जिंक की कमी से होने वाले रोग - jink kee kamee se hone vaale rog

ज़िंक की कमी के लक्षण विभिन्न प्रजातियों में अलग-अलग होते हैं, लेकिन इसके कई लक्षण समान हो सकते हैं। कई प्रजातियों में पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं, और अक्सर मुख्य नस हरे रंग की बनी रहती है। कुछ प्रजातियों में नई पत्तियाँ सबसे ज़्यादा प्रभावित होती हैं, जबकि कुछ में पुरानी और नई दोनों पत्तियों में लक्षण दिखाई देते हैं। नई पत्तियां अक्सर छोटी और पतली होती हैं और इनके किनारे टेढ़े-मेढ़े होते हैं। कुछ समय बाद पीले (पर्णहरित हीनता या क्लोरोसिस) स्थान पीतल के रंग के हो सकते हैं और किनारों से मृत (परिगलित) धब्बे बनने शुरू हो सकते हैं। कुछ फसलों में ज़िंक की कमी वाली पत्तियों में अक्सर पर्व संधि (इंटरनोड) छोटी होती हैं, जिसके कारण पत्तियाँ तने पर गुच्छा (रोज़ेट या फूल जैसे) बना लेती हैं। नई पत्तियों के सीमित विकास (छोटी पत्तियाँ) और पर्व संधियों (इंटरनोड) की लंबाई में कमी आने के कारण पत्तियां विकृत हो जाती हैं और इनकी विकास दर घट जाती है।

यह किससे हुआ

ज़िंक की कमी मुख्य रूप से क्षारीय (अधिक पीएच), रेतीली मिट्टी की समस्या है, जिनमें जैविक तत्वों की मात्रा कम होती है। मिट्टी में फ़ॉस्फ़ोरस और कैल्शियम (चूनेदार मिट्टी) का अधिक स्तर भी पौधों के लिए ज़िंक की उपलब्धता प्रभावित करता है। बल्कि, फ़ॉस्फ़ोरस के इस्तेमाल से पौधों को ज़िंक सोखने में मुश्किल आ सकती है। कैल्शियम युक्त पदार्थों, जैसे चूना पत्थर या चूना (लाइमिंग की प्रक्रिया), मिलाने से भी मिट्टी की अम्लता खत्म हो जाती है, और हालांकि मिट्टी में ज़स्ता का स्तर नहीं बदलता है, पौधों के लिए मिट्टी से ज़िंक जज़्ब करना मुश्किल हो जाता है। ज़िंक की कमी तब भी समस्या बन जाती है जब वानस्पतिक चरण के दौरान मिट्टी ठंडी और गीली होती है।

जैविक नियंत्रण

पौधरोपण के कुछ दिन बाद, बीज की क्यारियों या खेत में जैविक खाद का इस्तेमाल करने से ज़िंक की कमी की संभावना कम हो जाती है।

रासायनिक नियंत्रण

- कमी रोकने के लिए, ज़िंक या ज़स्ता (Zn) युक्त उर्वरीकरण का इस्तेमाल करें। - उदाहरण के लिए, पत्तियों पर छिड़काव के लिए ज़िंक सल़्फ़ेट (ZnSO4) का इस्तेमाल आमतौर पर किया जाता है। - अपनी मिट्टी और फसल के लिए सबसे अच्छे उत्पाद और खुराक के बारे में पता करने के लिए अपने कृषि सलाहकार से संपर्क करें। अतिरिक्त सुझाव: - अपने फसल उत्पादन को बेहतर करने के लिए फसल मौसम की शुरुआत से पहले मिट्टी की जाँच करवाने अच्छा रहेगा। - मिट्टी में ज़िक रोपण से पहले डाला जाना चाहिए। - बीज पर ज़िंक का लेप लगाने से आपकी फसल को बेहतर पोषण मिल सकता है।

जिंक को शरीर के एक जरूरी मिनरल माना जाता है। इस बात का ध्यान रखें कि आपके शरीर में हर अंग और हर क्रिया के लिए एक नियत मिनरल या विटामिन की जरूरत होती है। ऐसे में अगर आप इस मिनरल की कमी कर देते है तो उससे आपको काफी नुकसान होगा जो आप बिल्कुल नहीं चाहेंगे।

