दूसरों के काम आना ही जीवन का सच्चा सुख है विषय पर लघु कथा लिखिए - doosaron ke kaam aana hee jeevan ka sachcha sukh hai vishay par laghu katha likhie

पढ़िए एक सेठ की कहानी, जो हताश होकर आत्महत्या करने की कोशिश करता है और तभी उसे एक संत रोक लेते हैं और उसे जीवन में सुख और दुख दोनों को समान भाव से देखने का ज्ञान देते हैं.

दूसरों के काम आना ही जीवन का सच्चा सुख है विषय पर लघु कथा लिखिए - doosaron ke kaam aana hee jeevan ka sachcha sukh hai vishay par laghu katha likhie

जीवन में सुख और दुख दोनों जरूरी हैं

घुप्प अंधेरी रात में एक व्यक्ति नदी में कूद कर आत्महत्या करने का विचार कर रहा था. वर्षा के दिन थे और नदी पूरे उफान पर थी. आकाश में बादल घिरे थे और रह-रहकर बिजली चमक रही थी.

वो शख्स काफी धनी व्यक्ति था लेकिन अचानक हुए घाटे से उसकी सारी संपत्ति चली गई थी. उसके भाग्य का सूरज डूब गया था, चारों ओर निराशा ही निराशा थी और भविष्य नजर नहीं आ रहा था.

उसे कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करे, तो उसने स्वयं को समाप्त करने का विचार कर लिया और नदी में कूदने के लिए जैसे ही चट्टान के छोर पर खड़ा होकर वह अंतिम बार ईश्वर का स्मरण करने लगा, तभी दो बुजुर्ग परंतु मजबूत बांहों ने उसे रोक लिया.

बिजली की चमक में उसने देखा कि एक वृद्ध साधु उसे पकड़े हुए है. उस वृद्ध ने उससे निराशा का कारण पूछा और किनारे लाकर उसकी सारी कथा सुनी. फिर हंसकर बोला, तो तुम ये स्वीकार करते हो कि पहले तुम सुखी थे!

सेठ बोला, हां मेरे भाग्य का सूर्य पूरे प्रकाश से चमक रहा था. सब ओर मान-सम्मान और संपदा थी. अब जीवन में सिवाय अंधकार और निराशा के कुछ भी शेष नहीं रहा.

वृद्ध फिर हंसा और बोला, दिन के बाद रात्रि है और रात्रि के बाद दिन, जब दिन नहीं टिकता तो रात्रि भी कैसे टिकेगी! परिवर्तन प्रकृति का नियम है, ठीक से सुनो और समझ लो.

जब तुम्हारे अच्छे दिन हमेशा के लिए नहीं रहे तो बुरे दिन भी नहीं रहेंगे. जो इस सत्य को जान लेता है, वो सुख में सुखी नहीं होता और दुख में दुःखी नहीं होता.

उसका जीवन उस अडिग चट्टान की भांति हो जाता है जो वर्षा और धूप में समान ही बनी रहती है. सुख और दुःख को जो समभाव से ले, समझ लो कि उसने स्वयं को जान लिया.

सुख-दुःख तो आते-जाते रहते हैं, यही प्रकृति की गति है. सोचो यदि किसी ने जीवन में एक जैसा ही भाव देखा, हमेशा सुख का ही. जिस चीज की आवश्यकता हुई उससे पहले वो मिल गई तो क्या वो कुछ उपहार पाने की खुशी का अनुभव कर सकता है !

दुःख न आए तो सुख का स्वाद क्या होता है, ये कोई कैसे जाने ! इसलिए जीवन में सुख और दुख दोनों जरूरी हैं. जो इस शाश्वत नियम को जान लेता है, उसका जीवन बंधनों से मुक्त हो जाता है.

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निर्धारित समय :2 घण्टे
अधिकतम अंक : 40

सामान्य निर्देश :

  • इस प्रश्न-पत्र में कुल 2 खंड हैं- खंड ‘क’ और ‘ख’।
  • खंड ‘क’ में कुल 3 प्रश्न हैं। दिए गए निर्देशों का पालन करते हुए इनके उत्तर दीजिए।
  • खंड ‘ख’ में कुल 5 प्रश्न हैं। दिए गए निर्देशों का पालन करते हुए इनके उत्तर दीजिए।
  • कुल प्रश्नों की संख्या 8 है।
  • प्रत्येक प्रश्न को ध्यानपूर्वक पढ़ते हुए यथासंभव क्रमानुसार उत्तर लिखिए।

खंड ‘क’

