कबीर के अनुसार भगवान क्या है? - kabeer ke anusaar bhagavaan kya hai?

विषयसूची

  • 1 कबीर दास क्या भगवान है?
  • 2 संत कबीर नगर में कितने जिले हैं?
  • 3 संत कबीर नगर का सबसे बड़ा गांव?
  • 4 कबीर दास जी का गुरु मंत्र?
  • 5 सतनाम सारनाम क्या है?
  • 6 संत कबीर नगर ब्लॉक नाम लिस्ट खलीलाबाद?
  • 7 डीएम संत कबीर नगर?

कबीर दास क्या भगवान है?

इसे सुनेंरोकेंकिसी भी दृष्टि से कबीर जी भगवान या ईश्वर नहीं थे । लेकिन ईश्वर की कृपा से जुलाहे दम्पत्ति ने उनका पालन-पोषण किया और अपने पूर्व जन्म के संस्कारों के कारण वे संत बने । कबीर जी स्वयं भगवान नहीं अपितु वे जिस निराकार की भक्ति करते थे वह भगवान है ।

संत कबीर नगर में कितने जिले हैं?

संत कबीर नगर जिला उत्तरी भारत के उत्तर प्रदेश राज्य 75 जिलों में से एक है।…संत कबीर नगर जिला

संत कबीर नगर जिला ज़िला
मुख्यालय खलीलाबाद, भारत
क्षेत्रफल 1,659.15 कि॰मी2 (640.60 वर्ग मील)
जनसंख्या 1,714,300 (2011)
साक्षरता 66.72 %

संत कबीर नगर का सबसे बड़ा गांव?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर प्रदेश के जिले संत कबीर नगर में तहसील या ब्लॉक के अनुसार अलग अलग संख्या में गांव की जानकारी सरकारी वेबसाइट पर नहीं है, किन्तु अन्य वेबसाइट पर है, तीन तहसील में किस तहसील में कितने गांव है उसकी जानकारी है, सबसे ज्यादा ग्राम खलीलाबाद तहसील में है, और सबसे कम ग्राम मेहदावल तहसील में है संत कबीर नगर जिला में कुल १७२७ …

कबीर के ईश्वर है?

इसे सुनेंरोकेंAnswer: कबीर ke के अनुसार ईश्वर सर्वव्यापक है, उसे काटा या मिटाया नहीं जा सकता। ईश्वर सभी के हृदयों में आत्मा के रूप में व्याप्त है। वह व्यापक स्वरूप धारण करता है।

कबीर किसकी पूजा करते थे?

इसे सुनेंरोकेंकबीर निराकार ब्रह्म के उपासक थे । कबीरदास जी निर्गुण ब्रम्ह के उपासक थे। कबीर निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे.

कबीर दास जी का गुरु मंत्र?

इसे सुनेंरोकेंरोज की तरह जब रामानंदाचार्य स्नान के लिए सीढिय़ां उतर रहे थे, तभी गलती से कबीरदास के ऊपर उनका पैर पड़ गया और उनके मुंह से निकल गया ‘राम राम’। इस पर कबीर दास जी उठ खड़े हुए और कहा कि यह शब्द ‘राम राम’ ही मेरा गुरुमंत्र है और आप मेरे गुरु हैं। राम नाम के मंत्र ने ही कबीरदास को संत कबीर में बना दिया।

सतनाम सारनाम क्या है?

इसे सुनेंरोकेंसतनाम= सत्नाम, सत्तनाम, परमात्मा का सच्चा–अविनाशी या अपरिवर्तनशील नाम, आदिनाद। सतनाम या ‘सतिनाम’ (गुरुमुखी: ਸਤਿ ਨਾਮੁ) गुरु ग्रन्थ साहिब में प्रयुक्त प्रधान शब्द है। यह मूल मंत्र में भी है। सतनाम शब्द भारत के विभिन्न समाज में प्रचलित है।

संत कबीर नगर ब्लॉक नाम लिस्ट खलीलाबाद?

