इस कविता यह सब घर एक कर देने के माने का तात्पर्य यह है ही सभी कोअपना घर बना लेना यानी हर घर को अपने ही घर समझ लेना। इसमें घरों की सीमा से बंधन के समाप्त हो जाने की बात कही गई है । जिस तरह बच्चों के खेल में सीमा का कोई स्थान नहीं होता, वह मुक्त भाव से खेल खेलते हैं। उसी तरह कविता की रचना करते समय भी कोई बंधन नहीं होता। कवि भी मुक्त भाग से कविता की रचना करता है। पाठ के बारे में…. इस पाठ में ‘कुँवर नारायण’ द्वारा रचित दो कविताएं ‘कविता के बहाने’ और ‘बात सीधी थी पर’ ली गई
है। संदर्भ पाठ : ” कविता के बहाने/बात सीधी थी पर”, कुंवर नारायण (कक्षा – 12, पाठ -3) हमारे अन्य प्रश्न उत्तर : ‘उड़ने’ और ‘खिलने’ का कविता से क्या संबंध बनता है? कविता और बच्चे को समानांतर रखने के क्या कारण हो सकते हैं? हमारी सहयोगी वेबसाइटें.. mindpathshala.com miniwebsansar.com Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर Textbook Exercise Questions and Answers. कविता के
साथ प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7.
उत्तर:
कविता के आसपास प्रश्न 1.
व्याख्या करें “ज़ोर ज़बरदस्ती से चर्चा कीजिए आधुनिक युग में कविता की संभावनाओं पर चर्चा कीजिए। चूड़ी, कील,
पेंच आदि मूर्त उपमानों के माध्यम से कवि ने कथ्य की अमूर्तता को साकार किया है। भाषा को समृद्ध एवं संप्रेषणीय बनाने में, बिंबों और उपमानों के महत्त्व पर परिसंवाद आयोजित करें। (ख) एक सफल कवि अपनी बात को हमेशा सरल तथा प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करने में समर्थ होता है। कभी-कभी वह प्रतीकों, उपमानों तथा बिंबों का प्रयोग भी करता है। ऐसा करने से कविता के अर्थ में गंभीरता उत्पन्न हो जाती है। (ग) कवि को जटिल प्रतीकों तथा उपमानों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। उसका यह प्रयास रहना चाहिए कि कविता में कही गई बात उलझकर न रह जाए। आपसदारी 1. सुंदर है सुमन, विहग सुंदर 2. प्रतापनारायण मिश्र का निबंध ‘बात’ और नागार्जुन की कविता ‘बातें’ ढूँढ़ कर पढ़ें। HBSE 12th Class Hindi कविता के बहाने, बात सीधी थी पर Important Questions and Answersसराहना संबंधी प्रश्न कविता के बहाने प्रश्न 1.
प्रश्न 2.
बात सीधी थी पर प्रश्न 1. (2) ‘उलटा-पलटा’, ‘तोड़ा-मरोड़ा’, ‘घुमाया-फिराया’ आदि शब्दों का सटीक प्रयोग हुआ है। ये शब्द भाषा की कृत्रिमता और जटिलता पर व्यंग्य करते हैं। (3) ‘उलटा-पलटा’, ‘तोड़ा-मरोड़ा’, ‘घुमाया-फिराया’ आदि में अनुप्रास अलंकार का सफल प्रयोग हुआ है। (4) भाषा का चक्कर’ तथा ‘टेढ़ी-फँसी’, जैसे लोक प्रचलित शब्दों का प्रयोग हुआ है जोकि अभिव्यंजना-शिल्प को सौंदर्य प्रदान करते हैं। (5) सहज, सरल तथा बोधगम्य हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है। (6) शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं सटीक है। प्रश्न 2.
