भारत में नियोजन प्रक्रिया के विकेंद्रीकरण में सामुदायिक विकास कार्यक्रम का मूल्यांकन कीजिए - bhaarat mein niyojan prakriya ke vikendreekaran mein saamudaayik vikaas kaaryakram ka moolyaankan keejie

विषयसूची

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  • 1 विकेंद्रीकृत नियोजन से क्या अभिप्राय है?
  • 2 समाज व विश्व को समझने में स्वयं की समझ कैसे सहायता करती है इस संबंध में अपने विचार व्यक्त कीजिए?
  • 3 ग्रामीण सहभागी आकलन पी आर ए क्या है?
  • 4 सामुदायिक विकास कार्यक्रम कब लागू?

विकेंद्रीकृत नियोजन से क्या अभिप्राय है?

इसे सुनेंरोकेंआर्थिक नियोजन का अर्थ है- स्वीकृत राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुसार देश के संसाधनों का विभिन्न विकासात्मक क्रियाओं में प्रयोग करना। निर्देशात्मक नियोजन एक विकेंद्रीकृत व्यवस्था है, जिसमें राज्य एवं सरकारी संस्थाओं का सांकेतिक तथा परोक्ष हस्तक्षेप होता है।

समाज व विश्व को समझने में स्वयं की समझ कैसे सहायता करती है इस संबंध में अपने विचार व्यक्त कीजिए?

इसे सुनेंरोकेंपहली इकाई में हमारा ज्यादा ध्यान स्वयं की क्षमताओं और विकास की जरूरतों को पहचानने पर था। इस इकाई में हम अपने जीवन के उद्देश्यों के बारे में विचार करेंगे। वनस्पतियों और जीव-जंतुओं से मनुष्य इस मायने में अलग है कि मनुष्य अपने जीवन के उद्देश्य के बारे में चिंतन-मनन करता है।

मानव की सहभागिता कितने रुपो मे देखी जा रही है?

इसे सुनेंरोकेंसहभागिता की प्रक्रिया यह कई रूप लेती है और योजना चक्र के दौरान बदलती रहती है। समुदाय के हितों एवं आवश्यकताओं के आधार पर देश काल के अनुरूप इसके रूप में बदलाव आता रहता है। विकास की प्रक्रिया में सहभागिता के चार विभिन्न स्तर हैं।

केंद्रीकरण विकेंद्रीकरण से आप क्या समझते हैं?

इसे सुनेंरोकेंह्वाइट के मतानुसार – ”प्रशासन के निम्नतल से उच्चतल की ओर प्रशासकीय सत्ता के हस्तान्तरण की प्रक्रिया को केंद्रियकरण कहते हैं जबकि इसके ठीक विपरीत व्यवस्था को विकेंद्रीकरण कहा जाता हैं ।”

ग्रामीण सहभागी आकलन पी आर ए क्या है?

इसे सुनेंरोकेंसहभागी ग्रामीण मूल्यांकन ( पीआरए ) गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) और अंतर्राष्ट्रीय विकास में शामिल अन्य एजेंसियों द्वारा उपयोग किया जाने वाला एक दृष्टिकोण है । इस दृष्टिकोण का उद्देश्य विकास परियोजनाओं और कार्यक्रमों की योजना और प्रबंधन में ग्रामीण लोगों के ज्ञान और राय को शामिल करना है।

सामुदायिक विकास कार्यक्रम कब लागू?

इसे सुनेंरोकें(d) 2 अक्टूबर, 1953 ई. भारत में सामुदायिक विकास कार्यक्रम प्रायोगिक स्तर पर 2 अक्टूबर, 1952 ई. में शुरू किया गया था। देश में कृषि कार्यक्रम और संचार की प्रणाली में सुधार के साथ ग्रामीण स्वास्थ्य और स्वच्छता और ग्रामीण शिक्षा में पर्याप्त वृद्धि प्रदान करने के लिए सामुदायिक विकास कार्यक्रम तेजी से लागू किया गया था।

सामुदायिक विकास सम्पूर्ण समुदाय के विकास की एक ऐसी पद्धति है जिसमें जन-सहभाग के द्वारा समुदाय के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने का प्रयत्न किया जाता है। भारत की लगभग 74 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामों में रहती है। जनसंख्या के इतने बडे़ भाग की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का प्रभावपूर्ण समाधान किये बिना हम कल्याणकारी राज्य के लक्ष्य को किसी प्रकार भी पूरा नहीं कर सकते। भारत में स्वतन्त्रता के बाद से ही एक ऐसी वृहत योजना की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी जिसके द्वारा ग्रामीण समुदाय में अशिक्षा, निर्धनता, बेरोजगारी, कृषि के पिछडे़पन, गन्दगी तथा रूढ़िवादिता जैसी समस्याओं का समाधान किया जा सके। भारत में ग्रामीण विकास के लिए यह आवश्यक था कि कृषि की दशाओं में सुधार किया जाये, सामाजिक तथा आर्थिक संरचना को बदला जाये, आवास की दशाओं में सुधार किया जाये, किसानों को कृषि योग्य भूमि प्रदान की जाये, जन-स्वास्थ्य तथा शिक्षा के स्तर को ऊँचा उठाया जाये तथा दुर्बल वगोर्ं को विशेष संरक्षण प्रदान किया जाये। 

