सवाल: रेडिकल समूह के विचारों को समझाइए? Show द रेडिकल्स ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैंड में 19वीं सदी के मध्य में एक ढीले संसदीय राजनीतिक समूह थे, जिन्होंने कट्टरवाद के पहले के विचारों को आकर्षित किया और व्हिग्स को लिबरल पार्टी में बदलने में मदद की। रेडिकल एक ऐसा राष्ट्र चाहते थे जिसमें सरकार देश की अधिकांश आबादी पर आधारित हो। कई लोगों ने महिलाओं के मताधिकार आंदोलनों का समर्थन किया। उदारवादियों के विपरीत, उन्होंने बड़े जमींदारों और धनी कारखाना मालिकों के विशेषाधिकारों का विरोध किया। Answer By Rjwala is a question hub where questions are answered in all types and languages. Like educational question-answers, mind-blowing crossword answers etc. Solution : उत्तर: (i) वे ऐसी सरकार के पक्ष में थे जो देश की आबादी के बहुमत के समर्थन पर आधारित हो | (ii) इनमें से बहुत सरे लोग महिला मताधिकार आन्दोलन के भी समर्थक थे | (iii) ये लोग बड़े जमींदारों और संपन्न उद्योगपतियों को प्राप्त किसी भी तरह के विशेषाधिकारों के खिलाफ थे | (iv) वे किसी भी निजी सम्पतियों के विरोधी नहीं थे लेकिन केवल चंद लोगों के पास सम्पति के केन्द्रण के खिलाफ थे | We are providing free PDF download of UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रान्ति. The UP Board Solutions for Class 9 Science help you to score more marks in Class 9 Science Exams, The whole chapter was solved an easy
manner to Revising in a minutes during exam days. यूरोप के रेडिकल समूह के लोग समर्थक थे पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति का प्रश्न उत्तर प्रश्न 1. 1.
1905 ई. से पूर्व रूस की सामाजिक और आर्थिक स्थिति- (ii) श्रमिकों की
हीन दशा- औद्योगिक क्रांति के कारण रूस में बड़े-बड़े पूँजीपतियों ने अधिक मुनाफा कमाने की इच्छा से मजदूरों का शोषण करना आरम्भ कर दिया। वे उन्हें कम वेतन देते थे तथा कारखानों में उनके साथ बुरा व्यवहार करते थे। यहाँ तक कि बच्चों व स्त्रियों के जीवन से भी खिलवाड़ करने में वे कभी नहीं चूकते थे। ऐसी अवस्था से बचने के लिए मजदूर एक होने लगे। किन्तु 1900 ई. में इन पर (UPBoardSolutions.com) हड़ताल करने व संघ बनाने पर भी रोक लगा दी गई। उन्हें न तो कोई राजनीतिक अधिकार प्राप्त थे और न ही उन्हें
सुधारों की कोई आशा थी। ऐसे समय में उनके पास मरने अथवा मारने के अलावा और कोई चारा नहीं था। यूरोप के देशों की तुलना में रूस में औद्योगीकरण बहुत देर से शुरू हुआ। इसीलिए वहाँ के लोग बहुत पिछड़े हुए थे। रूस में उद्योग-धन्धे लगाने के लिए पूँजी का अभाव होने के कारण विदेशी पूँजीपति रूस के धन को लूटकर स्वदेश पहुँचाते रहे। सन् 1904 मजदूरों के लिए बहुत बुरा था। आवश्यक वस्तुओं के दाम बहुत बढ़ गए। मजदूरी 20 प्रतिशत घट गयी। कामगार संगठनों की सदस्यता शुल्क नाटकीय तरीके से बढ़ जाता था। 2.