विषय-वस्तु पर आधारित लघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर 1. कुँवर नारायण का जन्म कब हुआ? 2. कुँवर नारायण का जन्म कहाँ पर हुआ? 3. कुँवर नारायण ने किस विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण की? 4. कुँवर नारायण ने चेकोस्लोवाकिया, पौलेंड, रूस तथा चीन का भ्रमण कब किया? 5. सन् 1956 में कुँवर नारायण किस पत्रिका के संपादक मंडल से जुड़ गए? 6. भारतेंदु नाटक अकादमी में वे किस पद पर नियुक्त
हुए? 7. कुँवर नारायण को ‘हिंदुस्तानी अकादमी पुरस्कार’ कब मिला? 8. कुँवर नारायण को ‘प्रेमचंद पुरस्कार’ कब मिला? 9. कुँवर नारायण को मध्य प्रदेश का ‘तुलसी पुरस्कार’ कब मिला? 10. ‘कविता के बहाने’ के कवि का नाम क्या है? 11. ‘कविता के बहाने कविता कवि के किस काव्य-संग्रह में संकलित है? 12. 13. ‘बात सीधी थी पर’ किस काव्य-संग्रह में संकलित है? 14. ‘तीसरा सप्तक’ का प्रकाशन कब हुआ? 15. ‘परिवेश : हम तुम’ के रचयिता का नाम क्या है? 16. ‘परिवेश : हम तुम’ का प्रकाशन कब हुआ? 17. ‘इन दिनों का प्रकाशन वर्ष कौन-सा है? 18. ‘अपने सामने’ के रचयिता का नाम क्या है? 19. ‘अपने सामने का प्रकाशन कब हुआ? 20. ‘आकारों के आस-पास’ के रचयिता कौन हैं? 21. ‘आकारों के आस-पास’ किस विधा की रचना है? 22. ‘आज और आज से पहले किस विधा की रचना है? 23. ‘कविता के पंख लगाने में कौन-सा अलंकार है? 24. सीधी बात भी किसके चक्कर में फंस गई थी? 25. ‘कवि की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने’ में कौन-सा अलंकार है? 26. ‘कविता के बहाने’ कविता में किस छंद का प्रयोग हआ है? 27. ‘बाहर भीतर इस घर, उस घर’ में कौन-सा अलंकार है? 28. भाषा के क्या करने से बात और अधिक पेचीदा हो गई? 29. ‘बात की चूड़ी मर जाना’ का अर्थ है 30. ‘बात की पेंच खोलना’ का अर्थ है 31. ‘बात का शरारती बच्चे की तरह खेलना’ का अर्थ है 32. बिन मुरझाए महकना का अर्थ है 33. बात कवि के साथ किसके समान खेल रही थी? 34. बात बाहर निकलने की अपेक्षा कैसी हो गई थी? 35. ‘बात सीधी थी पर’ नामक कविता में कवि ने किस पर बल दिया है? 36. ‘बात सीधी थी पर’ कविता में कवि ने कौन-सी कोशिश नहीं की थी? 37. भाषा को घुमाने फिराने से बात कैसी हो जाती है? कविता के बहाने पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर [1] कविता एक उड़ान है चिड़िया के
बहाने शब्दार्थ-सरल हैं। प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘कविता के बहाने से लिया गया है। यह कविता ‘इन दिनों काव्य-संग्रह से ली गई है तथा इसके कवि कुँवर नारायण हैं। इस कविता में कवि स्पष्ट करता है कि कविता के द्वारा अपार संभावनाओं को खोजा जा सकता है। अतः यह कहना गलत है कि कविता का अस्तित्व समाप्त हो गया है व्याख्या-कवि कविता की शक्ति का वर्णन करता हुआ कहता है कि कविता एक उड़ान है। जहाँ चिड़िया की उड़ान सीमित होती है, परन्तु कविता की उड़ान असीमित होती है। उसमें नए-नए भाव, नए-नए रंग तथा नए-नए विचार उत्पन्न होते रहते हैं। कविता की उड़ान बड़ी ऊँची होती है। चिड़िया