पुनर्जागरण के मुख्य कारण क्या है? - punarjaagaran ke mukhy kaaran kya hai?

पुनर्जागरण का अर्थ

  • पुनर्जागरण का अर्थ
  • यूरोप में हुए इस पुनर्जागरण के निम्न प्रमुख कारण थे

पुनर्जागरण का अर्थ- “पुनर्जागरण” शब्द का अर्थ है “फिर से जागना अथवा फिर से जन्म लेना।” इस अर्थ में मध्यकालीन पुनर्जागरण का अर्थ हुआ ” कला एवं ज्ञान का पुनर्जन्म”। परन्तु इतिहासकारों ने इसका अर्थ बौद्धिक आन्दोलन से लगाया है। टामसन जॉनसन के अनुसार “रेनासा शब्द का प्रयोग इतिहासकार 14वीं शताब्दी में हुए इटली की कला एवं जागरण के संदर्भ में करते हैं, जो 15वीं शताब्दी में अल्पस पर्वत को पार कर 16वीं शताब्दी में सम्पूर्ण यूरोप में फैल गया। इतिहासकार स्पेन के अनुसार मध्य युग के अन्त में जितना बौद्धिक विकास हुआ, उसे ही सामूहिक रूप से पुनर्जागरण कहा गया। सीमोन्ड के अनुसार रेनासा एक ऐसा आन्दोलन था, जिसके फलस्वरूप पश्चिम के राष्ट्र मध्य युग से निकलकर वर्तमान युग के विचार तथा जीवन की पद्धतियों को ग्रहण करने लगे।

पुनर्जागरण के मुख्य कारण क्या है? - punarjaagaran ke mukhy kaaran kya hai?
पुनर्जागरण से आप क्या समझते हैं?यूरोप में पुनर्जागरण के कारणों एवं प्रभावों की व्याख्या

हड़प्पा सभ्यता (हड़प्पा कालीन) की मुख्य विशेषताओं की विवेचना।

यूरोप में हुए इस पुनर्जागरण के निम्न प्रमुख कारण थे

(1) कुस्तुन्तुनियाँ की विजय – 15वीं सदी के मध्य में एक ऐसी महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना घटी, जिसे पुनर्जागरण को बड़ी सहायता मिली। तुर्कों की एक नयी शाखा उसमानी तुर्की ने सन् 1453 ई. में कुस्तुन्तुनियाँ पर अधिकार कर लिया। जिससे पूर्वी रोमन साम्राज्य का भाग्य हमेशा-हमेशा के लिए डूब गया। दूसरी ओर इसके प्रभाव से लोग पश्चिमी यूरोप के शहरों में जहाँ-तहाँ इटली, फ्रांस, जर्मनी और इंग्लैण्ड आदि में शरण लेने लगे। उनके आने से यूरोप में एक प्रकार की हलचल मच गयी। विद्वानों की प्रेरणा से लोग अपने प्राचीन साहित्य तथा संस्कृति के विकास की ओर तत्पर हुए।

कुस्तुन्तुनियाँ के पतन का दूसरा महत्वपूर्ण परिणाम हुआ कि यूरोप तथा एशिया के बीच होने वाले व्यापार के पुराने मार्ग, तुर्कों के अधिकार में चले आये। जिससे पूरब को आने में यूरोप वालों को कठिनाई होने लगी। इस कठिनाई के फलस्वरूप ही दक्षिणी तथा पश्चिमी यूरोप के लोग किसी नये व्यापार मार्ग, सम्भवतः जलमार्ग को खनिज निकालने के लिए आगे बढ़े और अकस्मात् नई दुनिया अर्थात् अमेरिका की खोज की तथा भारत आदि का सामूहिक व्यापार मार्ग खोज निकाला। विद्या का पुनर्जन्म और 15वीं सदी की भौगोलिक खोज, इन दोनों घटनाओं के कारण लार्ड एक्टन ने ठीक ही कहा कि आधुनिक इतिहास का आरम्भ औटोमन विजयों के दबाव से हुआ। कुछ इतिहासकार 1453 की इस घटना से ही पुनर्जागरण का प्रारम्भ मानते हैं।

