गेहूं की वैज्ञानिक खेती Updatedविश्व भर में, भोजन के लिए उगाई जाने वाली धान्य फसलों में मक्का के बाद गेहूं दूसरी सबसे ज्यादा उगाई जाने वाले फसल है, धान का स्थान गेहूं के ठीक बाद तीसरे स्थान पर आता है। देश में गेहूं का सबसे अधिक उत्पादन छह राज्यों हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और बिहार में होता है । देश के कुल खाद्यान उत्पादन में गेहूं का योगदान लगभग 37 प्रतिशत है | गेहूं में प्रोटीन की मात्रा अन्य आनाजों की तुलना में सबसे अधिक होती है इसलिए खाद्यान के रूप में यह बहुत ही महत्वपूर्ण है और इसकी मांग दुनियाभर में रहती है | Show निरंतर बढती आबादी की मांग को पूरा करने के लिए गेहूं का उत्पादन और उत्पादकता को लगातार बढाना होगा | उत्पादन बढाने के लिए गेहूं को सही समय पर सिंचाई की आवश्यकता होती है | सर्दी के मौसम में देश में बारिश न के बराबर होती है जिसके चलते किसानों को सिंचाई के लिए अन्य संसाधनों पर निर्भर रहना पड़ता है | ऐसे में देश के भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद के विभन्न संस्थानों के वैज्ञानिकों के प्रयास से ऐसी किस्में विकसित की गई है | भारत में गेहूं उत्पादन में वृद्धि एवं गुणवत्ता के लिए करनाल में भारतीय गेहूं एवं जो अनुसन्धान केंद्र स्थापित किया गया है | बेहतर गेहूं उत्पादकता के लिए उन्नत किस्मों के साथ-साथ नई कृषि पद्धतियों को अपनाकर कुशल आदान प्रबंधन करने से लागत कम होगी | नीचे किसान समाधान आपके लिए गेहूं की नवीनतम तकनीक की जानकारी लेकर आया है |
गेहूं उत्पादन के लिए खेती की तैयारीअधिकांश किसान धान के बाद ही ही गेहूं की बुआई अपने खेतों में करते हैं | अतः गेहूँ की बुआई में बहुधा देर हो जाती है | हम पहले से यह निश्चित कर लेना होगा की खरीफ में धान की कौन से प्रजाति का चयन करे रबी में उसके बाद गेहूँ की कौन से प्रजाति बोयें | गेहूँ की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए धान की समय से रोपाई आवश्यक हैं जिससे गेहूँ के लिए खेत अक्टूबर माह में खाली हो जायें | दूसरी बात ध्यान देने योग्य यह है कि धान में पड़लिंग में लेवा के कारण भूमि कठोर हो जाती हैं | भारी भूमि में पहले मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई के बाद डिस्क हैरो से दो बार जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी बनाकर ही गेहूँ की बुआई करना उचित होगा | डिस्क हैरो के प्रयोग से धान के ठुंठ छोटे-छोटे टुकड़ों में कट जाते हैं | इन्हे शीघ्र सडाने हेतु 15-20 किग्रा. नत्रजन (यूरिया के रूप में) प्रति हेक्टर खेत को तैयार करते समय पहली जुताई पर अवश्य दे देना चाहिए | ट्रेक्टर चालित रोटावेटर द्वारा एक ही जुताई में खेत पूर्ण रूप से तैयार हो जाता है | गेहूं की सिंचित दशा में बुआई के लिए उपयुक्त किस्मेंभारतीय कृषि विज्ञानिकों के द्वारा अलग-अलग मिट्टी एवं जलवायु क्षेत्रों के अनुसार कई किस्में विकसित की गई है किसान भाई अपने क्षेत्र के अनुसार उन गेहूं की सभी विकसित किस्मों की जानकारी अपने जिले में स्थित कृषि विभाग या कृषि विज्ञान केंद्र से प्राप्त कर सकते हैं | देश में गेहूं में लगने वाले विभन्न रोगों से बचाव के लिए बहुत सी अवरोधी किस्में भी विकसित की गई है | नीचे कुछ विकसित किस्में एवं उनकी विशेषताएं दी जा रही हैं | किसान भाई अपने क्षेत्र के अनुसार इन किस्मों का चयन कर सकते हैं |