भी कविता की उड़ान के उस छोर तक नहीं पहुँच पाती। कविता के भाव असीम होते हैं। कविता न केवल घर के भीतर की गतिविधियों का वर्णन करती है, बल्कि वह बाहर के क्रियाकलापों को भी व्यक्त करती है। भाव यह है कि कभी तो कविता घर-परिवार की समस्याओं का उद्घाटन करती है तो कभी घर के बाहर के वातावरण का मार्मिक वर्णन करती है। कविता के साथ कल्पना के पंख लगे होते हैं। इसलिए उसकी उड़ान असीम है। बेचारी चिड़िया कविता की असीम शक्ति को कैसे पहचान सकती है। जहाँ प्रकृति का क्षेत्र ससीम है, वहाँ कविता का क्षेत्र अनंत और असीम है। विशेष –
पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न- (ख) इस पंक्ति द्वारा कवि यह कहना चाहता है कि चिड़िया तो प्रकृति के प्रांगण में ही उड़ान भरती है। उसकी अपनी कुछ सीमाएँ हैं। वह केवल आकाश में ही उड़ सकती है, परंतु वह मानव-मन की सूक्ष्म भावनाओं में प्रवेश नहीं कर पाती। इसलिए वह कविता की उड़ान को नहीं जान सकती। (ग) जिस प्रकार चिड़िया खुले आकाश में उड़ान भरती है, उसी प्रकार कवि की कल्पना चिड़िया की ऊँची उड़ान को देखकर कल्पना लोक में विचरण करने लगती है। कवि केवल प्राकृतिक सौंदर्य का ही वर्णन नहीं करता, बल्कि वह मानव मन की सूक्ष्म भावनाओं का वर्णन भी करता है। अतः चिड़िया की उड़ान कविता के लिए प्रेरणा का काम करती है। (घ) इस पद्यांश में कवि ने चिड़िया की उड़ान और कविता की उड़ान की तुलना की है। चिड़िया की उड़ान की अपेक्षा कविता की उड़ान अधिक प्रभावशाली, शक्तिशाली तथा व्यापक है। कविता की उड़ान का संबंध मानव मन की सूक्ष्म भावनाओं से भी है। [2] कविता एक खिलना है फूलों के बहाने शब्दार्थ-महकना = सुगंध बिखेरना। प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘कविता के बहाने’ से लिया गया है। यह कविता ‘इन दिनों काव्य-संग्रह से ली गई है। इसके कवि कुँवर नारायण हैं। इस कविता में कवि ने स्पष्ट किया है कि कविता के द्वारा अपार संभावनाओं को खोजा जा सकता है। अतः यह कहना गलत है कि कविता का वजूद समाप्त हो गया है। इस पद्य में कवि कविता की तुलना फूल के साथ करता है। व्याख्या-कवि कहता है कि कविता फूलों को देखकर खिलती है और पुष्पित होती है। फूलों के समान कविता में भी नए-नए रंग भर जाते हैं। कविता का खिलना असीम है, जबकि फूल का खिलना ससीम है। फल केवल खिलकर अपने चारों ओर स तथा सुंदरता को बिखेर देता है, परंतु फूल कविता के खिलने को ठीक से समझ नहीं पाता। फूल का क्षेत्र सीमित है। एक समय ऐसा आता है जब फूल मुरझाकर नष्ट हो जाता है। उसके साथ-साथ उसकी सुगंध तथा सुंदरता भी समाप्त हो जाती है, परंतु कविता की सुगंध तथा सुंदरता कभी समाप्त नहीं होती। वह न केवल घर के बाहर तथा भीतर अपनी सुगंध तथा सुंदरता को बिखेरती है, बल्कि वह प्रत्येक घर में अपने भाव-सौंदर्य को बिखेरती रहती है। फूल तो केवल इतना जानता है कि बस सुगंध उत्पन्न करना तथा एक दिन झर जाना। फूल बिना मुरझाए महकने के अर्थ को नहीं जान सकता। कविता हमेशा अपने भावों की सुगंध बिखेरती रहती है। उसका भाव शाश्वत होता है तथा वह कभी नष्ट नहीं होता। विशेष –
पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर (ख) फूल खिलकर एक सीमित क्षेत्र में अपनी सुगंध तथा सुंदरता को
बिखेरता है। परंतु कविता का क्षेत्र असीमित होता है। कविता की कल्पना सर्वत्र पहुँच सकती है। फूल कविता के समान व्यापक नहीं है। इसलिए कहा भी गया है (ग) कविता एक ऐसा फूल है जो कभी नहीं मुरझाता और हमेशा अपनी महक को बिखेरता रहता है। कविता बाह्य प्रकृति और आंतरिक प्रकृति दोनों का वर्णन करने में समर्थ है। वह अनंत काल तक अपनी सुगंध को बिखेरती रहती है। कविता का प्रभाव अनंत तथा असीम है। (घ) इस पद्यांश द्वारा कवि कविता और फूल की तुलना करते हुए कहता है कि फूल एक सीमित दायरे में अपनी सुगंध तथा सुंदरता को बिखेरता है। कुछ समय के बाद शीघ्र ही वह नष्ट हो जाता है। परंतु कविता मानव मन के बाहर तथा भीतर दोनों को सुगंधित करती है। इसलिए फूल की शक्ति ससीम है, परंतु कविता की शक्ति असीम है। [3] कविता एक खेल है बच्चों के बहाने शब्दार्थ-सरल हैं। प्रसंग-प्रस्तुत पद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित कविता ‘कविता के बहाने से लिया गया है। यह कविता ‘इन दिनों काव्य-संग्रह से ली गई है। इसके कवि कुँवर नारायण हैं। इस कविता में कवि ने स्पष्ट किया है कि कविता के द्वारा अपार संभावनाओं को खोजा जा सकता है। अतः यह कहना गलत है कि कविता का वजूद समाप्त हो गया है। इसमें कवि ने बच्चों में पाई जाने वाली स्वाभाविक आत्मीयता और निष्कलुषता का सजीव वर्णन किया है। व्याख्या-कवि का कथन है कि कवि बच्चों की क्रीड़ाओं को देखकर अपनी कविता द्वारा शब्द-क्रीड़ा करता है। वह शब्दों के माध्यम से नए-नए भावों तथा विचारों के खेल खेलता है। जिस प्रकार बच्चे कभी घर में खेलते हैं, कभी बाहर खेलते हैं और अपने-पराए का भेदभाव नहीं करते, उसी प्रकार कवि भी कविता के द्वारा सभी के भावों का वर्णन करता है। बच्चों के खेल कवि को भी प्रेरणा देते हैं। खेल-खेल में बच्चे एक-दूसरे को अपना बना लेते हैं और वे एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं। कवि भी बच्चों के समान बाहर और भीतर के मनोभावों का वर्णन करता है। वह समान भाव से सभी लोगों की सूक्ष्म भावनाओं का चित्रण करता है। भाव यह है कि जिस प्रकार बच्चे एक-दूसरे को जोड़ते हैं, उसी प्रकार कवि भी अपनी कविता द्वारा जोड़ने का प्रयास करता है। विशेष-
पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर (ख) बच्चे खेल-खेल में अपने-पराए के भेदभाव को भूल जाते हैं। खेलों द्वारा उनमें आत्मीयता की भावना उत्पन्न होती है। बच्चे खेलों के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं। (ग) बच्चों के खेलने तथा कविता रचने में सबसे बड़ी समानता यह है कि दोनों ही आनंदानुभूति प्रदान करते हैं। दोनों ही समाज को जोड़ने का काम करते हैं, तोड़ने का नहीं। दूसरा, दोनों से ही मनोरंजन होता है। (घ) इस पद्यांश से हमें यह संदेश मिलता है कि बच्चों के समान कविता भी हमें आपस में जोड़ती है। कविता अपने-पराए के