सब्सक्राइब करे youtube चैनल Show new industrial policy 1991 in hindi features नई औद्योगिक नीति 1991 की विशेषताओं । नई औद्योगिक नीति की विशेषताएँ क्या है ? नई औद्योगिक नीति की विशेषताएँ निजी क्षेत्र का सुदृढ़ीकरण क)
व्यापक क्षेत्र
ख) नियंत्रणों की समाप्ति उद्योगों का प्रसार इस नीति का जोर उद्योगों को सघन आबादी वाले बड़े नगरों से हटाकर ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में ले जाना है। उदाहरण के लिए, एक मिलियन से अधिक आबादी वाले नगरों से भिन्न अन्य अवस्थितियों पर उद्योग स्थापित करने के मामले में उद्योगपति को अनिवार्य लाइसेन्सिंग (अनुज्ञप्ति) के अध्यधीन उद्योगों को छोड़कर केन्द्र सरकार से औद्योगिक अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी। तथापि, उन नगरों (अर्थात् 1 मिलियन से अधिक जनसंख्या वाले नगर) के संबंध में जिसके लिए औद्योगिक पुनर्योजन की आवश्यकता है, एक लचीली अवस्थिति नीति अपनाई जाएगी। एक मिलियन से अधिक आबादी वाले बड़े नगरों में प्रदूषण रहित उद्योगों जैसे इलैक्ट्रॉनिक्स, कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर और मुद्रण को छोड़कर अन्य उद्योगों को 25 कि.मी. की परिधि से बाहर, नामनिर्दिष्ट औद्योगिक क्षेत्रों को छोड़ कर, स्थापित करने की अनुमति होगी। गांवों और पिछड़े प्रदेशों की ओर उद्योगों को आकृष्ट करने के लिए साधन के रूप में प्रोत्साहनों (सस्ती भूमि और ऋण के रूप में) पर भी विचार किया गया। नई औद्योगिक नीति कृषि क्षेत्रों के नजदीक कृषि आधारित उद्योगों के विस्तार का भी समर्थन करती है। लघु उद्योगों और ग्रामीण उद्योगों के क्षेत्र में छोटे शहरों और गांवों में उनका विकास सुनिश्चित करने के लिए कई प्रावधान किए गए हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका को सीमित करना क) अनुपयुक्त क्षेत्र ख) उपयुक्त क्षेत्र इसे देखते हुए, इस नीति ने छः उद्योगों को सूचीबद्ध किया है जिन्हें सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित किया जाना है। ये हैं: रक्षा उत्पादन, परमाणु ऊर्जा, कोयला और लिग्नाइट, खनिज तेल, रेल परिवहन और परमाणु ऊर्जा से संबंधित खनिज। यद्यपि कि ये क्षेत्र आरक्षित हैं परंतु इस नीति में यह भी कहा गया है कि सार्वजनिक क्षेत्रों पर इसके लिए विशेषरूप से आरक्षित नहीं किए गए क्षेत्रों में प्रवेश पर प्रतिबन्ध नहीं होगा। ग) सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों
की कार्य कुशलता में सुधार घ) एम आर टी पी अधिनियम का विस्तार विदेशी निवेश का उदारीकरण प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के अलावा, नई नीति में भारत से निर्यात के क्षेत्र में विदेशी ट्रेडिंग (व्यापारिक) कंपनियों से सहायता प्राप्त करने का लक्ष्य भी है। इस नीति में इस बात पर जोर दिया गया है कि भारतीय उत्पादों के निर्यात के संवर्धन के लिए विश्व बाजारों के व्यवस्थित ढंग से खोज की आवश्यकता है जो सिर्फ गहन और अत्यधिक पेशेवर विपणन कार्यकलापों के माध्यम से ही संभव है। इस नीति में आगे कहा गया है कि उस सीमा तक जब तक भारत में इस प्रकार की विशेषज्ञता का अच्छी तरह से विकास नहीं कर लिया जाता है, सरकार हमारे निर्यात कार्यकलापों में हमारी सहायता करने के लिए विदेशी ट्रेडिंग कंपनियों को प्रोत्साहित करेगी। विश्व बाजार में अपनी पहुँच बनाने के लिए तथा विदेशी निवेश और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी को आकृष्ट करने के लिए सरकार एक विशेष बोर्ड का गठन करेगी जो विश्व की सबसे बड़ी विनिर्माण तथा विपणन कंपनियों से बातचीत करेंगी। जिन उद्योगों में विदेशी निवेश