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समाजीकरणयदि देखा जाये तो मनुष्य के समाजीकरण की प्रक्रिया जीवन पर्यन्त चलती रहती है। क्यूंकि मानव जन्म लेते समय एक जैविक प्राणी होता है। इसीलिए उसे सामाजिक मूल्यों व आदर्शों का ज्ञान नहीं होता है। मानव जन्म के समय ना तो सामाजिक प्राणी होता है,और ना ही असामाजिक प्राणी होता है। परन्तु कालांतर में मानवीय संपर्क में आता है। जिससे वह सामाजिक सरोकारों को सीखता है। इसी के कारण वह एक सामाजिक जीव/ प्राणी के रूप में स्थापित हो पाता है। समाजीकरण की प्रक्रियाइसी प्रक्रिया के कारण ही मानव समाज में सामाजिक प्राणी के रूप में स्थापित हो पाता है। क्योंकि समाजीकरण एक प्रकार की प्रोसेस होती है। जिसके कारण व्यक्ति सामाजिक सरोकारों एवं सांस्कृतिक प्रवृत्तियों को दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाता है। इससे समाज में स्थायित्व का गुण उत्पन्न होता है। इसी प्रक्रिया को समाजीकरण कहते हैं। समाजीकरण का अर्थयह भी सच है कि समाजीकरण में सार्वभौमिकता का गुण पाया जाता है। लेकिन इसकी प्रकृति में अन्तर होता है। क्योंकि समाज में एकरूपता का अभाव होता है। इसीलिए समाजीकरण की प्रक्रिया में भी अन्तर नजर आता है। व्यक्तियों के मध्य भी अन्तर स्पष्ट दिखाई देता है। एक छोटे से बालक को सामाजिक प्राणी बनाने में जो प्रक्रिया अमल में लाई जाती है।वह वयस्क व्यक्ति के लिए उपयोगी नहीं हो सकती है। क्योंकि छोटे बच्चों का दिमाग इतना विकसित व उपयोगी नहीं होता है कि, वह सब तरह की भूमिकाओं को सिख कर आत्मसात कर लें। और ऐसी भी कोई संस्था नहीं बनी है,जो बच्चों को सारी भूमिका को सीखा सके। इसीलिए समाजीकरण में सार्वभौमिक गुण होने के बावजूद भी समाज में भिन्नता के साथ देखी जाती है। आपको यह भी पढ़ने चाहिए
समाजीकरण की परिभाषानिम्न विद्वानों के द्वारा समय-समय समाजीकरण की परिभाषा उपलब्ध करवाई गई है। जो कि अग्र लिखित है। जॉनसनयह एक तरह से सीखने की प्रक्रिया है जिसके कारण शिक्षणार्थी सामाजिक जिम्मेदारी को करने योग्य बन जाता है। बोगार्ड्ससमाजीकरण एक सामूहिक कार्य है जिससे सामुदायिक भावना का विकास होता है।इससे व्यक्तियों के कल्याण हेतु मार्गदर्शन की प्राप्ति होती है। लुंडवर्गयह एक ऐसा जटिल प्रक्रिया है। जिसके कारण व्यक्ति विशेष सामुदायिक कार्यों में प्रतिभाग करने के लिए सामाजिक मानकों को ग्रहण करता है। हार्ट एवम हाटसमाजीकरण के कारण व्यक्ति अपने आत्म शक्ति /आत्मविश्वास से अपने सामुदाय के प्रतिमानो को ग्रहण करता है। जो व्यक्ति की अपनी व्यक्तिगत पहचान होती है। स्टीवर्ट एवं ग्रीनइस प्रक्रिया के द्वारा व्यक्ति अपनी संस्कृति के प्रतिमानों एवं प्रथाओं को आत्मसात करता है। टालकाट पारसन्सलोगों के द्वारा सामाजिक प्रतिमानों एवं मानदंडों को प्राप्त कर उनको आत्मसात करने की प्रक्रिया ही समाजीकरण कहलाती है। हरलम्बोसजिस प्रक्रिया के द्वारा कोई व्यक्ति संस्कृति ग्रहण एवं सीखता है, वही समाजीकरण के नाम से प्रचलित है। संक्षिप्त