भेदभाव को भूलकर सबकी अनुभूतियों को व्यक्त करती है। कविता का क्षेत्र बड़ा ही विस्तृत व व्यापक है। इसका प्रभाव भी शाश्वत और अनंत है। बात सीधी थी पर पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर [1] बात सीधी थी पर एक बार शब्दार्थ-चक्कर = प्रभाव दिखाने की कोशिश। टेढ़ा फँसना = बुरी तरह फँसना। पेचीदा = जटिल, उलझी हुई। प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘बात सीधी थी पर’ में से अवतरित है। यह कविता कुँवर नारायण द्वारा रचित काव्य-संग्रह ‘कोई दूसरा नहीं’ में संकलित है। इस पद्यांश में कवि ने यह स्पष्ट किया है कि कथ्य के अनुसार कविता की भाषा सहज, सरल तथा बोधगम्य होनी चाहिए। सीधी बात को हम सहज एवं सरल भाषा द्वारा प्रभावशाली बना सकते हैं। व्याख्या-कवि कहता है कि मैं कविता द्वारा एक सहज, सरल बात कहना चाहता था। एक बार ऐसा करते समय मैं भाषा के भ्रम का शिकार बन गया। मैंने सोचा कि मैं बढ़िया-से-बढ़िया भाषा का प्रयोग करूँ, परंतु ऐसा करते समय मेरा कथ्य उलझकर रह गया और बात की सरलता और स्पष्टता नष्ट हो गई। सरल-सी बात भी सुलझकर रह गई। तब मैंने एक बड़ी भारी भूल की। मैंने भाषा के शब्दों को काटना-छाँटना तथा तोड़ना-मरोड़ना आरंभ कर दिया। उसे कभी इधर घुमाया, कभी उधर घुमाया। वस्तुतः मैं अपनी मूल बात को सहज तथा सरल रूप से व्यक्त करना चाहता था, परंतु मेरी बात उलझकर रह गई। तब मैंने यह कोशिश की कि या तो मेरे मन की बात सहजता से व्यक्त हो जाए या मेरी बात को भाषा के उलट-फेर से स्वतंत्रता मिल जाए। परंतु दोनों काम नहीं हो सके। इस प्रयास में भाषा जटिल से जटिलतर होती चली गई और मेरी मूल बात भी सरलता खोकर जटिल बन गई। भाव यह है कि कविता का कथ्य और माध्यम दोनों उलझकर रह गए। विशेष-
पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर (ग) कवि द्वारा भाषा को तरोड़ने-मरोड़ने तथा उलटने-पलटने के फलस्वरूप बात और उलझकर रह गई और कवि-कथ्य जटिल और पेचीदा बन गया। (घ) कवि अपनी सीधी बात को प्रभावशाली ढंग से कहना चाहता था। इसलिए उसने बढ़िया-से-बढ़िया भाषा का प्रयोग करने का प्रयास किया, परंतु उसकी बात और उलझकर रह गई। (ङ) इस पद्य द्वारा कवि यह संदेश देना चाहता है कि कवि को जान-बूझकर भाषा जटिल नहीं बनानी चाहिए, बल्कि सीधी बात सरल शब्दों में व्यक्त करनी चाहिए। भाषा की जटिलता कथ्य को उलझाकर रख देती है और कविता पाठक को आनंदानुभूति नहीं दे पाती। [2] सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना शब्दार्थ-मुश्किल = कठिनाई। बेतरह = बुरी तरह। करतब = चमत्कार। तमाशबीन = तमाशा देखने वाले (पाठक)। शाबाशी = प्रशंसा। प्रसंग-प्रस्तुत पद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित कविता ‘बात सीधी थी पर’ में से अवतरित है। यह कविता कुँवर नारायण द्वारा रचित काव्य-संग्रह ‘कोई दूसरा नहीं’ में संकलित है। इस पद्यांश में कवि ने यह स्पष्ट किया है कि कथ्य के अनुसार कविता की भाषा सहज, सरल तथा बोधगम्य होनी चाहिए। इसमें कवि स्पष्ट करता है कि जटिल भाषा का प्रयोग करने