शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाला कारक कौन सा है? - shaareerik vikaas ko prabhaavit karane vaala kaarak kaun sa hai?

B.Ed FIRST YEAR PAPER -01 

CHILDHOOD AND GROWING UP

शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाला कारक कौन सा है? - shaareerik vikaas ko prabhaavit karane vaala kaarak kaun sa hai?


विकास में प्राय: बालकों में भिन्नता दृष्टिगोचर होती है। इसके लिये अनेक कारक उत्तरदायी होते हैं। कुछ बालकों में विकास सन्तुलित रूप में होता है तथा कुछ बाल में असन्तुलित रूप में विकास दृष्टिगोचर होता है।

विकास को प्रमुख रूप से प्रभावित वाले कारक निम्नलिखित हैं 

1. रोग (Disease)-

2. पोषाहार (Nutrition)-

3. शारीरिक भार तथा आकार (Weight and size of body)-

4. आत्म-विश्वास का अभाव (Lack of self confidence)-

5. तंग या कसे वस्त्रों का प्रयोग (Use of the tight clothes)-

6. सोच (Thinking)-

7. शारीरिक व्यायाम (Physical exercise)-

8. मन्द बुद्धि (Mental disable)-

9. भय (Fear)-

10. माँसपेशीय नियन्त्रण (Muscular control)-

11. प्रशिक्षण का अभाव (Lack of training)-

12. अभिप्रेरणा का अभाव (Lack of motivation)-

 विकास को प्रमुख रूप से प्रभावित वाले कारक निम्नलिखित हैं 

1. रोग (Disease)-

बालकों में पाये जाने वाले अनेक प्रकार के रोग उनके विका को प्रभावित करते हैं। यदि कोई बालक बाल्यकाल में टायफाइड एवं टी. बी. आदि संकाय रोगों से ग्रस्त हो जाता है तो उसका विकास क्षीण होता है। इसके विपरीत जिन बालकों किसी प्रकार का कोई रोग नहीं होता उन बालकों का विकास सन्तुलित रूप में होता है। 

अत: बालकों के विकास हेतु रोग मुक्ति आवश्यक है। 

2. पोषाहार (Nutrition)-

जिन बालकों को बाल्यकाल से ही पौष्टिक एवं सन्तलित भोजन मिलता है उनका शरीर स्वस्थ्य होता है। उनकी माँसपेशियों पर उनका नियन्त्रण होता है। इसलिये इस प्रकार के बालक शारीरिक एवं मानसिक विकास में सन्तुलित होते हैं। इसके विपरीत जिन बालकों को रूखा-सूखा एवं असन्तुलित भोजन मिलता है, उन बालकों का शारीरिक एवं मानसिक विकास श्रेष्ठ रूप में नहीं होता। उनमें अनेक दोष पाये जाते हैं। 

3. शारीरिक भार तथा आकार (Weight and size of body)-

जिन बालकों के शरीर का भार सामान्य से अधिक या कम होता है उनको विभिन्न कौशलों के सीखने में अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इसके विपरीत जिन बालकों का शारीरिक भार एवं आकार सामान्य होता है, उन बालकों का विकास सन्तुलित होता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि बालकों के शारीरिक आकार एवं भार का उनके विकास पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। 

4. आत्म-विश्वास का अभाव (Lack of self confidence)-.

