राजस्थान का सबसे बड़ा किसान आंदोलन कौन सा था? - raajasthaan ka sabase bada kisaan aandolan kaun sa tha?

आज हम राजस्थान में किसान आंदोलन (Rajasthan me Kisan Aandolan) की बात करेंगे ।

राजस्थान का सबसे बड़ा किसान आंदोलन कौन सा था? - raajasthaan ka sabase bada kisaan aandolan kaun sa tha?
Rajasthan me Kisan Aandolan

राजस्थान में कृषक आंदोलन

बिजौलिया किसान आंदोलन ( Bijoliya kisan Aandolan)

  • राजस्थान में संगठित किसान आंदोलन सर्वप्रथम बिजोलिया में 1897 में प्रारंभ हुआ । उस समय बिजोलिया के ठिकानेदार राव कृष्णसिंह थे ।
  • बिजोलिया की स्थापना अशोक परमार द्वारा की गई थी जिसका मूल स्थान जगनेर था । राणा सांगा की ओर से खानवा के युद्ध में अशोक परमार ने बड़ी बहादुरी दिखाई जिस कारण सांगा ने उसे ऊपरमाल की जागीर प्रदान की थी । बिजोलिया उक्त जागीर का सदर मुकाम था । इसका शुद्ध नाम ‘विजयावल्ली’ था , जो बाद में बिजोलिया हो गया । बिजोलिया ठिकाना उदयपुर राज्य की ‘अ’ श्रेणी की जागीरों में से एक था । वर्तमान में यह राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में स्थित है ।
  • बिजोलिया में मुख्यतः धाकड़ जाति के किसान थे ।
  • बिजौलिया ठिकाने में भू राजस्व निर्धारण एवं संग्रह की पद्धति इस किसान आंदोलन का मुख्य मुद्दा थी । इस कार्य हेतु लाटा एवं कूँता पद्धति मुख्यत: प्रचलित थी ।

बिजोलिया के किसान आंदोलन को मुख्यतः तीन चरणों में विभाजित किया जाता है –

🔸प्रथम चरण (1897-1915 ई.) –

  • राव कृष्णसिंह के समय बिजोलिया जागीर से भारी लगान के अलावा 84 प्रकार की लागतें तथा बाग-बगारें ली जाती थी ।
  • सन् 1897 में ऊपरमाल के किसानों ने गंगाराम धाकड़ की पिता की मृत्यु भोज के अवसर पर गिरधारीपुरा नामक ग्राम में सामूहिक रूप से विचार-विमर्श कर किसानों की ओर से नानजी और ठाकुरी पटेल को उदयपुर भेजकर ठिकाने के जुल्मों के विरुद्ध महाराणा से शिकायत करने का निर्णय किया , लेकिन शिकायत करने पर भी राज्य सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की । राव कृष्णसिंह ने नानजी व ठाकरी पटेल को ऊपरमाल से निर्वासित कर दिया ।
  • 1903 में बिजोलिया के राव कृष्णसिंह ने ऊपरमाल की जनता पर चँवरी की लागत लगाई । इस लागत के अनुसार पट्टे से हर व्यक्ति को अपनी लड़की की शादी के अवसर पर ₹5 चँवरी कर के रूप में देना पड़ता था । इसके विरोध में किसानों द्वारा आंदोलन किया गया । अत: चँवरी कर को समाप्त करना पड़ा ।
  • 1906 राव कृष्णसिंह की नि:संतान मृत्यु होने के पश्चात उसका रिश्तेदार पृथ्वीसिंह जागीरदार बना । उसने सभी कर की छूट को वापस लिया तथा एक नया कर तलवार बँधाई किसानों पर थोप दिया ।
  • तलवार बँधाई की लागत जनता पर डाल दिए जाने के कारण किसानों ने साधु सीतारामदास , फतहकरण चारण , ब्रह्मदेव दाधीच , नाथूलाल कामदार व रामजीलाल सुनार के नेतृत्व में इसका विरोध करते हुई भूमि को पड़त रखा और भूमि कर नहीं दिया ।
  • 1915 ई. तक यह आंदोलन किसानों का स्वस्फूर्त प्रयास था इसका नेतृत्व साधु सीताराम दास ने किया ।

🔸द्वितीय चरण ( 1916-1922 ई.)

