विटामिन डी की गोली कौन सी है - vitaamin dee kee golee kaun see hai

क्या विटामिन-डी की गोलियां सभी को लेनी चाहिए

  • जेसिका ब्राउन
  • बीबीसी फ़्यूचर

13 अक्टूबर 2018

विटामिन डी की गोली कौन सी है - vitaamin dee kee golee kaun see hai

सर्दियों में जब दिन छोटे होने लगते हैं, तो धूप हमें कम मिलती है.

इसका नतीजा ये होता है कि हमें सूरज की रोशनी से मिलने वाला अहम तत्व यानी विटामिन डी कम मिलता है. शरीर में इसकी कमी होने की आशंका जताई जाने लगती है. इसके एवज़ में हमें विटामिन डी की गोलियां लेने की सलाह दी जाती है.

विटामिन डी2 और डी3 को आप किसी भी दवा की दुकान से ख़रीद सकते हैं. इसके लिए डॉक्टर के पर्चे की ज़रूरत नहीं होती.

विटामिन डी को चमत्कारी विटामिन कहा जाता है. माना जाता है कि ये विटामिन हमें रोगों से बचाता है. थकान, मांसपेशियों की कमज़ोरी, हड्डियों में होने वाली तकलीफ़ और डिप्रेशन से बचाने में भी विटामिन डी मददगार बताया जाता है.

दावा तो ये भी किया जाता है कि विटामिन डी हमारी उम्र बढ़ने से आने वाले बदलावों से भी हमारी रक्षा करता है. और, ये कैंसर से भी बचाता है.

एक सर्वे के मुताबिक़ ब्रिटेन में विटामिन सप्लीमेंट लेने वाले एक तिहाई लोग विटामिन डी की गोलियां खाते हैं. पर, लोगों के विटामिन डी की गोलियां खाने पर सवाल भी उठते रहे हैं.

विटामिन डी की गोलियां खाने की सलाह

इसमें कोई दो राय नहीं कि विटामिन डी हमारी हड्डियों की सेहत के लिए बहुत अहम है. ये हड्डियों में कैल्शियम और फॉस्फेट की तादाद को नियमित करता है. यही वजह है कि जिन लोगों के शरीर में विटामिन डी की कमी होती है, उन्हें विटामिन डी की गोलियां खाने की सलाह अक्सर दी जाती है.

ब्रिटेन की बात करें तो यहां की कुल आबादी के 20 प्रतिशत लोगों मे विटामिन डी की भारी कमी पायी जाती है.

लेकिन, कुछ जानकार कहते हैं कि अगर लोग सेहतमंद हैं, तो उन्हें विटामिन डी की गोलियां खाने की ज़रूरत नहीं. यानी आबादी के एक बड़े हिस्से को इन गोलियों की ज़रूरत नहीं.

इन जानकारों का ये कहना है कि ये ग़लतफ़हमी है कि विटामिन डी की गोलियां लेने से बीमारियों से लड़ने की ताक़त मिलती है.

आख़िर हक़ीक़त क्या है?

कुछ बुनियादी जानकारी

पहली बात तो ये कि नाम भले विटामिन डी हो, असल में ये विटामिन नहीं है. ये हारमोन है, जो हमारे शरीर को कैल्शियम पचाने में मदद करता है. दिक़्क़त ये है कि बहुत ज़्यादा तेल वाली मछली को छोड़ दें, तो हमारे पास खान-पान के ज़रिए विटामिन डी हासिल करने का कोई और तरीक़ा नहीं.

सूरज की अल्ट्रावायोलेट बी किरणें जब हमारे शरीर पर पड़ती हैं, तो हमारा शरीर अंदर मौजूद कोलेस्ट्रॉल से विटामिन डी बना लेता है.

ये दो क़िस्म का होता है. पहला है विटामिन डी3 जो मछली समेत कई जानवरों में पाया जाता है. जब हमारी त्वचा पर सूरज की रोशनी पड़ती है, तो भी ये विटामिन डी3 बनता है.

विटामिन डी की दूसरी क़िस्म है डी2 जो पौधों से मिलने वाले खान-पान जैसे मशरूम में पाया जाता है.

तमाम तजुर्बे कहते हैं कि विटामिन डी3 ज़्यादा कारगर है. ज़्यादातर विटामिन डी सप्लीमेंट में यही होता है.