सिंचित दशा (विलम्ब से बुआई हेतु) गेहूं की विकसित किस्में :-
ऊसरीली भूमि के लिए गेहूं की किस्में
छत्तीसगढ़ के लिए गेहूं की नई विकसित अनुशंसित किस्मेंहर्षिता (HI – 1531), उर्जा (HP-2664), पूसा व्हिट-111(HD-2932), MP-1203, MPO(JW) , 1215 (MPO 1215), JW-3288, पूसा मंगल (HI 8713), MP 3336 (JW 3336) हरियाणा के लिए गेहूं की नई विकसित अनुशंसित किस्मेंUP-2338, WH-896, श्रेष्ठ (HD-2687), UP-2425, KRL-1, PBW-396, WH-283, HD-2329, कुंदन (DL-153-2), RAJ-3077, WH-416, WH-542, DBW – 16, DBW-17, PBW-502, VL-GEHUN-832, WH-1021, PBW-550, PBW-590, MACS 6222, PDW 314, WHD-943, DPW 621-50(PBW 621 & DBW 50), WH-1080 , KRL-210, HD 3043, PBW 644, HD-2967, WH 1105, DBW-71, DBW 90, पूसा गौतमी (HD) 3086) DBW 88 बिहार के लिए गेहूं की नई विकसित अनुशंसित किस्मेंगंगा (HD-2643), मालवीय व्हिट -468 (HUW-468), PBW-443, HD-2733 (VSM, कौशाम्बी (HW-2045), HD-2307, HP-1493, HDR-77, सोनाली (HP-1633), शताब्दी (K-0307), HD 2733 (VSM), पूसा व्हिट-107 (HD-2888), DBW 14, नरेन्द्र व्हिट – 2036, MACS-6145, पूर्वा (HD 2824), RAJ-4120, DBW 39, पूसा प्राची (HI-1563), पूसा बसंत (HD 2985, KRL-210 झारखण्ड के लिए गेहूं की नई विकसित अनुशंसित किस्मेंकौशाम्बी (HW-2045), शताब्दी (K-0307), पूसा व्हिट-107 (HD-2888), DBW 14, नरेन्द्र व्हिट – 2036, MACS-6145, पूर्वा (HD 2824), RAJ-4120, DBW 39, पूसा प्राची (HI-1563), पूसा बसंत (HD 2985) दिल्ली के लिए दिल्ली के लिए गेहूं की नई विकसित अनुशंसित किस्मेंUP-2338 , श्रेष्ठ(HD-2687), UP-2425, KRL-19, PBW-396, HD-2329, WH-542, DBW – 16, WH-1021 , PBW-550, PBW-590, MACS 6222, PDW 314, WHD-943, DPW 621-50(PBW 621 & DBW 50), KRL-210, HD 3043, PBW 644, HD-2967, WH 1105, DBW-71, DBW 90, पूसा गौतमी (HD) 3086 ), DBW 88 बीज दर, बीज शोधन एवं बुआई की विधिगेहूँ की बुआई पर्याप्त नमी पर करना चाहिए | देर से पकने वाली प्रजातियों की बुआई समय से अवश्य कर देना चाहिए अन्यथा उपज में कमी हो जाती है | जैसे-जैसे बुआई में विलम्भ होता जाता है, गेहूँ की पैदावार में गिरावट की दर बढती चली जाती है | दिसम्बर से बुआई करने पर गेहूँ की पैदावार 3 से 4 कु./हे. एवं जनवरी में बुआई करने पर 4 से 5 कु./हे. प्रति सप्ताह की दर से घटती है | गेहूँ की बुआई सिडड्रिल से करने पर उर्वरक एवं बीज बचत की जा सकती है | बीज दर एवं बीज शोधन :लाइन में बुआई करने पर सामान्य दशा में 100 किग्रा. तथा मोटा दाना 125 किग्रा. प्रति है, तथा छिडकाव बुआई की दशा में सामान्य दाना 125 किग्रा. मोटा-दाना 150 किग्रा. प्रति हे. की दर से प्रयोग करना चाहिए | बुआई से पहले जमाव प्रतिशत अवश्य देख ले | राजकीय अनुसंधान केन्द्रों पर सुविधा नि:शुल्क उपलब्ध है | यदि अंकुरण क्षमता कम हो तो उसी के अनुसार बीज दर बढ़ा ले तथा यदि बीज प्रमाणित न हो तो उसका शोधन अवश्य करें | बीजों का कार्बाक्सिन, एजेटोवैक्टर व पी.