Show भगवान विष्णु के अवतार श्री राम को 12 कलाओं का ज्ञान था, जबकि श्रीकृष्ण को संपूर्ण कलाओं में दक्ष कहा जाता है। श्री कृष्ण श्री संपदा, भू संपदा, कीर्ति संपदा, वाणी सम्मोहन, लीला, कांति, विद्या, विमला, उत्कर्षिणि शक्ति, नीर-क्षीर विवेक, कर्मण्यता, योगशक्ति, विनय, सत्य धारणा, आधिपत्य और अनुग्रह क्षमता समेत 16 कलाओं से परिपूर्ण थे। आइए भारतीय पंचांग व ज्योतिष के अनुसार जानते हैं श्रीकृष्ण के जन्म नक्षत्र, वार और तिथी में बनने वाले योग और गुण के बारे में। 1. कृष्ण जी की जन्म तिथि – कान्हा जी का जन्म अष्टमी तिथि को हुआ था। इस दिन जन्मा व्यक्ति धर्मात्मा, सत्यवादी, दानी, भोगी, दयावान और सभी कर्मों में निपुण होता है। गोपाल जी में तो यह सभी गुण देखते थे। इस तिथि का निर्माण सूर्य और चंद्र के अंतर से होता है। 2. कृष्ण जी के जन्म का वार– कृष्ण जी का जन्म सोमवार के दिन हुआ था। पूर्ण सात ग्रह होने के कारण सप्तवारों की रचना की गई है। एक वार सूर्योदय से दूसरे दिन के सूर्योदय पूर्व तक रहता है। सोमवार के दिन जन्में भगवान कृष्ण में वार अनुसार गुणों को देखें तो ऐसा जातक कल्पनाशील, प्रियवक्ता, बुद्धिमान, सौन्दर्य और संपत्ति से युक्त होता है। 3. कान्हा जी का जन्म नक्षत्र– कृष्ण जी का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। जिस दिन चंद्रमा जिस स्थान पर होता है, उस दिन वही नक्षत्र रहता है। रोहिणी नक्षत्र में जन्में जातक बहुत धनवान, कृतज्ञ, मेधावी, राजमान्य, प्रियवता, सत्यवादी और सुन्दर होता है। कृष्ण में ये सभी गुण देखे जा सकते हैं। 4. कृष्ण जी का जन्म योग– कान्हा जी का जन्म हर्षण नक्षत्र में हुआ था। हर्षण योग में जन्में जातक की बात करें तो व्यक्ति बड़ा भाग्यशाली व राजमान्य, विज्ञान और शास्त्रों में निपुण होता है। इस योग में सूर्य-चंद्र के 13 अंश 20 कला साथ चलने से एक योग होता है। 5. कृष्ण जी का जन्म करण– कान्हा जी का जन्म कौलव करण में हुआ था। इस करण में जन्मा जातक सबसे प्रीति और मित्रों का संग करने वाला तथा सम्मानित होता है। तिथि के अर्द्ध भाग को करण कहते हैं। श्रीकृष्ण के भीतर ये सभी गुण स्पष्ट रूप से नजर आते हैं। Myjyotish Expert Updated 19 Aug 2022 01:21 PM IST जानिए क्या हैं 16 कलाएं और क्यों मानते हैं श्रीकृष्ण को पूर्ण अवतार - फोटो : google जानिए क्या हैं 16 कलाएं और क्यों मानते हैं श्रीकृष्ण को पूर्ण अवतारभगवान विष्णु ने जितने भी अवतार लिए, उनमें कोई न कोई विशेषता थी और अपने कृष्ण स्वरुप में वह सोलह कलाओं से पूर्ण माने गए हैं. भगवान कृष्ण भगवान विष्णु के सभी अवतारों में सर्वश्रेष्ठ अवतार रहे हैं क्योंकि उन्होंने सोलह कलाओं को सीखा तथा गुरु सांदीपनि से इनकी शिक्षा ग्रहण की. आईये जानते हैं वे कौन सी कलाएं हैं जिन्हें प्राप्त करके श्री कृष्ण बने पुर्ण अवतार स्वरुप : - श्री - श्री कला को धन से जोड़ा गया है. जिसके पास ये होती है वह