मैं तो केवल निमित्त मात्र था अरुण के पीछे सूर्य था किसका कथन है? - main to keval nimitt maatr tha arun ke peechhe soory tha kisaka kathan hai?

दो रुपए में प्राप्त बोधिसत्व की मूर्ति पर दस हजार रुपए क्यों न्यौछावर किए जा रहे?

इसे सुनेंरोकेंअतः दो रुपए में प्राप्त मूर्ति पर एक फ्राँसीसी व्यक्ति द्वारा दस हजार रुपए न्यौछावर किए जा रहे थे। उसे निराशा हाथ लगी क्योंकि लेखक भी मूर्ति के महत्व से परिचित था। वह उसे देश से बाहर नहीं जाने देना चाहता था। अतः उसने भी मूर्ति पर दस हजार न्यौछावर कर दिया और उस व्यक्ति को लौटा दिया।

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लेखिका ने किससे और क्यों निवेदन किया?

इसे सुनेंरोकेंउनके मन में आज़ादी की लड़ाई करने वालों के लिए विशेष आदर था। यही कारण था कि अपने अंत समय से पहले अपने पति के मित्र से उन्होंने निवेदन किया था कि उनकी पुत्री का विवाह उनके पति की पसंद से न हो, क्योंकि वह स्वयं अंग्रेज़ों के समर्थक थे, बल्कि उनके मित्र करवाएँ। वह अपनी ही तरह आज़ादी का दीवाना ढूँढे।

मैं तो केवल निमित्त मात्र था अरुण के पीछे सूर्य था किसका कथन है?

इसे सुनेंरोकें(ख) “मैं तो केवल निमित्त मात्र था । अरुण के पीछे सूर्य था । ” व्यास जी के इस कथन का आशय क्या है? इससे उनके चरित्र की किस विशेषता का परिचय मिलता है?

लेखक के पिता भारत जीवन प्रेस की पुस्तकें छुपाकर क्यों रखते थे?

इसे सुनेंरोकेंउनके पिता फ़ारसी भाषा के अच्छे विद्वान थे। वे प्राचीन हिंदी भाषा के प्रशंसक थे। वे फ़ारसी भाषा में लिखी उक्तियों के साथ हिन्दी भाषा में लिखी गई उक्तियों को मिलाने के शौकीन थे। वे प्रायः रात में सारे परिवार को रामचरितमानस तथा रामचंद्रिका का बड़ा चित्रात्मक ढ़ंग से वर्णन करके सुनाते थे।

लेखिका ने अपनी नानी को क्यों नहीं देखा सही विकल्प?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर : लेखिका ने अपनी नानी को कभी नहीं देखा था परंतु अपनी नानी के बारे में उसने जो कुछ भी सुना था उसके कारण वह उनके व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुई थी। उसकी नानी ने पारंपरिक, अनपढ़, और पर्दे में रहने वाली महिला होते हुए भी विलायती ढंग से जीवन जीने वाले बैरिस्टर पति के साथ बिना किसी शिकायत के जीवन बिताया था।

लेखिका की मां रात रात भर जागकर किसका अभ्यास करती थी?

इसे सुनेंरोकेंमाँ, बेचारी, अपनी माँ और गांधी जी के सिद्धांतों के चक्कर में सादा जीवन जीने और ऊँचे खयाल रखने पर मजबूर हुईं। हाल उनका यह था कि खादी की साड़ी उन्हें इतनी भारी लगती थी कि कमर चनका खा जाती । रात-रात भर जागकर वे उसे पहनने का अभ्यास करतीं, जिससे दिन में शर्मिंदगी न उठानी पड़े।

विषयसूची

  • 1 दो रुपए में प्राप्त बोधिसत्व की मूर्ति पर दस हज़ार रुपए क्यों न्यौछावर किए जा रहे थे?
  • 2 2 मैं कहीं जाता हूँ तो घूँछे हाथ नहीं लौटता से क्या तात्पर्य है लेखक कौशाम्बी लौटते हुए अपने साथ क्या क्या लाया?
  • 3 मैं तो केवल निमित्त मात्र था अरुण के पीछे सूर्य था किसका कथन है?
  • 4 लेखक के पिता भारत जीवन प्रेस की पुस्तकें छुपाकर क्यों रखते थे?

दो रुपए में प्राप्त बोधिसत्व की मूर्ति पर दस हज़ार रुपए क्यों न्यौछावर किए जा रहे थे?

इसे सुनेंरोकेंअतः दो रुपए में प्राप्त मूर्ति पर एक फ्राँसीसी व्यक्ति द्वारा दस हजार रुपए न्यौछावर किए जा रहे थे। उसे निराशा हाथ लगी क्योंकि लेखक भी मूर्ति के महत्व से परिचित था। वह उसे देश से बाहर नहीं जाने देना चाहता था। अतः उसने भी मूर्ति पर दस हजार न्यौछावर कर दिया और उस व्यक्ति को लौटा दिया।

2 मैं कहीं जाता हूँ तो घूँछे हाथ नहीं लौटता से क्या तात्पर्य है लेखक कौशाम्बी लौटते हुए अपने साथ क्या क्या लाया?