रूस की राजनीतिक स्थिति-रूस की राजनीतिक स्थिति 1905 ई. से पूर्व अत्यन्त चिंताजनक थी। रूस में जार का निरंकुश शासन था जिसमें जनता ‘पुरानी दुनिया की तरह रह रही थी क्योंकि वहाँ पर अभी तक यूरोप के अन्य देशों की भाँति आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक परिवर्तन नहीं हो रहे थे। रूस के किसान, श्रमिक और जनसाधारण की हालत बड़ी खराब थी। रूस में औद्योगीकरण देरी से हुआ। (UPBoardSolutions.com) सारा समाज विषमताओं से पीड़ित था। राज्य जनता को कोई अधिकार देने को तैयार नहीं था क्योंकि वह दैवी सिद्धान्त में विश्वास रखता था।
जार और उसकी पत्नी बुद्धिहीन और भोग-विलासी थे। वह जनता पर दमनपूर्ण शासन रखना चाहता था। यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति के प्रश्न उत्तर प्रश्न 2. अन्य यूरोपीय देशों के मुकाबले में रूस की कामगार जनसंख्या जैसे कि किसानों एवं कारखाना मजदूरों की स्थिति बहुत भयावह थी। ऐसा जार निकोलस द्वितीय की निरंकुश सरकार के कारण था जिसकी भ्रष्ट एवं दमनकारी
नीतियों से इन लोगों से उसकी दुश्मनी दिनों-दिन बढ़ती जा रही थी। वे अपने स्वार्थ के लिए मजदूरों का शोषण करते थे। कई बार तो इन मजदूरों को न्यूनतम निर्धारित मजदूरी भी नहीं मिलती थी। कार्य घण्टों की कोई सीमा नहीं थी जिसके (UPBoardSolutions.com) कारण उन्हें दिन में 12-15 घण्टे काम करना पड़ता था। उनकी
स्थिति इतनी दयनीय थी कि न तो उन्हें राजनैतिक अधिकार प्राप्त थे और न ही सन् 1917 की रूसी क्रांति की शुरुआत से पहले किसी प्रकार के सुधारों की आशा थी। किसान जमीन पर सर्फ के रूप में काम करते थे और उनकी पैदावार का अधिकतम भाग जमीन के मालिकों एवं विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों को चला जाता था। कुलीन वर्ग, सम्राट तथा रूढ़िवादी चर्च के पास बहुत अधिक संपत्ति थी। ब्रिटेन में फ्रांसीसी क्रांति के दौरान किसान कुलीनों का सम्मान करते थे और उनके लिए लड़ते थे किन्तु रूस में किसान कुलीनों को दी गई जमीन लेना
चाहते थे। उन्होंने लगान देने से मना कर दिया और जमींदारों को मार भी डाला। तत्कालीन रूस के किसान अपनी कृषि भूमि एकत्र कर (UPBoardSolutions.com) अपने कम्यून (मीर) को सौंप देते थे और किसानों को कम्यून उस कृषि भूमि को प्रत्येक परिवार की आवश्यकता के अनुसार बाँट देता था, जिससे उस कृषि भूमि पर सुगमता से कृषि की जा सके। यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति प्रश्न 3. प्रथम विश्व युद्ध का उद्योगों पर बुरा प्रभाव पड़ा। बाल्टिक सागर के रास्ते पर जर्मनी का कब्जा हो जाने के कारण माल का आयात बन्द हो गया। औद्योगिक उपकरण बेकार होने लगे तथा 1916 ई. तक रेलवे लाइनें टूट गईं। अनिवार्य सैनिक सेवा के चलते सेहतमन्द लोगों को युद्ध
में झोंक दिया गया जिसके परिणामस्वरूप मजदूरों की कमी हो गई। रोटी की दुकानों पर दंगे होना आम (UPBoardSolutions.com) बात हो गई। 26 फरवरी, 1917 ई. को ड्यूमा को बर्खास्त कर दिया गया। यह आखिरी दाँव साबित हुआ और इसने जार के शासन को पूरी तरह जोखिम में डाल दिया। 2 मार्च, 1917 ई. को जार गद्दी छोड़ने पर मजबूर हो गया और इससे निरंकुशता का अन्त हो गया। किसान जमीन पर सर्फ के रूप में काम करते थे और उनकी पैदावार को अधिकतम भाग जमीन के मालिकों एवं विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों को चला जाता था। किसानों में जमीन
