विज्ञान, अनुसंधान और विकास पर टिकी है भविष्य के भारत की नींव
संदर्भकिसी भी देश का विकास वहाँ के लोगों के विकास के साथ जुड़ा हुआ होता है। इसके मद्देनज़र यह ज़रूरी हो जाता है कि जीवन के हर पहलू में विज्ञान-तकनीक और शोध कार्य अहम भूमिका निभाएँ। विकास के पथ पर कोई देश तभी आगे बढ़ सकता है जब उसकी आने वाली पीढ़ी के लिये सूचना और ज्ञान आधारित वातावरण बने और उच्च शिक्षा के स्तर पर शोध तथा अनुसंधान के पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हों। Show
जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान के साथ जय अनुसंधान भीइस वर्ष की शुरुआत में पंजाब के जालंधर स्थित लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में 106वीं भारतीय विज्ञान कॉन्ग्रेस का आयोजन किया गया था। इसी समारोह में ‘भविष्य का भारत: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी’ विषय पर बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान में “जय अनुसंधान” भी जोड़ दिया था। उनका कहना था कि यह विज्ञान ही है जिसके माध्यम से भारत अपने वर्तमान को बदल रहा है और अपने भविष्य को सुरक्षित रखने का कार्य कर रहा है। अनुत्तरित हैं कुछ सवालइसमें दो राय नहीं है कि भारतीय वैज्ञानिकों का जीवन और कार्य प्रौद्योगिकी विकास तथा राष्ट्र निर्माण के साथ गहरी मौलिक अंतःदृष्टि के एकीकरण का शानदार उदाहरण रहा है। लेकिन कुछ तथ्य ऐसे भी हैं जो इशारा करते हैं कि भारत आज विश्व में वैज्ञानिक प्रतिस्पर्द्धा के क्षेत्र में कहाँ ठहरता है? भारत की अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में क्या स्थिति है? आखिर क्यों भारत शोध कार्यों के मामले में चीन, जापान जैसे देशों से पीछे है? ऐसी कौन-सी चुनौतियाँ हैं जो अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में भारत की प्रगति के पहिये को रोक रही हैं? इस दिशा में क्या कुछ समाधान किये जा सकते हैं? क्या है अनुसंधान और विकास?यूनेस्को (UNESCO) के अनुसार, ज्ञान के भंडार को बढ़ाने के लिये योजनाबद्ध ढंग से किये गए सृजनात्मक कार्य को ही रिसर्च यानी अनुसंधान एवं डेवलपमेंट यानी विकास कहा जाता है। इसमें मानव जाति, संस्कृति और समाज का ज्ञान शामिल है और इन उपलब्ध ज्ञान के स्रोतों से नए अनुप्रयोगों (Applications) को विकसित करना ही अनुसंधान और विकास का मूल उद्देश्य है। रिसर्च एंड डेवलपमेंट (R&D) के तहत प्रमुखतः तीन प्रकार की गतिविधियाँ शामिल हैं- बुनियादी अनुसंधान (Basic Research), अनुप्रयुक्त अनुसंधान (Applied Research) और प्रयोगात्मक विकास (Experimental Development). अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियाँ
सरकार दे रही है बढ़ावाभारत में अनुसंधान और विकास कार्यों की रफ्तार कई क्षेत्रों में तेज़ी से बढ़ रही है। सरकार के सहयोग और समर्थन के साथ, वैज्ञानिक अनुसंधान के माध्यम से शिक्षा, कृषि, स्वास्थ्य, अंतरिक्ष अनुसंधान, विनिर्माण, जैव-ऊर्जा, जल-तकनीक, और परमाणु ऊर्जा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में पर्याप्त निवेश और विकास भी हुआ है। हम धीरे-धीरे परमाणु प्रौद्योगिकी में भी आत्मनिर्भर हो रहे हैं। शोध के क्षेत्र में CSIR, DRDO, ICAR, ISRO, ICMR, C-DAC, NDRI, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IITs) और भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) जैसे कई विश्वविख्यात संस्थान भारत में हैं। ऐसे में भारत में शोध कार्य की दिशा में हुई प्रगति को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन सच्चाई यह भी है कि ऐसे कई अवरोध हैं जिन्हें पार करना भारतीय अनुसंधान और विकास के लिये बहुत ज़रूरी है। अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में भारत के समक्ष चुनौतियाँकुछ चुनिंदा क्षेत्रों में उपलब्धियों को छोड़ दें तो वैश्विक संदर्भ में भारत के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विकास तथा अनुसंधान की स्थिति धरातल पर उतनी मज़बूत नहीं, जितनी कि भारत जैसे बड़े देश की होनी चाहिये। ऐसे में कुछ तथ्यों पर गौर करना ज़रूरी है। जैसे- भारत विश्व में वैज्ञानिक प्रतिद्वंद्विता के नज़रिये से कहाँ है? नोबेल पुरस्कार एक विश्व-प्रतिष्ठित विश्वसनीय पैमाना है जो विज्ञान और शोध के क्षेत्र में हासिल की गई उपलब्धियों के जरिये किसी देश की वैज्ञानिक ताकत को बतलाता है। इस मामले में हमारी उपलब्धि लगभग शून्य है। वर्ष 1930 में सर सी.