इसकी प्राप्ति के लिए सर्वप्रथम सन् 1948 में उत्तर प्रदेश के इटावा तथा गोरखपुर जिलों में एक प्रायोगिक योजना क्रियान्वित की गयी। इसकी सफलता से प्रेरित होकर जनवरी 1952 में भारत और अमेरिका के बीच एक समझौता हुआ जिसमे भारत में ग्रामीण विकास के व्यापक विकास के लिए अमरीका के फोर्ड फाउण्डेशन द्वारा आर्थिक सहायता देना स्वीकार किया गया। ग्रामीण विकास की इस योजना का नाम सामुदायिक विकास योजना रखा गया तथा 1952 में ही महात्मा गॉधी के जन्म दिवस 2 अक्टूबर से 55 विकास खण्डों की स्थापना करके इस योजना पर कार्य आरम्भ कर दिया गया।

सामुदायिक विकास योजना की परिभाषा

योजना आयोग (Planning Commission) के प्रतिवेदन में सामुदायिक विकास के अर्थ को स्पष्ट करते हुए कहा गया कि ‘‘सामुदायिक विकास एक ऐसी योजना है जिसके द्वारा नवीन साधनों की खोज करके ग्रामीण समाज के सामाजिक एवं आर्थिक जीवन में परिवर्तन लाया जा सकता है।

प्रो.ए.आर.देसाई के अनुसार ‘‘सामुदायिक विकास योजना एक ऐसी पद्धति है जिसके द्वारा पंचवश्र्ाीय योजनाओं में निर्धारित ग्रामों के सामाजिक तथा आर्थिक जीवन में रूपान्तरण की प्रक्रिया प्रारम्भ करने का प्रयत्न किया जाता है।’’ इनका तात्पर्य है कि सामुदायिक विकास एक माध्यम है जिसके द्वारा पंचवश्र्ाीय योजनाओं द्वारा निर्धारित ग्रामीण प्रगति के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।

रैना (R.N. Raina) का कथन है कि ‘‘सामुदायिक विकास एक ऐसा समन्वित कार्यक्रम है जो ग्रामीण जीवन से सभी पहलुओं से सम्बन्’िधत है तथा धर्म, जाति सामाजिक अथवा आर्थिक असमानताओं को बिना कोई महत्व दिये, यक सम्पूर्ण ग्रामीण समुदाय पर लागू होता है।

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि सामुदायिक विकास एक समन्वित प्रणाली है जिसके द्वारा ग्रामीण जीवन के विकास के लिए प्रयत्न किया जाता है। इस योजना में शिक्षा, प्रशिक्षण, स्वास्थ्य, कुटीर उद्योगों के विकास, कृषि संचार तथा समाज सुधार पर बल दिया जाता है।

सामुदायिक विकास योजना के उद्देश्य 

सामुदायिक विकास योजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण जीवन का सर्वागीण विकास करना तथा ग्रामीण समुदाय की प्रगति एवं श्रेष्ठतर जीवन-स्तर के लिए पथ प्रदर्शन करना है। इस रूप में सामुदायिक विकास कार्यक्रम के उद्देश्य इतने व्यापक है कि इनकी कोई निश्चित सूची बना सकना एक कठिन कार्य है। इसके पश्चात भी विभिन्न विद्वानों ने प्राथमिकता के आधार पर सामुदायिक विकास कार्यक्रम के अनेक उद्देश्यों का उल्लेख किया है।

डॉ. दुबे ने (S.C. Dube)सामुदायिक विकास योजना के उद्देश्य को भागों में विभाजित करके स्पष्ट किया है:

  1. देश का कृषि उत्पादक उचित मात्रा में बढ़ाने का प्रयत्न करना, संचार की सुविधाओं में वृद्धि करना, शिक्षा का प्रसार करना तथा ग्रामीण स्वास्थ्य और सफाई की दशा में सुधार करना। 
  2. गाँवों में सामाजिक तथा आर्थिक जीवन को बदलने के लिए सुव्यवस्थित रूप से सांस्कृतिक परिवर्तन की प्रक्रिया का आरम्भ करना। 