वाला कवि लोगों की वाह-वाही तो लूट लेता है, परंतु वह अपने भाव तथा भाषा को जटिल बना देता है व्याख्या कवि कहता है कि मेरी सहज, सरल बात भाषा के चक्कर में फंस गई थी। मैं इस कठिनाई को धैर्यपूर्वक समझ नहीं पाया, बल्कि मैं समस्या के कारण को समझे बिना ही उसे और जटिल बनाता चला गया। जिस प्रकार कोई कारीगर पेंच को खोलने की बजाए उसे बुरी तरह कसता चला जाता है, उसी प्रकार मैं भी भाषा के साथ ज़बरदस्ती करने लगा। मेरी इस बेवकूफी पर वाह-वाही करने वाले लोग भी अधिक थे जो मुझे शाबाशी दे रहे थे। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि मेरी कविता के भाव और भाषा दोनों जटिल बनते चले गए और कविता का कथ्य उलझकर रह गया। विशेष-
पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न- (ख) कवि अपने कथ्य को अत्यधिक प्रभावशाली बनाना चाहता था। इसलिए वह धैर्यपूर्वक समस्या को नहीं समझ पाया और कविता के अभिव्यक्ति पक्ष को जटिल बनाता चला गया। (ग) तमाशबीन कवि की प्रशंसा करके उसका उत्साह बढ़ा रहे थे। वे अभिव्यक्ति के सौंदर्य को जानते नहीं थे। वे तो केवल कवि की जटिल भाषा से प्रभावित होकर कवि की पीठ ठोंक रहे थे। (घ) कवि ने सोचे-समझे बिना अपनी बात को उलझाने तथा जटिल बनाने का प्रयास किया। इसलिए कवि के कार्य को करतब कहा गया है। (ङ) इस पद्यांश के द्वारा कवि यह कहना चाहता है कि कवि को धैर्यपूर्वक सरल अभिव्यक्ति का ही प्रयोग करना चाहिए। सरल भाषा में कही गई बात श्रोता की समझ में शीघ्र आ जाती है और वह कवि की अभिव्यंजना शिल्प से प्रभावित भी होता है। परंतु जो कवि सोचे-समझे बिना बात को उलझाकर जटिल बना देते हैं, उनकी कविता वांछित प्रभाव [3] आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था शब्दार्थ- ज़ोर ज़बरदस्ती = बलपूर्वक। चूड़ी मरना = पेंच कसने के लिए बनाई गई चूड़ी का नष्ट होना (कथ्य की प्रभावोत्पादकता)। कसाव = कसावट। ताकत = शक्ति। सहूलियत = आसानी, सरलता। बरतना = प्रयोग करना। प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘बात सीधी थी पर’ में से अवतरित है। यह कविता कुँवर नारायण द्वारा रचित काव्य-संग्रह ‘कोई दूसरा नहीं’ में संकलित है। इस पद्यांश के कवि कुँवर नारायण हैं। इस पद्यांश में कवि ने यह स्पष्ट किया है कि कथ्य के अनुसार कविता की भाषा सहज, सरल तथा बोधगम्य होनी चाहिए। व्याख्या कवि स्पष्ट करता है कि यहाँ अन्ततः वही परिणाम निकला जिसका कवि को भय था। भाषा को तोड़ने-मरोड़ने तथा जटिल बनाने से कविता की भावाभिव्यक्ति का प्रभाव ही नष्ट हो गया। उसकी अभिव्यंजना कंद हो र भाषा भावहीन होकर पीड़ा करने लगी अर्थात् कविता का मूल कथ्य तो नष्ट हो गया, केवल भाषा की उछल-कूद ही दिखाई देने लगी। अंत में कवि तंग आ गया। उसने निराश होकर अभिव्यक्ति को चमत्कारी शब्दों से बलपूर्वक लूंस दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि ऊपर से वह कविता ठीक लग रही थी, परंतु उसका कथ्य पक्ष बड़ा ही कमज़ोर तथा प्रभावहीन बनकर रह गया। कवि के कथन में न कोई प्रभाव था और न ही भावों की