  • विजय सिंह पथिक (भूपसिंह) गुर्जर जाति के थे और उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के गुढावली गाँव के रहने वाले थे । जनवरी 1915 में विजय सिंह पथिक रासबिहारी बोस के आदेश पर राजस्थान आ गए थे , क्योंकि ब्रिटिश खुफिया पुलिस को उनकी तलाश थी ।
  • पथिकजी चित्तौड़ के समीप ओछड़ी के ठाकुर गोपालसिंह के पास आ गए । यहीं पथिक का बिजोलिया के किसान नेताओं से संपर्क हुआ । कुछ समय पश्चात पथिक ने ओछड़ी भी छोड़ दिया और वे अपने मित्र ईश्वरीदान के निवास पर बिजोलिया में रहने लगे ।
  • विजय सिंह पथिक बिजोलिया आकर विद्या प्रचारिणी सभा की स्थापना की । इस कार्य में उन्हें डूंगरसिंह भाटी का काफी सहयोग प्राप्त हुआ ।
  • 1916 में श्री विजयसिंह पथिक साधु सीतारामदास के आगह पर इस आंदोलन से जुड़ गए । पथिक बिजोलिया किसान आंदोलन को एक निश्चित व संगठित स्वरूप प्रदान किया ।
  • बिजोलिया किसान आंदोलन में माणिक्य लाल वर्मा , डूंगरसिंह भाटी , साधु सीताराम दास , गणेश शंकर विद्यार्थी , हरीभाऊ उपाध्याय व रामनारायण चौधरी ने काफी योगदान दिया है ।
  • 1917 में विजय सिंह पथिक ने हरियाली अमावस्या के दिन बेरीसाल गाँव में एकत्र हो कर ‘किसान पंचायत बोर्ड’ की स्थापना की तथा श्री मन्ना पटेल को इसका सरपंच (अध्यक्ष) बनाया गया ।
  • माणिक्य लाल वर्मा द्वारा रचित ‘पंछीड़ा’ गीत तथा प्रज्ञाचक्षु भंवरलाल स्वर्णकार की लिखित कविता से गांव-गांव में अलख जगाने लगे ।
  • कानपुर से प्रकाशित ‘प्रताप’ के संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी, बिजोलिया आन्दोलन की रोमांचक घटनाएँ प्रकाशित कर रहे थे ।
  • बिजोलिया के किसान , रूस की अक्टूबर 1917 की बोल्शेविक क्रांति से प्रेरित थे ।
  • किसान पंचायत ने अगस्त 1918 में कर बंदी के साथ असहयोग आंदोलन आरंभ करने की घोषणा की ।
  • बिजोलिया के किसानों की मांगों के औचित्य की जाँच करने के लिए अप्रैल 1919 में न्यायमूर्ति बिंदुलाल भट्टाचार्य जाँच आयोग गठित हुआ । आयोग के सदस्य मांडलगढ़ हाकीम बिंदुलाल भट्टाचार्य , दीवान अफजल अली हाकीम तथा अमरसिंह राणावत थे । आयोग ने किसानों की शिकायतों को वाजिब मानकर विभिन्न कर एवं लाग-बागों को समाप्त करने की सिफारिश की ।
  • 1919 में विजयसिंह पथिक वर्धा चले गए । वहाँ उन्होंने ‘राजस्थान सेवा संघ’ की स्थापना की । वहीं से पथिकजी ने ‘राजस्थान केसरी’ नामक पत्र निकाला जिसकी आर्थिक जिम्मेदारी सेठ जमनालाल बजाज ने उठाई ।
  • 11 जून 1922 को राजपूताना एजीजी मि.राबर्ट हॉलैंड व उनके सचिव कर्नल ओगालवी के प्रयासों से किसानों एवं ठिकानों के मध्य समझौता हुआ और अधिकांश लाग-बागें व कर हटा लिए गए । बिजोलिया किसान आंदोलन का यह दूसरा चरण किसानों को भव्य सफलता दिलाकर समाप्त हुआ ।

🔸तृतीय चरण ( 1927-1941 ई.)

  • सन् 1926 में ठिकाने में बंदोबस्त हुआ । इसमें लगान की दरें ऊँची नियत की गई । जनवरी 1927 में मेवाड़ के बंदोबस्त अधिकारी ट्रेन्च ने किसान पंचायत व ठिकाने में समझौता कराया ।
  • 1927 में विजयसिंह पथिक और रामनारायण चौधरी ने बिजोलिया किसान पंचायत का मार्गदर्शन करने से अपने को अलग कर लिया । पथिकजी के इस्तीफे के बाद बिजोलिया किसान आंदोलन का नेतृत्व 1929 ईस्वी में जमुनालाल बजाज व हरीभाऊ उपाध्याय के हाथों में आ गया ।
  • हरीभाऊ उपाध्याय ने ‘बिजौलिया का नया बापी-दारां सू’शीर्षक से अपील जारी की । जून 1932 में माणिक्य लाल वर्मा को गिरफ्तार कर कुंभलगढ़ के किले में बंदी बनाया गया ।
  • 1941 में मेवाड़ के प्रधानमंत्री सर टी विजय राघवाचार्य तथा ब्रिटिश रेजिडेंट विल्किंसन की मध्यस्थता से इस आंदोलन का पटाक्षेप हुआ । इस आंदोलन को ब्रिटिश भारत में अहिंसक कृषक संघर्ष का जनक कहा जा सकता है ।
  • यह आंदोलन भारत वर्ष का प्रथम व्यापक, संगठित, शक्तिशाली व सफल किसान आंदोलन था ।
  • श्रीमती अंजना देवी चौधरी (धर्मपत्नी श्री राम नारायण चौधरी ) ने बिजोलिया किसान सत्याग्रह में प्रमुख रूप से भाग लिया ।
  • श्री जयसिंह धाकड़ राजस्थान में पहले किसान के बेटे थे जिन्होंने आजादी के आंदोलन में भाग लेना शुरू किया । बिजोलिया किसान सत्याग्रह से भी यह शुरू से आखरी तक पथिक जी के निष्ठावान कार्यकर्ता बने रहे ।

बेगूँ किसान आंदोलन (Begu kisan aandolan)

