प्रवास का मतलब क्या होता है? - pravaas ka matalab kya hota hai?

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प्रवास = TRANSMIGRATION(Noun) Usage : There is transmigration of birds from Siberia to Bharatpur in India.

प्रवास = MIGRATE(Verb) Usage : Many Germans migrated to South America in the mid-19th century

प्रवासी = DIASPORA(Noun) उदाहरण : स्विट्जरलैंड प्रवासियों के काम करने के लिए सबसे अच्छा देश है।
Usage : Prime Minister Narendra Modi addressed the Indian diaspora at the packed NRG stadium in Houston, Texas.

प्रवासी = EXPATRIATE(Noun) Usage : The company 's new project employed 2500 people, including 300 expatriates and 2200 locals.

प्रवासी = MIGRANT(Noun) Usage : India has a number of migrants from Bangladesh.

प्रवासी = MIGRATORY(Adjective) Usage : Each year the migratory birds come to our country.

प्रवासी = EXPAT(Noun) Usage : Switzerland is the best country for expats to work in.

प्रवासी = DIASPORIC(Noun) Usage : Tap the investible diasporic community in terms of knowledge and resources

प्रवास करना = JOURNEY(Verb) Usage : He has been jouneying for a month in connection with the Assembly elections.

अस्थाई प्रवास के अन्तर्गत वे लोग आते हैं जो कुछ समय रोजगार धंधा इत्यादि करके अपने मूल निवास स्थान को लौट जाते हैं। उदाहरण के लिए मौसमी प्रवास को लिया जा सकता है। फसल कटाई के समय बिहार के खेतिहर मजदूरों का पंजाब एवं हरियाणा प्रदेश में आकर रहना अस्थाई प्रवास है क्योंकि ये सब फिर से अपने अपने गाँवों को वापस लौट जाते हैं। 


बड़े-बड़े शहरों जैसे कोलकाता, चेन्नई, मुम्बई तथा अन्य बड़े शहरी क्षेत्रों में लोग सुबह आकर काम काज करके सायंकाल में वापस अपने घर चले जाते हैं। इस प्रकार के जनसंख्या के आवागमन को दैनिक प्रवास कहा जाता है।


पर्वतीय क्षेत्रों में सामान्यत: लोग ग्रीष्मकाल में अपने पशुओं के साथ घाटी इलाके से चलकर ऊँची पहाड़ियों पर पहुँच जाते हैं। जैसे ही शीत ऋतु का आगमन होता है, ये लोग अपने मवेशियों के साथ उतरकर पुन: अपने घाटी के इलाके में लौट आते हैं। इन लोगों का मूल स्थायी आवास घाटी में होता है तथा पर्वतीय ढलानों पर पशुओं को चराने के लिए चले जाते हैं। जब सर्दी में उच्च पर्वतीय ढाल ठंडे होने लगते हैं, वे लोग निम्न भागों की ओर घाटी में लौट आते हैं। आमतौर पर वार्षिक आवागमन के रास्ते तथा चारागाह भी वस्तुत: तय एवं निश्चित होते हैं। 


इस प्रकार, ऊँचाई के अनुसार प्रवास को ऋतु प्रवास कहते हैं। हिमाचल प्रदेश की गद्दी जनजाति तथा जम्मू-कश्मीर राज्य की बकरवाल जनजाति प्रतिवर्ष ऐसा प्रवास करते हैं। प्रवासी लोगों के मूलस्थान तथा निर्दिष्ट स्थान के आधार पर प्रवास को चार भागों में बाँटा जा सकता है-

  1. ग्रामीण क्षेत्र से ग्रामीण क्षेत्र में
  2. ग्रामीण क्षेत्र से नगरीय क्षेत्र में
  3. नगरीय क्षेत्र से नगरीय क्षेत्र में
  4. नगरीय क्षेत्र से ग्रामीण क्षेत्र में

प्रवास के कारण

  1. आर्थिक कारण
  2. सामाजिक-राजनैतिक कारण
  3. जनांकिकीय कारण

आर्थिक कारण

सामान्यत: लोगों की प्रवृत्ति उसी स्थान में निवास करने की होती हैं जहाँ उन्हें आजीविका प्राप्ति के अवसर होते हैं। इसलिए उस क्षेत्र से जहाँ की मृदा अनुपजाऊ, आवागमन के साधन कम विकसित, निम्न औद्योगिक विकास एवं रोजगार की कम संभावनाएँ हों वहाँ से लोग पलायन कर जाते हैं। ये कारक प्रवास के लिए प्रतिकर्षित करते हैं। दूसरी तरफ वे क्षेत्र जहाँ पर रोजगार की गुंजाइश हो तथा जीवनस्तर भी अपेक्षाकृत ऊँचा हो, लोगों को उत्प्रवास के लिए आकर्षित करता है। अत: इन कारकों को आकर्षणकारी समूह कहते हैं। 