एस.वी. से उपचारित कर बोआई करें | सीमित सिंचाई वाले क्षेत्रों में रेज्ड वेड विधि से बुआई करने पर सामान्य दशा में 75 किग्रा. मोटा दाना 100 किग्रा. प्रति हे. की दर से प्रयोग करे |
विधि :बुआई हल के पीछे कूंडो या फर्टीसीडड्रिल द्वारा भूमि की उचित नमी पर करें | पलेवा करके ही बोना श्रेयकर होता है यह ध्यान रहे की कल्ले निकलने के बाद प्रति वर्गमीटर 400 से 500 बालियुक्त पौधे अवश्य हों अन्यथा इसकी उपज पर कुप्रभाव पड़ेगा | विलम्ब से बचने के लिये पंतनगर जीरोट्रिल बीज व ड्रिल से बुआई करें | ट्रेक्टर चालित रोटो टिल ड्रिल द्वारा बुआई अधिक लाभदायक है | बुन्देलखण्ड (मार व कावर मृदा) में बिना जुताई के बुआई कर दिया जाय ताकि जमाव सही हो | गेहूँ की मेड़ पर बुआई (बेड प्लान्टिंग) :इस तकनीकी द्वारा गेहूँ की बुआई के लिए खेत पारम्परिक तरीके से तैयार किया जाता है और फिर मेड़ बनाकर गेहूँ की बुआई की जाती है | इस पद्धति में एक विशेष प्रकार की मशीन (बेड प्लान्टर) का प्रयोग नाली बनाने एवं बुआई के लिए किया जाता है | मेंडो के बीच की नालियों से सिंचाई की जाती है तथा बरसात में जल निकासी का काम भी इन्ही नालियों से होता है एक मेड़ पर 2 या 3 कतारों में गेहूँ की बुआई होती है | इस विधि से गेहूँ की बुआई कर किसान बीज खाद एवं पानी की बचत करते हुये अच्छी पैदावार ले सकते है | इस विधि में हम गेहूँ की फसल को गन्ने की फसल के साथ अन्त: फसल के रूप में ले सकते है इस विधि से बुआई के लिए मिट्टी का भुरभुरा होना आवश्यक है तथा अच्छे जमाव के लिए पर्याप्त नमी होनी चाहिये | इस तकनीक की विशेषतायें एवं लाभ इस प्रकार है |
मेड़ पर बोआई द्वारा फसल विविधिकरण :गेहूँ के तुरन्त बाद पुरानी मेंडो को पुनः प्रयोग करके खरीफ फसल में मूंग, मक्का, सोयाबीन, अरहर, कपास आदि की फसलों उगाई जा सकती है | इस विधि से दलहन एवं तिलहन की 15 से 20 प्रतिशत अधिक पैदावार मिलती है | खाद एवं उर्वरकों का प्रयोगउर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करना उचित होता है | बौने गेहूँ की अच्छी उपज के लिए मक्का, धान, ज्वार, बाजरा की खरीफ फसलों के बाद भूमि में 150:60:40 किग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से तथा विलम्ब से 80:40:30 क्रमश: नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश का प्रयोग करना चाहिए | सामान्य दशा में 120:60:40 किग्रा. नत्रजन, फास्फोरस तथा पोटाश एवं 30 किग्रा. गंधक प्रति है. की दर से प्रयोग लाभकारी पाया गया है | जिन क्षेत्रों में डी.ए.