मधुआ कहानी का प्रमुख पात्र कौन है? - madhua kahaanee ka pramukh paatr kaun hai?

जयशंकर प्रसाद जी की मधुआ कहानी किसके बारे में है?

  1. रईसों द्वारा गरीबों के शोषण की
  2. शराबी के हृदय परिवर्तन के बारे में
  3. अन्धविश्वास की
  4. अशिक्षित जनसमुदाय की

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : शराबी के हृदय परिवर्तन के बारे में

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10 Questions 10 Marks 6 Mins

उपर्युक्त विकल्पों में से विकल्प 2 शराबी के ह्रदय परिवर्तन के बारे में सही उत्तर हैं|

मधुआ कहानी का प्रमुख पात्र कौन है? - madhua kahaanee ka pramukh paatr kaun hai?
Key Points

  • 'मधुआ' कहानी 'आँधी'(1931ई.) कहानी संग्रह में संकलित है।
  • इसमें प्रसाद जी की 11 कहानियां हैं-आँधी,मधुआ,दासी,घीसू,बेडी आदि।
  • पात्र-शराबी,बालक मधुआ,ठाकुर सरदार सिंह आदि।
  • विषय:कर्तव्य और वैयक्तिक प्रेम के अंतर्द्वंद्व में कर्तव्य के आगे प्रेम के त्याग का आदर्श स्थापित किया गया है।

मधुआ कहानी का प्रमुख पात्र कौन है? - madhua kahaanee ka pramukh paatr kaun hai?
Important Points

  • कहानी संग्रह-छाया(1912ई.),प्रतिध्वनि(1926ई.),आकाशदीप(1928ई.),इंद्रजाल(1936ई.)।
  • प्रमुख कहानियां-मधुआ,ममता,घीसू,छोटा जादूगर,गुलाम आदि।

मधुआ कहानी का प्रमुख पात्र कौन है? - madhua kahaanee ka pramukh paatr kaun hai?
Additional Information

  •  प्रथम कहानी- 'ग्राम'(1911ई.),इंदु पत्रिका में प्रकाशित।
  • अंतिम कहानी- 'सालवती'।
  • 'छाया' हिंदी का प्रथम कहानी-संग्रह है।
  • राजेंद्र यादव-"अतिरिक्त रोमानी वातावरण और कल्पित कथानकों के बावजूद प्रसाद हिंदी के पहले सफल कहानीकार हैं।"

Last updated on Oct 19, 2022

The Application Links for the DSSSB TGT will remain open from 19th October 2022 to 18th November 2022. Candidates should apply between these dates. The Delhi Subordinate Services Selection Board (DSSSB) released DSSSB TGT notification for Computer Science subject for which a total number of 106 vacancies have been released. The candidates can apply from 19th October 2022 to 18th November 2022. Before applying for the recruitment, go through the details of DSSSB TGT Eligibility Criteria and make sure that you are meeting the eligibility. Earlier, the board has released 354 vacancies for the Special Education Teacher post. The selection of the DSSSB TGT is based on the Written Test which will be held for 200 marks.

मधुआ कहानी का प्रमुख पात्र कौन है? - madhua kahaanee ka pramukh paatr kaun hai?
रचनाकार का नाम: जयशंकर प्रसाद

परिचय: छायावाद काव्य के सशक्त हस्ताक्षर, नाट्य साहित्य के प्रबल प्रवर्तक, कहानी उपन्यास, महाकाव्य के सर्जक का जन्म 30 जनवरी, 1889 ई. को वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ, इनके पिता देवी प्रसाद साहू वाराणसी के जाने-माने व्यापारी थे। पितामह शिव रत्न साहु वाराणसी के वैभवशाली व्यापारियों की श्रेणी में आते थे और सुँघनी-साहू के नाम से उनका घराना प्रसिद्ध था। संपन्न परिवार में पैदा हुए प्रसाद की पढ़ाई घर पर ही हुई जहाँ उन्होंने संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेज़ी, फ़ारसी, उर्दू का ज्ञान अर्जित किया और पद्य, गद्य में बखूबी अपनी निर्बाध लेखनी चलाई कि हिंदी साहित्य उनकी निष्णात प्रतिभा की धरोहर से संपन्न हुआ है।