परिभाषासमाजीकरण की उपयुक्त परिभाषाओं से प्रतीत होता है कि, यह एक तरह से प्राप्त करने की प्रक्रिया है। जिसके माध्यम से व्यक्ति सामाजिक परम्पराओं तथा प्रतिमानों को सीख कर प्राप्त करता है। तथा मानव द्वारा सीखे हुए व्यवहार को भी अपने व्यवहार में लाता है। इससे उसके व्यक्तित्व का विकास होता है। जिससे व्यक्ति एक सामाजिक सदस्य के रूप में स्थापित हो पाता है। यही कारण ही समाज में एकता और अखंडता बनी रहती है। तथा साथ ही समाज की मर्यादा भी बनी रहती है। समाजीकरण की विशेषतासीखने की प्रक्रियायह सत्य है कि समाजीकरण एक सिखने की प्रोसेस है। इस सम्बन्ध में जानसन महोदय ने केवल उन्हीं प्रतिमानों एवं व्यवहारों को सीखना कहा है। जो समाज द्वारा मान्यता प्राप्त होते हैं। उन्होंने कहा यदि कोई व्यक्ति वयंभिचार सीखता है। तो, वह समाजीकरण नहीं हो सकता है। क्योंकि उसके बुरे बर्ताव से समाज को नुकसान हो सकता है।उसको समाज का सदस्य नहीं माना जा सकता है। आजन्म प्रक्रियायह ऐसी प्रॉसिस है, जो जिन्दगी भर साथ चलती है। वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में कह सकते हैं कि, कोई भी व्यक्ति अपने आप में पूर्णरूपेण सामाजिकृत नहीं है। कोई भी व्यक्ति अपने बचपन से वृद्धावस्था तक,जिस किसी भूमिका का निर्वहन करता है। उन् भूमिकाओं में भी वह कुछ न कुछ सीखता ही रहता है।अतः समाजीकरण कभी न समाप्त होने वाली एक प्रक्रिया है। समय व स्थान की सापेक्षइसको एक उदाहरण के द्वारा समझा जा सकता है। पहले गुरुकुल शिक्षा पद्धति प्रचलन में थी। जहां पर युवाओं को ब्रह्मचर्य का पालन एवं गुरु की सेवा करने का कर्तव्य का निर्वहन भी करवाया जाता था। जबकि आधुनिक शिक्षा इसके बिल्कुल विपरीत है। अब विद्यार्थी गुरुओं का उतना सम्मान नहीं करते।इसी प्रकार स्थान बदलने के साथ ही समाजीकरण की प्रक्रिया में भी बदलाव आ जाता है।जैसे पश्चिमी समाज में चुम्बन करना एक आम बात हो सकती है।परन्तु भारतवर्ष के संदर्भ में चुम्बन करना आम बात नहीं हो सकती है। समाज का प्रकार्यात्मक सदस्य बनने की प्रक्रियासमाजीकरण के द्वारा ही सामाजिक कार्यों को व्यवस्थित रूप से सम्पादित किया जाता है। इसका मतलब यह होता है कि, किसी व्यक्ति विशेष को समाज में कहां पर कैसा व्यवहार करना है। यह सब वह समाजीकरण के द्वारा ही वह सीख पाता है। इसी के परिणामस्वरूप व्यक्ति अलग-अलग परिस्थितियों के अनुसार व्यवहार कर पाता है। तथा प्रकार्यात्मक कार्य करने में सक्षम हो पाता है। आत्म का विकासयही एक प्रक्रिया है। जिसके माध्यम से व्यक्ति खुद के बारे में सोचता है। जिसे स्व भी कहा जा सकता है। इस सम्बन्ध में प्रसिद्ध विद्वान कुले ने कहा है कि,समाजीकरण के द्वारा ही मानव सीखता है कि,दूसरे लोग उसके बारे में क्या ख्याल रखते हैं।इससे व्यक्ति विशेष,समाज वह खुद के प्रति मोटिवेट बना रहता है। परिणामस्वरूप उसका व्यक्तित्व में निखार आता है। सांस्कृतिक हस्तांतरणइस सम्बन्ध में ब्रूम तथा सेल्जनिक ने कहा है कि यह एक ऐसी प्रॉसिस है। जिससे कोई व्यक्ति संस्कृति को सीखता एवं ग्रहण करता है। तथा आने वाली पीढ़ी को हस्तगत कर देता है। क्योंकि जब कोई व्यक्ति संस्कृति को सीख लेता है। तो वह अपने पूरे परिवार को संस्कृति से अवगत तथा आत्मसात करवाता है।