कवि को संसार अच्छा क्यों नहीं लगता - kavi ko sansaar achchha kyon nahin lagata

कवि को यह संसार कैसा प्रतीत होता है?


कवि को यह ससार अधूरा प्रतीत होता है। इसीलिए कवि को यह संसार भाता नहीं हैं। यह संसार स्वार्थी है।

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संसार मे कष्टों को सहते हुए भी खुशी और मस्ती का माहौल कैसे पैदा किया जा सकता है?


संसार में सुख और दु:ख दोनों रहते हैं। यहाँ रहकर हमे अनेक कष्ट भी सहने पड़ते हैं। कष्ट निराशा लाते है। पर हम इन कष्टों को सहते हुए भी खुशी और मस्ती का माहौल (वातावरण) पैदा करना चाहिए। अब प्रश्न उठता है कि ऐसा माहौल कैसे पैदा किया जा सकता है। हमें इस संसार के यथार्थ को समझना होगा। कष्ट इस संसार का यथार्थ है। इनसे पूरी तरह छुटकारा मिलना असंभव है। यदि हम इन कष्टो को रो-पीटकर झेलेंगे तो जीवन जीना कठिन हो जाएगा। कष्टों को सहते हुए भी खुशी-मस्ती का अनुभव किया जा सकता है। खुशी-मस्ती के माहौल में कष्ट झेलना सरल हो जाता है। इसके लिए हमे सकारात्मक दृष्टि रखनी होगी।

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दिये गये काव्याशं सप्रसंग व्याख्या करें?


प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि हरिवंशराय ‘बच्चन’ द्वारा रचित कविता ‘आत्म-परिचय’ से अवतरित है। इसमें कवि अपने जीवन जीने की शैली पर प्रकाश डालता है। इस जीवन में कवि को अनेक प्रकार के अनुभव होते है। कवि अपनी विशिष्ट छवि बनाए रखता है।

व्याख्या: कवि इस संसार में अपना पृथक् व्यक्तित्व बनाए रखता है। उसके हृदय में भेंटस्वरूप देने के लिए कुछ भाव और उपहार हैं। कवि कहता है कि मैं अपने हृदय के भावों को ही महत्व देता हूँ। मैं किसी अन्य के इशारे पर नहीं चलता। मैं तो अपने हृदय की बात सुनता हूँ। वही मेरे लिए सबसे बड़ा उपहार है। मुझे तो यह संसार अधूरा प्रतीत होता है अत: यह मुझे अच्छा नहीं लगता। मुझे तो अपने सपनों की दुनिया ही भाती है, मैं उसी में रमा रहता हूँ। (छायावादी शैली का प्रभाव)।

कवि कहता है कि मेरे हृदय में भी एक प्रक्रार की अग्नि (प्रेमाग्नि) जलती रहती है और मैं इसी मे जलता रहता हूँ। कवि प्रेम की वियोगावस्था में व्यथित रहता है। कवि सुख और दु:ख दोनों दशाओं में मग्न रहता है। यह संसार इस भवरूपी सागर से पार उतरने के लिए भले ही नाव का निर्माण करे, पर कवि तो इस भव-सागर की लहरों पर मस्ती के साथ बहता रहता है। उसे पार जाने की चाह नहीं है। वह तो इसी संसार में मस्ती भरा जीवन बिताता रहता है। कवि को इस संसार के तौर -तरीके पसंद नहीं हैं। उसकी अपनी जीवन शैली है, वह उसी प्रकार जीता है। वह संसार रूपी सागर की लहरो का मस्त होकर बहता रहता हैए।

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दिन जल्दी-जल्दी ढलता है-की आवृत्ति से कविता की किस विशेषता का पता चलता है?


‘दिन जल्दी -जल्दी ढलता है’ पंक्ति की आवृत्ति चार बार हुई है। यह पंक्ति कविता की टेक है। इस आवृत्ति से कविता की गेयता की विशेषता का पता चलता है।

‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ इस तथ्य की ओर संकेत करता है जीवन की घड़ियाँ जल्दी बीतती जाती हैं अत: लक्ष्य तक पहुँचने के प्रयास में देरी मत करो। समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। समय गतिशील एवं परिवर्तनशील है। यह किसी के रोके रुकता नहीं। अत: लक्ष्य प्राप्ति मे देर नहीं करनी चाहिए।

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नीचे जयशंकर प्रसाद की आत्मकथा कविता दी जा रही है। क्या पाठ में दी गई आत्मपरिचय कविता से इस कविता का आपको कोई संबंध दिखाई देता है? चर्चा करें?