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लगभग 25 से 30 शब्दों में दीजिए- (2 × 2 = 4)
(क) सआदत अली कौन था? उसे खुश रखना कर्नल के लिए क्यों आवश्यक था?
उत्तरः
सआदत अली वज़ीर अली के पिता का भाई अर्थात् उसका चाचा था। स्वभाव में दोनों बिल्कुल भिन्न थे। वज़ीर अली सच्चा देशभक्त था, देश के हित में अपनी जान दे सकता था और किसी की जान ले भी सकता था। वहीं दूसरी ओर सआदात अली ऐश पसंद आदमी था। देश भक्ति जैसी कोई भावना उसके दिल में नहीं थी। अंग्रेजों द्वारा वज़ीर अली को अवध के तख्त से हटाकर वह पद सहादत अली को सौंप दिया गया। उसने अपनी आधी जायदाद और दस लाख रुपए कर्नल को दिए। उसे खुश रख कर अंग्रेज अवध पर कब्जा बनाए रखना चाहते थे।

(ख) कवि ‘मैथिलीशरण गुप्त’ ने सच्चे मनुष्य की क्या पहचान बताई है?
उत्तरः
‘मनुष्यता’ कविता के अंतर्गत कवि ‘मैथिलीशरण गुप्त’ ने सच्चे मनुष्य की पहचान बताई है। केवल मनुष्य के रूप में जन्म लेने से कोई मनुष्य नहीं कहलाता। दया, करुणा, परोपकार, सहानुभूति, निराभिमान आदि गुणों के बल पर हम अपने मनुष्य होने को सार्थक कर सकते हैं। विभिन्न उदाहरण देकर कवि ने यह स्पष्ट किया है कि केवल अपनी स्वार्थ सिद्धि में ही जीवन व्यतीत करना पशुओं की प्रवृत्ति होती है। मनुष्य कहलाने योग्य वह है जो सभी के हित-अहित के विषय में सोचते और कार्य करते
हुए जीवन व्यतीत करे।

(ग) झेन की कौन-सी देन जापानियों को मिली हुई है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
पाठ ‘झेन की देन’ के अंतर्गत लेखक ‘रवींद्र केलेकर’ ने जापान में प्रचलित बौद्ध दर्शन की एक ऐसी पद्धति का वर्णन किया है जिसके कारण जापानी अपनी व्यस्त और तनावग्रस्त दिनचर्या के बीच भी कुछ चैन भरे पल पा लेते हैं और स्वयं को तनाव मुक्त करके फिर से उस दौड़ भाग में शामिल होने के लिए तैयार कर लेते हैं। यह परंपरा ‘झेन परंपरा’ कहलाती है। लेखक ने अपने अनुभव से यह महसूस किया कि यह झेन परंपरा जापानियों को मिली हुई एक बहुत बड़ी देन है जो उन्हें मानसिक रोगी होने से बचाती है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित दो प्रश्नों में से किसी एक प्रश्न का उत्तर लगभग 60 से 70 शब्दों में दीजिए- (4 × 1 = 4)
(क) जब से हमने होश संभाला है, पिताजी को घर से दफ्तर, दफ्तर से घर की दूरी तय करते हुए, घर और दफ्तर की छोटी-बड़ी समस्याओं को हल करने की कोशिश करते हए ही देखा है। माँ भी उनकी कोशिशों में भागीदार बनी रही। जब हम थोड़े बड़े हुए, घर के कामों में हाथ बंटाने लगे। अब हम अपने पैरों पर खड़े हो गए हैं। हम चाहते हैं कि अब वे जिंदगी का मजा लें। किन्तु हमारे भविष्य को बनाने के लिए उन्होंने शायद जरूरत से ज्यादा बोझ अपने कंधों पर ले लिया और बिस्तर पर आ गए।

मध्यम वर्ग के हर व्यक्ति की लगभग यही स्थिति है। पाठ ‘झेन की देन’ से जो संदेश मिलता है, क्या उससे इस स्थिति को बदला जा सकता है? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
अथवा
(ख) व्यक्ति निर्माण से ग्राम निर्माण और स्वाभाविक ही देश निर्माण तक के गाँधी जी के सपनों को अन्ना हजारे ने पूरा करके दिखाया। एक गाँव से प्रारंभ हुआ उनका अभियान आज लगभग 80 गाँव तक फैला हुआ है। व्यक्ति निर्माण के लिए मूल मंत्र देते हुए उन्होंने युवाओं में उत्तम चरित्र शुद्ध आचार-विचार निष्कलंक व त्याग की भावना विकसित करने तथा निर्भयता को आत्मसात कर आम आदमी की सेवा को आदर्श के रूप में स्वीकार करने का आह्वान किया है।
‘मनुष्यता’ कविता के आधार पर बताइए कि अन्ना हजारे और कवि मैथिलीशरण गुप्त की सोच में क्या समानता आप महसूस कर रहे हैं।
उत्तरः
(क) मध्यम वर्ग का लगभग प्रत्येक व्यक्ति अपने भविष्य को सुखमय बनाने के लिए वर्तमान को दाव पर लगा रहा है। वर्तमान के पलों को पूरी तरह से जी नहीं पाता, अपने पैसे को भी अपने ऊपर न खर्च करके भविष्य के लिए या अपने बच्चों के लिए जोड़ता जाता है। यह सोच ठीक नहीं है। यदि हमने वर्तमान को पूरी तरह नहीं जिया तो भविष्य को खुशनुमा बनाने की कोशिश करना व्यर्थ है। उपरोक्त उदाहरण में भी एक पिता ने समय और धन का विवेकपूर्ण इस्तेमाल नहीं किया। भविष्य की योजना बनाकर चलते किंतु अपने स्वास्थ्य और वर्तमान पलों का भी ख्याल रखते तो बेहतर होता।