गंभीरता थी। कवि की कविता पूर्णतः प्रभावहीन बनकर रह गई थी। अंत में कविता के कथ्य ने (बात ने) बच्चे की तरह कवि के साथ क्रीड़ा करते हुए उससे कहा कि तुम मुझ पर व्यर्थ में ही मेहनत कर रहे थे और अपनी इस मूर्खता पर पसीना बहा रहे थे। हैरानी की बात यह है कि तुम्हें आज तक सहज तथा सरल भाषा का प्रयोग करना ही नहीं आया। इससे पता चलता है कि तुम एक अयोग्य और बेकार कवि हो। तुम इस तथ्य को नहीं जान पाए कि सहज तथा सरल भाषा में कही बात ही प्रभावशाली सिद्ध होती है। विशेष-
पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर (ख) कवि अपने कथ्य को प्रभावशाली माध्यम के द्वारा व्यक्त करना चाहता था। परंतु कवि इस सच्चाई से अनभिज्ञ था कि सहज तथा बोधगम्य भाषा में कही गई बात ही अधिक प्रभावशाली और गंभीर होती है। (ग) कवि इस समस्या का हल नहीं निकाल पाया। जटिल भाषा के प्रयोग के कारण कवि की बात उलझकर रह गई। अंततः कवि ने निराश होकर अभिव्यक्ति को चमत्कारी शब्दों से लूंस दिया। (घ) बात ने शरारती बच्चे के समान कवि से कहा कि तुम व्यर्थ में ही परिश्रम कर रहे हो और अपनी बेवकूफी की मेहनत पर पसीना बहा रहे हो। तुम आज तक समझ नहीं पाए कि कविता में हमेशा सहज, सरल, बोधगम्य भाषा का ही प्रयोग करना चाहिए। (ङ) इस पद्यांश में कवि स्वीकार करता है कि वह अपने कथ्य को सहज, सरल भाषा के द्वारा अभिव्यक्त नहीं कर पाया। जटिल भाषा के प्रयोग के कारण उसकी बात उलझकर रह गई और प्रभावहीन हो गई। कविता के बहाने, बात सीधी थी पर Summary in Hindiकविता के बहाने, बात सीधी थी पर कवि-परिचय प्रश्न- 2. प्रमुख रचनाएँ-अज्ञेय के संपादन में निकले ‘तीसरा सप्तक’ 1959 में संकलित कविताएँ ‘चक्रव्यूह’ (1956), ‘परिवेश : हम तुम’ (1961), ‘आत्मजयी’ (1965), ‘इन दिनों अपने सामने’ (1997), ‘कोई दूसरा नहीं’ (1993) आदि इनकी प्रसिद्ध काव्य रचनाएँ हैं। इसके अतिरिक्त ‘आकारों के आस-पास’ (कहानी संग्रह); ‘आज और आज से पहले’ (समीक्षा); ‘मेरे साक्षात्कार’ (सामान्य) उल्लेखनीय रचनाएँ हैं। 3.
काव्यगत विशेषताएँ-कुँवर नारायण जी की काव्य-यात्रा निरंतर विकास की ओर हुई है। ‘तार सप्तक’ की कविताओं के बाद कवि ने व्यक्ति के मन की स्थिति के चित्रों का अंकन किया है। इनकी काव्यगत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं (ii) क्रूर व्यवस्था का वर्णन- कवि ‘अपने सामने’, काव्य-संग्रह में उस क्रूर व्यवस्था का वर्णन करता है जो मनुष्य की स्वतंत्रता, उसके अस्तित्व को जकड़ लेना चाहती है। लेकिन इसके साथ-साथ वह मुक्ति की भी चर्चा करता है। कवि आस्थाशील है। उसके विचारानुसार सत्ता की यह क्रूरता सार्वकालिक नहीं है, इसे हटाया भी जा सकता है। इसके लिए कवि नैतिकता से जुड़ने की सलाह देता है। कवि का विचार है कि हमें क्रूर व्यवस्था का डट कर विरोध करना चाहिए,
अन्यथा यह संपूर्ण मानवता को निगल जायेगी। (iii) सही मार्ग की खोज-कवि चारों ओर फैली हुई छीना-झपटी और दुनियादारी में विश्वास