की भूख प्रमुख कारक थी। विभिन्न दमनकारी नीतियों तथा कुण्ठा के कारण वे (UPBoardSolutions.com) आमतौर पर लगान देने से मना कर देते और प्रायः जमींदारों की हत्या करते। कार्ल मार्क्स की साम्यवादी धारणा और सर्वहारा की विश्व-विजय के उद्घोष ने रूस के जारशाही से आक्रोशित लोगों को विद्रोह के लिए उद्वेलित किया। यूरोप के मेडिकल समूह के लोग समर्थक थे प्रश्न 4. संक्षेप में क्रान्ति का सम्पूर्ण घटनाक्रम इस प्रकार है- सर्दी बहुत ज्यादा थी – असाधारण कोहरा और बर्फबारी हुई थी। 22 फरवरी को दाएँ किनारे
पर एक कारखाने में तालाबंदी हो गई। अगले दिन सहानुभूति के तौर पर 50 और कारखानों के मजदूरों ने हड़ताल कर दी। कई कारखानों में महिलाओं ने हड़ताल की अगुवाई की। घुड़सवार सैनिकों की टुकड़ियों ने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने से मना कर दिया तथा शाम तक बगावत कर रहे सैनिकों यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रान्ति एवं हड़ताल कर रहे मजदूरों ने मिलकर पेत्रोग्राद सोवियत नाम की सोवियत या काउंसिल बना ली। । जार ने 2 मार्च को अपनी सत्ता छोड़ दी और सोवियत तथा ड्यूमा के नेताओं ने मिलकर रूस के लिए अंतरिम सरकार बना ली। फरवरी क्रांति के मोर्चे पर कोई भी राजनैतिक दल नहीं था। इसका नेतृत्व लोगों ने स्वयं किया था। पेत्रोग्राद ने राजशाही का अन्त कर दिया और इस (UPBoardSolutions.com) प्रकार उन्होंने सोवियत इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया। फरवरी क्रान्ति का प्रभाव यह हुआ कि जनसाधारण तथा संगठनों की बैठकों पर से प्रतिबन्ध हटा लिया गया। पेत्रोग्राद सोवियत की तरह ही सभी जगह सोवियत बन गई यद्यपि इनमें एक जैसी चुनाव प्रणाली का अनुसरण नहीं किया गया। अप्रैल, 1917 ई. में बोल्शेविकों के नेता ब्लादिमीर लेनिन देश निकाले से रूस वापस लौट आए। उसने ‘अप्रैल थीसिस’ के नाम से जानी जाने वाली तीन माँगें रखीं। ये तीन माँगें थीं- युद्ध को समाप्त किया जाए, भूमि किसानों को हस्तांतरित की जाए और बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया जाए। उसने इस बात पर भी जोर दिया कि अब अपने रैडिकल उद्देश्यों को स्पष्ट करने के लिए। बोल्शेविक पार्टी का नाम बदलकर कम्युनिस्ट पार्टी रख दिया जाए। अक्टूबर क्रान्ति- जनता की सबसे महत्त्वपूर्ण चार माँगें थीं- शांति, भूमि का स्वामित्व जोतने वालों को, कारखानों पर मजदूरों का नियंत्रण तथा गैर-रूसी जातियों को समानता का दर्जा। अस्थायी सरकार का प्रधान केरेस्की इनमें से किसी भी माँग को पूरा न कर सका और सरकार ने जनता का समर्थन खो दिया। लेनिन फरवरी क्रान्ति के समय स्विट्जरलैण्ड में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहा था, वह अप्रैल में रूस लौट आया। उसके नेतृत्व में बोल्शेविक पार्टी ने युद्ध समाप्त करने, किसानों को जमीन देने तथा ‘सारे अधिकार सोवियतों को देने (UPBoardSolutions.com) की स्पष्ट नीतियाँ सामने रखीं। गैर-रूसी जातियों के प्रश्न पर भी केवल लेनिन की बोल्शेविक पार्टी के पास एक स्पष्ट नीति थी। अक्टूबर क्रांति अंतरिम सरकार तथा बोल्शेविकों में मतभेद के कारण हुई। सितम्बर में ब्लादिमीर लेनिन ने विद्रोह के लिए समर्थकों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया। 16 अक्टूबर, 1917 ई. को उसने पेत्रोग्राद सोवियते तथा बोल्शेविक पार्टी को सत्ता पर सामाजिक कब्जा करने के लिए मना लिया। सत्ता पर कब्जे
के लिए लियोन ट्रॉटस्की के नेतृत्व में एक सैनिक क्रांतिकारी सैनिक समिति नियुक्त की गई। थोड़ी सी गम्भीर लड़ाई के उपरान्त बोल्शेविकों ने मॉस्को पेत्रोग्राद क्षेत्र पर पूरा नियंत्रण पा
लिया। पेत्रोग्राद में ऑल रशियन कांग्रेस ऑफ सोवियत्स की बैठक में बोल्शेविकों की कार्रवाई को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया। UP Board Solution Class 9 प्रश्न 5.
