विभाव का अर्थ है "कारण"। जिन कारणों से सहृदय सामाजिक के हृदय में स्थित स्थायी भाव उदबुद्ध होता है उन्हें विभाव कहते है। यह दो प्रकार के होते hai Show आलंबन विभाव[संपादित करें]भावों का उद्गम जिस मुख्य भाव या वस्तु के कारण हो वह काव्य का आलंबन कहा जाता है। जैसे शृंगार रस में नायक और नायिका "रति" संज्ञक स्थाई भाव के आलंबन होते हैं आलंबन के अंतर्गत आते हैं विषय और आश्रय। विषय[संपादित करें]जिस पात्र के प्रति किसी पात्र के भाव जागृत होते हैं वह विषय है। साहित्य शास्त्र में इस विषय को आलंबन विभाव अथवा 'आलंबन' कहते हैं। आश्रय[संपादित करें]जिस पात्र में भाव जागृत होते हैं वह आश्रय कहलाता है। उद्दीपन विभाव[संपादित करें]स्थायी भाव को जाग्रत रखने में सहायक कारण उद्दीपन विभाव कहलाते हैं। शृंगार रस में नायक के लिए नायिका यदि आलंबन है तो उसकी चेष्टाए रति भाव को उद्दीपक करने के कारण उद्दीपक विभाव कहलाती है रति क्रिया के लिए उपयुक्त वातावरण जैसे चादनी रात, प्राकृतिक सुषमा, शांतिमय वातावरण आदि विषय उद्दीपक विभाव के अंतर्गत आते हैं उदाहरण स्वरूप (१) वीर रस के स्थायी भाव उत्साह के लिए सामने खड़ा हुआ शत्रु आलंबन विभाव है। शत्रु के साथ सेना, युद्ध के बाजे और शत्रु की दर्पोक्तियां, गर्जना-तर्जना, शस्त्र संचालन आदि उद्दीपन विभाव हैं। उद्दीपन विभाव के दो प्रकार माने गये हैं: आलंबन-गत (विषयगत)[संपादित करें]अर्थात् आलंबन की उक्तियां और चेष्ठाएं बाह्य-गत (बर्हिगत)[संपादित करें]अर्थात् वातावरण से संबंधित वस्तुएं। प्राकृतिक दृश्यों की गणना भी इन्हीं के अंर्तगत होती हैं। सन्दर्भ[संपादित करें]विभाव भाव को प्रकट करने वाले कारण को विभाव कहते हैं। अर्थात् वे सभी साधन जिनके कारण हमारे मन में भाव उत्पन्न होते हैं,उन्हें विभाव कहते हैं। विभाव को समस्त रसों का जनक भी कहा जा सकता है, क्योंकि रसों की उत्पत्ति इन्हीं के कारण हुआ करती है। प्रेमी युगल को प्रेम करते देखकर मन में प्रेम उमड़ना आदि।
(आ) आश्रय -जिसके हृदय में भाव उत्पन्न हो, उसे आश्रय कहते
हैं। (ख) उद्दीपन विभाव- कभी-कभी किसी को देखकर सुनकर या पढ़कर हमारे मन में भी ठीक वैसे ही भाव उत्पन्न हो जाते हैं । किन्तु किन्हीं परिस्थितियों के कारण जब वे भाव और अधिक प्रगाढ़ हो जाएँ , तो उन परिस्थितियों को उद्दीपन
विभाव कहते हैं। अर्थात् स्थायी भाव को और अधिक बढ़ाने या भड़काने में सहायक कारण को उद्दीपन विभाव कहते हैं। लाश के साथ बैठे उदास लोग, घर वालों का रूदन-क्रंदन, मृतक के अच्छाइयों की चर्चा,लाश उठाने की तैयारियाँ आदि उद्दीपन विभाव हैं क्योंकि ये शोक को और अधिक बढ़ाते हैं। और फ़िर उसकी वे सारी बातें , उसके हाव-भाव आदि जिन्हें देख-देख कर हम ठहाका लगाते हैं या लोट-पोट हो जाते हैं। वे सारी बातें और हाव-भाव आलंबन गत उद्दीपन हैं। (आ) वातावरण गत उद्दीपन- किसी को देख कर जब कोई
भाव उत्पन्न हो और वातावरण , प्रकृति या किन्हीं अन्य दूसरे कारणों के चलते जब उस भाव में बढ़ोत्तरी हो , तब वे बाहरी कारण वातावरण गत उद्दीपन कहलाते हैं।
अनुभाव क्रमश: अगले पोस्ट में... ॥ इति - शुभम् ॥ विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’ विभाव के प्रमुख कितने भेद हैं?विभाव- काव्य में किसी वस्तु या विषय के वर्णन को पड़ने से जो भाव उपन्न होते हैं, उन्हें विभाव कहते हैं। विभाव दो प्रकार के होते हैं। आलंबन को दो भागो में बाटा गया है। उद्दीपन विभाव- जिन वस्तुओ और परिस्तिथियों को देख कर जो भाव उद्दीप्त होने लगते है, उन्हें उद्दीपन विभाव कहते हैं।
विभाव के दो भेद कौन कौन से हैं?विशेष—विभाव दो कहे गए हैं—आलंबन और उद्दीपन । आलंबन वह है जिसके प्रति आश्रय या पात्र के हृदय में कोई भाव स्थित हो । जैसे नायक के लिये नायिका और नायिका के लिये नायक । उद्दीपन वह है जिससे आलंबन के प्रति स्थित भाव उद्दीप्त या उत्तेजित हो ।
उद्दीपन विभाव के कितने भेद होते हैं?रसों के उद्दीपन के आधार पर इन विभावों के भेद किये गये हैं। शारदातनय ने इसके आठ भेद बताये हैं - ललित, ललिताभास, स्थिर, चित्र, रूक्ष, खर, निन्दित तथा विकृत। मन को आह्लादित करने वाले उद्दीपन विभावों को ललितोद्दीपन विभाव कहते हैं। इससे श्रृंगार की उत्पत्ति मानी जाती है।
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