विटामिन डी की कितनी मात्रा ज़रूरी

ब्रिटेन में हर इंसान को रोज़ाना 10 माइक्रोग्राम विटामिन डी सप्लीमेंट की ज़रूरत बताई गई है. इसे सूरज की रोशनी से भी हासिल किया जा सकता है. लेकिन, किसी के शरीर में अगर विटामिन डी की भारी कमी है, तो वो सप्लीमेंट भी ले सकता है.

कनाडा और अमरीका में 15 माइक्रोग्राम विटामिन डी की ज़रूरत बताई गई है. अमरीका के ज़्यादातर दूध, ब्रेकफ़ास्ट, अनाजों, मार्जरीन, दही और संतरे के जूस में विटामिन डी मिलाकर बेचा जाता है.

ऐसा 20वीं सदी में रिकेट्स नाम की बीमारी से लड़ने के लिए किया गया था. विटामिन डी की कमी से बोन डेन्सिटी कम होती है. इससे रिकेट्स नाम की बीमारी हो जाती है. इसके शिकार नवजात और बच्चे ज़्यादा होते हैं.

विटामिन डी की कमी से होता क्या है?

शरीर में विटामिन डी कम होने पर मांसपेशियां कमज़ोर होती हैं. और लोग थकान के ज़्यादा शिकार होते हैं. वो हरदम थकान महसूस करते हैं. ऐसे लोग अगर पांच हफ़्ते तक विटामिन डी सप्लीमेंट लेते हैं, तो उन्हें राहत मिल जाती है. विटामिन डी कम होने से हमारा शरीर पूरी ताक़त से काम नहीं कर पाता है. विटामिन डी होने से हमारा शरीर कीटाणुओं के हमले से बच पाता है.

विटामिन डी ज़रूरी भले हो. मगर, आपकी सेहत दुरुस्त है, तो आप को विटामिन डी के सप्लीमेंट लेने की ज़रूरत नहीं.

विटामिन डी के सप्लीमेंट की ज़रूरत हड्डियों के बढ़ने और रख-रखाव के लिए होती है.

आज जिस रिसर्च के आधार पर विटामिन डी की रोज़ाना की ज़रूरत तय की गई है, वो बुज़ुर्गों पर किया गया था. ये लोग सूरज की रोशनी नहीं पाते. इनकी हड्डियां टूटने का डर ज़्यादा होता है. बुज़ुर्गों में ओस्टियोपोरोसिस की बीमारी भी ज़्यादा होती है.

लंदन के किंग्स कॉलेज के प्रोफ़ेसर टिम स्पेक्टर कहते हैं कि ऐसे रिसर्च पर पूरी तरह से यक़ीन करना ठीक नहीं.

विटामिन डी गाइडलाइन्स में बदलाव की ज़रूरत

अगस्त 2018 में विटामिन डी से जुड़ी तमाम रिसर्च का निचोड़ ये निकला कि अगर विटामिन डी की मात्रा लोगों के शरीर में ठीक-ठाक है, तो भी उनमें फ्रैक्चर होने की आशंका कम नहीं होती.

विटामिन डी सप्लीमेंट से शरीर को कोई ख़ास फ़ायदा भी नहीं होता. ये रिसर्च करने वालों का कहना है कि विटामिन डी से जुड़ी गाइडलाइन्स में बदलाव की ज़रूरत है.

ब्रिटेन की एक और एक्सपर्ट सारा लेलैंड कहती हैं कि जिन लोगों को सूरज की पर्याप्त रोशनी नहीं मिल पाती, उनके लिए विटामिन डी सप्लीमेंट मददगार हो सकता है.

सूरज की रोशनी कितनी कारगर

अगर आप खुले हाथ बाहर वक़्त बिताते हैं, तो उन पर पड़ने वाली सूरज की रोशनी आपकी विटामिन डी की ज़रूरत पूरी करने के लिए पर्याप्त है, ख़ास तौर से मार्च से अक्तूबर के बीच.

जो लोग ऐसे माहौल को हासिल कर सकते हैं, सारा लेलैंड के मुताबिक़ उन्हें विटामिन डी सप्लीमेंट लेने की ज़रूरत नहीं. लेकिन, जिन्हें इतनी भी सूरज की रोशनी नहीं मिलती, उन्हें विटामिन डी सप्लीमेंट लेना चाहिए.

कई रिसर्च से तो ये भी पता चला है कि ज़्यादा विटामिन डी सप्लीमेंट खाने से भी फ्रैक्चर का ख़तरा 20-30 फ़ीसदी बढ़ जाता है. ख़ास तौर से बुज़ुर्गों में.