  • चित्तौड़गढ़ रियासत में बेगूँ का किसान आंदोलन 1921 में शुरू हुआ । जब बेगूँ के किसान मेनाल नामक स्थान पर एकत्रित हुए और यह निश्चित किया कि बेगूँ में भी लाग-बाग, बेगार और ऊँचे लगान को ठिकाने की मनमर्जी के अनुसार न देकर जायज व न्यायपूर्ण बनवाने के लिए संघर्ष किया जाएगा । पथिकजी ने आंदोलन का नेतृत्व श्री रामनारायण चौधरी को सौंपा ।
  • यह आंदोलन 1921 से 1924 के मध्य हुआ ।
  • राजस्थान सेवा संघ और ठाकुर अनूपसिंह के मध्य 1923 में समझौता हुआ , जिसे ‘बोल्शेविक’ फैसला कहा जाता है लेकिन उसे बाद में रद्द कर दिया गया ।
  • भ्रष्टाचार और दमन के लिए मशहूर लाला अमृतलाल को बेगूँ का मुंसरिम नियुक्त किया गया ।
  • किसानों की शिकायत हेतु ट्रेन्च आयोग का गठन किया गया । 13 जुलाई 1923 को किसानों पर ट्रेन्च ने गोलियां चलाई , जिसमें रूपाजी व कृपाजी नामक 2 किसान शहीद हुए ।
  • 10 सितंबर 1923 को पथिक जी को गिरफ्तार कर 5 वर्ष की सजा सुनाई ।
  • मेवाड़ राज्य में समाचार पत्र – प्रताप (कानपुर) , राजस्थान केसरी (वर्धा) और नवीन राजस्थान (अजमेर) के प्रवेश व प्रचार पर पाबंदी लगा दी गई ।
  • आंदोलन के कारण बने दवाब के कारण 1925 में बन्दोबस्त व्यवस्था लागू हुई , लगान की दरें निर्धारित की गई , अधिकांश लागें वापस ले ली गई और बेगार प्रथा को समाप्त कर दिया गया ।
  • बेगूँ वर्तमान में चित्तौड़ तथा मेनाल भीलवाड़ा में है ।

बूँदी राज्य में किसान आंदोलन (बरड़ का किसान आंदोलन )

  • सन् 1922 से बूँदी के बरड़ क्षेत्र में किसान आंदोलन प्रारंभ हुआ । बिजोलिया के किसानों की सफलता ने बूँदी के बरड़ क्षेत्र के किसानों को अपने अधिकारों की प्राप्ति हेतु संघर्ष के लिए प्रोत्साहित किया । कोटा के नेता नयनूराम शर्मा हाड़ौती सेवा संघ के कार्यकर्ता थे । बरड़ के किसान भी बिजोलिया की तरह है बेगार और लाग-बाग आदि के भार से पीड़ित थे । अत: इस क्षेत्र में 1922 -1925 के मध्य किसान आंदोलन हुआ जिसे बरड़ के किसान आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है ।
  • बूँदी किसान आंदोलन मुख्यतः ‘राज्य’ प्रशासन के विरुद्ध था , जबकि मेवाड़ में किसानों ने अधिकांशत: ‘जागीरी’ व्यवस्था का विरोध किया था ।
  • बूँदी किसान आंदोलन में स्त्रियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी । बूँदी की सरकार के विरुद्ध अप्रैल 1922 में पहली बार आंदोलन शुरू किया गया । बूँदी में किसान आंदोलन को एकमात्र राजस्थान सेवा संघ, अजमेर द्वारा ही दिशा निर्देश मिल रहा था ।
  • बरड़ के किसानों ने अप्रैल 1922 में आंदोलन आरंभ किया । 29 मई 1922 में लम्बाखोह गाँव में एक सभा आयोजित हुई जिसमें लगभग 1000 किसान सम्मिलित हुए । विजय सिंह पथिक ने इस आंदोलन का समर्थन किया ।
  • 2 अप्रैल 1923 को डाबी गाँव में आयोजित किसान सभा पर बूंदी के पुलिस अधीक्षक इकराम हुसैन ने गोली चलाने के आदेश दिए । इस गोलीकांड में नानक भील व देवीलाल गुर्जर मारे गए ।
  • राजस्थान के स्वतंत्रता सेनानी माणिक्य लाल वर्मा ने नानक भील की याद में ‘अर्जी’शीर्षक से एक गीत लिखा ।
  • सन् 1927 के बाद राजस्थान सेवा संघ अंतर्विरोधों के कारण बंद हो गया । राजस्थान सेवा संघ के साथ ही बूँदी के बरड़ क्षेत्र का किसान आंदोलन समाप्त हो गया ।

बूँदी में गुर्जरों का आंदोलन ( 1936-45 ई.)

यह आंदोलन 1936 में बरड़ जिले और बरूंधन तहसील में शुरू हुआ । बूँदी में गुर्जरों के आंदोलन का मुख्य उद्देश्य टैक्सों के साथ-साथ चराई कर हटवाना था । 1939 में गुर्जरों का आंदोलन लाखेरी में आरंभ हुआ । मार्च 1945 के अंत तक यह आंदोलन शांत हो गया ।

अलवर राज्य में किसान आंदोलन (1925-47 ई.)