इस प्रकार वे सभी क्षेत्र जहाँ की मृदा उपजाऊ, खनिज संसाधन की उपलबधता, आवागमन के सुविकसित साधन, संचार माध्यम का विकास, कारखानों एवं औद्योगिक इकाइयों का सुव्यवस्थित विकास एवं शहरीकरण हों, लोगों को बसने के लिए आकर्षित करते हैं।


आप ने शायद ध्यान दिया होगा कि काफी बड़ी संख्या में लोग दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता एवं चेन्नई जैसे महानगरों में आसपास के क्षेत्रों से तथा दूर-दराज के भागों से पहुँचते हैं। बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ से लोग काफी बड़ी संख्या में इन शहरों में पिछले अनेकों वर्षों से प्रवास कर रहे हैं। इन राज्यों में संभावनाएं सामान्यत: कम हैं। 


इन सभी लोगों को प्रवास के लिए उत्प्रेरित करने वाली प्रमुख प्रेरणा आर्थिक लाभ प्राप्त करना है। कुछ लोग शहर में मौजूद आमोद-प्रमोद के साधन, जीवन की सुख-सुविधाएँ तथा अन्य शहरी चकाचौंध से प्रभावित एवं आकर्षित होकर प्रवासी बन जाते हैं।

सामाजिक-राजनैतिक कारण

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है अत: वह चाहता है कि वह अपने निकटतम संबंधियों के साथ रहे। साधारणत: एक ही धर्म, भाषा तथा समान सामाजिक रीति-रिवाज़ों को मानने वाले लोग एक साथ रहना पसन्द करते हैं। इसके ठीक विपरीत यदि कोई व्यक्ति ऐसे स्थान में रह रहा हो जहाँ लोगों का रहन-सहन, सामाजिक रीति-रिवाज अलग हो तो वह अन्यत्रा प्रवास करना चाहेगा। बहुत से लोग धार्मिक महत्व के स्थानों पर जाना पसन्द करते हैं भले ही वह अस्थाई रूप में ही हो जैसे बद्रीनाथ, तिरूपति, वाराणसी आदि। 


इन्हीं सब कारणों से प्रेरित होकर शहरों के विभिन्न भागों में खास समुदाय के लोगों का संकेन्द्रण हो जाता है। अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों का धार्मिक, सामाजिक दबाव में आकर एक खास स्थान पर प्रवास करना तभी होता है जब बहुसंख्यक समुदाय उनसे असहिष्णु हो जाते हैं।

जनांकिकीय कारण

जनांकिकी में उम्र की अहम भूमिका होती है। युवा व्यक्तियों में प्रवास ज्यादा मिलता है जबकि बच्चों एवं वद्धृ ों में कम। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि युवा व्यक्ति कार्य की तलाश या बेहतर संभावनाओं की खोज में अन्यत्रा प्रवास करते हैं।

जनसंख्या प्रवास में राजनैतिक कारकों में से अधिकांश का संबंध सरकार की नीति से होता हैं। आधुनिक युग में ऐसे राजनैतिक कारक बहुत प्रभावशाली होते जा रहे हैं। इसके चलते प्रवास की गति, दिशा एवं स्तर प्रभावित हो रहा है। कई बार सरकारी नीतियाँ क्षेत्र के अल्पसंख्यकों को प्रवासित करने को बाध्य कर देती है। 


स्वतंत्रता प्राप्ति के समय देश के भारत एवं पाकिस्तान के रूप में विभाजन के परिणामस्वरूप वृहद पैमाने पर दोनों देशों के बीच प्रवास हुआ।

जनसंख्या प्रवास के परिणाम

परिणामों को तीन प्रकार के वर्गों में रखा जा सकता है- 

  1. आर्थिक परिणाम
  2. सामाजिक परिणाम
  3. जनांकिकीय परिणाम

आर्थिक परिणाम

प्रवास के आर्थिक परिणामों में से सबसे महत्वपूर्ण परिणाम, जनसंख्या तथा संसाधनों के बीच के अनुपात पर प्रभाव है। प्रवास के उद्गम स्थान में तथा प्रवास के बसावट, दोनों स्थानों पर इस अनुपात में बदलाव आता है। इनमें से एक स्थान तो कम जनसंख्या वाला हो जाता है तो दूसरा स्थान अधिक जनसंख्या वाला या फिर उचित या आदर्श जनसंख्या वाला। कम जनसंख्या के क्षेत्र में लोगों की संख्या तथा मौजूद संसाधन में असंतुलन होता है, नतीजतन संसाधन का उचित उपभोग एवं विकास दोनों अवरूद्ध होते हैं। ठीक इसके विपरीत अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्र में लोगों की बहुलता होती है, फलस्वरूप संसाधनों पर दबाव बढ़ जाता है। 