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जिंक शरीर की त्वचा के लिए तो जरूरी है ही लेकिन साथ ही ये आंतरिक अंगों के लिए भी बेहद जरूरी है। इसकी कमी होने पर आपको अपने शरीर में कई प्रकार के बदलाव देखने को मिलेंगे जो कहीं से भी सही नहीं होंगे। जिंक को अपनी डाइट का हिस्सा बनाने के लिए आप पौष्टिक चीजें खाएं।

फास्ट फूड को इस लिस्ट में जगह नहीं मिल सकती है क्योंकि वो फिटनेस को खराब करने का काम करता है। सेहत को उससे कोई लाभ नहीं मिलता है और पेट को परेशानी होती है वो अलग है। इसलिए आइए आपको बताते है कि जिंक की कमी से आपको कौन कौन से रोग हो सकते है।

जिंक की कमी से कौन सा रोग होता है

रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी आए

रोग प्रतिरोधक क्षमता में अगर कमी आती है तो उससे आपको बीमारियाँ जल्दी होने का ड़र रहता है। शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी ही रहनी चाहिए क्योंकि एक भी परेशानी बड़ी दिक्कतों को जन्म दे सकती है जो किसी भी रूप से सही नहीं होगा। आज कल ही नहीं, किसी भी माहौल में बीमारी होना ठीक नहीं है।

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त्वचा में कमजोरी के लक्षण दिखाई दें

त्वचा में कमजोरी के लक्षण होना किसी भी रूप से सही नहीं है। आप अपने शरीर को ठीक रखना चाहते है तो सबसे पहले त्वचा को ठीक रखें। त्वचा सबसे पहले नजर आती है और आपके स्वास्थ्य के बारे में काफी कुछ बताती है। इसलिए जिंक से भरपूर चीजों का सेवन करें और अपनी सेहत को ठीक रखें।

कमजोर आँखें भी इसका हिस्सा हो सकती हैं

कमजोर आँखों के कारण आपको दृष्टि से जुड़ी कई बीमारियाँ हो सकती हैं जिनमें रतौंधी भी शामिल है। आँख शरीर की पाँच इन्द्रियों में अपना स्थान रखती है और इसलिए अगर आपकी आँखें कमजोर होंगी तो आपको ना तो कुछ नजर आएगा और ना ही आप किसी काम को सही तरह से कर सकेंगे। इसलिए इसका ध्यान रखें और सेहतमंद रहें और इसके लिए जिंक से भरपूर चीजों का सेवन जरूर करें।

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सभी फसलों को बढवार के लिए एवं अच्छी उपज के लिए पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है | यह पोषक तत्व पौधे भूमि (मिट्टी) से प्राप्त करते हैं लगातार फसल उत्पादन करने से इन पोषक तत्वों की मिट्टी में कमी हो जाती है जिनकी पूर्ती के लिए किसान खाद का ही प्रयोग करते हैं | प्रत्येक खाद में कुछ पोषक तत्व अधिक मात्रा में होते है परन्तु किसी भी खाद में सभी पोषक तत्व उपलब्ध नहीं होते है |जिंक जिसे आम भाषा में जस्ता कहते हैं भिफसलों के लिए आवशयक होता है | यह सूक्ष्म पोषक तत्व की श्रेणी में आता है |

दलहनी फसलों में जिंक की कमी के कारण प्रोटीन संचय की दर कम हो जाती है | पौधों के लिए जिंक मृदा से अवशोषण द्वारा प्रमुख रूप से प्राप्त होता है | सामन्यत: पौधों में जिंक की आदर्श मात्रा 20 मि.ग्रा. प्रति किलोग्राम शुष्क पदार्थ तक उपयुक्त मानी जाती है | पौधों के माध्यम से खाध पदार्थों में जिंक का संचय होता है और जीवित प्राणियों को जिंक प्राप्त होता है | दुनिया की आबादी का एक तिहाई भाग जिंक कुपोषण के जोखिम के अंतर्गत आता है | विशेष रूप से बच्चों में जिंक तत्व की कमी से कुपोषण बढ़ता जा रहा है | इसका प्रमुख कारण जिंक तत्व की कमी वाले आहार का सेवन करना है | किसान समाधान जिंक से पौधों में होने वाले रोग तथा निदान की जानकारी लेकर आया है |