वी. रमन को मिले नोबेल पुरस्कार के बाद से अब तक कोई भी भारतीय वैज्ञानिक इस उपलब्धि को हासिल नहीं कर पाया। कारण स्पष्ट है कि देश में मूलभूत अनुसंधान के लिये न तो उपयुक्त अवसंरचना है, न वांछित परियोजनाएँ हैं और न ही उनके लिये पर्याप्त धन उपलब्ध है। पहले और आज में ज़मीन-आसमान का अंतर
CSIR का एक हालिया सर्वे बताता है कि हर साल लगभग 3000 अनुसंधान/शोध-पत्र तैयार होते हैं, लेकिन इनमें कोई नया आइडिया या विचार नहीं होता। विश्वविद्यालयों तथा निजी और सरकारी क्षेत्र की प्रयोगशालाओं में सकल खर्च भी बहुत कम है। नवीनतम आँकड़ों के अनुसार यह कुल GDP का 1% भी नहीं है। वैज्ञानिक न जाने कब से यह सीमा 2% तक बढ़ाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन कोई भी सरकार इस दिशा में शायद ही कुछ कर पाई। यही नहीं कई प्रतिष्ठित राष्ट्रीय मंचों पर भी यह मुद्दा चर्चा से गायब रहता है। ऐसे में यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि अनुसंधान/शोध पत्रों के नज़रिये से भी वैश्विक विज्ञान में भारत का योगदान केवल 2-3% है। स्पष्ट है कि आर्थिक प्रगति और सामाजिक विकास सुनिश्चित करने के लिये जितना ज़ोर राष्ट्रीय स्तर पर विज्ञान और प्रौद्योगिकी विकास पर दिया जाना चाहिये, उतका लेशमात्र भी नहीं दिया जाता। क्या कर रही है सरकार?
सरकार द्वारा की गई नवीनतम पहलें
आगे की राह क्या हो?
अभ्यास प्रश्न: अनुसंधान और विकास से आप क्या समझते हैं? ‘भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान का स्तर गिरता जा रहा है, क्योंकि शोध कार्यों के क्षेत्र में करियर उतना आकर्षक नहीं है, जितना कारोबार, व्यवसाय, इंजीनियरिंग या प्रशासन में है।‘ कथन का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। इस आर्टिकल को सुनने के लिये दिये गए लिंक पर क्लिक करें विज्ञान एवं तकनीकी का क्या अर्थ है?विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधुनिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और इसने मानव सभ्यता को गहराई में जाकर प्रभावित किया है। आधुनिक जीवन में तकनीकी उन्नति ने पूरे संसार में हमें बहुत अधिक उल्लेखनीय अंतर्दृष्टि दी है। वैज्ञानिक क्रान्तियों ने 20वीं शताब्दी में अपनी पूरी गति पकड़ी और 21वीं सदी में और भी अधिक उन्नत हो गई।
विश्व में विज्ञान और तकनीकी रूप में जनशक्ति में भारत का कौन सा स्थान है?विश्व की तीसरी सबसे बड़ी वैज्ञानिक और तकनीकी जनशक्ति भी भारत में ही है।
विज्ञान की प्रगति से ही देश का विकास संभव है कैसे?वैज्ञानिक आविष्कारों ने देश के लगभग सभी क्षेत्रों के विकास में मदद की है। इन आविष्कारों की मदद से आज लोग विभिन्न कार्यों को संभालने के लिए बेहतर तरीके से सुसज्जित हो गए हैं – चाहे वह छोटे घर के कार्य हो या बड़े कॉर्पोरेट प्रोजेक्ट्स हो। वैज्ञानिक खोजों से लाभान्वित होने वाले विभिन्न क्षेत्रों में कृषि क्षेत्र भी है।
भारत में विज्ञान और तकनीकी प्रगति के लेखक कौन है?इन आधुनिक वैज्ञानिक खोजों की दौड़ में भारत के जगदीश चन्द्र बसु, प्रफुल्ल चन्द्र राय, सी वी रमण, सत्येन्द्रनाथ बोस, मेघनाद साहा, प्रशान्त चन्द्र महलनोबिस, श्रीनिवास रामानुजन्, हरगोविन्द खुराना आदि का वनस्पति, भौतिकी, गणित, रसायन, यांत्रिकी, चिकित्सा विज्ञान, खगोल विज्ञान आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान है।
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