भारत सरकार के सामुदायिक विकास मंत्रालय द्वारा इस योजना के 8 उद्देश्यों को स्पष्ट किया गया है। ये उद्देश्य इस प्रकार हैं: -

  1. ग्रामीण जनता के मानसिक दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना। 
  2. गाँवों में उत्तरदायी तथा कुशल नेतृत्व का विकास करना। 
  3. सम्पूर्ण ग्रामीण जनता को आत्मनिर्भर एवं प्रगतिशील बनाना। 
  4. ग्रामीण जनता के आर्थिक स्तर को ऊँचा उठाने के लिए एक ओर कृषि का आधुनिकीकरण करना तथा दूसरी ओर ग्रामीण उद्योगों को विकसित करना। 
  5. इन सुधारों को व्यावहारिक रूप देने के लिए ग्रामीण स्त्रियों एवं परिवारों की दशा में सुधार करना। 
  6.  राष्ट्र के भावी नागरिकों के रूप में युवकों के समुचित व्यक्तित्व का विकास करना। 
  7. ग्रामीण शिक्षकों के हितों को सुरक्षित रखना। 
  8. ग्रामीण समुदाय के स्वास्थ्य की रक्षा करना। 

सामुदायिक विकास कार्यक्रम

भारत में सामुदायिक विकास कार्यक्रम को ग्रामीण जीवन के विकास के लिए अब एक आवश्यक शर्त के रूप में देखा जाने लगा है। यद्यपि विगत कुछ वर्षों से योजना की सफलता के बारे में तरह-तरह की आशंकाएँ की जाने लगी थीं लेकिन इस योजना की उपलब्धियों को देखते हुए धीरे-धीरे ऐसी आशंकाओं का समाधान होता जा रहा है। इस कथन की सत्यता इसी तथ्य से आँकी जा सकती है कि सन् 1952 में इस समय सम्पूर्ण भारत में इन विकास खण्ड़ों की संख्या 5,304 है तथा इनके द्वारा आज देश की लगभग सम्पूर्ण ग्रामीण जनसंख्या को विभिन्न सुविधाएँ सुविधाएँ प्रदान की जा रही है।

सामुदायिक विकास कार्यक्रम के वर्तमान दायित्वों तथा उपलब्धियों को समझना आवश्यक हो जाता है।

1. समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम - 

समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम सामुदायिक विकास खण्डों द्वारा पूरा किया जाने वाला सबसे अधिक महत्चपूर्ण कार्यक्रम है। इसी को अक्सर समन्वित सामुदायिक विकास कार्यक्रम’ भी कह दिया जाता है।

2. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम- 

गाँवों में बेरोजगारी की समस्या का मुख्य सम्बन्ध मौसमी तथा अर्द्ध-बेरोजगारी से है। इसके लिए किसानों को एक ओर कृषि के अतिरिक्त साधन उपलब्ध कराने की आवश्यकता है तो दूसरी ओर अधिक निर्धन किसानों को खाली समय में रोजगार के नये अवसर देना आवश्यक है। आरम्भ में ‘काम के बदले अनाज’ योजना के द्वारा इस आवश्यकता को पूरा करने का प्रयत्न किया गया था लेकिन सन् 1981 से इसके स्थान पर ‘राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम’ आरम्भ किया गया। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य खाली समय में कृशकों को रोजगार के अतिरिक्त अवसर देना; उन्हें कृषि के उन्नत उपकरण उपलब्ध कराना तथा ग्रामीणों की आर्थिक दशा में सुधार करना है।

3. सूखा-ग्रस्त क्षेत्रों के लिए कार्यक्रम- 

हमारे देश में अनेक हिस्से ऐसे हैं जहॉ अक्सर सूखे की समस्या उत्पन्न होती रहती है। ऐसे क्षेत्रों के लिए उपर्युक्त कार्यक्रम इस उद्देश्य से आरम्भ किया गया है कि किसानों को कम पानी में भी उत्पन्न होने वाली फसलों की जानकारी दी जा सके, जल स्त्रोतों का अधिकाधिक उपयोग किया जा सके, वृक्षारोपण में वृद्धि की जा सके तथा पशुओं की अच्छी नस्ल को विकसित करके ग्रामीण निर्धनता को कम किया जा सके।

5. मरूस्थल विकास कार्यक्रम - 

भारत में सामुदायिक विकास खण्डों के माध्यम से यह कार्यक्रम सन् 1977-78 से आरम्भ किया गया। इसका उद्देश्य रेगिस्तानी, बंजर तथा बीहड़ क्षेत्रों की भूमि पर अधिक से अधिक हरियाली लगाना, जल-स्रोतों को ढूंढकर उनका उपयोग करना, ग्रामों में बिजली देकर ट्यूब-वैल को प्रोत्साहन देना तथा पशु-धन और बागवानी का विकास करना है।