इस तरह कहा जा सकता है कि, संस्कृति पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तगत होती रहती है। जैविकिय प्राणी से सामाजिक प्राणी तकजैसा कि मैंने पहले बताया था कि, बच्चा हमेशा एक जैविक प्राणी के रूप में जन्म लेता है। परन्तु समाजीकरण से वह धीरे-धीरे सामाजिक प्राणी में बदल जाता है। समाजीकरण के चरणइन्सान के जन्म लेने के पश्चात ही समाजीकरण की शुरुआत होती है। जो जीवन पर्यंत चलती रहती है। एक बच्चे में सीखने के बीजों का अभ्युदय जन्म से ही होता है। इसी के कारण बालक के बड़े होने के साथ समाजीकरण की प्रक्रिया से सामाजिक प्राणी के रूप में बदल जाता है। अनेक समाजशास्त्रियों एवं मनोवैज्ञानिकों ने समाजीकरण के चरणों को बताया है। फ्रायड तथा जानसन जैसे विद्वानों ने निम्नलिखित चरणों का उल्लेख किया है। मौखिक अवस्थाइस अवस्था का समयावधि लगभग 1 साल से डेढ़ साल तक की होती है। इस अवस्था में बच्चा अपनी आवाज़ के जरिये से अपने इर्द-गिर्द के लोगों के संपर्क में आता है। उसे जब भी किसी चीज की आवश्यकता होती है। वह रोता है। चिलाता है। उसके रोने से चिल्लाने से वह अपनी आवश्यकता प्राप्त करना सीख लेता है। इस अवस्था में भी लोग बच्चे से माँ जैसा बर्ताव रखते हैं। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि बच्चा जब भी किसी संकट जैसी स्थिति का सामना करता है। तो वह रोने या चिलाने के माध्यम से अपने आसपास के लोगों को संकेत देना सकता है। इस अवस्था को फ्रायड ने प्राथमिक परिचय का नाम दिया था। शौच अवस्थाजैसे की नाम से ही स्पस्ट होता है की, इस अवस्था में बच्चा साफ सफाई अथवा शौच हेतु अपने इर्द-गिर्द के लोगों का अनुसरण करता है। तथा अपेक्षा रखी जाती है की वो शौच के लिए शौचालय का ही उपयोग करें। यह द्वितीय सोपान है। इस सोपान में विभिन्न समाजों के अनुरुप ही समयावधि का निर्धारित किया जाता है। कई समाजों में इस अवस्था की अवधि लगभग 1 से 3 साल हो सकती है।और किन्ही समाज में पूरा 1 से 4 साल तक भी होती है। बालक और शौचइस अवस्था में बच्चे से उम्मीद की जाती है कि, वह खुद का थोड़ा बहुत ख्याल रखें। इस अवस्था में बच्चा अपने आस पास साफ सफाई करना सीखता है। अच्छा और बुरे के बारे में बच्चे को अवगत कराया जाता है। इसी दौरान बच्चे को अच्छे कार्य के लिए पुरस्कृत भी कराया जाता है। ताकि बच्चा अच्छे कार्य करने के लिए हमेसा मोटीवेट रेह सके। तथा मर्यादाविरुद्ध कार्यों के लिए पनिशमेंट भी दी जाती है। इस स्टेज में बालक परिवार के सदस्यों के साथ इंटेलेक्चुअल होता है। सबसे जरूरी बात तो यह है कि माँ की भूमिका इस अवस्था में भी समाजीकरण करने में अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है। इंडिपल स्तरयह अवस्था आमूमन 4 से 14 वर्ष के मध्य आंकी जा सकती है। इस अवस्था में