बहुत से बालकाम आत्म-विश्वास का अभाव पाया जाता है। इसलिये वे प्रत्येक कार्य को सम्पन्न करने म संकोच का अनुभव करते हैं। इसके परिणामस्वरूप वह अनेक विकासात्मक कौशला का 

बाल विकास के परिप्रेक्ष्य | 97 सोखने से वंचित हो जाते हैं। इसके विपरीत जिन बालकों में आत्म-विश्वास पाया जाता है, से बालक प्रत्येक कार्य को करने का प्रयास करते हैं तथा उनमें विकास की गति तीव्र होती है। 

5. तंग या कसे वस्त्रों का प्रयोग (Use of the tight clothes)-

जिन बालकों के द्वारा आवश्यकता से अधिक कपड़े पहने जाते हैं तथा अधिक तंग या कसे हुए वस्त्र पहने जाते हैं, वे बालक गति सम्बन्धी क्रियाओं को करने में असुविधा का अनुभव करते हैं। धीरे-धार उन बालको का गत्यात्मक विकास अवरुद्ध होने लगता है. जो बालक सामान्य रूप से वस्त्र धारण करते हैं उनको गत्यात्मक गतिविधियों में किसी प्रकार की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है। इसलिये वस्त्रों का स्वरूप एवं प्रयोग भी विकास को प्रभावित 

6. सोच (Thinking)-

बालकों की नकारात्मक सोच के कारण भी उनके विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि जो बालक प्रत्येक कार्य को करने से पूर्व अपनी असफलता पर विचार करने लगता है तो वह प्रत्येक कौशल को सीखने में असफल रहता है। इसक विपरीत जो बालक कार्यों के प्रति सकारात्मक सोच रखते हैं, उन बालकों की कार्यक्षमता एवं कौशलों की सीखने की गति उच्च होती है क्योंकि उनकी कार्य करने में रुचि होती है। 

7. शारीरिक व्यायाम (Physical exercise)-

जो बालक नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम करते हैं तथा उनकी व्यायाम करने में रुचि है, ऐसे बालकों का विकास तीव्र गति से होता है। इसके विपरीत जो बालक शारीरिक व्यायाम नहीं करते उनका शारीरिक विकास मन्द गति से होता है। इसके परिणामस्वरूप गत्यात्मक एवं मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाता है। अतः सन्तुलित, शारीरिक एवं गत्यात्मक विकास के लिये नियमित रूप से व्यायाम करना आवश्यक है। 

8. मन्द बुद्धि (Mental disable)-

जो बालक सामान्य बुद्धिलब्धि से नीचे के होते हैं उन बालकों को मन्द बुद्धि बालकों की श्रेणी में रखा जाता है। मन्द बुद्धि बालकों का विकास तीव्र गति से नहीं होता क्योंकि उनको विभिन्न प्रकार के कौशलों को सीखने में अधिक समय लगता है। जबकि उच्च बुद्धिलब्धि वाले बालक प्रत्येक कार्य को सीखने में तीव्रता दिखाते हैं तथा प्रत्येक कौशल को तीव्रगति से सीखते हैं। 

9. भय (Fear)-

अनेक क्रियाओं को करने में बालक भय का अनुभव करने लगते हैं क्योंकि जिन क्रियाओं को करने में उनको असुरक्षा का अनुभव होता है उन क्रियाओं को करने में उनकी कोई रुचि नहीं होती तथा जिन क्रियाओं को करने में बालक को भय का अनुभव नहीं होता है उन क्रियाओं को बालक सरलता से सम्पन्न कर लेता है। इस प्रकार बालक के भयभीत रहने की स्थिति में उसका विकास मन्दगति से होता है तथा भयरहित स्थिति में होने के कारण उसका विकास तीव्र गति से होता है। 

10. माँसपेशीय नियन्त्रण (Muscular control)-

जिन बालकों का माँसपेशीय नियन्त्रण उच्च स्तरीय होता है उन बालकों का शारीरिक एवं गत्यात्मक विकास तीव्र गति से होता है क्योंकि बलिष्ठ एवं नियन्त्रित माँसपेशियाँ बालकों को गत्यात्मक कौशल सीखने में सहायता करती है। इसके विपरीत जिन बालकों की माँसपेशियों में अक्षमता एवं अनियन्त्रण को स्थिति पायी जाती है उन बालकों का शारीरिक एवं गत्यात्मक विकास तीव्र गति से नहीं होता है। 