6. जनजातीय विकास की अग्रगामी योजना - 

इस योजना के अन्तर्गत आन्ध्र प्रद्रेश, मध्य प्रद्रेश,बिहार तथा उड़ीसा के कुछ आदिवासी बहुल क्षेत्रों में जनजातीय विकास के प्रयत्न किये गये हैं। इसके द्वारा आर्थिक विकास, संचार, प्रशासन, कृषि तथा सम्बन्धित क्षेत्रों में जनजातीय समस्याओं का गहन अध्ययन करके कल्याण कार्यक्रमों को लागू किया जा रहा है।

7. पर्वतीय विकास की अग्रगामी योजना - 

पर्वतीय क्षेत्र के किसानों का सर्वांगीण विकास करने तथा उनके रहन-सहन के स्तर में सुधार करने के लिए हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश तथा तमिलनाडु में यह कार्यक्रम आरम्भ किया गया। आरम्भ में इसे केवल पॉचवी पंचवश्र्ाीय योजना की अवधि तक ही चालू रखने का प्रावधान था लेकिन बाद में इस कार्यक्रम पर छठी योजना की अवधि में भी कार्य किया गया।

8. पौष्टिक आहार कार्यक्रम - 

यह कार्यक्रम विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा यूनीसेफ की सहायता से केन्द्र सरकार द्वारा संचालित किया जाता है। इसका उद्देश्य पौष्टिक आहार के उन्नत तरीकों से ग्रामीणों को परिचित कराना तथा प्राथमिक स्तर पर स्कूली बच्चों के लिए दिन में एक बार पौष्टिक आहार की व्यवस्था करना है।

9. पशु पालन - 

पशुओं की नस्लों में सुधार करने तथा ग्रामीणों के लिए अच्छी नस्ल के पशुओं की आपूर्ति करने में भी विकास खण्डों का योगदान निरन्तर बढ़ता जा रहा है। अब प्रत्येक विकास खण्ड द्वारा औसतन एक वर्श में उन्नत किसत के 20 पशुओं तथा लगभग 400 मुर्गियों की सप्लाई की जाती है तथा वर्श में औसतन 530 पशुओं का उन्नत तरीकों से गर्भाधान कराया जाता है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में पशुओं की नस्ल में निरन्तर सुधार हो रहा है।

10. ऐच्छिक संगठनों को प्रोत्साहन -

सामुदायिक विकास कार्यक्रम की सफलता का मुख्य आधार इस योजना में ऐच्छिक संगठनों का अधिकाधिक सहभाग प्राप्त होना है। इस कार्य के लिए ऐच्छिक संगठनों के पंजीकरण के नियमों को सरल बनाना, कार्यकारिणी के सदस्यों को प्रशिक्षण देना, विशेष कार्यक्रमों के निर्धारण में सहायता देना, रख-रखाव के लिए अनुदान देना, उनकी कार्यप्रणाली का अवलोकन करना, महिला मण्डलों को प्रेरणा पुरस्कार देना तथा कुछ चुनी हुई ग्रामीण महिलाओं को नेतृत्व का प्रशिक्षण देना आदि वे सुविधाऐं हैं जिससे ऐच्छिक संगठन ग्रामीण विकास के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

11. स्वास्थ्य तथा परिवार नियोजन - 

ग्रामीणों में छोटे आकार के परिवारों के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने तथा उनके स्वास्थ्य के स्तर में सुधार करने के लिए सामुदायिक विकास खण्डों ने विशेष सफलता प्राप्त की है। जून 1997 तक हमारे देश में 22,000 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों तथा 1.36 लाख से भी अधिक उपकेन्द्रों के द्वारा ग्रामीण जनसख्या के स्वास्थ्य में सुधार करने का प्रयत्न किया गया था। अब विकास खण्डों द्वारा ग्रामीण विस्तार सेवाओं के अन्तर्गत ग्रामीणों को जनसंख्या सम्बन्धी शिक्षा देने का कार्य भी किया जाने लगा है।

12. शिक्षा तथा प्रशिक्षण- 

सामुदायिक विकास योजना के द्वारा ग्रामीण शिक्षा के व्यापक प्रयत्न किये गये इसके लिए गांवों में महिला मण्डल, कृशक दल तथा युवक मंगल दल स्थापित किये गये। समय-समय पर प्रदर्शनियों, उत्सवों तथा ग्रामीण नेताओं के लिए प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन करके उन्हें कृषि और दस्तकारी की व्यावहारिक शिक्षा दी जाती है।