बालक से कई तरह की भूमिकाओं के निर्वहन की अपेक्षा की जाती है। इस अवस्था में भी बच्चा माँ से काफी अटेचड होता है। साथ ही यौन सम्बन्धी भावना भी विकसित हो जाती है। इस अवस्था में बालक अपने मित्रों के साथ सहयोगी भूमिका का निर्वहन भी करता है। इस अवस्था को माट्री रति भी कहा जा सकता है। माँ से बालक का विशेष लगाव रहता है। माँ को खुश करने का प्रयास भी करता है। और और माँ भी बच्चे को अपनी देहिकी का पुरस्कार प्रदान करती है। तथा बालक अपनी भूमिका को आत्मसात करता है। किशोरावस्थायह आखरी अवस्था है। इस अवस्था में बालक नियंत्रण से मुक्त होने लगता है। अपने निर्णय खुद लेने का प्रयत्न करता है। इस आखरी अवस्था में बालक की मानसिक स्थिति दो तरह से प्रतीत होती है। 1 स्वतंत्र व्यवहार करना 2 अधिक स्वच्छंदता से भयभीत होना बालक से अपेक्षा की जाती है। कि,वह सामाजिक प्रतिमानों एवं मानदंडों के अनुरूप निर्णय लें। तथा अपने फ्यूचर के बारे में खुद निर्णय लेने का प्रयास करें। समाजीकरण की आवश्यकता और महत्वभाषाइंसान की भाषा के अनुरूप उसका सामाजिक कारण हो सकता है। मुंह से बोलना ही मानव की संस्कृति की क्रियाशीलता की बुनियाद है।जो कि सामाजिकृत व्यक्तियों के द्वारा किए जाने वाले व्यवहार से परिलक्षित है। सामाजिक क्रियाकलापसमाजीकरण की प्रक्रिया इंसानों में विकास का प्रतीक है। जिसके लिए सामाजिक गतिविधियों में प्रतिभाग करना जरूरी होता है। जिससे समाजीकरण के प्रति व्यक्ति विशेष की भावनाएं उत्पन्न होती है। शिक्षणेत्तर गतिविधियांइस प्रकार की गतिविधियों के लिए भी समाजीकरण बहुत जरूरी होता है। क्योंकि सीक्षणेतर गतिविधियों के आधार पर ही सामाजिक व्यवहार उत्पन्न होता है। अनुशासनईस प्रक्रिया के द्वारा बालकों के मन मस्तिष्क में मौलिक रूप से अनुशासन का अंकुर प्रस्फुटित होता है। जिसमें भोजन सम्बन्धी संयम दैनिक क्रियाओं का क्रियान्वयन और साफ-सफाई एवं चारित्रिक विकास आदि सब समाजीकरण के द्वारा ही संभव हो पाता है। मौसम का अनुभवसामान्यतः बालक शरद एवं गर्म का एहसास करता है।मौसम के हिसाब से अपने वस्त्र इत्यादि का ध्यान रखता है। वहीं एक ऐसा बालक जो जंगल में जानवरों के साथ ही परवरिश हुई हो, उसे मौसम का एक्सपीरिएंस नहीं हो पाता है। क्यूंकि उसका समाजीकरण नहीं हो पाया होता है। शारीरिक बनावटशारीरिक बनावट भी समाजीकरण का ही प्रतिफल है। बिना समाजीकरण की प्रक्रिया के बालक का संभवतः दो पैरों पर चलना ना होता। कई विद्वान भी इस बात से इत्तफाक रखते हैं।कि, समाजीकरण की प्रक्रिया ना होती तो बालक हाथों और पैरों के ऊपर ही जानवरों की तरह ही चल रहा होता। अर्थात सांस्कृतिक विकास का आधार ही समाजीकरण हैं। संवेगात्मक व्यवहारमानव का संवेग में आना और शांत रहना भी इस प्रक्रिया का ही प्रत्युत्तर है। जबकि भेड़िया बालकों में संभवत क्रोध, आनंद और भय ही बिना समाजीकरण के पाया जाता है। बौद्धिक विकासमानव के बौद्धिक विकास एवं लालन-पालन और बालक की देखरेख करना एवं मानसिक विकास सब समाजीकरण से ही होना संभव होता