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युद्ध में जाने से पहले राजा-सैनिकों की पत्नियां और बहने उन्हें रक्षा सूत्र बांधा करती थी. नई दिल्ली : Raksha Bandhan 2021 : भाई-बहन के प्यार और विश्वास से सजा रक्षाबंधन कुछ दिनों में आने वाला है. इस त्योहार के आने से पहले ही इसकी खुशी हर भाई-बहन के चेहरे पर साफ नजर आने लगती है. इस दिन बहनें अपने प्यारे भाई को टीका करती हैं और उसकी कलाई पर राखी बांधती हैं. वहीं, भाई अपनी बहनों को उनकी रक्षा का वचन और उपहार देते हैं. इस दिन हर तरफ खुशनुमा माहौल रहता हैं. ऐसे ही हम खुशी के साथ सालों से श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन का त्योहार मनाते आ रहे हैं, लेकिन क्या आप ये जानते है कि आखिर क्यों या किस कारण से रक्षाबंधन मनाया जाने लगा और इस दिन का क्या महत्व है. दरअसल, हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रक्षाबंधन मनाने के पीछे कुछ कथाएं हैं. आईए जानते हैं रक्षाबंधन से जुड़ी कथाओं के बारे में... Photo Credit: प्रतीकात्मक फोटो यह भी पढ़ेंलक्ष्मी-राजा बलि की कथा Photo Credit: insta hail_lord_vishnu_god द्रौपदी- श्रीकृष्ण की कथा भविष्य पुराण की कथा रक्षाबंधन का महत्व रक्षाबंधन का त्योहार सदियों से भारतीय जनमानस का हिस्सा रहा है। यहां रक्षा बंधन का तात्पर्य बांधने वाले एक ऐसे धागे से है, जिसमें बहनें अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाकर जीवन के हर संघर्ष तथा मोर्चे पर उनके सफल होने तथा निरन्तर प्रगति पथ पर अग्रसर रहने की ईश्वर से प्रार्थना करती हैं। भाई इसके बदले अपनी बहनों की हर प्रकार की विपत्ति से रक्षा करने का वचन देते हैं और उनके शील एवं मर्यादा की रक्षा करने का संकल्प लेते हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और पीएम मोदी ने देशवासियों को दी बधाईइस मौके पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और पीएम मोदी ने गुरुवार को रक्षा बंधन की देशवासियों को बधाई दी और समाज में महिलाओं के प्रति सम्मान में वृद्धि की कामना की है। राष्ट्रपति ने अपने शुभकामना संदेश में कहा, “भाई-बहन के बीच अटूट बंधन, स्नेह और विश्वास के प्रतीक, रक्षा बंधन के उल्लासपूर्ण अवसर पर मैं सभी देशवासियों को बधाई और शुभकामनाएं देती हूं। मेरी कामना है कि यह पर्व, हमारे समाज में मेल-जोल व सौहार्द को प्रोत्साहित करे और महिलाओं के प्रति सम्मान में वृद्धि करे।” वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट संदेश में कहा,“आप सभी को रक्षाबंधन की बहुत-बहुत बधाई।” किस दिन मनाया जाता है रक्षा बंधन ?बताना चाहेंगे कि यह पर्व हर वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। भाई की कलाई पर बांधे जाने वाले इन्हीं कच्चे धागों से पक्के रिश्ते बनते हैं। पवित्रता तथा स्नेह का सूचक यह पर्व भाई-बहन को पवित्र स्नेह के बंधन में बांधने का पवित्र एवं यादगार दिवस है। इस पर्व को भारत के कई हिस्सों में श्रावणी के नाम से जाना जाता है। रक्षाबंधन को और किन नामों से जाना जाता है ?बताना चाहेंगे कि रक्षाबंधन का यह त्योहार और भी नामों से जाना जाता है, जिनके बारे में कम ही लोगों को जानकारी होगी। दरअसल रक्षाबंधन को पश्चिम बंगाल में ‘गुरु महापूर्णिमा’, दक्षिण भारत में ‘नारियल पूर्णिमा’ और नेपाल में इसे ‘जनेऊ पूर्णिमा’ के नाम से जाना जाता है। क्यों मनाया जाता है यह रक्षा बंधन ?