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वीर कुवर सिंह NCERT Solutions for Class 7 Hindi Vasant Chapter 17Class 7 Hindi Chapter 17 वीर कुवर सिंह Textbook Questions and Answersनिबंध से प्रश्न 1.
प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4.
प्रश्न 5. निबंध से आगे प्रश्न 1. प्रश्न 2. अनुमान और कल्पना प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. भाषा की बात 1. आप जानते हैं कि किसी शब्द को बहुवचन में प्रयोग करने पर उसकी वर्तनी में बदलाव आता है। जैसे-सेनानी एक व्यक्ति के लिए प्रयोग करते हैं और सेनानियों एक से अधिक के लिए। सेनानी शब्द की वर्तनी में बदलाव यह हुआ है कि अंत के वर्ण ‘नी’ की मात्रा दीर्घी’ (ई) से ह्रस्व (इ) हो गई है। ऐसे शब्दों को, जिनके अंत में दीर्घ ईकार होता है, बहुवचन बनाने पर वह इकार हो जाता है, यदि शब्द के अंत में ह्रस्व इकार होता है, तो उसमें परिवर्तन नहीं होता जैसे-दृष्टि से दृष्टियों। गद्याशों पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर 1. सन् 1857 के व्यापक ………………… कब्जा रहा। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. 2. वीर कुंवर सिंह के बचपन के बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं मिलती। कहा जाता है कि कुँवर सिंह का जन्म बिहार में शाहाबाद जिले के जगदीशपुर में सन् 1782 में हुआ था। उनके पिता का नाम साहबजादा सिंह और माता का नाम पंचरतन कुँवर था। उनके पिता साहबजादा सिंह जगदीशपुर रियासत के ज़मींदार थे, परंतु उनको अपनी ज़मींदारी हासिल करने में बहुत संघर्ष करना पड़ा। पारिवारिक उलझनों के कारण कुँवर सिंह के पिता बचपन में ठीक से देखभाल नहीं कर सके। जगदीशपुर लौटने के बाद ही वे कुँवर सिंह की पढ़ाई-लिखाई की ठीक से व्यवस्था कर पाए। कुँवर सिंह के पिता वीर होने के साण साथ स्वाभिमानी एवं उदार स्वभाव के व्यक्ति थे। उनके व्यक्तित्व का प्रभाव कुँवर सिंह पर भी पड़ा। कुँवर सिंह की शिक्षा-दीक्षा की व्यवस्था उनके पिता ने घर पर ही की। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. 3. जगदीशपुर के जंगलों में ‘बसुरिया बाबा’ नाम के एक सिद्ध संत रहते थे। उन्होंने ही कुँवर सिंह में देशभक्ति एवं स्वाधीनता की भावना उत्पन्न की थी। उन्होंने बनारस, मथुरा, कानपुर, लखनऊ आदि स्थानों पर जाकर विद्रोह की सक्रिय योजनाएँ बनाईं। वे 1845 से 1846 तक काफी सक्रिय रहे और गुप्त ढंग से ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह की योजना बनाते रहे। उन्होंने बिहार के प्रसिद्ध सोनपुर मेले को अपनी गुप्त बैठकों की योजना के लिए चुना। सोनपुर के मेले को एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला माना जाता है। यह मेला कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लगता है। यह हाथियों के क्रय-विक्रय के लिए भी विख्यात है। इसी ऐतिहासिक मेले में उन दिनों स्वाधीनता के लिए लोग एकत्र होकर क्रांति के बारे में योजना बनाते थे। प्रश्न 1. प्रश्न 2. 4. दानापुर और आरा की ………………. हुए वे लखनऊ पहुंचे। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. 5. वीर कुंवर सिंह …………………… के रूप में आज भी गाई जाती है। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. वीर कुवर सिंह Summaryपाठ का सार 1857 में कलकत्ता की बैरकपुर छावनी में अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत करने के जुल्म में मंगल पांडे को 8 अप्रैल, 1857 को फाँसी पर लटका दिया गया। 10 मई, 1857 को मेरठ में भारतीय सैनिकों ने ब्रिटिश अधिकारियों के विरुद्ध आंदोलन शुरू किया और 11 मई को दिल्ली पर कब्जा करके अंतिम मुगल शासक बहादुरशाह ज़फर को शासक घोषित कर दिया। दिल्ली के अतिरिक्त कानपुर, लखनऊ, बरेली, बुंदेलखंड और आरा में भी भीषण युद्ध हुआ। विद्रोह के मुख्य नेताओं में नाना साहेब, तात्या टोपे, बख्त खान, रानी लक्ष्मीबाई, कुँवर सिंह आदि थे। 1857 के युद्ध में वीर कुंवर सिंह का नाम कई दृष्टियों से उल्लेखनीय है। उनके पिता का नाम साहबजादा सिंह और माता का नाम पंचरतन कुँवर था। उनके पिता जगदीशपुर रियासत के ज़मींदार थे परन्तु उनको अपनी जमींदारी हासिल करने में बहुत संघर्ष करना पड़ा। कुँवर सिंह की पढ़ाई-लिखाई की भी ठीक से व्यवस्था नहीं हो सकी। बाबू कुँवर सिंह ने अपने पिता की मृत्यु के बाद 1827 में रियासत की जिम्मेदारी संभाली। इस समय ब्रिटिश हुकूमत का अत्याचार अपने चरम पर था। कुँवर सिंह ने ब्रिटिश हुकूमत से लोहा लेने का संकल्प लिया। कुँवर सिंह ने कई स्थानों पर जाकर अंग्रेजों के विरुद्ध योजनाएँ बनाईं। 