रोजगार हमारे लिए क्यों आवश्यक है? - rojagaar hamaare lie kyon aavashyak hai?

शिक्षित बेरोज़गारी भारत के लिए एक विशेष समस्या क्यों है?


शिक्षित बेरोज़गारी भारत के लिए एक विशेष समस्या है। यह एक गंभीर समस्या है जो बहुत तेजी से बढ़ रही है। आज मैट्रिक, स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्रीधारी भी रोजगार पाने में असमर्थ है। एक अध्यन से पता चला है कि मैट्रिक कि तुलना में स्नातक और स्नातकोत्तर युवकों में बेरोजगार की समस्या अत्यधिक गंभीर रूप लेती जा रही है।
यह स्थिति अत्यंत गंभीर स्थिति है जिसके निम्नलिखित कारण है-
(i) शहरी बेरोज़गारी का एक प्रमुख कारण रोजगार केंद्रित शिक्षा का अभाव है। हमारी शिक्षा व्यवसायोन्मुख और व्यवहारिक न होकर केवल पाठ्यपुस्तक पर आधारित हो गई है।
(ii) जनसँख्या तीव्र गति से बढ़ रही है परन्तु रोजगार के अवसर उतनी तीव्रता से नहीं बढ़ रहे है। अतः नौकरी कम है और दावेदार अधिक।
(iii) एक तरफ तकनीकी तौर पर योग्य व्यक्तियों के बीच बेरोजगारी की कमी है, जबकि दूसरी तरफ आर्थिक संवृद्धि के लिए आवश्यक तकनीकी कौशल की कमी है।

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संसाधन के रूप में लोग से आप क्या समझते हैं?


(i) संसाधन के रूप में लोग वर्तमान उत्पादन कौशल और क्षमताओं के संदर्भ में किसी देश के कार्यरत लोगों का वर्णन करने का तरीका है।
(ii) उत्पादक पहलू की दृष्टि से जनसंख्या पर विचार करना सकल राष्ट्रीय उत्पाद के सृजन में उनके योगदान की क्षमता पर बल देना है।
(iii) जब इस विद्यमान मानव संसाधन को और अधिक शिक्षा और स्वास्थ्य द्वारा विकसित किया जाता है तब हम इसे मानव पूंजी निर्माण कहते हैं।
(iv) मानव को मानव पूँजी में निवेश बदलता है। एक मानव ही है जो भूमि और भौतिक पूँजी का सही उपयोग करता हैl बाद में दोनों अपने आप किसे कार्य को पूरा नहीं कर सकते।

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मानव संसाधन भूमि और भौतिक पूँजी अन्य संसाधन से कैसे भिन्न है?


मानव संसाधन भूमि और भौतिक पूँजी अन्य संसाधन से निम्न प्रकार से भिन्न है-
(i) मानव संस्धान का आर्थिक विकास की दृष्टि से दोहरा महत्व है। लोग विकास का साधन और साध्य दोनों है। एक और वे उत्पादन के साधन और दूसरी ओर वे अंतिम उपभोगकर्ता भी स्वयं ही है।
(ii) अन्य संसाधनों से भिन्न मानव संसाधन की एक विशेषता यह है कि शिक्षित और स्वस्थ लोगो के लाभ केवल उन तक ही सिमित नहीं है बल्कि उनका लाभ उन तक भी पहुँचता है जो अधिक शिक्षित और स्वस्थ भी नहीं है।
(iii) मानव संसाधन भूमि और पूंजी दोनों का प्रयोग कर सकता है किन्तु भूमि और पूंजी दोनों अपने आप उपयोग में नहीं आ सकती।

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किसी व्यक्ति के कामयाब जीवन में स्वस्थ्य की क्या भूमिका है?


किसी व्यक्ति के कामयाब जीवन में स्वस्थ्य की महत्वपूर्ण भूमिका है-

(i) अच्छा स्वास्थ्य एक कार्यकर्ता की दक्षता को बढ़ाता है। 

(ii) व्यक्ति का स्वास्थ्य उसे बिमारियों से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है। 

(iii) स्वास्थ्य व्यक्ति कौशल और उत्पादकता से देश के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान देता है। 

(iv) कठिन और लगातार काम करने और जीवन का आनंद उठाने में किसी व्यक्ति की क्षमता काफी हद तक उसके स्वास्थ्य पर निर्भर करती है। 
(v) अच्छे स्वस्थ्य से व्यक्ति की कुशलता और क्षमता बढ़ती हैl उसे अच्छा वेतन और आगे बढ़ने के अवसर मिलते है। 

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मानव पूँजी निर्माण में शिक्षा की क्या भूमिका है?


