विष्णु को बद्रीनाथ क्यों कहा जाता है? - vishnu ko badreenaath kyon kaha jaata hai?

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पौराणिक मान्यताओ एव प्राचीन ग्रंथो के अनुसार, बद्रीनाथ धाम (मंदिर) को अलग अलग युगों में अलग अलग नामो से जाना जाता था. जैसे स्कन्द पुराण में इसे “मुक्तिप्रदा” कहा गया है. जो कि, बताता है कि, सतयुग में बद्रीनाथ को “मुक्तिप्रदा” कहा जाता था. त्रेता युग (काल) में इस मंदिर को “योग सिद्वी” नाम था. इसी प्रकार द्वापर युग में इसे “मणिभद्र” के नाम से जाना जाता था. जबकि कलयुग यानी वर्तमान में इसे “बद्रीनाथ धाम” से जाना जाता है.

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2. बद्रीनारायण (बद्रीनाथ) की कहानी

एक बार भगवान विष्णु इस प्रकृतिक सोन्दर्य से परिपूर्ण जगह का भ्रमण कर रहे थे. भगवान विष्णु को यह जगह *अत्यंत सुंदर लगी. और यही पर योग ध्यान करने के लिए जगह ढूंड रहे थे. इसी दौरान भगवान शिव और माता पार्वती इसी स्थान से गुजर रहे थे. तभी भगवान विष्णु ने अपना बाल्य रूप धारण किया और रोने लगे. रोते हुए बच्चे को देखकर माता पार्वती बच्चे के पास आती है और उस बच्चे को मानाने की कोशिश करती है.

माता पार्वती उस बच्चे यानी भगवान विष्णु, जो बच्चे का रूप धारण किये हुए है, पूछती है. तब भगवान विष्णु बोलते है कि, मुझे इस जगह पर ध्यान साधना करने के लिए उपयुक्त जगह चाहिए. इसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती ने उसकू यह मनोकामना पूरी करते हुए. यह भूमि भगवान बद्रीनारायण यानी विष्णु को दे दी. उसके बाद ऐसा मन जाता है कि, कई सालो की तपस्या के बाद यहाँ स्वत ही भगवान की मूर्ति उजागर हुई.

3. Badrinath story in hindi

इस मंदिर का नाम ‘बद्रीनाथ’ कैसे पड़ा. इसके पीछे की पौराणिक कथा इस प्रकार है. Badrinath story in hindi – एक बार नारद मुनि भ्रमण करते हुए क्षीरसागर गए. वहा नारद मुनि ने देखा कि, माता लक्ष्मी अपने पतिदेव भगवान विष्णु के पैर दबा रही थी. यह देख कर नारद मुनि आश्चर्य चकित रह गए. उन्होंने भगवान विष्णु से इस बारे पूछा तो भगवान विष्णु को यह अच्छा नही लगा. और क्रोधित होकर योग साधना में लीन हो गए.

विष्णु को बद्रीनाथ क्यों कहा जाता है? - vishnu ko badreenaath kyon kaha jaata hai?
बद्रीनाथ की कहानी (बद्रीनाथ का इतिहास)

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सर्दी का मौसम था तो बाहर बहुत बर्फबारी हो रही थी. लेकिन भगवान विष्णु घोर तपस्या में लीन थे. उनका आधा शरीर बर्फ की *सफ़ेद चादर से ढक चूका था. तब माता लक्ष्मी के हृदय में अपने पतिदेव विष्णु के प्रति करुना जाग जाती है. वह बेर (बद्री) वृक्ष का रूप धारण कर. भगवान विष्णु जहा तपस्या कर रहे होते है वह उनके पास वृक्ष के रूप में वह भी तपस्या करने लग जाति हगे. और सर्दी, तेज धुप और बारिश से उनकी रक्षा करती है.

जब भगवान विष्णु की योग साधना तपस्या समाप्त हो जाती है तब उन्हें लक्ष्मी जी द्वारा की तपस्या का पता चलता है कि, कैसे लक्ष्मी जी ने तेज धुप, सर्दी और बारिश में भी बेर (बद्री) वृक्ष का रूप धारण कर रक्षा की और मेरे साथ साथ तपस्या की. यह जानकर भगवान विष्णु, लक्ष्मी जी से अति प्रसन्न हुए. तब से भगवान विष्णु को बद्री+नाथ यानी लक्ष्मी जी के नाथ (पति) के नाम से जाना जाने लगा. इस तरह भगवान विष्णु का नाम “बद्रीनाथ” पड़ा.

