Prayogvad Kavya ki visheshtaen,prayogvadi Kavya ki pravrittiyan,prayogvad kise kahate Hain,prayogvad ki visheshtaen,prayogvadi Kavya Dhara ke Pramukh Kavi,prayogvadi yug kise kahate Hain,प्रयोगवादी काव्य की विशेषताएं,प्रयोगवाद की विशेषताएं,प्रयोगवादी किसे कहते हैं,प्रयोगवाद की प्रमुख विशेषताएं Show नमस्कार मित्रों आज की पोस्ट में आपको प्रयोगवाद किसे कहते हैं? तथा इसकी विशेषताएं। इनके कवियों के नाम के विषय में जानकारी मिलेगी। आपको पोस्ट अंत तक जरूर पढ़नी है। 👉Joined Telegram Group 👈 👉 Visit our YouTube Channel👈 प्रयोगवादी काव्य धारा के प्रमुख कवि प्रयोगवाद की परिभाषा — डॉ नागेंद्र के अनुसार - हिंदी साहित्य में प्रयोगवाद नाम उन कविताओं के लिए रूढ़ हो गया है, जो कुछ नए भाव वेदों, संवेदना तथा उन्हें प्रेरित करने वाले शिल्पगत चमत्कारों को लेकर शुरू शुरू में तार सप्तक के माध्यम से सन 1993 ईस्वी में प्रकाशन जगत में आई और जो प्रगतिशील कविताओं के साथ विकसित होती गई तथा जिसका समापन नहीं कविता में हो गया। प्रयोगवाद के संदर्भ में विशेष तथ्य — 1. इस काव्य धारा की कविताओं को प्रयोगवाद नाम सर्वप्रथम आचार्य नंददुलारे वाजपेई ने अपने एक निबंध प्रयोगवादी रचनाएं में प्रदान किया था। 2. आगे चलकर प्रयोगवाद का ही विकास नई कविता के नाम से हुआ था। 3.'लोक कल्याण की उपेक्षा ' प्रयोगवाद का सबसे बड़ा दोष माना जाता है। 4. प्रयोगवादी कवि यथार्थवादी है। विभा गुप्ता के स्थान पर ठोस बौद्धिकता को स्वीकार करते हैं। 👉 छायावाद किसे कहते हैं? इसकी प्रमुख विशेषताएं प्रयोगवादी काव्यधारा की प्रमुख विशेषताएं 1. अतियथार्थवादीता 2. बौद्धिकता की अतिशयता 3. घोर वैयकितकता 4. वाद व विचारधारा का विरोध 5. नवीन उपमानो का प्रयोग 6. निराशावाद 7. साहस और जोखिम 8. व्यापक अनास्था की भावना 9. क्षणवाद 10. सामाजिक यथार्थवाद की भावना प्रयोगवादी काव्य धारा के प्रमुख कवि — सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय जन्म काल - 1911 ई (7 मार्च 1911) मृत्यु - 1987 ई (4 अप्रैल 1987) जन्म स्थान - ग्राम-कसिया, जिला - देवरिया प्रमुख रचनाएं — • काव्यात्मक रचनाएं 1. भग्नदूत - 1933 ईस्वी 2. चिंता -1942 ईस्वी 3. इत्यलम -1946 ईस्वी 4. हरी घास पर क्षण भर - 1949 ई. 5. बावरा अहेरी - 1961 में 6. इंद्रधनु रोंदे हुए - 1951 ई. 7. अरी ओ करुणा प्रभामय - 1961ई 8. आंगन के पार द्वार - 1961 ई. 9. कितनी नावों में कितनी बार 👉 नई कविता की विशेषताएं कहानी संग्रह — परंपरा त्रिपथगा जयदोल कोटरी की बात शरणार्थी मेरी प्रिय कहानियां उपन्यास — शेखर एक जीवनी नदी के द्वीप अपने अपने अजनबी प्रयोगवादी मुक्त छंदों का प्रयोग - प्रयोगवादी कवियों ने अपनी कविताओं के लिए मुक्त छंदों का प्रयोग किया है। निराशा बाद की प्रधानता - इस युग के कवियों ने मानव मन की निराशा कुंठा हुआ हताशा का यथार्थ चित्रण किया है। प्रेम भावनाओं का खुला चित्र - युग के कवियों ने प्रेम भावनाओं का अत्यंत खुला चित्रण किया है इसलिए उस में अश्लीलता आ गई है। बुद्धि बांध की प्रधानता - इस युग के कवियों ने भाव की अपेक्षा बुद्धि पर अधिक बल दिया है इस कारण काव्य में कहीं-कहीं दुरुहता आ गई है। _____________________________ प्रयोगवाद की विशेषताएं प्रवृतियां प्रगतिवाद काव्य की प्रतिक्रिया स्वरूप कवियों ने एक नई प्रकार की कविता को जन्म दिया। जिसे प्रयोगवाद की संख्या दी गई है। काम में अनेक प्रकार के नए-नए कलात्मक प्रयोग किए गए इसलिए इस कविता को प्रयोगवादी कविता का आ गया। प्रयोगवादी काव्य में शैली का तथा व्यंजनागत नवीन प्रयोगों की प्रधानता होती है। डॉ गणपति चंद्रगुप्त के शब्दों में -- "नई कविता, नहीं समाज के नए मानव की नई प्रवृत्तियों की नई अभिव्यक्ति नई शब्दावली में है, जो नए पाठकों के नए दिमाग पर नए ढंग से नया प्रभाव उत्पन्न करते हैं". _____________________________ भावुकता तथा बौद्धिकता का संश्लेषण -- प्रयोगवादी कविता में ना तो छायावादी काव्य की जैसी वायवीयता, अति भावुकता