सूर्य देव के पिता का क्या नाम है? - soory dev ke pita ka kya naam hai?

Surya Dev Family: वैदिक काल से भगवान सूर्य की पूजा होती रही है. सूर्य को वेदों में जगत की आत्मा और ईश्वर का नेत्र बताया गया है. सूर्य को जीवन, स्वास्थ्य और शक्ति के देवता के रूप में पूजा जाता है. मान्यता है कि सूर्यदेव की कृपा से ही पृथ्वी पर जीवन बरकरार है. ऋषि-मुनियों ने उदय होते हुए सूर्य को ज्ञान रूपी ईश्वर बताते हुए सूर्य की साधना-आराधना को अत्यंत कल्याणकारी बताया है. प्रत्यक्ष देवता सूर्य की उपासना शीघ्र ही फल देने वाली मानी जाती है. इनकी साधना स्वयं प्रभु श्री राम ने भी की थी. आपको बता दें कि भगवान श्रीराम के पूर्वज भी सूर्यवंशी थे. भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र सांब भी सूर्य की उपासना करके अपना कुष्ठ रोग दूर कर पाए थे. सूर्य देव का परिवार काफी बड़ा है. उनकी संज्ञा और छाया नाम की दो पत्‍नियां और 10 संतानें हैं, जिसमें यमराज और शनिदेव जैसे पुत्र और यमुना जैसी बेटियां शामिल हैं. मनु स्‍मृति के रचयिता वैवस्वत मनु भी सूर्यपुत्र ही हैं.

सूर्य देव की पत्‍नियां
सूर्य देव की दो पत्‍नियां संज्ञा और छाया हैं. संज्ञा सूर्य का तेज न सह पाने के कारण अपनी छाया को उनकी पत्‍नी के रूप में स्‍थापित करके तप करने चली गई थीं. लंबे समय तक छाया को ही अपनी प्रथम पत्‍नी समझ कर सूर्य उनके साथ रहते रहे. ये राज बहुत बाद में खुला की वे संज्ञा नहीं छाया है. संज्ञा से सूर्य को जुड़वां अश्विनी कुमारों के रूप में दो बेटों सहित छह संतानें हुईं जबकि छाया से उनकी चार संतानें थीं.

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सूर्य के ससुर विश्‍वकर्मा
देव शिल्‍पी विश्‍वकर्मा सूर्य पत्‍नी संज्ञा के पिता थे और इस नाते उनके ससुर हुए. उन्‍होंने ही संज्ञा के तप करने जाने की जानकारी सूर्य देव को दी थी.

सूर्य पुत्र यम
धर्मराज या यमराज सूर्य के सबसे बड़े पुत्र और संज्ञा की प्रथम संतान हैं.

यमी
यमी यानि यमुना नदी सूर्य की दूसरी संतान और ज्‍येष्‍ठ पुत्री हैं जो अपनी माता संज्ञा को सूर्यदेव से मिले आशीर्वाद के चलते पृथ्‍वी पर नदी के रूप में प्रसिद्ध हुईं.

वैवस्वत मनु
सूर्य और संज्ञा की तीसरी संतान हैं वैवस्वत मनु वर्तमान (सातवें) मन्वन्तर के अधिपति हैं यानि जो प्रलय के बाद संसार के पुनर्निर्माण करने वाले प्रथम पुरुष बने और जिन्‍होंने मनु स्‍मृति की रचना की.

शनि देव
सूर्य और छाया की प्रथम संतान हैं शनिदेव जिन्‍हें कर्मफल दाता और न्‍यायधिकारी भी कहा जाता है. अपने जन्‍म से शनि अपने पिता से शत्रु भाव रखते थे. भगवान शंकर के वरदान से वे नवग्रहों में सर्वश्रेष्ठ स्थान पर नियुक्‍त हुए और मानव तो क्या देवता भी उनके नाम से भयभीत रहते हैं.

तप्‍ति
छाया और सूर्य की कन्या तप्‍ति का विवाह अत्यन्त धर्मात्मा सोमवंशी राजा संवरण के साथ हुआ. कुरुवंश के स्थापक राजर्षि कुरु इन दोनों की ही संतान थे, जिनसे कौरवों की उत्पत्ति हुई.

विष्टि या भद्रा
सूर्य और छाया पुत्री विष्टि भद्रा नाम से नक्षत्र लोक में प्रविष्ट हुई. भद्रा काले वर्ण, लंबे केश, बड़े-बड़े दांत तथा भयंकर रूप वाली कन्या है. भद्रा गधे के मुख और लंबे पूंछ और तीन पैरयुक्त उत्पन्न हुई. शनि की तरह ही इसका स्वभाव भी कड़क बताया गया है. उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उन्हें काल गणना या पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टि करण में स्थान दिया है.

