संवेग क्या होते हैं बच्चों में पाए जाने वाले कोई दो संवेग लिखिए? - sanveg kya hote hain bachchon mein pae jaane vaale koee do sanveg likhie?

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संवेग वस्तुतः ऐसी प्रकिया है, जिसे व्यक्ति उद्दीपक द्वारा अनुभव करता है। संवेदनात्मक अनुभव:- संवेदन चेतन उत्पन्न करने की अत्यंत प्रारम्भिक स्थिति है। शिशु का संवेदन टूटा-फूटा अधूरा होता है। प्रौढ़ की संवेदना विकृतजन्य होती है।

भावनाओं का कोई निश्चित वर्गीकरण मौजूद नहीं है, हालांकि कई वर्गीकरण प्रस्तावित किये गये हैं। इनमें से कुछ वर्गीकरण हैं:

  • 'संज्ञानात्मक' बनाम 'गैर-संज्ञानात्मक' भावनाएं
  • स्वाभाविक भावनाएं (जो एमिग्डाला/मस्तिष्क के एक विशेष हिस्से से उत्पन्न होती है), बनाम संज्ञानात्मक भावनाएं (जो प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स/ मस्तिष्क के अगले हिस्से से उत्पन्न होती है)
  • बुनियादी बनाम जटिल: जहाँ मूल भावनाएं और अधिक जटिल हो जाती हैं।
  • अवधि के आधार पर वर्गीकरण : कुछ भावनाएं कुछ सेकंड की अवधि के लिए होती हैं (उदाहरण के लिए आश्चर्य), जबकि कुछ कई वर्षों तक की होती हैं (उदाहरण के लिए, प्यार).

भावना और भावना के परिणामों के बीच संबंधित अंतर मुख्य व्यवहार और भावनात्मक अभिव्यक्ति है। अपनी भावनात्मक स्थिति के परिणामस्वरूप अक्सर लोग कई तरह की अभिव्यक्तियां करते हैं, जैसे रोना, लड़ना या घृणा करना. यदि कोई बिना कोई संबंधित अभिव्यक्ति के भावना प्रकट करे तो हम मान सकते हैं की भावनाओं के लिए अभिव्यक्ति की आवश्यकता नहीं है। न्यूरोसाइंटिफिक (स्नायुविज्ञान) शोध से पता चलता है कि एक "मैजिक क्वार्टर सैकंड" होता है जिसके दौरान भावनात्मक प्रतिक्रिया बनने से पहले विचार को जाना जा सकता है। उस पल में, व्यक्ति भावना को नियंत्रित कर सकता है।[1]

[[जेम्स-लैंग सिद्धांत] बताता है कि शारीरिक परिवर्तनों से होने वाले अनुभवों के कारण बड़े पैमाने पर भावनाओं की अनुभूति होती है। भावनाओं के प्रति क्रियात्मक दृष्टिकोण, (उदाहरण के लिए, निको फ्रिज्दा और फ्रितास-मेगाल्हेस) से पता चलता है कि भावनाएं किसी विशेष क्रिया के फलस्वरूप एक विषय के रूप में सुरक्षित रखने के लिए उभरी हैं।

वर्गीकरण[संपादित करें]

कुछ बुनियादी और जटिल श्रेणियां हैं, जहाँ कुछ बुनियादी भावनाओं को कुछ हद तक जटिल भावनाओं में परिवर्तित किया जा सकता है (उदाहरण के लिए, पॉल एकमेन). एक स्थिति में जटिल भावनाएं, बुनियादी भावनाओं के साथ जुडी सांस्कृतिक स्थिति या गठजोड़ के कारण उपज सकती हैं। वैकल्पिक रूप से, मूल रंगों के मिश्रण के अनुरूप,मूल भावनाएं मानव की भावनाओं के अनुभव से मिल कर भावनाओं का पूर्ण इन्द्रधनुष बना सकती हैं। उदाहरण के लिए पारस्परिक क्रोध और घृणा का मिश्रण अवमानना को जन्म दे सकता है।[कृपया उद्धरण जोड़ें]

रॉबर्ट प्लुत्चिक ने एक त्रिआयामी "सर्कम्प्लेक्स मॉडल" प्रस्तावित किया है जो भावनाओं के बीच संबंधों को दर्शाता है। यह मॉडल एक रंगीन चक्र (व्हील) के समान है। लम्बवत माप तीव्रता को दर्शाते हैं और सर्कल (गोला) भावनाओं के बीच समानता की डिग्री बताता है। उन्होनें आठ प्राथमिक भावनाओं को चार विपरीत भावनाओं के जोड़े में व्यवस्थित किया। कुछ लोग मेटा इमोशंस के अस्तित्व के बारे में भी तर्क देते हैं जो भावनाओं के बारे में भावनाएं हैं।[कृपया उद्धरण जोड़ें]

विशिष्ट भावनाओं का एक अन्य अर्थ उनके होने वाले समय से संबंधित है। कुछ भावनाएं कुछ सैकंड की होती हैं (जैसे आश्चर्य), जबकि कुछ कई सालों तक रह सकती हैं (जैसे प्यार). बाद वाली को एक लम्बी अवधि की प्रवृत्ति के रूप में माना जा सकता है जिसमे एक उचित भावना की बजाय केवल किसी के प्रति लगाव की भावना है (हालांकि यह विवादित है). भावनात्मक घटनाओं और भावनात्मक स्वभावों के बीच अंतर है। स्वभाव चरित्र के लक्षणों के आधार पर भी तुलना योग्य है जिसमें सामान्यतः विभिन्न वस्तुओं के लिए, विशेष भावनाओं के अनुभव के अनुसार, किसी का स्वभाव बदलता है। उदाहरण के लिए, एक चिड़चिड़ा व्यक्ति आम तौर पर दूसरों की बजाय जल्दी अथवा तेज़ी से चिढ़ जाता है। अंत में, कुछ शोधकर्ताओं (जैसे क्लाउस शेरेर,2005) ने भावनाओं को 'प्रभावित स्थिति की' सामान्य श्रेणी में डाला है, जहाँ प्रभावित/उत्तेजित स्थितियों में भावनाओं से सम्बंधित घटनाएं भी शामिल हैं जैसे ख़ुशी और दर्द, भावनात्मक स्थितियां (जैसे भूख या जिज्ञासा), मूड, मनोवृति और लक्षण.[कृपया उद्धरण जोड़ें]

घृणा से संबंधित तंत्रिका की fMRI प्रक्रिया द्वारा जांच की गयी। इस प्रयोग में लोगों द्वारा उन लोगो की तस्वीर को देखते हुए, जिनसे वे घृणा करते थे, उनके दिमाग का स्कैन किया गया। परिणामों ने दिखाया की उनके मस्तिष्क के बीच के हिस्से, दायें हिस्से, प्रिमोटर कोर्टेक्स के दोनों ओर, मस्तिष्क के गोलार्ध और मानव मस्तिष्क के मेडिकल इंसुला के दोनों भागों में क्रियाशीलता बढ़ गयी। शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकला कि घृणा को अनुभव करते समय लोगों के मस्तिष्क में एक विशिष्ट आकृति (पैटर्न) बन जाती है। साँचा:Emotion

सिद्धांत[संपादित करें]

भावनाओं से संबंधित सिद्धांत प्राचीन यूनान के समय के विचारों के साथ प्लेटो और अरस्तू के समय में ले जाते हैं। हमें रेने डेसकार्टेस[2], बारूक स्पिनोज़ा[3] और डेविड ह्यूम जैसे दार्शनिकों के काम के रूप में परिष्कृत सिद्धांत भी मिलते हैं। भावनाओं से संबंधित बाद के सिद्धांत शोधों में उन्नति के परिणामस्वरूप प्राप्त हुए हैं। ज्यादातर सिद्धांत अलग नहीं हैं और कई शोधकर्ताओं ने अपने काम में विभिन्न दृष्टिकोण शामिल किये हैं।

दैहिक सिद्धांत[संपादित करें]