अलवर राज्य के किसान आंदोलनों को प्रमुखत: तीन भागों में बांटा जा सकता है –
(१) नीमूचाणा का किसान आंदोलन (1925)
(२) मेव आंदोलन (1932-33)
(३) प्रजामंडल के नेतृत्व में किसान आंदोलन ( 1941-47)

(1) नीमूचाणा का किसान आंदोलन (14 मई 1925 )
  • नीमूचाणा हत्याकांड राजस्थान के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में ‘भारत का दूसरा जलियांवाला बाग हत्याकांड’ कहा जा सकता है ।
  • अलवर राज्य में पहली बार 1876 ईसवी में मेजर पी डब्ल्यू पाउलेट द्वारा नियमित भूमि बंदोबस्त लागू किया । दूसरा भूमि बंदोबस्त 1900 में एम एफ डायर ने लागू किया । पंडित एन एल टिक्को ने अलवर राज्य में तीसरा संशोधित भूमि बंदोबस्त 1923-24 में लागू किया । इसमें भू राजस्व बढ़ा दिया गया था ।
  • अक्टूबर 1924 में माधोसिंह और गोविंद सिंह ने पुकार नामक पुस्तिका में कृषकों की समस्याओं का ब्यौरा प्रकाशित किया ।
  • इस आंदोलन का मुख्य केंद्र नीमूचाणा गाँव था । मई 1925 के आरंभ में भारी संख्या में हथियारों से लैस राजपूत ठाकुर व किसान नीमूचाणा में एकत्रित हुए । उन्होंने फौज का सामना करने का निर्णय लिया । स्थिति की गंभीरता को देखते हुए अलवर के महाराजा जयसिंह ने इस मामले की जांच हेतु जनरल रामभद्र ओझा की अध्यक्षता में एक आयोग नियुक्त किया , लेकिन यह आयोग सार्थक सिद्ध नहीं हुआ ।
  • नीमूचाणा (तहसील बानसूर ) में 14 मई 1925 को कमांडर छाजूसिंह के आदेश पर फौज ने गोलीबारी की जिसमें लगभग 95 आदमी मारे गए । इसका उल्लेख तरुण राजस्थान व प्रताप समाचार पत्र में मिलता है ।
  • महात्मा गांधी ने इसे दोहरी डायरशाही व जलियांवाला बाग सदृश नृशंस की संज्ञा दी ।
  • उर्दू अखबार रियासत ने भी इसकी तुलना जलियांवाला बाग हत्याकांड से की ।
  • राष्ट्रीय नेता बी एफ भरूचा ने तब महाराजा अलवर को यह चेतावनी दी थी कि ‘वह रूसी क्रांति को प्रत्येक प्रात:काल याद कर लिया करें ‘ ।
  • रामनारायण चौधरी ने इसे ‘नीमूचाणा हत्याकांड’ की संज्ञा दी थी ।
(2) मेव आंदोलन (1932-33)
  • प्रारम्भ में मेव हिंदू थे , जिन्हें धर्म परिवर्तन करके मुसलमान बना दिया गया था । वे मेवात में रहते थे । अलवर में मेव जाति का पहला आंदोलन 1932 ईस्वी में आरंभ हुआ ।
  • मेव आंदोलन के मुख्य नेता – अलवर के डॉक्टर मोहम्मद अली , गुड़गांव के यासीन खान व अंबाला शहर के गुलाम-भीक-नारंग थे ।
  • अंजुमन-ए-खादिम-उल-इस्लाम नामक एक मुसलमान संगठन सामाजिक उत्थान हेतु अलवर के मेवों के बीच कार्य कर रहा था ।
  • मेव विद्रोह ने पूऱ्णत: साम्प्रदायिक रंग प्राप्त कर लिया । मेवों ने हिंदुओं के घरों को जलाना व संपत्ति को लूटना आरंभ कर दिया था । ब्रिटिश सरकार ने 22 मई 1933 को अलवर महाराजा जयसिंह को अनिश्चितकाल के लिए अलवर राज्य से बाहर निष्कासित कर दिया ।
  • 10 अक्टूबर 1934 को अलवर के प्रधानमंत्री मिस्टर वाइली ने एक अधिसूचना जारी कर सभी कर समाप्त कर दिए गए । अत: अलवर राज्य में फैला मेव आंदोलन समाप्त हो गया ।
(3) प्रजामंडल के नेतृत्व में किसान आंदोलन ( 1941-47)
  • अलवर राज्य प्रजामंडल की स्थापना राज्य में जनजागृति के अग्रदूत हरिनारायण शर्मा और कुंज बिहारी लाल मोदी द्वारा 1938 में की गई । इसका मुख्य उद्देश्य राज्य में उत्तरदायी शासन की स्थापना करना था । उस समय अलवर के शासक तेजसिंह थे ।
  • अलवर राज्य प्रजामंडल ने सबसे पहले जागीरी समस्या को अपने हाथ में लिया ।
  • 1 व 2 अप्रैल 1941 को अलवर राज्य प्रजामंडल के अध्यक्ष शोभाराम ने राजगढ़ में ‘जागीर माफी प्रजा कांफ्रेस’ का आयोजन किया । इस कांफ्रेंस का उद्घाटन श्री सत्यदेव विद्यालंकार ने किया ।
  • 26 फरवरी 1944 को अलवर में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया ।
  • 2 फरवरी 1946 को प्रजामंडल राजगढ़ तहसील के खेड़ा मंगलसिंह नामक गांव में एक सभा आयोजित की । अनेक नेता बंदी बना लिए गए । अलवर नगर में 1 सप्ताह तक हड़ताल रही ।
  • 8 फरवरी 1946 को प्रजामंडल ने संपूर्ण राज्य में ‘दमन विरोधी दिवस’ मनाया ।
  • जयनारायण व्यास को इस मामले की जांच हेतु नियुक्त किया गया था । अत: में हीरालाल शास्त्री की अध्यक्षता में प्रजामंडल और महाराजा के बीच समझौता हुआ जिसके फलस्वरूप 10 फरवरी 1946 को आंदोलनकारी रिहा कर दिए गए ।
  • पूर्ण उत्तरदायी शासन की स्थापना के उद्देश्य से प्रजामंडल ने 29 अगस्त 1946 को आंदोलन आरंभ करने का निश्चय किया । यह सत्याग्रह 11 दिनों तक चला ।
  • 3 अक्टूबर 1946 में राज्य सरकार ने संविधान सुधार समिति के गठन की घोषणा की । इसमें कुल 12 सदस्यों में से 2 सदस्य प्रजामंडल के लेने निश्चित किए गए ।
  • 17 दिसंबर 1947 को महाराजा ने घोषणा की कि 2 वर्षों में उत्तरदायी सरकार की स्थापना कर दी जाएगी ।
  • 1947 में अलवर राज्य संप्रदायिक दंगों का शिकार रहा ।
  • मार्च 1948 में अलवर का मत्स्य संघ में विलय हो गया ।