उपखंड और ब्लॉक

क्र0सं0विकास खण्ड का नाम
6 नाथनगर
7 खलीलाबाद
8 बेलहर
9 हैंसर बाजार

संत कबीर नगर में कितने थाने हैं?

इसे सुनेंरोकेंसंत कबीर नगर में 3 सर्कल और एक महिला थाना सहित कुल 9 पुलिस स्टेशन हैं।

संत कबीर नगर में कुल कितने थाने हैं?

डीएम संत कबीर नगर?

राजस्व विभाग

नामपदपता
श्रीमती दिव्या मित्तल जिलाधिकारी जिलाधिकारी कार्यालय मेहदावल रोड खलीलाबाद संत कबीर नगर 272175

भारत में अपने अपने गुरूओं को ईश्वर घोषित करने वालों की एक बहुत बड़ी तादाद है। उनमें एक नाम श्री रामपाल जी का भी है। वे कबीरपंथी हैं और उन्हें जगतगुरू कहा जा रहा है। जगतगुरू के अज्ञान की हालत यह है कि उन्हें अपने गुरू का पूरा नाम और उसका अर्थ भी पता नहीं है।

शॉर्ट में जिस हस्ती को कबीर कह दिया जाता है। उसका पूरा नाम कबीर दास है। कबीर अरबी में परमेश्वर का एक गुणवाचक नाम है जिसका अर्थ ‘बड़ा‘ है। दास शब्द हिन्दी का है, जिसका अर्थ ग़ुलाम है। कबीर दास नाम का अर्थ हुआ, ‘बड़े का दास‘ अर्थात ईश्वर का दास। कबीर दास ख़ुद को ज़िंदगी भर परमेश्वर का दास बताते रहे और लोगों ने उन्हें परमेश्वर घोषित कर दिया। श्री रामपाल जी भी यही कर रहे हैं। जिसे अपने गुरू के ही पूरे नाम का पता न हो, उसे परमेश्वर का और उसकी भक्ति का क्या पता होगा ?

…लेकिन यह भारत है। यहां ऐसे लोगों की भारी भीड़ है। अज्ञानी लोग जगतगुरू बनकर दुनिया को भरमा रहे हैं। अगर कबीरपंथी भाई कबीर दास जी के पूरे नाम पर भी ठीक तरह ध्यान दे लें तो वे समझ लेंगे कि कबीर दास परमेश्वर नहीं हैं, जैसा कि अज्ञानी गुरू उन्हें बता रहे हैं। 

कबीर के अनुसार भगवान क्या है? - kabeer ke anusaar bhagavaan kya hai?

परमेश्वर से जुदा होने और उसका दास होने की हक़ीक़त स्वयं कबीर दास जी ने कितने ही दोहों में खोलकर भी बताई है। कबीर दोहावली में यह सब देखा जा सकता है। उनका पूरा नाम उनके मुख से ही सुन लीजिए-

माया मरी न मन मरा, मर मर गए शरीर।

आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर।।

वह स्वयं परमेश्वर से प्रार्थना भी करते थे। वह कहते हैं कि 

साई इतना दीजिये जा मे कुटुम समाय।

मैं भी भूखा न रहूं साधु भी भूखा न जाय।।

एक दूसरी प्रार्थना में उनके भाव देख लीजिए-

मैं अपराधी जन्म का, नख सिख भरा विकार।

तुम दाता दुख भंजना, मेरी करो सम्हार।।

कबीर दास जी रात में उठकर भी भगवान का भजन करते थे-

कबीरा सोया क्या करे, उठि न भजे भगवान।

जम जब घर ले जाएंगे, पड़ी रहेगी म्यान।।

भजन में भी वे अपना नाम न लेकर राम का नाम लेते थे-

लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट।

पाछे फिर पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट।।

राम के सामने कबीर दास जी अपनी हैसियत बताते हुए कहते हैं कि मेरे गले में राम की रस्सी बंधी है। वह जिधर खींचता है, मुझे उधर ही जाना पड़ता है अर्थात अपने ऊपर मेरा स्वयं का अधिकार नहीं है बल्कि राम का है।