प्रसाद को द्विवेदी युगीन इतिवृत्तात्मकता के विरुद्ध उठे सशक्त स्वर के रूप में जाना जाता है। साहित्य के सभी क्षेत्रों में अपनी लेखनी को प्रभावोत्पादक धार से चलाने वाले बहुमुखी प्रतिभा वाले प्रसाद ने अपनी पहली रचना ब्रज भाषा में मात्र नौ वर्ष की आयु में �कलाधर� उपनाम से सेवैया से आरम्भ कर खड़ी बोली की रचनाओं में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई। उनकी काव्य-कृतियों` में �चित्राधार� उनका पहला काव्य संग्रह है तो �कामायनी� महाकाव्य उस काव्य-धारा की उत्कृष्ट पराकाष्ठा। इनकी काव्य रचनाएं है : �चित्राधार�, �कानन-कुसुम�, �महाराणा का महत्त्व�, �करुणालय�, �प्रेम पथिक�, �झरना�, �आंसू�, �लहर�, �कामायनी�।

वेदना काव्यात्मक अभिव्यक्ति का आधार होती है तभी तो आदि-कवि बाल्मीकि के विषय में सुमित्रानंदन पंत की पंक्तियाँ अनायास ही याद हो आती हैं
'वियोगी होगा पहला कवि/
आह से निकला होगा गान/
निकल कर आँखों से चुपचाप/
बही होगी कविता अन्जान।'

और प्रसाद के कवि मन को भी अपने जीवन में बहुत से हृदय विदारक आघातों का सामना करना पड़ा। बारह वर्ष की आयु में पिता का देहान्त हो गया, उसके तीन वर्ष बाद ही माँ भी चल बसीं। और बड़े भाई शम्भु रत्न की मृत्यु ने तो जय शंकर प्रसाद को सबसे बड़ा धक्का पहुंचाया। ऐसी वेदना से रगी-पगी उनकी काव्याभिव्यक्तियां छंदों के उत्कृष्ट रूप में मंजकर उदात्त शैली के साथ सृजित होकर साहित्य का ऐसा स्तम्भ प्रमाणित हुई जिसने विभिन्न भावपक्षों को काव्य का विषय बनाया। प्रेम, दर्शन, रहस्यानुभूति, धर्म, प्रकृति, समाज, इतिहास सभी तो उनकी काव्योक्तियों के विषय बने। अपने ऐतिहासिक नाटकों के माध्यम से प्रसाद ने भारतीयों में देश प्रेम एवं राष्ट्रीयता के भावों को जन-जन में जगाकर उन्हें देश की दुर्दशा से अवगत कराने के सफल प्रयास किए, इसके लिए नाटकों में कालजयी गीतों का प्रश्रय लिया, यथा:
'देश की दुर्दशा निहारोगे/
डूबते को कभी उभारोगे।' .......
कुछ करोगे कि बस सदा रोकर /
दीन हो दैव को पुकारोगे।"
या
"जियें तो सदा उसी के लिए, यही अभिमान रहे यह हर्ष। /
निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारत वर्ष।" (स्कन्दगुप्त)
या फिर चन्द्रगुप्त नाटक में भारत की वैभव समृद्धि का गान आज भी कितना सार्थक जान पड़ता है:
"अरुण वह मधुमय देश हमारा! / जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा!"

