भगवान राम ने किसका वध किया? - bhagavaan raam ne kisaka vadh kiya?

राम और रावण का युद्ध अश्विन शुक्ल पक्ष की तृतीया को प्रारंभ हुआ था और दशमी को यह युद्ध समाप्त हुआ था। लेकिन युद्ध तो उससे पहले ही जारी था। कुल मिलाकर युद्ध 32 दिन चला था। रामजी लंका में कुल 111 दिन रहे थे। राम ने जब रावण का वध किया तो दो तरह के धनुष की बात कही जाती है।

पहला कोदंड : बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि भगवान राम के धनुष का नाम कोदंड था इसीलिए प्रभु श्रीराम को कोदंड ( Kodanda ) कहा जाता था। 'कोदंड' का अर्थ होता है बांस से निर्मित। कोदंड एक चमत्कारिक धनुष था जिसे हर कोई धारण नहीं कर सकता था। कोदंड नाम से भिलाई में एक राम मंदिर भी है जिसे 'कोदंड रामालयम मंदिर' कहा जाता है। भगवान श्रीराम दंडकारण्य में 10 वर्ष तक भील और आदिवासियों के बीच रहे थे। कोदंड एक ऐसा धनुष था जिसका छोड़ा गया बाण लक्ष्य को भेदकर ही वापस आता था।

दूसरा ​ब्रह्मास्त्र: दरअसल, जब रावण किसी भी अस्त्र शस्त्र से नहीं मर रहा था तब विभिषण ने राम के कान में कहा कि ब्रह्मा ने रावण को एक ब्रह्मास्त्र दिया था और उसे केवल उसी अस्त्र से मारा जा सकता है। वह अस्त्र मंदोदरी के कक्ष में छिपाया हुआ है और उसके बिना यह युद्ध अनंतकाल तक चलता रहेगा। हनुमान तुरंत वृद्ध ब्राह्मण का वेश धारण करके मंदोदरी के समक्ष पहुंच गए। वह ब्राह्मण को देखकर प्रसन्न हो गई। वह उसका सत्कार करने लगी। तभी ब्राह्मणवेशधारी हनुमान ने मंदोदरी से कहा कि विभिषण ने राम को यह भेद बता दिया है कि रावण आपके कक्ष में रखे दिव्यास्त्र से ही मारा जाएगा। हनुमान ने कहा कि माते आप उस अस्त्र को कहीं और छिपा दें। यह सुनकर मंदोदरी घबरागई और वह तुरंत दौड़ते हुए वहां पहुंची जहां उसने अस्त्र छिपाकर रखा था। तभी हनुमानजी अपने असली रूप में आ गए और वे मंदोदरी से वह दिव्यास्त्र छीनकर मंदोदरी को रोता हुए छोड़कर उड़ चले।

1. एक बार समुद्र पार करने का जब कोई मार्ग नहीं समझ में आया तो भगवान श्रीराम ने समुद्र को अपने तीर से सुखाने की सोची और उन्होंने तरकश से अपना तीर निकाला ही था और प्रत्यंचा पर चढ़ाया ही था कि समुद्र के देवता प्रकट हो गए और उनसे प्रार्थना करने लगे थे। भगवान श्रीराम को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर माना जाता है। हालांकि उन्होंने अपने धनुष और बाण का उपयोग बहुत ‍मुश्किल वक्त में ही किया।

देखि राम रिपु दल चलि आवा। बिहसी कठिन कोदण्ड चढ़ावा।।

अर्थात शत्रुओं की सेना को निकट आते देखकर श्रीरामचंद्रजी ने हंसकर कठिन धनुष कोदंड को चढ़ाया।

चूंकि कोदंड के तरकश बाण निकल कर प्रत्यंचा चढ़ चुका था तो प्रभु श्रीराम ने समुद्र देव से कहा कि मेरा यह बाण पुन: में तरकश में नहीं रख सकता। अत: तुम्हीं बताओं की मैं अब इसे किस दिशा में छोड़ूं? तब समुद्र देव कहते हैं कि पश्‍चिम दिशान में एक नगर है वहां पर एक राक्षस ने आतंक मचा रखा है आप उधरी ही इसे छोड़ दें। प्रभु ने ऐसा ही किया।

2. एक बार की बात है कि देवराज इन्द्र के पुत्र जयंत ने श्रीराम की शक्ति को चुनौती देने के उद्देश्य से अहंकारवश कौवे का रूप धारण किया व सीताजी को पैर में चोंच मारकर लहू बहाकर भागने लगा। तुलसीदासजी लिखते हैं कि जैसे मंदबुद्धि चींटी समुद्र की थाह पाना चाहती हो उसी प्रकार से उसका अहंकार बढ़ गया था और इस अहंकार के कारण वह-