पाठ झेन की देन में लेखक ने जापानियों का उदाहरण देकर यही समझाया है कि वह अपने देश को अमेरिका जैसे देश से आगे निकालने की होड़ में लगे हुए हैं। जीवन की रफ्तार इतनी बढ़ा ली है कि खुद के लिए समय ही नहीं है। यह स्थिति तनाव पैदा करती है और यह तनाव हमें मनोरुग्ण बना देता है। इससे बचने का केवल यही उपाय है कि वर्तमान में जिएं, क्योंकि वही एकमात्र सत्य है। उसका भरपूर, बेहतरीन इस्तेमाल करें ताकि जब वह अतीत बने तो उसकी सुखद यादें हों और भविष्य अपने आप ही सुखद होता चला जाए।
अथवा
(ख) उपरोक्त उदाहरण में एक कर्मठ, समाजसेवी व्यक्ति अन्ना हजारे के विषय में जो बताया गया है, वह अद्भुत और प्रशंसनीय है। उन्होंने कभी भी स्वार्थ प्रेरित होकर कार्य नहीं किया। समाज और देश का हित हमेशा उनके लिए सर्वोपरि रहा। जो सच की राह पर चलता है, निर्भयता उसके कदम चूमती है, त्याग करके जो सुख मिलता है, वही मनुष्य जीवन का असली सुख है। कवि ‘मैथिली शरण गुप्त’ ने भी मनुष्यता कविता में यही संदेश दिया है कि मनुष्य रूप में जन्म लेने मात्र से हम मनुष्य नहीं कहलाते। दया, करुणा, परोपकार, सहानुभूति, दान और तप जैसे गुण ही हमें अपने मनुष्य जीवन को सार्थक बनाने में मदद करते हैं। अतः इन दोनों की सोच में अत्यधिक समानता है। कवि ने जो कुछ कहा है, समाजसेवी अन्ना हजारे ने उस पर अमल करके मानवता के लिए एक मिसाल कायम की है।

प्रश्न 3.
पूरक पाठ्यपुस्तक संचयन के किन्हीं तीन प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए- (3 × 2 = 6)
(क) पाठ ‘सपनों के से दिन’ के आधार पर बताइए कि आप पी. टी. सर व हैडमास्टर शर्मा जी में से किससे प्रभावित हैं और क्यों?
उत्तरः
हमारे बचपन की कुछ यादें हमेशा हमारे साथ रहती हैं और समय-समय पर खट्टे-मीठे अनुभव देती रहती हैं। पाठ ‘सपनों के से दिन’ में लेखक ने भी अपने बचपन की कुछ यादों को हमारे समक्ष प्रस्तुत किया है, जिसमें उन्होंने अपने विद्यालय के दो अध्यापकों का विशेष जिक्र किया है। उनमें से एक हैं-पी. टी. सर, मास्टर प्रीतमचन्द, जो कि बहुत ही सख्त स्वभाव के हैं। छात्रों को अनुशासन में रखने के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं, यहाँ तक कि खाल खींचने के मुहावरे को प्रत्यक्ष करके दिखा देते हैं। दूसरे हैं-हैडमास्टर शर्मा जी, जो बहुत नम्र स्वभाव के हैं। छात्रों को शारीरिक दण्ड देना उनके उसलों के खिलाफ है। पी. टी. सर का खौफ इस कदर है कि उनके मुअत्तल हो जाने पर भी उनके कालांश में छात्र घबराते रहते हैं। उनके मुँह से बमुश्किल निकलने वाली ‘शाबाश’ बच्चों को फौज के तमगों जैसी मूल्यवान लगती है। मेरे विचार से दोनों के ही चरित्र में अति है। एक शिक्षक को न तो इतना कठोर होना चाहिए कि छात्र उनका सम्मान करने की बजाए उनसे डरते रहें और न इतना नम्र कि छात्र अनुशासनहीन हो जाएँ।