भरतपुर में किसान आंदोलन

  • भरतपुर में किसानों के आंदोलन का नेतृत्व लम्बरदार भोज ने किया ।
  • 1938 ईस्वी में भरतपुर के जाटों ने अपनी जाति में सामाजिक व शिक्षा संबंधी सुधार लाने के उद्देश्य से ‘श्री कृष्ण सिंह बहादुर जाट मेमोरियल ‘ की स्थापना की । भरतपुर में एक जाट सभा भी स्थापित कर 21 अक्टूबर 1938 को उसका पंजीकरण कराया गया ।
  • ठाकुर देशराज 1940 में भरतपुर जाट सभा में शामिल हुए । उन्होंने ‘जाट जगत’ नामक एक साप्ताहिक पत्र भी आगरा से शुरू किया ।
  • 1941 ईस्वी के मध्य में जाट सभा को बदलकर ‘किसान जमींदार सभा’कर दिया गया । ठाकुर देशराज इसके अध्यक्ष बने । सभा 2 समूह में विभाजित हो गई – (१) जाट सभा उर्फ किसान जमीदार सभा (२) लाल झंडा किसान सभा
  • भरतपुर राज्य में व्यापक रूप से फैली बेगार प्रथा के खिलाफ जनवरी 1947 में लाल झंडा किसान सभा , मुस्लिम कॉन्फ्रेंस और भरतपुर प्रजा परिषद ने एक संयुक्त आंदोलन शुरू किया ।
  • 28 जनवरी 1947 को राजपूताना के सभी राज्यों में भरतपुर दिवस मनाया गया ।
  • 5 फरवरी 1947 को भरतपुर में प्रजा परिषद के नेतृत्व में बेगार विरोधी दिवस मनाया गया । उसी दिन भुसावर के रमेश स्वामी ने अपने दल के साथ वैर जाकर विरोधी दिवस मनाने का कार्यक्रम बनाया , किन्तु उनको बस से कुचलकर हत्या कर दी गई ।
  • 18 जनवरी 1948 को बेगार विरोधी आंदोलन समाप्त हुआ ।
  • 18 मार्च 1948 को भरतपुर राज्य का मत्स्य संघ में विलय हो गया ।

मारवाड़ में किसान आंदोलन ( Marwar me kisan aandolan)

  • मारवाड़ राजस्थान का सबसे बड़ा राज्य था जिसके अंतर्गत संपूर्ण राजस्थान का 26% भूभाग था । जोधपुर राज्य का 87% भाग जागीरों के अंतर्गत था ।
  • किसान क्रमश: अंग्रेज , महाराजा व जागीरदारों के तीहरे शोषण का शिकार थे । 1915 ईसवी में मारवाड़ में जनचेतना के इतिहास का आरंभ हुआ । 1918 में चांदमल सुराणा ने मरुधर मित्र हितकारिणी सभा नामक प्रथम राजनीतिक संगठन की स्थापना हुई ।
  • 1923 ईस्वी में मारवाड़ हितकारिणी सभा की स्थापना हुई , इसने जयनारायण व्यास के संपादन में दो पुस्तिकाएं ( पोपा बाई की पोल , मारवाड़ की अवस्था ) प्रकाशित की ।
  • 1922 ईस्वी में मारवाड़ राज्य में किसान आंदोलन का सूत्रपात हुआ ।
  • नवंबर 1924 में राजभक्त देश हितकारिणी सभा नामक संगठन स्थापित हुआ ।
  • जोधपुर सरकार ने ‘तरुण राजस्थान’ अखबार के मारवाड़ रियासत में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया ।
  • 24-25 नवंबर 1931 को ‘मारवाड़ राज्य लोक परिषद’ का प्रथम अधिवेशन कस्तूरबा गांधी की अध्यक्षता में पुष्कर में आयोजित हुआ । इसके सभापति चांदकरण शारदा थे ।
  • 1 मई 1934 को मारवाड़ के खालसा इलाके में उठा पट्टा-समर्पण और लगानबंद आन्दोलन खत्म हुआ ।
  • 1935 ईस्वी में राजपूत सभा अस्तित्व में आई ।
  • 16 मई 1938 को जोधपुर में मारवाड़ लोक परिषद की स्थापना हुई । मारवाड़ लोक परिषद् जोधपुर राज्य में किसान आंदोलन की जननी व संचालन करने वाली प्रमुख संस्था थी ।
  • मारवाड़ के जागरूक किसान नेताओं ने 22 अगस्त 1938 ईस्वी को परबतसर पशु मेले में ‘मारवाड़ जाट कृषक सुधारक संघ की स्थापना हुई ,जिसका उद्देश्य जाटों में शिक्षा प्रसार करना व सामाजिक कुरीतियां मिटाना था । रतकुडिया के बाबू गुल्लाराम चौधरी इसके अध्यक्ष तथा नागौर के चौधरी मूलचंद इसके मंत्री नियुक्त हुए ।
  • मारवाड़ लोक परिषद के अध्यक्ष जयनारायण व्यास ने ‘गैर कानूनी लागें’ नामक एक पुस्तक लिखी व सरकार से मांग की कि गैर कानूनी लागें वसूल करने वाले जागीरदारों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए ।
  • 27 जून 1941 को जोधपुर में ‘मारवाड़ किसान सभा’का गठन किया गया । इसका प्रमुख संगठन कर्ता व संरक्षक श्री बलदेव राम मिर्धा था ।
  • 26 जून 1941 को सरकार ने गैरकानूनी लोगों की जांच करने के लिए ‘सेंट्रल लाग-बाग कमेटी’की नियुक्ति की घोषणा की ।
  • 28 मार्च 1942 को जागीरदारों के अत्याचारों की चरम परिणति चंडावल व रोडू तथा मीठड़ी की दुखद घटना के रूप में हुई ।
  • 24 अप्रैल 1942 को ‘जागीरी अत्याचार दिवस’ के रूप में मनाया गया ।
  • मई 1942 को जयनारायण व्यास ने सत्याग्रह आंदोलन छोड़ दिया ।
  • 3 मार्च 1948 को जोधपुर राज्य में प्रथम लोकप्रिय मिलाजुला मंत्रिमंडल बना ।
  • 4 सितंबर 1948 जयनारायण व्यास पुन: प्रधानमंत्री बने और नाथूराम मिर्धा राजस्व मंत्री नियुक्त हुए ।
  • 6 अप्रैल 1949 को ‘मारवाड़ लैंड रेवेन्यू एक्ट 1949’ तथा ‘मारवाड़ टिनेन्सी एक्ट 1949’ पास करके जिन काश्तकारों के पास जो भूमि खातेदारी में दर्ज थी , उन्हें मालिकाना हक देखकर भूमि का मालिक बना दिया ।

