हिंदुस्तानी शैली में कौन सी गायन शैली नहीं आती है - hindustaanee shailee mein kaun see gaayan shailee nahin aatee hai

हिंदुस्तानी शैली में कौन सी गायन शैली नहीं आती है - hindustaanee shailee mein kaun see gaayan shailee nahin aatee hai

  • हिन्दुस्तानी संगीत में प्रचलित प्रमुख गायन शैलियां निम्न हैं -

ध्रुपद-

  • ध्रुपद के चार खंड होते हैं - स्थायी, अंतरा, संचारी और आभोग।
  • इसकी भाषा में ब्रजभाषा की प्रधानता होती है।
  • ध्रुपद में प्राचीन शास्त्रों को आधार मानकर ईश्वर तथा राजाओं की प्रशस्ति व गुण वर्णन, पौराणिक आख्यान, देवदासियों की लीला आदि को विषयवस्तु बनाकर गायन किया जाता है।
  • तीव्रा, चौताल, सूल, धमार आदि ध्रुपद शैली में गाये जाने वाले राग हैं।

ख्याल

  • ख्याल के दो खंड होते हैं - स्थायी एवं अतंरा।
  • ख्याल की भाषा ब्रजभाषा, राजस्थानी, पंजाबी या हिंदी होती है।
  • ख्याल के प्रमुख गायक सदारंग, अदारंग, मनरंग, मुहम्मद शाह रंगीला, कुमार गंधर्व है।

ठुमरी

  • पूर्वी शैली, पंजाबी शैली पहाड़ी शैली ठुमरी गायन की तीन शैलियां है।
  • ठुमरी को लखलऊ तथा बनारस में अधिक गाया जाता है।
  • ठुमरी की विषय-वस्तु राधा-कृष्ण की केलिक्रीड़ा एवं नायक-नायिका के रसपूर्ण श्रृंगार की अभिव्यक्ति आदि है।
  • यह एक भावप्रधान तथा चपल चाल वाला श्रृंगार प्रधान गीत है।
  • इसमें कोमल शब्दावली तथा कोमल रागों का प्रयोग होता है।

तराना

  • इस शैली का प्रारम्भ अमीर खुसरो ने किया था।
  • यह एक कर्कश प्राकृतिक राग है।
  • कुछ संगीत विद्वान इसे अरबी और फारसी का ही एक खंड मानते हैं तो कुछ का मानना है कि यह तबला और सितार के अधीन से उत्पन्न हुआ है।

टप्पा

  • टप्पा का तात्पर्य उछल-कूद से है, जो एक गायन शैली की चंचलता, लच्छेदार गान आदि की उपस्थिति को इंगित करता है।
  • यह एक कठिन तथा सूक्ष्म गायन शैली है, जिसकी उत्पत्ति पंजाब को पहाड़ी भागों में हुई।
  • इसके विकास में शोरी मियां तथा उनके शिष्यों मियां गम्मू और ताराचंद का योगदान उल्लेखनीय है।
  • यह हिंदी मिश्रित पंजाबी भाषा का श्रृंगार प्रधान गीत है।

धमार

  • धमार दो प्रकार के होते हैं- प्रकाश और गुप्त।
  • यह श्रृंगार रस प्रधान तथा लय प्रधान शैली का गायन है।
  • इसमें सबसे पहले वैष्णव संतों द्वारा रचित विशिष्ट पद गाये जाते हैं।

गजल

  • गजलों का जनक ‘मिर्जा गालिब’ को माना जाता है।
  • इसमें विशेष रूप से उर्दू भाषा में लिखित रचना को गाया जाता है, परंतु वर्तमान में हिंदी में भी गजलें लिखने की परम्परा चल रही है।
  • इसमें गालिब, जफर, साहिर लुधियानवी, कैफी आजमी आदि प्रसिद्ध शायरों की रचनाओं को गाया जाता है।

Hindustani Aur Karnataka Sangeet Ke Beech Ka Antar

Pradeep Chawla on 20-09-2018

कर्नाटक संगीत शास्त्रीय संगीत की दक्षिण भारतीय शैली है। यह संगीत अधिकांशतः भक्ति संगीत के रूप में होता है और इसके अंतर्गत अधिकतर रचनाएँ हिन्दू देवी-देवताओं को संबोधित होती हैं। तमिल भाषा में कर्नाटक का आशय प्राचीन, पारंपरिक और शुद्ध से है। कर्नाटक संगीत की मुख्य विधाएँ निम्नलिखित हैं-