भावनाओं के दैहिक सिद्धांत के अनुसार, शरीर भावनाओं के प्रति आवश्यक निर्णयों की बजाए सीधे प्रतिक्रिया करता है। इस तरह के सिद्धांतों का पहला आधुनिक संस्करण 1880 में विलियम जेम्स ने प्रस्तुत किया। 20 वीं सदी में इस सिद्धांत ने समर्थन खो दिया, लेकिन हाल ही में जॉन कचिओप्पो, एंटोनियो दमासियो, जोसेफ ई. लीदु और रॉबर्ट ई. ज़ेजोंक जैसे शोधकर्ताओं के न्यूरोलॉजिकल (कोशिकाविज्ञानी) प्रमाणों के फलस्वरूप, इसने फिर से लोकप्रियता हासिल कर ली है।

जेम्स-लैंग सिद्धांत[संपादित करें]

विलियम जेम्स ने एक लेख 'व्हॉट इज़ एन इमोशन?' (Mind, 9, 1884: 188-205), के द्वारा यह तर्क दिया कि ज्यादातर भावनात्मक अनुभव शारीरिक बदलावों के कारण होते हैं। लगभग इसी समय डैनिश मनोवैज्ञानिक कार्ल लैंग ने भी मिलता जुलता सिद्धांत पेश किया, इसलिए इसे जेम्स-लैंग सिद्धांत के रूप में जाना जाता है। इस सिद्धांत और इसके तथ्यों के अनुसार, परिस्थिति के बदलने से शारीरिक बदलाव होता है। जैसे कि जेम्स कहते हैं "शारीरिक बदलाव होने की अवधारणा ही भावना है ". जेम्स दावा करते हैं कि "हमें उदासी अनुभव होती हैं क्योंकि हम रोते हैं, लड़ाई के समय क्रोधित होते हैं, कांपने के कारण डरते हैं और ऐसा भी हो सकता है कि, माफ़ी मांगते हुए, क्रोध या डर के समय हम न रोयें, न लड़ें या न कांपें.[4]

इस सिद्धांत को प्रयोगों द्वारा साबित किया गया है, जिसमे शरीर की स्थितियों में बदलाव ला कर वांछित भावना प्राप्त की जाती है।[5] इस प्रकार के प्रयोगों को चिकत्सा में भी प्रयुक्त किया गया है (जैसे लॉफ्टर थेरेपी, डांस थेरेपी). जेम्स-लैंग के सिद्धांत को अक्सर गलत समझा जाता है क्योंकि यह विरोधाभासी है। ज्यादातर लोगों का मानना है कि भावनाएं, भावना संबंधित क्रियाओं को बढ़ावा देती हैं : जैसे "मैं रो रहा हूँ क्योंकि मैं उदास हूँ", या "मैं भागा क्योंकि मैं डर गया". इसके विपरीत, जेम्स-लैंग का सिद्धांत ज़ोर देता है कि हम पहले स्थिति के अनुसार प्रतिक्रिया करते हैं (भावना उत्पन्न होने से पहले रोते या दूर भाग जाते हैं) और इसके बाद हम अपनी क्रियाओं को भावनात्मक प्रतिक्रिया से जोड़ते हैं। इस प्रकार से, भावनाएं हमारी अपनी क्रियाओं की व्याख्या करती हैं तथा इन्हें व्यवस्थित करती हैं।

जेम्स-लैंग के सिद्धांत को अब ज्यादातर छात्रों द्वारा नकार दिया गया है।

टिम डल्ग्लेइश (2004) के निम्नलिखित कथन के अनुसार:

The James-Lang theory has remained influential. Its main contribution is the emphasis it places on the embodiment of emotions, especially the argument that changes in the bodily concomitants of emotions can alter their experienced intensity. Most contemporary neuroscientists would endorse a modified James-Lang view in which bodily feedback modulates the experience of emotion." (p. 583)

जेम्स-लैंग के सिद्धांत के साथ एक समस्या यह है कि यह क्रिया के परिणाम पर केन्द्रित है (शारीरिक अवस्था भावनाओं का कारण बनती हैं और इसे प्राथमिकता देती हैं), न कि भावनात्मक अनुभवों से होने वाले शारीरिक प्रभावों पर. (जो कि मेरे विचार में आज के दौर में बायोफीडबैक अध्ययनों और एम्बोडिमेंट थ्योरी में उतने ही प्रभावी है).

न्यूरोबायोलॉजिकल सिद्धांत[संपादित करें]

मस्तिष्क संरचना की तंत्रिकाओं की मैपिंग से मिली जानकारी से, मानव भावनाओं की न्यूरोबायोलॉजिकल व्याख्या यह है कि भावना एक प्रिय या अप्रिय स्थिति है जोस्तनधारी के मस्तिष्क में पैदा होती है। यदि इसकी सरीसृपों से तुलना की जाये तो भावनाओं का विकास, सामान्य हड्डियों वाले जंतु का स्तनधारी के रूप में बदलने के समान होगा, जिनमेंं न्यूरोकैमिकल (उदाहरण के लिए डोपामाइन, नोराड्रेनेलिन और सेरोटोनिन) में मस्तिष्क की गतिविधि के स्तर के अनुसार उतार-चढ़ाव आता है, जो कि शरीर के हिलने डुलने, मनोभावों तथा मुद्राओं में परिलक्षित होता है।

उदाहरण के लिए, प्यार की भावना को स्तनधारी के मस्तिष्क के पेलियोसर्किट की अभिव्यक्ति माना जाता है (विशेष रूप से सिंगुलेट जाइरस मॉड्यूल की), जिससे देखभाल, भोजन कराने और सोंदर्य जैसी भावनाओं का बोध होता है। पेलियोसर्किट शारीरिक भावनाओं को तंत्रिकाओं द्वारा प्रदर्शित करने का माध्यम है जो बोलने के लिए बनी कोर्टिकल तंत्रिका से लाखों वर्ष पहले बनी थी। इसमें पहले से बने हुए रास्ते या मस्तिष्क के अगले हिस्से, ब्रेन स्टेम तथा मेरु रज्जुमें तंत्रिका कोशिकाओं का जाल होता है। इनका उदभव क्रियाएं नियंत्रित करने के लिए स्तनधारियों के पूर्वजों से भी पहले हुआ है, लगभग जबड़ेरहित मछली के समय के आस पास.

माना जाता है कि, स्तनधारी के मस्तिष्क के विकसित होने से पहले, जानवरों की ज़िन्दगी, स्वचालित, सचेत और नपी तुली थी। सरीसृपों का शरीर दृष्टि के संवेदी संकेतों, आवाज़, स्पर्श, रसायन, गुरुत्वाकर्षण के प्रति, पूर्व निर्धारित शरीर क्रियाओं और मुद्राओं के साथ प्रतिक्रिया करता है। रात में सक्रिय होने वाले स्तनधारियों के आगमन के साथ, लगभग 180 मिलियन वर्ष पहले, गंध ने एक प्रभावी तंत्रिका के रूप में दृष्टि का स्थान ले लिया और सूंघने वाली तंत्रिका के माध्यम से प्रतिक्रिया करने के और रास्ते बने, जो कि माना जाता है कि आगे चल कर स्तनधारियों की भावनाओं और भावनात्मक याददाश्त के रूप में विकसित हुए. जुरासिक काल में, स्तनधारियों ने सरीसृपों की तुलना में अपनी सूंघने की क्षमता का सफलतापूर्वक उपयोग किया - इसीलिए स्तनधारियों के मस्तिष्क कीघ्राण तंत्रिका का भाग सरीसृपों की तुलना में बड़ा होता है। ये गंध धीरे धीरे तंत्रिकाओं का खाका बनाती गयीं जिससे आगे चल कर हमारे मस्तिष्क की संरचना बनी.