4. बद्रीनाथ धाम की कथा (कहानी)

एक अन्य लोककथा प्रचलित है कि, धर्म के दो वंशज हुए एक का नाम ‘नर’ था तथा दूसरे का नाम ‘नारायण’ था. नर और नारायण दोनों भाइयों ने धर्म को फैलाने के लिए घोर तपस्या करी. उन्होंने नया आश्रम बनाने की खोज में चार अलग-अलग स्थानों पर भ्रमण किया. यह 4 स्थान निम्न थे. वृद्ध बद्री, योग बद्री, ध्यान बद्री और भविष्य बद्री. लेकिन उनको अलकनंदा नदी के तट पर गर्म पानी का चश्मा और ठंडा पानी का चश्मा (तालाब) उपयुक्त स्थान लगा. उस स्थान को उन्होंने ‘बद्रीविशाल’ कहा.

आज यह पांचो बद्री, पंच बद्री के नाम से जाने जाते हैं. इसके अलावा दो और बद्री है. जिन्हें मिलाकर कूल सात बद्री होते है. इसने सप्त बदरी भी कहा जाता है. नर और नारायण दोनों पहाड़ी के रूप में आज भी विद्यमान है. जिनकी तलहटी में भगवान विष्णु का बद्रीनाथ धाम स्थित है. ऐसा भी माना जाता है कि, वेदव्यास जी ने महाभारत की रचना इसी स्थान पर की थी. नर और नारायण पुनर्जन्म में अर्जुन और कृष्ण के रूप में जन्मे थे. महाभारत के अनुसार, पांडवों ने अपने पितरों का पिंडदान यहीं पर किया था. इस कारण आज भी यहां श्रद्धालुओं द्वारा अपने पितरों को पिंड दान करना पुण्य माना जाता है. (बद्रीनाथ का इतिहास)*

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5. बद्रीनाथ धाम की कथा (story in hindi)

एक अन्य लोक कथा के अनुसार, यहां आदि शंकराचार्य जी ने परमार शासक राजा कनक पाल की मदद से बौद्ध धर्म के प्रचारको को निष्कासित कर दिया. जिसके कई सालो बाद कनकपाल और उस राज्य के उत्तर अधिकारियों ने इस मंदिर का शासन प्रबंध संभाला. राजाओं ने यहां मंदिर के आसपास कई गांव बसाए. तथा तीर्थ यात्रियों के लिए रहने ठहरने और खाने के लिए सुविधा उपलब्ध करवाई.

कालांतर में परमार शासकों ने बद्रीनाथ को “बोलान्द बद्रीनाथ” नाम दिया. अथार्त बोलने वाले बद्रीनाथ. यह परंपरा 19वीं सदी तक चलती रही. ऐसी भी मान्यता है कि, सोलवीं सदी में गढ़वाल के राजाओं ने बद्रीनाथ की प्रतिमा को गुफा से निकलवा कर मंदिर में स्थापना करवाई. मंदिर का निर्माण पूरा हो जाने पर अहिल्याबाई (इंदौर की महारानी) ने मंदिर पर स्वर्ण कलश चड़ाई थी.

बद्रीनाथ धाम जाने का महत्व

बद्रीनाथ धाम (मंदिर) एक प्राचीन पवित्र मंदिर है, जिसका संबंध वैदिक काल से है. यह मंदिर वैष्णव सम्रदाय के लिए 108 दिव्य देशम यानी (तीर्थ या पवित्र स्थान) में से एक है, जहां वे अपने पूर्वजों अथवा पितरो के लिए अनुष्ठान करते हैं. भगवान विष्णु की हजारों वर्षों से यहां ध्यान करने की मान्यता, इस स्थान को देश के सबसे पवित्र स्थलों में से एक में बना देती है.

पीठासीन देवता को कई हिंदुओं द्वारा स्वयंभू, एक स्वयंभू मूर्ति माना जाता है। यहाँ आने वाले भक्त गण अपने ओए अपने परिवार के लिए सुख समृद्धि, धन, धर्मी जीवन, सुरक्षा, स्वास्थ्य, दीर्घायु और आध्यात्मिक प्राप्ति के लिए भगवान बद्रीनारायण (विष्णु) की पूजा करते हैं। मंदिर परिसर में तीन खंड (भाग) हैं – गर्भगृह, दर्शन मंडप (पूजा हॉल), और सभा मंडप. गर्भगृह में भगवान बदरी नारायण, कुबेर (धन के देवता), ऋषि नारद, उद्धव विद्यमान है. मंदिर में दिव्य जुड़वां नर और नारायण भी हैं, जिन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है.