जिंक का पौधों की वृद्धि में महत्व

  1. इसकी पौधों के कायिक विकास और प्रजनन क्रियाओं के लिए आवश्यक हार्मोन के संशलेषण में महत्वपूर्ण भूमिका
  2. पौधों में वृद्धि को निर्धारित करने वाले इंडोल एसिटिक अम्ल नामक हार्मोन के निर्माण में जिंक की अहम भूमिका
  3. पौधों में विभिन्न धात्विक एंजाइम में उत्प्रेरक के रूप में एवं उपपाचयक की क्रियाओं के लिए आवश्यक
  4. इसकी पौधों में कई प्रकार के एंजाइमों जैसे कार्बोनिक एनहाइड्रेज, डिहाइड्रोजीनेस, प्रोटीनेस एवं पेप्तिनेस के उत्पादन में मुख्य भूमिका
  5. जिंक का पौधों में प्रोटीन संशलेष्ण तथा जल अवशोषण में अप्रत्यक्ष रूप में भाग लेना
  6. पौधों के आनुवांशिक पदार्थ राइबोन्यूक्लिक अमल के निर्माण में भी इसकी भागीदारी |

पौधों में जिंक की कमी के लक्षण

  1. जिंक कमी के लक्षण पौधों की माध्यम पत्तियों पर आते हैं | जिंक की अधिक कमी से नई पत्तियां उजली निकलती हैं | पत्तियों की शिराओं के मध्य सफेद धब्बे में दिखाई देते हैं |
  2. मक्का में जिंक की कमी से सफेद कली रोग उत्पन्न होता है | अन्य फसलों जैसे नींबू की वामन पत्ती, आडू का रोजेट और धान में खैरा रोग उत्पन्न होता है |
  3. जस्ता की कमी से तने की लम्बाई में कमी (गाँठो के मध्य भाग का छोटा होना) आ जाती है। बालियाँ देर से निकलती है और फसल पकने में विलम्ब होता है।
  4. तने की लम्बाई घट जाती है और पत्तियाँ मुड़ जाती है।

मृदा में जिंक उपलब्धता को प्रभावित करने वाले कारक

  1. मृदा पी–एच मान जैस –जैसे बढ़ता है वैसे – वैसे पौधों के लिए जिंक की उपलब्धता में कमी
  2. मृदा में कार्बनिक पदार्थ लिग्निन, हायूमिक और फल्विक अमल के रूप में पाया जाता है | जिंक इन कार्बनिक पदार्थों के साथ चिलेट जिंक यौगिक का निर्माण करता है, जो पौधों को आसानी से उपलब्धता हो जाता है | जिंक उर्वरक का उपयोग कार्बनिक खाद के साथ करने पर जिंक तत्व की बढती है उपलब्धता पौधों में
  3. फास्फोरसयुक्त उर्वरक का अधिक मात्रा में उपयोग करने पर या पहले से मृदा में उपलब्ध फास्फोरस की अधिक मात्रा होने पर जिंक की पौधों में उपलब्धता में कमी
  4. अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में मृदा के जलमग्न होने के कारण अन्य पौध्क तत्वों की साद्रता अधिक हो जाती है, किन्तु जिंक तत्व की कमी हो जाती है इसलिए जल निकास का उचित प्रबधन आवश्यक
  5. मृदा का तापमान भी जिंक की उपलब्धता की प्रभावित करता है | मृदा के तापमान में कमी होने पर जिंक उपलब्धता घटती है | मृदा का तापमान बढने पर जिंक की उपलब्धता बढती है , इसलिए ठंडे क्षेत्रों में मृदा का तापमान नियंत्रित करने के लिए मल्च का उपयोग जरुरी |
  6. फसलों की प्रजातियाँ और किस्म भी जिंक तत्व की आवश्यकता एवं उपयोग करने में महत्वपूर्ण होती है | हर फसल की जिंक तत्व की आवश्यकता और उपयोग करने की क्षमता भिन्न – भिन्न होती है और यह जिंक के अवशोषण को प्रभावित करती है | फसलों का चयन एवं जिंक का उपयोग फसलों के अनुसार करने की जरूरत |

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जिंक के स्रोत क्या – क्या है ?