माना जाता है कि भावनाएं मस्तिष्क के उस क्षेत्र की कार्यशीलता से संबंधित है जो हमें निर्देश देता है, हमारे व्यवहार को प्रेरित करता है और हमारे इर्द गिर्द होने वाली घटनाओं के महत्त्व की व्याख्या करता है। ब्रोका (1878), पेपेज़ (1937) और मैक्लीन (1952) की महत्वपूर्ण खोजें बताती हैं कि भावनाएं मस्तिष्क के मध्य में संरचनाओं के समूह से जुड़ी होती है, जिसे लिम्बिक सिस्टम कहते हैं, जिसमे हाइपोथालामस, सिंगुलेट कोर्टेक्स, हिप्पोकाम्पि और अन्य संरचनाएं शामिल हैं। हाल ही में हुए अनुसंधानों से पता चला है कि इसमें से कुछ लिम्बिक संरचनाएं, दूसरों के विपरीत, भावनाओं से उस तरह से सीधी नहीं जुड़ी हैं जबकि कुछ गैर लिम्बिक संरचनाएं अधिक महत्व की पाई गयीं हैं।

प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स[संपादित करें]

इस बात के पर्याप्त प्रमाण है कि बांया प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स उस उत्तेजना से क्रियाशील होता है जो सकारात्मक सोच से उत्पन्न होती है।[6] यदि आकर्षक उत्तेजना मस्तिष्क के चुनिंदा हिस्से को सक्रिय कर पाए तो तर्क पूर्ण ढंग से उल्टा होना चाहिए, अर्थात अधिक सकारात्मक ढंग से निर्णय लेने के लिए मस्तिष्क के उस हिस्से की चुनिंदा क्रियाशीलता को उत्तेजना उत्पन्न करनी चाहिए. इसका प्रदर्शन माध्यम आकर्षण वाले उत्तेजक दृश्यों[7] के साथ किया गया था और बाद में इसका विस्तार करके नकारात्मक उत्तेजना को शामिल करके इसे दोहराया गया।[8]

प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स में न्यूरोबायोलॉजिकल मॉडलों ने भावनाओं के दो विपरीत परिणाम बताए. वैलेंस मॉडल ने भविष्यवाणी की कि गुस्सा, जो एक नकारात्मक भावना है, दाहिने प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स को क्रियाशील करेगा. डायरेक्शन मॉडल ने भविष्यवाणी की कि गुस्सा, एक दृष्टिकोण की भावना है, अतः बाएँ प्रीफ्रंटल को क्रियाशील करेगा. दूसरे मॉडल को समर्थन मिला ।[9]

हालांकि अभी भी कई सवाल अनुत्तरित हैं कि प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स में दृष्टिकोण की बेहतर विपरीत परिभाषा क्या है, दूर जाना (डायरेक्शन मॉडल), बिना किसी प्रतिक्रिया के, किन्तु ताकत तथा प्रतिरोध (मूवमेंट मॉडल) या बिना किसी प्रतिक्रिया के निष्क्रिय परिणाम (एक्शन टेंडेंसी मॉडल). शर्माने[10] तथा व्यवहार संबंधित बाधाओं[11] पर हुए शोधों से एक्शन टेंडेंसी मॉडल को समर्थन मिला है (निष्क्रियता दाहिने प्रीफ्रंटल की क्रियाशीलता से संबंधित है। सभी चारों मॉडलों द्वारा उत्पन्न विपरीत तथ्यों की जांच करने वाले शोधों ने भी एक्शन टेंडेंसी मॉडल का समर्थन किया है।[12][13]

होम्योस्टेटिक भावनाएं[संपादित करें]

एक और स्नायविक दृष्टिकोण, जो 2003 में बड क्रेग द्वारा वर्णित किया गया, भावनाओं की दो श्रेणियों के बीच का अंतर बताता है। "प्राचीन भावनाओं" में वासना, क्रोध और डर शामिल है और वे वातावरण के उन कारकों से उत्पन्न होते हैं, जो हमें प्रेरित करते हैं। (उपरोक्त उदाहरणों में मैथुन/हिंसा/भागना). "होम्योस्टेटिक भावनाएं" शरीर की आंतरिक अवस्था द्वारा उत्पन्न ज़ज्बात हैं, जो हमारे व्यवहार को व्यवस्थित करते हैं। प्यास, भूख, गर्म या ठंडा अनुभव करना (आंतरिक तापमान), नींद से वंचित महसूस करना, नमक खाने की इच्छा तथा हवा की इच्छा, ये सभी होम्योस्टेटिक भावनाओं के उदाहरण हैं; इनमें से प्रत्येक शारीरिक प्रणाली द्वारा दिया गया संकेत है जो कहता है कि "सब कुछ ठीक नहीं है। पियो/खाओ/छाया में जाओ/कुछ गरम पहनो/सो जाओ/नमकीन टुकड़ा चाटो/सांस लो." इसमें से किसी भी प्रणाली का संतुलन खराब होने पर, हम होम्योस्टेटिक भावना का अनुभव करने लगते हैं और यह भावना हमें वही कराती है, जो उस प्रणाली का संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है। दर्द एक होम्योस्टेटिक भावना है जो हमें बताती है "सब कुछ ठीक नहीं है। पीछे हटो और बचो"।[14][15]

संज्ञानात्मक सिद्धांत[संपादित करें]

कुछ ऐसे सिद्धांत हैं जो तर्क देते हैं कि, संज्ञानात्मक क्रिया - एक निर्णय, मूल्यांकन या विचार - किसी भावना को उत्पन्न करने के लिए आवश्यक है। रिचर्ड लॉरस के अनुसार यह इस तथ्य को प्रमाणित करने के लिए आवश्यक है कि भावना किसी चीज़ के बारे में या जानबूझ कर पैदा होती है। इस प्रकार की संज्ञानात्मक क्रिया चेतन या अवचेतन हो सकती हैं तथा वैचारिक प्रक्रिया का रूप ले सकती है या नहीं ले सकती है।

यहाँ लॉरस का एक प्रभावशाली सिद्धांत है : भावना एक बाधा है जो निम्न क्रम में उत्पन्न होती है : 1.) संज्ञानात्मक मूल्यांकन-व्यक्ति उस घटना का तर्कपूर्ण आकलन करता है जो भावना को इंगित करती है। 2. शारीरिक बदलाव - संज्ञानात्मक प्रतिक्रियाओं के फलस्वरूप जैविक बदलाव होते हैं, जैसे, दिल की धड़कन का बढ़ना या पिट्यूटरी एड्रिनिल की प्रतिक्रिया. 3. क्रिया - व्यक्ति भावना को अनुभव करता है और प्रतिक्रिया चुनता है। उदाहरण के लिए: जेनी एक साँप देखती है। 1.) जेनी सांप को देखती है, जिसके कारण उसे डर लगता है 2.) उसका दिल ज़ोर से धड़कने लगता है। एड्रिलिन का रक्त में प्रवाह तेज़ हो जाता है। 3. जेनी चिल्लाती है और भाग जाती है। लॉरस ज़ोर देकर कहते हैं कि भावनाओं की गुणवत्ता और तीव्रता को संज्ञानात्मक प्रतिक्रियाओं द्वारा नियंत्रित किया जाता है। ये प्रतिक्रियाएं बचाव रणनीति बनाती हैं जो व्यक्ति और उसके वातावरण के बदलाव के अनुसार भावनात्मक प्रतिक्रिया बनती है।

भावनाओं से संबंधित कुछ सिद्धांत ये तर्क देते हैं कि भावना के उत्पन्न होने के लिए निर्णय, मूल्यांकन या विचारों के रूप में संज्ञानात्मक क्रिया आवश्यक है। एक प्रमुख दार्शनिक व्याख्याता राबर्ट सी.सोलोमन हैं (उदाहरण के लिए, द पैशन, इमोशन एंड द मीनिंग ऑफ लाइफ, 1993). इसका दूसरा उदाहरण है, निको फ्रिज्दा द्वारा प्रस्तावित एक सिद्धांत जिसके अनुसार मूल्याकन की वजह से प्रवृत्तियां घटित होती है। यह सुझाव भी दिया गया है कि भावनाएं (अनुभव के ज्ञान, जज्बातों और आन्तरिक प्रतिक्रियाओं को प्रभावित करती है) आमतौर पर सूचना को क्रियान्वित करने तथा व्यवहार को प्रभावित करने के लिए शॉर्टकट की तरह प्रयुक्त होती हैं।[16]