धनवान होगा. अमीर होने का मतलब सिर्फ पैसा और पूंजी जोड़ना नहीं है, बल्कि मन, वचन और कर्म से समृद्ध होना चाहिए. श्री संपदा वाले व्यक्ति के पास मां लक्ष्मी का स्थायी वास होता है. इस कला से संपन्न व्यक्ति समृद्ध जीवन जीता है. भूमि धन - इसका अर्थ है कि इस कला को रखने वाला व्यक्ति एक बड़े क्षेत्र का मालिक होता है, या एक बड़े भूमि क्षेत्र पर शासन करने की क्षमता रखता है. मात्र रु99/- में पाएं देश के जानें - माने ज्योतिषियों से अपनी समस्त परेशानियों का हल कीर्ति - कीर्ति का अर्थ है प्रसिद्धि, जिसके पास यह होगी वह व्यक्ति देश दुनिया में प्रसिद्ध होगा. लोगों के बीच लोकप्रिय बनेगा और विश्वसनीय माना जाएगा. जनकल्याणकारी कार्यों में पहल करने में हमेशा आगे रहेगा. वाणी सम्मोहन - कुछ लोगों की आवाज में सम्मोहन होता है. लोग न चाहते हुए भी उनके बोलने के अंदाज की तारीफ करते हैं. ऐसे जातक वाणी में कुशल होते हैं, इन पर मां सरस्वती की विशेष कृपा होती है. इन्हें सुनकर क्रोध शांत हो जाता है और मन में भक्ति और प्रेम की भावना जाग उठती है. लीला - इस कला वाला व्यक्ति चमत्कारी होता है और श्री कृष्ण को तो लीलाधारी भी कहा जाता है. इनकी लीला के दर्शन से एक अलग ही आनंद प्राप्त होता है. कांति - कांति वह कला है जिससे चेहरे पर एक अलग ही आभा पैदा होती है, जिसे देखकर कोई भी मुग्ध हो सकता है और उसके जैसा हो जाता है. यानी खूबसूरती से ऎसे प्रभावित होते हैं और उनका आभामंडल से दूर जाने का मन नहीं करता है. विद्या - विद्या भी एक कला है, जिसके पास ज्ञान है, उसमें अनेक गुण स्वतः ही आ जाते हैं. ज्ञान से संपन्न व्यक्ति वेदों का ज्ञाता, संगीत और कला का भेदक, युद्ध कला में पारंगत, राजनीति और कूटनीति में विशेषज्ञ होता है. विमल- छल, विवेक रहित, गोरा, जिसके मन में मैल नहीं है, कोई दोष नहीं है, जो आचरण, विचार और व्यवहार में शुद्ध है, ऐसे व्यक्तित्व का धनी ही विमल कला के साथ हो सकता है. जन्मकुंडली ज्योतिषीय क्षेत्रों में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है उत्कर्षिणी शक्ति - उत्कर्षिनी का अर्थ है प्रेरित करने की क्षमता, जो लोगों को उनके लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करती है. किसी विशेष लक्ष्य को भेदने के लिए उचित मार्गदर्शन देकर, वह उसे उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रेरित कर सकती है. जैसे भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को, जिसने युद्ध के मैदान में हथियार रखे थे, को गीतोपदेश के साथ प्रेरित किया. नीर-क्षीर विवेक - ऐसा ज्ञान रखने वाला व्यक्ति जो अपने ज्ञान से न्यायसंगत निर्णय लेता है. ऐसा व्यक्ति न केवल विवेकपूर्ण होता है, बल्कि अपने विवेक से लोगों को सही मार्ग सुझाने में भी सक्षम होता है. कर्मण्यता - जिस प्रकार एक समृद्ध कला वाला व्यक्ति दूसरों को निष्क्रियता से कर्म के मार्ग पर चलने का निर्देश देता है और