हड़प्पा सभ्यता के उद्भव संबंधी विभिन्न मतों की व्याख्या।

(2) धार्मिक युद्धों का प्रभाव- धर्मयुद्ध (क्रूसेडवार) ने भी पुनर्जागरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इन धर्मयुद्धों में गरीब और अमीर, सभी वर्गों के लोग सम्मिलित होकर सीरिया फिलिस्तीन पहुंचे। वहाँ की उन्नत सभ्यता ने इन लोगों को प्रभावित किया। प्राचीन यूनानी और रोमन विद्वानों की पुस्तकों को ये लोग यूरोप से लाये, जिन्हें पढ़ने से इनके ज्ञान का क्षितिज विस्तृत हुआ। धर्मे प्रचार और घूमने के उद्देश्य से भी अनेक लोग यूरोपीय देशों में गए। वहाँ तरह-तरह के लोगों के सम्पर्क में आने से उनकी कूपमण्डूकता दर हुई और वे बाहरी देशों के ज्ञान-विज्ञान के विषय में सोचने लगे।

(3) व्यापार का अभ्युदय- पुनर्जागरण का सबसे बड़ा कारण व्यापार का अभ्युदय था। तेरहवीं चौदहवीं शताब्दी में यूरोप का कई राष्ट्रों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित हुआ। भारत, चीन और मध्यपूर्व के रेशमी कपड़े, मसाले, चंदन, इत्र, कीमती पत्थर, और शृंगार तथा अन्य विलासप्रिय सीमानों की माँग यूरोप के लूट-पाट के कारण व्यापारी को माल एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में बहुत कठिनाई होती थी। 12वीं तथा 13वीं सदी में इस दिशा में सुधार हुआ। व्यापार के विकास के कारण यूरोपीय देशों में कई व्यापारी मण्डिय और नगर स्थापित हुए। शहर का वातावरण स्वतंत्रता का था, जिसने व्यापारियों की तर्क बुद्धि के विकास में सहायता पहुंचायी, फलस्वरूप उनके विचारों में उदारता आई। इसके अतिरिक्त व्यापारिक शहर हमेशा भिन्न-भिन्न स्थानों के यात्रियों से भरे रहते थे। इस अवसर पर व्यापारियों में आपस में बातचीत होती थी। वे एक-दूसरे के विचारों से परिचित होते थे, जिससे उनके विचार में सहायता होती थी।

आतंकवाद की समस्या क्या है? यह केवल जम्मू कश्मीर में ही क्यों हैं?

(4) नये शहरों का विकास- व्यापार की उन्नति, बाजार की आवश्यकता, सड़कों की सुविधा, नये-नये उद्योगों की स्थापना और मुद्राओं के सार्वजनिक प्रचार आदि कारणों से नदी तट, व्यापार मार्ग, समुद्रतट और जमींदारी कोठियों के निकट अनेक नये शहर बस गए। वेनिस, फ्लोरेंस, जेनेवा, लिसबन, पेरिस, लंदन, हम्बर्ग, विशवे और वरगेन आदि। शहरों का उदय हुआ। इन शहरों की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी थी और यूरोप को समृद्ध बनाने में इनका बड़ा हाथ रहा।

(5) पूरब से सम्पर्क- यूरोप का पूर्वीय दुनिया से सम्पर्क पुनर्जागरण का मुख्य, कारण था। रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात् जब पश्चिम यूरोप अज्ञान की अवस्था में था, उस समय अरब लोग प्राचीन भारतीय, ईरानी और यूनानी सभ्यता के सम्पर्क में आकर एक नवीन सभ्यता पर विकास कर रहे थे। अरस्तू की पुस्तकों का ज्ञान भी उन्हें था। व्यापार के सम्बन्ध में यूरोप वालों का इनसे सम्पर्क हुआ, इन्हीं अरबों के द्वारा उन्हें अपने प्राचीन विज्ञान, साहित्य और कला का फिर से पता चला यूरोप वालों ने उनकी अनेक चीजें देखीं तथा उनके निर्माण की क्रिया सीखीं।

(6) स्कालिष्टिक दर्शन का प्रभाव- स्कालिष्टिक दर्शन के प्रचार से पुनर्जागरण को काफी सहायता मिली। तेरहवीं शताब्दी में इस दर्शन का काफी प्रचार हुआ। एवेलाई और टॉमस एक्किनस इसके प्रवर्तक थे। इसका आधार अरस्तू का तर्कशास्त्र और सेण्ट आगस्टाइन का तत्व ज्ञान था। इसके अनुसार चर्च के धार्मिक सिद्धान्तों को क्रमबद्ध किया गया और यूनानी दर्शन के कुछ सिद्धान्तों के आधार पर एक संगठित वैज्ञानिक विचार पद्धति का निर्माण हुआ। शहरों के वातावरण, अरब संस्कृति से निकट सम्पर्क और चर्च के प्रोत्साहन के कारण इस समय के नवस्थापित विश्वविद्यालय पेरिस, आक्सफोर्ड तथा इटली को बोलोना ने इस आन्दोलन को चलाया था।

हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना का वर्णन कीजिए।सिन्धु घाटी सभ्यता में नगर नियोजन पर प्रकाश डालिये।

(7) छापाखाना का आविष्कार- पुनर्जागरण की सफलता कागज और छापाखाना के आविष्कारों के बिना सम्भव न थी। कागज का आविष्कार सबसे पहले चीन में चीनियों ने किया। कागज की तरह मुद्रण कला का आविष्कार भी चीनियों ने किया। यद्यपि चीन में छठीं शताब्दी में छपाई का काम शुरू हुआ, लेकिन यूरोप में बारहवीं शताब्दी में मुद्रण का कार्य शुरू हुआ। कुछ ही वर्षों में 200 से भी अधिक छापाखाने खुल गए। आधुनिक ढंग से छापाखानों का विकास 1436-50 के बीच यूरोप में हुआ। एक इतिहासकार ने कहा है कि वास्तव में जैसे लोहे के आविष्कार से दस्तकारी के साधन सस्ते हो गए और जनसाधारण की पहुँच में आ गए, उसी प्रकार मुद्रण कला के आविष्कार से विचार के साधन सरल और सुलभ हो गए और वे जनसाधारण के हाथ में आने लगे।

(8) मंगोल साम्राज्य का प्रभाव- पूरब के साथ यूरोप के सम्पर्क में फैले विशाल मंगोल साम्राज्य का बहुत बड़ा प्रभाव था। चंगेजखाँ, हलाकू और कुबलई खाँ ने एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया था। कुबलई खां का दरबार भिन्न-भिन्न देश के विद्वानों, धर्म प्रचारकों से भरा रहता था। मंगोल राज्य सभा में पोप के दूतों, भारत के बौद्ध भिक्षुओं, पेरिस, इटली और चीन के दस्तकारों, कस्तुन्तुनिया और अरमीनिया के व्यापारियों का सम्पर्क फारस और भारत के गणित और ज्योतिष शास्त्रियों के साथ था। इस सम्पर्क से विचारों का आदान-प्रदान हुआ, जिससे ज्ञान की वृद्धि हुई। प्रसिद्ध मंगोल सम्राट कुबलई खाँ के दरबार में पहुंचने वालों में वेनिस निवासी मार्कोपोलो का नाम प्रसिद्ध है। उसके पश्चिम वालों को पूरब के रहस्यों से परिचित कराया, उसके यात्रा विवरणों से पश्चिम वालों को 5 नये देशों की खोज करने की प्रेरणा मिली। कोलम्बस और वास्कोडिगामा आदि ने इसी प्रेरणा से अनुप्राणित होकर अमेरिका और भारत की खोज की।

पुनर्जागरण के मुख्य कारण क्या थे?

व्यापार तथा नगरों का विकास :- पुनर्जागरण का सबसे महत्त्वपूर्ण कारण वाणिज्य-व्यापार का विकास था. नए-नए देशों के साथ लोगों का व्यापारिक सम्बन्ध कायम हुआ और उन्हें वहाँ की सभ्यता-संस्कृति को जानने का अवसर मिला. व्यापार के विकास ने एक नए व्यापारी वर्ग को जन्म दिया. व्यापारी वर्ग का कटु आलोचक और कट्टर विरोधी था.

पुनर्जागरण से आप क्या समझते हैं इसकी उत्पत्ति के प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिए?

पीढ़ियों से निर्विरोध चले आ रहे विचारों को सन्देह की दृष्टि से देखा जाने लगा। चर्च तथा धर्मशास्त्रों की बातों पर शंका की जाने लगी। परिणामस्वरूप कला साहित्य, विज्ञान, दर्शन एवं जीवन के प्राय: सभी दृष्टिकोणों में महान् परिवर्तन आ गया। इस सांस्कृतिक एवं सामाजिक परिवर्तन को ही इतिहास में 'पुनर्जागरण' की संज्ञा दी गई है।

भारतीय पुनर्जागरण के क्या कारण है?

ईसाई मिशनरियों की कार्यशैली-भारत में ईसाई धर्म के प्रसार के लिये आयी मिशनरियों की सेवा भाव, जाति-पाँति के बहिष्कार, सामाजिक कुरीतियों के विरोध के प्रति जन जागरण के भारतीय धार्मिक एवं समाज सुधारकों को भी इस दिशा में कार्य करने की प्रेरणा दी और पुनर्जागरण आन्दोलन प्रारंभ हुआ।