UP Board Solution Class 9 Social Science प्रश्न 6. (ख) ड्यूमा- ड्यूमा रूस की राष्ट्रीय सभा अथवा संसद थी। रूस के जार निकोलस द्वितीय ने इसे मात्र एक सलाहकार समिति में परिवर्तित कर दिया था। इसमें मात्र अनुदारवादी राजनीतिज्ञों को ही स्थान दिया गया। उदारवादियों तथा क्रान्तिकारियों को इससे दूर रखा गया। (ग) 1900 से 1930 ई. के बीच
महिला कामगार- महिला मजदूरों ने रूस के भविष्य निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। महिला कामगार सन् 1914 तक कुल कारखाना कामगार शक्ति का 31 प्रतिशत भाग बन चुकी थी किन्तु उन्हें पुरुषों की अपेक्षा कम (UPBoardSolutions.com) मजदूरी दी जाती थी। 1917 ई. की अक्टूबर क्रान्ति के बाद समाजवादियों ने रूस में सरकार बनाई। 1917 ई. में राजशाही के पतन एवं अक्टूबर की घटनाओं को ही सामान्यतः रूसी क्रांति कहा जाता है। उदाहरण के लिए लॉरेंज टेलीफोन की महिला मजदूर मार्फा वासीलेवा ने बढ़ती कीमतों तथा कारखाने के मालिकों की मनमानी के विरुद्ध आवाज उठाई और सफल हड़ताल की। अन्य महिला मजदूरों ने भी माफ वासीलेवा का अनुसरण किया और जब तक उन्होंने रूस में समाजवादी सरकार की स्थापना नहीं की तब तक उन्होंने राहत की साँस नहीं ली।। (घ) उदारवादी- उदारवाद एक क्रमबद्ध और निश्चित विचारधारा नहीं है, इसका सम्बन्ध न किसी एक युग से है और न ही किसी सर्वमान्य व्यक्ति विशेष से। यह तो युगों-युगों तथा अनेक व्यक्तियों के दृष्टिकोणों का परिणाम है। इस विचारधारा के समर्थक प्रायः निम्न विषयों में परिवर्तन चाहते थे
(ङ) स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम- सन् 1929 से स्तालिन के साम्यवादी दल ने सभी किसानों को सामूहिक स्रोतों (कोलखोज) में काम करने का निर्देश जारी कर दिया। ज्यादातर जमीन और साजो-सामान को सामूहिक खेतों में बदल दिया गया। रूस के सभी किसान सामूहिक खेतों पर मिल-जुलकर काम करते थे। कोलखोज के लाभ को सभी किसानों के बीच बाँट दिया जाता था। इस निर्णय से नाराज किसानों ने सरकार का विरोध किया। इस विरोध को जताने के लिए वे अपने जानवरों को मारने लगे। परिणामस्वरूप रूस में 1929 से 1931 ई. के बीच जानवरों की संख्या में एक तिहाई की कमी आयी। सरकार द्वारा सामूहिकीकरण का विरोध करने वालों को कठोर दण्ड दिया जाता था। अनेक विरोधियों को देश से निर्वासित कर दिया गया। (UPBoardSolutions.com) सामूहिकीकरण के फलस्वरूप कृषि उत्पादन में कोई विशेष वृद्धि नहीं हुई। दूसरी तरफ 1930 से 1933 ई. के बीच खराब फसल के बाद सोवियत रूस में सबसे बड़ा अकाल पड़ा। इस अकाल में 40 लाख से अधिक लोग मारे गए। UP Board Solution Class 9 History अतिलघु उत्तरीय प्रश्न UP Board Class 9 History Solution प्रश्न 1. UP Board Class 9 Social Science Book Pdf प्रश्न 2. यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति Exercise Questions प्रश्न 3. Europe
Me Samajwad Evam Rusi Kranti प्रश्न 4. UP Board Class 9 Social Science प्रश्न 5. UPboardsolution.Com Class 9 प्रश्न 6. UP Board Social Science Class 9 प्रश्न 7.
यूरोप की रेडिकल समूह के लोग समर्थक थे प्रश्न 8. UP Board Solution Class 9th Social Science प्रश्न 9. यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति प्रश्न उत्तर प्रश्न 10. यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति नोट्स प्रश्न 11. UP Board Class 9 History
प्रश्न 12. UP Board Solution.Com Class 9 प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. प्रश्न 24.
प्रश्न 25. प्रश्न 26. प्रश्न 27. प्रश्न 28. लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1.
प्रश्न 2.