डाबड़ा हत्याकांड :- शासन की दमनात्मक नीतियों के विरोध में मारवाड़ लोक परिषद और किसान सभा का संयुक्त अधिवेशन 13 मार्च 1947 को डीडवाना के पास डाबड़ा गाँव में आयोजित हुआ , जिस पर ठिकाने के अनुचरों और जागीरदारों ने हमला कर दिया और 12 व्यक्ति मारे गए । मथुरादास माथुर डाबरा अधिवेशन के मुख्य आयोजक थे । चुन्नीलाल शर्मा, रूघाराम चौधरी, रामाराम चौधरी , पन्नाराम चौधरी डाबड़ा किसान आंदोलन के दौरान शहीद हुए । वंदे मातरम (मुम्बई) , लोकवाणी (जयपुर) , प्रजा सेवक (जोधपुर) , हिंदुस्तान टाइम्स (दिल्ली) तथा ‘जन्मभूमि’ अखबारों ने इस हत्याकांड की घोर निंदा की ।

बीकानेर किसान आंदोलन –

  • 16 अप्रैल 1929 को किसानों ने जमींदारा एसोसिएशन स्थापित कर लिया । इसका पहला अध्यक्ष सरदार दरबार सिंह पुत्र शेरसिंह को बनाया गया । इसका मुख्यालय श्रीगंगानगर में रखा गया ।
  • सन् 1929-30 में प्रारम्भ गंगनहर क्षेत्र का किसान आंदोलन बीकानेर राज्य का प्रथम किसान आंदोलन था । यह आंदोलन जमींदारा एसोसिएशन के बैनर तले चलाया गया ।
  • 3 मार्च 1930 को महाराजा गंगासिंह स्वयं गंगनहर गए और गंगनहर क्षेत्र के किसानों की मांगों के संबंध में अनेक राहत देने की घोषणा की ।
  • किसान आंदोलन की शुरुआत सर्वप्रथम 1937 में जीवन चौधरी के नेतृत्व में हुई ।
  • गंगनहर क्षेत्र के आंदोलन में संवैधानिक तरीकों , विरोध और याचिकाओं की तकनीक का प्रयोग किया गया ।

दूधवाखारा किसान आंदोलन (चुरू) –

  • इस आंदोलन को चौधरी हनुमान सिंह व बीकानेर राज्य प्रजा परिषद के अध्यक्ष पंडित मघाराम वैद्य के नेतृत्व में किया गया ।
  • खेतूबाई ने इस आंदोलन में महिलाओं का नेतृत्व किया ।

राजगढ़ आंदोलन :-

  • 1945 के समाप्त होते होते चुरू की राजगढ़ निजामत के किसानों में जागृति की लहर दौड़ पड़ी और वे सत्याग्रह आंदोलन के लिए तैयार हो गए । राज्य सरकार ने दूधवाखारा के किसान नेता चौधरी हनुमान सिंह को गिरफ्तार कर लिया ।
  • 7 अप्रैल 1946 को गाँव ललाणा (नोहर) में किसानों की एक सभा हुई जिसमें तिरंगे झंडे को फहराकर राज्य की किसान विरोधी नीतियों की आलोचना की गई । 9 अप्रैल को चांद कोठी गांव में तथा 17 अप्रैल को हमीरवास गांव में किसानों द्वारा जुलूस निकाला गया ।
  • चौधरी कुंभाराम के नेतृत्व में 2 जून 1946 को ललाणा में सभा हुई जिसमें करीब 5000 किसान उपस्थित थे ।
  • चौधरी हनुमानसिंह की गिरफ्तारी के विरोध में 1 जुलाई 1946 को बीकानेर के रायसिंहनगर में किसानों ने जुलूस निकाला । पुलिस द्वारा गोली चलाई जाने पर बीरबल सिंह नामक व्यक्ति की मृत्यु हो गई ।

