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परिनालिका द्वारा उत्पादित चुम्बकीय क्षेत्र परिनालिका (solenoid) एक त्रिविमीय (three-dimensional) कुण्डली (coil) को कहते हैं। भौतिकी में परिनालिका स्प्रिंग की भांति बनाये गये तार की संरचना को कहते हैं जिसमें से धारा प्रवाहित करने पर चुम्बकीय क्षेत्र निर्मित होता है। प्राय: ये तार किसी अचुम्बकीय पदार्थ (जैसे प्लास्टिक) के बेलनाकार आधार पर लिपटे रहते हैं जिसके अन्दर कोई अचुम्बकीय क्रोड, (जैसे हवा) या चुम्बकीय क्रोड (जैसे लोहा) हो सकता है। परिनालिकाएँ इसलिये महत्वपूर्ण हैं क्योंकि उनकी सहायता से नियंत्रित चुम्बकीय क्षेत्र का निर्माण किया जा सकता है तथा वे विद्युतचुम्बकों की तरह प्रयोग की जा सकती हैं। परिनालिका का चुम्बकीय field[संपादित करें]I धारा वहन कर रही, N फेरों वाली, l लम्बाई तथा r त्रिज्या वाली परिनालिका के अक्ष पर चुम्बकीय क्षेत्र H : जहाँ x परिनालिका के अक्ष के मध्य बिन्दु से नापी गयी दूरी है। यदि परिनालिका की लम्बाई उसकी त्रिज्या की तुलना में बहुत बड़ी हो, अर्थात् तो परिनालिका के अन्दर सम्पूर्ण अक्ष पर लगभग समान (constant) चुम्बकीय क्षेत्र होता है, जिसका मान यह चुम्बकीय क्षेत्र परिनालिका के बाहर जाते ही बहुत तेजी से शून्य हो जाता है। परिनालिका का प्रेरकत्व (इंडक्टैंस)[संपादित करें]हवा या निर्वात के कोर वाली बहुत लम्बी परिनालिका का प्रेरकत्व (लगभग) निम्नलिखित सूत्र से दिया जाता है: .जहाँ परिनालिका का अनुप्रस्थ क्षेत्रफल () है तथा निर्वात की पारगम्यता है। छोटी लम्बाई की परिनलिकाओं का प्रेरकत्व निम्नलिखित सूत्र से निकाला जा सकता है: .परिनालिका के उपयोग[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
सब्सक्राइब करे youtube चैनल solenoid in hindi परिनालिका की परिभाषा क्या है परिनालिका किसे कहते है ? meaning परिभाषा : जब किसी चीनी मिट्टी से बनी बेलनाकार नलिका जिसकी लम्बाई अधिक हो तथा त्रिज्या बहुत कम हो , पर ताँबे का तार लपेटा जाता है इस व्यवस्था को परिनालिका कहते है। चीनी मिट्टी की बेलनाकार आकृति पर फेरे पास पास लपेटे जाते है अर्थात फेरों के मध्य जगह नहीं छोड़ी जाती है। ऊपर दिखाया गया चित्र परिनालिका का है इसमें आप देख सकते है की एक चीनी मिट्टी की बनी हुई बेलनाकार आकृति पर तांबे का तार लम्बाई के अनुदिश लपेटा हुआ है। जब किसी परिनालिका का सोलेनोइड में धारा I प्रवाहित की जाती है तो चित्रानुसार इसमें चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। इस चुंबकीय क्षेत्र की दिशा समान होती है तथा बाहर के बिन्दुओ पर चुंबकीय क्षेत्र एक दूसरे का विरोध करते है यही कारण है की बाहरी बिंदुओं पर चुम्बकीय क्षेत्र का मान तुलनात्मक कम होता है। ताम्बे के फेरे जितने ज्यादा पास पास होते है चुम्बकीय क्षेत्र बढ़ता जाता है , किसी भी आदर्श परिनालिका के अंदर चुम्बकीय क्षेत्र सभी जगह समान माना जाता है तथा परिनालिका का बाहर शून्य माना जाता है। धारावाही परिनालिका का चुम्बकीय व्यवहार (magnetic behaviour of a current carrying