केरेंस्की की अलोकप्रियता के कारण- यद्यपि केरेंस्की एक योग्य नेता था, परन्तु वह इन समस्याओं को हल करने और जनता की माँगों को पूरा करने में असमर्थ रहा। इसीलिए मार्च, 1917 ई. की क्रांति के बाद रूस में जगह-जगह श्रमिक पंचायतों (सोवियतों) का निर्माण हो गया। इन पंचायतों ने केरेंस्की के स्थान पर स्वयं रूस का शासन संभालने का निश्चय किया। इसलिए वह अलोकप्रिय हो गया। 7 नवम्बर को (UPBoardSolutions.com) केरेंस्की सरकार का पतन हो गया और लेनिन के नेतृत्व में एक नई सरकार बनी जिसे ‘काउंसिल ऑफ पीपुल्स कमीसार्स का नाम दिया गया। प्रश्न 3. (2) रैडिकल (आमूल परिवर्तनवादी )- इस विचारधारा के समर्थक बहुमत पर आधारित सरकार की स्थापना के पक्ष में थे। यह किसी भी व्यक्ति को प्राप्त विशेषाधिकारों के विरुद्ध थे। यह समानता पर आधारित समाज की स्थापना करना चाहते थे। प्राचीन रूढ़ियों के यह विरोधी थे। यह राजा (UPBoardSolutions.com) के दैवी शक्ति के सिद्धान्त में विश्वास नहीं करते थे और राजतंत्र को नष्ट करने के लिए क्रांतिकारी उपायों को अपनाने के पक्ष में थे। फ्रांस में पेरिस कम्यून की स्थापना का श्रेय इसी विचारधारा के समर्थकों को जाता है। प्रश्न 4.
प्रश्न 5.
प्रश्न 6. प्रश्न 7.
प्रश्न 8.
प्रश्न 9. प्रश्न 10. किसान जमीन पर सर्फ के रूप में काम करते थे और उनकी पैदावार को अधिकतम भाग जमीन के मालिकों एवं विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों को चला जाता था। किसानों में जमीन की भूख प्रमुख कारक थी। विभिन्न दमनकारी नीतियों तथा कुण्ठा के कारण वे आमतौर पर लगान देने से मना कर देते और प्रायः जमींदारों की हत्या करते। मजदूरों की स्थिति भी बहुत भयावह थी। वे अपनी शिकायतों को प्रकट करने के लिए कोई ट्रेड यूनियन अथवा कोई राजनीतिक दल नहीं बना सकते थे। अधिकतर कारखाने उद्योगपतियों की निजी सम्पत्ति थे। वे अपने स्वार्थ के लिए मजदूरों का शोषण करते थे। कई बार तो इन (UPBoardSolutions.com) मजदूरों को न्यूनतम निर्धारित मजदूरी भी नहीं मिलती थी। कार्य घण्टों की कोई सीमा नहीं थी जिसके कारण उन्हें दिन में 12-15 घण्टे काम करना पड़ता था। प्रश्न 11.
प्रश्न 12. सेना ने 60 हजार के लगभग लोगों को बंदी बना लिया। इसीलिए 9 जनवरी, 1905 ई. का दिन रूस के इतिहास में लाल रविवार (खूनी रविवार) के नाम से जाना जाता है। उस समय तो प्रदर्शनकारियों को सेना ने बलपूर्वक दबा दिया किन्तु क्रान्ति की चिंगारी उनके भीतर सुलगती रही और 1917 ई. में एक क्रान्ति के रूप में प्रकट हुई। इसीलिए 1905 ई. की क्रान्ति को 1917 ई. की क्रान्ति की जननी कहा जाता है। प्रश्न 13. प्रश्न 14.
प्रश्न 15. प्रश्न 16. अनेक उद्योग बन्द हो गए। बाल्टिक सागर मार्ग पर जर्मनों का नियंत्रण होने के कारण रूस अपने उद्योगों के लिए कच्चे माल का आयात न कर सका। शहरों में रहने वाले लोगों के लिए रोटी और आटे की किल्लत हो गयी। 1916 ई. तक रोटी की दुकानों पर दंगे होना आम बात हो गयी। यूरोप के अन्य देशों की अपेक्षा रूस के औद्योगिक उपकरण अधिक तेजी से बेकार होने लगे। 1916 ई. तक रेलवे लाईंटूटने लगीं। सेहतमन्द लोगों को युद्ध में झोंक दिया गया। परिणामस्वरूप मजदूरों की कमी हो गई और आवश्यक सामान बनाने वाली छोटी कार्यशालाओं को बन्द कर दिया गया। अनाज का एक बड़ा भाग सैनिकों के भोजन के लिए भेज दिया गया। प्रश्न 17.
