परमार वंश का सबसे बड़ा राजा कौन था? - paramaar vansh ka sabase bada raaja kaun tha?

परमार वंश की वंशावली – परमार वंश के संस्थापक कौन थे , परमार वंश की कुलदेवी कौन सी है , परमार वंश की राजधानी क्या थी , परमार वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक कौन था , पंवार वंश की वंशावली , परमार फोटो , परमार वंश उत्तराखंड , परमार वंश जैन बने , क्षत्रिय परमार राजपूत , पंवार वंश की उत्पत्ति , परमार वंश का प्रथम स्वतंत्र शासक , परमार वंश के गोत्र , परमार वंश की कुलदेवी कौन है , पंवार वंश की कुलदेवी कौन है , पंवार वंश का इतिहास , परमार वंश जैन बने , गढ़वाल का परमार वंश ,

परमार या पँवार मध्यकालीन भारत का एक अग्निवंशी क्षत्रिय राजवंश था। इस राजवंश का अधिकार धार-मालवा-उज्जयिनी-आबू पर्वत और सिन्धु के निकट अमरकोट आदि राज्यों तक था। लगभग सम्पूर्ण पश्चमी भारत क्षेत्र में परमार वंश का साम्राज्य था। ये 8वीं शताब्दी से 14वीं शताब्दी तक शासन करते रहे। परमार शब्द का अर्थ शत्रु को मारने वाला होता है प्रारम्भ में ये आबू के आस पास के प्रदेशों में रहते थे ज्यों ज्यों प्रतिहार कमजोर होते गये परमार अपना प्रभाव बढ़ाते गये धीरे धीरे परमार वंश ने मारवाड़ सिंध गुजरात तथा मालवा आदि प्रदेशों पर अपने राज्य स्थापित कर लिये परमारों ने आबू जालौर किराडू मालवा वागड़ के परमार अधीक प्रसिध्द है

परमार वंश का इतिहास 

परमार वंश का संस्थापक उपेन्द्रराज था इसकी राजधनी धारा नगरी थी। (प्राचीन राजधनी उज्जैन) परमार वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक राजा भोज था।
परमार परिवार की मुख्य शाखा आठवीं शताब्दी के प्रारंभिक काल से मालवा में धारा को राजधानी बनाकर राज्य करती थी और इसका प्राचीनतम ज्ञात सदस्य उपेंद्र कृष्णराज था इस वंश के प्रारंभिक शासक दक्षिण के राष्ट्रकूटों के सामंत थे राष्ट्रकूटों के पतन के बाद सिंपाक द्वितीय के नेतृत्व में यह परिवार स्वतंत्र हो गया। सिपाक द्वितीय का पुत्र वाक्पति मुंज, जो 10वीं शताब्दी के अंतिम चतुर्थांश में हुआ, अपने परिवार की महानता का संस्थापक था उसने केवल अपनी स्थिति ही सुदृढ़ नहीं की वरन्‌ दक्षिण राजपूताना का भी एक भाग जीत लिया और वहाँ महत्वपूर्ण पदों पर अपने वंश के राजकुमारों को नियुक्त कर दिया उसका भतीजा भोज, जिसने सन्‌ 1000 से 1055 तक राज्य किया और जो सर्वतोमुखी प्रतिभा का शासक था, मध्युगीन सर्वश्रेष्ठ शासकों में गिना जाता था भोज ने अपने समय के चौलुभ्य, चंदेल, कालचूरी और चालुक्य इत्यादि सभी शक्तिशाली राज्यों से युद्ध किया बहुत बड़ी संख्या में विद्वान्‌ इसके दरबार में दयापूर्ण आश्रय पाकर रहते थे वह स्वयं भी महान्‌ लेखक था और इसने विभिन्न विषयों पर अनेक पुस्तकें लिखी थीं, ऐसा माना जाता है उसने अपने राज्य के विभिन्न भागों में बड़ी संख्या में मंदिर बनवाए |