पी. का प्रयोग लगातार किया जा रहा है उनमें 30 किग्रा. गंधक का प्रयोग लाभदायक रहेगा | यदि खरीफ में खेत परती रहा हो या दलहनी फसलें बोई गई हों तो नत्रजन की मात्रा 20 किग्रा. प्रति हेक्टर तक कम प्रयोग करें | अच्छी उपज के लिए 60 कुन्तल प्रति हे. गोबर की खाद का प्रयोग करें | यह भूमि की उपजाऊ शक्ति को बनाये रखने में मदद करती है | लगातार धान-गेहूँ फसल चक्र वाले क्षेत्रों में कुछ वर्षों बाद गेहूँ की पैदावार में कमी आने लगती है | अतः ऐसे क्षेत्रों में गेहूँ की फसल कटने के बाद तथा धान की रोपाई के बीच हरी खाद का प्रयोग करें अथवा धान की फसल में 10-12 टन प्रति हैक्टेयर गोबर की खाद का प्रयोग करें | अब भूमि में जिंक की कमी प्रायः देखने में आ रही है | गेहूँ की बुआई के 20-30 दिन के मध्य में पहली सिंचाई के आस-पास पौधों में जिंक की कमी के लक्षण प्रकट होते हैं, जो निम्न हैं :
खड़ी फसल में यदि जिंक की कमी के लक्षण दिखाई दे तो 5 किग्रा. जिंक सल्फेट तथा 16 किग्रा. यूरिया को 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हे. की दर से छिडकाव करें | यदि यूरिया की टापड्रेसिंग की जा चुकी है तो युरिया के स्थान पर 2.5 किग्रा. बुझे हुए चूने के पानी में जिंक सल्फेट घोलकर छिडकाव करें (2.5 किग्रा. बुझे हुए चुने को 10 लीटर पानी में सांयकाल डाल दे तथा दुसरे दिन प्रातः काल इस पानी को निथार कर प्रयोग करे और चुना फेंक दे) ध्यान रखें कि जिंक सल्फेट के साथ यूरिया अथवा बुझे हुए चुने के पानी को मिलाना अनिवार्य है | धान के खेत में यदि जिंक सल्फेट का प्रयोग बेसल ड्रेसिंग के रूप में न किया गया हो और कमी होने की आशंका हो तो 20-25 किग्रा/हे. जिंक सल्फेट की टाप ड्रेसिंग करें | समय व विधि :उर्वरकीय क्षमता बड़ाने के लिए उनका प्रजोग विभिन्न प्रकार की भूमियों में निम्न प्रकार से किया जाये :-
गेहूं में सिंचाईआश्वस्त सिंचाई की दशा में :सामान्यत: बौने गेहूँ अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए हल्की भूमि में सिंचाईयां निम्न अवस्थाओं में करनी चाहिए | इन अवस्थाओं पर जल की कमी का उपज पर भारी कुप्रभाव पड़ता है, परन्तु सिंचाई हल्की करे |
दोमट या भारी दोमट भूमि में निम्न चार सिंचाईयां करके भी अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है परन्तु प्रत्येक सिंचाई कुछ गहरी (8 सेमी.) करें |
सिंचित तथा विलम्भ से बुआई की दशा में :गेहूँ की बुआई अगहनी धान तोरिया, आलू, गन्ना की पेडी एवं शीघ्र पकने वाली अरहर के बाद की जाती है किन्तु कृषि अनुसन्धान की विकसित निम्न तकनीक द्वारा क्षेत्रों की भी उपज बहुत कुछ बढाई जा सकती है |
गेहूं की फसल में खरपतवार प्रबंधन
नियंत्रण के उपाय :गेहूँसा एवं जंगली जई के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित खरपतवारनाशी में से किसी एक रसायन की संस्तुत मात्रा को लगभग 500-600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हे. बुआई के 20-25 दिन के बाद फ्लैटफैन नाजिल से छिडकाव करना चाहिए | सल्फोसल्फ्यूरान हेतु पानी की मात्रा 300 लीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए |
चौड़ी पत्ती के खरपतवार बथुआ, सेंजी, कृष्णनील, हिरनखुरी, चटरी–मटरी, अकरा-अकरी, जंगली गाजर, गजरी, प्याजी, खरतुआ, सत्यानाशी आदि के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित खरपतवारनाशी रसायनों में से किसी एक रसायन की संस्तुत मात्रा को लगभग 500-600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हे. बुआई के 25-30 दिन के बाद फ्लैटफैन नाजिल से छिडकाव करना चाहिए |
सकरी एवं चौड़ी पत्ती दोनों प्रकार के खरपतवारों के एक साथ नियंत्रण हेतु निम्नलिखित खरपतवारनाशी रसायनों में से किसी एक रसायन की संस्तुत मात्रा को लगभग 300 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर फ्लैटफैन नाजिल से छिडकाव करना चाहिए मैट्रीब्युजिन हेतु पानी की मात्रा 500-600 लीटर प्रति हे. होनी चाहिए
प्रमुख कीट एवं रोग और उनका नियंत्रणगेहूं की फसल में लगने वाले सभी रोगगेहूं में बीमारियों सुत्रकृमियों तथा हानिकारक कीटों के कारण 5–10 प्रतिशत उपज की हानि होती है और दानों तथा बीजों की गुणवत्ता भी खराब होती है | जिससे लागत तो बढती ही है उत्पादन कम होने से किसानों की आय पर भी फर्क पड़ता है | किसानों को इसलिए बीज उपचार कर एवं रोग प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग ही करना चाहिए | गेहूं की फसल में पर्ण रतुआ / भूरा रतुआ, धारीदार रतुआ या पीला रतुआ, तना रतुआ या काला रतुआ, करनाल बंट खुला कंडुआ या लूज स्मट, पर्ण झुलसा या लीफ ब्लाईट, चूर्णिल आसिता या पौदरी मिल्ड्यू, ध्वज कंड या फ्लैग समट, पहाड़ी बंट या हिल बंट, पाद विगलन या फुट राँट आदि रोग लगते हैं | गेहूं की फसल में लगने वाले इन सभी रोगों एवं उनकी रोकथाम के लिए दी गई लिंक पर जानकारी देखें | गेहूं की फसल में लगने वाले रोगों की विस्तृत जानकारी के लिए क्लिक करेंखड़ी फसल में बहुत से रोग लगते हैं,जैसे अल्टरनेरिया, गेरुई या रतुआ एवं ब्लाइट का प्रकोप होता है जिससे भारी नुकसान हो जाता है इसमे निम्न प्रकार के रोग और लगते हैं जैसे काली गेरुई, भूरी गेरुई, पीली गेरुई सेंहू, कण्डुआ, स्टाम्प ब्लाच, करनालबंट इसमें मुख्य रूप से झुलसा रोग लगता है पत्तियों पर कुछ पीले भूरे रंग के लिए हुए धब्बे दिखाई देते हैं, ये बाद में किनारे पर कत्थई भूरे रंग के तथा बीच में हल्के भूरे रंग के हो जाते हैं: इनकी रोकथाम के लिए मैन्कोजेब 2 किग्रा० प्रति हैक्टर की दर से या प्रापिकोनाजोल 25 % ई सी. की आधा लीटर मात्रा 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए, इसमे गेरुई या रतुआ मुख्य रूप से लगता है,गेरुई भूरे पीले या काले रंग के, काली गेरुई पत्ती तथा तना दोनों में लगती है इसकी रोकथाम के लिए मैन्कोजेब 2 किग्रा० या जिनेब 25% ई सी. आधा लीटर, 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर छिड़काव करना चाहिए। यदि झुलसा, रतुआ, कर्नाल बंट तीनो रोगों की शंका हो तो प्रोपिकोनाजोल का छिड़काव करना अति आवश्यक है। प्रमुख कीट
नियंत्रण के उपाय :