प्रश्न 18. बोल्शेविकों ने गृह युद्ध के दौरान उद्योगों तथा बैंकों को राष्ट्रीयकृत रखा। उन्होंने समाजीकरण की हुई भूमि पर किसानों को खेती करने दी। बोल्शेविकों ने जब्त की (UPBoardSolutions.com) गई भूमि के द्वारा यह दर्शाया कि सामूहिक कार्य क्या कर सकता है। केन्द्रीयकृतं नियोजन की एक प्रक्रिया लागू की गई। कर्मचारियों ने यह आंका कि अर्थव्यवस्था किस प्रकार कार्य करेगी और अगले 5 वर्षों के लिए लक्ष्य निर्धारित किए। सभी मूल्य सरकार
द्वारा निर्धारित किए जाते थे। दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. स्तालिन का विचार था कि कुलक (रूस के धनी किसान) अधिक फायदा पाने के लिए अनाज को नहीं बेच रहे थे। इसलिए स्तालिन ने सामूहिकीकरण कार्यक्रम शुरू किया। 1929 ई. से सभी किसानों को सामूहिक खेत (कोलखोज) को जोतने के लिए विवश किया गया। ज्यादातर भूमि तथा (UPBoardSolutions.com) कृषि यंत्रों का स्वामित्व सामूहिक खेतों को हस्तांतरित कर दिया गया। किसान भूमि पर काम करते तथा कोलखोज से होने वाला लाभ किसानों में बाँट दिया जाता था। यद्यपि स्तालिन की खेतों के सामूहिकीकरण की नीति किसानों में अलोकप्रिय थी और किसानों ने इसके विरोध में अपने पशुओं को मारना शुरू कर दिया। फलस्वरूप 1929 से 1931 ई. के बीच पशुओं की संख्या एक तिहाई तक घट गयी। खेतों के सामूहिकीकरण का विरोध करने वालों को कठोर दण्ड दिया गया। स्तालिन सरकार ने कुछ स्वतंत्र खेती की अनुमति दी लेकिन ऐसे उत्पादकों के साथ कोई सहानुभूति नहीं दिखाई। सामूहिकीकरण के बावजूद उत्पादन तत्काल नहीं बढ़ा। 1930-33 ई. में खराब फसल के कारण भयंक़र अकाल पड़ा जिसमें चालीस लाख लोग मारे गए। प्रश्न 2.
प्रश्न 3.
प्रश्न 4.
प्रश्न 5.
प्रश्न 6. पश्चिमी यूरोपीय देशों द्वारा किए गए लोकतांत्रिक प्रयोगों से प्रभावित होकर रूस के लोगों ने भी एक उत्तरदायी सरकार की माँग आरम्भ की, लेकिन जार ने उनकी माँग को अस्वीकार कर दिया। फलस्वरूप उदार सुधारक भी
क्रान्ति की बातें करने लगे। जनवरी, 1905 ई. में जोर से याचना करने के लिए एक रविवार को मजदूरों ने पादरी गैपॉन के नेतृत्व में एक शान्तिपूर्ण जुलूस निकाला। किन्तु जब यह जुलूस विंटर पैलेस पहुँचा तो पुलिस ने उन पर हमला कर दिया। परिणामस्वरूप 100 से अधिक मजदूर इस हमले में मारे गए जबकि (UPBoardSolutions.com) इससे कहीं अधिक घायल हो गए। यह घटना खूनी रविवार के नाम से जानी जाती है जिसने घटनाओं की एक श्रृंखला को शुरू कर दिया जिसे 1905 की क्रान्ति के नाम से जाना जाता है। इसी कारण पूरे देश में हड़ताले प्रश्न 7. (1) विचारकों का प्रभाव- अनेक रूसी विचारक यूरोप में हो रहे परिवर्तनों से बहुत प्रभावित हुए। वे उसी तरह के परिवर्तन रूस में भी चाहते थे। इसी भावना से प्रेरित होकर उन्होंने किसानों में जागृति लाने और मजदूरों में संगठित होने की विचारधारा का प्रसार किया। रूस की (UPBoardSolutions.com) तत्कालीन स्थितियों में एक नरमपंथी, जनतंत्रवादी अथवा सुधारक को भी क्रांतिकारी बनने के लिए मजबूर होना पड़ा। 