राजस्थान का प्रथम परमार वंश 

राजस्थान में ई 400 के करीब राजस्थान के नागवंशों के राज्यों पर परमारों ने अधिकार कर लिया था इन नाग वंशों के पतन पर आसिया चारण पालपोत ने लिखा है-परमारा रुंधाविधा नाग गया पाताळ हमै बिचारा आसिया, किणरी झुमै चाळ मालवा के परमार- मालव भू-भाग पर परमार वंश का शासन काफी समय तक रहा है भोज के पूर्वजों में पहला राजा उपेन्द्र का नाम मिलता है जिसे कृष्णराज भी कहते हैं इसने अपने बाहुबल से एक बड़े स्वतंत्र राज्य की स्थापना की थी इनके बाद बैरीसिंह मालवा के शासक बने बैरीसिंह का दूसरा पुत्र अबरसिंह था जिसने डूंगरपुरबांसवाडा को जीतकर अपना राज्य स्थापित किया। इसी वंश में बैरीसिंह द्वितीय हुआ जिसने गौड़ प्रदेश में बगावत के समय हूणों से मुकाबला किया और विजय प्राप्त की इसी वंश में जन्में इतिहास प्रसिद्ध राजा भोज विद्यानुरागी व विद्वान राजा थे।

परमार वंश का संस्थापक 

परमार वंश का संस्थापक महर्षि वशिष्ठ थे कहते हैं इन्होंने विश्वामित्र से तंग होकर उनसे बचने के लिये राजस्थान में यज्ञ किया जहाँ यज्ञ किया वह पर्वत आज भी है नाम माउंट आबू यज्ञ से एक बलवान पुरुष उत्पन्न हुआ मार मार कहता हुआ और निकलते ही पर नामक असुर का अंत कर दिया और महर्षि वशिष्ठ ने उसका नाम परमार रख दिया और यही हुआ परमार वंश का संस्थापक। लेकिन ये अग्निवंशी राजवंश था

परमार वंश के शासकों की सूची 

> उपेन्द्र (800 – 818)
> वैरीसिंह प्रथम (818 – 843)
> सियक प्रथम (843 – 893)
> वाकपति (893 – 918)
> वैरीसिंह द्वितीय (918 – 948)
> सियक द्वितीय (948 – 974)
> वाकपतिराज (974 – 995)
> सिंधुराज (995 – 1010)
> भोज प्रथम (1010 – 1055), समरांगण सूत्रधार के रचयिता
> जयसिंह प्रथम (1055 – 1060)

Conclusion:- दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हमने परमार वंश की वंशावली के बारे में विस्तार से जानकारी दी है। इसलिए हम उम्मीद करते हैं, कि आपको आज का यह आर्टिकल आवश्यक पसंद आया होगा, और आज के इस आर्टिकल से आपको अवश्य कुछ मदद मिली होगी। इस आर्टिकल के बारे में आपकी कोई भी राय है, तो आप हमें नीचे कमेंट करके जरूर बताएं।

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उत्तर भारत में हर्षोत्तर काल में अपने सत्य स्थापित करने वालों ने परमार जी प्रमुख हैं| परमार वंश पूर्व मध्यकालीन भारतीय इतिहास का एक प्रमुख राजपूत राजवंश था| इस वंश ने 9 वीं से 11 वीं शताब्दी तक शासन कार्य किया|

राजनीतिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से परमार वंश का इतिहास बड़ा ही महत्वपूर्ण माना जाता है| परमारों की उत्पत्ति अग्निकुल से मानी गई है और कुछ इतिहासकार इन्हें राष्ट्रकूटों का वंशज भी मानते हैं| 

Parmar Vansh ka itihas in Hindi-

परमार वंश की उत्पत्ति-

10वी शताब्दी के प्रारंभ में प्रतिहार वंश के शासकों का आधिपत्य लगभग समाप्त हो चुका था और एक नए वंश का उदय हुआ था जिसका नाम था परमार वंश| परमार वंश का प्रथम शासक श्रीहर्ष था|

परमारों की प्रारंभिक राजधानी उज्जैन थी परंतु बाद में परमार वंश के शासकों ने धरा को अपनी राजधानी बनाया| परमार वंश का प्रारंभिक इतिहास ज्ञात करने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्रोत उदयपुर प्रशस्ति है| परमार राजाओं की शक्ति का उत्कर्ष वाक्पति मुंज के समय में हुआ था|

वाक्पति मुंज परमार वंश के शासकों में सबसे अधिक शक्तिशाली था उसने त्रिपुरी के कलचुरी तथा चालुक्य नरेश तैलप द्वितीय को पराजित किया था| वाक्पति मुंज के पश्चात परमार साम्राज्य पर सिंधुराज का शासन हुआ| पद्म गुप्त वाक्पति मुंज व सिंधु राज का दरबारी कवि था|