है। सामाजिक व्यवहारसमाजीकरण की प्रक्रिया से मानव आपस में सम्बन्ध एवं त्योहारों का निर्वहन सम्बन्धी विकास होता है। जैसे अपने अभिभावकों से सम्बन्ध धार्मिक सम्बन्ध तथा दुश्मनों के साथ सम्बन्ध इत्यादि भी समाजीकरण से ही संभव है। उपर्युक्त विशेषण से विदित होता है कि, समाजीकरण के आभाव में मानव मात्र हाड़ माँस का एक ढांचा है,और कुछ नहीं। मानव का एक समाजीकृत प्राणी के रूप में बदल जाना आदि ऐसे कार्य है, जिनके लिए समाजीकरण ही सबसे बड़े साधन के रूप में उपस्तिथ होता है। आपको यह भी पढ़ने चाहिए
समाजीकरण की मुख्य संस्थाएंइस प्रक्रिया के कुछ साधन और साध्य के रूप में संस्थाएं होती हैं जो अग्र लिखित है। परिवारवास्तव में परिवार का समाजीकरण में बहुत अधिक महत्व है। क्योंकि जन्म के पश्चात बालक सबसे पहले अपने अभिभावकों के संरक्षण में काफी कुछ सीख जाता है। जिसके कारण बालक के व्यक्तित्व में निखार आता है। जब किसी के घर में संतानोतपत्ति होती है। तो बच्चे का सबसे पहला सम्पर्क माँ से होता है। और माँ के साथ ही बचे की अच्छी बॉन्डिंग हो जाती है। माँ उसे प्यार और दुलार से अपना स्तनपान भी कराती है। उसकी संवेदनशीलता के साथ देखभाल भी करती है। साथ ही पिता के साथ परिवार के अन्य सदस्यों से बच्चा नियमित रूप से भोजन एवं वस्त्र इत्यादि के मिलने से, सुरक्षात्मकता का एहसास होता है। जो उसके दिमाग को स्थायित्व प्रदान करता है। बच्चे को जब परिवार से प्यार मिलता है तो, उनकी देखा देखी वह भी बोलने का प्रयास करता है। और सने सने वह कुछ शब्दों को बोलने लगता है। तथा एक सामाजिक व्यक्ति के रूप में सबसे उत्तम विशेषता से युक्त हो जाता है। परिवार और बालकबालक परिवार से बहुत सारी बातें सीखता है। जैसे भोजन कैसे करना चाहिए, वस्त्रों को किस प्रकार से पहनना चाहिए, मेहमानों तथा अन्य व्यक्तियों से कैसे बातें करते हैं। खाने से पहले हाथ साफ करना,घर में आने से पहले जूता बाहर उतारना। अपने अभिभावकों को प्रणाम करना, मेहमानों को नमस्ते करना। ये सारी बातें बालक प्रत्येक दिन अपने परिवार में देखता है और सीखता है।जिनको बार-बार सीखने से ये बालक के जीवन का हिस्सा बन जाते हैं।परिवार से बच्चा संस्कृति, संस्कार,आचरण, विचार आदि चीजें सीखता है। परिवार और सद्भभावबालक परिवार से ही परोपकार,आज्ञाकारीता, माफी का महत्व सीखता है। साथ ही परिवार से जिम्मेदारी एवं असहयोग और सहयोग की जानकारी सीखता है। अपने व्यक्तित्व का निर्माण करता है।अभिभावक, भाई-बहन के प्रेम,सद्भाव एवं संरक्षण से अपने मानसिक स्तर का विकास करता है। परिवार ही बच्चे की पहली पाठशाला है। जहां से वह एक नागरिक के रूप में राष्ट्र के लिए उसकी क्या भूमिका और कर्तव्य व जिम्मेदारियाँ है।उसका पालन करना सीखता है। अतः परिवार का समाजीकरण करने में अव्वल स्थान रखता है। परिवार समाज की ही उपज है। जिसकी एक कड़ी के रूप परिवार कार्य करता है। जो मनुष्य को आजीवन कुछ न कुछ अवश्य सिखाता रहता है। आस पड़ोस एवं बड़े बुजुर्गसमाजीकरण की प्रक्रिया में ईनका भी बहुत बड़ी भूमिका है।