19वीं शताब्दी के अन्तिम चरण के दौरान जनता के पास जाओ’ नामक एक आन्दोलन आरम्भ हुआ। यूरोप के उदार विचारों ने भी रूसी-क्रांति लाने में बड़ा योगदान दिया। भौतिक क्रांति से पहले रूसी जनता के विचारों में क्रांति हुई। जार के अनेक प्रतिबंध लगाने पर भी पश्चिम के उदार विचारकों ने रूस में साहित्य के माध्यम से प्रवेश किया। विभिन्न रूसी लेखकों जैसे टालस्टाय, टर्जने आदि ने नवयुवकों के विचारों में क्रांति पैदा कर दी और वे पश्चिमी देशों के लोगों को प्राप्त सुविधाओं और अधिकारों की माँग करने लगे। जार ने जब उन्हें ठुकराने की कोशिश की तो उन्होंने क्रांति का मार्ग अपनाया। (2) 1904-05 ई. में रूस-जापान
युद्ध- 1904-05 ई. के रूसी-जापानी युद्ध में रूस की हार हुई। छोटे से देश से हारने के कारण जनता जार के शासन की विरोधी बन गई; क्योंकि उसको विश्वास हो गया कि इस हार का (3) प्रथम विश्व युद्ध में हुई क्षति- प्रथम विश्व युद्ध में रूस की सेना की कई मोर्चे पर पराजय हुई। इस युद्ध में रूस के 60 लाख सैनिक मारे गए। रूस के लोग युद्ध को चालू रखने के पक्ष में नहीं थे। लगभग समस्त देशवासियों और विशेषकर सैनिकों में युद्ध को लेकर आक्रोश व्याप्त था। (4) निरंकुश राजतंत्र- रूस की राजनैतिक स्थिति अक्टूबर क्रान्ति से बहुत अच्छी नहीं थी। चूँकि रूस में लम्बे समय से जार का निरंकुश, स्वेच्छाचारी, अत्याचारी, अकुशल और शोषक शासन अस्तित्व में था, ऐसे में रूस में क्रान्ति का घटित होना अवश्यम्भावी नहीं था। क्रांति से पूर्व रूस में शासन पर भ्रष्ट जमींदारों, शाही परिवार के लोगों, अमीरों एवं सैनिक अधिकारियों का प्रभुत्व था। कहने को तो रूस का साम्राज्य बहुत बड़ा था लेकिन इसमें गैररूसी जनता पर और भी अधिक अत्याचार होते थे। जार को शेष जनता की भावनाओं का कोई आदर नहीं था। वस्तुतः शासकों व शासितों के मध्य अन्तर निरन्तर बढ़ता ही जा रहा था। अतः जनता में असंतोष की सभी सीमाएँ पार हो गई थीं। रूस के जार पूरी तरह निरंकुश व स्वेच्छाचारी थे। उन्होंने समय-समय पर जो परामर्शदात्री सभाएँ बनाईं, उनके विचारों को मानने के लिए वे बाध्य नहीं थे। जापान से परास्त हो जाने के बाद निकोलस द्वितीय को ड्यूमा (UPBoardSolutions.com) नामक संसद के गठन के लिए मजबूर होना पड़ा किन्तु वह वास्तव में जनता तथा विशेषतः समाज के दुर्बल वर्ग का प्रतिनिधित्व नहीं करती थी। दूसरे इसकी शक्तियाँ सीमित थीं। सम्राट इसके निर्णय से बँधा हुआ नहीं था। (5) किसानों की विपन्न दशा- रूस में किसानों की स्थिति अत्यन्त दयनीय थी। रूस में 1861 ई. से पहले। सामन्तवादी व्यवस्था अस्तित्व में थी। अधिकांश किसान भूमि दासों या सर्फ के रूप में जमीन जोता करते थे। उन्हें अपनी उपज का एक बहुत बड़ा हिस्सा सामंतों को देना पड़ता था। यद्यपि 1861 ई. में सामंत-प्रथा समाप्त कर दी गई तो भी किसानों की दशा में कोई सुधार नहीं हुआ। उनके खेत बहुत छोटे (UPBoardSolutions.com) होते थे जिने पर वे पुराने ढंग से खेती करते थे। उन पर लगे करों को बोझ भारी थी इसलिए वे सदा ऋण से दबे रहते थे। सच तो यह है कि उन्हें दो समय का भरपेट भोजन भी नसीब नहीं होता था। रूस में जमीन के लिए किसानों की भूख असंतोष का एक प्रबल सामाजिक कारण