प्रेग्नेंसी कंफर्म होने के बाद आप पहली सोनोग्राफी के लिए पहुंचीं। सोनोग्राफी रिपोर्ट में जुड़वा बच्चे देखकर आपकी खुशी दोगुनी हो गई। आप ट्विन्स के नाम और उनकी देखभाल के बारे मे्ं किताबें भी पढ़ने ले आईं, लेकिन अगली जांच के लिए क्लिनिक पहुंचीं तो एक बेबी का कहीं अता-पता नहीं था। डॉक्टर इसे वैनिशिंग ट्विन सिंड्रोम कहते हैं, जिसमें एक भ्रूण की गर्भ में अचानक मौत हो जाती है और भावी मां को पता भी नहीं लगता। मौजूदा समय में इस तरह के मामले बढ़ गए हैं। रिसर्च के मुताबिक, ट्विन प्रेग्नेंसी में करीब 21 से 30 फीसदी मामलों में ऐसा होता है। यूरोप में असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी की स्टडी ये भी कहती है कि 15 प्रतिशत बच्चे जो सिंगल बेबी की तरह जन्म लेते हैं, वे पहले जुड़वा रहे होंगे। चूंकि ग्रामीण इलाकों में कई बार प्रेग्नेंसी की शुरुआत में अल्ट्रासाउंड नहीं होता है, ऐसे में पेरेंट्स को पता ही नहीं लग पाता कि गर्भ में ट्विन्स पल रहे थे। आइए जानते हैं कि वैनिशिंग ट्विन सिंड्रोम क्यों होता है और इसका बच्चे और मां पर क्या असर होता है एसजेएम हॉस्पिटल एंड आईवीएफ सेंटर में वरिष्ठ गायनोकॉलोजिस्ट डॉ. पुष्पा कौल बताती हैं कि कई महिलाओं में प्रेंग्नेंसी की शुरुआती जांच में जुड़वा बच्चे होने की पुष्टि होती है, लेकिन बाद की जांच में एक बच्चा गायब हो जाता है। यानी कि महिला एक ही बच्चे को जन्म देती है। डॉ. पुष्पा बताती हैं कि गर्भ में दो बच्चे आते हैं, लेकिन ऑक्सीजन, ब्लड और फूड की प्रॉपर सप्लाई न होने और महिलाओं के तनाव अधिक लेने के चलते एक बच्चे का विकास रुक जाता है। कुछ दिनों बाद वह वैनिश यानी कि नष्ट हो जाता है। दोनों में से जिस बच्चे को प्रॉपर ऑक्सीजन, ब्लड और फूड मिल रहा है, वो बच जाएगा और दूसरा नष्ट हो जाएगा। इसे ही वैनिशिंग ट्विन सिंड्रोम कहते हैं। वैनिशिंग ट्विन सिंड्रोम के लक्षण: चिंता न करें, गर्भ में पल रहा बच्चा ग्रो कर रहा डॉ. पुष्पा बताती हैं, वैनिशिंग ट्विन सिंड्रोम गुजर रही महिलाओं को चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि वैनिश होने वाला भ्रूण बच्चेदानी में ही घुल जाता है। महिला के गर्भ में पल रहा दूसरा बच्चा प्रॉपर ग्रो करता है, उसे या उसकी मां को किसी प्रकार को नुकसान नहीं होता है। एक ही गर्भावस्था से होने वाले बच्चों को जुड़वा कहा जाता है। अक्सर जुड़वा बच्चों के रूप-रंग में काफी समानता देखी जाती है। दो अलग-अलग शुक्राणुओं के अलग-अलग अंडो से निषेचित होने से जुड़वा भ्रूण बनते हैं। जुड़वा गर्भधारण सामान्य गर्भधारण से काफी अलग होता है। इनके लक्षण भी अलग-अलग होते हैं। आज हम आपको जुड़वा गर्भधारण के शुरुआती लक्षणों के बारे में बताने वाले हैं। मॉर्निंग सिकनेस – गर्भ में अगर जुड़वा बच्चे हैं तो प्रेग्नेंसी के शुरुआती लक्षणों में ही काफी मात्रा में मॉर्निंग सिकनेस होती है। सामान्य गर्भवती महिलाओं की तुलना में जुड़वा बच्चों वाली महिलाएं ज्यादा मॉर्निंग सिकनेस का अनुभव करती हैं। वजन ज्यादा होना – जुड़वा बच्चों से गर्भधारण में महिला का वजन सामान्य गर्भावस्था की तुलना में ज्यादा होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि गर्भ में दो बच्चे, दो प्लेसेंटा और ज्यादा एम्नियोटिक फ्लूड के साथ होते हैं। सामान्य गर्भधारण में वजन 25 पाउंड जबकि जुड़वा गर्भधारण में वजन 30-35 पाउंड के बीच हो सकता है। लोकप्रिय खबरें Yearly Horoscope 2023: सभी 12 राशि वालों के लिए साल 2023 कैसा रहेगा? पढ़ें यहां वार्षिक राशिफल 11 दिन बाद उदय होने जा रहे हैं बुध ग्रह, इन राशियों के शुरू होंगे अच्छे दिन, हर कार्य में सफलता के योग 2023 में इन 3 राशि वालों की गोचर कुंडली में बनेगा ‘मालव्य राजयोग’, मिल सकता है अपार पैसा और पद- प्रतिष्ठा Diabetes: Blood Sugar कंट्रोल करने में सहायक है लहसुन; एक्सपर्ट से जानिए किस तरह से करें सेवन दो धड़कनें – बच्चे के जन्म से पहले डॉप्लर प्रणाली के तहत उनके दिल की धड़कनों को सुना जा सकता है। प्रेग्नेंसी के नौंवे हफ्ते से बच्चों के दिल की धड़कन अलग-अलग सुनी जा सकती है। हालांकि, दोनों के दिल की धड़कन को अलग-अलग सुन पाना थोड़ा कठिन होता है। समयपूर्व प्रसव – जुड़वा गर्भावस्था के साथ महिलाओं में समय से पहले डिलिवरी होने की अधिक संभावना होती है। लेबर पेन गर्भावस्था के 36 या 37 सप्ताह के बीच में हो सकते है। इस के अलावा, जुड़वां गर्भावस्था में बच्चे ज्यादातर ब्रीच स्थिति में होते है जिस कारण डिलिवरी नॉर्मल की जगह सिजेरियन होने की संभावना बढ़ जाती है। जुड़वा बच्चे कितने महीने में पता चलता है?6 हफ्ते या सातवें हफ्ते में अल्ट्रासाउंड कराने पर पता चलता है कि गर्भ में जुड़वा बच्चा है, लेकिन कुछ दिनों बाद एक की धड़कन सुनाई देना बंद हो जाए तो समझ लीजिए कि दूसरा भ्रूण जीवित नहीं है।
कैसे पता चलता है कि पेट में जुड़वा बच्चे हैं?अत्यधिक मॉर्निंग सिकनेस को हाइपरमेसिस ग्रेविडेरम कहा जाता है। इसमें महिला को उल्टी और मतली इतनी ज्यादा होती है कि उसे नस के जरिए फलूइड देना पड़ सकता है। प्रेगनेंसी के 14वें हफ्ते के बाद भी मतली और उल्टी महसूस होना जुड़वां बच्चे होने का संकेत हो सकता है।
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