आत्मकथ्य

मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,

उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की। सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की? छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ? क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ। इन सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा में अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।

(जयशंकर प्रसाद)


दोनों कविताओंमें व्यक्तिवादी अर्थात् आत्मनिष्ठता के भाव की प्रबलता है। दूसरी कविता ‘आत्मकथ्य’ का कवि निराशा के भँवर में उतरता- डूबता प्रतीत होता है। ‘आत्मपरिचय’ कविता का कवि अपने प्रति अधिक आश्वस्त जान पड़ता है।

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दिये गये काव्याश का सप्रसंग व्याख्या करें?
मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ,

फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ;

कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर

मैं साँसों के वो तार लिए फिरता हूँ!

मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ,

मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ,

जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते,

मैं अपने मन का गान किया करता हूँ!


प्रसंग: प्रस्तुत काव्याशं आधुनिक युग के प्रसिद्ध कवि हरिवंशराय ‘बच्चन’ द्वारा रचित कविता ‘आत्म-परिचय’ से अवतरित है। इसमें कवि अपने जीवन को जीने की शैली का परिचय देता है। समाज में रहकर व्यक्ति को सभी प्रकार के अनुभव होते हैं। कभी ये अनुभव मीठे होते हैं तो कभी खट्टे। इस दुनिया से कवि का सबंध प्रीति- कलह का है। कवि इस कविता में दुनिया से अपने द्विधात्मक और द्वंद्वात्मक सबंधी को उजागर करता है।

व्याख्या: कवि कहता है कि मैं इस संसारिक जीवन का भार अपने ऊपर लिए हुए फिरता रहता हूँ। इसके बावजूद मेरे अपने जीवन में प्यार का भी समावेश है। यह एक द्वंद्वात्मक स्थिति है। किसी प्रिय ने उसके हृदय की भावनाओं को स्पर्श करके उसकी हृदय रूपी वीणा के तारो को झनझना दिया अर्थात् उसके हृदय में प्रेम की लहर उत्पन्न कर दी। वह तो साँसों के केवल दो तार ही हुए जी रहा है।

कवि कहता है कि वह प्रेम रूपी मदिरा को पीकर मस्त रहता है। वह इस प्रेम रूपी मदिरा को पीकर इसकी मस्ती में डूबा रहता है। वह इस मस्ती में कभी भी संसार की बातों का ध्यान नहीं करता। संसार के लोग क्या कहते हैं, उसे इसकी परवाह नहीं है। यह संसार उनकी पूछ-ताछ करता है जो उसके कहने पर चलते हैं। इसके विपरीत कवि तो अपने मन के अनुसार गाता है अर्थात कवि संसार के बताए इशारों पर नहीं चलता वह तो अपने मन का बात सुनता है और वही करता है। वह (कवि) तो अपने लिए अपने मन के अनुसार गीत गाता रहता है।

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कवि को संसार अच्छा क्यों नहीं लगता है?

भैं कभी न का पान किया करता हूँ. प्यार से भरा-पूरा है, जीवन की समस्याओं के बावजूद कवि के जीवन में प्यार है, उनका जीवन की तरह है। की इच्छानुसार चलता है। अर्थात वह वहीं करता।

कवि ने संसार को अपूर्ण क्यों कहा है?

कवि को संसार अपूर्ण क्यों लगता है? कवि को संसार इसलिए अपूर्ण लगता है, क्योंकि यह समस्त संसार स्वार्थी है। यहाँ हर कोई अपनी स्वार्थ पूर्ति में डूबा हुआ है। संसार केवल उन्हीं को पूछता है तो उसकी जय-जयकार करते हैं।

कवि का संसार से नाता क्यों नहीं बन पाता?

कवि सांसारिक कठिनाइयों से जूझ रहा है, फिर भी वह इस जीवन से प्यार करता है। वह संसार की परवाह नहीं करता क्योंकि संसार अपने चहेतों का गुणगान करता है। उसे यह संसार अपूर्ण लगता है। वह अपने सपनों का संसार लिए फिरता है।

संचार की विशेषताओं के बीच कवि कैसे जी रहे हैं?

का ध्यान नहीं करते 5. संसार कवि के . को गाना कहता है ।