कांगड़ किसान आंदोलन –

  • रतनगढ़ तहसील के कांगड़ गाँव के जागीरदार गोपसिंह बीदावत ने अक्टूबर 1946 में अकाल के बावजूद किसानों से कर वसूली की ।
  • सप्ताहिक हिंदी समाचार पत्र ‘किसान’ को राज्य में प्रतिबंध कर दिया गया ।
  • 1948 में बीकानेर में उत्तरदायी शासन की स्थापना हुई ।
  • 30 मार्च 1949 को बीकानेर राज्य की राजस्थान में विलय के साथ ही बीकानेर में राजतंत्र व सामंतवाद को अंतिम रूप से विदा कर दिया गया ।

जयपुर किसान आंदोलन (शेखावाटी आंदोलन )

जयपुर राज्य में किसान आंदोलन मुख्यत: आर्थिक शोषण के विरुद्ध था । रामनारायण चौधरी ने शेखावटी में किसान जागरण का कार्य आरंभ किया । चिड़ावा सेवा समिति ने 1921 में शेखावटी में जन संघर्ष आरंभ किया था ।

शेखावाटी के किसान आंदोलन के तीन चरण थे –

🔸प्रथम चरण (1922-30 ई.)

  • शेखावाटी में सर्वप्रथम किसान आंदोलन का सूत्रपात सीकर ठिकाने से हुआ था । रामनारायण चौधरी ने सीकर के किसानों के साथ शेखावाटी के किसानों को भी संगठित किया ।
  • रामनारायण चौधरी ने ‘तरूण राजस्थान’ समाचार पत्र के माध्यम से किसानों के लिए आवाज उठाई तथा लंदन से प्रकाशित होने वाले ‘डेली हेराल्ड’ नामक पत्र में भी क्षेत्र के किसानों की समस्याओं के बारे में लेख लिखें ।
  • अक्टूबर, 1925 में अखिल भारतीय जाट महासभा का अधिवेशन पुष्कर में भरतपुर महाराजा श्री कृष्णसिंह के सभापतित्व में आयोजित हुआ था ।
  • 5 नवंबर 1925 को बगड़ (शेखावाटी) में जाट सभा का गठन किया गया । चौधरी रामसिंह इसके सभापति चुने गए ।
  • मार्च,1930 में दिल्ली जाट महासभा का वार्षिक अधिवेशन धौलपुर महाराजा श्री उदयभानसिंह के सभापतित्व में संपन्न हुआ । इस अधिवेशन में शेखावटी से अनेक लोग शामिल हुए जिनमें पंडित ताड़केश्वर शर्मा प्रमुख है ।

🔸द्वितीय चरण (1931-35 ई.)

  • पलथाना, कटराथल, गोठड़ा व कुंदन गांव इसके प्रमुख केंद्र थे ।
  • झुँझुनूँ में 11-13 फरवरी 1932 को अखिल भारतीय जाट महासभा का विशाल स्तर पर 23वां अधिवेशन आयोजित किया गया । इस अधिवेशन के आयोजन में शेखावटी के प्रसिद्ध नेता पंडित ताड़केश्वर शर्मा का विशेष योगदान रहा ।
  • 1931 ईस्वी में ठाकुर देशराज ने राजस्थान जाट क्षेत्रीय सभा की स्थापना की जिसने सितंबर 1933 में सीकर टिकाने के पलथाना ग्राम में एक वृहद जाट सम्मेलन का आयोजित किया । इस जाट सम्मेलन में सीकर में एक ‘जाट प्रजापति महायज्ञ’ करने का निश्चय हुआ । साथ ही सीकरवाटी जाट किसान पंचायत की स्थापना की गई ।
  • बसंत पंचमी, 20 जनवरी 1934 को सीकर में यह जाट प्रजापति महायज्ञ प्रारंभ हुआ । जिसमें 100 मन घी की आहूती दी गई । इसमें 3.5 लाख लोगों ने भाग लिया ।
  • सरदार हरलाल सिंह की पत्नी किशोरी देवी की अध्यक्षता में कटराथल स्थान पर सीहोट के ठाकुर मानसिंह द्वारा जाट महिलाओं के साथ किए गए दुर्व्यवहार के विरोध में 25 अप्रैल 1934 को एक विशाल महिला सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमें क्षेत्र की 10,000 से अधिक जाट महिलाओं ने भाग लिया ।
  • 21 जून 1934 को डूंडलोद के ठाकुर ईश्वरी सिंह ने जयसिंहपुरा में किसानों पर हमला किया । दैनिक अर्जुन ने इस दशा का भयावह ब्यौरा दिया । ठाकुर देशराज के आव्हान पर 21 जुलाई 1934 को संपूर्ण जयपुर रियासत में ‘जयसिंहपुरा शहीद दिवस’ मनाया गया । जयपुर राज्य में यह प्रथम मुकदमा था जिसमें जाट किसानों के हत्यारों को सजा दिलवाना संभव हो सका ।
  • 23 अगस्त 1934 को सीकर ठिकाने व किसानों में समझौता हुआ । यह किसानों की सामंती शक्तियों पर विजय थी । किसानों ने ‘कोई लगान नहीं’ आंदोलन चलाया । सीकरवाटी जाट किसान पंचायत ने अपनी ओर से 2 प्रतिनिधि सर छोटूराम चौधरी व कुं रतनसिंहको वार्ता हेतु भेजा ।
  • सीकर ठिकाने के विशेष अधिकारी वैब ने अप्रैल 1935 को कूदन व गोठड़ा भूकरान गाँवों पर धावा बोल दिया । कूदन गाँव का हत्याकांड इतना वीभत्स था कि मई 1935 में इंग्लैंड के हाउस ऑफ कॉमंस में सदस्य मि. पैट्रिक लॉरेन्स ने सीकर के किसानों पर खूड़ी व कूदन में हुए नरसंहार के मामले में प्रश्न पूछा । ‘कर्मवीर’ व ‘हरिजन’ अखबार ने खूड़ी व कुंदन के नरसंहार की आलोचना की ।