solenoid) : यदि किसी चालकीय तार को बेलननुमा कुंडली के रूप में इस प्रकार लपेटा जाए कि उसका व्यास उसकी लम्बाई की तुलना में बहुत छोटा हो तो इस प्रकार की व्यवस्था को परिनालिका (solenoid) कहते है। जब परिनालिका में धारा प्रवाहित की जाती है तो वह दण्ड चुम्बक की तरह व्यवहार करने लगती है अर्थात परिनालिका के परित: एक चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित हो जाता है। चित्र में एक धारावाही परिनालिका के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की चुम्बकीय बल रेखाएँ प्रदर्शित की गयी है। धारावाही कुंडली की भाँती परिनालिका के दो फलक (अर्थात दो सिरे) उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों में बदल जाते है। जिस फलक पर धारा वामावर्त प्रतीत होती है , वह फलक उत्तरी ध्रुव और जिस फलक पर धारा दक्षिणावर्त प्रतीत होती है , वह फलक दक्षिणी ध्रुव की भाँती कार्य करने लगता है। परिनालिका के परित: चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होने की पुष्टि निम्नलिखित प्रयोगों से की जा सकती है – 1. यदि परिनालिका को एक पीतल की रकाब में रखकर उसे एक लम्बे और एंठन रहित धागे द्वारा एक सुदृढ़ आधार से इस प्रकार लटकाएं कि वह क्षैतिज तल में स्वतंत्रतापूर्वक घूम सके तो हम देखते है कि जब परिनालिका में विद्युत धारा प्रवाहित नहीं की जाती है तब वह किसी भी स्थिति में ठहर सकती है लेकिन जैसे ही उसमें धारा प्रवाहित की जाती है तो वह उत्तर दक्षिण दिशा में ही ठहरती है। यदि इसे संतुलन की स्थिति से थोडा सा घुमा दे तो भी यह पुनः उत्तर दक्षिण दिशा में ही आकर ठहरती है। स्पष्ट है कि धारावाही परिनालिका में चुम्बकत्व है। अब यदि सेल के सिरों को उलटकर परिनालिका में प्रवाहित होने वाली धारा की दिशा को उलट दे तो परिनालिका 180 डिग्री सेल्सियस के कोण से घूम जाती है अर्थात परिनालिका का जो सिरा पहले उत्तर की तरफ था अब वह दक्षिण की तरफ हो जाता है। स्पष्ट है कि परिनालिका में प्रवाहित धारा की दिशा उलट देने पर उसके सिरों की ध्रुवता भी उलट जाती है। इसका अर्थ यह हुआ कि परिनालिका के सिरों की ध्रुवता धारा की दिशा पर निर्भर करती है। 2. यदि हम परिनालिका को पीपल की रकाब में रखकर एक लम्बे और बिना बटे हुए धागे द्वारा एक सुदृढ़ आधार से लटका दे और इसी प्रकार की अन्य धारावाही परिनालिका को हाथ से पकड़कर उसके सिरों को बारी बारी से लटकी हुई परिनालिका के एक सिरे के पास लाये तो हम पाते है कि हाथ वाली परिनालिका के एक सिरे से आकर्षण लेकिन दुसरे सिरे से प्रतिकर्षण होता है। इससे स्पष्ट है कि दो धारावाही परिनालिकाओं के सजातीय ध्रुव एक दुसरे को प्रतिकर्षित करते है और विजातीय ध्रुव एक दुसरे को आकर्षित करते है। इस प्रकार धारावाही परिनालिका एक दण्ड चुम्बक की तरह व्यवहार करती है। 