नहीं करता। वह मानव-जीवन को अंधकारमय होने से बचाना चाहता है। वह एक ऐसा मार्ग खोजना चाहता है जो जीवन को गतिशील बनाए रखे और बाधाओं का सामना कर सके। कवि कहता है (iv) प्रकृति-वर्णन-कवि ने ‘जाड़े की एक सुबह’, ‘बसंत की लहर’, ‘बसंत आ’, ‘सूर्यास्त’ आदि कविताओं में प्रकृति के पूरे निखार का वर्णन किया है। कवि प्रकृति-वर्णन द्वारा उपदेश नहीं
देना चाहता, बल्कि उसके सौंदर्य का स्वाभाविक वर्णन करना चाहता है; यथा (v) प्रेम के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण-प्रेम के प्रति कुँवर नारायण का दृष्टिकोण पूर्णतया स्वस्थ एवं वैयक्तिक है। उनके विचारानुसार प्रेम मनुष्य के लिए शक्ति का काम करता है। यह निराश तथा कुचले जीवन में भी सजीवता उत्पन्न करता है। इसलिए प्रेम को आत्मा में स्थान देना चाहिए। 4. भाषा-शैली-कुँवर नारायण ने खड़ी बोली के स्वाभाविक रूप का अधिक प्रयोग किया है। उन्होंने न तो बलपूर्वक लोक भाषा का प्रयोग किया है और न ही संस्कृतनिष्ठ पदावली का। कवि ने सहज, सरल तथा भावानुकूल छंदों, बिंबों, प्रतीकों तथा अलंकारों का ही प्रयोग किया है। उनकी कविता को पढ़कर पाठक आत्मीयता का अनुभव करता है। छंदों के बारे में उनकी दृष्टि खुली है, क्योंकि वे सभी प्रकार के छंदों का प्रयोग करते हैं। यही
नहीं उनकी कविताओं में अनुप्रास, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, मानवीकरण आदि अलंकारों का भी सहज प्रयोग हुआ है; यथा- संक्षेप में हम कह सकते हैं कि कुँवर नारायण नयी कविता के प्रसिद्ध हस्ताक्षर हैं। भाव और भाषा दोनों दृष्टिकोणों से उनका काव्य आधुनिक युगबोध से जुड़ा हुआ है। कविता के बहाने कविता का सार प्रश्न- बात सीधी थी पर कविता का सार प्रश्न- सब घर एक कर देने के माने इससे कवि ने क्या भाव व्यक्त किया है?Answer: सब घर एक देने के माने का अर्थ है कि सभी को अपना घर बना लेना। बच्चों के लिए अपना-पराया कुछ नहीं होता है। जहाँ उन्हें प्यार मिलता है, वे वहीं के हो जाते हैं।
कविता के बहाने सब घर एक कर देने के माने क्या है?इस कविता के बहाने बताएँ कि 'सब घर एक कर देने के माने' क्या है? "सब घर एक कर देने के माने' का अर्थ है सभी घरों को एक समान समझना| जिस प्रकार बच्चे खेलते समय किसी घर में भी जाकर अपना-पराया, छोटा-बड़ा, गरीब-अमीर, जाति-धर्म का भेद ,मिटाकर खेलते हैं उस तरह हमें भी इन भावनाओं को मिटाकर सबको एकसमान देखना चाहिए।
बात के भाषा में उलझने पर कवि ने क्या किया?बात के भाषा में उलझने पर कवि ने क्या किया? उत्तर: जब बात भाषा में उलझ गई तो उसने सारी मुश्किल को धैर्य से नहीं समझा। वह पेंच को खोलने के बजाय उसे बिना किसी तरीके के कसता चला गया।
कविता लिखने का उद्देश्य क्या है?कविता का उद्देश्य सौन्दर्यभाव को जागृत करना है। जिस सौन्दर्य को हम अपने आस-पास विद्यमान होते हुए भी अनुभव नहीं कर पाते उसे कविता के माध्यम से अनुभव करने लगते हैं। क्योंकि कविता श्रोता को एक सौन्दर्य बोधक दृष्टि प्रदान करती है और वे भाव - सौन्दर्य, शब्द सौन्दर्य तथा ध्वनि सौन्दर्य सभी की अनुभूति करने लगते हैं।
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