उनका पहला नाटक �सज्जनता� जिसमें काव्य का सम्मिश्रण काफ़ी है। उसके बाद ऐतिहासिक नाटकों में प्रसाद को बहुत ख्याति प्राप्त हुई। ये नाटक हैं- चन्द्रगुप्त, स्कन्दगुप्त, अजातशत्रु, जनमेजय का नागयज्ञ, कामना और ध्रुवस्वामिनी। प्राचीन भारतीय सभ्यता की गरिमा को अपने नाटकों के माध्यम से उजागर करने में प्रसाद ने उत्कृष्ट नाट्य शैली के नए प्रतिमीन स्थापित किए।

वैसे तो प्रसाद को अपने युग के एक अप्रतिम युगचेता नाटककार के रूप में जाना जाता है किन्तु काव्य के क्षेत्र में भी उन्हें भरपूर ख्याति मिली। चित्रधार की रचनाएं बृज भाषा व खड़ी बोली का मिश्रित रूप हैं जो प्रेम तथा ऐतिहासिकता व कुछेक समस्या-पूर्ती के भावों से युक्त हैं। कानन कुसुम में विविध भावों की अभिव्यक्ति के कारण ही यह कानन बनता है जहाँ प्रेम, सौंदर्य, विरह और प्रकृति के भावों से युक्त स्वाभाविक काव्योक्तियां रची गई। 'महाराणा का महत्त्व' तत्कालीन गुलामी में जकड़े युवाओं को देश-गौरव के लिए प्रेरित करता रहा। 'प्रेम पथिक' में प्रेमी हृदय की सहज अभिव्यक्ति है और 'झरना' में नितांत छायावादी प्रवृत्तियों का समायोजन। 'आंसू' भी प्रसाद की लघु काव्य कृति है इसके 190 पदों में काव्य रसिकता की सरस, मार्मिक व गहन अनुभूति सहज ही काव्य प्रेमियों के हृदयों पर अपनी छाप अंकित कर जाती है। 'लहर' की काव्य रचनाएं प्रसाद के काव्य-विकास के नए सोपानों को व्यक्त करती हैं इसमें 29 गीत तथा चार एतिहासिक पृष्ठ भूमि पर आधारित कवितायेँ हैं। और 'कामायनी' कवि की काव्यशीलता की पराकाष्ठा की उत्कृष्ट कृति है जो रूपक शैली में रची गई तथा युगों-युगों तक कालजयी काव्यकृति के रूप में प्रतिष्ठित रहेगी।
गद्य साहित्य में प्रसाद ने नाटक, कहानी, उपन्यास तथा निबन्ध आदि सभी विधाओं पर हृदय की गहराइयों से लिखा। प्रसाद की पहली कहानी 'ग्राम' 1911 में 'इंदु' में प्रकाशित हुई, यह हिन्दी कि प्रथम मौलिक कहानी मानी जाती है। उनके दो उपन्यास 'कंकाल' और 'तितली' सामाजिक सन्दर्भों पर आधारित हैं जबकि तीसरा 'इरावती' ऐतिहासिक उपन्यास अधूरा ही रहा।

वैसे प्रसाद के सम्पूर्ण साहित्य-सृजन को तीन कालों में विभाजित किया जाए तो उनकी सृजन धारा को आसानी से पहचाना जा सकता है, पूर्वकाल में 191 0 से 1922 तक में सज्जन, कल्याणी-परिणय, करुणालय, प्रायश्चित, विशाखा, राज्यश्री, अजातशत्रु, झरना, प्रतिध्वनि, छाया, महाराणा का महत्त्व व चित्राधार रचनाएं आती हैं। मध्यकाल 1922 से 1928 तक में जनमेजय का नागयज्ञ, स्कंदगुप्त, चन्द्रगुप्त, कामना, आकाशद्वीप,आंसू, कंकाल और एक घूँट ग्रन्थ हैं तथा अंतिमकाल1929 से 1937 तक में रची गई कृतियां हैं-आंधी, तितली, ध्रुवस्वामिनी, इंद्रजाल, लहर, कामायनी, काव्य और कला निबंध तथा इरावती (अधूरा उपन्यास)। इसके अतिरिक्त प्रसाद ने कहानी व उपन्यास में भी अपनी निर्बाध लेखनी चलाई|