अवधारणात्मक सिद्धांत[संपादित करें]

भावनाओं के दैहिक और संज्ञानात्मक सिद्धांत का एक नया संकर सिद्धांत अवधारणात्मक सिद्धांत है। यह सिद्धांत इस तर्क में अलग है की शारीरिक प्रतिक्रियाएं, भावनाओं पर केन्द्रित हैं, तथापि ये भावनाओं की सार्थकता पर ज़ोर देती है या इस विचार पर, कि भावनाएं किसी चीज़ के बारे में है जैसा कि संज्ञानात्मक सिद्धांतों द्वारा पाया गया है। इस सिद्धांत का नया दावा है कि इस प्रकार के अर्थ के लिए कल्पना पर आधारित संज्ञानात्मकता अनावश्यक है। बल्कि शारीरिक परिवर्तन खुद को परिस्थितियों के किसी कारणवश क्रिया में बदलने के कारण भावनाओं की सार्थक सामग्री के हिसाब से ढाल लेते हैं। इस संबंध में, भावनाएं मन की शक्ति के अनुरूप होती हैं, जैसी दृष्टि या स्पर्श, जो विभिन्न तरीकों से हमें वस्तु तथा दुनिया के बीच में संबंध के बारे में सूचना प्रदान करती है। इस दृष्टिकोण का एक परिष्कृत बचाव दार्शनिक जेसी प्रिंज़ की पुस्तक गट रियेक्शंज़ और मनोवैज्ञानिक जेम्स लेयर्ड की पुस्तक फीलिंग्स में पाया गया।

अफेक्टिव इवेंट्स सिद्धांत (भावात्मक घटना सिद्धांत)[संपादित करें]

यह संचार आधारित हावर्ड एम.वाइस तथा रसेल क्रोपानजेनो (1996), के द्वारा विकसित सिद्धांत है, जो भावनात्मक अनुभवों के कारणों, संरचनाओ और परिणामों (विशेषकर कार्य संदर्भों में) पर ध्यान देता है। यह सिद्धांत बताता है कि भावनाएँ घटनाओं द्वारा प्रभावित और घटित होती हैं जो परिणामस्वरूप नज़रिए और व्यवहार को प्रभावित करते हैं। यह सैद्धांतिक ढांचा उस समय पर भी जोर देता है जिसमे व्यक्ति अनुभव को महसूस करता है एवं जिसे भावनात्मक प्रकरण कहते हैं -"भावनात्मक स्थितियों का एक क्रम जो समय के साथ बढ़ता है और एक मूल विषय के आसपास व्यवस्थित होता है।" इस सिद्धांत को कई शोधकर्ताओं द्वारा भावना को संचार के द्वारा बेहतर ढंग से समझने के लिए प्रयुक्त किया गया है और इस पर हॉवर्ड एम् वाइस तथा डेनियल जे बील द्वारा अपने लेखोंरिफ्लेक्शन ऑन अफेक्टिव इवेंट्स थ्योरी में समीक्षा की है जो 2005 में रिसर्च ऑन इमोशन इन ऑर्गेनाइजेशन्स में प्रकाशित हुआ।

कैनन-बार्ड सिद्धांत[संपादित करें]

कैनन बार्ड सिद्धांत में, वाल्टर ब्रेडफोर्ड कैनन बॉडिली चेंजेस इन पेन, हंगर, फियर एंड रेज में भावनाओं के शारीरिक तथ्यों पर जेम्स-लैंग के प्रभावी सिद्धांत के विपरीत तर्क देते हैं। जहां जेम्स का तर्क था कि भावनात्मक व्यवहार अक्सर आगे की ओर बढ़ता है या भावना की व्याख्या करता है, कैनन और बार्ड का तर्क था कि पहले भावनाएं उत्पन्न होती हैं और उसके बाद विशिष्ट व्यवहार उत्पन्न होता है।

टू फैक्टर सिद्धांत[संपादित करें]

एक और संज्ञानात्मक सिद्धांत सिंगर-शाश्टर सिद्धांत है। यह प्रयोगों के अभिप्रायों पर आधारित है जो बताता है कि एक ही मानसिक अवस्था में होने के बावजूद एड्रेनेलिन के एक इन्जैकशन द्वारा व्यक्तियों की विभिन्न भावनात्मक प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं। व्यक्तियों का दूसरे व्यक्ति की स्थिति के अनुसार व्यक्त की गयी भावना के अनुरूप गुस्सा या प्रसन्नता व्यक्त करते हुए निरिक्षण किया गया। इस प्रकार, स्थिति (संज्ञानात्मक) के मूल्यांकन और प्रतिभागी द्वारा एड्रेनेलिन या प्लेसेबो लेने के संयोजन ने एकसाथ प्रतिक्रियाएं निर्धारित कीं. इस प्रयोग की जेसी पिन्ज़ (2004) की गट रियेक्शंज़ में आलोचना की गई है।

कोम्पोनेंट प्रोसेस (घटक प्रक्रिया) मॉडल[संपादित करें]

संज्ञानात्मक सिद्धांत का एक ताज़ा संस्करण भावनाओं को मोटे तौर पर कई विभिन्न शारीरिक और संज्ञानात्मक घटकों के एक समय में होने वाली अवस्था बताता है। भावनाएं समग्र प्रक्रिया द्वारा पहचानी जातीं हैं जिससे कम स्तर का संज्ञानात्मक मूल्यांकन, विशेष रूप से प्रासंगिक प्रसंस्करण में, शारीरिक प्रतिक्रियाओं, व्यवहार, भावनाओं और क्रियाओं को शुरू करता है।

विषयात्मक दृष्टिकोण[संपादित करें]

कई अलग अलग विषयों में भावनाओं पर काम किया गया है। मानव विज्ञान मानसिक प्रक्रियाओं में भावनाओं की भूमिका, विकारों और तंत्रिका तंत्र के बारे में बताता है। मनोविज्ञान में, भावनाओं की विषय से संबंधित अध्ययन और मानवों में मानसिक विकारों के उपचार में जांच की जाती है। मनोविज्ञान भावनाओं को मानसिक प्रकियाएं मानते हुए उनकी एक वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य से जांच करता है और अंतर्निहित शारीरिक और स्नायविक प्रक्रियाओं का पता लगाता है। न्यूरोसाइंस (तंत्रिका विज्ञान) की उप-शाखा जैसे सोशल न्यूरोसाइंस और अफेक्टिव न्यूरोसाइंस में वैज्ञानिक, न्यूरोसाइंस को व्यक्तित्व, भावना और मूड के मनोवैज्ञानिक अध्ययन से जोड़ कर भावना के तंत्रिका तंत्र का अध्ययन करते हैं। भाषा विज्ञान में, भावना की अभिव्यक्ति ध्वनियों के अर्थ में बदल सकती हैं। शिक्षा के क्षेत्रमें, सीखने की प्रक्रिया की भावनाओं के साथ संबंध की जांच की जा रही है।

सामाजिक विज्ञान अक्सर बातचीत मानव संस्कृति और सामजिक सहभागिता में भावना की भूमिका की जांच करता है। समाजशास्त्र में, मानव समाज, सामाजिक ढांचे व सहभागिता तथा संस्कृति में भावनाओं की भूमिका की जांच की जाती है। मानव विज्ञान (एन्थ्रोपोलोजी) में, मानवता के अध्ययन में, छात्र प्रासंगिक विश्लेषण तथा मानव गतिविधियों की सीमाओं की विपरीत संस्कृतियों की तुलना के लिए एथ्नोग्राफी का प्रयोग करते हैं; कुछ एन्थ्रोपोलोजी अध्ययन मानवीय क्रियाओं में भावनाओं की भूमिका की जांच करते हैं। संचार विज्ञान के क्षेत्र में, महत्वपूर्ण संगठनों के छात्रों ने संगठन में, मैनेज़र, कर्मचारियों और यहाँ तक कि ग्राहकों के परिप्रेक्ष्य से भी, भावनाओं की भूमिका की जांच की है। संगठनों में भावनाओं पर ध्यान देने का श्रेय अर्ली रस्सेल होशचाइल्ड की भावनात्मक श्रम की अवधारणा को जाता है। क्वींसलैंड विश्वविद्यालय, EmoNet[17] को होस्ट करती है, एक ईमेल वितरण सूची जो उन अकादमियों के नेटवर्क को दर्शाती है जो संगठनात्मक हालातों से जुड़े सभी मामलों के विद्वानों से चर्चा की सुविधा प्रदान करता हैं। इस सूची को जनवरी,1997 में स्थापित किया गया था, और दुनिया भर में इसके 700 से अधिक सदस्य हैं।