सावर्णि मनु
सूर्य और छाया की चौथी संतान हैं सावर्णि मनु. वैवस्वत मनु की ही तरह वे इस मन्वन्तर के पश्‍चात अगले यानि आठवें मन्वन्तर के अधिपति होंगे.

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अश्विनी कुमार
संज्ञा के बारे में जानकारी मिलने के बाद अपना तेज कम करके सूर्य घोड़ा बनकर उनके पास गए. संज्ञा उस समय अश्विनी यानि घोड़ी के रूप में थी. दोनों के संयोग से जुड़वां अश्विनी कुमारों की उत्पत्ति हुई जो देवताओं के वैद्य हैं. कहते हैं कि दधीचि से मधु-विद्या सीखने के लिए उनके धड़ पर घोड़े का सिर रख दिया गया था और तब उनसे मधुविद्या सीखी थी. अत्‍यंत रूपवान माने जाने वाले अश्विनी कुमार नासत्य और दस्त्र के नाम से भी प्रसिद्ध हुए.

रेवंत
सूर्य की सबसे छोटी और संज्ञा की छठी संतान हैं रेवंत जो उनके पुनर्मिलन के बाद जन्‍मी थी. रेवंत निरन्तर भगवान सूर्य की सेवा में रहते हैं.(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. Hindi news18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)

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मल्टीमीडिया डेस्क। किसी ने भी भगवान को नहीं देखा है, लेकिन सूर्य और चंद्रमा को हर व्यक्ति ने देखा है। ज्योतिष में सूर्य और चंद्रमा दोनों ही ग्रह माने गए हैं, जबकि विज्ञान कहता है कि चंद्रमा पृथ्वी का उपग्रह है। ज्योतिष शास्त्र में नवग्रहों में सूर्य को राजा और चंद्रमा को रानी व मन का कारक माना गया गया है।

विज्ञान भी मानता है कि सूर्य के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। वेदों में सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है। सूर्य से ही धरती पर जीवन संभव है और इसीलिए वैदिक काल से ही भारत में सूर्य की उपासना का चलन रहा है। वेदों की ऋचाओं में अनेक स्थानों पर सूर्य देव की स्तुति की गई है।

सृष्टि के प्रारम्भ में ब्रह्मा जी के मुख से 'ऊँ' प्रकट हुआ था, वही सूर्य का प्रारम्भिक सूक्ष्म स्वरूप था। इसके बाद भूः भुव तथा स्व शब्द उत्पन्न हुए। ये तीनों शब्द पिंड रूप में 'ऊँ' में विलीन हए तो सूर्य को स्थूल रूप मिला। सृष्टि के प्रारम्भ में उत्पन्न होने से इसका नाम आदित्य पड़ा।

ऐसे बने आदित्य -

सूर्य देव के जन्म की यह कथा भी काफी प्रचलित है। इसके अनुसार ब्रह्मा जी के पुत्र मरिचि और मरिचि के पुत्र महर्षि कश्यप थे। इनका विवाह हुआ प्रजापति दक्ष की कन्या दीति और अदिति से हुआ। दीति से दैत्य पैदा हुए और अदिति ने देवताओं को जन्म दिया, जो हमेशा आपस में लड़ते रहते थे।

इसे देखकर देवमाता अदिति बहुत दुखी हुई। वह सूर्य देव की उपासना करने लगीं। उनकी तपस्या से सूर्यदेव प्रसन्न हुए और पुत्र रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। कुछ समय पश्चात उन्हें गर्भधारण हुआ। गर्भ धारण करने के पश्चात भी अदिति कठोर उपवास रखती, जिस कारण उनका स्वास्थ्य काफी दुर्बल रहने लगा।

महर्षि कश्यप इससे बहुत चिंतित हुए और उन्हें समझाने का प्रयास किया कि संतान के लिए उनका ऐसा करना ठीक नहीं है। मगर, अदिति ने उन्हें समझाया कि हमारी संतान को कुछ नहीं होगा ये स्वयं सूर्य स्वरूप हैं। समय आने पर उनके गर्भ से तेजस्वी बालक ने जन्म लिया, जो देवताओं के नायक बने और बाद में असुरों का संहार किया।

अदिति के गर्भ से जन्म लेने के कारण इन्हें आदित्य कहा गया। वहीं कुछ कथाओं में यह भी आता है कि अदिति ने सूर्यदेव के वरदान से हिरण्यमय अंड को जन्म दिया, जो कि तेज के कारण मार्तंड कहलाया।