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मृदा में जिंक के दो महत्वपूर्ण श्रोत में बता जा सक्यता है | एक कार्बनिक श्रोत तथा दूसरा अकार्बनिक स्रोत | दोनों से जिंक की पूर्ति किया जा सकता है |

कार्बनिक स्त्रोत

जैविक खाद जैसे गोबर खाद, कम्पोस्ट खाद, केंचुआ खाद, हरी खाद, मुर्गी खाद एवं शहरी अवशिष्ट से निर्मित खाद का उपयोग कर जिंक तत्व की पूर्ति बिना किसी उर्वरक के उपयोग ही की जा सकती है | इन खादों में जिंक तत्व अल्प मात्रा में होता है, लेकिन प्रतिवर्ष इनका प्रयोग करने से जिंक जैसे सूक्ष्म तत्व की पूर्ति आसानी से की जा सकती है |

अकार्बनिक स्रोत

जिंक के विभिन्न अकार्बनिक स्रोत में जिंक सल्फेट, जिंक कार्बोनेट, जिंक फास्फेट एवं चिलेट शामिल हैं | सामान्यत: जिंक सल्फेट आसानी से उपलब्ध होने वाला सस्ता एवं जिंक का सर्वश्रेष्ट स्रोत हैं | इसमें 21 से 33 प्रतिशत तक जिंक की मात्रा होती है | यह जल में तीव्र घुलनशील होने के कारण पौधों में जिंक की कमी को आसानी से पूरा करता है | मोनोहाइड्रेट जिंक सल्फेट (33 प्रतिशत जिंक) व हेप्टाहाइड्रेट जिंक सल्फेट (21 प्रतिशत जिंक) दोनों ही समान रूप से जिंक की कमी वाली मृदाओं में प्रयोग मृदा में तथा पर्णीय छिड़काव के माध्यम से पौधों पर किया जाता है |

जिंक की कमी से कौन सा रोग होता है?

वजन कम होना, कमजोरी महसूस होना, भूख कम लगना, मानसिक स्वास्थ्य पर असर होना, स्वाद और गंध का पता नहीं चलना, बार-बार दस्त होना और बालों का झड़ना, घाव का देरी से भरना।

जिंक की कमी के लक्षण क्या होते हैं?

अचानक से वजन कम होना.
चोट, घावों का जल्दी ना भरना.
सतर्कता की कमी.
गंध और स्वाद की कमी.
डायरिया.
एनोरेक्सिया.
त्वचा पर घाव होना.
भूख ना लगना, बाल झड़ना.

जिंक बढ़ाने के लिए क्या खाना चाहिए?

Zinc Rich Foods items list, ज‍िंंक से भरपूर फूड आइटम.
तिल तिल काला हो या सफेद इसका हर दाना पोषक तत्वों से भरपूर होता है। ... .
बाजरा हम में से बहुत कम लोग इस बात से वाकिफ होंगे की बाजरा सुपर न्यूट्रिएंट्स और जिंक से भरपूर होता है। ... .
पनीर ... .
काला चना ... .
रामदाना ... .
डार्क चॉकलेट ... .

जिंक टेबलेट खाने से क्या फायदा?

ज़िंक के फायदे ( Health Benefits Of Zinc) 1- ज़िंक के सेवन से बार-बार होने वाली दस्त की समस्या दूर हो जाती है खासतौर से शिशु को दस्त होने पर जिंक की खुराक लेने की सलाह दी जाती है. 2- जिंक त्वचा की मरम्मत कर संक्रमण को रोकने और किसी भी घाव को जल्दी भरने में मदद करता है. 3- जिंक एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर होता है.