और विदेशी प्रौद्योगिकी की स्वतः स्वीकृति की अनुमति दी गई है वे भारतीय अर्थव्यवस्था के महत्त्वपूर्ण उद्योग हैं। ये उद्योग इस प्रकार हैं: धातुकर्म उद्योग, बॉयलर्स एण्ड स्टीम जेनरेटिंग संयंत्र; विद्युत उपकरण; दूर संचार उपकरण; परिवहन; औद्योगिक मशीनें; कृषि संबंधी मशीनें; औद्योगिक उपकरण और रसायन; अन्य उर्वरक। ये उद्योग मुख्य रूप से पूँजीगत वस्तुओं और बुनियादी सामग्रियों का उत्पादन करने वाले हैं, जो अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षमता को सुदृढ़ करने और नई तथा अत्याधुनिक उत्पादों को लाने में संगत हैं। इनके लिए अत्यधिक निवेश और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों की आवश्यकता पड़ती है। विदेशी प्रौद्योगिकी एकाधिकार पर नियंत्रण लगाना क) परिसम्पत्ति सीमा को समाप्त करना ख) समाज-विरोधी कार्यकलापों पर रोक लघु क्षेत्र के उद्योगों का संवर्धन इस संबंध में लघु क्षेत्र के घटकों के बारे में जानना उपयोगी होगा। ये भिन्न-भिन्न प्रकार के हैं किंतु ये एक साथ एक शीर्ष ‘‘लघु क्षेत्र के उद्योग‘‘ के अन्तर्गत रखे गए हैं। कभी कभी इन्हें लघु क्षेत्र, खादी और ग्रामोद्योगों के अन्तर्गत रखा जाता है। इस क्षेत्र के घटक इस प्रकार हैंः लघु औद्योगिक इकाइयाँ (संयंत्र और मशीनों में 60 लाख रु. के निवेश तक), अनुषंगी इकाइयाँ (संयंत्र और मशीनों में 75 लाख रु. के निवेश तक); अत्यन्त लघु औद्योगिक इकाइयाँ (संयंत्र और मशीनों में 5 लाख रु. के निवेश तक); हथकरघा; हस्त शिल्प, खादी और ग्रामोद्योग। इस नीति की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता लघु उद्योग क्षेत्र को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने के लिए चार-सूत्री योजना है। सर्वप्रथम, यह इन उद्योगों को उनकी संपूर्ण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मानक (छवतउंजपअम) आधार पर अर्थात् , उनकी आवश्यकताओं की दृष्टि से, ऋण के पर्याप्त प्रवाह की आपूर्ति सुनिश्चित करने का प्रयास करता है। यह सस्ता ऋण उपलब्ध कराने पर ध्यान केन्द्रित करने की पुरानी नीति से हटने का सूचक था। औद्योगिक इकाइयों को ऋण आवश्यकताएँ उपलब्ध कराने के साथ, इस प्रावधान में बड़े समूहों में चयनित उद्योगों की पहचान करना भी सम्मिलित है जिन्हें भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) द्वारा वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाएगी। दूसरा, नई औद्योगिक नीति लघु उद्योग क्षेत्र में अन्य अथवा गैर लघु उद्योग क्षेत्र (दवद.ैैप्) द्वारा कुल शेयर धारिता में 24 प्रतिशत तक की इक्विटी भागीदारी की अनुमति प्रदान करता है। यह लघु उद्योगों को पूँजी बाजार में प्रवेश योग्य बनाने और उनके आधुनिकीकरण एवं तकनीकी उन्नयन, उन्हें अनुषंगी बनाने (अर्थात् गैर लघु उद्योग फर्मों के लिए उत्पादन करने) और उप ठेका (अर्थात् , मुख्य ठेकेदार से ठेका आधार पर किसी कार्य के अंश को लेना) के लिए किया जा रहा है। तीसरा, सीमित साझेदारी को अनुमति प्रदान करना है जिससे नए और असक्रिय साझेदार/उद्यमी का वित्तीय दायित्व निवेश की गई पूँजी की सीमा तक ही सीमित होगा। इससे लघु उद्योग क्षेत्र को जोखिम पूँजी की आपूर्ति बढ़ेगी। चैथा, लघु उद्योग क्षेत्र के उत्पादों की बिक्री के बाद शीघ्र भुगतान सुनिश्चित करने के लिए प्रावधान किए गए हैं। इस तरह के एक प्रावधान जिसे फैक्टरिंग सेवाएँ (अढ़तिया अथवा लेनदारी लेखा क्रय सेवाएँ) कहा जाता है जिसमें सिडबी और/अथवा वाणिज्यिक बैंकों द्वारा संचालित एजेन्सियों द्वारा लघु उद्योगों को इन एजेन्सियों द्वारा खरीदारों से वसूली से पहले ही भुगतान की व्यवस्था