(ख) अम्मी शब्द सुनकर टोपी के घरवालों की क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तरः
पाठ ‘टोपी शुक्ला’ दो ऐसे मित्रों की कहानी है जिनकी परवरिश बिल्कुल भिन्न परिस्थितियों में हुई, अलग पारिवारिक वातावरण, मान्यताएँ भी अलग, फिर भी दोनों में घनिष्ठ सम्बन्ध बन गए। टोपी हिन्दू परिवार से था जबकि इफ्फन कट्टर मुसलमान परिवार से। टोपी ने इफ्फन के घर से एक नया शब्द सीखा ‘अम्मी’ और अपने घर पर जब उसके मुँह से अपनी माँ के लिए यह शब्द निकला तब उसके परिवार वालों की तीखी नजरें उस पर उठी, खाने की मेज़ पर सभी हाथ अचानक रुक गए, उसकी दादी टोपी की माँ पर बरस पड़ीं कि वह उसे ऐसे लड़के से मित्रता करने से रोकती क्यों नहीं है। माँ ने टोपी को बहुत मारा किन्तु फिर भी टोपी ने इफ्फन से दोस्ती तोड़ना स्वीकार नहीं किया।

(ग) लेखक के साथ हरिहर काका के संबंधों पर प्रकाश डालिए।
उत्तरः
हरिहर काका एक सीधे-सादे किसान थे। खेतीबाड़ी से समय मिलने पर वे गाँव की ठाकुरबाड़ी में जाकर धार्मिक चर्चा में समय व्यतीत करते थे। लेखक को हरिहर के प्रति गहरी आसक्ति थी जिसके बहुत से वैचारिक और व्यावहारिक कारण थे। एक तो यह कि हरिहर उनके पड़ोस में रहते थे, दूसरा लेखक जब छोटे थे तब हरिहर काका उन्हें एक पिता से भी अधिक दुलार करते थे। लेखक बचपन में हरिहर काका के कंधे पर बैठकर घूमा करते थे। लेखक जब सयाने हुए तो उनकी पहली दोस्ती हरिहर काका से ही हुई और हरिहर काका अपने मन की सभी बातें लेखक के साथ किया करते थे। लेखक को उनके साथ समय बिताना बहुत अच्छा लगता था।

खंड ‘ख’: लेखन

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर संकेत बिन्दुओं के आधार पर लगभग 150 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए
(क) पर उपदेश कुशल बहुतेरे

  • लोकोक्ति का अर्थ
  • उदाहरण
  • आदर्श स्थिति।

उत्तरः
(क) पर उपदेश कुशल बहुतेरे यह एक सर्वविदित सत्य है कि दूसरों को उपदेश देना, समझाना, दोषारोपण करना तो बहुत आसान है, किन्तु स्वयं उन बातों पर अमल करना या उन दोषों से दूर रहना कठिन है। वास्तव में हमारे उपदेश तभी प्रभावशाली सिद्ध हो सकते हैं जब हम स्वयं उस पर अमल करते हों। जो शिक्षक स्वयं समय बर्बाद करता हो या काम से जी चुराता हो, वह छात्रों को समय के सदुपयोग की सीख कैसे दे पाएगा; जो माता-पिता स्वयं झूठ बोलते हों वे अपने बच्चे को सच बोलना कदापि नहीं सिखा सकते। अतः यदि हम किसी को कुछ सिखाना चाहते हैं तो सर्वप्रथम उस उपदेश को स्वयं पर लागू करना आना चाहिए। किन्तु इसी का दूसरा पहलू भी है कि जब कोई दुविधा में होता है तो उसका विवेक उससे छिन जाता है, ऐसे में उसे उपदेश देकर, समझाकर सही मार्ग पर चलने या उचित निर्णय लेने में मदद की जा सकती है। अतः लोकोक्ति को सर्वथा नकारात्मक रूप से नहीं लेना चाहिए। यदि उचित समय पर, उचित भावना से उपदेश दिया जा रहा है, तो सकारात्मकता के साथ स्वीकार करने में ही भलाई है।