3. यदि धारावाही परिनालिका के समीप एक दिक् सूचक सुई लाये तो हम पाते है कि सुई अपनी सामान्य दिशा (उत्तर-दक्षिण) से विक्षेपित होकर एक नयी दिशा में आकर ठहरती है। परिनालिका में धारा की दिशा बदलने पर सुई के विक्षेप की दिशा उलट जाती है। परिनालिका में धारा बढाने पर सुई का विक्षेप बढ़ जाता है और धारा घटाने पर सुई का विक्षेप घट जाता है। स्पष्ट है कि धारावाही परिनालिका में चुम्बकीय क्षेत्र की प्रबलता धारा की प्रबलता पर निर्भर करती है। परिनालिका के परिपथ में लगी कुंजी का प्लग निकाल देने पर धारा का प्रवाह बंद हो जाता है और चुम्बकीय सुई तुरंत ही अपनी सामान्य दिशा में आ जाती है। स्पष्ट है कि परिनालिका में चुम्बकत्व का गुण तभी तक रहता है जब तक उसमें धारा प्रवाहित होती रहती है। धारा का प्रवाह बंद होते ही चुम्बकत्व नष्ट हो जाता है। इसका अर्थ यह है कि परिनालिका में धारा प्रवाहित करने पर (अर्थात आवेश का प्रवाह होने पर ) ही चुम्बकत्व उत्पन्न होता है। यद्यपि धारावाही परिनालिका दण्ड चुम्बक की तरह व्यवहार करती है लेकिन इन दोनों के चुम्बकीय क्षेत्रों में असमानता होती है। दण्ड चुम्बक के चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता इसके सिरों पर अधिकतम और मध्य में शून्य होती है जब धारावाही परिनालिका का चुम्बकीय क्षेत्र लगभग एक समान होता है। केवल परिनालिका के सिरों पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता थोड़ी कम होती है। उपर्युक्त प्रयोगों से यह निष्कर्ष निकलता है कि चुम्बकीय क्षेत्र की उत्पत्ति का मूल कारण धारा प्रवाह अर्थात गतिशील आवेश है।
परिनालिका से क्या समझते हैं?परिनालिका (solenoid) एक त्रिविमीय (three-dimensional) कुण्डली (coil) को कहते हैं। भौतिकी में परिनालिका स्प्रिंग की भांति बनाये गये तार की संरचना को कहते हैं जिसमें से धारा प्रवाहित करने पर चुम्बकीय क्षेत्र निर्मित होता है।
परिनालिका क्या है परिनालिका के विद्युत चुंबक कैसे प्राप्त करते हैं?जब हम परिनालिका में विद्युत धारा प्रवाहित करते हैं, तो परिनालिका के अन्दर तथा चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। जब परिनालिका के अन्दर हम नर्म लोहे का टुकड़ा छड़ रखते हैं, तो परिनालिका में प्रवल चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है, जिसका उपयोग लोहे के टुकड़े को चुम्बक बनाने में किया जाता है।
परिनालिका में चुंबकीय क्षेत्र क्या होता है?परिनालिका का एक सिरा चुम्बकीय उत्तर ध्रुव तथा दूसरा सिरा दक्षिण ध्रुव की भांति व्यवहार करता है। परिनालिका के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएं समांतर सरल रेखाओं की भांति होती हैं। यह दर्शाता है कि किसी परिनालिका के भीतर सभी बिन्दुओं पर चुम्बकीय क्षेत्र समान होता है। अर्थात परिनालिका के भीतर एक समान चुम्बकीय क्षेत्र होता है।
परिनालिका क्या है परिनालिका में एक समान चुंबकीय क्षेत्र कहां होता है?धारावाही परिनालिका भी चुंबकीय पदार्थों (magnetic materials) को अपनी ओर आकर्षित कर सकता है। इसके सिरो पर ध्रुवता (polarity) परिनालिका में धारा की दिशा उलटने से उलट जाती है। धारावाही परिनालिका के अंदर चुंबकीय पदार्थ रखने पर उसमें चुंबकीय प्रेरण (magnetic induction) द्वारा चुम्बकत्व उत्पन्न हो जाता है।
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