एवं कल्पना है और ना ही प्रगतिवाद की तरह किसी विचारधारा के प्रति यांत्रिक मोह। नगरीय जीवन के दबाव से निर्मित इनकी चेतना में भावना बौद्धिकता में संयुक्त होकर व्यक्त होती है। इसलिए इनकी काव्या अनुभूति में रोमानिया या तीव्रता नहीं बल्कि गैर - रोमानीपन तथा तटस्थता दिखाई पड़ती है उदाहरण के लिए ------ "सुनो कभी भावनाओं नहीं है सोना भावनाएं खाद है केवल, जरा उनको दबा रखो, अनेकों और पकने दो, ताने और तचने दो, कि उनका सार बनकर डरा को उर्वरा करा दो " ____________________________ नवीन रहो का अन्वेषण -- प्रयोगवादी कवियों ने प्रदत्त शक्तियों को अस्वीकार किया और यह परंपरा और रूढी में बारीक अंतर करते हैं और परंपरा को महत्व देते हुए विरोधियों का विरोध करते हैं वे कहते हैं परंपरा वह है जो व्यक्ति के विवेक के साथ संवाद करने की क्षमता रखती है यह कभी रोगियों को तोड़ते हैं यह तोड़ना उन्हें सुखदाई लगता है। ऐसी दशा और दिशा तक छूटने का सूखा टूटने का सुख बिना सीढ़ी के बढ़ेंगे तीर के जैसे बढ़ेंगे | इसलिए इन सीढ़ियों के । फूटने का सुख /टूटने का सुख । ____________________________ वैचारिक प्रतिबद्धता का निषेध -- कोई भी विचारधारा एक यांत्रिक चिंतन पैदा करती है जिससे केवल सतही वह सैद्धांतिक तौर पर ही समस्याओं का समाधान संभव हो पाता है। विचारधारा के प्रभाव में बहने वाले व्यक्तियों का निजी व्यक्तित्व खो जाता है। प्रयोगवादी कवि स्वयं के विचारों को अभिव्यक्त करते हैं वह विचारधाराओं से अपने काम पर तत्व स्वीकारते हैं। मुक्तिबोध ने मार्क्सवाद से तो आगे आदि ने फ्रायड के मनोविश्लेषण बाद से प्रेरणा ग्रहण की है। पर यह सभी कभी विचारधारा की बेड़ियों से स्वयं को मुक्त रखते हैं। _____________________________ व्यक्ति को महत्व : प्रयोगवादी कवि सामाजिकता का निषेध नहीं करते परंतु व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता पर बल अवश्य देते हैं। इनका मानना है कि व्यक्ति समाज से तो नहीं किंतु समाज में अवश्य स्वतंत्र है। इनकी स्पष्ट मानता है कि कविता जिस अनुभव से रची जाती है वह वैयक्तिक ही हो सकता है, सामाजिक नहीं। आगे ने नदी तथा दीप के प्रतीकों से समाज में व्यक्ति के संबंधों के कई प्रतीकात्मक चित्र खींचे हैं। उदाहरण के लिए - "हम नदी के द्वीप हैं/हम नदी कहते कि हमको छोड़कर स्रोतस्विनी बह जाए/ वह हमें आकार देती है…... किंतु हम हैं द्वीप /हम धारा नहीं हैं / स्थिर समर्पण है हमारा/ हम सदा के द्वीप हैं स्रोतस्विनी के /किंतु हम वैसे नहीं हैं /क्योंकि बहना रेत होता है ।" हम आएंगे तो रहेंगे ही नहीं / ____________________________ क्षण को महत्व- प्रयोगवाद अनुभूति का काम है और अनुभव क्षणजन्म होता है, युगजन्य नहीं |इसलिए यह कभी क्षण को महत्व देते हैं , प्रगति वादियों की तरह योगों के आधार पर काव्य अनुभूति का स्वरूप तय नहीं करते। इन कवियों का मानना है कि कविता स्वानुभूति से बनती है और अनुभूति का सारी संबंध क्षण से ही हो सकता है। अज्ञेय की प्रसिद्ध कविताएं प्रयोगवाद प्रवर्तक का नाम क्या है?प्रयोगवाद के अगुआ कवि अज्ञेय को 'प्रयोगवाद का प्रवर्तक' कहा जाता है।
प्रयोगवाद का दूसरा नाम क्या है?🔷⋅प्रयोगवाद के विकसित रूप को 'नई कविता 'के नाम से जाना जाता है । 🔷प्रयोगवाद ने दूसरे सप्तक के प्रकाशन के बाद नई कविता का रूप धारण कर लिया । 🔷डॉ रामविलास शर्मा और नामवर सिंह ने नई कविता को प्रयोगवाद का छद्म रूप कहां । 🔷नई कविता के नामकरण का श्रेय अज्ञेय को जाता है ।
योग दर्शन के प्रवर्तक कौन है?योग के प्रवर्तक हैं शिव
प्रयोगवाद की स्थापना कब हुई?हिन्दी मे प्रयोगवाद का प्रारंभ सन् 1943 मे अज्ञेय के सम्पादन मे प्रकाशित तारसप्तक से माना जा सकता है। इसकी भूमिका मे अज्ञेय ने लिखा है-कि कवि नवीन राहों के अन्वेषी हैं।" स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात अज्ञेय के सम्पादक मे प्रतीक पत्रिका प्रकाशन हुआ। उसमे प्रयोगवाद का स्वरूप स्पष्ट हुआ।
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