रक्षाबंधन मनाए जाने के संबंध में अनेक पौराणिक एवं ऐतिहासिक प्रसंगों का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि देवराज इंद्र बार-बार राक्षसों से परास्त होते रहे। वह हर बार राक्षसों के हाथों देवताओं की हार से निराश हो गए। इसके बाद इन्द्राणी ने कठिन तपस्या की और अपने तपोबल से एक रक्षासूत्र तैयार किया। यह रक्षासूत्र इन्द्राणी ने देवराज इन्द्र की कलाई पर बांधा। तपोबल से युक्त इस रक्षासूत्र के प्रभाव से देवराज इन्द्र राक्षसों को परास्त करने में सफल हुए। तब से रक्षाबंधन पर्व की शुरुआत हुई। एक उल्लेख यह भी है कि भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेने के बाद ब्राह्मण का वेश धारण कर अपनी दानशील प्रवृत्ति के लिए तीनों लोकों में प्रसिद्ध राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी। बलि के मांग स्वीकार कर लिए जाने पर भगवान वामन ने अपने पग से सम्पूर्ण पृथ्वी को नापते हुए बलि को पाताल लोक भेज दिया। कहा जाता है कि उसी की याद में रक्षाबंधन पर्व मनाया गया। रक्षाबंधन पर्व से ऐतिहासिक प्रसंग भी जुड़ेवहीं रक्षाबंधन पर्व से ऐतिहासिक प्रसंग भी जुड़े हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से इस पर्व की शुरुआत मध्यकालीन युग से मानी जाती है। भारतीय इतिहास ऐसे प्रसंगों से भरा पड़ा है, जब राजपूत योद्धा अपनी जान की बाजी लगाकर युद्ध के मैदान में जाते थे तो उनके देश की बेटियां उनकी आरती उतारकर कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा करती थीं। वीर रस के गीत गाकर हौसला अफजाई करते हुए उनसे राष्ट्र की रक्षा का प्रण भी कराती थीं। कहा जाता है कि उस जमाने में अधिकांश मुस्लिम शासक हिन्दू युवतियों का बलपूर्वक अपहरण कर उन्हें अपने हरम की शोभा बनाने का प्रयास किया करते थे। इससे बचने के लिए राजपूत कन्याओं ने बलशाली राजाओं को राखियां भेजअपने शील की रक्षा करनी आरंभ कर दी थी। इस परम्परा ने बाद में रक्षाबंधन पर्व का रूप ले लिया। वहीं चित्तौड़ की महारानी कर्मावती का प्रसंग तो इस संबंध में विशेष रूप से उल्लेखनीय है। कहा जाता है कि जब गुजरात के शासक बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया तो महारानी कर्मावती ने बादशाह हुमायूं को राखी के धागे में रक्षा का पैगाम भेजा। अपना भाई मानते हुए उनसे अपनी सुरक्षा की प्रार्थना की। बादशाह हुमायूं यह रक्षासूत्र और संदेश पाकर भाव विभोर हो गए और अपनी इस अनदेखी बहन के प्रति अपना कर्तव्य निभाने तुरन्त अपनी विशाल सेना लेकर चित्तौड़ की ओर रवाना हो गए लेकिन जब तक वह चित्तौड़ पहुंचे, तब तक महारानी कर्मावती और चित्तौड़ की हजारों वीरांगनाएं अपने शील की रक्षा करते-करते अपने शरीर की अग्नि में आहुति दे चुकी थीं। उसके बाद हुमायूं ने महारानी कर्मावती की चिता की राख से अपने माथे पर तिलक लगाकर बहन के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वहन करने के लिए जो कुछ किया, वह इतिहास के पन्नों पर स्वर्णाक्षरों में अंकित हो गया तथा इसी के साथ रक्षाबंधन पर्व के इतिहास में एक अविस्मरणीय अध्याय भी जुड़ गया। इस ऐतिहासिक घटना के बाद ही यह परम्परा बनी कि कोई भी महिला या युवती जब किसी व्यक्ति को राखी बांधती है तो वह व्यक्ति उसका भाई माना जाता है। रक्षाबंधन का इतिहास क्या है?पत्नी सचि ने इंद्रदेव को बांधी थी राखी
भविष्य पुराण में एक कथा है कि वृत्रासुर से युद्ध में देवराज इंद्र की रक्षा के लिए इंद्राणी शची ने अपने तपोबल से एक रक्षासूत्र तैयार किया और श्रावण पूर्णिमा के दिन इंद्र की कलाई में बांध दी। इस रक्षासूत्र ने देवराज की रक्षा की और वह युद्ध में विजयी हुए। यह घटना भी सतयुग में हुई थी।
रक्षाबंधन मनाने का क्या कारण है?यह त्यौहार खुशी प्रदान करने वाला होता है वहीँ ये भाइयों को ये याद दिलाता है की उन्हें अपने बहनों की हमेशा रक्षा करनी है। रक्षा बंधन भाई-बहन का प्रतीक माना जाता है। रक्षा बंधन भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को जताता है और घर में खुशिया लेकर आता है।
रक्षा बंधन की शुरुआत कैसे हुई?युद्ध में देवराज इंद्र की रक्षा के लिए उनकी बहन इंद्राणी ने अपने तपोबल से एक रक्षासूत्र तैयार किया और इंद्र की कलाई पर बांध दिया. इस रक्षासूत्र ने इंद्र की रक्षा की और वह युद्ध में विजयी हुए. तभी से बहनें अपने भाइयों की रक्षा के लिए उनकी कलाई पर राखी बांधने लगीं.
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