उनके साथ इंटेलेक्चुअल होने से बालक नए नए विचारों को आत्मसात करता है। उनका बातचीत करने का स्टाइल, बोलने का अंदाज,उनका व्यवहार, यह सब बालक का ध्यानाकर्षण करते हैं। जिसके परिणाम स्वरूप बालक को नवीन आदर्शों से रूबरू होने का मौका मिलता है। इन सब के कारण से बालक नई-नई आदतें सीखता है। जिससे उसके समाजीकरण की प्रक्रिया में अपेक्षाकृत तेजी आ जाती है। कहने का तात्पर्य यह कि, आस-पड़ोस एवं बड़े बुजुर्ग भी समाजीकरण का एक प्रमुख साधन होता है। खेल समूहइस प्रकार के समूह बच्चों को अनुकूलन एवं दूसरों से सामंजस्य बनाने के लिए, सामूहिक रूप से किसी भी कार्य को करने के लिए तथा अपने चिर परिचितों की संख्या बढ़ाने की प्रवृत्तियों का विकास होता है। इसकी मुख्य वजह होती है कि, बालक जब अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेलने जाते हैं। तो बालक अपने साथ अपने परिवारों का भी प्रतिनिधित्व कर रहे होते हैं। जिसके कारण उनके पहनावा,प्रतिक्रिया, बोलना आदि सब भिन्न होते हैं। इससे बच्चे का समाजीकरण होने में आसानी हो जाती है। अतः खेल समूह भी समाजीकरण का एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में विद्यमान है। शिक्षण संस्थाएंबालक अपने परिवार एवं आस-पड़ोस के लोगों व अपने खेलने के समूह के बाद, जब वह स्कूल आता है। तो यहां पर उसका संपर्क का दायरा बढ़ जाता है। स्कूल में हर रूप से भिन्न-भिन्न तरह के बच्चे होते हैं। जिनसे वह सामाजिक सम्बन्धों को बनाना सीखता है।यहां पर उसे अच्छे व बुरे का ज्ञान प्राप्त होता है। देश दुनिया के बारे में उसकी जिज्ञासा स्कूल में ही शांत होती है। जहां उसको अपने व्यक्तित्व के निखार करने में काफी सहायता प्राप्त हो जाती है। स्कूल,कॉलेजों में ही अध्यापक गणों के रूप में उसको अपने लाइफ के रियर हीरो की प्राप्ति होती है। इन सब से बच्चे का समाजीकरण को एक नई दिशा प्राप्त होती है। विवाहव्यक्ति के समाजीकरण में विवाह का भी एक महत्वपूर्ण रोल होता है। विवाह बंधन पर बंधने के पश्चात दोनों पति और पत्नी को नए अनुकूलन का एक्सपीरियंस लेना पड़ता है। यह सच है कि अनुकूलन की इस प्रक्रिया में महिला को अधिक चुनौतियों का सामना करना होता है। एक तरफ महिला को अपने पिता का घर छोड़ना होता है। तो दूसरी तरफ पितृसत्तात्मक समाज में उसे नए घर में सब चीजें अलग-अलग रूपों में मिलती है। जो उसके लिए काफी कठिन होता है। परन्तु कालांतर में बच्चे होने पर माँ को अधिक सैक्रिफाइस करना पड़ता है। अतः कहा जा सकता है कि, वैवाहिक जीवन में सहयोग की भावना,व्यक्ति से प्रेम या प्यार,आत्मसात की भावना जैसी भावनाओं को अपने जिंदगी में व्यवहारिक रुप से अपनाना पड़ता है। जैसे-जैसे प्रौढ़ावस्था की ओर बढ़ते हैं वैसे वैसे अनुकूलन की शक्ति कम होती चली जाती है। अन्य संस्थाएंइनमें राजनीतिक, धार्मिक तथा आर्थिक संस्थाएं आ जाती है। इन संस्थाओं का भी मानवीय समाजीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। धार्मिक संस्थाओं की बात करें तो,यह