इसे सुनेंरोकेंलेखक कौशांबी लौटते हुए अपने साथ क्या-क्या लाया? ANSWER: ”मैं कहीं जाता हूँ तो ‘छूँछे’ हाथ नहीं लौटता” इस पंक्तियों का तात्पर्य है कि लेखक जहाँ भी कहीं जाता है, वह खाली हाथ नहीं आता। अपने साथ वहाँ से जुड़ी कोई न कोई पुरातत्व महत्व की वस्तु लेकर ही आता है।

बोधिसत्व की मूर्ति की क्या विशेषता थी?

इसे सुनेंरोकेंAnswer: एक बार कौशांबी के गाँवों में घूमते हुए लेखक को खेत की मेड़ में बोधिसत्व की आठ फुट लंबी मूर्ति दिखाई पड़ी। मूर्ति की विशेषता थी कि वह सुंदर थी। मथुरा के लाल पत्थरों से बनी थी तथा खंडित नहीं थी।

मूर्ति गायब होने पर लोग लेखक को क्यों दोष देते थे?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर लेखक को मूर्ति पुराने सिक्के और शिलालेखों को इकट्ठा करने का शौक था। लेखक पुरातत्व महत्व की वस्तु को देखते ही अपने साथ ले जाता था। उसकी इस आदत से सभी Page 4 परिचित थे। अतः कहीं भी मूर्ति गायब हो जाती थी तो लोग लेखक का ही नाम लेते थे।

मैं तो केवल निमित्त मात्र था अरुण के पीछे सूर्य था किसका कथन है?

इसे सुनेंरोकें(ख) “मैं तो केवल निमित्त मात्र था । अरुण के पीछे सूर्य था । ” व्यास जी के इस कथन का आशय क्या है? इससे उनके चरित्र की किस विशेषता का परिचय मिलता है?

लेखक के पिता भारत जीवन प्रेस की पुस्तकें छुपाकर क्यों रखते थे?

इसे सुनेंरोकेंउनके पिता फ़ारसी भाषा के अच्छे विद्वान थे। वे प्राचीन हिंदी भाषा के प्रशंसक थे। वे फ़ारसी भाषा में लिखी उक्तियों के साथ हिन्दी भाषा में लिखी गई उक्तियों को मिलाने के शौकीन थे। वे प्रायः रात में सारे परिवार को रामचरितमानस तथा रामचंद्रिका का बड़ा चित्रात्मक ढ़ंग से वर्णन करके सुनाते थे।

कच्चा चिट्ठा आत्मकथा के लेखक कौन हैं?

इसे सुनेंरोकेंसंदर्भ एवं प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश लेखक ब्रजमोहन व्यास के पाठ ‘कच्चा चिट्ठा’ से लिया गया है जो हमारी पाठ्य पुस्तक ‘अंतरा’ भाग 2 में संकलित है। यह आत्मकथांश व्यास जी के संग्रहालय निर्माण की सच्ची कहानी बताता है।

पसोवा की प्रसिद्धि का क्या कारण था और लेखक वहा क्यो जाना चाहता था?

इसे सुनेंरोकेंपसोवा की प्रसिद्धि का क्या कारण था और लेखक वहाँ क्यों जाना चाहता था? उत्तर: पसोवा में जैन धर्म का तीर्थ स्थल है। यहाँ पर जैन समुदाय का बहुत बड़ा मेला लगता था। यह भी कहा जाता था कि सम्राट अशोक द्वारा यहाँ पर स्तूप बनवाया गया था।

मैं तो केवल निमित्त मात्र था और उनके पीछे सूर्य था किसका कथन है?

उत्तर : "मैं तो केवल निमित मात्र था। अरुण के पीछे सूर्य था।" ब्रजमोहन व्यास का कथन है। प्रश्न 5.

मैं तो केवल निमित्त मात्र था अरुण के पीछे सूर्य था व्यास जी के इस कथन का आशय क्या है?

का आशय " सुमिरिनी के मनके" पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए । (ख) "मैं तो केवल निमित्त मात्र थाअरुण के पीछे सूर्य था ।" व्यास जी के इस कथन का आशय क्या है ? इससे उनके चरित्र की किस विशेषता का परिचय मिलता है ?

2 निम्नलिखित में से कौन सी रचना ब्रजमोहन व्यास की नहीं है?

23 मार्च 1963 को इलाहाबाद में ही उनका देहावसान हुआ। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं- जानकी हरण (कुमारदास कृत) का अनुवाद, पं. बालकृष्ण भट्ट (जीवनी), महामना मदन मोहन मालवीय (जीवनी) । मेरा कच्चा चिट्ठा उनकी आत्मकथा है।

बृज मोहन व्यास का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

22 अक्तूबर 1920, चूरू, भारतबी०एम० व्यास / जन्म की तारीख और समयnull