परमार वंश का संस्थापक-

परमार एक राजवंश का नाम है और इस युद्ध के महान कवि पद्मगुप्त ने अपनी पुस्तक ‘नवसाहसांकचरित‘ में एक कथा का वर्णन किया है। इस वर्णन के अनुसार ऋषि वशिष्ठ ने ऋषि विश्वामित्र के विरुद्ध युद्ध में सहायता प्राप्त करने के लिये अग्निकुंड से एक वीर पुरुष का निर्माण किया था और इस वीर पुरुष का नाम परमार रखा गया| यही पुरुष परमार वंश का संस्थापक माना जाता है और उसी के नाम पर इस वंश का नाम पड़ा| परंतु कुछ विद्वान परमार वंश के संस्थापक के संबंध में अलग-अलग मत प्रस्तुत करते हैं|

परमार वंश के शासक-

परमार वंश के शासकों के नाम-

  • उपेन्द्र
  • वैरीसिंह प्रथम
  • सियक प्रथम
  • वाकपति
  • वैरीसिंह द्वितीय
  • सियक द्वितीय
  • वाकपतिराज
  • सिंधुराज
  • भोज प्रथम
  • जयसिंह प्रथम
  • उदयादित्य
  • लक्ष्मणदेव
  • नरवर्मन
  • यशोवर्मन
  • जयवर्मन प्रथम
  • विंध्यवर्मन
  • सुभातवर्मन
  • अर्जुनवर्मन प्रथम  
  • देवपाल
  • जयतुगीदेव
  • जयवर्मन द्वितीय
  • जयसिंह द्वितीय
  • अर्जुनवर्मन द्वितीय
  • भोज द्वितीय
  • महालकदेव
  • संजीव सिंह परमार

परमार वंश का अंत-

भोज परमार के बाद परमार साम्राज्य में कोई भी प्रतापी शासक पैसा नहीं था जो परमार वंश के पतन को रोक पाता| भोज परमार के बादशाह कौन है परमार साम्राज्य की राजगद्दी को संभाला परंतु उनके समय में परमार वंश का पतन होता चला गया|

More History of Parmar Vansh in Hindi-

परमार वंश की शासन व्यवस्था-

परमार साम्राज्य का शासन क्षेत्र कई मंडलों में बटा हुआ था इसके अतिरिक्त प्रत्येक मंडलों को भागों में विभाजित किया गया है| सेनापति दण्डाधीश कहलाता था| सेना में अश्वारोही एवं हाथी होते थे|बिहार का सर्वोच्च अधिकारी राजा होता था और इस साम्राज्य का दंड विधान बहुत ही कठोर था|

इस साम्राज्य की वित्तीय व्यवस्था बहुत ही सुसंगठित थी| राज्य की ओर से कई प्रकार के कर (tax) लिए जाते थे| कर को शुल्क या चुंगी के नाम से भी जाना जाता था|

परमार वंश का सबसे शक्तिशाली शासक कौन था?

परमार वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक अजयपाल था। यह गढ़वाल वंश का 37 वां राजा था। जो वर्ष 1490 में राजा बना। इसने सबसे पहले 52 गढ़ों में विभाजित सभी गढों पर एकछत्र शासन स्थापित करके गढ़वाल राज्य की स्थापना की।

परमार वंश का अंतिम शासक कौन है?

अंतिम परमार राजा, महालकदेव, 1305 ई में दिल्ली के अलाउद्दीन खिलजी के नेतृत्व में सेनाओं से हार गए और मारे गए। हालांकि पुरालेख सबूत बताते हैं कि परमार शासन उनकी मृत्यु के बाद कुछ वर्षों तक जारी रहा।

पंवार वंश का प्रथम राजा कौन था?

बहुत सारे इतिहासकारों द्वारा पंवार वंश का संस्थापक कनकपाल को माना जाता है। 887 ई० में गुजरात के धार से तीर्थयात्रा पर आए कनकपाल का चाँदपुरगढ़ के राजा भानूप्रताप ने भव्य स्वागत किया। कनकपाल से प्रभावित होकर भानूप्रताप ने अपनी पुत्री का विवाह कनकपाल से कर दिया तथा अपने राज्य चाँदपुरगढ़ का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।

परमार वंश के संस्थापक कौन थे?

सही उत्‍तर कनक पाल है। कनक पाल (867-918 लगभग), परमार वंश के एक राजकुमार गढ़वाल साम्राज्य के संस्थापक थे या इसे गढ़वाल में परमार वंश की स्थापना के रूप में संदर्भित किया जा सकता है। वह पूरे गढ़वाल राज्य के पहले स्वतंत्र शासक थे। वह मालवा का रहने वाला था।