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ऐसा माना जाता है कि, निम्नलिखित राशियों वाले लोगो को (धनु, सिंह और मेष) राशि वाले लोगों को जीवन में एक बार. इस पवित्र स्थान की यात्रा करनी चाहिए. यह मंदिर उन पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है. जहां हिंदू अपने पूर्वजों को बलि चढ़ाने जाते हैं. माना जाता है कि अलकनंदा नदी में पवित्र स्नान करने और बद्रीनाथ की पूजा करने से व्यक्ति की आत्मा शुद्ध होती है. यह भी मान्यता है कि, मंदिर में प्रवेश करने से पहले भक्तो को तप्त कुंड में पवित्र स्नान करना पूण्य का काम मन जाता है.

बद्रीनाथ मंदिर की स्थापत्य शैली

बद्रीनाथ मंदिर स्थापत्य कला की पारंपरिक उत्तर भारतीय शैली में बना हुआ है. मंदिर पूर्ण रूप से निर्माण पत्थरों से किया गया है. जिसमें कई नक्काशी वाली दीवारें, जरोखे और स्तंभ हैं. यह मंदिर अलकनंदा नदी से करीब 50 मीटर ऊंचाई पर बना है. इसका मुख्य प्रवेश द्वार लंबा धनुषाकार है. इसका मुख अलकनंदा नदी की और है. जिसके अन्दर प्रवेश करते ही सभा मंडप (हॉल जहां भक्त इकट्ठा होते हैं) आता है. जो दर्शन मंडप (वह स्थान जहां से मूर्ति की पूजा की जाती है) और अंत में गर्भगृह की ओर जाता है.

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गर्भ गृह की छत 15 मीटर की ऊंचाई पर एक शंक्वाकार शिखर के रूप में है. जिसके शीर्ष पर एक सोने का पानी चढ़ा हुआ है. बद्रीनारायण की 1 मीटर ऊंची काले पत्थर की प्रतिमा, प्रत्येक हाथ में एक शंख और चक्र के साथ है. अन्य दो भुजाएँ विष्णु की गोद में टिकी हुई हैं. जो ध्यान करते हुए पद्मासन मुद्रा में हैं. इस मूर्ति के पास उनकी पत्नी लक्ष्मी जी की एव नारद मुनि की प्रतिमा है. एक तरफ कुबेर और दूसरी तरफ नर नारायण और उद्धव के साथ मंदिर गरुड़ और नवदुर्गा भी मौजूद हैं.

बद्रीनाथ धाम में लगने वाले प्रमुख मेले व त्योहार

यहाँ लगने वाला प्रमुख मेला है- ‘माता मूर्ति का मेला’. यह बद्रीनाथ धाम (मंदिर) में आयोजित होने वाला सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है. एसी मान्यता है कि, यह पृथ्वी पर गंगा नदी के अवतरण के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि, बद्रीनाथ की मां ने पृथ्वी के कल्याण के लिए गंगा नदी को 12 धाराओ में विभाजित किया. जिस स्थान पर गंगा बहती थी वह पवित्र बद्रीनाथ मंदिर बन गया.

“बद्री केदार त्योहार” जून माह में बद्रीनाथ और केदारनाथ दोनों धामों (मंदिरों) में मनाया जाता है. आठ दिन चलने वाले इस त्योहार में देश विदेश से कलाकार प्रदर्शन करने के लिए आते है. अनुष्ठान के दौरान वैदिक शास्त्रों जैसे अष्टोत्रम और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना आवश्यक मन जाता है. यह धाम भक्तो के लिए हर साल अक्टूबर-नवंबर के दौरान सर्दि के मौसम में बंद रहता है.

*अखंड ज्योति के नाम से जाना जाने वाला एक घी का दिया, मंदिर के गर्भगृह में जलाया जाता है. जो छह महीने तक चलता है. छह माह बाद, अप्रैल के दौरान वसंत पंचमी पर मंदिर को फिर से भक्तो के लिए खोल दिया जाता है. इस दिन भक्त गण *अखंड ज्योति के दर्शन करने के लिए आते है.

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कैसे पहुचें बद्रीनाथ धाम (यात्रा)

कई सालो पहले यहाँ की यात्रा करना बेहद मुश्किल होता था. लेकिन वर्तमान में सड़के और अन्य सुविधाओ से यहाँ की यात्रा कम समय में आसानी से की जा सकती है.

सड़क मार्ग से by road :- उत्तराखंड राज्य के प्रमुख स्थलों जैसे देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश, श्रीनगर, चमोली आदि से बद्रीनाथ के लिए बसें और टैक्सियाँ या स्वयं के वाहन से बद्रीनाथ आसानी से पहुंचा जा सकता है.

हवाई मार्ग से by airways :- जॉली ग्रांट हवाई अड्डा, जो कि, बद्रीनाथ से 314 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. बद्रीनाथ धाम का निकटतम हवाई अड्डा (airport) है. यहा से दिल्ली तक दिनभर में कई उड़ाने है. और इस एयरपोर्ट से सड़क मार्ग द्वारा बद्रीनाथ धाम पहुँचा जा सकता है. हवाई अड्डे से बद्रीनाथ के लिए टैक्सी भी ले सकते हैं.