अर्थशास्त्र में, सामाजिक विज्ञान जो उत्पादन, वितरण और वस्तुओं के उपभोग और सेवाओं का अध्ययन करता है, भावनाओं का माइक्रो अर्थशास्त्र के कुछ उपक्षेत्रों में, खरीदने का निर्णय करने तथा जोखिम को समझने के लिए विश्लेषण किया जा रहा है। अपराधशास्त्र - अपराध के अध्ययन का एक सामजिक विज्ञान दृष्टिकोण, छात्रों को अक्सर व्यवहार विज्ञान, समाज शास्त्र और मनोविज्ञान की ओर आकर्षित करता है; अपराधशास्त्र के मुद्दों में एनोमी थ्योरी और "बेरहमी", आक्रामक व्यवहार और गुंडागर्दी जैसी भावनाओं की जांच की जाती है। कानून में, जो नागरिक आज्ञाकारिता, राजनीति, अर्थशास्त्र और समाज का सहायक है, लोगों की भावनाओं के बारे में सबूत अक्सर शारीरिक मुआवज़ों के दावों के लिए पेश किये जाते हैं और क्रिमिनल लॉ अभियोजन में कथित रूप से कानून तोड़ने वालों के खिलाफ इनका प्रयोग किया जाता है। (ट्रायल के दौरान अभियुक्त की मानसिक अवस्था, सजा और पैरोल सुनवाइयों के दौरान सबूत के तौर पर). राजनीति शास्त्र में, भावनाओं का कई उप शाखाओं में विश्लेषण किया जाता है, जैसे एक मतदाता के निर्णय के विश्लेषण के लिए.

दर्शनशास्त्र में, भावनाओं को उपशाखाओं जैसे नैतिकता, कला का दर्शन, (उदाहरण के लिए संवेदी-भावनात्मक मूल्य और रूचि तथा भावुकता के मामले और संगीत का दर्शन (संगीत और भावना भी देखें). इतिहास में छात्र पिछली क्रियाओं की व्याख्या करने तथा उनका विश्लेषण करने के लिए दस्तावेजों और और दूसरे स्त्रोतों का अध्ययन करते हैं, लेखकों के एतिहासिक दस्तावेजों में भावनात्मक स्थितियों के बारे में अटकले विश्लेषण का एक साधन है। साहित्य और फिल्म बनाने में, भावना की अभिव्यक्ति ड्रामा, मेलोड्रामा और रोमांस जैसी शैलियों की आधारशिला है। संचार अध्ययन में छात्र विचार और सूचना प्रेषित करने में भावना की भूमिका का अध्ययन करते हैं। भावना को एथोलोजी में भी पढ़ा जाता है जो प्राणीशास्त्र की एक शाखा है, जिसका अध्ययन जानवरों के व्यवहार पर केन्द्रित है। एथोलोजी प्रयोगशाला और फील्ड साइंस का एक संयोजन है जिसका पारिस्थितिकी और विकास के साथ प्रगाढ़ संबंध है। इथोलॉजिस्ट्स अक्सर कई असंबंधित पशुओं में एक प्रकार के व्यवहार (जैसे,आक्रामकता) का अध्ययन करते हैं।

संवेग क्या होते हैं बच्चों में पाए जाने वाले कोई दो संवेग लिखिए? - sanveg kya hote hain bachchon mein pae jaane vaale koee do sanveg likhie?

चार्ल्स डारविन के द एक्सप्रेशन ऑफ़ द इमोशंस इन मैन एण्ड एनिमल्स (आदमी और पशुओं में भावनाओं की अभिव्यक्ति) से लिया गया दृष्टान्त.

विकासवादी जीवविज्ञान[संपादित करें]

विकास के सिद्धांत में भावनाओं के दृष्टिकोण को 19 वीं सदी के अंत में चार्ल्स डार्विन की पुस्तक "द एक्सप्रैशन ऑफ़ इमोशन्स इन मैन एंड एनिमल्स " के माध्यम से शुरू किया गया।[18] डार्विन की मूल थीसिस थी कि भावनाएं प्राकृतिक चयन के माध्यम से विकसित हुई हैं इसलिए इनके संकर सांस्कृतिक सार्वभौमिक समकक्ष हैं। इसके अलावा, पशुओं में भी हमारी तरह भावनाएं होती हैं (देखें इमोशन इन एनिमल्स) मानवीय मामलों में सार्वभौमिकता के साक्ष्य पॉल एकमेन के चेहरे की अभिव्यक्ति के लाभदायक शोध द्वारा उपलब्ध कराए गये हैं। इस क्षेत्र में एक अन्य अनुसंधान मनुष्य और जानवरों के शरीर की भाषा सहित, भावनाओं के भौतिक प्रदर्शन पर ध्यान केन्द्रित करता है (देखें अफेक्ट डिस्प्ले) न्यूरोइमेजिंग में बढ़ती हुई संभावनाओं ने भी मस्तिष्क के प्राचीन हिस्सों पर जांच की है। उदाहरण के लिए, इस दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण न्यूरोलॉजिकल विकास 1990 के दशक में, जोसेफ ई. लीदु और एंटोनियो दमासियो द्वारा किया गया।

अमेरिकी विकासवादी जीवविज्ञानी रॉबर्ट ट्रिवर्स का तर्क है कि नैतिक भावनाएं पारस्परिक परोपकारिता के सिद्धांत पर आधारित हैं। समूह चयन की धारणा की विशेष प्रासंगिकता है। इस सिद्धांत के अनुसार अलग अलग भावनाओं के पारस्परिक अलग-अलग प्रभाव हैं। सहानुभूति मनुष्य को मदद के लिए प्रेरित करती हैं, विशेषकर उसके लिए जिसकी पहुंच से मदद बहुत दूर है। क्रोध व्यक्ति को धोखेबाजों से, किसी प्रतिफल की इच्छा के बगैर, धोखेबाज़ को दण्डित करके या उससे रिश्ता तोड़ कर, बचा कर सहायता करता है। आभार नैतिक रूप से पूर्व में मिली सहायता के लिए लाभार्थी को इनाम देने के लिए प्रेरित करता है। अंत में, पाप एक धोखेबाज़ को, जिसे अपने पहचाने जाने का खतरा है, पाप निवारण द्वारा रिश्ते को पुनः जोड़ने के लिए प्रेरित करता है। साथ ही, दोषी भावनाएं बेईमान को, जो पकड़ा गया है, यह वादा करने के लिए प्रेरित करती हैं कि वह भविष्य में बेहतर व्यवहार करेगा ।

समाज-शास्त्र[संपादित करें]

हम स्थिति के मानदंडों के अनुसार अपनी भावनाओं को नियमित करने की चेष्टा करते हैं, कई स्थितियों के अनुसार - कभी कभी परस्पर विरोधी - विभिन्न चीज़ों द्वारा उत्पन्न होने वाली, जिनके बारे में समाजशास्त्र में सूक्ष्म स्तर पर बताया गया है - जैसे कि सामाजिक भूमिकाएं और "नियमों को महसूस करना" हर रोज के सामाजिक संबंधों और आकार लेती स्थितियों के बारे में और वृहद् स्तर पर सामाजिक संस्थानों, प्रवचनों, विचारधाराओं आदि द्वारा बताया गया है। उदाहरण के लिए, एक ओर (पोस्ट) मॉडर्न शादी प्यार की भावना पर आधारित है, दूसरी ओर यह नियंत्रित तथा नियमित करने वाली भावना पर आधारित है। भावनाओं का समाजशास्त्र सामान्य जनसंख्या में बदलते रवैये पर भी अपना ध्यान केंद्रित करता है। विज्ञापनों, स्वास्थ्य अभियानों और राजनैतिक संदेशों में अक्सर भावुक निवेदनें (अपीलें) पाई जाती हैं। ताज़े उदाहरणों में नो-स्मोकिंग स्वास्थ्य अभियान और आतंकवाद के भय पर बल देने वाले राजनैतिक अभियान के विज्ञापन शामिल हैं।