मानव पूँजी के निर्माण में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका हैं:
(i) शिक्षा अच्छी नौकरी और वेतन के रूप में फल देती है।
(ii) शिक्षा व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास में महत्वपूर्ण है।
(iii) शिक्षा लोगों के लिए नए क्षितिज खोल देती हैl
(iv) शिक्षा जीवन के नए मूल्य विकसित करती है।
(v) शिक्षा राष्ट्रीय आय, सांस्कृतिक समृद्धि को बढ़ाती है और सामजिक विकास में भी वृद्धि करती है।
(vi) शिक्षा के माध्यम से देश के आर्थिक विकास में वृद्धि होती है।
(vii) शिक्षा,अच्छे ज्ञान और उत्तम प्रशिक्षण से देश के संसाधनों का उत्तम उपयोग करना सिखाती है।

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मानव पूँजी निर्माण में स्वास्थ्य की क्या भूमिका है?


मानव पूँजी निर्माण में स्वास्थ्य की क्या भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है:

(i) स्वास्थ्य में व्यक्ति का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य शामिल है।
(ii) आमतौर पर देखा जाता है कि एक स्वस्थ कर्मचारी अधिक कार्य कर सकता है क्योंकि उसका स्वास्थ्य उसे इसके लिए सक्षम बनता है।
(iii) स्वास्थ्य किसी व्यक्ति को रोगों से लड़ने कि क्षमता प्रदान करता हैl स्वस्थ व्यक्ति जीवन कि समस्याओ से आसानी से लड़ सकता है।
(iv)स्वस्थ व्यक्ति में काम करने कि अधिक ऊर्जा, समर्थ्य और शक्ति होती है।
(v) मानव का विकास शिक्षा और स्वास्थ्य से विकसित होता है जिससे मानव पूँजी का निर्माण किया जाता है। 

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हाल ही में मध्य भारत के एक राज्य के मुख्यमंत्री ने रोजगार सृजन में कमी को लेकर केंद्र सरकार का मजाक उड़ाया। विपक्षी दलों के अन्य मुख्यमंत्री भी नियमित रूप से यह सवाल उठाते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि मुख्यमंत्री होने के नाते अपने नागरिकों को गुणवत्तापूर्ण रोजगार उपलब्ध कराना उनकी जिम्मेदारी है, जिन्होंने उन्हें चुना है। उनमें से अधिकतर अपने बजट भाषणों में रोजगार सृजन का जिक्र नहीं करते। वे मानते हैं कि मुफ्त की सुविधाएं और सब्सिडी देना उनकी आर्थिक नीतियों का प्रमुख उद्देश्य है। आज रोजगार सृजन के लिए आर्थिक विस्तार भारत की जरूरत है। इस समय (2019-20 में) हमारी जीडीपी 30 खरब डॉलर यानी 209.8 लाख करोड़ रुपये की है। पचास खरब डॉलर के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए हमें औद्योगिक विस्तार और गुणवत्तापूर्ण रोजगार सृजन को प्राथमिकता देनी होगी। सवाल उठता है कि आखिर रोजगार सृजन के लिए कौन जिम्मेदार है-राज्य सरकारें या केंद्र!

शोध बताते हैं कि राज्यों के पास काफी संसाधन हैं, बड़ा बजट है, और वे जिस आर्थिक इकाई पर शासन करते हैं, उस पर इनका अधिक प्रभाव पड़ता है, लेकिन अधिकांश राज्यों में रोजगार सृजन पर ध्यान नहीं दिया जाता है। आंकड़े बताते हैं कि कुल खर्च में राज्यों का खर्च 2015 में 70 फीसदी से ज्यादा था, जो 2018-19 में बढ़कर 75.5 फीसदी हो गया। ऐसे ही, कुल खर्च में केंद्र सरकार की हिस्सेदारी 2016 में 30 फीसदी थी, जो 2019 में तेजी से घटकर 24.5 फीसदी रह गई। जाहिर है, आवश्यक पूंजी के जरिये आर्थिक विस्तार और रोजगार सृजन को प्रभावित करने की केंद्र सरकार की क्षमता सीमित है।