25 जुलाई, 1857 को दानापुर की सैनिक टुकड़ी ने विद्रोह कर दिया। कुँवर सिंह से उनका संपर्क पहले से ही था। वे कुंवर सिंह का जयघोष करते हुए आरा पहुंचे और जेल की सलाखों को तोड़ दिया। 27 जुलाई को उन्होंने आरा पर विजय प्राप्त कर ली। दानापुर और आरा की इस लड़ाई की ज्वाला बिहार में सर्वत्र फैल गई थी परन्तु देशी सैनिकों में अनुशासन की कमी थी एवं आधुनिक अस्त्र-शस्त्र भी नहीं थे इस कारण जगदीशपुर के पतन को रोका नहीं जा सका। कुँवर सिंह सासाराम से मिर्जापुर होते हुए रीवा, कालपी, कानपुर और लखनऊ तक गए। कुँवर सिंह की कीर्ति पूरे उत्तर भारत में फैल गई थी। उनकी आजादी की यह यात्रा आगे बढ़ती गई। लोग शामिल होते गए। इस प्रकार ग्वालियर, जबलपुर के सैनिकों के सहयोग से सफल सैन्य प्रदर्शन करते हुए वे लखनऊ पहुँचे। वे इलाहाबाद एवं बनारस पर आक्रमण कर शत्रुओं को पराजित करना चाहते थे। उन्होंने 22 मार्च, 1858 को आजमगढ़ पर कब्जा कर लिया। 23 अप्रैल को स्वाधीनता की पताका फहराते हुए वे जगदीशपुर पहुँच गए। परन्तु बूढ़े शेर को अधिक दिनों तक इस विजय का आनंद लेने का सौभाग्य नहीं मिला। अंग्रेजों के साथ लड़ते हुए 26 अप्रैल, 1858 को वह वीरगति को प्राप्त हो गया। वीर कुंवर सिंह छापामार युद्ध करने में बहुत निपुण थे। उनके रण कौशल को अंग्रेजी सेनानायक नहीं समझ पाते थे। 1857 के संग्राम में इन्होंने तलवार की जिस धार से अंग्रेजी सैनिकों को मौत के घाट उतारा उसकी चमक आज भी भारतीयों के हृदय में थी। वीर कुंवर सिंह ने अनेक सामाजिक कार्य भी किए। उन्होंने आरा जिला स्कूल के लिए जमीन दान दी। उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी फिर भी वे निर्धन व्यक्तियों की सहायता करने के लिए सदा तत्पर रहते थे। उन्होंने आरा-जगदीशपुर व आरा-बलिया सड़क का निर्माण कराया तथा अनेक कुँए खुदवाए। उनकी सेना में इब्राहीम खाँ और किफायत हुसैन उच्च पदों पर आसीन थे। हिन्दू और मुसलमान मिलकर त्योहार मनाते थे। कुँवर सिंह की प्रशस्ति लोक गीतों के रूप में आज भी गाई जाती है। शब्दार्थ : वीरवर-श्रेष्ठ-वीर; अभिराम-सुंदर; व्यापक-दूर-दूर तक फैला हुआ; विस्तृत-लंबा चौड़ा; संकल्प-निश्चय; तत्पर-तैयार; पताका-झंडा; रण कौशल-युद्धकला; संवेदनशील-संवेदना वाला; शौर्य-वीरता। वीर कुंवर सिंह ने क्या क्या काम किए?1857 के संग्राम में बाबू कुंवर सिंह
मेरठ, कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, झांसी और दिल्ली में भी आग भड़क उठी। ऐसे हालात में बाबू कुंवर सिंह ने अपने सेनापति मैकु सिंह एवं भारतीय सैनिकों का नेतृत्व किया। 27 अप्रैल 1857 को दानापुर के सिपाहियों, भोजपुरी जवानों और अन्य साथियों के साथ आरा नगर पर बाबू वीर कुंवर सिंह ने कब्जा कर लिया।
वीर कुंवर सिंह को किन किन कामों में मजा आता था क्या उन्हें इन कामों से सफलता सेनानी बनने में सफलता मिली?कुँवर सिंह को पढ़ने लिखने के स्थान पर घुड़सवारी, तलवारबाज़ी और कुश्ती लड़ने में मज़ा आता था। अवश्य इन कार्यों के कारण ही उनके अन्दर एक वीर पुरूष का विकास हुआ था, जिससे आगे चलकर उन्होंने अनेकों वीरतापूर्ण कार्य कर इतिहास में अमिट छाप छोड़ी। यदि वे ये कार्यों को ना करते तो अंग्रेज़ों से अनेकों युद्ध कैसे लड़ते।
वीर कुंवर सिंह की कौन कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया है लिखिए?(ii) साहसी - वीर कुँवर सिंह एक साहसी व्यक्ति थे। इनका साहस ही था कि उन्होंने अंग्रेज़ों के दाँत खट्टे कर दिए थे। (iii) बुद्धिमान एंवम चतुर - कुँवर सिंह एक बुद्धिमान एवम् चतुर व्यक्ति थे अपनी चतुरता व सूझबूझ के कारण ही एक बार कुँवर सिंह जी को गंगा पार करनी थी पर अंग्रेज़ी सरकार उनके पीछे लगी थी।
वीर कुंवर सिंह पाठ से हमें क्या सीख मिलती है?वीर कुंवर सिंह के जीवन से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि यदि मनुष्य के मन में किसी भी कार्य को करने की दृढ इच्छा हो तो कोई भी बाधा उसे आगे बढ़ने से रोक नहीं सकती है। उनका जीवन हमें देश के लिए त्याग, बलिदान एवं संघर्ष करने की प्रेरणा देता है। उससे हमें परोपकारी बनने की प्रेरणा भी मिलती है।
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