🔸तृतीय चरण (1938-47 ई.)

  • 1 मार्च 1939 को जयपुर राज्य प्रजामंडल ने किसान दिवस मनाया ।
  • 21-22 नवंबर 1942 को टीकाराम पालीवाल की अध्यक्षता में सीकर किसान सम्मेलन फतेहपुर में हुआ ।
  • 1 जनवरी 1947 को जयपुर राज्य प्रजामंडल ने महाराजाओं की छत्रछाया में उत्तरदायी सरकार का गठन किया । इस प्रकार से 25 जनवरी 1947 को जयपुर जागीर लैंड टीनेंसी एक्ट,1947 पारित किया ।
  • मार्च 1947 को सीकर व शेखावाटी के किसान संघर्ष का अंत हुआ । जयपुर में हीरालाल शास्त्री के नेतृत्व में लोकप्रिय सरकार का गठन हुआ ।
  • 1952 ईस्वी में राजस्थान सरकार ने जागीरदारी व जमींदारी उन्मूलन अधिनियम पास किया ।

महत्वपूर्ण तथ्य :-

➡ 1922 में खेतड़ी ठिकाने के चिड़ावा कस्बे में ‘अमर सेवा समिति’ नामक संस्था की स्थापना की गई । इसके संस्थापक मास्टर प्यारेलाल गुप्ता था ।

➡ मंडावा के सेठ देवीबक्स सर्राफ शेखावाटी में आर्य समाज के संस्थापक थे । सेठ देवीबक्स ने नागरिक अधिकारों की घोषणा की ।

मूलचंद अग्रवाल ने रींगस में ‘चर्खासंघ’ तथा खंडेला में ‘खण्डेलावाटी जाट पंचायत’ की 1931 में स्थापना की ।

➡ मुकुंदगढ़ के सेठ भागीरनाथ कानेडिया का प्रमुख स्थान है । इनका हरिजनोद्धार व अस्पृश्यता निवारण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान है ।

श्री बंशीधर शर्मा (श्री माधोपुर) ने अनुसूचित मीणा जाति के सामाजिक उन्नयन के लिए बहुत कार्य किए । उन्होंने मीणा जाति को संगठित कर जरायम पेशा जातियों के अपराधी जनजाति विधेयक को रद्द करवाया ।

➡ पंडित ताड़केश्वर शर्मा ने 1929 ईस्वी में ‘ग्राम’ नामक हस्तलिखित पत्र प्रकाशित कर ग्रामीण क्षेत्र में अत्याचारी सामंती तंत्र के विरुद्ध विचार क्रांति का श्रीगणेश किया । उन्होंने 1934 में ठाकुर देशराज के सहयोग से आगरा से ‘गणेश’ नामक एक सप्ताहिक पत्र का प्रकाशन शुरू किया ।

➡ चांदमल सुराणा व उनके साथियों ने मारवाड़ का तौल आंदोलन जोधपुर सरकार द्वारा 1920-21 में 100 तोले के सेर को 80 तोले के सेर में परिवर्तित करने के निर्णय के विरोध में शुरू किया ।

➡ मांगीलाल भव्य ने ‘पड़त स्वराज्य आंदोलन’ का संचालन किया ।

राजस्थान का सबसे बड़ा किसान आंदोलन कौन सा है?

बेगूँ किसान आंदोलन चित्तौड़गढ़ में सन 1921 में आरम्भ हुआ। इसकी शुरूआत बेगार प्रथा के विरोध के रूप में हुई थी। आंदोलन की शुरूआत रामनारायण चैधरी ने की, बाद में इसकी बागड़ोर विजयसिंह पथिक ने सम्भाली थी। इस समय बेगूँ के ठाकुर अनुपसिंह थे।

राजस्थान का प्रथम किसान आंदोलन कौन सा है?

राजस्थान में किसान आंदोलन पहली बार 1897 में बिजोलियां से शुरू हुआ। यह 1847-1941 के बीच 3 वाक्यांशों में जारी रहा।

राजस्थान में कुल कितने किसान आंदोलन हुए?

जानिए राजस्थान के प्रमुख 9 किसान आंदोलनों के बारे में।

राजस्थान में अमीर किसान आंदोलन कब हुआ?

1931 में डॉ. मोहम्मद हादी के नेतृत्व में राजस्थान का मेव किसान आंदोलन शुरू हुआ