लैक्टनों पर मछलियां पलती हैं।

पिछले 40 वर्षों में दक्कन के पठार से बहने वाली नदियों पर जगह-जगह बांध बनाए गए हैं। इन बांधों के कारण नदियों का बहुत कम पानी समुद्र तक पहुँच पाता है। नदियों से बहकर आने वाले सड़े-गले पौधे भी बहुत कम हो गए हैं। इससे समुद्री मछलियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा - तुम खुद सोच सकते हो।

अभ्यास के प्रश्न 1
(अ) डेल्टा किसे कहते है?
(ब) भारत का नक्शा देखकर बताओ कौन-कौन सी नदियाँ डेल्टा बनाती है?
(स) डेल्टा में खेती के लिये क्या सुविधा है?
(ड) क्या डेल्टा में बंदरगाह बनाए जा सकते है? क्यों?
2. तटीय मैदानों मे घनी आबादी क्यों है?
3. तटीय मैदानों पर बसे मछुआरों को समुद्र से मछली पकड़ने के लिये किन चीज़ो की ज़रूरत पड़ती है? ये चीज़ें वे कैसे प्राप्त करते है?
4. अपने शब्दों में छोटे मछुआरों की दिनचर्या का वर्णन करो।
5. मछुआरो को अपने धंधे में किन जोखिमों का सामना करना पड़ता है?
6. (अ) पाठ में आए एक छोटे मछुआरे, एक बड़े मछुआरे और एक मज़दूर का नाम लिखो।
(ब) किन महीनों में अधिक मछली पकड़ में आती है और किन महीनों में कम ?
7. (अ) मशीन-युक्त नावों से क्या-क्या नुकसान हुए? क्या फायदे हुए?
(ब) मशीन-युक्त नाव और कट्टुमरम की तुलना करो।

मशीन युक्त नामों से क्या क्या नुकसान और फायदे हुए हैं? - masheen yukt naamon se kya kya nukasaan aur phaayade hue hain?

मशीन युक्त नामों से क्या क्या नुकसान और क्या क्या फायदे हुए हैं?

मशीनिकरण के लाभ जिस तरह है उस तरह हानि भी बहुत से है। मशीनिकरण की सुविधा से आज हर काम सेकेंडों में हो जाता है। हमें मेहनत करने की खास जरूरत नहीं पड़ती सब आटोमेटिक मशीन ही कर देता है। चाहे वह वाशिंग मशीन में कपड़े की सफाई हो या फिर फैक्ट्री का हो।

मशीनीकरण के क्या लाभ हैं?

मशीनीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें मनुष्य अथवा पशुओं की सहायता से किया जाने वाला कार्य मशीनों द्वारा किया जा सकता है। मशीनीकरण भूमि की उत्पादकता बढ़ाता है। यह क्षमता और प्रति व्यक्ति उत्पादकता बढ़ाता है। मशीनीकरण के परिणामस्वरूप कृषि श्रम की लागत में कमी आती है।

4 मशीनी युग के लाभ और हानि के बारे में तीन चार वाक्यों में लिखिए?

मशीनी वार के बीच जहां मानव श्रम बेकार होने लगा है और लोग और बेरोजगार हो रहे हैं। अपने ही बनाये मशीनों के गुलाम होते जा रहे हैं हम। मशीनी युग में मनुष्य कठपुतली बन कर रह गया है। विकास की होड़ में मानव जाति ने सफलता की बुलंदियाँ छू ली हैं लेकिन अब सब कुछ मशीनों के ही भरोसे चल रहा है।

मशीन के आने से हमारे जीवन में क्या फर्क पड़ता है?

Answer: मशीनी युग में जीने के कारण हम लोग एक जगह से दूसरी जगह बहुत आसानी और कम देरी में पहुंच जाते हैं। मशीनी युग में जीने का एक लाभ यह है कि हम घर बैठे किसी भी प्रकार के सामान की खरीदारी कर सकते हैं और घर से ही अपना व्यवसाय भी चला सकते हैं।