कबीर कूता राम का, मुतिया मेरा नाउँ।

गलै राम की जेवड़ी, जित खैंचे ति�� जाऊँ।।

राम नाम का ज्ञान भी उन्हें स्वयं से न था बल्कि यह ज्ञान उन्हें अपने गुरू से मिला था-

गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।

बलिहारी गुरू आपनो, गोविंद दियो बताय।।

इसमें कबीर दास जी स्वयं कह रहे हैं कि जब तक उनके गुरू ने उन्हें परमेश्वर के बारे में नहीं बताया था, तब तक उन्हें परमेश्वर का ज्ञान नहीं हुआ था।

क्या यह संभव है कि परमेश्वर को कोई दूसरा बताए कि परमेश्वर कौन है ?

कबीर दास जी कहते हैं कि अगर सतगुरू की कृपा न होती तो वे भी पत्थर की पूजा कर रहे होते-

हम भी पाहन पूजते होते, बन के रोझ।

सतगुरू की किरपा भई, सिर तैं उतरय्या बोझ।।

क्या यह संभव है कि अगर परमेश्वर को सतगुरू न मिले तो वह भी अज्ञानियों की तरह पत्थर की पूजा करता रहे ?

कबीर दास जी अपने गुरू के बारे में अपना अनुभव बताते हैं कि

बलिहारी गुरू आपनो, घड़ी सौ सौ बार।

मानुष से देवत किया, करत न लागी बार।।

कबीर दास जी की नज़र में परमेश्वर से भी बड़ा स्थान गुरू का है-

कबीर ते नर अन्ध हैं, गुरू को कहते और।

हरि रूठै गुरू ठौर है, गुरू रूठै नहीं ठौर।।

परमेश्वर और कबीर एक दूसरे से अलग वुजूद रखते हैं। उनके आराध्य राम उन्हें बैकुंठ अर्थात स्वर्ग में आने का बुलावा भेजते हैं तो वह रोने लगते हैं। उन्हें बैकुंठ से ज़्यादा सुख साधुओं की संगत में मिलता है। देखिए-

राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय।

जो सुख साधु संग में, सो बैकुंठ न होय।।

कबीर दास जी के इतने साफ़ बताने के बाद भी लोग उनकी बात उनके जीवन में भी नहीं समझते थे । उनके मरने के बाद भी लोगों ने उनसे उल्टा चलना नहीं छोड़ा। देखिए वह कहते हैं कि 

समझाय समझे नहीं, पर के साथ बिकाय।

मैं खींचत हूं आपके, तू चला जमपुर जाय।।

कबीर साहेब भगवान है या नहीं?

कबीर जी स्वयं भगवान नहीं अपितु वे जिस निराकार की भक्ति करते थे वह भगवान है ।

कबीर के अनुसार भगवान?

कबीर के अनुसार भगवान का वास शरीर में ही था । किंतु भगवान क' वास शरीर में नहीं होता है । वह युग में किसी एक शरीर के माध्यम से अवतरित होता है.।.
वेद में उसे "जगतप्रसवकर्ता" अर्थात संसार को पैदा करनेवाला कहा गया है। ... .

कबीर ने भगवान के बारे में क्या कहा?

कबीर जी का अंतिम लक्ष्य एक सम्पूर्ण ईश्वर था जो बिना किसी विशेषता के निराकार है, जो समय और स्थान से परे है, कार्य से परे है। कबीर का ईश्वर ज्ञान है, आनंद है। उनके लिए ईश्वर शब्द है।

कबीर के अनुसार परमात्मा है?

उत्तरः- कबीर परमात्मा के अद्वैत स्वरूप में आस्था रखते थे और वह स्वरूप निर्गुण निराकार ईश्वर का है। प्रश्न 2. कबीर ने किन लोगों को नरक का अधिकारी माना है? उत्तरः- कबीर ने उन लोगों को नरक का अधिकारी माना है जो लोग परमात्मा को एक नहीं, दो मानते हैं।