सूर्य देव की विस्तृत कथा भविष्य, मत्स्य, पद्म, ब्रह्म, मार्केंडेय, साम्ब आदि पुराणों में मिलती है। प्रात:काल सूर्योदय के समय सूर्यदेव की उपासना करने से सूर्यदेव प्रसन्न रहते हैं और जातक पर कृपा करते हैं।

क्रूर ग्रह हैं सूर्य पापी नहीं -

सूर्य ने माता की इच्छा पूर्ण करते हुए शत्रुओं का निर्दयता से दमन किया इसलिए सूर्य को क्रूर ग्रह कहा गया है नाकि दुष्ट या पापी। सूर्य की जन्म भूमि कलिंग देश, गोत्र कश्यप और जाति ब्राह्मण है। सूर्य गुड़ की बलि से, गुग्गल धूप से, रक्त चन्दन से, अर्क की समिधा से, कमल पुष्प से प्रसन्न होते हैं।

सूर्य के रथ में केवल एक पहिया है। सात अलग-अलग रंग के तेजस्वी घोड़े उसे खींचते हैं और उनका सारथी लंगड़ा है, मार्ग निरालम्ब है, घोड़े की लगाम की जगह सांपों की रस्सी है।

श्रीमद्भागवत्‌ पुराण के अनुसार सूर्य के रथ का एक चक्र(पहिया) संवत्सर कहलता है। इसमें मास रूपी बारह आरे होते हैं, ऋतु रूप में छह नेमिषा है, तीन चौमासे रूप नाभि है। रस रथ की धुरी का एक सिरा मेरूपर्वत की चोटी पर है और दूसरा मानसरोवर पर्वत पर, इस रथ में अरुण नामक सारथी भगवान सूर्य की ओर रहता है।

दो पत्नियांं और 10 पुत्र हैं -

भगवान्‌ सूर्य की दो पत्नियां हैं संज्ञा और निक्षुभा। संज्ञा के सुरेणु, राज्ञी, द्यौ, त्वाष्ट्री एवं प्रभा आदि अनेक नाम हैं तथा छाया का ही दूसरा नाम निक्षुभा है। संज्ञा विश्वकर्मा त्वष्टा की पुत्री है। भगवान्‌ सूर्य को संज्ञा से वैवस्वतमनु, यम, यमुना, अश्विनी कुमार द्वय और रैवन्त तथा छाया से शनि, तपती, विष्टि और सावर्णिमनु ये दस संतानें हुई।

ऐसा है स्वरूप -

सूर्य सिंह राशि के स्वामी हैं। इनकी महादशा 6वर्ष की होती है। प्रिय रत्न माणिक्य है। सूर्य की प्रिय वस्तुएं सवत्सा गाय, गुड़, तांबा, सोना एवं लाल वस्त्र आदि हैं। सूर्य की धातु सोना और तांबा है। सूर्य की जप संख्या 7000 है।

इसका बीज मंत्र- 'ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः' है। वहीं, सामान्य मंत्र- 'ऊँ घृणि सूर्याय नमः' है। यदि सूर्य निर्बल हो तो नित्य सूर्य उपासना, सूर्य को अर्ध्य देने से, रविवार का व्रत करने से और सूर्यदेव के नित्य दर्शन करने से सूर्यदेवता प्रसन्न और बली होते हैं।

सूर्य देव के माता पिता का नाम क्या है?

पुराणों अनुसार सूर्य देवता के पिता का नाम महर्षि कश्यप व माता का नाम अदिति है। अदिति के पुत्रों को आदित्य कहा गया है। 33 देवताओं में अदिति के 12 पुत्र शामिल हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं- विवस्वान् (सूर्य), अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)।

सूर्य देव की बेटी कौन है?

सूर्यदेव की दो बेटियां बनी नदी संज्ञा से ताप्ती और छाया से यमुना जो नदी रूप में धरती पर विराजमान हैं।

सूर्य देवता का पुत्र कौन है?

सूर्य पुत्र यम धर्मराज या यमराज सूर्य के सबसे बड़े पुत्र और संज्ञा की प्रथम संतान हैं।

सूर्य देव की बहन कौन थी?

छठ मैया, सूर्यदेव की बहन हैं और सूर्योपासना से वह प्रसन्न होकर घर परिवार में सुख-शांति प्रदान करती हैं। षष्ठी देवी को ही छठ मैया कहा गया है। षष्ठी देवी को ब्रह्मा की मानसपुत्री भी कहा गया है, जो निसंतानों को संतान प्रदान करती हैं।