केंद्र सरकार की भूमिका भारतीय गणतंत्र के लिए कामकाजी माहौल बनाना है। इस संबंध में इसके कर्तव्य हैं-सही नीतियां और नियम बनाना, कर इकट्ठा करना तथा उसे राज्यों के बीच बांटना, एक प्रभावी सैन्य व रक्षा व्यवस्था बनाए रखना, मुद्रा और विदेशी मामलों को प्रबंधित करना, कौशल विकास और बुनियादी ढांचा नेटवर्क का निर्माण करना आदि। इन आवश्यक कर्तव्यों से परे, आर्थिक विकास के पहिये को आगे बढ़ाने के लिए केंद्र की खर्च करने की क्षमता लगातार घटती जा रही है। भारत में रोजगार सृजन हो रहा है, लेकिन अच्छे वेतन के साथ गुणवत्तापूर्ण नौकरियों की संख्या बढ़नी चाहिए, जो नहीं है। इसके अलावा देश के विभिन्न हिस्सों में रोजगार सृजन असमान रहा है।

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) भारत में रोजगार सृजन का बेहतर ढंग से प्रतिनिधित्व करता है। ईपीएफओ सितंबर, 2017 से पैदा की गई नई नौकरियों को दर्ज करता है और हर माह उसकी रिपोर्ट प्रकाशित करता है। मैंने पहले भी बताया था कि अकेले ईपीएफओ पर पंजीकृत करीब एक करोड़ रोजगार प्रति वर्ष भारत में सृजित हो रहे हैं। ईपीएफओ ने हाल ही में अपनी कार्यप्रणाली को अपडेट किया है, लेकिन अभी तक राज्यवार आंकड़े को इस अद्यतन कार्यप्रणाली के साथ विश्लेषित नहीं किया गया है। बिना अद्यतन विधि के ईपीएफओ के नए ग्राहकों के आंकड़े को देखें, तो सितंबर, 2017 से नवंबर, 2019 के बीच 34.3 लाख नई नौकरियों के साथ महाराष्ट्र औपचारिक रोजगार सृजन के मामले में सबसे शीर्ष पर है। 13.7 लाख नई नौकरियों के साथ कर्नाटक काफी नीचे दूसरे स्थान पर है और उसके बाद 12.86 लाख नई नौकरियों के साथ गुजरात तीसरे नंबर है। सामान्य तौर पर सभी दक्षिणी-पश्चिमी राज्य आंध्र प्रदेश के पिछड़ने के बावजूद नई नौकरियां पैदा कर रहे हैं। देश के उत्तर-पूर्वी-मध्य क्षेत्र में रोजगार सृजन विशेष रूप से कम है।

राज्यों पर आर्थिक विस्तार की जिम्मेदारी क्यों? राज्यों के पास बड़े बजट हैं और वे गहरे प्रभाव और दीर्घकालिक विस्तार योजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए इन निधियों का इस्तेमाल कर सकते हैं। भूमि, बिजली, पानी और कई अन्य आवश्यक चीजों का आवंटन उन्हीं के हाथों में है। इन सुविधाओं को उद्योग में लगाकर उन्हें अपने राज्य में रोजगार सुनिश्चित करना होगा। सीमित बजट के कारण केंद्र रोजगार पैदा नहीं कर सकता। केंद्र सरकार रोजगार सृजन के लिए पूरे देश के लिए साझा नीति लागू करेगी। लेकिन भारत विविधताओं से भरा देश है, जहां ऐसी साझा नीति वांछित परिणाम नहीं देगी। आर्थिक विकास दर और राज्यों के सकल घरेलू उत्पाद जैसे संकेतक, उच्च शिक्षा के जरिये मानव पूंजी का विकास, औपचारिक रोजगार के अवसर, शहरीकरण व औद्योगिकीकरण, जनसंख्या वृद्धि दर आदि विभिन्न राज्यों के बीच अलग-अलग होती हैं। इसलिए राज्य सरकारों को इन आंकड़ों का उपयोग करके व उचित ढंग से निवेश करके अपने राज्य की जरूरतों को समझना चाहिए।