हमेशा सत कर्म करने के लिए प्रेरित करती है। इसके अलावा धार्मिक पुस्तकें व उपदेश भी होते हैं। जिनकी सहायता से व्यक्ति विशेष को अपना पर्सनालिटी अधिक प्रखर बनाने में सहयोग प्रदान करती है। इसी तरह आर्थिक संस्थाएं भी कहीं ना कहीं पर व्यक्ति के मन मस्तिष्क पर व्यक्तिगत संपत्ति के प्रति नफरत की भावना का विकास कराती है। जबकि पूंजीवादी व्यवस्था के तहत व्यक्तिगत संपत्ति को बढ़ावा देती है। वहीं राजनीतिक संस्थाएं भी सामाजिक मानव बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। जैसी उग्र एवं तानाशाही सरकारों में नफरत एवम भय बढ़ जाती है तथा सुरक्षा की फीलिंग भी कम हो जातें है। जिसके कारण व्यक्ति के व्यक्तिव के विकास में अवरोध उत्पन्न हो जाता है। भाषाएक मात्र भाषा ही है, जो मनुष्यों को पशुओं से अलग करती है। भाषा ही एक ऐसा माध्यम है। जिसके द्वारा हम बच्चों से मुखातिब हो सकते हैं। उनको अच्छे और बुरे के बारे में दिशा-निर्देश दे सकते हैं। साथ ही बच्चों की जिज्ञासाओं को सुनते हैं। जिज्ञासाओं को सुनने के पश्चात उनकी जिज्ञासा को शांत भी करते हैं।भाषा ही है जिसके माध्यम से हम वार्तालाप कर सकते हैं। इसी वार्तालाप के जरिए मानव जाति पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी परम्पराओं , संस्कृतियों का आदान प्रदान करते चले आ रहे हैं। यही कारण है कि कई लोग अपनी मातृ भाषा की रक्षा के लिए अपने प्राणो को भी न्योछावर कर देते हैं। मातृभाषा के माध्यम से ही बच्चे को शिक्षित किया जा सकता है। अतः कह सकते हैं कि समाजीकरण की प्रक्रिया में एजुकेशन की एक महत्वपूर्ण व अग्रणीय भूमिका रही है। वर्ग एवं जातिजातिसमाजीकरण की प्रक्रिया में वर्ग एवं जाति का भी अच्छा खासा महत्वपूर्ण स्थान रहा है। जाति की यदि बात करें तो जाति जन्म पर निर्भर करती है। जो अपने सदस्यों पर विभिन्न प्रकार के प्रतिबंध लगाती है। इन प्रतिबंधों को ना मानने वाले सदस्यों को जाती अपने स्तर से पनिश भी करती है। जिसके कारण सदस्य के समाजीकरण पर प्रभाव पड़ता है। कई विद्वान साथियों का मानना है कि, जाति का प्रभाव व्यक्ति पर उम्र भर रहता है। इसी प्रभाव से सदस्य नियंत्रण में रहते हैं।और इन्हीं से व्यक्ति अच्छे कर्म करते हुए सामाजिक मानव के रूप में स्थापित होता है। जाति ही थी जो प्राचीन काल में मानव को पैसा अथवा व्यसाय ,विवाह,रिस्तेदारी अथवा नातेदारी आदि का निर्धारण करती थी। वर्गइसी तरह से वर्ग भी किसी मानव विशेष को समाज में एक निश्चित प्रस्तुति प्रदान करता है। जिससे सदस्यों के मध्य वर्ग चेतना की भावना विकास होता है। तथा वर्ग के माध्यम से किसी व्यक्ति के सम्बन्धों का क्षेत्र सुनिश्चित हो जाता है। अतः कहा जा सकता है कि, वर्ग और जाति भी व्यक्ति को समाजीकृत करने के प्रमुख साधनों में से एक है। निष्कर्षउपयुक्त व्याख्यान से विदित होता है कि, समाजीकरण एक प्रक्रिया है। जो जीवन पर्यंत व्यक्ति के साथ लगातार बनी रहती है। तथा कुछ संस्थाएं यथा परिवार और विवाह व्यक्ति के समाजीकरण में बहुमुखी भूमिका का निर्वहन करते हैं। परिवार में बच्चा जो सीखता है, वह उसके व्यक्तित्व में स्पष्ट दिखाई देता है। आपको यह भी पढ़ने चाहिए