अथवा

(ख) मेरी कल्पना का भारत

  • प्राचीन भारत
  • वर्तमान की समस्याएँ
  • सुधार के उपाय।

उत्तरः
मेरी कल्पना का भारत प्रत्येक व्यक्ति के लिए उसके अपने देश का एक विशेष महत्व होता है। जिस धरती पर हम जन्म लेते हैं, पलते-बढ़ते हैं, उसके साथ हमारी भावनायें जुड़ जाती हैं। मैं भारत का निवासी हूँ और अपने देश को ऊँचाइयों पर देखना चाहता हूँ। कभी हमारा देश भारत सोने की चिड़िया कहलाता था, संस्कृति व प्राकृतिक सम्पदा का धनी था, किन्तु समय के साथ-साथ प्रत्येक दृष्टि से यह कमज़ोर होता गया। अनगिनत समस्याएँ-सामाजिक, आर्थिक, नैतिक व राजनैतिक आदि चुनौती बनकर हमारे सामने खड़ी हैं। इन समस्याओं को तब तक दूर नहीं किया जा सकता जब तक छोटे से बड़े, हर स्तर पर काम करने वाले अपने निजी स्वार्थ से ऊपर न उठ जाएँ। मैं चाहता हूँ कि पूरे आत्मविश्वास व साहस के साथ हम मिलकर अपने देश को इन समस्याओं से उबारें एवं एक ऐसे मुकाम पर ला खड़ा करें कि हर भारतवासी फिर से, गर्व से कह सके कि’सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा।’

अथवा

(ग) वैश्विक महामारी वरदान या अभिशाप

  • कविड-19
  • वैश्विक महामारी
  • नये नये अविष्कार।

उत्तरः
वैश्विक महामारी-वरदान या अभिशाप दुनिया तेजी से बदल रही थी। सभी क्षेत्रों में लगभग सभी देश आगे बढ़ रहे थे। कहना चाहिए कि विभिन्न देशों में होड़ लगी थी। तकनीक को आधार बनाकर हम सब आकाश को छूना चाहते थे, पाताल के रहस्य जान लेना चाहते थे। हर ओर भागदौड़ थी। किसी के पास किसी के लिए तो क्या अपने लिए भी वक्त नहीं था। दुनिया खूबसूरत थी क्योंकि इसमें प्रकृति और मानव निर्मित वस्तुओं का सामंजस्य था किंतु धीरे-धीरे मानव निर्मित दुनिया प्रकृति पर हावी होने लगी। अचानक एक दिन सब कुछ ठहर गया, एक अदृश्य विषाणु ने दुनिया भर के लोगों को कैद कर दिया। जी हाँ इस विषाणु को नाम को नाम दिया गया कोविड-19। इस छोटे से अदृश्य वायरस ने एक शरीर में प्रवेश किया और करते-करते दुनिया के सभी देशों पर छा गया।

इसे नष्ट करने का कोई उपाय मनुष्य ढूँढ नहीं पाया। खुद को घरों में कैद करना पड़ा। इस वायरस ने अमीरी-गरीबी, जाति– किसी आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया। सब्को दिखा दिया कि हमारा अस्तित्व कुछ भी नहीं है। कोई संदेह नहीं कि इस वैश्विक महामारी के चलते बहुत से लोग आर्थिक संकट से गुजरे, अनगिनत लोगों ने अपनों को खोया, कितने ही घर परिवार बर्बाद हो गए। बहुत से व्यापार ठप हो गए अर्थात यह वैश्विक महामारी अभिशाप भयंकर अभिशाप के रूप में सामने आई। किन्तु जब लोगों का बाहर आना जाना बंद हुआ, तो सड़कों पर वाहन चलने बंद हो गए, हवा में फैला प्रदूषण कम हुआ पर्यावरण शुद्ध हुआ।

वे पशु जो डर-डर कर, छुप कर रहते थे उन्होंने खुले में साँस ली। बहुत से लोगों ने घर बैठकर नए-नए अविष्कार किए, नए-नए कार्य सीखे, दूसरों के साथ-साथ अपने लिए भी समय मिला। आत्मा विश्लेषण करते-करते आत्मबोध को प्राप्त हुए। इस प्रकार इस वैश्विक महामारी के दौरान लोगों के व्यक्तित्व व सोच में जो परिवर्तन आया, वह सदा रहेगा। यह वैश्विक महामारी निश्चित ही खत्म होगी, इसके कुप्रभाव भी मिट जाएंगे फिर से सब कुछ सामान्य हो जाएगा, किंतु जो कुछ इस दौरान हमने सीखा है वह निश्चित ही वरदान साबित होगा।

प्रश्न 5.
अपने क्षेत्र के थानाध्यक्ष को 120 शब्दों में पत्र लिखकर बढ़ते अपराधों की सूचना दीजिए।
अथवा
प्रधानाचार्या को शुल्क माफी के लिए 120 शब्दों में प्रार्थना पत्र लिखिए। (5)
उत्तरः
दिनांक……………….
श्रीमान् थानाध्यक्ष,
विकासपुरी थाना,
नई दिल्ली-110018

