काली मटर का भाव क्या है? - kaalee matar ka bhaav kya hai?

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काले मटर (पिसुम सैटिवम वर) की खेती के लिए 10 से 23 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान उपयुक्त माना जाता है। स्पीति वैली में 1230 हेक्टेयर क्षेत्र कृषि योग्य है। 674 हेक्टेयर में मटर व 475 में जौ का उत्पादन होता है। अन्य क्षेत्रों की तरह स्पीति के किसानों ने भी पारंपरिक खेती की बजाय नकदी फसलों की तरफ ध्यान केंद्रित किया और हरे मटर की खेती करना शुरू कर दी। इससे काले मटर की खेती कम होती गई।

किसान अपनी जरूरत के लिए जौ की फसल में काले मटर का बीज डाल देते थे। हरा मटर 15 दिन के अंदर खराब हो जाता है। क्षेत्र के लोगों ने यह भी निर्णय लिया है देश में जब तक कोरोना का पूरी तरह खात्मा नहीं हो जाता है, वे बाहरी क्षेत्र से दालें व सब्जी नहीं मंगवाएंगे।

इन क्षेत्रों में सबसे अधिक बिजाई

स्पीति के शगनम, कुंगरी, टेलिंग, मुदद, खर,काजा, सुमलिंग, तोवनम, रंगरीक, लंगचा व हंसा से लेकर लोसर तक काले मटर की खेती होती है। हालात को देखते हुए इस साल इन क्षेत्रों में पहले की अपेक्षा काले मटर की अधिक बिजाई की गई है।

नई दिल्ली: अब देश में मटर आयात करना महंगा होगा. सरकार ने मटर का फ्लोर प्राइस तय कर दिया है. फ्लोर प्राइस का मतलब यह है कि कारोबारी एक निश्चित कीमत से नीचे दाम पर मटर का आयात नहीं कर सकेंगे.

सरकार ने मटर का फ्लोर प्राइस 200 रुपये तय किया है. इस कीमत में पहले से लागू 50 फीसदी आयात शुल्क भी शामिल है. वहीं, घरेलू बाजार में मटर का भाव 50-55 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच चल रहा है. इस तरह से सरकार चाहती है कि कारोबारी देश में मटर का आयात कम करें. जनवरी से मटर की नई फसल बाजार में आना शुरू हो जाएगी. ऐसे में सरकार चाहती है कि किसानों को मटर का बाजिव भाव मिलें.

20 फीसदी उछला मटर का भाव, चना भी मजबूत
सरकारी अधिसूचना के एक दिन बाद, गुरुवार को हाजिर बाजारों में मटर की कीमतें 20 फीसदी बढ़कर 55 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गईं, जबकि दिल्ली के थोक बाजार में चना 4 फीसदी बढ़कर 49 रुपये प्रति किलोग्राम हो गया.

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स्नैक्स निर्माता और रेस्तरां चने के मुकाबले पीली मटर ज्यादा इस्तेमाल में लाते हैं क्योंकि यह अपेक्षाकृत सस्ती पड़ती है. सरकार ने पहले ही पीले मटर के आयात को प्रतिबंधित कर रखा है. लेकिन आयातकों को 2019 के मध्य में जयपुर हाईकोर्ट से स्टे (स्थगन आदेश) मिल गया था. इसके बाद कारोबारियों ने करीब 5 लाख टन मटर का आयात किया है.

मटर आयात का कोटा तय
गौरतलब है कि बुधवार की देर रात, सरकार ने मटर के आयात के लिए आयात नीति में संशोधन किया. डीजीएफटी की अधिसूचना में कहा गया है कि सरकार ने मटर आयात का कोटा तय किया है. अब सभी व्यापारी सालभर में अधिकतम 1.5 लाख टन मटर का ही आयात कर पाएंगे. साथ ही मिनिमम इंपोर्ट प्राइस (MIP) 200 रुपये होगा. इसके अलावा सिर्फ एक पोर्ट से यानी कोलकाता बंदरगाह के जरिये ही मटर आयात की अनुमति होगी.

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हालांकि, यह नियम सरकार की निजी जरूरतों पर लागू नहीं होगा. सरकार पीडीएस योजनाओं समेत कई तरह की जरूरतों को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर अनाज और दालें खरीदती है. जिन देशों के साथ भारत का मुक्त या द्विपक्षीय व्यापार समझौता है उन पर भी यह प्रतिबंध लागू नहीं होगा. यह आयात प्रतिबंध सभी किस्म की मटर (हरी, पीली मटर आदि) पर लागू होगा.

विदेशों से बढ़ा था आयात
देश में यूक्रेन, कनाडा और रूस से पीली मटर का आयात बढ़ा है. इस वजह से किसानों को मटर का बाजिव भाव नहीं मिल पा रहा है. सरकार ने इससे पहले 50 फीसदी का भारी आयात शुल्क लगाया था. फिर भी चालू वित्त वर्ष में अब तक 5 लाख टन मटर का आयात हुआ.