दक्षिण-पश्चिमी राज्यों में सामान्य रूप से प्रति व्यक्ति जीडीपी उच्च है तथा उच्च शिक्षा व स्नातक में सकल नामांकन दर उच्च है, जिसके कारण काफी रोजगार पैदा होते हैं, जबकि आबादी कम है। इन राज्यों में शिक्षा, विकास, आर्थिक विस्तार, औद्योगिकीकरण और मानव पूंजी विकास पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जिस कारण उत्तर भारत की तुलना में यहां शिक्षित, उच्च आय वाले समुदाय हैं। 42.74 करोड़ की संयुक्त अनुमानित आबादी वाले दक्षिण-पश्चिमी राज्यों में सितंबर, 2017 से नवंबर, 2019 के बीच 60.8 लाख नए रोजगार का सृजन हुआ। इसी दौरान 68.97 करोड़ की संयुक्त अनुमानित आबादी वाले उत्तर-मध्य-पूर्वी क्षेत्र में मात्र 23.5 लाख नए रोजगार का सृजन हुआ।

उत्तर-मध्य-पूर्वी क्षेत्र के राज्य सामान्य रूप से मानव पूंजी विकास और अपनी अर्थव्यवस्था के विस्तार में विफल रहे। वहां उच्च शिक्षा व स्नातक में सकल नामांकन दर निम्न है। उत्तर प्रदेश या राजस्थान जैसे राज्यों में  स्नातकों की संख्या ज्यादा है, लेकिन प्रति व्यक्ति जीडीपी कम है। साथ ही, स्नातकों के अनुकूल रोजगार सृजन का अभाव है। इन राज्यों में बड़ी युवा आबादी है, जिसे रोजगार चाहिए। गुणवत्तापूर्ण नौकरी के अभाव में वहां के लोग या तो अपने भाग्य को कोस रहे हैं या बेहतर अवसर की तलाश में दक्षिणी राज्यों का रुख कर रहे हैं।

आंकड़े स्पष्ट बताते हैं कि ज्यादा विकसित राज्य में ज्यादा नौकरियां हैं। अब समय आ गया है कि सभी राज्य सरकारें अपनी आर्थिक संस्थाओं की जिम्मेदारी उठाएं और रोजगार सृजन के लिए जरूरी औद्योगिक व शहरी माहौल तैयार करें।

रोजगार का जीवन में क्या महत्व है?

रोजगार शब्द खुशहाली का प्रतीक है। प्रत्येक समाज, सरकार, देश में व्याप्त, बेरोजगारी को मिटा देने के लिए अथक प्रयास करते है। प्रत्येक सरकार देश की तरक्की एवं विकास तथा समाज में शांति एवं खुशहाली बनाये रखने के लिए अधिक से अधिक रोजगार देने का अथक प्रयास करती है।

रोजगार का क्या अर्थ है?

कोई व्यक्ति जीवन के विभिन्न कालावधियों में जिस क्षेत्र में काम करता है या जो काम करता है, उसी को उसकी आजीविका या 'वृत्ति' या रोजगार या करिअर (Career) कहते हैं। आजीविका प्रायः ऐसे कार्यों को कहते हैं जिससे जीविकोपार्जन होता है।

रोजगार की क्या विशेषताएं हैं?

Answer: इसका सार इस तथ्य में निहित है कि नियोक्ता एक कर्मचारी को काम पर रखता है, उसे एक नौकरी प्रदान करता है, एक वेतन देता है, लेकिन रोजगार अनुबंध केवल एक सख्ती से सीमित अवधि के लिए तैयार किया जाता है, या कर्मचारी की श्रमिक गतिविधि को अनुबंध पर, पट्टे पर देने (एजेंसी के माध्यम से भर्ती) द्वारा नियोजित किया जाता है।

रोजगार की समस्या क्यों है?

शिक्षित बेरोज़गारी भारत के लिए एक विशेष समस्या है। ... एक अध्ययन से पता चला है कि मैट्रिक कि तुलना में स्नातक और स्नातकोत्तर युवकों में बेरोजगार की समस्या अत्यधिक गंभीर रूप लेती जा रही है। यह स्थिति अत्यंत गंभीर स्थिति है जिसके निम्नलिखित कारण है- (i) शहरी बेरोज़गारी का एक प्रमुख कारण रोजगार केंद्रित शिक्षा का अभाव है।