विषय-बढ़ते अपराधों की सूचना।

आदरणीय महोदय,

सविनय निवेदन यह है कि मैं विकासपुरी की निवासी आपको अपने क्षेत्र में दिन-पर-दिन बढ़ते जा रहे अपराधों की सूचना देना चाहती हूँ व उनसे होने वाले दुष्परिणामों से भी अवगत कराना चाहती हूँ।

महोदय, हमारा क्षेत्र अब बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं रह गया है। किसी भी समय घर से निकलना, बाज़ार जाना मुश्किल हो गया है। दिन-दहाड़े चेन खींच ली जाती है। हाथ से सामान, पर्स छीन लिया जाता है, यहाँ तक कि चाकू या बन्दूक की नोंक पर कीमती सामान देने के लिए बाध्य कर दिया जाता है। चोर-लुटेरे खुले घूम रहे हैं। ऐसा लगता है कि कानून-व्यवस्था बिल्कुल खत्म हो चुकी है या कहना पड़ेगा कि हमारे रक्षक स्वयं इन अपराधियों के साथ मिले हुए हैं। यदि यही हाल रहा तो लोगों का आप लोगों पर से विश्वास ही उठ जाएगा व अपने देश व समाज के प्रति सहयोग व सम्मान की भावना बिल्कुल समाप्त हो जाएगी। आपसे अनुरोध है कि आप जल्द ही उचित कदम उठायें व समाज को सुरक्षा प्रदान करें ताकि सभी नागरिक निश्चिन्त व सुरक्षित महसूस करते हुए जीवन निर्वाह कर सकें।
धन्यवाद।

भवदीय,
क ख ग

अथवा

प्रधानाचार्या महोदया,
अ ब स विद्यालय,
नई दिल्ली 110018

विषय-शुल्क माफी हेतु प्रार्थना।
आदरणीया महोदया,
सविनय निवेदन यह है कि मैं आपके विद्यालय में कक्षा दसवीं का छात्र हूँ। गत 10 वर्ष से मैं इसी विद्यालय में शिक्षा प्राप्त कर रहा हूँ। प्रत्येक कक्षा में मैं अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होता आया हूँ व विभिन्न प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत होकर मैंने अपने विद्यालय का नाम रोशन किया है। इसके अतिरिक्त मेरी ओर से कभी किसी अध्यापक को शिकायत का मौका नहीं मिला तथा मेरा शुल्क भी सदा समय पर भरा जाता था, किन्तु महोदया, पिछले कुछ दिनों से घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। मेरे पिताजी इस वर्ष मेरा शुल्क अदा करने में समर्थ नहीं हो पायेंगे।

अतः आपसे अनुरोध है कि इस वर्ष के लिए मेरा शुल्क माफ करने की कृपा करें। मैं आपको आश्वासन देता हूँ कि हमेशा की तरह आगे भी अपनी मेहनत व लगन से विद्यालय का नाम रोशन करता रहूँगा।
धन्यवाद।

आपका आज्ञाकारी छात्र,
क ख ग
दिनांक…………………….

प्रश्न 6.
(क) ‘आसरा’ सोसायटी के लोगों को जल आपूर्ति कम होने की सूचना देने हेतु 50 शब्दों में सूचना तैयार कीजिए।
अथवा
विद्यालय में होने जा रहे वार्षिकोत्सव में भाग लेने के लिए छात्रों को प्रोत्साहित करने हेतु 50 शब्दों में सूचना तैयार कीजिए। (2½)
उत्तरः
आसरा सोसायटी:

सूचना

दिनांक……………

अपर्याप्त जल आपूर्ति

सोसायटी के सभी सदस्यों को सूचित किया जाता है कि आगामी एक सप्ताह जल आपूर्ति कम रहेगी, अतः सभी से अनुरोध है कि जल का दुरुपयोग न करें। याद रखें-‘जल ही जीवन है।’

धन्यवाद।
विपिन गर्ग
सचिव

अथवा

रामकृष्ण उच्चतर माध्यमिक विद्यालय:

सूचना

दिनांक…………..

वार्षिकोत्सव का आयोजन

नवम्बर माह में विद्यालय में वार्षिकोत्सव का आयोजन किया जाएगा। इस बार का विषय होगा-‘गुरु-शिष्य सम्बन्ध’। वार्षिकोत्सव में भाग लेने के इच्छुक छात्र 15 सितम्बर से पहले अपनी कक्षाध्यापिका को अपना नाम दे दें। सभी भाग लेने वालों को प्रमाण-पत्र व बेहतरीन भूमिका निभाने वालों को विशेष पुरस्कारों से सम्मानित किया जाएगा। अधिक जानकारी के लिए हस्ताक्षरकर्ता से सम्पर्क करें।