मनोचिकित्सा (साइकोथेरेपी)[संपादित करें]

किसी विशेष स्कूल के सामान्य जोर देने पर निर्भर करते हुए, चाहे भावनाओं के संज्ञानात्मक घटकों पर, शारीरिक ऊर्जा निर्वहन, या, प्रतीकात्मक आंदोलन और भावना के चेहरे की अभिव्यक्ति के घटकों पर[19], साइकोथेरेपी के विभिन्न स्कूल, मानव भावनाओं को अलग ढंग से समझाते हैं। उदाहरण के लिए, स्कूल ऑफ़ रि-इवैल्युएशन काउंसलिंग कहता है कि विक्षुब्ध करने वाली भावनाओं को "मुक्त" कर के उनसे छुटकारा पाया जा सकता है - जैसे रोना, हँसना, पसीना निकलना, हिलना और चौंकना[20], एक और संज्ञानात्मकता आधारित स्कूल उन्हें संज्ञानात्मक घटकों के द्वारा उनका इलाज़ करने की वकालत करता है, जैसे रेशनल इमोटिव बिहेवियर थेरेपी के द्वारा. फिर भी दूसरे, प्रतीकात्मक आंदोलन और चेहरे की भावनाओं के घटकों द्वारा इनके इलाज़ की बात करते हैं (जैसे समकालीन गेस्टाल्ट थेरेपी.)[21]

कंप्यूटर विज्ञान[संपादित करें]

2000 के दशक में, कंप्यूटर विज्ञान, इंजीनियरिंग, मनोविज्ञान और न्यूरोसाइंस द्वारा विकसित उपकरणों पर शोध किया गया है जो मानव को प्रभावित करने वाले प्रदर्शनों और मॉडल भावनाओं को पहचानते हैं।[22] कंप्यूटर विज्ञान में, अफेक्टिव कंप्यूटिंग अध्ययन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के विकास करने की एक शाखा है जो उन प्रणालियों और उपकरणों को डिजाइन करने से संबंधित है जो मानवीय भावनाओं को पहचानते हैं, समझते हैं और उन पर प्रतिक्रिया कर सकते हैं। यह एक अनुशासन संबंधी क्षेत्र है जो कंप्यूटर विज्ञान, मनोविज्ञान और संज्ञानात्मक विज्ञान तक फैला हुआ है।[23] जबकि इस क्षेत्र का मूल भावनाओं की शुरूआती दार्शनिक पूछताछ जितना पुराना है[24], कंप्यूटर विज्ञान की अति आधुनिक शाखा, अफेक्टिव कम्प्यूटिंग के माध्यम से 1995 में रोजालिंड पिकार्ड के कागजों[25] पर साकार हुई.[26][27] भावनात्मक सूचनाओं की जानकारी निष्क्रिय संवेदकों (सेंसर) के माध्यम से शुरू होती है जो इनपुट की व्याख्या किये बगैर, उपयोगकर्ता की शारीरिक स्थिति या व्यवहार द्वारा डाटा एकत्रित करते हैं। एकत्रिक डाटा उन संकेतों के अनुरूप होता है जिनकी वजह से मनुष्य दूसरों में भावनाओं को समझते हैं। अफेक्टिव कम्प्यूटिंग का एक अन्य क्षेत्र कम्प्यूटेशनल उपकरणों को डिज़ाइन करना है जिनका उद्देश्य भावनात्मक क्षमताओं को सहज करना है या जो आसानी से भावनाओं का अनुकरण करने में सक्षम हैं। इमोशनल स्पीच प्रोसेसिंग उपयोगकर्ता के भाषण पैटर्न का विश्लेषण करके उसकी भावनात्मक स्थिति पहचानती है। डिटेक्टरों और सेंसर के माध्यम से चेहरे की अभिव्यक्ति या शरीर के संकेतों का पता लगाया जाता है।

उल्लेखनीय सिद्धांतकार[संपादित करें]

उन्नीसवीं सदी के अंत में, सबसे प्रभावशाली सिद्धान्तकार विलियम जेम्स(1842-1910) और कार्ल लैंग(1834-1900) थे। जेम्स एक अमेरिकी मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक थे जिन्होनें शैक्षिक मनोविज्ञान, धार्मिक अनुभव का मनोविज्ञान/रहस्यवाद और व्यावहारिकता के मनोविज्ञान के बारे में लिखा. लैंग एक डैनीश चिकित्सक और मनोवैज्ञानिक थे। स्वतंत्र रूप से काम करते हुए, उन्होनें भावनाओं के स्रोत और प्रकृति की मूल परिकल्पना पर आधारित जेम्स-लैंग सिद्धांत का विकास किया। सिद्धांत के अनुसार, मनुष्य के भीतर, दुनिया के अनुभवों के प्रति प्रतिक्रिया के कारण, ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम (स्वतंत्र स्नायविक प्रणाली) शारीरिक घटनाओं को बनाता है जैसे पेशियों में तनाव, हृदय दर में बढ़ोत्तरी, पसीने में वृद्धि और मुंह का सूखापन. भावनाएं वे ज़ज्बात हैं जो अपने कारणों की बजाए इन शारीरिक परिवर्तनों के परिणामस्वरूप बनती हैं |

बीसवीं सदी के भावनाओं के सबसे प्रभावशाली सिद्धांतकारों में से कुछ की पिछले दशक में मृत्यु हो गई है। इनमे शामिल हैं मागदा बी. अर्नोल्ड (1903-2002), एक अमेरिकी मनोवैज्ञानिक जिन्होनें भावनाओं के मूल्यांकन के सिद्धांत का विकास किया; रिचर्ड लॉरस (1922-2002), एक अमेरिकी मनोवैज्ञानिक जो भावना तथा तनाव के विशेषज्ञ थे, विशेष रूप से संज्ञानात्मकता के संबंध में; हरबर्ट सिमोन (1916-2001), जिन्होनें भावनाओं को निर्णय लेने तथा कृत्रिम बुद्धिमत्ता में प्रयुक्त किया; रॉबर्ट प्लुत्चिक (1928-2006), एक अमेरिकी मनोवैज्ञानिक जिन्होनें भावना के मानसिक विकास के सिद्धांत का विकास किया; रॉबर्ट ज़ेजोंक (1923-2008) एक पोलिश मूल के अमेरिकी सामाजिक मनोवैज्ञानिक जो सामाजिक और संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं जैसे सामाजिक सुविधा के विशेषज्ञ थे। इसके अलावा, एक अमेरिकी दार्शनिक, रॉबर्ट सी. सोलोमन (1942-2007) ने भावना की फिलॉस्फी के सिद्धांतों पर वट इज़ एन इमोशन?: क्लासिक एंड कोनटेम्पोरेरी रीडिंग्स (ऑक्सफोर्ड, 2003) जैसी पुस्तकों के माध्यम से योगदान दिया.