11. प्रशिक्षण का अभाव (Lack of training)-

जिन बालकों को शारीरिक एवं गत्यात्मक विकास का उचित प्रशिक्षण प्राप्त होता है, उनका विकास तीवगति से होता जैसे-वक्ष को सुदृढ़ करने के लिये दौड़ना तथा दण्ड बैतक कराना चाहिये एवं हाथों को सुदृढ़ करने के लिये हाथों से सम्बन्धित व्यायाम कराने चाहिये आदि। इस प्रकार के प्रशिक्षण से युक्त बालक प्रत्येक गत्यात्मक कौशल को सरलता से सीख जाते हैं। इसके विपरीत लिया बालकों को उक्त प्रकार के प्रशिक्षण प्राप्त नहीं होते हैं उनका विकास मन्दगति से होता। 

12. अभिप्रेरणा का अभाव (Lack of motivation)-

बालक जब किसी गतिविधि को करता है तो उसके लिये वह प्रशंसा के दो शब्द सुनना चाहता है। यदि किसी बालक को कार्य करने पर भला बुरा सुनने को मिलता है तथा अपमान के शब्द सुनने पड़ते हैं तब वह बालक कार्यों के प्रति अरुचि रखने लगता है। इससे उसका विकास अवरुद्ध हो जाता है। इसके विपरीत जिन बालकों को गत्यात्मक कौशल सीखने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है, उन बालकों का विकास तीव्र गति से होता है। . उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि बालकों के विकास को प्रभावित करने वाले अनेक कारण होते हैं, जो कि बालक के सर्वांगीण विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं। इन कारकों के सकारात्मक पक्ष को स्वीकार करते हुए नकारात्मक पक्ष को समाप्त करने पर बालकों का विकास तीव्रगति से होगा। अत: शिक्षक द्वारा बालकों के बहुआयामी विकास हेतु पूर्ण प्रयास करने चाहिये। 

शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाला कारक क्या है?

अन्य कारक शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कुछ अन्य कारक है- (1) रोग या दुर्घटना के कारण शरीर में उत्पन्न होने वाली विकृति या अयोग्यता (2) अच्छी और खराब जलवायु (3) दोषपूर्ण सामाजिक परम्पराएँ, जैसे- बाल-विवाह ( 4 ) गर्भिणी माता का स्वास्थ्य (5) परिवार का रहन-सहन और आर्थिक स्थिति ।

शारीरिक विकास का पोषण पर क्या प्रभाव पड़ता है?

बालक के शारीरिक विकास पर आहार एवं पोषण का विशेष प्रभाव पड़ता है। यदि बालक को पर्याप्त मात्रा में सन्तुलित एवं पौष्टिक आहार उपलब्ध होता रहता है तो उसका शारीरिक विकास सुचारु रूप में होता है। वास्तव में सन्तुलित आहार उपलब्ध होने की दशा में बालक विभिन्न अभावजनित रोगों का शिकार नहीं होता तथा उसका स्वास्थ्य अच्छा रहता है।

निम्नलिखित में से कौन से कारक बच्चों के शारीरिक विकास को प्रभावित करते हैं?

इस प्रकार, यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि भौगोलिक वातावरण, अंतःस्रावी ग्रंथियां और पौष्टिक भोजन ऐसे कारक हैं जो बच्चों के शारीरिक विकास को प्रभावित करते हैं

शारीरिक विकास कौन सा है?

शारीरिक विकास वह प्रक्रिया है जो मानव शैशवावस्था में शुरू होती है और किशोरावस्था के साथ-साथ स्थूल और सूक्ष्म मोटर कौशल पर केंद्रित उत्तर किशोरावस्था में जारी रहती है। यह मानव शरीर को संरचना, रूप और कार्य देता है और इसी तरह इसमें मस्तिष्क, मांसपेशियों, इंद्रिय अंगों, हड्डियों, शरीर में परिवर्तन आदि शामिल हैं।