बाकला (विसिया फाबा, एल) एक रबी दलहनी फसल है। बाकला(Fababean) को अनहोनी काली मटर, राजरावन, कद्दू हरालियाकी, सेम, काबुली बाकला, हिन्दी मटर आदि अलग-अलग क्षेत्रीय नामों से जाना जाता है। विश्व की लगभग 70 प्रतिशत बाकला(Fababean) की पैदावार केवल अकेले चीन में होती है। मिश्र, सीरिया, चीन और अमेरीका में इसकी मुख्य खेती होती है। भारत में इसकी सिफारिश हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, बिहार, उत्तरप्रदेश, झारखण्ड और छत्तीसगढ़ के लिए की गई है। भारतवर्ष में प्रतिदिन दाल की आवश्यकता प्रति आदमी 200 ग्राम है जबकि दालों की उपलब्धि 35-40 ग्राम प्रति व्यक्ति है। इस प्रकार बहुत सारे भारतीय लोग संतुलित आहार से वंचित रह जाते हैं और प्रोटीन कुपोषणता का शिकार हो जाते हैं। इसका मुख्य कारण भारत की निरन्तर बढ़ती जनसंख्या व दालों की कम पैदावार है। बाकला(Fababean) में 24-28 प्रतिशत प्रोटीन होती हे और इसकी खेती कम पानी वाले और सिंचित क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जा सकती है। अत: बाकला(Fababean) की एक अच्छी पैदावार लेने के लिए किसानों को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए।

मिट्टी व जलवायु (Soil and climate)

बाकला(Fababean) की खेती दोमट मिट्टी से हल्की चिकनी मिट्टी में की जा सकती है। रेतीली, अम्लीय तथा क्षारीय जमीन पर इसे नहीं उगाना चाहिए। अच्छे जमाव के लिए 20-22° सैंटीग्रेड तापक्रम की आवश्यकता होती है। फसल के पकने के समय शुष्क वातावरण होना चाहिए। फूलों के समय ज्यादा सर्दी व पाला नहीं होना चाहिए। भूमि की पी.एच. 6.5 से 7.5 तक होनी चाहिए। ta किस्मे (Variety)
हरियाणा बाकला(Fababean) 1 (Haryana Faba bean 1): इसका पौधा हरे रंग का, सीधा बढ़ने वाला, ऊँचाई 95-100 सें.मी. और 145-150 दिन में पककर तैयार हो जाता है। इसकी औसत पैदावार 30-35 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। इसमें प्रोटीन (20-25 प्रतिशत) और दूसरे जैसे-कार्बोहाइड्रेटस 50-60 प्रतिशत, वसा 2-3 प्रतिशत, कैल्शियम 80 मि.ग्रा. प्रति 100 नाम और विटामिन ‘ए’ 100 आई.यू. प्रति ग्राम पाए जाते हैं। इसकी खेती सिंचित क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जा सकती है।

खेत की तैयारी (Field preparation)

पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए। इससे सभी खरपतवार और कीड़े नष्ट हो जाते हैं। इसके बाद 2-3 जुताइयां देशी हल या कल्टीवेटर से करनी चाहिए। खेत का पानी निकालने के लिए अच्छा निकास प्रबन्ध होना चाहिए।

बिजाई का समय (Time of sowing)

मैदानी क्षेत्रों में अक्तूबर के आखिरी पखवाड़े में इसकी बिजाई कर देनी चाहिए। इसको नवम्बर के पहले तथा दूसरे सप्ताह में भी बो सकते हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में पानी की सुविधानुसार इसे अक्तूबर मास में बीजना चाहिए। देरी से बिजाई करने पर पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

बीज का उपचार (Seed treatment)

बाकला(Fababean) में विद्यमान जीवाणु ग्रन्थियां वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को जमीन में स्थापित करती हैं, परन्तु इसकी पैदावार क्षमता को बढ़ाने के लिए राइजोबियम का टीका लगाना अत्यन्त अनिवार्य है। इसके जीवाणु आमतौर पर जमीन में उपलब्ध नहीं होते हैं। लगभग डेढ़ कप पानी में 50-60 ग्राम गुड़ या शक्कर या चीनी का घोल बनाकर 40 किलोग्राम बीज पर छिड़काव करें। इसके तुरन्त बाद राइजोबियम के एक पैकेट को खोल कर बीज पर छिड़क दें। बीज को हाथों से अच्छी तरह से मिलायें ताकि सभी बीजों पर टीका अच्छी तरह से लग जाए। बिजाई से पहले बीज को छाया में सुखा लें। उपचारित बीज से लगभग 10-15 प्रतिशत अधिक पैदावार होने की सम्भावना होती है।

बिजाई का तरीका (Method of sowing)

अच्छी पैदावार पाने के लिए बिजाई लाइनों में करनी चाहिए। लाईन से लाईन की दूरी 45 स.मी. और पौधे से पौधे की दरी 7-10 सें.मी. होनी चाहिए। अगर इसे चारे के लिए बीजना हो तो लाईन से लाईन की दरी 30 सें.मी. और पौधे से पौधे की दूरी 3-4 सें.मी. होनी चाहिए। बीज का 3-4 सें.मी. की गहराई पर बीजना चाहिए। यदि बीज का जमाव कम हो तो खाली स्थानों पर खुरप की सहायता से दुबारा बीज बीजना चाहिए।

काली मटर का भाव क्या है? - kaalee matar ka bhaav kya hai?
काली मटर का भाव क्या है? - kaalee matar ka bhaav kya hai?