समाजीकरण क्या है ? इस प्रक्रिया के कारण ही मानव समाज में सामाजिक प्राणी के रूप में स्थापित हो पाता है। क्योंकि समाजीकरण एक प्रकार की प्रोसेस होती है। जिसके कारण व्यक्ति सामाजिक सरोकारों एवं सांस्कृतिक प्रवृत्तियों को दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाता है। इससे समाज में स्थायित्व का गुण उत्पन्न होता है। इसी प्रक्रिया को समाजीकरण कहते हैं। समाजीकरण में शिक्षा की क्या भूमिका है? शिक्षा से बालक सामाजिक सम्बन्धों को बनाना सीखता है।यहां पर उसे अच्छे व बुरे का ज्ञान प्राप्त होता है। देश दुनिया के बारे में उसकी जिज्ञासा शिक्षण संस्थाओं में ही शांत होती है। जहां उसको अपने व्यक्तित्व के निखार करने में काफी सहायता प्राप्त हो जाती है। शिक्षण संस्थाओं में ही अध्यापक गणों के रूप में उसको अपने लाइफ के रियर हीरो की प्राप्ति होती है। इन सब से बच्चे का समाजीकरण को एक नई दिशा प्राप्त होती है। समाजीकरण के स्तर कौन कौन से हैं? फ्रायड तथा जानसन जैसे विद्वानों ने निम्नलिखित चरणों का उल्लेख किया है। Post Views: 577 समाजीकरण से आप क्या समझते हैं इसकी विशेषताएं बताइए?सामाजीकरण (Socialization) वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से मनुष्य समाज के विभिन्न व्यवहार, रीति-रिवाज़, गतिविधियाँ इत्यादि सीखता है। जैविक अस्तित्व से सामाजिक अस्तित्व में मनुष्य का रूपांतरण भी सामाजीकरण के माध्यम से ही होता है। सामाजीकरण के माध्यम से ही वह संस्कृति को आत्मसात् करता है।
समाजीकरण से आप क्या समझते हैं समाजीकरण के प्रमुख अभिकरणों की विवेचना कीजिए?बच्चे का समाजीकरण करने में अनेक प्राथमिक संस्थाओं , जैसे परिवार , पड़ोस, मित्र मंडली, विवाह एवं नातेदारी समूह एवं द्वितीयक संस्थाओं, जैसे विद्यालय, धार्मिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं व्यवसायिक संगठनों आदि का योगदान होता है ।
समाजीकरण से आप क्या समझते हैं समाजीकरण को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन करें?समाजीकरण की प्रक्रिया तब शुरू हो जाती है जब अबोद्ध बालक का अपने माता पिता , परिवार के सदस्यों तथा अन्य व्यक्तियों के संपर्क में आना शुरू हो जाता है और फिर यह कार्य जीवन भर चलता है | बालक जैसे जैसे बड़ा होता है वैसे वैसे वह सहयोग सहानुभूति तथा सामाजिक मूल्यों एवं नियमों को अच्छी तरह घ्राण कर लेता है | किशोरावस्था के अंत ...
समाजीकरण से आप क्या समझते हैं PDF?समाजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जो नवजात शिशु को सामाजिक प्राणी बनाती है। इस प्रक्रिया के अभाव में व्यक्ति सामाजिक प्राणी नहीं बन सकता है । इसी से सामाजिक व्यक्तित्व का विकास होता है । सामाजिक- सांस्कृतिक विरासत के तत्वों का परिचय भी इसी से प्राप्त होता है ।
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