प्रसाद की काव्य कला का जहाँ भावपक्ष समृद्ध है जिसमें मानव के विविधतापूर्ण भावों कि सहज अभिव्यक्तियाँ हुई हैं, वहीं उनका शिल्प एवं कला पक्ष भी बहुत समुन्नत है। सशक्त-संतुलित भाषा शैली अपनी अलग से विशिष्ट पहचान लेकर काव्य तथा गद्य में दिखाई दी। उनकी भाषा का अपना ही अलग एक स्वरूप है जिसमें परिष्कृत धाराप्रवाहता के साथ संस्कृतनिष्ठ शब्दावली और ध्वन्यात्मक सौन्दर्य इसे प्रसादीय भाषा-शैली से अभिहित करते हैं। इस भाषा-शैली में परम्परागतता व आधुनिकता का अनुपम सम्मिश्रण है, ओज, माधुर्य, प्रसाद, भावानुकूलता के साथ वर्णनात्मकता तथा अलंकारिकता है। प्रसाद की साहित्य भाषा में अलंकार समायोजन भी अनूठा है जिनमें दृष्टि साम्यमूलक अलंकार, शब्दालंकार, रूपक, उपमा, रूपकातिश्योक्ति, उत्प्रेक्षा का प्रयोग किया गया है। प्रसाद के काव्य में विविध छन्द सरल अभिव्यक्ति के साथ गेयता एवं लयात्मकता का हृदयग्राही रचना-संसार रचते हैं।

48 वर्षों के अल्प जीवन-काल में अपने विविधतापूर्ण अक्षुण्ण योगदान से हिंदी साहित्य को समृद्ध कर कलम के इस सतत योद्धा का राजयक्ष्मा(टी बी) रोग से 15 नवम्बर, 1937 देहांत हो गया। उनकी कालजयी कृतियों ने साहित्य के इस अनन्य महासाधक को सदा-सदा के लिए अमर बना दिया।

जय शंकर प्रसाद का रचना संसार:

नाटक : कुल १३
सज्जन(1910), कल्याणी-परिणय (1912), करुणालय (1911), प्रायश्चित (1914), राजयश्री(1915), विशाख(1921), अजातशत्रु(1922), कामना(1927), जनमेजय का नाग यज्ञ(1926), चन्द्रगुप्त(1928), स्कन्दगुप्त(1928), एक घूँट(1929), ध्रुवस्वामिनी(1933)

काव्य : चित्राधार(1918, 1928), कानन कुसुम(1912), करुणालय(1912), महाराणा का महत्त्व(1914), प्रेम-पथिक(1913), झरना(1918), आंसू(1922), लहर(1918), कामायनी (1935)।
कहानी : कुल पांच
छाया, प्रतिध्वनि , आकाशद्वीप, आँधी, इंद्रजाल ।
उपन्यास : कंकाल, तितली, इरावती(अधूरा)
निबंध : काव्य कला और अन्य निबंध।

मधुआ कहानी का प्रमुख चरित्र कौन है?

उत्तर-शराबी 'मधुआ कहानी का प्रमुख पात्र है। सारी कहानी उसके इर्द-गिर्द घूमती है। उसकी चारित्रिक विशेषताएं निम्नलिखित हैं- शराबी : लेखक ने इस कहानी में शराबी को कोई नाम नहीं दिया। सारी कहानी में उसे शराबी ही कहा गया।

मधुआ कहानी की मूल संवेदना क्या है?

'मधुआ' कहानी में कवि श्री जयशंकर प्रसाद एक शराबी के मानवीय संवेदना की भूमिका स्पष्ट करते है। इस कहानी में शराबी अपने जीवन को मूल्यहीन मानकर मनमाने जीवन को चला रहा था। शराबी अपने पीने के इतजाम के लिए दूसरों को कहानियाँ सुनाकर उनका मन बहलाकर उनसे जो पैसे प्राप्त करता, उन पैसे को शराब (मदिरा) में उडाया करता था।

मधुआ कहानी के लेखक कौन हैं?

कहानी: मधुआ : जयशंकर प्रसाद

मधुआ क्यों रो रहा था?

शराबी दूसरों का मन बहलाव करके जो पैसा पाता था उससे शराब पी जाया करता था। एक दिन वह एक बालक मधुआ को देखता है। वह रो रहा था। शराबी उसे खाना खिलाता है।