था। (6) श्रमिकों की विपन्न दशा- औद्योगिक क्रान्ति के कारण रूस में अनेक उद्योगों की स्थापना की गयी थी, जिनमें लाखों मजदूर काम करते थे किन्तु मजदूरों की आर्थिक स्थिति और उनके कार्यस्थल की दशाएँ अत्यन्त शोचनीय थीं। ऐसी दयनीय स्थिति से बचने के लिए मजदूर एक होने लगे। उन्होंने श्रम संघों का निर्माण शुरू किया। परन्तु पूँजीपति व उनके इशारों पर चलने वाली सरकार ने 1900 ई. में श्रम संघ बनाने एवं हड़ताल करने पर रोक लगा दी। उन्हें न तो कोई राजनैतिक अधिकार प्राप्त थे और न ही उन्हें सुधारों की कोई उम्मीद थी। (7) 1905 ई. की क्रान्ति- 9 जनवरी, 1905 को रविवार के दिन मास्को में जनसाधारण ने अपनी 11 सूत्रीय माँगों के साथ एक जुलूस निकाला। प्रदर्शनकारियों का उद्देश्य इन 11 सूत्रीय माँगों को जार के महल तक जाकर उसे जार को सौंपना था। “छोटे भगवान! हमें रोटी दो।” के नारे के साथ ये लोग जार के महल की ओर बढ़ रहे थे, किन्तु जार ने इनसे बात करना तो दूर इन पर गोली चलवा दी। लगभग 1,000 प्रदर्शनकारी मारे गए तथा 60,000 गिरफ्तार कर लिए गए। रूस की सड़कों पर इस दिन बहुत रक्तपात हुआ। इसीलिए 9 जनवरी, 1905 ई. का रविवार का दिन रूसी इतिहास में खूनी रविवार के नाम से प्रसिद्ध है। अनेक इतिहासकारों की राय है कि यद्यपि 1905 ई. की क्रांति को कुचलने में जार कामयाब रहा लेकिन इस क्रांति ने अक्टूबर, 1917 ई. की क्रांति के लिए उचित वातावरण तैयार करने में अहम् भूमिका अदा की। इस दिन हुए हत्याकांड से सारे रूस में रोष फैल गया। क्रांतिकारियों के (UPBoardSolutions.com) समर्थन में जगह-जगह बन्द आयोजित किए गए और हड़ताले हुईं। इस क्रांति के कारण शिक्षित वर्ग के लोग भी क्रांतिकारियों के साथ मिल गए। इसीलिए 1905 ई. की क्रांति को कई बार 1917 ई. की क्रांति की जननी भी कहा जाता है। Hope given UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 2 are helpful to complete your homework. If you have any doubts, please comment below. UP Board Solutions try to provide online tutoring for you. रेडिकल विचारधारा से आप क्या समझते हैं?Answer:रेडिकल समूह की विचारधारा इस प्रकार थी. Explanation:रेडिकल समूह के लोग ऐसी सरकार के पक्ष में थे, जिसे देश की आबादी बहुसंख्यक जनसंख्या का समर्थन मिला हुआ हो। रेडिकल समूह के लोग बड़े-बड़े पूंजीपतियों, जमीदारों, उद्योगपतियों को प्राप्त किसी भी तरह के विशिष्ट अधिकारों के विरुद्ध थे।
रैडिकल समूह से क्या तात्पर्य है?मूलक (radical) तत्वों के ऐसे समूह को कहते हैं, जो यौगिकों में एक रासायनिक तत्व सा व्यवहार करता है। यौगिकों में यह किसी तत्व का स्थान ले सकता है अथवा उसे विस्थापित कर सकता है।
रेडिकल या मौलिक विचारधारा के लोग क्या चाहते थे?(2) रैडिकल (आमूल परिवर्तनवादी )- इस विचारधारा के समर्थक बहुमत पर आधारित सरकार की स्थापना के पक्ष में थे। यह किसी भी व्यक्ति को प्राप्त विशेषाधिकारों के विरुद्ध थे। यह समानता पर आधारित समाज की स्थापना करना चाहते थे। प्राचीन रूढ़ियों के यह विरोधी थे।
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