प्रभावशाली सक्रिय सिद्धांतकारों में, जिनमें मनोवैज्ञानिक, न्यूरोलोजिस्ट्स और दार्शनिक शामिल हैं:

  • लिसा फिल्डमेन बेरेट - सामाजिक दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक जो व्यवहारिक विज्ञान और मानवीय भावना की विशेषज्ञ हैं।
  • जॉन कैसिओप्पो -शिकागो यूनिवर्सिटी से, गैरी बर्न्टसन के साथ सोशल न्यूरोसाइंस के संस्थापक
  • एंटोनियो दमासियो (1944-) - पुर्तगाली व्यवहार न्यूरोलॉजिस्ट और न्यूरोसाइंटिस्ट, जो अमेरिका में काम करते हैं
  • रिचर्ड डेविडसन (1951-) - अमेरिकी मनोवैज्ञानिक और न्यूरोसाइंटिस्ट, व्यवहारिक तंत्रिका विज्ञान में अग्रणी.
  • पॉल एकमेन (1934-) - भावनाओं और उनके चेहरे पर मनोभावों के संबंध का अध्ययन करने वाले मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञ
  • बारबरा फ्रेडरिक्सन - सामाजिक मनोवैज्ञानिक, जो भावनाओं और सकारात्मक मनोविज्ञान में विशेषज्ञ हैं।
  • निको फ्रिज्दा (1927-) - डच मनोवैज्ञानिक जो मानव भावनाओं, विशेष रूप से चेहरे के भावों में विशेषज्ञ हैं।
  • पीटर गोल्डी - ब्रिटिश दार्शनिक, जो नैतिकता, सौंदर्यशास्त्र, भावना, मन और चरित्र के विशेषज्ञ हैं।
  • अर्ली रसेल होशचाइल्ड (1940-) - अमेरिकी समाजशास्त्री जिनका प्रमुख योगदान सामजिक जीवन में शरीर में भावनाओं के प्रवाह और संगठनों में आधुनिक पूंजीवाद द्वारा बनाये गए बड़े रुझानों में सम्बन्ध बनाना था।
  • जोसेफ ई. लीदु (1949-) - अमेरिकी न्यूरोसाइंटिस्ट, स्मृति के जैविक आधार और भावना, विशेष रूप से डर की कार्यप्रणाली का अध्ययन कर रहे हैं।
  • जाक पैंकसेप 1943 -) - एस्टोनिया में जन्मे अमेरिकी मनोवैज्ञानिक, साइकोबायोलॉजिस्ट और न्यूरोसाइंटिस्ट, व्यवहारिक तंत्रिका विज्ञान में अग्रणी.
  • जेसी प्रिंज़ - अमेरिकी दार्शनिक जो भावना, नैतिक मनोविज्ञान, सौंदर्यशास्त्र और चेतना की विशेषज्ञ हैं।
  • क्लाऊस शेरेर (1943-) - स्विस मनोवैज्ञानिक और जिनेवा में स्विस सेंटर फॉर अफेक्टिव साइंस के निदेशक, ये भावना के मनोविज्ञान के विशेषज्ञ हैं।
  • रोनाल्ड डिसूजा (1940-) - इंग्लिश-कैनेडियन दार्शनिक जो भावनाओं के मनोविज्ञान, दिमाग के मनोविज्ञान और जैविक मनोविज्ञान के विशेषज्ञ हैं |

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • भाव की माप
  • भाव (मनोविज्ञान)
  • भावात्मक तंत्रिका विज्ञान           
  • भावात्मक विज्ञान
  • पशुओं में भावना
  • भावनाएं और संस्कृति
  • भावना और स्मृति
  • भावनात्मक अभिव्यक्ति           
  • सहानुभूति
  • अनुभव
  • भावनाओं की सूची
  • मूड या मिजाज (मनोविज्ञान)
  • मनोवैज्ञानिक प्रतिरक्षा तंत्र
  • सेक्स और भावना
  • भावनाओं का समाजशास्त्र
  • सामाजिक तंत्रिका विज्ञान
  • दैहिक मार्करों की परिकल्पना

सन्दर्भ[संपादित करें]

नोट्स[संपादित करें]

  1. ""भावनात्मक रसायन विद्या: मस्तिष्क कैसे टारा-बेनेट गोलमैन द्वारा ह्रदय को ठीक कर सकता है"". मूल से 12 फ़रवरी 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 नवंबर 2018.
  2. परिचय के लिए फिलिप फिशर का वंडर, द रेनबो एण्ड द एयस्थेटिक्स ऑफ़ रेयर इक्सपीरियंसेस (1999) देखें
  3. उदाहरण के लिए एंटोनियो दमासियो का लूकिंग फॉर स्पिनोज़ा (2005) देखें.
  4. जेम्स, विलियम, 1884. "भावना क्या है?" माइंड, 9: 188-205.
  5. लेयर्ड, जेम्स, फीलिंग्स: द परसेप्शन ऑफ़ सेल्फ, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस
  6. क्रिंगेलबाच, एम.एल., ओ'डोहेर्टी, जे.ओ., रोल्स, ई.टी. और एंड्रयूज़, सी. (2003). एक तरल खाद्य उद्दीपन के लिए मानव कक्षाग्रस्थ प्रांतस्था का सक्रियकरण अपने व्यक्तिपरक माधुर्य के साथ सहसंबद्ध है। प्रमस्तिष्क प्रांतस्था, 13, 1064-1071.
  7. ड्रेक, आर.ए. (1987). सौंदर्य के निर्णय पर टकटकी हेरफेर के प्रभाव: भाव का गोलार्ध स्वच्छीकरण. एक्टा साइकोलॉजिका, 65, 91-99.
  8. मर्स्केलबाच, एच. और वैन ओप्पेन, पी. (1989). तटस्थ और भय-प्रासंगिक उद्दीपनों के व्यक्तिपरक मूल्यांकन पर टकटकी हेरफेर के प्रभाव: ड्रेक के (1987) 'सौंदर्य के निर्णय पर टकटकी हेरफेर के प्रभाव: भाव का गोलार्ध स्वच्छीकरण' पर एक टिप्पणी. एक्टा साइकोलॉजिका, 70, 147-151.
  9. हार्मन-जोन्स, ई., वॉघन-स्कॉट, के., मोहर, एस., सिगेलमैन, जे. और हार्मन-जोन्स, सी. (2004). बायीं और दायीं तरफ की अग्रस्थ प्रांतस्थीय गतिविधि पर हेरफेर की गई सहानुभूति और क्रोध का प्रभाव. अनुभव, 4, 95-101.
  10. श्मिट, एल.ए. (1999). शर्म और सुजनता में अग्रमस्तिष्क की विद्युतीय गतिविधि. मनोवैज्ञानिक विज्ञान, 10, 316-320.
  11. गरवान, एच., रॉस, टी.जे. और स्टीन, ई.ए. (1999). निरोधात्मक नियंत्रण के दाएं गोलार्ध का प्रभुत्व: एक घटना-सम्बन्धी कार्यात्मक MRI अध्ययन. नैशनल ऐकडमी ऑफ़ साइंसेस की कार्यवाही, 96, 8301-8306.
  12. ड्रेक, आर. ए. और मायर्स, एल.आर. (2006). दृश्य ध्यान, भावना और कार्रवाई की प्रवृत्ति: सक्रिय या निष्क्रिय एहसास. अनुभूति और भावना, 20, 608-622.
  13. वाकर, जे., चैवानन, एम.-एल., ल्यू, ए. और स्टेमलर, जी. (2008). क्या सही चल रहा है? व्यावहारिक सक्रियण-पूर्वकाल विषमता का व्यावहारिक निषेध मॉडल. भावना, 8, 232-249.
  14. Craig, A. D. (Bud) (2008). "Interoception and emotion: A neuroanatomical perspective". प्रकाशित Lewis, M.; Haviland-Jones, J. M.; Feldman Barrett, L. (संपा॰). Handbook of Emotion (3 संस्करण). New York: The Guildford Press. पपृ॰ 272–288. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-59385-650-2. अभिगमन तिथि 6 सितंबर 2009.
  15. Craig, A. D. (Bud) (2003). "Interoception: The sense of the physiological condition of the body" (PDF). Current Opinion in Neurobiology. 13: 500–505. PMID 12965300. डीओआइ:10.1016/S0959-4388(03)00090-4. मूल से 4 मई 2019 को पुरालेखित (PDF). अभिगमन तिथि 8 नवंबर 2018.
  16. दृष्टिकोण परिवर्तन के अंतर्गत अनुमानी-व्यवस्थित मॉडल, या HSM, (चैकेन, लिबरमैन और ईगली, 1989) देखें. केनेथ आर. हैमंड की "बेयोंड रैशनलिटी: द सर्च फॉर विज़डम इन ए ट्रबल्ड टाइम" में और नसीम निकोलस तालेब की "फूल्ड बाई रैंडमनेस: द हिडन रोल ऑफ़ चांस इन लाइफ एण्ड इन द मार्केट्स" में "इमोशन" (भावना) की अनुक्रमणिका प्रविष्टि भी देखें.
  17. "EmoNet". मूल से 18 फ़रवरी 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 नवंबर 2018.
  18. डार्विन, चार्ल्स (1872). द एक्सप्रेशन ऑफ़ इमोशंस इन मैन एण्ड एनिमल्स . ध्यान दें: इस पुस्तक को वास्तव में 1872 में प्रकाशित किया गया था, लेकिन उसके बाद इसे कई बार अलग-अलग प्रकाशकों ने पुनर्मुद्रित किया है
  19. फ्रेइटास-मैगल्हाएस, ए. और कास्त्रो, ई. (2009). चेहरे की अभिव्यक्ति: अवसाद के उपचार में मुस्कान का प्रभाव. पुर्तगाली विषयों के साथ अनुभवजन्य अध्ययन. ए. फ्रेइटास-मैगल्हाएस (एड.) में, भावनात्मक अभिव्यक्ति: मस्तिष्क और चेहरा (पीपी. 127-140). पोर्टो: यूनिवर्सिटी फर्नान्डो पेसोआ प्रेस. ISBN 978-989-643-034-4
  20. "परामर्श प्राप्ति प्रक्रिया - RC वेबसाइट". मूल से 11 दिसंबर 2006 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 नवंबर 2018.
  21. "मैनचेस्टर गेस्टाल्ट सेंटर की वेबसाइट से भावना पर एक लेख". मूल से 12 मई 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2020.
  22. फेल्लौस, आर्मोनी और लेडौक्स, 2002
  23. Tao, Jianhua; Tieniu Tan (2005). "LNCS volume = 3784". Affective Computing and Intelligent Interaction. स्प्रिंगर. pp. 981–995. doi:10.1007/11573548.
  24. James, William (1884). "What is Emotion". Mind. 9: 188–205. ताओ और टैन द्वारा उद्धृत.
  25. "भावात्मक कम्प्यूटिंग" Archived 2011-05-13 at the Wayback Machine MIT टेक्नीकल रिपोर्ट #321 (सार Archived 2019-07-24 at the Wayback Machine), 1995
  26. Kleine-Cosack, Christian (2006). "Recognition and Simulation of Emotions" (PDF). मूल (PDF) से 28 मई 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि May 13, 2008. The introduction of emotion to computer science was done by Pickard (sic) who created the field of affective computing.
  27. Diamond, David (2003). "The Love Machine; Building computers that care". Wired. मूल से 18 मई 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि May 13, 2008. Rosalind Picard, a genial MIT professor, is the field's godmother; her 1997 book, Affective Computing, triggered an explosion of interest in the emotional side of computers and their users.