विटामिन डी के फ़ायदे

यूं तो इसे चमत्कारिक विटामिन कहा जाता है, मगर विटामिन डी का दूसरी बीमारियों से ताल्लुक़ पूरी तरह से साबित नहीं हो सका है.

सबसे बड़ा दावा ये किया जाता है कि विटामिन डी से हमारी रोगों से लड़ने की ताक़त बढ़ती है, बेहतर होती है.

लंदन में हुए एक रिसर्च ये पता चला है कि विटामिन डी से हमारी सांस की नली में होने वाले इन्फेक़्शन से बचाव होता है.

उम्र बढ़ने के साथ दस बीमारियां लग जाती हैं. माना जाता है कि विटामिन डी इस दौरान हमारे लिए मददगार होता है.

विटामिन डी3 हमारे शरीर की कोशिकाओं में प्रोटीन की मात्रा को नियमित करता है, जो शरीर की बनावट के लिए ज़रूरी होती हैं. इससे उम्रदराज़ होने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है.

वैसे, जानकार कहते हैं कि विटामिन डी के इस असर को साबित करने के लिए अभी और रिसर्च की ज़रूरत है. इसी तरह दिल की बीमारियों की रोकथाम में विटामिन डी के रोल को समझने के लिए भी रिसर्च की ज़रूरत बताई गई है.

हर बीमारी का ताल्लुक़ विटामिन डी से नहीं

तमाम बीमारियों को विटामिन डी की कमी से जोड़ने की जो रिसर्च हैं, उन पर लगातार सवाल उठते रहे हैं.

न्यूज़ीलैंड की ऑकलैंड यूनिवर्सिटी के इयान रीड ने इस बारे में काफ़ी पढ़ाई की है. रीड कहते हैं कि बीमार होने पर हम घर में रहते हैं. खुले में नहीं जाते. तो, हमारे शरीर में विटामिन डी की कमी हो जाती है. शायद यही वजह है कि किसी भी बीमारी के बाद शरीर में विटामिन डी की कमी दिखती है. मगर ये सोच सही नहीं.

विटामिन डी से आंतों में कैल्शियम की तादाद सही रहती है. इससे आंतों का कैंसर होने की आशंका कम हो जाती है.

लिवर कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर, प्रॉस्टेट कैंसर पर हुई रिसर्च बताती हैं कि विटामिन डी कैंसर की कोशिकाओं को बढ़ने से रोकता है.

लेकिन, अभी ये पक्के तौर पर साबित नहीं हो सका है कि विटामिन डी के सप्लीमेंट लेने से कैंसर के मरीज़ों को फ़ायदा होगा.

डिप्रेशन पर विटामिन डी का असर

सूरज की रोशनी से बार-बार वाबस्ता होने से हमारा मूड बेहतर होता है. इसका ये निष्कर्ष निकाला जाता है कि विटामिन डी हमें डिप्रेशन से लड़ने में मदद करता है. लेकिन, डिप्रेशन का विटामिन डी से सीधा संबंध है, ये बात भी रिसर्च से पक्के तौर पर साबित नहीं हो सकी है.

असल में सेरोटिनिन नाम का पिगमेंट होता है, जिसका संबंध हमारे मूड से होता है, जो हमें सूरज की रोशनी से मिलता है. इसी तरह नींद को नियमित करने वाला पिगमेंट मेलाटोनिन भी हमें विटामिन डी के ज़रिए हासिल होता है. इन में से किसी की भी कमी हमारे अंदर डिप्रेशन वाले लक्षण पैदा करती है.

इसमें कोई दो राय नहीं कि हमारी दिमाग़ी सेहत में विटामिन डी अहम रोल निभाता है. लेकिन, डिप्रेशन से इसका सीधा ताल्लुक़ अब तक साबित नहीं हुआ है.

विटामिन डी सप्लीमेंट- कितना फ़ायदेमंद

भले ही रिसर्च, विटामिन डी के बीमारियों और सेहत से संबंध को पक्के तौर पर साबित नहीं कर सकी हैं. पर, इस में कोई दो राय नहीं कि विटामिन डी हमारे लिए बहुत अहम है. हां, सूरज की रोशनी ज़्यादा ज़रूरी है, विटामिन डी सप्लीमेंट उतने कारगर नहीं हैं, जितना दावा किया जाता है.

जानकार कहते हैं कि जिनके शरीर में विटामिन डी की भारी कमी है, उन्हें तो सप्लीमेंट से फ़ायदा हो सकता है. मगर, एक सामान्य इंसान को अगर पर्याप्त सूरज की रोशनी मिलती रहे, तो उसे विटामिन डी सप्लीमेंट लेने की ज़रूरत नहीं है.