ट्रेन द्वारा (by train) :- बद्रीनाथ धाम से निकटतम रेलवे स्टेशन 295 किलोमीटर की दूरी पर ऋषिकेश स्टेशन है. ऋषिकेश के लिए ट्रेनें अक्सर आती जाती रहती हैं. ऋषिकेश से बद्रीनाथ के लिए टैक्सी और बसें आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं.

FAQ’S

1.बद्रीनाथ कहा स्थित है?

भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक बद्रीनाथ धाम, उत्तराखंड राज्य में अलकनंदा नदी के दाए तट पर, जहा अलकनंदा और ऋषिगंगा का संगम होता है, पर स्थित है.

2. बद्रीनाथ किस राज्य में है?

उत्तराखंड राज्य में बद्रीनाथ धाम (badrinath temple) अवस्थित है.

3.*बद्रीनाथ किस नदी के किनारे स्थित है?

अलकनंदा नदी के दाहिने तट पर बसा है भगवान विष्णु को समर्पित बद्रीनाथ धाम.

4. हरिद्वार से बद्रीनाथ का किराया क्या है?

हरिद्वार से बद्रीनाथ का किराया इस बात पर निर्भर करता है कि, आप किस के माध्यम से वहा जा रहे है. बस, कार और टेक्सी का किराया अलग अलग है. कई ट्रेवल एजेंसीया अपना अलग अलग पैकेज भी प्रदान करवाती है. जिससे आपकी यात्रा सुगम हो सके.

5.पहले कहा जाए बद्रीनाथ या केदारनाथ ?

ऐसा माना जाता है कि, पहले केदारनाथ जी यानी भगवान शिवजी के दर्शन किए जाने चाहिए. उसके बाद बद्रीनाथ के दर्शन करने चाहिए. क्योंकि भगवान शिव ने ही भगवान विष्णु को यह भूमि प्रदान की थी.

इस आर्टिकल में आपने badrinath temple history in hindi language (बद्रीनाथ मंदिर के बारे) एवं बद्रीनाथ की कहानी कथाएँ आदि कई जानकारिया प्राप्त की. आशा करता हूँ कि, यह आर्टिकल आपको पसंद आया होगा. आप हमारे अन्य आर्टिकल भी पढ़ सकते है. यदि आप बद्रीनाथ की यात्रा करने वाले है. या आप बद्रीनाथ के दर्शन के लिए जा रहे है. तो आपकी यात्रा शुभ हो. जय हिन्द जय भारत

बद्रीनाथ किसका अवतार है?

बद्रीनाथ मन्दिर में हिंदू धर्म के देवता विष्णु के एक रूप "बद्रीनारायण" की पूजा होती है। यहाँ उनकी १ मीटर (३.३ फीट) लंबी शालिग्राम से निर्मित मूर्ति है जिसके बारे में मान्यता है कि इसे आदि शंकराचार्य ने ८वीं शताब्दी में समीपस्थ नारद कुण्ड से निकालकर स्थापित किया था।

बद्रीनाथ विष्णु जी के पहले किसका स्थान था?

जीहां अगर बद्रीनाथ धाम के पवित्र स्‍थान के इतिहास को पढ़ें तो पता चलेगा कि विष्‍णु जी का प्रिय स्‍थान बनने से पूर्व ये शिव पार्वती का निवास स्‍थल था। उत्तराखंड राज्य में स्थित अलकनंदा नदी के किनारे बद्रीनाथ धाम है। इसे बदरीनारायण मंदिर भी कहते हैं।

भगवान विष्णु बद्रीनाथ में क्या करते हैं?

धर्म ग्रंथों में इसे दूसरा बैकुंठ कहा गया है। ऐसा वर्णन मिलता है कि भगवान विष्णु सतयुग में यहां साक्षात् देवताओं और मनुष्य को दर्शन दिया करते थे। द्वापर युग से यहां मनुष्यों को भगवान के विग्रह के दर्शन होने लगे। बदरीनाथ के बारे में कहा जाता है यह यहां पर भगवान विष्णु ने नर-नारायण रूप में तपस्या की थी।

बद्रीनाथ धाम का नाम कैसे पड़ा?

जब नारायण ने लक्ष्मा मां से कहा कि हे देवी आपने मेरे बराबर ही तप किया है। इसलिए आज से इस धाम में मेरे साथ-साथ तुम्हारी भी पूजा की जाएगी। आपने बेर यानी कि बद्री के पेड़ के रुप में मेरी रक्षा की है इसलिए ये धाम बद्रीनाथ के नाम से जग में जाना जाएगा।