इस तरह लोगों का जीवनस्तर गिरने लगता है। यदि किसी देश की जनसंख्या इतनी हो कि प्रतिव्यक्ति संसाधनों का विकास एवं उपभोग बिना किसी अवरोध अथवा बाधा के उपलब्ध रहे तथा लोगों के जीवनस्तर में कोई विपरीत प्रभाव न पड़ता हो तो उतनी जनसंख्या को उक्त देश अथवा क्षेत्र के लिये आदर्श जनसंख्या कहा जाता है। यदि प्रवास की प्रक्रिया में लोग अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्र से कम जनसंख्या वाले क्षेत्रों में जा रहे हों तो यह अच्छा संकेत हैं क्योंकि इससे दोनों क्षेत्रों में जनसंख्या एवं संसाधनों के बीच अनुपात एवं संतुलन बना रहेगा। अन्यथा विपरीत परिस्थितियाँ दोनों क्षेत्रों के लिए हानिकारक हो सकती हैं।

प्रवास दोनों क्षेत्रों में विद्यमान जनसंख्या की व्यावसायिक संरचनाओं को प्रभावित करता है। जिस क्षेत्र से लोगों का उत्प्रवास होता है, उस क्षेत्र में आमतौर पर क्रियाशील लोगों का आभाव हो जाता है तथा जिन क्षेत्रों में उत्प्रवासी लोग जाकर बसते हैं वहाँ क्रियाशील व्यक्तियों की संख्या बढ़ जाती है। उत्प्रवासित क्षेत्र यानी जहाँ से लोग प्रवास के लिये बाहर निकल आए वहाँ कार्यशील व्यक्तियों की कमी होने से उन पर आश्रितों की संख्या बढ़ जाती है। 


आजकल प्रवास का सबसे गंभीर एवं दूरगामी परिणाम हमारे देश में देखा जा रहा है- उच्च-शिक्षा प्राप्त कर प्रतिभाशाली व्यक्तियों का अन्य देशों के लिए पलायन कर जाना। इस प्रक्रिया को प्रतिभा-पलायन (ब्रेन-ड्रेन) कहते हैं। इस प्रक्रिया में गरीब एवं विकासशील देशों से प्रतिभा सम्पन्न युवक विभिन्न तकनीकी ज्ञान में निपुणता प्राप्त कर धनोपार्जन की लालसा में विकसित देशों में प्रवासी बन कर बस जाते हैं। 


भारत इसका बहुत सटीक उदाहरण है। यहाँ से इंजीनियर, चिकित्सक तथा अन्य तकनीकी एवं वैज्ञानिक विधाओं के कुशल एवं कार्यशील व्यक्ति संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड, तथा कनाडा में प्रवासी रूप में बस गए हैं।

यद्यपि इस प्रकार के प्रवास का किसी भी क्षेत्र में विद्यमान संसाधन एवं जनसंख्या के अनुपात में कोई विशेष प्रभाव पड़ता नज़र नहीं आता क्योंकि उत्प्रवासी व्यक्तियों की संख्या बहुत कम होती है, फिर भी उद्गम क्षेत्रों में यानी जहाँ के लोग पलायन करते हैं वहाँ की जनसंख्या की गुणवत्ता पर कुप्रभाव पड़ता ही है। प्रतिभाशाली एवं कुशल वैज्ञानिक, इंजीनियर, चिकित्सकों के चले जाने से उद्गम स्थान के संसाधनों के विकास में काफी बाधा एवं रूकावटें आती हैं।

सामाजिक परिणाम

प्रवास के कारण विभिन्न संस्कृतियों के साथ पारस्परिक क्रिया होती हैं। प्रवास क्षेत्रों में भिन्न संस्कृतियों वाले व्यक्तियों के आने से इन क्षेत्रों की संस्कृति अधिक समृद्ध हो जाती हैं। भारत की आधुनिक संस्कृति अनेक संस्कृतियों की पारस्परिक क्रिया के फलस्वरूप प्रस्फुटित एवं पल्लवित हुई है। कभी कभी विभिन्न संस्कृतियों का मिलन सांस्कृतिक संघर्ष को भी जन्म देता है। बहुत से प्रवासी (विशेष कर पुरूष वर्ग) जो शहरों में अकेले रहते हैं, उन लोगों को विवाहेत्तर एवं असुरक्षित यौन संबंधों में लिप्त पाया जाता है। 


इनमें से कुछ लोग एचआई. वी. जैसी संक्रामक बीमारियों से ग्रसित पाए गए। इतना ही नहीं अस्थाई प्रवास के पश्चात् जब ये अपने स्थाई निवास क्षेत्रों में वापस जाते हैं तो वहाँ भी इन संक्रामक बीमारियों के फैलाने के साधन बन जाते हैं। इस तरह इनकी पत्नी एवं होने वाले बच्चे भी इस बिमारी का शिकार बन जाते है। ऐसा क्यों होता है?