आगे पढ़ें[संपादित करें]

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  • फ्रेइटास-मैगल्हाएस, ए. (एड.). (2009). भावनात्मक अभिव्यक्ति: मस्तिष्क और चेहरा. पोर्टो: यूनिवर्सिटी फर्नान्डो पेसोआ प्रेस. ISBN 978-989-643-034-4.
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  • एकमैन, पी. (1999). "बेसिक इमोशंस Archived 2007-08-08 at the Wayback Machine". में: टी. डाल्गलीश और एम. पॉवर (एड्स.). हैन्डबुक ऑफ़ कॉग्निशन एण्ड इमोशन . जॉन विले एण्ड संस लिमिटेड, ससेक्स, UK:.
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  • होच्सचाइल्ड, ए.आर. (1983). प्रबंधित हृदय: मानव भावनाओं का व्यावसायीकरण. बर्कले: यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफोर्निया प्रेस.
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  • प्लुट्चिक, आर. (1980). भावनाओं का एक सामान्य मनोविकासमूलक सिद्धांत. आर. प्लुट्चिक एवं एच. केलरमैन (एड्स.) में, इमोशन: थ्योरी, रिसर्च, एण्ड इक्सपीरियंस: वॉल्यूम 1 .थ्योरीज़ ऑफ़ इमोशन (पीपी. 3-33). न्यूयॉर्क: अकादमिक.
  • स्चेरर, के. (2005). [2] Archived 2008-12-16 at the Wayback Machineभावनाएं क्या हैं और उन्हें कैसे मापा जा सकता है? Archived 2008-12-16 at the Wayback Machine सोशल साइंस इनफ़ॉर्मेशन खण्ड 44, संख्या 4: 695-729.
  • सोलोमन, आर. (1993). द पैशन्स: इमोशंस एण्ड द मीनिंग ऑफ़ लाइफ . इंडियानापोलिस: हैकेट पब्लिशिंग.
  • विकिबुक संज्ञानात्मक मनोविज्ञान और संज्ञानात्मक तंत्रिका विज्ञान Archived 2018-11-08 at the Wayback Machine

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • फेशियल इमोशन एक्सप्रेशन लैब
  • CNX.ORG: द साइकोलॉजी ऑफ़ इमोशंस, फीलिंग्स एण्ड थॉट्स (मुक्त ऑनलाइन पुस्तक)
  • भावनाओं के इतिहास का क्वीन मैरी सेंटर
  • Humaine Emotion-Research.net: ह्यूमेन पोर्टल: भावनाओं और मानव-मशीन के पारस्परिक प्रभाव पर शोध
  • PhilosophyofMind.net: भावनाओं के दर्शनशास्त्र का पोर्टल
  • स्विस सेंटर फॉर अफेक्टिव साइंसेस
  • दर्शनशास्त्र का इंटरनेट विश्वकोश: भावनाओं के सिद्धान्त
  • दर्शनशास्त्र का स्टैनफोर्ड विश्वकोश: भावना
  • एरिज़ोना विश्वविद्यालय: सॉल्क संस्थान: भावना का होम पेज
  • कला और भावना

संवेग क्या होते हैं बच्चों में पाये जाने वाले कोई दो संवेग लिखिए?

वाटसन ने बाताया कि जन्म के समय बच्चे में तीन प्राथमिक संवेग भय, क्रोध व प्रेम होते है। संवेग अर्जित किए जाते है – कुछ मनोवैज्ञनिको का मत है कि संवेग विकास एवं वृद्धि की प्रक्रिया के दौरान प्राप्त किए जाते है। इस सम्बन्ध में हुए प्रयोग स्पष्ट करते है कि जन्म के समय संवेग निश्चित रूप से विद्यमान नही होते है।

संवेग क्या है संवेग के विभिन्न प्रकारों का वर्णन करें?

कुछ संवेग ऐसे होते हैं जो नैसर्गिक होते हैं-जैसे भय, क्रोध, आश्चर्य, शोक आदि । जवकि कुंछ संवेग ऐसे होते हैं जो धीरे-धीरे विकसित होते हैं- जैसे ईर्ष्या, प्रेम. घृणा आदि । जिन संवेगों से व्यक्ति को सूख मिलता है उन्हें सुखद संवेग अथवा धनात्मक संवेग (Positive Emotions) कहते हैं- जैसे प्रेम, स्नेह, मित्रता।

संवेग कितने प्रकार की होती है?

मैक्डूगल और गिलफोर्ड ने 14 प्रकार के संवेग बताए हैं- भय, क्रोध, घृणा, करूणा, आश्चर्य, आत्महिनता, एकाकीपन, कामुकता, भूख, अधिकार भावना, कृतिभाव एवं आमोद।

संवेग से आप क्या समझते हैं उदाहरण सहित समझाइए?

पूल (क्यू खेल) में, रेखीय संवेग संरक्षण संरक्षित रहता है; जैसे कि, जब संघट के बाद जब एक गेंद रुकती है, दूसरी गेंद समान संवेग के साथ दूर चली जाती है। यदि गतिशील गेंद गति करे या सामान्य से थोडी मुड़ जाती है तो दोनों गेंदे संघट्ट के बाद अपने आंशिक संवेग के साथ गतिशील रहेंगी।