।।सीता चरण चोंच हतिभागा। मूढ़ मंद मति कारन कागा।।

।।चला रुधिर रघुनायक जाना। सीक धनुष सायक संधाना।।

वह मूढ़ मंदबुद्धि जयंत कौवे के रूप में सीताजी के चरणों में चोंच मारकर भाग गया। जब रक्त बह चला तो रघुनाथजी ने जाना और धनुष पर तीर चढ़ाकर संधान किया। अब तो जयंत जान बचाने के लिए भागने लगा। वह अपना असली रूप धरकर पिता इन्द्र के पास गया, पर इन्द्र ने भी उसे श्रीराम का विरोधी जानकर अपने पास नहीं रखा। तब उसके हृदय में निराशा से भय उत्पन्न हो गया और वह भयभीत होकर भागता फिरा, लेकिन किसी ने भी उसको शरण नहीं दी, क्योंकि रामजी के द्रोही को कौन हाथ लगाए? जब नारदजी ने जयंत को भयभीत और व्याकुल देखा तो उन्होंने कहा कि अब तो तुम्हें प्रभु श्रीराम ही बचा सकते हैं। उन्हीं की शरण में जाओ। तब जयंत ने पुकारकर कहा- 'हे शरणागत के हितकारी, मेरी रक्षा कीजिए प्रभु श्रीराम।' और कोदंड का बाण वहीं रुक गया।

वहां से उन्होंने महावन में प्रवेश किया, जहां नाना प्रकार के हिंसक पशु और नरभक्षक राक्षस निवास करते थे। ये नरभक्षक राक्षस ही तपस्वियों को कष्ट दिया करते थे। कुछ ही दूर जाने के बाद बाघम्बर धारण किए हुए एक पर्वताकार राक्षस दृष्टिगत हुआ। वह राक्षस हाथी के समान चिंघाड़ता हुआ सीता पर झपटा। उसने सीता को उठा लिया और कुछ दूर जाकर खड़ा हो गया।

उसने राम और लक्ष्मण पर क्रोधित होते हुए कहा- तुम धनुष-बाण लेकर दंडक वन में घुस आए हो। तुम दोनों कौन हो? क्या तुमने मेरा नाम नहीं सुना? मैं प्रतिदिन ऋषियों का मांस खाकर अपनी क्षुधा शांत करने वाला विराध हूं। तुम्हारी मृत्यु ही तुम्हें यहां ले आई है। मैं तुम दोनों का अभी रक्तपान करके इस सुन्दर स्त्री को अपनी पत्नी बनाऊंगा।

विराध ने हंसते हुए कहा- यदि तुम मेरा परिचय जानना ही चाहते हो तो सुनो! मैं जय राक्षस का पुत्र हूं। मेरी माता का नाम शतह्रदा है। मुझे ब्रह्माजी से यह वर प्राप्त है कि किसी भी प्रकार का अस्त्र-शस्त्र न तो मेरी हत्या ही कर सकती है और न ही उनसे मेरे अंग छिन्न-भिन्न हो सकते हैं। यदि तुम इस स्त्री को मेरे पास छोड़कर चले जाओगे तो मैं तुम्हें वचन देता हूं कि मैं तुम्हें नहीं मारूंगा।

राम और लक्ष्मण ने उससे घोर युद्ध किया और उसे हर तरह से घायल कर दिया। फिर उसकी भुजाएं भी काट दीं। तभी राम बोले- लक्ष्मण! वरदान के कारण यह दुष्ट मर नहीं सकता इसलिए यही उचित है कि हमें भूमि में गड्ढा खोदकर इसे बहुत गहराई में गाड़ देना चाहिए।

लक्ष्मण गड्ढा खोदने लगे और राम विराध की गर्दन पर पैर रखकर खड़े हो गए। तब विराध बोला- हे प्रभु! मैं तुम्बुरू नाम का गंधर्व हूं। कुबेर ने मुझे राक्षस होने का शाप दिया था। मैं शाप के कारण राक्षस हो गया था। आज आपकी कृपा से मुझे उस शाप से मुक्ति मिल रही है। राम और लक्ष्मण ने उसे उठाकर गड्ढे में डाल दिया और गड्ढे को पत्थर आदि से पाट दिया।

श्री राम ने किसका वध किया था?

राम/श्रीराम/श्रीरामचन्द्र, रामायण के अनुसार, अयोध्या के राजा दशरथ तथा रानी कौशल्या के सबसे बड़े पुत्र, सीता के पति व लक्ष्मण, भरत तथा शत्रुघ्न के भ्राता थे। हनुमान उनके परम भक्त है। लंका के राजा रावण का वध उन्होंने ही किया था।

राम ने कितने राक्षसों का वध किया?

आओ जानते हैं राम के काल के वे 10 राक्षस, जिनका डंका बजता था। अगले पन्ने पर राक्षसों की शुरुआत का परिचय... पहले राक्षस 'हेति' और 'प्रहेति' : राक्षसों का प्रतिनिधित्व दो लोगों को सौंपा गया- 'हेति' और 'प्रहेति'। ये दोनों भाई थे।

राम ने शूद्र को क्यों मारा?

अनुमान किया कि कोई शूद्र तपस्या कर रहा है; किन्तु वे उसे देख नहीं पाये। राम ने उसे खोज निकाला और उससे पूछा- क्या कर रहे हो? शम्बूक बोला कि मैं सदेह धाम जाना चाहता हूँ अर्थात् शरीर रहते स्वरूप को पाना चाहता हूँ। राम आपका कल्याण हो।

राम भगवान का अंत कैसे हुआ था?

भाई की जलसमाधि से आहत होकर श्रीराम ने भी जल समाधि का निर्णय लिया। वो सरयू नदी के अंदर गए और भगवान विष्णु का अवतार ले लिया। इस तरह श्रीराम ने मानव शरीर त्याग दिया और बैकुंठ धाम चले गए।