लक्ष्य प्राप्त करने के लिए लोगों को कार्य करने के लिए प्रेरित करता है, जबकि इस गुण वाला व्यक्ति न केवल उपदेश में समर्पित होता है बल्कि स्वयं परिश्रम भी करता है. कर्म के सिद्धांत का पालन किया जाता है. योग शक्ति - योग भी एक कला है. सरल शब्दों में योग का अर्थ है जुड़ना, यहाँ इसका आध्यात्मिक अर्थ आत्मा को परमात्मा से जोड़ना भी है. ऐसे लोग बहुत आकर्षक होते हैं और अपनी कला से दूसरों के मन पर राज करते हैं. विनय - जो अहंकार की भावना को भी नहीं छूता है. उसके पास कितना भी ज्ञान हो, चाहे वह कितना भी धनी क्यों न हो, वह बलवान हो सकता है, लेकिन उस पर अहंकार नहीं होता है. शालीनता से व्यवहार करने वाला व्यक्ति इस कला में पारंगत हो सकता है. सत्य बोध - बहुत कम ही ऐसे होते हैं जो सत्य के मार्ग पर चलते हैं और किसी भी प्रकार की कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सत्य को नहीं छोड़ते हैं. इस कला से संपन्न व्यक्ति सच्चे कहलाते हैं. लोक कल्याण और सांस्कृतिक उत्थान के लिए वे कटु सत्य भी सबके सामने रखते हैं. आधिपत्य - आधिपत्य का अर्थ किसी पर बलपूर्वक अपना अधिकार जताना नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा गुण है जिसमें व्यक्ति का व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली होता है कि लोग स्वयं उसके अधिकार को स्वीकार कर लेते हैं. क्योंकि उन्हें उसके प्रभुत्व में सुरक्षा और विश्वास की भावना दिखाई देती है. ये भी पढ़ें
अनुग्रह क्षमता - जिसके पास अनुग्रह की क्षमता है, वह हमेशा दूसरों के कल्याण में लगा रहता है, दान कार्य करता रहता है. जो कोई भी उसके पास मदद के लिए पहुंचता है, वह उक्त व्यक्ति की अपनी क्षमता के अनुसार मदद भी करता है. श्री कृष्ण को सोलह कलाओं का अवतार क्यों कहा जाता है?भगवान विष्णु के सभी अवतारों में भगवान श्री कृष्ण श्रेष्ठ अवतार थे क्योंकि उन्होंने गुरु सांदीपनि से इन सभी 16 कलाओं को सीखा था। सामान्य शाब्दिक अर्थ के रूप में देखा जाये तो कला एक विशेष प्रकार का गुण मानी जाती है। यानि सामान्य से हटकर सोचना, समझना या काम करना।
श्री कृष्ण की 16 कलाएं कौन कौन सी हैं?चंद्रमा की सोलह कलाएं-अमृत, मनदा, पुष्प, पुष्टि, तुष्टि, ध्रुति, शाशनी, चंद्रिका, कांति, ज्योत्सना, श्री प्रीति, अंगदा, पूर्ण और पूर्णामृत हैं। इसी को प्रतिपदा, दूज, एकादशी, पूर्णिमा आदि भी कहा जाता है। जैसे चंद्रमा के प्रकाश की 16 अवस्थाएं हैं उसी तरह मनुष्य के मन में भी एक प्रकाश है।
मनुष्य में कितने कला होती है?प्रत्येक मनुष्य में ये 16 कलाएं सुप्त अवस्था में होती है। अर्थात इसका संबंध अनुभूत यथार्थ ज्ञान की सोलह अवस्थाओं से है। इन सोलह कलाओं के नाम अलग-अलग ग्रंथों में भिन्न-भिन्न मिलते हैं।
श्री राम जी में कितनी कलाएं थी?भगवान राम 12 कलाओं से तो भगवान श्रीकृष्ण सभी 16 कलाओं से युक्त हैं।
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