बीज की मात्रा (Seed rate)

बीज की मात्रा प्रायः किस्म, अंकुरण क्षमता एवं जमीन में विद्यमान नमी पर निर्भर करती है!दाने की फसल के लिए 100 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर और चारे की फसल के 120 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर बीज डालना चाहिए।

खाद व उर्वरक (Manure and fertilizer)

बाकला(Fababean) एक दलहनी फसल है। इसलिए इसको खाद की कोई विशेष आवश्यकता नहीं हाता है। परन्तु कमजोर जमीन में 40 किलोग्राम शुद्ध नत्रजन तथा 60 किलोग्राम शुद्ध फास्फोरस प्रति हैक्टेयर डालना चाहिए। फास्फोरस वाली खाद तथा नाइट्रोजन वाली आधी खाद को बिजाई से पहली जुताई पर डालें। नाइट्रोजन वाली बाकी आधी मात्रा को पहला पानी देने के बाद प्रयोग में लायें।

सिंचाई व जल निकास (Irrigation and water drainage)

एक सिंचाई बिजाई से पहले करनी चाहिए। इसके बाद 2-3 सिंचाइयां करनी चाहिए। पहली सिंचाई बिजाई के 30 दिन बाद, दूसरी फूल आने पर और तीसरी दाने बनने के समय करनी चाहिए। दाने बनने के समय पानी की कमी पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। खेत में अधिक पानी होने पर पानी निकालने का सुनिश्चित प्रबन्ध होना चाहिए। इससे पैदावार बहुत अच्छी होती है।

खरपतवार नियन्त्रण (Weed control)

बाकला(Fababean) की पैदावार को खरपतवार 80-85 प्रतिशत तक प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए खरपतवारों को नियन्त्रित करना बहुत जरूरी है। इसके लिए 2-3 निराई-गुड़ाई करनी चाहिएं। ये क्रमश: बिजाई के 15, 30 तथा 45 दिन के बाद करनी चाहिएं।

पौध संरक्षण (Plant protection)

बाकला(Fababean) की फसल पर अब तक किसी विशेष बीमारी व कीड़े का प्रकोप नहीं पाया गया है। इसलिए किसी कीटनाशक दवा की जरूरत नहीं है।

कटाई व गहाई (Harvesting and threshing)

जब बाकला(Fababean) की 80-85 प्रतिशत पत्तियां सूख कर गिर जाएं व फलियों का रंग काला पड़ जाए तब फसल को तुरन्त काट लेना चाहिए। फसल को न काटने पर फलियां चटक जायेंगी और दाने फलियों से निकल कर जमीन पर बिखर जायेंगे जिससे पैदावार काफी कम होगी। तत्पश्चात् फसल को 2-3 दिन तक खुली धूप में सुखाना चाहिए। इसके बाद हल्के हाथ से डण्डों से पिटाई करके दाने निकालें। ट्रैक्टर या लों से गहाई करके या धैशर से भी इसके दानों को निकाला जा सकता है।

बीज भण्डारण (Seed storage)

दानों को भण्डारण करने से पहले अच्छी तरह से सुखा लेना चाहिए ताकि इनमें 10-12 प्रतिशत तक नमी रह जाए। इसके बाद दानों को कीटाणुरहित बोरियों में भरकर तख्तों पर ठण्डा जगह पर रख दें। अधिक गर्मी के वातावरण में भण्डारण करने से बीज की अंकुरता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

पैदावार (Yield)

बाकला(Fababean) की दानों की औसत पैदावार 30-35 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। हरा चारा 40-50 टन प्रति हैक्टेयर होता है।

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उत्तर प्रदेश में मटर का क्या भाव है?

सफेद मटर का रेट.

मटर का दाम कितना है?

मटर के बढि़या दाम मिलने से किसान उत्साहित हैं। मटर के दाम में उछाल आने से किसानों को प्रति क्विंटल 4500 से 5000 रुपये दाम मिल रहे हैं।

मटर में कितने ग्राम होते हैं?

मटर के एक बीज का वजन ०.१ से ०.३६ ग्राम होता है। इसका केंद्र दक्षिण एशिया है| उत्पादन मध्यम ताप पर किया जाता है।