  • अलंकारम- सप्तक के स्वरों की स्वरावलियों को अलंकारम कहते हैं। इनका प्रयोग संगीत अभ्यास के लिये किया जाता है।
  • लक्षणगीतम्- यह गीत का एक प्रकार है जिसमें राग का शास्त्रीय वर्णन किया जाता है। पुरंदरदास के लक्षणगीत कर्नाटक में गाए जाते हैं।
  • स्वराजाति- यह प्रारंभिक संगीत शिक्षण का अंग है। इसमें केवल स्वरों को ताल तथा राग में बाँटा जाता है। इसमें गीत अथवा कविता नहीं होते।
  • आलापनम्- आकार में स्वरों का उच्चारण आलापनम् कहलाता है। इसमें कृति का स्वरूप व्यक्त होता है। इसके साथ ताल-वाद्य का प्रयोग नहीं किया जाता।
  • कलाकृति, पल्लवी- कलाकृति में गायक को अपनी प्रतिभा दिखाने का पूर्ण अवसर मिलता है। द्रुत कलाकृति और मध्यम कलाकृति इसके दो प्रकार हैं। पल्लवी में गायक को राग और ताल चुनने की छूट होती है।
  • तिल्लाना- तिल्लाना में निरर्थक शब्दों का प्रयोग होता है। इसमें लय की प्रधानता होती है। इसमें प्रयुक्त निरर्थक शब्दों को ‘चोल्लुक्केट्टू’ कहते हैं।
  • पद्म, जवाली- ये गायन शैलियाँ उत्तर भारतीय संगीत की विधाएँ- ठुमरी, टप्पा, गीत आदि से मिलती-जुलती हैं। ये शैलियाँ सुगम संगीत के अंतर्गत आती हैं। इन्हें मध्य लय में गाया जाता है। पद्म श्रृंगार प्रधान तथा जवाली अलंकार व चमत्कार प्रधान होती है।
  • भजनम्- यह गायन शैली भक्ति भावना से परिपूर्ण होती है। इसमें जयदेव और त्यागराज आदि संत कवियों की पदावलियाँ गाई जाती हैं।
  • रागमालिका- इसमें रागों के नामों की कवितावली होती है। जहाँ-जहाँ जिस राग का नाम आता है, वहाँ उसी राग के स्वरों का प्रयोग होता है, जिससे रागों की एक माला सी बन जाती है।

हिंदुस्तानी और कर्नाटक संगीत के बीच समानताएँ-

  • दोनों ही शैलियों में शुद्ध तथा विकृत कुल 12 स्वर लगते हैं।
  • दोनों शैलियों में शुद्ध तथा विकृत स्वरों से थाट या मेल की उत्पत्ति होती है।
  • जन्य-जनक का सिद्धांत दोनों ही स्वीकार करते हैं।
  • दोनों ने संगीत में तालों के महत्त्व को स्वीकार किया है।
  • दोनों के गायन में आलाप तथा तान का प्रयोग होता है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि इन दोनों संगीत शैलियों के मूल सिद्धांतों में अंतर नहीं है।

सम्बन्धित प्रश्न



Comments Anjali on 10-07-2021

मसीतखानी गत कौन सी मात्रा से प्रारम्भ होती है?

Nida sheifi on 12-06-2021

Hindustani air karnatak sheli ke beech ki samantaon aur visheshtaon ko bataiye.

Vishal on 20-04-2021

Uttari sangeet or dakshani sangeet me Kon Kon se Yese raag Jo ek saman Hain magar unke naam alag Hain?

Rakhi on 21-03-2021

Hindustani aur Karnatak Sangit koi antar nhi hai

Kalpana jain on 19-03-2021

Sangeet samaysaar granth ka karnatak shaili me kya yogdan raha hai

Saumya Srivastava on 19-08-2020

What are the main differences between karnataka Taal system and Hindustani Taal system??

Samayara shing on 06-02-2019

hindustani aur karnatka sangit paddhati me swaro aur shrutiyo ki tulna


हिंदुस्तानी शैली में कौन से गायन शैली नहीं आती है?

धमार, त्रिवत, चैती, कजरी, टप्पा, तप-ख्याल, अष्टपदी, ठुमरी, दादरा, ग़ज़ल और भजन हल्की शास्त्रीय विधाएँ हैं जो शास्त्रीय संगीत के सख्त सिद्धांतों का पालन नहीं करती हैं।

गायन शैली कितने प्रकार की होती है?

अध्याय 1 – “ गायन ” | गायन की 22 शैली प्राचीन से आधुनिक काल तक प्रचलित ध्रुपद , ख्याल , धमार जैसी शास्त्रीय एवं कजरी , टप्पा जैसी अर्द्धशास्त्रीय गायन शैलियों के अन्तर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है । भारतीय संगीत में प्रमुख रूप से लोकसंगीत , शास्त्रीय संगीत तथा उपशास्त्रीय संगीत का प्रचलन रहा है

गायन शैली कौन है?

गायन शैली का अर्थ है- गाने के तरीके । गायन शैली या गाने के तरीकों के आधार पर एक गीत दूसरे गीत से अलग होता है । जब भी हम किसी गायक को गाते सुनते हैं तो हम उसके गायन शैली को पहचानने की कोशिश करते हैं । हम उसके द्वारा गाए जा रहे गीत को पहचानते हैं और जान पाते हैं कि वह कौन सा गीत गा रहा है ।

हिंदुस्तानी संगीत में गायन की कितने विधाएं है?

'ध्रुपद', 'धमर', 'होरी', 'ख्याल', 'टप्पा', 'चतुरंग', 'रससागर', 'तराना', 'सरगम' और 'ठुमरी' जैसी हिंदुस्तानी संगीत में गायन की दस मुख्य शैलियाँ हैं।