है। यह, बहुत हद तक, बड़ी इकाइयों द्वारा लघु क्षेत्र को विलम्ब से भुगतान की समस्या का हल कर देगा। नई नीति लघु उद्योगों के लिए कच्चे मालों की आपूर्ति और विपणन सुविधाओं का भी प्रावधान करता है। जहाँ तक देश में ही उपलब्ध कच्चे मालों का संबंध है सरकार इन कच्चे मालों का आबंटन करते समय लघु उद्योगों को प्राथमिकता देगी। यह भी सुनिश्चित किया जाना है कि देश में ही उपलब्ध तथा आयातित कच्चे मालों में लघु क्षेत्र को पर्याप्त और उचित हिस्सा मिले। तथापि, यह देखा जाएगा कि ऐसा करने में लघु क्षेत्र में नई इकाइयों के प्रवेश पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़े । विपणन के लिए, इस नीति में सहकारी क्षेत्रों, सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाओं और अन्य पेशेवर एजेन्सियों द्वारा उनके उत्पादों के बाजार संवर्धन की बात कही गई है। हथकरघा, हस्तशिल्प, खादी और ग्रामोद्योग के लिए विशेष उपाय इसी तरह से ‘‘हस्त शिल्प क्षेत्र‘‘ के लिए इस नीति में निम्नलिखित सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिए क्राफ्ट डेवलपमेंट सेण्टरों की स्थापना की बात कही गई है: कच्चे मालों की आपूर्ति, डिजायन और तकनीकी मार्गदर्शन, विपणन समर्थन, प्रशिक्षण और समेकित तथा क्षेत्र आधारित तरीके से संबंधित आदानों की खरीद। नए विपणन चैनलों जैसे ट्रेडिंग कंपनियों, डिपार्टमेण्टल स्टोरों इत्यादि के माध्यम से हस्त शिल्पों का निर्यात बढ़ाने के लिए भी उपाय प्रस्तावित हैं। खादी और ग्रामोद्योगों के मामले में, इस नीति में अनुसंधान और विकास से संबंधित कार्यकलापों और वित्तीय संस्थाओं से ऋण के बेहतर प्रवाह को प्रोत्साहित करने के उपाय करने का वायदा किया गया। इन सभी कार्यकलापों को बढ़ावा देने में इस नीति में मात्र छूट और राज सहायता (सब्सिडी) की अपेक्षा उपभोक्ताओं की पसंद के अनुरूप गुणवत्ता और उत्पादों के विपणन पर अधिक जोर दिया गया है। बोध प्रश्न 2 2) नई औद्योगिक नीति ने 1970 के एम आर टी पी अधिनियम के प्रावधानों को आपके विचार से कैसे व्यापक और सुदृढ़ बनाया है? 3) बताएँ, निम्नलिखित कथन सही हैं अथवा गलत: बोध प्रश्न 2 उत्तर 1991 की नई आर्थिक नीति का मुख्य उद्देश्य क्या था?इसका प्रमुख उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था को 'वैश्वीकरण' के क्षेत्र में उतारना और उसे बाजार में एक नई दिशा प्रदान करना है। इसका उद्देश्य सभी प्रकार के अनावश्यक नियमों को समाप्त करके आर्थिक स्थिरीकरण और एक बाजार अर्थव्यवस्था बनाना था।
नई आर्थिक नीति की मुख्य विशेषताएं क्या है?नयी आर्थिक नीति १९९१ की विशेषताएं इस प्रकार हैं' केवल छह उद्योगों लाइसेंस योजना के तहत रखा गया था। निजी क्षेत्र के लिए प्रवेश। सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका केवल चार उद्योगों तक ही सीमित था ; बाकी सभी उद्योगों को भी निजी क्षेत्र के लिए खोल दिए गए थे।
नई आर्थिक नीति 1991 को क्या कहा गया?आर्थिक सुधार 1991 से 2022-23 Page 2 नियोजित विकास के चालीस वर्षों के बाद, भारत एक सशक्त औद्योगिक आधार तथा खाद्यन्नों के उत्पादन में स्व-निर्भरता प्राप्त करने में सक्षम रहा है।
भारत ने 1991 के सुधार क्यों किए इससे क्या लाभ हुआ?1991 में व्यापार नीति, औद्योगिक लाइसेंसिंग, बैंकिंग क्षेत्र में सुधार, बहुत संभलते हुए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति देने के साथ नियम-कायदों में ज़बरदस्त बदलाव किए गए, इसमें कोई शक नहीं कि मैक्रो इकॉनमी, राजकोषीय और ढांचागत स्तर पर ये दूरगामी बदलाव लाने वाले कदम थे.
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