  1. सही जानकारी की कमी के कारण,
  2. असुरक्षित यौन संबंधों के कारण,
  3. यौन संबंधों की जिज्ञासा,
  4. नशीली दवाओं का सेवन एवं मदिरापन,
  5. प्रवास क्षेत्रों में साँस्कृतिक समृद्धि को बढ़ावा मिलता है। यद्यपि कई बार सांस्कृतिक मनमुटाव अथवा संघर्ष भी उत्पन्न हो जाते हैं।
  6. प्रवास के कारण उत्प्रवासित क्षेत्र एवं आप्रवासित क्षेत्र दोनों जगहों में संसाधन एवं जनसंख्या के अनुपात में परिवर्तन आ जाता है।
  7. प्रतिभा-पलायन भी एक गंभीर दुष्परिणाम है जो प्रवास की प्रक्रिया के कारण आ जाता है।

जनांकिकीय परिणाम

प्रवास के कारण दोनों स्थानों की जनसंख्या में गुणात्मक परिवर्तन आता हैं, खासकर जनसंख्या के आयुवर्ग तथा लैंगिक वर्ग के अनुपात में। इस कारण जनसंख्या की वृद्धि दर भी प्रभावित होती है। आमतौर पर जहाँ से युवा वर्ग उत्प्रवासित होकर अन्यत्रा चले जाते हैं वृद्धों, बच्चों एवं महिलाओं की संख्या बढ़ती है। 


दूसरा स्थान, जहाँ पर युवा वर्ग के प्रवासी आकर बस जाते हैं वहाँ की जनसंख्या की संरचना में वृद्धों, बच्चों की एवं महिलाओं की संख्या अपेक्षाकृत कम हो जाती है। यही कारण है कि जहाँ से युवा वर्ग बाहर निकला है वहाँ लिंगानुपात ज्यादा होता है तथा जहाँ आकर युवा वर्ग प्रवासित होता है वहाँ लिंगानुपात कम हो जाता है। इसका कारण युवा पुरूषों का ज्यादा प्रवास होना है। 


इस प्रकार दोनों स्थानों की जनसंख्या में बदलाव तो होता ही है जनसंख्या की संरचना में भी परिवर्तन हो जाता है। इसके कारण दोनों ही क्षेत्रों में जन्मदर, मृत्युदर एवं इसके परिणामस्वरूप वृद्धि दर में परिवर्तन होता है। जिस क्षेत्र से युवा वर्ग प्रवास में बाहर चले जाते हैं वहाँ की जन्मदर घट जाता है, अत: जनसंख्या में वृद्धि दर का कम पाया जाना स्वाभाविक परिणाम है। ठीक इसका उल्टा प्रभाव एवं परिणाम उस क्षेत्र की जनसंख्या में जन्मदर एवं वृद्धि दर पर पड़ता है जहाँ पर अधिक युवा प्रवासी आकर बस जाते हैं।

प्रवास से आप क्या समझते हैं?

व्यक्तियों के एक स्थान से दूसरे स्थान में जाकर बसने की क्रिया को प्रवास कहते हैं। इसके कई प्रकार हो सकते हैं। किसी दूसरे स्थान में आकर बसावट की प्रकृति के आधार पर इस प्रवास को (i) स्थाई अथवा (ii) अस्थाई कह सकते हैं। स्थाई प्रवास मेंं आए हुए व्यक्ति बसावट करने के बाद वापस अपने मूल स्थान नहीं जाते हैं।

प्रवास का मुख्य कारण क्या है?

प्रवास, क्षेत्र पर अवसरों के असमान वितरण के कारण होता है। लोगों में कम अवसरों और कम सुरक्षा वाले स्थान से अधिक अवसरों और बेहतर सुरक्षा वाले स्थान की ओर जाने की प्रवृत्ति होती है। बदले में यह प्रवास के उद्गम और गंतव्य क्षेत्रों के लिए लाभ और हानि दोनों उत्पन्न करता है।

प्रवास की प्रकृति क्या है?

प्रवास की प्रकृति सामान्यतः पर्वतीय क्षेत्र से हो रहा प्रवास अस्थाई एवं एकांकी प्रकृति का है। यहाँ प्रवास के मुख्यतः दो कारण पाये जाते हैं- प्रथम- आर्थिक कारणों से- जिसमें रोजगार समस्या प्रमुख है। पर्वतीय क्षेत्र से प्रवासित व्यक्तियों का अधिकांश भाग भारतीय सेनाओं, पुलिस बल एवं राजकीय सेवाओं में संलग्न है।