धन्यवाद।
राहुल चोपड़ा
हेड बॉय

(ख) ‘वर्धमान’ सोसायटी के अध्यक्ष होने के नाते सोसायटी के सभी सदस्यों को कोविड-19
संबंधी दिशा-निर्देशों का पालन करने के सख्त निर्देश देते हुए लगभग 50 शब्दों में सूचना तैयार कीजिए।
अथवा
आप सुमन/सौरभ हैं। अपने विद्यालय के छात्र प्रतिनिधि होने के नाते सभी छात्रों को आने वाले खेल उत्सव की जानकारी देने हेतु लगभग 50 शब्दों में सूचना तैयार कीजिए। (2½)
उत्तरः
वर्धमान सोसायटी:

सूचना

दिनांक………………

कोविड-19 सम्बन्धी दिशा-निर्देश

सोसायटी के सभी सदस्यों को निर्देश दिए जाते हैं कि सोसायटी और अपनी सुरक्षा हेतु कोविड-19 संबंधी सभी निर्देशों का ईमानदारी से पालन करें।

  • बहुत आवश्यक होने पर ही सोसायटी से बाहर जाएँ।
  • अपने घर पर मित्रों या संबंधियों को अनावश्यक निमंत्रण न दें।
  • सोसायटी व अपने घर की साफ सफाई का ध्यान रखें।
  • किसी भी प्रकार से अस्वस्थ होने पर तुरंत चिकित्सक को दिखाएं।
  • मेलजोल से बचें।

आपकी सावधानी ही आपकी सुरक्षा है।
सभी का सहयोग अपेक्षित है।

धन्यवाद
सोसायटी अध्यक्ष
क ख ग

अथवा

क ख ग विद्यालय:

सूचना

दिनांक…………….

खेल उत्सव का आयोजन

सभी विद्यार्थियों को जानकर खुशी होगी कि हमारे विद्यालय में फरवरी माह में खेल महोत्सव का आयोजन होने जा रहा है। जिसमें विभिन्न विद्यालय भाग लेंगे।
खेलों से संबंत प्रमुख जानकारी इस प्रकार है
दिनांक : 10 फरवरी से 17 फरवरी
स्थान : विद्यालय का मैदान
मुख्य अतिथि : क्रिकेट खिलाड़ी सहवाग
खेल उत्सव में भाग लेने के इच्छुक छात्र हस्ताक्षरकर्ता को 10 जनवरी से पहले-पहले नामांकन कराएँ।

धन्यवाद
छात्र प्रतिनिधि
क ख ग

प्रश्न 7.
(क) ‘प्रथम’ कोचिंग संस्थान के लिए 50 शब्दों में विज्ञापन तैयार कीजिए।
अथवा
नाम बदलवाने के लिए 50 शब्दों में विज्ञापन तैयार कीजिए। (2½)
उत्तरः
प्रथम कोचिंग संस्थान:
कक्षा छठी से बारहवीं तक के छात्रों को सभी विषयों की बेहतरीन शिक्षा दिलवाना चाहते हैं, तो जल्द आइए-प्रथम कोचिंग संस्थान, A.1ए जनकपुरी, | नई दिल्ली । दूरभाष-9810102010, सत्र 201819 की कक्षाएँ अप्रैल से शुरू होंगी। नामांकन की अन्तिम तिथि 25 मार्च, 2018, प्रथम 50 छात्रों को शुल्क में 30% की छूट।
अथवा
मैं नवीन मित्तल, जनकपुरी, ए.1ए 284 का निवासी | दिनांक 20 अप्रैल, 2018 से अपना नाम बदलकर, स्वेच्छा से ‘नीरज मित्तल’ कर रहा हूँ। प्रत्येक निजी व व्यावसायिक स्थान पर मेरा नया नाम ही प्रयोग होगा व इसी नाम से मेरे हस्ताक्षर होंगे।

(ख) अपना 2 साल पुराना वातानुकूलित यंत्र बेचने हेतु लगभग 50 शब्दों में एक आकर्षक विज्ञापन तैयार कीजिए।
अथवा
मोबाइल बनाने वाली अपनी कंपनी के लिए आपको कुछ स्नातक कर्मचारियों की आवश्यकता है। अपनी जरूरतें तथा अपेक्षाएँ बताते हुए लगभग 50 शब्दों में विज्ञापन तैयार कीजिए। (2½)
उत्तरः
“घर को रखें ठण्डा
दाम है बहुत ही मंदा”

जी हाँ। केवल 2 साल पुराना
बिल्कुल दुरुस्त हालत में

वातानुकूलित यंत्र उपलब्ध है –
कंपनी : हिताची।
निर्माण तिथि : जनवरी 2020
कीमत : ₹ 15 हजार मात्र/-
गारंटी : 2 साल
देर न करें……. इच्छुक ग्राहक संपर्क करें ……………………..