और, हर इंसान के लिए सूरज की रोशनी कितनी ज़रूरी है, ये लोगों की अलग-अलग ज़रूरत के हिसाब से तय होता है. ये तय होता है हमारे शरीर में मौजूद फैट और हमारी त्वचा के रंग-रूप से.

तो, विटामिन डी की ज़रूरत आपके ख़ून की जांच से ही तय होगी. यूं ही नहीं.

कितना विटामिन डी सप्लीमेंट ठीक है?

रोज़ाना विटामिन डी सप्लीमेंट की 25 नैनोमॉल मात्रा लेना नुक़सानदेह नहीं है. न्यूज़ीलैंड के एक्सपर्ट इयान रीड कहते हैं कि आज 62.5 माइक्रोग्राम की मात्रा भी आराम से बिना डॉक्टर के पर्चे के ली जा सकती है. ये ठीक नहीं है.

इससे शरीर में विटामिन डी की मात्रा ज़्यादा होने का डर है. इसके भी साइड इफेक्ट हो सकते है. उल्टी और चक्कर आ सकते हैं.

कई बार नवजातों में विटामिन डी की भारी कमी पायी जाती है, जिन्हें फ़ौरन सप्लीमेंट की ज़रूरत होती है.

कुल मिलाकर मेडिकल साइंस के जानकार विटामिन डी सप्लीमेंट को लेकर बंटे हुए हैं.

कई लोगों का मानना है कि अरबों डॉलर के सप्लीमेंट के कारोबार की वजह से ही विटामिन डी खाने की सलाह दी जाती है.

रिसर्च जारी हैं

अभी अमरीका के ब्रिघम ऐंड वुमेन्स हॉस्पिटल में विटामिन डी के साइड इफेक्ट को लेकर बड़ी रिसर्च हो रही है. इसमें 25 हज़ार से ज़्यादा लोग शामिल हैं.

उम्मीद की जा रही है कि इस साल इस रिसर्च के नतीजे सामने आने के बाद विटामिन डी सप्लीमेंट पर छिड़ी बहस में हम किसी निष्कर्ष पर पहुंच पाएंगे.

मगर, अब तक की बातों का निचोड़ ये है कि विटामिन डी सप्लीमेंट लेना पैसे की बर्बादी है. भले ही, आप को खान-पान से ज़रूरी विटामिन डी न मिले, मगर इसका आपके शरीर पर बहुत बुरा असर नहीं पड़ेगा.

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विटामिन डी की सबसे अच्छी गोली कौन सी है?

हेल्थक्रार्ट विटामिन डी 3 (2000 IU) सॉफ्ट जेल कैप्सूल भारत में सबसे अच्छा विटामिन डी कैप्सूल सप्लिमेंट है। जो आपकी प्रतिरक्षा को बढ़ाता है और आपको स्वस्थ जीवन में मदद करता है।

विटामिन डी की गोली कब लेना चाहिए?

विशेषज्ञों के अनुसार, बहुत जरूरी होने पर ही सप्लीमेंट लेना चाहिए। ज्यादा ठंडे मौसम में रहने वाले लोगों को जहां आसानी से धूप नहीं निकलती, उन्हें विटामिन डी की खुराक लेने की सलाह दी जाती है।

विटामिन डी कौन सा लेना चाहिए?

हेरिंग (हिल्सा) मछली : विटामिन डी फूड्स में हेरिंग फिश के इस्तेमाल की बात की जाए, तो विटामिन डी के स्रोत के रूप में इसका इस्तेमाल काफी फायदेमंद साबित हो सकता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, शरीर के बेहतर संचालन के लिए जरूरी माना जाने वाला विटामिन डी की कमी इस मछली से पूरी की जा सकती है (13)।

कैसे पता करें कि शरीर में विटामिन डी की कमी है?

विटामिन डी की कमी के लक्षण.
थकान महसूस करना:- पूरे दिन थकावट महसूस करना विटामिन डी की कमी के मुख्य लक्षणों में से एक है। ... .
हड्डियों और पीठ में दर्द:- हड्डियों और खासकर पीठ में दर्द होना विटामिन डी की कमी के लक्षण हैं। ... .
घाव ठीक नहीं होना:- शरीर में विटामिन डी कमी होने पर घाव या चोट जल्दी ठीक नहीं होते हैं।.