गेहूं के खेत में चूहे का नियंत्रणखेत का चूहा (फील्ड रैट) मुलायम बालों वाला खेत का चूहा (साफ्ट फर्ड फील्ड रैट) एंव खेत का चूहा (फील्ड माउस) | नियंत्रण के उपाय :गेंहूँ की फसल को चूहे बहुत अधिक क्षति पहुंचाते है | चूहे की निगरानी एंव फास्फाइड 80 प्रतिशत से नियंत्रण का साप्ताहिक कार्यक्रम निम्न प्रकार सामूहिक रूप से किया जाए तो अधिक सफलता मिलती है :
ब्रोमोडियोलोंन 0.0005 प्रतिशत के बने बनाये चारे की 10 ग्राम मात्रा प्रत्येक जिन्दा बिल में रखना चाहिए | इस दवा से चूहा 3-4 बार खाने के बाद मरता है | गेहूं का भण्डारणअनाज को धातु की बनी बखारियों अथवा कोठिलों या कमरे में जैसी सुविधा हो भण्डारण कर लें | वैसे भण्डारण के लिए धातु की बनी बखारी बहुत ही उपयुक्त है | भण्डारण के पूर्व कोठिलों तथा कमरे को साफ कर ले और दीवालो तथा फर्श पर मैलाथियान 50 प्रतिशत के घोल (1:100) को 3 लीटर प्रति 100 वर्गमीटर की दर से छिडकें | बखारी के ढक्कन पर पालीथीन लगाकर मिट्टी का लेप कर दें जिससे वायुरोधी हो जाये | असिंचित क्षेत्रों में गेहूं की खेती, किस्में एवं अन्य जानकारी के लिए क्लिक करेंजीरो ‘टिलेज’ द्वारा गेंहूँ की खेती का उन्नत विधियाँ :धान गेंहूँ फसल चक्र में विशेषतौर पर जहाँ गेंहूँ की बुआई में विलाम्ब हो जाता है, गेंहूँ की खेती जीरो टिलेज विधि द्वारा करना लाभकारी पाया गया है | इस विधि में गेंहूँ की बुआई बिना खेत की तैयारी किये एक विशेष मशीन (जीरों टिलेज मशीन) द्वारा की जाती है | जीरो टिलेज विधि से बुआई करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक है
लाभ : इस विधि में निम्न लाभ पाए गए है :
नोट : गेंहूँ फसल कटाई के पश्चात फसल अवशेष को न जलाया जाये | सबसे ज्यादा उपज देने वाला गेहूं कौन सा है?best wheat variety 2021. GW 322. यह मध्यप्रदेश MP राज्य में सबसे अधिक उगाई जाने वाली Wheat variety है जो 115-120 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। ... . पूसा तेजस 8759 – ... . wheat GW 273 – ... . श्री राम सुपर 111 गेहूं – ... . HD 4728(Pusa Malawi) – ... . wheat HD 3298 – ... . shree ram 303 wheat variety – ... . wheat JW 1142 –. गेहूं में क्या डालना चाहिए?किसान भाई गेहूं की अच्छी फसल के लिए अगैती फसल में बुआई के समय 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल करना चाहिये। गेहूं की पछैती फसल के लिए बुआई के समय 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश गोबर की खाद, नीम व अरंडी की खली के बाद डालना चाहिये।
गेहूं की फसल में कौन सा स्प्रे करें?उन्होंने बताया कि गेहूं फसल कि 45 दिन की अवस्था में फुटाव होने पर 500 ग्राम जिंक सल्फेट 21 प्रतिशत 2.5 किग्रा यूरिया को 100 लीटर पानी में मिला कर एक एकड़ में स्प्रे करें। इसकी लागत मात्रा 30 रुपये है। इसलिए हर किसान को यह अवश्य करना चाहिए।
सबसे महंगा गेहूं कौन सा है?“शरबती” गेहू देश में उपलब्ध गेहूं की सबसे प्रीमियम किस्म है। शरबती गेहू की क्षेत्र में बहुतायत में पैदावार की जाती है ।
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