अथवा

आवश्यकता
प्रसिद्ध कीनिया कंपनी में स्नातकों के लिए रोजगार के सुनहरे अवसर

न्यूनतम शिक्षा : विज्ञान स्नातक
कार्यानुभव : लगभग 2 वर्ष सॉफ्टवेयर की जानकारी अनिवार्य
वेतन : ₹30,000/- प्रति माह
योग्य व इच्छुक व्यक्ति संपर्क करें ………………………

प्रश्न 8.
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर लगभग 120 शब्दों में लघु कथा का निर्माण कीजिए- (5)

  • चाय
  • नाम
  • सार्थक

अथवा

  • नीचे दी गई पंक्तियों को पूरा करते हुए लगभग 120 शब्दों में लघु कथा का निर्माण कीजिए।
  • मैं रोज माँ को देखती थी। इतनी तन्मयता से,नियम से यह काम करने की प्रेरणा उसे कहाँ से मिलती है।

उत्तरः
ब्रह्मानंद चाय:
स्कूल में चाय के लिए लोगों का बेसब्री से आवाजें लगाना कुछ अच्छा नहीं लगता था। पर कुछ दिनों से चाय के साथ जो नाम मैं सुन रही थी उसने मुझे अपनी ओर अनायास ही आकर्षित कर लिया। कितना प्यारा और गहरा नाम था ‘ब्रह्मानंद’। पर शायद ही कोई उसका पूरा नाम पुकारता था। ब्रह्मानंद को कोई ब्रह्मा, कोई नंदू तो यहाँ तक कि कोई कोई तो उसे बी ए कहकर ही पुकारते थे और वह हर पुकार पर मुस्कराता हुआ आता और सबके पसंद की चाय झटपट बनाकर ले आता। जब-जब उसे आवाज लगाई जाती, मेरा ध्यान उस ओर जाने लगा और मैं उसके चेहरे की ओर देखने लगी। कितनी गहराई है उसके नाम में? वैसी ही गहराई कहीं-न-कहीं मुझे उसके चेहरे पर भी नजर आती। वह हर किसी के मुताबिक चाय बना कर लाता, बिना किसी संकोच, बिना किसी परेशानी के।

एक दिन मेरा भी मन हुआ कि मैं ब्रह्मानंद के हाथ की चाय पी कर देखू। मैंने उसे बुलाया ‘ब्रह्मानंद, मुझे भी एक कप चाय दे दो’। उसने पूछा कैसी चाय पसंद है आपको? मैंने बोला जैसी तुम चाहो वैसी बना दो। उसने मुझे जो चाय बना कर पिलाई उसमें मुझे बिल्कुल घर की चाय का स्वाद आया।

एक दिन मैंने उससे पूछ लिया कि ब्रह्मानंद, क्या तुम्हें अपने नाम का मतलब मालूम है? इतना प्यारा नाम तुम्हें किसने दिया? वह बोला पता नहीं। जब से होश संभाला है लोग इसी नाम से पुकारते हैं।

बस इसके आगे कुछ पूछने की मेरी हिम्मत नहीं हुई। इतना साफ था कि उसकी चाय, उसकी मुस्कराहट सबको ब्रह्मसा आनंद देकर तृप्त कर देती थी और उसके नाम को साकार कर देती थी।

अथवा
शीर्षक-प्रेरणा:

स्रोत मैं रोज माँ को देखती। इतनी तन्मयता से और नियम से उसे यह काम करने की प्रेरणा कहाँ से मिलती है। वह रोज सुबह उठती नहा-धोकर, पूजा पाठ करके उस बर्तन को धोती और उसमें पानी भर के पक्षियों के लिए रख देती।

एक दिन मैंने पूछ ही लिया, “माँ, क्या तुम कभी यह काम भूलती नहीं हो और ऐसा करने की प्रेरणा तुम्हें कहाँ से मिलती है?” माँ कुछ नहीं बोली बस मुस्करा दी।

रविवार को उसने मुझे बर्तन को धोकर पानी भरकर रखने के लिए कहा और दूर से खड़े होकर मेरे साथ देखती रही। थोड़ी ही देर में एक पक्षी उड़ता हुआ वहाँ पहुँचा, बर्तन में साफ पानी देखकर उसे पिया नहीं बल्कि चीं-चीं की आवाज़ करता इधर-उधर उड़ा मानो अन्य पक्षियों को सूचना दे रहा हो कि पीने लिए साफ पानी आ गया है।

कुछ ही देर में वहाँ बहुत से पक्षी आ गए। सब ने बारी-बारी पानी पिया और तृप्त होकर उड़ गए। आज मुझे अपनी माँ के उस नियम के पीछे छुपा प्रेरणा का स्रोत मिल गया था।